Friday, August 30, 2019

आयल फ़ोन, हेडायल मनुक्ख



इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स , कृत्रिम बुद्धि, आ मोबाइल 

पछिला मास चेन्नईमें भारतक उपराष्ट्रपति एकटा अस्पतालक उद्घाटन कयलनि. अस्पताल अपन प्रचार में आओर सब कथूक संग इहो दावा कयने रहथि, जे हुनकर परिसरमें अत्याधुनिक चिकित्साक सुविधातं अछिए, एहि अस्पतालक किछु विभाग ‘ इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT)’ द्वारा संचालित अछि. की थिक ई  ‘ इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT)’ ? सोझ शब्द में  IOT एक दोसरा सं जुड़ल कंप्यूटिंग सिस्टम सबहक एहन जुडल सिस्टम थिक जाहि में संस्था वा घरक नामांकित मशीन,उपकरण, मनुष्य, आ जानवरक भीतर सन्निहित computer सब एक सं दोसर मनुष्यक बीच, वा एक मनुष्य सं कंप्यूटरक बीच सोझ सम्पर्कक बिना, अपना सबहक बीच सूचनाक आदान प्रदान क सकैत अछि.
सोझ शब्दमें एकरा एकटा उदाहरण सं बुझू. हमर घरमें पाइप द्वारा भानसकरबाक गैसकेर कनेक्शन अछि. ओहि हेतु हम किछु टाका गैस कम्पनीकें जमा केने छियैक. काल्हि गैसक हेतु जमा हमर टाका शेष  जायत. हमरा असुविधा नहिं हो एहि हेतु ‘ इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT)’ सोझे हमर बैंक account सं निर्धारित टाका निकासी क कय गैस कम्पनीक खाता में पहुंचा हमर गैस सप्लाई स्वतः निर्बाध चालू राखत. ई एकटा बहुत सोझ उदहारण भेल. दोसर उदहारण, हमरा डायबिटीज अछि. हमर देह में लागल सेंसर निरंतर हमर चीनीक स्तरकें नपैत रहैत अछि. आइ निन्नहिं में हमर रक्तमें सुगरक स्तर खतरनाक स्तर पर  नीचा चल गेल. एकर सूचना हमर डाक्टरक   कंप्यूटर में गेलनि, इमरजेंसी सर्विस कें स्वतः सूचना भ गेलैक. ओतय सं एम्बुलेंस हमरा द्वारि पर आयल. हमर केबाड स्वतः खुजि गेल आ अस्पतालक कर्मी लोकनि हमर चिकित्सा करैत सोझे हमरा अस्पताल ल गेलाह. ततबे नहिं, बिना ककरो द्वारा चिट्ठी लिखबाक हुज्जति उठओने, हमर अस्वस्थताक सूचना अमेरिका बैसल हमर बेटाकें सोझे ईमेल सं भ गेलनि.  
ई सब किछु बहुत नीक. किन्तु, सामान्य परिस्थितिकें विपरीत बूझि कम्प्यूटर जं कोनो अनुचित क बैसय, तखन ? वा कम्प्यूटर जं अहाँक काज बिसरि गेल, तं  ? वा कम्प्यूटर अपने ज्ञान सं हुकुम चलाबय लागल, तं ? सत्य थिक जे प्रत्येक सिस्टम में संतुलन आ नियंत्रण अवश्य होइत छैक. किन्तु, एहि में विपर्यय आ विकृति आयब असम्भव नहिं.
बहुराष्ट्रीय चीनीक कम्पनी अलीबाबाक विश्व-विख्यात सह-संस्थापक जैक मा आ बहुचर्चित अमेरिकी उद्योगपति एलोन मस्कक बीच कृत्रिम बुद्धिक विषय पर अजुका अखबार में प्रकाशित वार्तालाप रोचक लागल. जैक मा केर कहब छनि, ‘कम्प्यूटर चालाक भले होअय, किन्तु, मनुक्ख बुद्धिमें कम्प्यूटरसं आगू अछि. तें, (कम्प्यूटरक) कृत्रिम बुद्धि (AI)  हमरा लोकनिकें मनुष्यकें आओर नीक-जकां बुझबामें सहायक भ सकैत अछि. किन्तु, (कम्प्यूटरक) कृत्रिम बुद्धि (AI) क भस्मासुर  भ जायत से भय निराधार थिक.’
