Monday, April 1, 2019

अहाँ बिल गेट्स नहिं थिकहुं !

फेर मनुख भेल अनूप

साते भवतु सुप्रीता देवि शिखर वासिनी
उग्रेण तपसालब्धो जयापशुपति पतिः .
पढल लिखल घरमें कोरामें बैसल अबोध नेना पहिल पाठक रूपें एहिना किछु सिखैत छल. मजदूर-कामगारक नेना ले ने माय-बापकें दिनमें नेनाकें कोरामें ल कय बैसबाक पलखति भेटैत छलैक, ने मुहजवानी पाठ सिखबाक अवसर. किन्तु, माय-बापक कोर सबकें भेटिते छलैक. अक्षर सिखबाले केओ स्कूल जाइत छल, केओ नहिंओ. देहाती धीया-पुता गुरूजी लग पढ़ैत छल, आ शहरी ‘सर’ सं. जकरा माय-बापकें उपाय आ महत्वाकांक्षा छलैक, पब्लिक स्कूलमें पढ़ैत छल. केओ-केओ जे हैरो, ईटन, दून, वेलहममें पढ़ैत छलाह तनिकर खीसा साधारण धीया-पुता पोथीमें पढ़ैत छल. क्रमशः समय बदललै. विज्ञान एक सं एक तडपान दैत चल गेल. कहां उन्नैसम शताब्दी क उत्तरार्द्धहि में केओ विज्ञानक प्रगतिसं एतेक संतुष्ट भ गेल रहथि जे अपनहिं दिससं घोषणा क देलनि जे ‘विज्ञानक एतेक विकास भ चुकल अछि जे आब कोनो अविष्कारक संभावना समाप्त भ गेलैए’. सर्वविदित अछि, अजुका जीवन विज्ञानक निर्बाध प्रगतिक दोसरे कथा कहैत अछि. संयोगसं अजुका युगक विज्ञान बहुत अर्थमें आर्थिक विभाजनक आरि-धूरकें ढ़ाहि देलक-ए. टी वी, मोबाइल, कम्प्युटर आब सबकें उपलब्ध अछि. संगहिं, मोबाइल फोन अनेक अर्थमें साक्षर आ निरक्षरक भेद सेहो हंटा रहल अछि. किन्तु, कहबी छैक, ‘कोनो वस्तु केवल वरदाने टा नहिं होइछ’.
अस्तु, मोबाइल आ कम्प्यूटरसं मनुष्य औफिसकें घर ल अनलक आ ओकर आठ घंटाक ड्यूटी अष्टयाम- आठो याम-क ड्यूटी भ गेलैक.
ततबा धरि तं ठीक छलैक, किन्तु, जखन इन्फोर्मेशन सुपर हाइवे-इन्टरनेट- क अविष्कार भेल आ क्रमशः देश-दुनिया आ दिन-रातिक सीमा ध्वस्त भ गेल, मनुखक आंखि खुजय लगलैक. अमेरिकी डाक्टरक मेडिकल नोट्स बंगलौर में बैसल बिहारी टाइप करय लगलाह आ पचहत्तरि अमरीकी डौलर प्रति घंटाक बदला कम्पनी सब 5 डौलर मात्र खर्च कय स्वामी आ शेयर होल्डर दुनूक प्रशंसा, आ अपन प्रगति, सुनिश्चित क लेलनि. सब मस्त छल- अमेरिकी कम्पनी, बंगलौरक व्यापारी, आ बिहारी नौकरीपेशा.
संयोगसं गाम घरक युवक लोकनि जे शहरमें पढ़लनि, गाममें जीविकाक अभाव आ ओतुका कठिन जीवन दुनूक हेतु प्रस्तुत नहिं छलाह. शहर केर जीवनकेर सीमा आ बाध्यता दुनू छैक. तें, बाबा-दाई गामें रहि गेलीह आ बौआ-बुच्ची शहरमें‘बाबा-ब्लैक शिप’ पढय लगलीह. सेहो ठीक छल. गरीब-गुरुबा आ मध्यवित्त की करत ! देह लगाकय मारलक. किन्तु, जखन बड़का-बड़का आ प्रसिद्ध स्कूल सब मुनाफा बढ़ेबाले कम्प्यूटरक संख्या बढ़ाकय शिक्षक लोकनिक संख्या के थोड़ करैत गेल. क्रमशः परिस्थिति एहन भ गेलैक जे, सर्वज्ञ ‘गूगुल’ भ गेलाह गुरू आ मोबाइल भ गेल पोथी आ पतरा. इंटरनेटक बटनतर आबि गेल दुनिया भरिक पुस्तकालय, आ  क्रमशः शिक्षक होइत गेलाह दरकिनार; माने, पढ़ाई कम, सिखनाइ बेसी (Less of teaching, more of leaning). एहि युक्तिमें माता-पिता, शिक्षक भ गेलाह बाधक आ ‘साइबर स्पेस’ स्वर्गलोक. आब एकाएक एकर दुस्परिणाम जहां-तहां लोककें देखबामें आबि रहलैए. नेना-युवक सबमें बढ़ैत दूरदृष्टिक दोष (epidemic of myopia) नव थिक. पूर्वी एशियामें