Thursday, August 18, 2022

अवैध श्रमिकक आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: एक भुक्तभोगीसँ साक्षात्कार

अवैध श्रमिकक आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: एक भुक्तभोगीसँ साक्षात्कार

आधुनिक इतिहासकार लोकनिक मतें १९म शताब्दीक अमेरिकाक पूंजीवादक विकासमे  दास श्रमिकक प्रमुख योगदान रहैक. ओ व्यापार घृणित आ मानवाधिकारक नितांत विरुद्ध छल. फलतः, दास श्रमिकक व्यवस्थाक विरुद्ध १८३९ हि मे लंदनमे अभियान आरंभ भेल छल. कतेक बाधा आ प्रयासक  पछाति विगत शताब्दीमे अंतर्राष्ट्रीय दासता विरोधी संगठन (Anti-Slavery international )क संगठन भेल. ई संगठन दासता आ दासताक कारण मानव शोषणक विरुद्ध कार्य करैछ. तथापि, आइओ विश्वमे कोनो ने कोनो स्वरुपमे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकक शोषण, देह व्यापार आ आ किशोरक वेच-विकिनक व्यापार जारी अछि. सामान्यतः ई व्यापार हमरा लोकनिक आँखिक आगाँ नहि अबैछ. मुदा, गहिकी नजरिसँ देखने अपना आस-पास वा दूरमे मानवक अवैध व्यापारसँ साक्षात्कार भइए जायत.  हमरा गत २०२१क सितम्बर मासमें श्रमिकक अंतर्राष्ट्रीय अवैध व्यापारक एक भुक्तभोगी युवक भेटलाह. ई वृत्तांत ओही भेंट पर आधारित अछि.

हम विवाहक नोत पुरबा लेल टैक्सीसँ बंगलोरसँ  कडलूर (तमिलनाडु) जाइत रही. व्यापार पर कोविड महामारीक प्रभाव समाप्त नहि भेल रहैक. अतः हमर टैक्सी-ड्राइवर युवक पार्ट-टाइम ड्राइवर रहथि. कैटरिंग टेक्नोलॉजी मे डिप्लोमा ई युवक रोजगारक अभावमे लाखो आओर युवक जकाँ घर बैसल रहथि. कहैत छैक, बैसलसँ बेगार भला. अस्तु, जखन सवारी भेटनि, टैक्सी चला लैत छलाह.

ट्रेन, टैक्सी, बसमे सहयात्रीसँ परिचय करबा ले पर्याप्त समय भेटैछ. समय बितयबाक हेतु सेहो ई नीक. गप्प–सप्पक बीच कतेक बेर अनेक नव गप्प भेटि जायत. हमहू ओहि दिन ड्राइवरसँ परिचय पात कयल आ गप्प करय लगलहुँ. किन्तु, गप्प मे जं किछु नव होइक आ अहाँकें सूचना एकत्र करबाक हो, तँ बाजी कम आ सुनी बेसी. बीच-बीच मे वक्ता कें उत्साहित करियनि, जाहिसँ गप्प चलैत रहैक. मुदा, एहि हेतु गप्पी संगबे चाही. हमर ड्राइवर निर्विवाद अनुभवी रहथि. हुनका गप्प करब पसिन्न रहनि, आ अंग्रेजी हिन्दी में नीक जकाँ व्यक्त करबा मे अपन भाव दक्ष छलाह. एहिसँ बेसी चाही की.

दू दिनक यात्रामे समयक अभाव नहि. अस्तु, ओ खूब विस्तारसँ अपन अनुभव कहैत गेलाह. गप्पक विषय  नव आ रुचिकर छल. किन्तु, ई विषय तेहन छल जे सूचना पर सोझे विश्वास हयब कठिन छल.

आब गप्प सुनू. अथ ड्राइवर, श्री सिदप्पा, उवाच:                                                                                       वर्ष २००३. हम नौकरी तकैत रही. मनोरथ छल, विदेशमे नौकरी भेटय तँ आओर नीक. संयोगसँ तखने बंगलोरक समाचार पत्रमे केरल केर एक कंपनीक विज्ञापन बहरायल रहैक. विज्ञापनमे कैटरिंग सुपरवाइजर / मेनेजर, ड्राइवर, भनसिया, लेबर(श्रमिक)क रिक्ति बहराएल रहैक. इंटरव्यू आ बहाली भारतक अनेक शहरमें हेबाक सूचना रहैक. संयोगसँ इंटरव्यूक एकटा केन्द्र बंगलोरहुमे रहैक. हमरा सुविधा भेल. हम कैटरिंग सुपरवाइजरक पदक हेतु  तुरत आवेदन पठा देलियैक. हमरा बंगलोरक एक पांच सितारा होटलमे कैटरिंग सुपरवाइजरक रूप मे काज करबाक अनुभव छल. अस्तु, इंटरव्यू भेलैक आ हमर चुनाव भए गेल. मुदा, समय बेसी नहि रहैक. ओही हफ्तामे कुवैत जेबाक आदेश रहैक. हमरा लोकनि तँ नीक आमदनीक लोभें ‘खाड़ी’ देशक नौकरीक हेतु मुँह बओनहि रही. जयबाक खर्च भेटिते रहैक. बस विदा भए गेलहुँ. सोझे कुवैत.’

