Wednesday, June 8, 2022

महादेव पूरण टिबरेवाल इंगलिश उच्च (MPTHE) विद्यालय, झंझारपुर : हमर उदारवादी गुरुकुल

 

महादेव पूरण टिबरेवाल इंगलिश उच्च (MPTHE) विद्यालय, झंझारपुर

( वर्ष १९६७-७१ )

भारतक स्वतंत्र भेलाक पछाति शिक्षित वर्गमे धिया-पुताकें पढ़यबाक प्रवृत्ति जोर पकड़लकैक. किन्तु, मिथिलांचलमे स्कूल आ ताहूमे हाई स्कूल अत्यंत अभाव रहैक. अधिकतर हाई स्कूल सब निजी दान आ दाताक उदारतासँ  स्थापित भेल रहैक. तहिया शिक्षा उद्योग नहि बनल छल. स्कूलक दूरी, यातायातक असुविधा आ अर्थक अभावक कारण बहुतो विद्यार्थी ले हाई स्कूलमे पढ़ब कठिन रहैक. पुरान दरभंगा जिलामे गनल-गुथल हाई स्कूल रहैक. महादेव पूरण टिबरेवाल उच्च विद्यालय, झंझारपुर हमर गामसँ सबसँ लग छल. हमर नाम ओतहि लिखाओल गेल. ओहि समयमे हमरालोकनि, अपन गामक करीब पन्द्रह-सोलह विद्यार्थी, प्रतिदिन पाँव-पैदल झंझारपुर जाइ. छात्रक दलमे आठवाँसँ   कए एगारहवाँ धरिक छात्र रहथि. एहिमे कमलाक पछबरिया तटबंधक पश्चिमक  अवाम, रतौल, मदनपुर, रहीटोल धरिक विद्यार्थी रहथि. किछु विद्यार्थी पोखरिभिंडा आ उजानसँसेहो आबथि. अवामक विद्यार्थी सब कमलाक पश्चिमी बान्हपर संग होइत छलहुँ आ ओहिसँ आगू धबौली बाध होइत कमलाक काते-कात झंझारपुर चल जाइत छलहुँ. साईकिल ककरो लग नहिं रहैक. ककरो पयरमे जूता-चप्पल नहि. छात्र लोकनिकमे एकोटा कन्या नहि रहथि. अधिकतर कन्याक विवाह प्राथमिक शिक्षासँ पहिनहि वा ओकर तुरत बाद भए जाइनि. कन्या लोकनि शिक्षाक प्राथमिकताक सूचीमे सबसँ नीचा रहथि. तें, हाई स्कूलमे छात्रा लोकनिक संख्या नगण्य छल. जे केओ स्कूल आबथि ताहि म सँ एक दू टा स्थानीय माड़वारी व्यापारी लोकनिक परिवारसँ वा स्थानीय सरकारी अधिकारी लोकनिक कन्या रहथिन. तें, सहशिक्षाक वातावरणमे बालक आ कन्या लोकनिक एक दोसरासँ  परिचयक कारण किशोरक जे मनोवैज्ञानिक विकास होइत छैक, ताहि वातावरणक अभाव रहैक.

महादेव आ  पूरण  टिबरेवाल उच्च विद्यालय, झंझारपुरक स्थापना, वर्ष 1952 मे भेल छल. महादेव आ  पूरणमल  टिबरेवाल नामक दू टा स्थानीय माड़वारी व्यापारी एहि विद्यालयक स्थापना कयने रहथि. एहि इलाकाक दू टा पुरान स्कूल- केजरीवाल स्कूल आ  मधेपुर हाई स्कूल- कोस भरि दूर झंझारपुर बाज़ार आ दू कोस दूर पूब रहैक. प्रायः तें एतुका व्यापारी लोकनि हाई स्कूलक आवश्यकता अनुभव कएलनि आ एतहि नव स्कूलक स्थापना केलनि.

