Friday, October 7, 2022

बौद्धिक संपदा एवं कॉपीराइट, आ मैथिली

 

सन्दर्भ मैथिली

बौद्धिक संपदा एवं कॉपीराइट, आ मैथिली

विद्या धन थिक से शास्त्र-सम्मत थिक, सर्वसम्मत थिक. स्वरचित साहित्य वा अविष्कार पर लेखक/ अविष्कारक विद्वानक स्वामित्व होइत छनि, से सदाएसँ चल अबैत रहल अछि. प्रागऐतिहासिक गुरु लोकनि सेहो विद्यादानक प्रतिरूप स्वरूपें गुरुदक्षिणाक मांग करैत रहथि, गुरु दक्षिणा पबितो रहथि. किछु गुरुलोकनि कदाच् छात्रकें विद्या देब अस्वीकार सेहो करैत रहथिन. एकर उदहारण सब ततेक सुपरिचित अछि, जे एतय ओकर पुनरावृत्तिक अवश्यकता नहि. किन्तु, ओहि युग मे श्रष्टा केओ होथि, कालक्रमे ज्ञान समाजक सामूहिक संपत्ति भए जाइत छलैक. जाहि ज्ञानकें गुणी लोकनि अपने परिवार धरि सीमित राखथि, वा तेहन सूत्र मे लिखि  देथिन जे अनका बुझबा योग्य नहि होइक से ज्ञान सार्वजनिक तं नहिए भए पबैक, कदाचित् विलुप्त सेहो भए जाइक. मुदा, से बड्ड पुरान गप्प भेल.

प्राचीन काल वा मध्य युग मे बौद्धिक संपदाक स्वामित्वक अवधारणा नहि रहैक. नहि तं फाहियान, चुआन हुआंग, रिनजिंग जान्गपो, आ गुरुपद्मसंभव आ आओर अनेक परवर्ती विद्वान, आ  यात्री लोकनि एतेक ग्रन्थ सब कोना श्री लंका, चीन, जापान, कोरिया, अरब देश, आ  यूरोप धरि लए जैतथि, वा लए अनितथि. ततबे नहि तहिया व्यक्तिगत स्तर पर ज्ञान संबंध मे ‘ व्ययतो वृद्धिमायाति, क्षयमायाति  संचयात’क अवधारणा स्वीकृत छल.

यूरोप मे पोथीक छपाई मशीनक आविष्कार आ औद्योगीकरणसँ सब किछु बदलि गेल. फलतः, पहिने कॉपीराइट कानून बनल आ छपल पोथीक स्वामित्वकें  कानूनी संरक्षण भेटलैक. ई नियम पहिले-पहिल अठारहम शताब्दीक उत्तरार्द्ध मे ब्रिटेन मे लागू भेल. तहिया कॉपीराइट नियमक अधीन कला, साहित्य आ विज्ञानक क्षेत्र मे रचनात्मकता (creativity) कें प्रोत्साहन देब मूलभूत अवधारणा रहैक. मुदा, तहिया लेखकक ‘कॉपीराइट’क छपल पोथीकें, लेखकक अतिरिक्त आन कोनो व्यक्तिक द्वारा पुनः छापि वितरित करबाक निषेध धरि सीमित रहैक. मुदा, जखन क्रमशः समाज मे उपार्जित ज्ञानकें किनबा-बेचबाक वस्तु बनाएब (commodification)क अवधारणा अयलैक, तखन बौद्धिक संपदा शब्द आयल. फलतः, सृजनकें उत्पादक स्वरुप भेटलासँ  साहित्यकार-कलाकार-वैज्ञानिककें आर्थिक लाभक बाट खुजलनि. अस्तु, एहि अवधारणाक अनुकूल साहित्यकार-सर्जक-वैज्ञानिकक अधिकारकें कॉपीराइट आ बौद्धिक संपदा कानूनक अंतर्गत परिभाषित आ निर्धारित कयल गेल.

 

विकिपीडियाक अनुसार बौद्धिक सम्पदा (Intellectual property) कोनो व्यक्ति या संस्था द्वारा विकसित कोनो  संगीत, साहित्य, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कापीराइट, ट्रेडमार्कपेटेन्ट आदि  थिक. जहिना कोनो स्थूल संपत्तिक स्वामित्व व्यक्ति वा समूहक होइछ, तहिना बौद्धिक सम्पदाक सेहो स्वामी नामांकित होइछ.