 वाह! बढ़िया.’ – हम कहलियनि.एखन सुनू ने.’ सिदप्पा हमरा दूरेसँ हाथ देखबैत कहलनि आ पुनः शुरू भए गेलाह: कुवैत पहुँचलहुँ. दोसरे दिन फेर आगूक यात्रा रहैक. मुदा, अगिला यात्राक हमरा लोकनिकें कोनो अनुमान नहि छल. ओतय पासपोर्ट जमा कय लेलक. दोसर हवाई जहाज पर सवार भेलहुँ आ सोझे इराक. आब अहाँ पूछब कतय गेल रही तँ हम एतबे कहब: इराक. बड़का मरुभूमि. अमरीकी सेनाक छावनी. चौबीस घंटा कड़ा  पहरा.  भीतर गेलहुँ. सबहक काज भीतरे रहैक. काज शुरू क’ देलहुँ. बाहर युद्ध छिड़ल रहैक; हरदमे गोलाबारीक आवाज सुनिऐक. हमरा संग भारतसँ आयल बाँकी के कए कतय गेल, की जानि! बाहर कतहु जयबाक कोनो सवाल नहि. देश-दुनियासँ कोनो संपर्क नहि. जे अंतय गेल, ककरा की भेलैक, कहब मोसकिल. डेढ़ बरख ओही जहलमे काज करैत दिन-राति बीति गेल.’

 तँ, डेढ़ बरखक बाद बंगलोर आबि गेलहुँ ?’ सिदप्पा हँसय लगलाह. कहलनि: ‘ बंगलोर कतय ? इराकसँ सोझे ऑस्ट्रेलिया ! ओतहु ओएह खेल. अमरीकी मिलिटरी छावनी. घेराबंदी. सब किछु भीतर. ओतयसँ  डेढ़ वर्षक पछाति फेर कुवैत आपस. पछाति कुवैतसँ  बंगलोर आपस भेलहुँ.’                                         हमर आश्चर्यक ठेकान नहि. मुदा, सिदप्पाकें उत्साहित करैत कहलियनि: तखन तँ अहाँ तीन टा देश देखि लेल. अमेरीकी मिलिटरी सेहो देखल.’                                                                                                 सिदप्पा पुनः हँसय लगलाह: ‘ हम कुवैत छोड़ि कतहु नहि गेलहुँ !’                        

माने?’                                                                                                                          पासपोर्ट ठीकेदार लग छल. ओहि पर केवल बंगलोर, दिल्ली आ कुवैतक ठप्पा रहैक. आपस आबि इराक आ ऑस्ट्रेलिया कहितियैक तँ गिरफ्तार नहि भए जैतहुँ ! हमरा कि कोनो वीसा छल, कि नियुक्ति पत्र. ’

अच्छा?’

तखन की? पासपोर्ट पर कोनो लिखा-पढ़ी नहि. भारत सरकारक अनुमति नहि. तखन हम सब भेलहुँ गैरकानूनी मजदूर. कतहु कोनो सुनवाइ नहि. जे मरिओ-खपि गेल रहितहु, तं ओकरो कोन गिनती.’

टाका तँ कमएहुँ, ने?’

हं. आधा-छीधा! ठीकेदार अपन कमीशन तँ काटिए लैत छैक ने.’

आ अनुभवक सर्टिफिकेट? से  तँ भेटल हएत ?’

 अछि ने. कुवैत केर अमेरिकी छावनीक केटरिंग ठीकेदार सर्टिफिकेट देलक ने’ कहैत ओ टैक्सीक डैशबोर्डसँ लैमिनेटेड कार्ड निकालि हमरा दिस बढ़ओलनि.

हमरा ओहि दिन सिदप्पाक गप्प जं पूर्णतः मनगढ़ंत नहिओ लागल तँ ओहि पर ओहि दिन सोझे विश्वासो नहि भेल. आब अनेक मासक पछाति जखन अमिताभ घोषक उपरोक्त पोथी पढ़ि रहल छी तँ आधुनिक दास-व्यापारक कटु सत्य आँखिक सोझाँ मूर्त भए रहल अछि. सैनिक अभियान वा नागरिक आपूर्तिक हेतु वर्तमान युगक उपस्कर(logistic)क भंडारण आ वितरण आ एहि मे निहित ‘बंधुआ’ श्रमिकक संबंध मे २०२१मे प्रकाशित अपन पोथी ‘The Nutmeg’s curse (Parables for a planet in crisis), मे लेखक अमिताभ घोष लिखैत छथि:              

साधारणतया ‘logistic city’ पूर्णतः नियंत्रित श्रमिक बलसँ संचालित अत्यन्त सुरक्षित वितरण केन्द्र थिक जकर माध्यमसँ विश्वव्यापारमे वा सैनिक अभियानमे उत्पादनक स्थान आ उपभोक्ताक बीच माल-असबाबक निर्बाध यातायात सुनिश्चित कयल जाइछ.’