बीस वर्षक युवक लोकनि में 95 %,आ पश्चिमी योरप एवं अमेरिकाक 50 % युवक लोकनि दूरस्थक दृष्टिदोष (myopia) सं प्रभावित भ रहल छथि. उच्च शिक्षा, घरसं बहरयबाक कमी आ निरंतर महीन काज एकर कारणक रूममें चिन्हल गेले. आंखिमें जलन आ पीड़ा (computer vision syndrome) कम्प्यूटरपर  प्रतिदिन लम्बा अवधि धरि काज कयनिहार प्रोफेशनल लोकनिक अलगे समस्या थिक. एकर अतिरिक्त अनिद्रा, गरदनि आ पीठक पीड़ा, आ पारवारिक संबंधक विघटनसं लोक परेशान सेहो अछि आ लोकक आंखि खुजब सेहो आरंभ भेलैए. किन्तु, उपाय सहज नहिं छैक. फेसबुकक स्वामी, मार्क जकरबर्ग, आ गूगलक प्रधान, सुंदर पिचाई, तं अपन नेनाकें खेलयबाले दाई आ पढयबाले गुरूजी राखि सकैत छथि. किन्तु, राति भरि कौल-सेन्टर में जगनिहार एक्जीक्यूटिव की करताह ! आम शहरी की करत ? परिवारमें तं केओ अतिरिक्त लोक नहिं. बेसी ठाम माता-पिता दुनू नौकरिहा. ई गंभीर प्रश्न अछि. दोसर दिस स्वेच्छासं वा मजबूरीमें धीया-पुता सं दूर रहैत वयोवृद्ध की करताह !! शहर में नौकरिहा नेना सबहक संग रहबकें कतेको गोटे 'सोनाक खोप' बूझैत छथि. एहनामें माय-बापक सेवामें तत्पर संतानो की करताह. महानगर सब-जकां मिथिलांचल वा भारतक आनठाम गाम-घरमें रिटायरमेंट होम आ बृद्धाश्रम तं छैक नहिं. ने, सक्षम सरकारी वा सामाजिक तंत्र. तें एखनुक युगमें कमासुत आ बृद्ध दुनू लाचार छथि आ एहि विकट समस्याक कोनो सोझ समाधान देखबामे नहिं अबैछ. विकसित देशमें जतय सरकारी आ सामाजिक व्यवस्था सक्षम आ तत्पर दुनू छैक ततहु समस्या एतय धरि पहुंचि गेलैए जे हालमें मृत्युक द्वारि पर ठाढ़ एक लाचार व्यक्तिकें केवल अपनहिं पहियापर गुड़कैत अबैत रोबोट आ कम्प्यूटर अस्पतालक कोठलीमे  आबिकय सूचित कयलकनि जे, ‘ आब ईश्वरकें स्मरण करू, आब अहाँक विदाक समय आबि चुकल अछि’. तें, सुनैत छी आब अचानक अमेरिकाक धनकुबेरहु लोकनि विलासक हेतु सुपर-लक्जरी नाओ (yacht) नहिं, मनुखक सम्पर्कक सपना देखय लगलाहे ! ई लोकनि कहय लगलाहे, मनुखक स्पर्श असली विलास थिक - Human touch is luxury. किन्तु, हमरा लोकनिक चिंताक विषय से नहिं. सुनैत छी, आब एकाकीपनाक समस्या अमेरिकासं सुदूर, हमरा लोकनिक गांओ धरि पहुंचि चुकल अछि. ई चिंताक विषय थिक. एहि समस्यापर करीब बीस वर्ष पूर्व हम एकटा कथा (मरनो भलो विदसमे) छपल छल. हालमें प्रकाशित नारायणजीक कथा ‘मुखाग्नि’ सेहो एही दिस संकेत करैत अछि. तें, एखन मनुख आ मनुखक संग पुनः अनूप हेबापर आबि गेले. सुनैत छी, कतेको सन्तान माई-बापक श्राद्धकें आब Skype पर देखि अपन कर्तव्य पूरा करैत छथि. एक गोटेक तर्क तं हुनका तेहन दिव्यज्ञान देलकनि जे पिताक अस्थिकें पांच सितारा होटलक नालामें बहाकय कर्तव्य पूरा केलनि. कहलखिन, आखिर गंगा माई तं हरिद्वारसं बहैत पटने होइत समुद्र धरि जाइत छथि, कि ने ! सरिपहुंए !!
हं, एकटा तं बिसरिए गेल, जं , अहूंकें बाबू सठियायल आ बाबी झखबूढि लागय लागल होथि तं, एकबेर अपनो दिस देखि लेब. समय तेजीसँ बदलि रहलैए. अहाँ तं बिल गेट्स नहिं छी. किन्तु, एखनुक किछु लोककक समस्या आइ ने काल्हि सबहक समस्या हयत. लोक मनुख कतयसं आनत !

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