Tuesday, April 9, 2024

किरणजी आइ जँ रहितथि

किरण-स्मृति पर विशेष 


आइ जँ रहितथि किरणजी,
तँ पड़बे करितनि डांग
आ फुटितनि अबस्से कपार।
आइ जँ रहितथि यात्री,
तँ बजबे करितथि,
अनटोटल बोल,
आ दरबारी
तथा राजाकेँ लगितनि अनसोहांत,
आ फेर जैतथि ओ जेल।
मुदा, बाबा, आ किरणजी
नीके भेल चलि जाइत गेलहुँ
अहाँलोकनि,
आ छोड़बो ने कयल केओ शिष्य।
कारण, आइ जँ रहितहुँ
तँ अहाँलोकनिकें
पार नहि लगैत
सिखब नव ककहरा
ने छोड़ितियैक उचित कहब ,
आ बाजब अनटोटल बोल,
तखन रखिते के रोच?
तेँ, भोगितहुँ अवस्से नव व्यवहार
:
देखिते छिऐक रङताल
!
अथच,
आ अहुँलोकनिक,
नित्तह फुटबे करैत कपार।
किरणजी आ बाबा,
नीके भेल चलि जाइत गेलहुँ
अहाँलोकनि
आ छोड़बो ने कयल केओ शिष्य 

Saturday, April 6, 2024

न कोई है पराया, न कोई अंजान

 

न कोई है पराया, न कोई अंजान

सूरज, चाँद और तारे

पड़ोसी हैं हमारे

एक उर्जा का श्रोत

दूसरा शीतलता का पर्याय,

सुन्दरता का प्रतीक।

नजदीकी से कदाचित्

होता है अपमान भी,

दूरी से दुराव,

पर,

दूरी से रहता

आकर्षण,

छूने की ललक,

देखने की आकांक्षा-

बदलते रूप की,

प्रकृति और मिजाज की।

आज जब

आदमी हो रहा है

अपनों से दूर,

सुदूर के पड़ोसी

से मिलता है

उसे शुकून।

कभी वह चाँद

को निहारता है,

कभी लेता है

सूरज की खबर,

कभी करता है

तारों से गुफ्तगू,

जब अपने

चुराते हैं नजर।

फूल भी, पत्ती भी,

पेड़ भी, पानी भी,

मिट्टी भी,

हवा से भी

होती हैं बातें,

इसलिए, जाते-आते

होती है सबसे दुआ सलाम,

न कोई है पराया,

न कोई अंजान।

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