अस्तु, जहिना विश्व भरिमे नागरिक उपभोक्ता वस्तुक वितरणक हेतु  अमेजन, आइकिआ, वालमार्ट, नेस्ले, आ टारगेट सन बहुराष्ट्रीय व्यापारी संस्थाक वस्तु जातक वितरण हेतु विश्व स्तर पर माल-असबाब संकलन, भंडारण आ वितरण कंपनी सब तत्पर अछि, तहिना सामरिक अभियानक हेतु सेहो विभिन्न पक्ष अंतर्राष्ट्रीय अभियानक संचालन ले माल-असबाबक केन्द्र ( logistic centre )क स्थापना करैत अछि. उदहारणक हेतु, ‘२००१ मे अफगानिस्तानमे अमरीकी आक्रमणक आरंभक तुरत बाद अमेरिकी सेनाक हेतु आवश्यक वस्तुजातक आपूर्तिक हेतु दुबई मे माल असबाबक केन्द्र (logistic city) क स्थापना भेल छल. एहने logistic city इराक केर बसरा नगर आ अमेरिकाक ओकलैंड आ वैंकुओवर शहर मे सेहो अछि.’

एहि भंडारण-वितरण  नगर सबमे श्रमिक लोकनि अत्यंत कठिन सुरक्षाक बीच रहैत छथि. चूकि, एहि सब संगठन-भंडारण-वितरण  (logistic hub)मे प्रवेशसँ पूर्व श्रमिक लोकनिके अनेक करार पर हस्ताक्षर करय पड़ैत छनि, तें ओ लोकनि स्वेच्छया अपन अनेक मूलभूत अधिकारसँ समझौता तँ करिते छथि, एतुका सब गतिविधि मानवाधिकार आ स्थानीय कानूनक अधिकारक परिधिसँ बाहर होइछ. एहि तथ्यकें रेखंकित करैत लेखक अमिताभ घोष कहैत छथि: ‘ ई logistic city वा hub प्रथम दृष्टया भले भिन्न बुझाइत हो, मुदा, थिक तँ ई बीतल युगक दास-किला, दास-व्यापार बंदरगाह आ कंपनी नगरे, जकर स्थापना डच आ ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ( अपन व्यापार ले ) कयने छल.’[1]

अमिताभ घोषक एहि पोथी पढ़लाक पछाति हमरा ड्राइवर सिदप्पाक गप्प, गप्प नहि यथार्थ थिक, से विश्वास भए गेल. हं, भारत इराकमे अमिरकी युद्ध (२००३-११)  मे प्रत्यक्षतः सम्मिलित नहि भेल छल. मुदा, अनाधिकार रूपें भारतीय बेरोजगार ठेकेदारक माध्यमसँ ‘खाड़ी-देश’ जाइत छलाह तकर आओर दू गोट प्रमाण समाचार पत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ आ दिल्लीसँ प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ मे प्रकाशित समाचारसँ भेटल जाहि मे भारतक तत्कालीन विदेशमंत्री यशवंत सिंहसँ इराक मे फंसल भारतीय श्रमिक लोकनिक उद्धारक हेतु अपीलक समाचार छपल छल. [2,3] संयोगवश सिदप्पा इराक वा ऑस्ट्रेलियामे कोनो प्रकारक प्रताड़ना वा अमानवीय व्यवहारक गप्प नहि कहलनि. मुदा, जतेक वेतनक आश्वासन भेटल रहनि से तँ नहिए भेटलनि. ऊपरसँ नियत अवधि धरिक सेवाक प्रतिबंध तँ भोगबे केलनि. रोजगार आ आर्थिक लाभक हेतु आर्त लोक की ने सहि लैछ!  

ततबे नहि, गत १७ अगस्त २०२२क ब्रिटेनक प्रमुख समाचार पत्र ‘द गार्डियन’ मे जॉर्ज मोनबियो नामक लेखकक, एक दोसर प्रकारक प्रतिष्ठान-  ब्रिटेन स्थित स्पेशल इकनोमिक ज़ोन वा फ्रीपोर्ट (Free Port )क- संबंध मे एक विचार  छपल अछि. एहि लेखमे मोनबियो लिखैत छथि, ‘वस्तुतः, स्पेशल इकनोमिक ज़ोन वा फ्री-पोर्टक भीतरक कार्यकलाप सबसँ एना प्रतीत होइछ जेना ई क्षेत्र सब देशक सीमा (आ कानूनसँ ) बाहर हो, जेना मध्यकालीन इंग्लैंडक जंगली क्षेत्र सब छल, जतय राजाक व्यक्तिगत अधिकार नागरिक अधिकारसँ ऊपर छल. एहि लेख केर सारांशमे लेखक कहैत छथि: ‘ फ्रीपोर्ट संगठित अपराध, काला धनक गोरखधंधा (money  laundering), आ मादक द्रव्यक अवैध व्यापार (drug-trafficking) कें बढ़ावा दैछ. मुदा, एहि सबसँ देशकें न्यूनतम लाभ होइछ. परश्रय केवल पूंजीकें भेटैछ.[’4]

इएह थिक वर्तमान युगक पूँजीवादक नग्न सत्य.