महादेव आ  पूरण  टिबरेवाल हाई स्कूल झंझारपुर रेलवे जंक्शन ( तहियाक स्टेशन) क ठीक उत्तर, पूबे-पच्छिमे जाइत रेलवे लाइनक दोसर उत्तर अछि. हमरा सबहक समयमे स्कूल, दक्षिण मुँहक फूसक भवनमे रहैक. छात्रावास खपरैल भवन पश्चिम मुँहे छल. विद्यालयक दुनू भवनक दुनू अंग मिला कए L-आकारक रहैक. स्कूलक आगू पैघ फील्ड रहैक जकर पूर्व-दक्षिण कोन पर हैण्ड पम्प आ दक्षिण-पश्चिम कोन पर एकमात्र सर्विस टॉयलेट रहैक. फील्डक पश्चिम पोखरि रहैक. स्टेशनसँ उत्तर गेनिहार यात्री लोकनि स्कूलक फील्ड होइत जाइत रहथि. फील्डमे खेल-कूदक कोनो व्यवस्था नहिं.

एहि स्कूलमे  विज्ञान, कला एवं वाणिज्य, पढ़ाईक तीनू विकल्प उपलब्ध रहैक. स्कूलक नीक पढ़ाई रहैक. विद्यार्थी लोकनि जिज्ञासु रहथि आ शिक्षक लोकनि विद्यार्थीक जिज्ञासा शान्त करबामे तत्पर रहथि. शिक्षक लोकनि योग्य आ अनुभवी रहथि. किछु गोटे सामूहिक आ प्राइवेट ट्यूशन सेहो दैत रहथिन. हेडमास्टर स्व. जीव नारायण दास तं एहि स्कूलमे अयबासँ पूर्व बेलाही हाई स्कूलमे उपप्रधानाध्यापकक रूपमे सेहो काज केने रहथि. दू गोट उद्धरण जे ओ बेसी काल कहथिन. कहथि, हौ बाइबिल में कहने छैक” ‘Man is the cream of creation.’  Napoleon Bonaparte क कथन  Impossible is the word found only in the dictionary of fools.’ सेहो ओ यदा-कदा कहथिन.

स्कूलमे विज्ञान, कला आ वाणिज्य तीनू विकल्पक पढ़ाई होइत रहैक. जीव विज्ञान पढ़यबाक व्यवस्था नहिं रहैक. पदाथ विज्ञान आ रसायन विज्ञानक हेतु प्रयोगशालाक व्यवस्था रहैक. छात्रकें प्रयोग करबाक अवसर भेटैक. कोर्स-वर्कक अतिरिक्त कहिओ काल वाद-विवाद प्रतियोगिता होइक, पुरस्कार भेटैक. मेरिट टेस्ट नामक भिन्न-भिन्न विषयक घंटा भरिसँ कम अवधिक मासिक परीक्षा हमरा लोकनिक हेतु विशेष आकर्षण रहय. मेरिट टेस्टमे सबसँ अधिक नम्बर अननिहार एकाधिक विद्यार्थीकें पुरस्कार-स्वरुप किताब, कापी,कलम सन छात्रोपयोगी उपकरण भेटैक.तहिया तकर बड्ड महत्व रहैक.   

एहि स्कूलमे मुसलमान छोड़ि समाजक सब वर्गक छात्र रहथि. हमरा लगैत अछि, ओहि समयमे एहि इलाकाक  मुसलमान समुदायक छात्र प्राथमिक स्कूलसँ कदाचिते आगू पढ़ि पबैत रहथि. मुसलमान छात्रक अभावक अनुमानित कारण इएह थिक. शिक्षकहुमे केओ मुसलमान नहि छलाह. स्कूलक वातावरण उदारवादी रहैक. शारीरिक दण्ड पूर्ण रूपें संपत नहिं भेल रहैक. मुदा, ताहि में शिक्षक ई नहिं देखथिन जे विद्यार्थी संस्थापकक परिवारक थिकाह, कि आन केओ.

तहिया देश स्वतंत्रताक बेसी दिन नहिं भेल रहैक. ओहि समयमे आदर्शवादी विचारधारा क निंदा नहि आरंभ भेल रहैक. गाँधी तहिया पूज्य छलाह. यद्यपि, वादविवाद मे राजनेता वा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आलोचनासँ परे नहिं रहथि.   

विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन अपन संस्मरण ‘Home in the World’ में लिखैत छथि, ‘संस्मरणक स्मृति-चर्वणमे अनका रूचि होइक से आवश्यक नहिं. किन्तु, की भेलैक आ अनकर अनुभव आ विचारक की अर्थ निकाली ताहिमे अनका रूचि संभव छैक.’ तें, हम ओहि समय मे महादेव पूरण टिबरेवाल इंग्लिश उच्च  (MPTHE) विद्यालय, झंझारपुर मे केहन वातावरण रहैक तकर किछु उदाहरण दैत छी.

स्कूलक दैनिक कार्यक आरम्भ जयशंकर प्रसादक कविता ‘हिमाद्रि तुंग श्रृंग से’ कविताक गान होइक, कोनो देवी-देवताक स्तुति नहि. पाठकक हेतु ओहि कविताकें एतय उद्धृत करैत छी :

हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती
'
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़- प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो!'
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के- रुको न शूर साहसी!
अराति सैन्य सिंधु में, सुवाडवाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो, बढ़े चलो!

प्रतिदिनक प्रातः कालीन असेंबलीमे एहि कविता पाठक नेतृत्व पण्डित बनखंडी मिश्र करैत रहथि. पण्डित जी संस्कृतक विद्वान रहथि. किन्तु, विचार उदारवादी रहनि. स्वतंत्रता संग्राम आ द्वितीय विश्वयुद्धक गप्प यदा-कदा सुनबिथिन. राजनितिक गतिविधि पर हुनक नजरि रहनि. भाषा शुद्ध लिखल जाय तकर आग्रही रहथि. आनो शिक्षक लोकनि शुद्ध भाषा लिखबा पर  जोर देथिन.

जं कहियो पण्डित जीक अनुपस्थिति मे भोरुका सामूहिक ‘प्रार्थना’क भार शिक्षक महावीर पोद्दार पर पड़नि तं ओ ‘ दयाकर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना’ क प्रार्थना कराबथि. ओहि दिन’ हिमाद्रि तुंग शृंग से’क गान नहि होइक. मुदा, से अभावृत्तिए.  स्कूल में NCC/ ACC सन संस्थाक प्रवेश नहि रहैक. योग आ व्यायामक प्रचार नहिं रहैक. मुदा, पदार्थ-विज्ञान (Physics)क शिक्षक महावीर पोद्दार हमरा सत्यानन्द सरस्वतीक योगासनक एकटा पुस्तक देने रहथि. हम प्रायः आठमे वर्ग मे ओहि पोथीक सहायतासँ बहुत योगासन सीखि नेने रही जे आइओ बिना ककरो सहायता आ निर्देशके करैत छी.

स्कूलमे पढ़ाई नीक रहैक रहैक. शिक्षकमे विशेषतः प्रधानाध्यापक जीबनारायण दासक अतिरिक्त, महेश्वर सिंह, महावीर पोद्दार, कीर्त्यानन्द मिश्र, मदनेश्वर मिश्र, पं. बनखंडी मिश्र आ कपिलेश्वर महतो मन पड़ैत छथि. ई लोकनि क्रमशः रसायन शास्त्र, पदार्थ विज्ञान, गणित, समाज अध्ययन, संस्कृत-हिन्दी, एवं हिन्दी पढ़ाबथि  प्रधानाध्यापक जीबनारायण दास मैथिलीमे लिखितो रहथि. ओ अंग्रेजी आ मैथिली पढ़बथिन. गीता प्रेसक एक पोथीक हुनक मैथिली अनुवाद ‘भक्त आओर भगवान’ एखनो हमरा लग अछि.

ई सब शिक्षक पढ़यबाक अतिरिक्त हमरा सबकें परिश्रम करबाक हेतु,  आ आगू बढ़बाक हेतु प्रेरितो करथि. प्रेरक व्यक्तित्व मे प्रधानाध्यापक जीव नारायण दासक अतिरिक्त हमरा स्व. मदनेश्वर मिश्र एवं महेश्वर सिंह विशेषतः मन पड़ैत छथि.