कॉपीराइट सेहो बौद्धिक संपदाक एक प्रकार थिक, जे कॉपीराइटक स्वामीकें एक नियत समय सीमाक अंतर्गत (रचना) सामग्रीक नकल, वितरण, रूपान्तरण, प्रदर्शन, एवं अभिनयक एकाधिकार प्रदान करैछ. अस्तु, , एहि अवधारणाक अनुकूल आब  बौद्धिक संपदा 1 स्वामीक संपत्ति थिकैक, आ एहि स्वामित्वकें कानूनी संरक्षण प्राप्त छैक. फलतः, जे व्यक्ति, समूह, वा संस्था कोनो नव बौद्धिक संपदाक आविष्कार वा विकास करैत अछि, ओकरा बौद्धिक संपदाक स्वामित्वक उपयोगक कानूनी एकाधिकार होइछ.  अर्थात् बौद्धिक संपदाक स्वामी अपन कृतिकें बेच बिकिनि अपन परिश्रमक फल उपभोग कए सकैछ.

बौद्धिक संपदाक आयाम आ प्रकार                                                                                                         बौद्धिक संपदा कानून जहिना-जहिना विकसित भेल, बौद्धिक संपदाक परिभाषा बदलैत गेलैक; बौद्धिक संपदाक क्षेत्र में नव-नव संपदाक समावेश होइत गेल. फलतः, जे ‘कॉपीराइट कानून’ पहिने केवल छपल सामग्रीक पुनर्मुद्रणक निषेध, आ पाछाँ विकसित मशीन आ उपकरण धरिक नकल करबाक निषेध सीमित छल से पछाति गीत-संगीत, दृश्य-श्रव्य कला आ चित्रकला, कम्पूटर प्रोग्राम, भौगोलिक नक्शा, तकनीकी रेखाचित्र, प्रचार-सामग्रीक स्वामित्व धरिकें समेटि लेलक.

कॉपीराइट कानूनक मूल विन्दु

कॉपीराइट कानून बौद्धिक संपदाक जनककें  स्वामित्व तं दैछ, मुदा, स्वामित्वक अपवाद सेहो परिभाषित छैक. एहि कानूनी बिन्दु सब मे एक अछि, उचित उपयोग (fair use and fair dealing)क प्रावधान. सही उपयोग की थिक तकरा विस्तारसँ प्रस्तुत करब एतय संभव नहि. मुदा, एहि शब्दक पाछूक भावना, व्यवसायिक आ आर्थिक लाभक हेतु संपदाक वितरणकें वर्जित करैत, ज्ञानक व्यक्तिगत उपयोगक अपवादकें परिभाषित करैछ. जेना, पुस्तकालय मे पैघ समूह, उपलब्ध कॉपीराइट संरक्षित पुस्तक सबहक दीर्घ  काल धरि उपयोग करैछ. मुदा, एहिसँ पाठकक पैघ समुदाय आ समाज लाभान्वित होइछ. तें ई सदुपयोग (fair use) भेल. तहिना, पुरान पोथीकें दोसर छात्र वा पाठककें बेचि देब गैरकानूनी नहि थिक. ततबे नहि, दृष्टि-बाधित लोकनिक हेतु पोथीक ब्रेल संस्करण वा मोटा टाइप मे कॉपीराइट द्वारा निषेधित पोथीक पुनर्मुद्रण कॉपीराइट अधिकारक अतिक्रमण नहि थिक; ई कॉपीराइटक अपवाद थिक. धार्मिक क्रिया-कलाप मे पोथीक उपयोग सेहो कॉपीराइटक परिधिसँ बाहरक विषय थिक.

बौद्धिक संपदाक भौगोलिक आ समय सीमा

आरंभ मे कॉपीराइट संरक्षण ओही देशक सीमा धरि सीमित छल, जतय पोथी छ्पैत रहैक. फलतः, इंग्लैंड मे छपल पोथीकें अमेरिका मे पुनः छापि बेचबा पर कोनो कानूनी प्रतिबंध नहि रहैक. प्रकाशित पोथीकें एहि कानूनी संरक्षणक समय सीमा सेहो मात्र चौदह वर्ष धरि सीमित छल, जे आओर चौदह वर्ष बढ़ाओल जा सकैत छल. क्रमशः, कॉपीराइट संरक्षणक भौगोलिक सीमा आ  अवधि बढ़ल. अस्तु, अंतर्राष्ट्रीय सहमति, बर्न कन्वेंशन १८८६, 2   अन्तर्गत आइ १७९ संप्रभुता  संपन्न  देश कॉपीराइट संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानूनक पालनक संकल्प केने अछि.