एहि सबसँ एतबा तँ स्पष्ट अछि, दासता आ दास-व्यापार भले प्रतिबंधित भए गेल हो, दास-किला, दास-व्यापार बंदरगाह आ कंपनी नगर प्रतिबंधित भए गेल हो, किन्तु, भिन्न-भिन्न नामसँ, आ विकसित आ विकासशील देश मे कानूनक क्षत्रछाया मे एखनो दास-व्यापार-सन गतिविधि जारी अछि, आ कानूनक आ मानवाधिकारक निरंतर हनन चलि रहल अछि.

नोट: गोपनीयताक निर्वाह ले व्यक्तिक नाम बदलि देल गेल अछि. 

सन्दर्भ:

1. Ghosh Amitabh. The Nutmeg’s curse (Parables for a planet in crisis) 2021. Penguin Allen.

2. George Monbiot. Welcome to the Freeport, where turbocapitalism tramples over British democracy. The Guardian 17 August 2022.

3. Indian workers escape from US army camp in Iraq .The Hindustan Times, New Delhi, May 06, 2004.

4. Rohde David: The struggle for Iraq: foreign labor; Indians Who Worked in Iraq Complain of Exploitation. The New York Times. May 07, 2004.


Monday, August 15, 2022

संकल्प

 संकल्प

ने कोनो मसीहा, ने कोनो संत

संविधान देने अछि संभावना अनंत

तें, ने ककरो आगाँ ठेहुनिया

ने कतहु पेटकुनिया I

करब अपना संकल्पें 

हम अपन मनोरथ पूर 

थिक स्वतंत्रता, समता, आ भाईचारा

सब किछु ले अनुकूल I

स्वतंत्रता दिवसक दिन

करी सब गोटे

अपन सोचकें स्वतंत्र

आ ढाही संकीर्ण विचारक देवाल I

जुनि बिसरी 

सदासँ करैत रहलहुँ

हमरा लोकनि भिन्न-भिन्न मत

आ विचारक स्वागत

तें कहबैत अछि महान भारत !

Thursday, August 11, 2022

धुत्तोरी के ! एतबे गप्प ?

 

धुत्तोरी के ! एतबे गप्प ?

प्रायः १९७९क गप्प थिकैक. हाथीनगर मे सत्तासीन राष्ट्रीय पार्टीक स्वर्ण जयन्ती समारोहक आयोजन बहुत धूमधामसँ भेल छल. पार्टीक सत्ताक चौदह वर्ष पूर हेबा पर रहैक. चारू कात सरकारी तंत्र  दासो दास छल. लाखो लोक जमा भेल छल. सैकड़ों करोड़ टाका खर्च भेल. सम्पूर्ण शहर लाल-लाल भए गेल छल. सब ठाम सब तरहक सजावट. मुदा, चेहरा आ  कटआउट केवल मुख्यमंत्री आ प्रधानमंत्रीक रहनि. आयोजन खूब सफल भेल. राष्ट्रीय पार्टीक स्वर्णजयन्तीक समाचार, बाँकी समाचारकें समाचार पत्र सबसँ ओहिना धकेलि देने छल जेना, सत्ताधारी पार्टी विपक्षकें संसद आ विधान सभासँ.

समारोह समाप्त भेल आ ओकर दोसरे दिन एकटा अजगुत घटनाक कारण तेलीरामक फोटो दैनिक समाचारपत्र सबहक मुखपृष्ठ पर छल. बेचाराकें बड्ड मारि लागल रहैक. नौकरीसँ निलंबित भेल से फूटे. तेलीरामक कुटाईक विडियो टीवी चैनल सब पर सेहो आयल. यद्यपि एहि विषय पर कोनो चैनल वाद विवादक आयोजनक हिम्मत नहि केलक.

बेचारा तेलीराम. मुनिसिपैलिटीक कचरा उठओनिहार सरकारी कर्मचारी. ओकर काजे ओकर अपराध भए गेलैक. एक तं स्वर्णजयन्तीक कारण पसरल कचराक ढेरक भार, आ दोसर दिस पिटाई आ सस्पेंशन. साँझुक पहर बेचारा मुँह बिधुऔने अपन दलान पर बैसल छल. आ कि  बहु आबि कए फज्झति करए लगलैक: ‘एकरा अक्किल छै. मार बाढ़नि, कहिया अक्किल अओतै एहि मनसाकें !’

जखन बहु फज्झति कए चल गेलैक, तं ओसराक दोसर कात केथरी मे मोटरी बनि पड़ल, तेलीरामक बाप, बेनीराम पुछलकैक, ‘ की कहै छौ ? की भेलै ? ओना, ...... जनि जातिक गप्प कान देब कोन बुधियारी ? मुदा, तो केलही कोन अपराध, जे एतेक मारलकौ आ  सस्पेन क’ देलकौ? हमहू तं निस्पैल्टीए मे चालीस साल खटलौं.’