एकर विपरीत एलन मस्क कें भय छैन्हि, तीक्ष बुद्धि (कम्प्यूटरक) कृत्रिम बुद्धि (AI) अन्ततः  मंदबुद्धि सं  मनुष्यसं अकच्छ भ जायत. किन्तु, गप्प एतबे पर समाप्त नहिं भेलैक. एलन मस्क आगू जे कहलनि, तकरा हमरा लोकनि नित्तह भोगि रहल छी. मस्क कहैत छथि, ‘हमरा लोकनि एखने मनुष्य सं यंत्र-मानव (Cyborg) बनि चुकल छी.  सत्यतः लगैत अछि, मोबाइल फ़ोन हमरा लोकनिक शरीरक हिस्सा भ गेल अछि. कारण, जं, फ़ोन कतहु छूटि गेल तं  होइए, जेना, हाथ-पयर बिला गेले !.’
किन्तु, पांडिचेरीमें हमर अस्पतालमें एखन ने ‘ इन्टरनेट ऑफ़ थिंग्स (IOT)’ आयल अछि, ने हमरा लोकनि कृत्रिम बुद्धिक लाठी ल कय ठाढ़ छी. अगिला किछु वर्ष हम एकर सबहक प्रयोग करब, तेना लगितो नहिं अछि. किन्तु, सबहक हाथमें फ़ोन केर दुष्प्रभाव सब ठाम देखबामें आबि रहल अछि. विद्यार्थी लोकनिक झुण्ड जखन होस्टल सं कालेज विदा होइत अछि, तखन, पहिलुका युगक विपरीत विद्यार्थी लोकनिक बीच गप्प–सप्पक स्थान पर सर्वत्र नीरवता रहैछ. सबहक हाथ में फ़ोन, कान में इयर-फ़ोन. एक हाथ में मोटर साइकिलक हैंडल आ दोसरसं फ़ोन पर संवाद-लेखन ( मेस्सेजिंग ). फल ई जे , झुण्डमें चलैत आ क्लासमें पढ़ैत विद्यार्थी, आ एके घरमें संग रहैत माता-पिता, पति-पत्नी  नितान्त एकसर छथि. पिछला किछु वर्ष पहिने हमरे सबहक परिसरमें  छात्र सबहक समूहहिमें एकाकी अस्तित्वक दारुण परिणाम सामने आयल: एकटा कन्या अपन कोठलीएमें आत्महत्या क लेलनि. किन्तु, ओ मरि गेल छलीह से कइएक दिनक पछाति लोक कें तखन बुझबा में एलैक जखन लाश सडि गेल रहैक आ कोठलिक भीतर सं दुर्गन्ध आयब शुरू भ गेलैक. आइ सं 30-40 वर्ष पहिने ई असम्भव रहैक. कारण एक ग्रुप केर विद्यार्थी जं सबठाम एक संग नहिओ गेल तइओ खेलक मैदान-मेस-क्लास- अस्पतालमें एक दोसराकें खोज-पुछारि अवश्य करितैक.एखन ? फ़ोन हाथ में आयल, आ संगी-साथी बिसरि गेल. किन्तु, ककरो अनकर उद्वेग नहिं लगलैक, कमीक बोध नहिं भेलैक.
एही परिसरमें पछिले हफ्तामें एकटा गार्डियन आबि कय विह्वल होइत अपन दुखड़ा सुनौलनि आ सहायताक याचना केलनि. समस्या: मोबाइल फ़ोन. ई सज्जन, श्री नारायण, सिविल इंजिनियर छथि. पुत्र एम्.बि.बि.एस केर छात्र, हमरे कालेज में पढ़ैत छथिन. पिता हमरा कॉलेजक कॉरिडोर में एक कात ल जा कय कहलनि, ‘ बड परेशान छी. हमर पुत्र, अहाँक विद्यार्थी,  एकदम बात नहिं मानैत अछि . दिन-राति मोबाईल फ़ोन में मुडियारी  देने रहैए. कृपा क कय अहाँ कनेक बुझबिऔक.’
हम सोचैत छी, हम हुनकर सहायतामें कोन  कृत्रिम बुद्धि (AI) क सहायता लेब ! मोबाइल फ़ोन मनुक्ख हिस्सा नहिं भेल अछि, मनुक्ख मोबाइल-कैमरा-कम्यूटरक  तेहन हिस्सा बनि चुकल अछि, जे ई कंप्यूटर मनुक्खकें पूर्णतः अशक्त केने जा रहल छैक. एहना स्थिति में इलाज ?          