कॉपीराइटक अतिक्रमणक परिदृश्य

अधिकार दावा केला पर भेटैत छैक. क़ानूनक पालन, कानून-व्यवस्थाक नियामक लोकनिक कानूनक अतिक्रमणक निरोधक व्यवस्थाक तत्परता पर निर्भर होइछ. अन्यथा कानून आ अधिकार केवल संहिता धरि में बन्न पड़ल रहि जाइछ, आ कानून तोड़ब निर्बाध चलैत रहैछ. कॉपीराइटक कानून एकर अपवाद नहि. फलतः, कॉपीराइट कानूनक अतिक्रमण विश्वभरि मे आम अछि. विश्वभरिक साहित्यक नव-नव छपल गैरकानूनी प्रति दिल्ली, बंगलोर आ मुंबईक फुटपाथ पर कोन पाठक नहि किनने हेताह. लतामंगेशकर, मोहम्मद रफी, मन्ना डे प्रभृति अनेक कलाकारक गीत पुनः गाबि कतेक ने कैसेट आ सीडी बेचि करोड़पति भए गेलाह. विश्व भरिक फिल्मक सीडी शहर सबमे धड़ल्ले बिकाइत देखनहि हेबैक. ई सब कॉपीराइटक उल्लंघन थिक.

इन्टरनेट युग मे कॉपीराइट

इन्टरनेटक आविष्कार ज्ञानक वितरणक सीमाकें तोड़ि देलक. तें, बौद्धिक संपदाक अधिकारक नियम जं एक दिस क्रमशः  जहिना दृढ़सँ दृढ़तर होइतो गेल, तं तहिना ज्ञानक वितरण सुलभ होइत गेल, वितरण क्षेत्रक परिधि बढ़ैत चल गेल. ज्ञानक वितरण सुलभ भेल तं ज्ञान-विज्ञान आ साहित्यक चोरि सेहो सुलभ भए गेल. आइ स्थिति एहन अछि जे घर बैसल केओ ‘उद्यमी’ विश्वक कोनो भागसँ कोनो सहित्य वा विज्ञानक चोरि कए ओकरा अपन सृजन जकाँ राताराती परसि सकैत छथि. आ ई चोरि केवल ‘गृहचोरा’ नहि, प्रतिष्ठित विद्वान आ प्रसिद्ध वैज्ञानिक धरि करितो छथि आ पकड़लो गेलाहे. हेबनि मे व्हाट्सएप्प, टेलीग्राम प्रभृत्तिक सोशल मीडिया कॉपीराइट उल्लंघनके नव आयाम देलक. आइ मेडिकल, टेक्निकल वा कला विषयक एहन कोनो पोथी  नहि जकर कॉपी इन्टरनेट पर लोक अदला-बदली नहि करैछ ! ई समस्या विश्व भरि मे अछि. थोड़ जनसंख्या, समृद्धि आ  सख्त कानून व्यवस्थाक कारण विकसित देश सबमे ई समस्या थोड़ अछि, मुदा, नहि अछि, से नहि. विकासशील देशमे लोककें स्मरणों नहिं होइछ जे एहन कोनो नियम-कानून छैक.    मुदा,ओ भिन्न विषय भेल. आब पुनः विषय पर आबी.

जनसामान्य  आ अध्येता ले तं इन्टरनेट ज्ञान-विज्ञानक आदान-प्रदानक नव अवसर आ  बाट खोललक. कारण, इन्टरनेटक युगमे कोर्ट केर अनेक आदेश कॉपीराइटक सीमा-रेखाकें पुनः-पुनः परिभाषित कयलक अछि. कारण भिन्न छलैक. विज्ञान, तकनीकी, मेडिकल आ अन्य क्षेत्रक पोथीक अधिक मूल्यक कारण सामान्य पाठक ले पोथी किनब संभव नहि होइत रहैक. फलतः, लोक चोरा-छिपा कए ओकर फोटोकॉपी करैत छल. कानूनी दायराक बाहर हेबाक कारणें कखनो काल ओहि पर केस-मोकदमा सेहो होइत छलैक. फलतः, कोर्ट सबहक अनेक निर्णय आयल. ओहि निर्णयक फलस्वरूप छात्र समुदाय द्वारा फोटोकॉपी कयल  पोथीक व्यक्तिगत कॉपीक उपयोग आब अनेक देश मे गैरकानूनी नहि मानल जाइछ. तथापि, नियम मे परिवर्तनक पछातिओ विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका मे प्रकाशित लेख सब आम पाठकक पहुँचसँ  दूरे छल. तें, किछु वर्ष पूर्व अमेरिका मे निर्णय भेल जे सरकारी अनुदानसँ संचालित अनुसन्धानक रिपोर्ट सार्वजानिक संपत्ति थिक. मुद्रक ओकर सार्वजानिक प्रयोग आ वितरणकें नियंत्रित नहि कए सकैत छथि. समकालीन ज्ञान-विज्ञानक वितरणक दिशा मे ई बड़का डेग छल. कॉपीराइट नियम मे एहि परिवर्तनसँ विश्वभरिक वैज्ञानिक आ अध्येता लाभान्वित भेलाह. ततबे नहि विश्व भरिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय सबहक ऑनलाइन लाइब्रेरी, archive.org 3 Project Gutenberg 4  क माध्यमसँ   आइ घर बैसल हम आ अहाँ  पर उपलब्ध करोड़ों पुस्तक, सिनेमा, गीत-नादक उपयोग कए सकैत छी, पछुआड़क पुस्तकालय जकाँ ओकर निःशुल्क सदस्यतासँ  पोथी उधार  लए सकैत छी ! सेहो कानूनक परिधिक भीतर.