स्कूलमे साहित्य, आ कलाक क्षेत्रमे रटि कए लिखलासँ उत्तर नीक मानल जाइक. तें, समाज अध्ययन, हिन्दी, मैथिली आ संस्कृतमे हमरो लोकनि शिक्षकक लिखाओल उत्तरकें कंठस्थ कए ली. ओहिसँ नम्बरो आबय आ शिक्षक सेहो संतुष्ट होथि. पढ़बाक ओहि विधिसँ समाज अध्ययनक विद्वान् सबहक उद्धरण रटब काज आबय. भाषाक उत्तर शुद्ध होइक. किन्तु, साधारण विद्यार्थीक रचनात्मकता अवश्य दुर्बल होइक, प्रायः. तथापि, ओहि शिक्षक लोकनिक प्रति हमरा मनमे असीम आदर आ आस्थाक अतिरिक्त आओर किछु नहिं. हमरा नहिं लगैछ, ओहि कोटिक शिक्षक आब एहि इलाकाक कोनो स्कूलमे भेटताह. कारण बूझब कठिन नहि.

हाई स्कूलक अवधिमे हमर ध्यान योगासन आ स्वास्थ्य दिस गेल. किछु दिन गामक अखाड़ा पर सेहो गेलहुँ. अखाड़ा पर गामक पिछड़ा वर्गक युवक सब बेसी जाथि. कहबी रहैक:

            घोखन्त  विद्या लपटन्त जोर

            नहिं किछु तं थोड़बो थोड़

 किन्तु, हम जखन पढ़ाई दिस बेसी व्यस्त भेलहुँ तं अखाड़ा छुटैत गेल, किन्तु, स्वास्थ्यक प्रति जागरूकताक जे बीज गाममे मन मस्तिष्कमे पड़ल छल से जिनगी भरि संग रहल.  पछाति, जखन सेना सेवामे अयलहुँ तं ओतहु नियमित जीवन पद्धति आ स्वास्थ्य पर जोर रहैक. किन्तु, अपन अनुशासनक बलें  जतय कतहु गेलहुँ विपरीत जलवायु  आ कठिन जीवन पद्धतिओसँ कहियो स्वास्थ्य प्रभावित नहिं भेल. हमरा लगैत अछि, छात्र जीवनमे स्वास्थ्यक प्रति जागरूकताक जे बीआ हमरा मनमे रोपल गेल छल तकर लाभ हमरा जीवन भरि होइत रहल.

१९७१ ई मे महादेव पूरण टिबरेवाल इंगलिश उच्च (MPTHE) विद्यालय, झंझारपुरसँ हम मैट्रिक पास भेलहुँ. जहिया एहि स्कूलमे हमर नाम लिखल गेल छल, हमर गौआं लोकनि कहथि जे स्कूलक सम्मान सारिणी ( Roll of Honour ) पर अहाँक नाम अयबाक चाही. हम ओकर अधिकारी तं अवश्य भेलहुँ, किन्तु, समान सारिणी पर नाम लिखल गेल गेल वा नहि से देखबाक अवसर फेर कहियो नहि भेटल. एतबा अवश्य जे मैट्रिक परीक्षाक प्राप्तांक आधार पर हम राष्ट्रीय छात्रवृत्ति अधिकारी भेलहुँ. ई छात्रवृत्ति हमरा फाइनल एम बी बी एस धरि पार लगा देलक. तखन हम अपन स्कूल आ ओतुका गुरु लोकनिकें कोना बिसरि सकैत छियनि.

कहितो छैक:  अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ||

गुरुलोकनि आ गुरुकुलकें नमन.

 

Tuesday, June 7, 2022

उजान मिड्ल स्कूलक अनुभव : वर्ष १९६५-६६

 