तेलीराम भोकारि फाड़ि कानए लागल. कहलकै, ‘ हम कोन अपराध करबै, बाबू ? हम तं भरि जनम कचरा उठौलहुँ. आइओ सैह केलहुँ . तोहों सैह केलह. मुदा, आइ काल्हि  किछो होइ छै, अलेल माला टंगै छै, गेट बनै छै, फोटो लगा दै छै. पाछू, काज खतम भेल, फेर सबटा समेटि कए कचराक ढेर क’ दै जाइ छै. कचराक ढेर मे हम की जानए गेलिऐ, के, कोन मुनिस्टर छियै, कए कोन बड़का नेता छियैक. हमर दोख एतबे जे, बलू, हमर ठेला पर, कचरा मे सबसँ बड़का मंत्री आ मुख्यमंत्रीजीक फोटो छलनि. हम तं ओहिसँ पहिने कतेक खेप ओहन-ओहन फोटो  सब गदौस मे फेकि आएल रही. मुदा, ओहि काल मे वाड कमिशनर जाइ छलै. ओकर नजरि हमर ठेला पर पड़ि गेलैक. आ ओकरा हरलै ने फुरलैक, हमरा लतियाबए लागल. कि त, बलू, फोटो को कचरा मे फेकेगा! हम की करबै, बाबू. कचरा हम बनबै छियै हौ ? हमरा तं जे आगा पड़ैए उठा लै छी. हमर एतबे अपराध. आब तोहीं कहह?’

तेलीरामक गप्प सुनि बुढ़बा बेनीराम ठहाका द’ कए हँसय लागल. कहलकै, धुत्तोरी के ! एतबे गप्प ? वाड कमिशनर. एखन, बंहि, नेना अछि. जनमिए क त ठाढ़ भेले. आइ ने काल्हि सार अपने बूझि जेथिन. तों दुःख नहि कर. ओकरा एखन बुझल कहाँ छै ने, आइ ने काल्हि, सब नेताके लोक कचरा मे फेकिए दै छै !  हमहू तं भरि जीवन कचरे उठौलहुँ.                

Tuesday, August 9, 2022

कबीर पर केस हो !

 

कबीर पर केस हो !

पण्डित बटेश मिश्रकें काल्हि साँझुक पहर बड्ड तामस चढ़लनि. हुनक पौत्र, बंभोला बहरी ओसारा पर बैसल हिन्दीक दोहा सब रटि रहल छलनि. पहिने तँ पण्डित जी व्यस्त रहथि. एहि बेर खेतक धान द्वारि तक कोना आबय तकर चिन्ता रहनि. अंगना मे दाउन-दोगाउन कहिया ने बन्न भए गेलैक. आब थ्रेसर आयल. ओहो चटसँ उपलब्ध नहि. तखन जा धरि खेत मे जाकल, काटल धान अंगना नहि आयल, कोन किसानकें चिन्ता नहि हेतैक. पण्डित जी तकरे व्यवस्था मे सियाराम साहुसँ मोल भाव करैत रहथि. एतेक टा गाँओ आ एकेटा थ्रेसर. तथापि, अपन गामक मशीन आ अनगौआं मे तँअन्तर हेबे करतैक. जे किछु. सियाराम साहु तँ गेल. मुदा, बंभोलाक पाठ अभ्यास हएब एखनो जारी छल. ओ फेर शुरू भेल:

पाहन पूजे हरि मिले, तौं मैं पूजूं पहाड़

ताते ये चक्की भली पीसि खाय संसार

आब बटेश मिश्रकें बुझबा मे किछु भांगठ नहि रहलनि. दमसि कए पौत्रकें पुछलखिन: की अंट-संट पढ़ैत छह?

 - बाबा हिन्दीक पोथी थिकैक.

- पोथी. आइ काल्हि पोथी मे इएह सब लिखल छैक !

- जी. सर सबटा याद क’ कए काल्हि स्कूल आबय कहने छथिन. पाठ याद नहि भेने, बड्ड कान जोरसँ कान ऐंठि दैत छथिन. हमरा आँखि मे नोर आबि जाइए.

जहिया पण्डित बटेश मिश्रक धियापुता स्कूल जाइत रहथिन, हुनका एहि सब पर ध्यान देबाक अवसर कहाँ भेटलनि. तहियाक गृहस्थी सुलभ नहि रहैक. मुदा, आब तँगृहस्थी नामे ले बचल छैक. तैओ जकरा बचल छैक, ओ परम पहपटि मे अछि. तखन, जथा अछि, तँ किछु तँ करहि पड़तैक. आइ-काल्हि पण्डित बटेश मिश्र खेती-बारीक सब किछु दरबज्जा पर बैसले-बैसल निबटबैत छथि.

मुदा, अजुका दोहा सुनि कए हिनकर मन विचलित होबए लगलनिए. मनहि मन सोचए लगलाह, शास्त्री तँ हमहू सम्पन्न केलहुँ. मुदा, पाठशाला मे केओ एना बजैत, से साधंश होइतैक. मुदा, गप्प ककरासँ करताह. गाम पर आब ने बेटा लोकनि छथिन, आ ने टोल पर गप्प करैवला छैक. दरबज्जा पर केओ आओत ? केहन गप्प करैत छी ! अस्तु, पण्डित बटेश मिश्र मनहि मन भरि राति गुम्हरैत रहलाह.

