Tuesday, August 27, 2019

बेचबाले पोथीकें किनबा जोग बनाउ, पाठक धरि पहुँचाउ


बेचबाले पोथीकें किनबा जोग बनाउ, पाठक धरि पहुँचाउ
प्रोफेसर श्रीश चौधरी कहैत छथि, ‘ मैथिलीमें किताब बहुत छपैत अछि, किन्तु, बिकाइत कमे अछि.’ हमहूँ एहि सं सहमत छी. हमरा बहुतो गोटे अपन पोथी पठबैत छथि, हमहूँ बहुतो गोटेकें मुफ्त पोथी दैत छियनि. किन्तु, छपल पोथी राखब समस्या भ गेले. पोथी के, आ कोना, किनत ? एकटा प्रसिद्द प्रकाशककें अपन नव पोथीक सूचना देलियनि. बड्ड प्रसन्न भेलाह. कहलनि, कतेक पोथी छपौने छी ? हम कहलियनि, ‘तीन सौ “.
‘ जा ! तीने सै ! अहाँकें  सब चिन्हइए .
हम कहलियनि,  ‘किताबक  सूचना हम सब कें दैत छियनि. फेसबुक पर सेहो लिखने छियैक. केओ किनताह से नहिं कहलनि-ए’.
ओ पुछ्लनि, ‘ लोककें पोथी किनबा ले कहलियैके ? हम कहलियनि, ‘नहिं’.
‘सएह ने. तखन के किनत ! अहाँ फेसबुक पर लगातार एक हप्ता भिन्न-भिन्न समय पर सूचनाक संग किनबाक आग्रह दियौक’. एहि मित्रक गप्प सं हमर उत्साह बढ़ल. अगिला एक हफ्ता साँझ, दुपहरिया, निसाभाग राति, रविक भोर, छुट्टीक दिन ताकि ताकि फेसबुक पर एके पोस्ट के रिपीट करैत रहलहुं. कथी ले एको टा किताबक मांग हयत. जनिका लोकनि कें बंडल बना क पोथी पठौलियनि तिनको ओहिठाम सं एखन धरि एको कैंचा नहिं आयल. केवल श्री अमित आनन्द धरि ‘मैथिली मचान’ दिससं 650 रुपैया हमर बैक खातामें जमा केनिहार पहिल आ अन्तिम व्यक्ति थिकाह.
एकर विपरीत एकटा लेखक हमरा अपन पोथी सबहक 850 रुपैयाक पूर्ण सेट किनबाले सहमत क लेलनि. बैंकक खाता संख्या पठओलनि. टाका पहुँचै में  एखन तं समय लगैत नहिं छैक. हम अनुशासनपूर्वक जहिया पोथीक पहुँचनामा व्हात्सएप्प पर सूचित केलियनि तकर दू दिनक बाद तागेदा आबि गेल. ओहि दिन प्रायः सोम रहैक. हम फ़ोन पर कहलियनि, बुधदिन धरि पहुंचि टाका जायत. बुध दिन सांझमें मेस्सेज आबि गेल, ‘सूचना: आइ बुध भ गेल !’. हमरा-सन आर्मी अफसरकें एहने तगेदाक अनुभव नहिं. हमरा हंसी लागि गेल. हुनका टाका तं पहुंचि गेलनि. किन्तु, ओ हमर पोथी किनताह से तं लगैत नहिं अछि. तें, हमरा लगैत अछि, सिद्धहस्त लेखक बनबा सं बेसी आवश्यक छैक लगारी बिक्रेता हयब. मुदा, पोथीक मांग तखन ने हेतैक जखन लोक कें पोथी नीक लगतैक वा पोथीक आवश्यकताक अनुभव हेतैक .
तथापि, हमरा लगैत अछि, उपयोगी आ स्तरीय पोथीओ बेचबाले हमरा लोकनिकें बेचबाक नव पद्धति अख्तियार करबाक चाही. एहि हेतु  हमरा लोकनि उपभोग्य सामग्रिक विपणनमें आयल नव संस्कृति शिक्षा ली, से हम सोचैत छी . सारांश ई, जे, आर्थिक उदारीकरणक पछाति जखन विदेशी तेल-साबुन-डिटर्जेंट-फ्रिज-टीवी-मोटर साइकिल-कार सं शहरक बाज़ार भरि गेल तं बहुराष्ट्रीय कम्पनी सब एहि वस्तु सबकें देहाती इलाका दिस साहब शुरू केलनि. तखन हमरा लोकनि पोथीक बिक्रीकें शहरे धरि किएक सीमित राखी. मैथिली बजनिहार तं गाम में छथि. पोथी ओतहि बेचू. कोशिश तं होइ. किन्तु, एहिमें अनेक समस्या छैक, जेना, अशिक्षा,  पोथी पढ़बाक रूचिक अभाव, रुचिक अनुकूल पोथीक अभाव, पोथी सब में स्तरीयताक अभाव, पोथीक इलेक्ट्रॉनिक प्रतिक अभाव, आ आर्थिक लाभमें बिक्री केनिहारक हिस्साक अभाव. असल में बिक्री तं व्यापार थिकैक, बेचनिहारकें अपन हिस्सा तं भेटनि. छुच्छे मैथिली-प्रेम सं लोकक पेट तं भरतैक नहिं. हं, स्कूल-कालेज आ विश्वविद्यालय सं सम्बद्ध लेखक लोकनिके एकर काज नहिं . बहुतो गोटे पन पोथीकें कोर्सक किताब बना लैत छथि. किन्तु, ओहि परिधि सं बाहरकेर लेखक की करताह ! केवल समालोचना लिखनिहार की करताह !!
                

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