Tuesday, August 27, 2019

बेचबाले पोथीकें किनबा जोग बनाउ, पाठक धरि पहुँचाउ


बेचबाले पोथीकें किनबा जोग बनाउ, पाठक धरि पहुँचाउ
प्रोफेसर श्रीश चौधरी कहैत छथि, ‘ मैथिलीमें किताब बहुत छपैत अछि, किन्तु, बिकाइत कमे अछि.’ हमहूँ एहि सं सहमत छी. हमरा बहुतो गोटे अपन पोथी पठबैत छथि, हमहूँ बहुतो गोटेकें मुफ्त पोथी दैत छियनि. किन्तु, छपल पोथी राखब समस्या भ गेले. पोथी के, आ कोना, किनत ? एकटा प्रसिद्द प्रकाशककें अपन नव पोथीक सूचना देलियनि. बड्ड प्रसन्न भेलाह. कहलनि, कतेक पोथी छपौने छी ? हम कहलियनि, ‘तीन सौ “.
‘ जा ! तीने सै ! अहाँकें  सब चिन्हइए .
हम कहलियनि,  ‘किताबक  सूचना हम सब कें दैत छियनि. फेसबुक पर सेहो लिखने छियैक. केओ किनताह से नहिं कहलनि-ए’.
ओ पुछ्लनि, ‘ लोककें पोथी किनबा ले कहलियैके ? हम कहलियनि, ‘नहिं’.
‘सएह ने. तखन के किनत ! अहाँ फेसबुक पर लगातार एक हप्ता भिन्न-भिन्न समय पर सूचनाक संग किनबाक आग्रह दियौक’. एहि मित्रक गप्प सं हमर उत्साह बढ़ल. अगिला एक हफ्ता साँझ, दुपहरिया, निसाभाग राति, रविक भोर, छुट्टीक दिन ताकि ताकि फेसबुक पर एके पोस्ट के रिपीट करैत रहलहुं. कथी ले एको टा किताबक मांग हयत. जनिका लोकनि कें बंडल बना क पोथी पठौलियनि तिनको ओहिठाम सं एखन धरि एको कैंचा नहिं आयल. केवल श्री अमित आनन्द धरि ‘मैथिली मचान’ दिससं 650 रुपैया हमर बैक खातामें जमा केनिहार पहिल आ अन्तिम व्यक्ति थिकाह.
एकर विपरीत एकटा लेखक हमरा अपन पोथी सबहक 850 रुपैयाक पूर्ण सेट किनबाले सहमत क लेलनि. बैंकक खाता संख्या पठओलनि. टाका पहुँचै में  एखन तं समय लगैत नहिं छैक. हम अनुशासनपूर्वक जहिया पोथीक पहुँचनामा व्हात्सएप्प पर सूचित केलियनि तकर दू दिनक बाद तागेदा आबि गेल. ओहि दिन प्रायः सोम रहैक. हम फ़ोन पर कहलियनि, बुधदिन धरि पहुंचि टाका जायत. बुध दिन सांझमें मेस्सेज आबि गेल, ‘सूचना: आइ बुध भ गेल !’. हमरा-सन आर्मी अफसरकें एहने तगेदाक अनुभव नहिं. हमरा हंसी लागि गेल. हुनका टाका तं पहुंचि गेलनि. किन्तु, ओ हमर पोथी किनताह से तं लगैत नहिं अछि. तें, हमरा लगैत अछि, सिद्धहस्त लेखक बनबा सं बेसी आवश्यक छैक लगारी बिक्रेता हयब. मुदा, पोथीक मांग तखन ने हेतैक जखन लोक कें पोथी नीक लगतैक वा पोथीक आवश्यकताक अनुभव हेतैक .
तथापि, हमरा लगैत अछि, उपयोगी आ स्तरीय पोथीओ बेचबाले हमरा लोकनिकें बेचबाक नव पद्धति अख्तियार करबाक चाही. एहि हेतु  हमरा लोकनि उपभोग्य सामग्रिक विपणनमें आयल नव संस्कृति शिक्षा ली, से हम सोचैत छी . सारांश ई, जे, आर्थिक उदारीकरणक पछाति जखन विदेशी तेल-साबुन-डिटर्जेंट-फ्रिज-टीवी-मोटर साइकिल-कार सं शहरक बाज़ार भरि गेल तं बहुराष्ट्रीय कम्पनी सब एहि वस्तु सबकें देहाती इलाका दिस साहब शुरू केलनि. तखन हमरा लोकनि पोथीक बिक्रीकें शहरे धरि किएक सीमित राखी. मैथिली बजनिहार तं गाम में छथि. पोथी ओतहि बेचू. कोशिश तं होइ. किन्तु, एहिमें अनेक समस्या छैक, जेना, अशिक्षा,  पोथी पढ़बाक रूचिक अभाव, रुचिक अनुकूल पोथीक अभाव, पोथी सब में स्तरीयताक अभाव, पोथीक इलेक्ट्रॉनिक प्रतिक अभाव, आ आर्थिक लाभमें बिक्री केनिहारक हिस्साक अभाव. असल में बिक्री तं व्यापार थिकैक, बेचनिहारकें अपन हिस्सा तं भेटनि. छुच्छे मैथिली-प्रेम सं लोकक पेट तं भरतैक नहिं. हं, स्कूल-कालेज आ विश्वविद्यालय सं सम्बद्ध लेखक लोकनिके एकर काज नहिं . बहुतो गोटे पन पोथीकें कोर्सक किताब बना लैत छथि. किन्तु, ओहि परिधि सं बाहरकेर लेखक की करताह ! केवल समालोचना लिखनिहार की करताह !!
                

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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