दोसर दिन रवि छलैक. रवि दिन पण्डित बटेश मिश्रकें  बिदेश्वर बाबाक दर्शन करब वृत्त छलनि. ई हिस्सक ओ तहिएसँ लगौने रहथि जहिया ओ लोहना पाठशाला मे पढ़ैत रहथि. तें दोसर प्रात ओ अहल भोरे उठि नित्यक्रियासँ निवृत्त भेलाह. एक हाथ मे लोटा, दोसर हाथ में लाठी लेलनि. काँख तर कोंचियाओल धोती लेलनि. आ विदा भए गेलाह. दरबज्जा परहक पोखरिक पानि आब नहयबा जोग नहि. मुदा, बिदेश्वर बाबाक पोखरिक पानि एखनो टुटैत छैक. रवि  दिन सौ-दू सौ भक्त नहाइते अछि. ताहू मे भोरे-भोरे पूब मुँहे डूब देला पर ओतय सबसँ सूर्यक लाल चक्काक सोझे दर्शन हएत. पण्डित जीकें से नीक लगैत छनि.

आइ बिदेश्वर धाम आबि ओ सोझे पोखरिक घाट पर अयलाह. पक्का घाटक एक कातक सिमेंट झाड़ि, धोती-लोटा-सोंटा नीचा रखलनि आ पानि मे डूब देबा ले पोखरिक पानि मे धसि गेलाह.

अगहनक मास. जाड़ तँरहैक. मुदा, भोरुका सूर्य देखि पण्डित जीक मोन प्रसन्न भए गेलनि. ओ स्नान कए सूर्यकें जल चढ़ौलनि आ  घाट पर आबि धोती फेरलनि. धोती फेरि लोटा मे जल लए बाबाक दरबार दिस बिदा भेलाह तँबाटक कात बैसल बालदेव दासके हिनका पर नजरि पड़लनि. ओ ओतय घूड़ लग बैसल छलाह. ओ पण्डित जीकें देखि दुनू हाथ जोड़ि माथ मे सटबैत दूरेसँ, ‘ बाबा परनाम. कनेक आगि तापि लियअ. बड्ड जाड़ छै.’

पण्डित बटेश मिश्रकें लोकक लग बैसि मनक भड़ास निकालबाक विचार नहि छलनि, से नहि. मुदा, सोचलनि, पहिने बाबाकें हाज़री बजाइए ली. तें, ‘कनेक थम्हह. बाबा लगसँ  भेल अबैत छी’ कहैत ओ  झटकारनहि, बाबाक मंदिर दिस बढ़ि गेलाह. मुदा, जाड़ तँहोइते रहनि. सोचलनि, गप्प तँ बालदेव कोनो बेजाय नहि कहैए. मुदा, घुरैत छी तखन बैसब.

पण्डित जी बिदेश्वर बाबा लग जल चढ़ौलनि, पूजा केलनि. मुदा, आइ धरि कहिओ बाबाकें शिवपंचाक्षर, शिवमहिम्न आ शिवताण्डव स्तोत्र बिना सुनओने ओ मंदिर नहि छोड़लनिए. से चाहे मकरे केर मेला किएक नहि होउक. बाबा हिनका ओहि अवसरसँ कहिओ वंचित नहि केलखिन-ए. हिनक तकर संतोष आ बाबा पर असीम श्रद्धा छनि.

आइ जखन पूजा-पाठ कए पण्डित बटेश मिश्र बहरएलाह तँरौद उगि गेल रहैक. मुदा, जाड़ तँ रहैक. अस्तु, घूड़क लगहि चबूतरा पर बैसि गेलाह. ओतय आनो कतेक गोटे बैसल छल. मौक़ा नीक रहैक. बस शुरू भए गेलाह: ‘भगवानक एहन अपमान. अनर्थ ! एहन नास्तिक !! बाबाकें की, शालिग्राम-नर्मदेश्वर धरिकें नहि छोड़लक. आ से दोहा हमरा लोकनिक नेना स्कूल मे रटैत अछि. कलियुग समर्थ भए गेल ! कहि पण्डित जी अपन अंतिम वाक्यकें जोर दैत पुनः दोहरौलनि: ‘ कलियुग समर्थ भए गेल !!’

पण्डित जीक अंतिम वाक्यक श्रोता पर समुचित प्रभाव भेलैक. बालदेव पुछलकनि,’ की भेलै, बाबा ? किए तमसैल छिऐक ?’

बालदेव दासक प्रश्न सुनि पण्डित जीकें संतोष भेलनि. मुदा, ओ क्षण भरि ले थम्हि चारू कात नजरि घुमौलनि. हुनका भेलनि जे बालदेवक प्रश्न पर आनो बहुत लोक आकृष्ट भेले. बस ओ पुनः जोर-जोरसँ शुरू भए गेलाह: ‘बाबाक अपमान ! चोरी आ सीना जोरी !! सेहो स्कूल मे !!!’