मैथिली आ कॉपीराइट

मैथिलीक बाज़ार छोट छैक, वा मैथिलीकें बाजारे नहि छैक. फलतः, जें मैथिलीक पोथीक बाज़ार अत्यंत सीमित छैक, तें, मैथिली साहित्य आ बौद्धिक संपदासँ उपार्जन कए जे गुजर करैत छथि तनिक संख्या थोड़ अछि. पहिनहु, मूलतः, एकर लाभ ओही लेखक लोकनिकें होइत छलनि जे आइ पोथी लिखथि, आ काल्हि ओकरा स्कूल-कालेजक कोर्स मे सम्मिलित करबा लैत छलाह. तथापि, एहन घटना सुनल अछि जे हुनको लोकनिक पोथीक अनाधिकार मुद्रण आ बिक्री होइत छलनि आ ओ लोकनि शिष्टाचार आ सामाजिक संबंधक कारण किछु नहि बाजथि.

आब स्थिति एहन अछि जे कॉपीराइट नामक कोनो कानून छैको से मैथिलीक मुद्रक प्रकाशक बिसरि गेल छथि. फलतः, कॉपीराइट कानूनक प्रत्येक प्रावधानक खुला उल्लंघन आम अछि. दिवंगत लोकप्रिय लेखक जनिकर पोथी हुनका लोकनिक जीवन काल मे खूब बिकाइत छल, हुनकर लोकनिक रचनाक तं गप्पे नहि हो. एखन केओ दिन-देखार अनकर लेख अपना नामे छापि लैत छथि, तं केओ फेसबुक/ व्हात्सएप्पसँ अनकर लेख उतारि ओकरा तोड़ि, काटि-छाँटि अपन पत्रिका-समाचार पत्रक हेतु संकलित करैत छथि. बाँकी नवसिखा उद्यमी-प्रकाशक लोकनि एकटा दू टा आओर लेख कतहुसँ ऊपर केलनि, लूटि लाउ, कूटि खाउक रीतिसँ किछु लेख जमा केलनि  आ पत्रिका/ स्मारिका छपि गेल. ओहुना अनकर सामग्रीक  अनाधिकार प्रयोगक परंपरा आब एतेक सामान्य भए गेले जे एहन काज कॉपीराइट नियमक अतिक्रमण थिक से संकलन कयनिहारक चेतना धरि किएक पहुँचतनि! एहि मे ने कोनो संकोच, ने कोनो आभार4, ने कोनो शिष्टाचार5. ऊपरसँ, गूगल (‘बाबा’) आ गूगल अनुवाद आब चोरिक अवसरकें तेना अनेक गुणा बढ़ा देने अछि, जे कॉपीराइट सामग्री चोरिक  गतिकें चोर लोकनि पवन समान नहि, प्रकाशक गतिक समान कए देने छथि. तें, ने सामग्रीक कमी, ने देरी हेबाक भय. एहना स्थिति मे बेचारे (मौलिक) लेखक, जे किछुओ लिखबा मे एखनो ‘ नौ डिबिया तेल’ जरबैत छथि, से कतय जाथु ? हँ,‘नकल करबाक हेतु अक्किल चाही, अन्यथा शक्ल बदलि सकैछ’ ! मुदा, तकर भय ककरा. कारण, लिखल वस्तुकें केओ पढ़त तकर विश्वास कतेक गोटेकें होइत छनि. तथापि, एखनो गंभीर लेखन होइत तं अछि. मुदा, लिखल सामग्रीक अनाधिकार प्रयोगक स्थिति मे तत्काल सुधारक कोनो संभावना देखबा मे नहि अबैछ. मुदा, एकर समाधान कोना हो ताहि पर मैथिलीक प्रतिष्ठित लेखक-विद्वान आ प्रकाशक मंथन करथु आ समाधान बहार करथु, अनुशासनक संहिता बनाबथु. सहमतिक वातावरण बनय से सर्वथा वांछित थिक.

सन्दर्भ:

1.  https://en.wikipedia.org/wiki/Intellectual_property

2. https://en.wikipedia.org/wiki/Berne_Convention

3. https://archive.org/

4. https://en.wikipedia.org/wiki/Project_Gutenberg

5 . पारंपरिक मैथिली में ‘धन्यवाद’क समावेश नहिं !

https://kirtinath.blogspot.com/2022/03/blog-post.html

6 . साहित्य आ शिष्टाचार https://kirtinath.blogspot.com/2019/12/blog-post_29.html

 

  

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