ताबत अओरो लोक ओतय जमा भए गेल. किछु गोटे पण्डित बटेश मिश्रक वाक्यकें पुनः पकड़लक: ‘एं ? बाबाक अपमान ? के अछि एहन पापी ? बज्जर खसतैन !’

‘ हं हौ. अपमान नहि तँकी ?  सेहो धिया पुता पढ़ैए. अनर्थ !’ अनर्थ शब्दक संग स्वर ऊँच आ वाक्य कनेक आओर दीर्घ भेल. आ तकर पछाति, पण्डित जीक चारू कात ओतय एकटा छोट-छीन मेला लागि गेल. संगहि शुरू भए गेल तरह-तरहक  प्रश्न, पण्डित जीक उत्तर, आ श्रोता सबहक टीका टिप्पणी आ संकल्प सेहो.

जखनि बेस लोक जमा भए गेलैक तँ पण्डित जी विस्तारसँ अपन चिन्ताक मीमांसा शुरू केलनि. काल्हि बंभोला कोना दोहा रटैत छल. ओहि मे कोना पाथरक भगवानक तुलना पहाड़ आ जाँतसँ कयल गेल छलनि. सेहो, जे पहाड़े आ जाँते बाबासँ पैघ थिक, नीक थिक !

एहन धर्म विरोधी गप्प ककरो नीक नहि लगलैक. एक गोटे आगू आयल : ‘बाबा के थिक एहन डपोरशंख !’

‘कहै छल, केओ कबीर थिक. कबीरे नाम थिकैक. हम तँ सएह बुझलिऐक.’

ओही समय अब्दुल रहीम अपन दोकान ल’ कए बिदेश्वर स्थान आयल छल. भगवान जानथि, ओकर परिवार कहियासँ, बेंगक चामसँ बनल, माटि आ बाँसक कमचीक, डिगडिगिया गाड़ी बिदेश्वरक मेलामे बेचैत आबि रहल अछि. जहां आब आन कतेक ठाम  हिन्दू धार्मिक स्थल मे हिन्दुए टा कें दोकान-दौड़ी करबाक अनुमतिक गप्प चलि रहल छैक, बिदेश्वर बाबा एखनो धरि टेक रखने छथि. एतय ककरो पर कोनो प्रतिबन्ध नहि छैक. ओहुना अब्दुल रहीमक परिवारक कतेक पुश्त,  पण्डित बटेश मिश्रक दुबौलीक खेत जोतैत आबि रहल अछि. हुनका उत्तेजित होइत देखि अब्दुल रहीम अपन बेटा मजीदकें दोकान पर बैसा देलकैक आ सहटि कए, पण्डित जीक चारू कात जमा मेला लग आयल. फेर ओएह प्रश्न. फेर ओएह उत्तर. मुदा, पण्डित जीकें आशा नहि रहनि, भगवान-भगवती चर्चा आ अपमान मे केओ मुसलमान एना भए क संग देत. तें, जखन ओ अब्दुल रहीमकें सहमति मे मूड़ी डोलबैत देखलखिन, तँ हुनका आश्चर्य भेलनि. मुदा, अब्दुल रहीम ओतबे पर नहि थम्हल. ओ बाजए लागल: ‘बाबा वाजिवे न बोललखिन. कल त हमहू लड़िका के एक तमाचा दिया. साला, कुफ्र करता रहे. बलू किताब मे लिखिस है, ‘मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खोदा ! जुलूम करता रहे छोकरा. थप्पड़ मारली त ओहे बात: कि त हिन्दी किताब मे लिखा रहा. हम डांटे, ‘ ऐ, मरदूद, ये कोन सा तालीम है, रे,  जो अल्ला मियाँ को भला-बुरा बोलता है ? त बोला, कोई ....... कबीरबा रहे !! हम चुप हो गये. अभी बाबा बोलते रहे तो, बात मिल गया !’

ताबते दोसर दिससँ फटफटिया पर हलुमान जादब आबि कए, बाबाक मंदिरक गेट लग अपन मोटर साईकिल ठाढ़ केलक. मुदा, पीपरक गाछक चबूतरा लग ठाढ़ भीड़ देखि ओकरा रहि नहि भेलैक. नवका नेता. पछिला लोकसभा चुनावक समय कालेज छोड़ि जे लीडरी मे लागल, से कतबो माए बाप कहलकैक घूरि कए कालेज नहिए गेल. बाप बड्ड बुझेबाक कोशिश केलकैक. मुदा, हलुमान ओकरा तेहन ने पट्टी पढ़ौलक जे ओहो चुप्प भए गेलैक. कहलकैक, तोरा ने होइ छह हम कॉलेज छोड़ने छी. ओतय तँ पाँचो टा विद्यार्थी अबिते ने छै. तखन परीक्षा बेर मे हमरा के रोकत. आ परीक्षा देबै, त, फेल के करत !’ बाप  गुम्म भए गेलैक.

आइ मौका देखि हलुमान जादब मेला मे सन्हियायल आ लोक सबकें धकियबैत आगू आयल. पण्डितजीकें दूरेसँ हाथ जोड़लकनि. मुदा, यावत् ओ आगू आबए, जियालाल सेहो कबीरबाक विरोध मे ठाढ़ भए चुकल छलाह. मिडिल स्कूल तक पढ़ल जियालालकें तखने मन पड़ि एलनि. बाजए लगला, ‘ ई कबीरबा ढीठ अछि, बाबा. वयस मे तँ आब अहाँसँ कम नहिए हएत. ओकर दोहा तँ हमरो लोकनि किताब मे पढ़ने रही. ओ तँ..... राजा राम धरि के नहि छोड़लक ! बंभोला बाबा सुधंग. हुनकासँ  की  डेरायत ओ. हेहर अइ, कहै छैक, कि तँ: जँ कबीर कासी मे मरिहों, रामक कोन निहोरा

‘एतेक हहंकाल !’ कहैत जिया लाल अपन कपार पीटि अपन अपन दुनू हाथ ऊपर कए आकाश दिस तकलनि.

हलुमान जादब ले ई असली मौका छलनि. ओ उपरेसँ गप्प लोकि लेलनि: ‘एं ? भगवान रामक अपमान. छोड़बनि नहि. केस क’ देबनि.  जमानत नहि भेटतनि ! जमानत ले ओकील नहि भेटतनि !!’

सब जोरसँ  हलुमानक समर्थन केलक: ‘छोड़बनि नहि !! केस क’ देबनि !!’

पण्डित जीक असंतोष, धार्मिक सद्भावक हेतु एहि इलाका मे एहन अचूक औषधि बनत से अजुका युग मे आश्चर्यजनक छल. मुदा, हलुमान जादब ई बीड़ा उठा लेने छलाह. धर्मक रक्षाक गप्प रहैक. ओ दौड़ धूप शुरू कए  देलनि. दोसरे दिन भोरे ओ थाना पर गेलाह. प्राथमिकी दर्ज करेबा मे पांचो मिनट नहि लगलनि. हलुमानकें के नहि चिन्हैत छलनि. ताहि परसँ  नेता जीक ओहि ठाम हुनका रहरहां सब देखिते रहनि. मामिला संगीन रहैक. धार्मिक भावनाक ठेसक गप्प रहैक. ततबे नहि एके टा उपद्रवी, तीन तरहें, धार्मिक सद्भाव पर चौतरफा चोट कए रहल छल. सामाजिक सद्भावकें ठेस पहुँचला पर अनर्थ हेबाक भय रहैक. मामलाक गंभीरता कें देखैत कोर्ट सेहो एहि केसक अविलंब संज्ञान लेलक. तें, तेसरे दिन केसक सुनबाई शुरू भए गेल. सुनवाई शुरू भेल.

सरकारी ओकील सरकार दिससँ ठाढ़ भेलाह आ एके श्वास मे संपूर्ण आरोप पत्र पढ़ि गेलाह.

कबीरक बचाव मे ककरो नहि आयल देखि, कोर्ट प्रश्न उठौलक:

-  आरोपी ?

- कबीर हजूर ! फरार है !!

- बाप का नाम ?

- नामालूम, हजूर.

- बासिन्दा ?

- बनारस बोलता रहा, कोई . ऐसा लोक का कोई ठिकाना होता है, हजूर.

- कोई बात नही. कहीं का भी हो. धार्मिक भावना को ठेस ! न्ना !! केस कहीं भी दायर हो सकता है. पुलिस कहीं भी जा कर जांच करे, छूट है !

कोर्टक उक्तिसँ दरोगाक हौसला बढ़लनि. आगू प्रश्न जारी छल: 

- उमर कितना होगा ?

 - पता नही, सरकार. का पता मर-मरा गया हो. लेकिन, बात वो नहीं है, हजूर !

- क्या बात नही है ?

‘गौर कीजिये हजूर’, ओकील अपन दुनू हाथें, बेल्टकें दू दिससँ पकड़ि, धोधि परसँ ससरैत पैन्टकें ऊपर घिचैत बाजब शुरू केलनि, ‘ सरकार जो सौ साल पहले मर गये उनको पुरस्कार तो मिलता ही है. सजा भी मिलता है. और ई कबीरबा मरते-मरते भोला बाबा, खोदा और, रामजी, सब को भला बुरा कह गया. हमरे भावना को ठेस लगा गया. तो, आप ही कहिए इसको छोड़ देना मोनासिब होगा ?

जज साहेब आँखि परसँ पढ़बाक चश्मा उतारि प्रशंसाक दृष्टिसँ ओकील दिस देखि प्रभावकारी आ रौबदार शब्द में घोषणा केलनि: ‘नहीं छोड़ेंगे !’

एकाएक तालीक गड़गड़ाहटसँ कोर्टक कमरा गूंजि उठल.

अपन दहिना हाथक लकड़ीक हथौड़ी टेबुल पर जो-जोरसँ पटकैत जज साहेब चेतावनीक स्वर मे घोषणा केलनि: आर्डर ! आर्डर !!                        

    

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