उजान मिड्ल स्कूलक  अनुभव : वर्ष १९६५-६६

प्राथमिक विद्यालयसँ पांचमा पाससँ भए  मिड्ल स्कूलमे जयबाक अनुभव अनेक अर्थमे स्मरणीय छल; मिड्ल स्कूलमे छठम आ सातम वर्गक पढ़ाई होइत रहैक. पहिल, गामक स्कूलसँ बहराइते जेठि बहिन, शीला दाईक संग छूटि गेल. शीला दाई स्कूल जा कए पढ़निहारि हमरा सबहक परिवारक पहिल कन्या रहथि. उजान आन गाम भेल. ओतय हमरालोकनिक अनेक कुटमैती छल. ओहुना, ताधरि अवामक केओ कन्या गामसँ बाहर जा कए नहिं पढ़ैत रहथि. जायब-आयब सेहो पयरे रहैक, पर्दा प्रथाक असरि समाप्त नहिं भेल रहैक. तें, अपना गाममे मिड्ल स्कूल नहि हेबाक सबसँ पहिल हानि हमर बहिनेकें भेलनि, आ ओ पाँचसँ  आगू नहि पढ़ि सकलीह. ऊपरसँ ताधरि विवाहक योग्य सेहो भए गेल रहथि; तेरह वर्ष होइत-होइत तहिया कन्या अजग्ग मान जाथि ! स्कूलमे पढ़ैत हुनक सब संगतुरिआक - जाहिमे केवल ब्राह्मण आ कायस्थक कन्या लोकनि रहथिन- विवाह पहिनहि भए चुकल रहनि. ओहुना कन्या लोकनिकें चिट्ठी-पत्री लिखब-पढ़ब आबि गेलनि, रामायण-महाभारत, खीसा-पिहानी पढ़ि लेतीह, तहिया सएह पर्याप्त छलैक.

उजान मिड्ल स्कूल हमरा घरसँ करीब आध कोस (१ माइल) पच्छिम छल. चटिया (विद्यार्थी) सब पयरे स्कूल जाथि. अवामक पछवारि टोल आ उजान स्कूलक बीच एकटा बाध पड़ैत रहैक. बाटमे गाछी-कलम, नासी (नदीक छाड़न) आ बाँध( बैलगाड़ी जयबा योग्य कच्ची सड़क) सेहो रहैक. मुदा, खेतक आरि पर देने  आ खुरबटिया बाटें गेला पर दूरी कम भए जाइक. तें, हमरा लोकनि छोट बाट धए जाइ-आबी.  

खेतक कोला(भूखण्ड) सबहक बीचक आरि-धूर पर निरंतर अवर्यातक कारण बाट देखार रहैक आ ककरो सोझ बाट तकबामे मोसकिल नहिं होइक. ओ खेत सब एखनो ओहिना अछि, मुदा, ओ बाट कतय पाबी. प्रगतिसँ लोक खुरबटिया बिसरि चुकल अछि आ मनुखक पयर आ भूमिक बीचक संबंध समाप्त भए गेलैक. वाहनक तेज गतिक कारण गाम-घरक बाध-बोनक सौन्दर्य आब लोकक दृष्टिपथ पर अबैत छैक, ओकर क्षणिक छवि आँखि पर जहिना अबैत छैक, तहिना बिला जाइत छैक. ओहि सौन्दर्यक अनुभूति चेतना धरि नहि भिजैत छैक. लोक प्रकृति देखबाले  टाका खर्च कए दूर-दूर जाइत अछि, किन्तु, हड़बड़ीमे किछुओ कहाँ भेटैत छैक.

आइ-काल्हि जखन हम गाम जाइत छी, अपन परिचित खुरबटियाकें तकबाक प्रयास करैत छी. तखन लगैत अछि, ओ सब प्रायः एहन स्वप्न छल जकरा अजुका यथार्थसँ  कोनो संबंध नहिं. किन्तु, एहिमे कोनो दुःख नहिं. मानव सभ्यताक विकास सबठाम इतिहासकें नीपैत चलैछ, आ नीपल सपाट भूमि पर वर्तमानक भव्य-भवनक निर्माण होइछ. ओ भव्य भवनमे ककरा केहन लगैत छनि ताहिमे भिन्नता छैक. हं, जखन लोकके भूमि पर इतिहास नहिं भेटैत छैक तं पातालसँ इतिहासकें खोधि निकालबामे बसल नगर आ शहरके सेहो मटियामेट कए दैछ. 

आब पुनः उजान स्कूलक बाट पर आबी. तहिया बाधमे ऋतुक अनुकूल धान-गहूम-बदाम (चना)-तीसी-खेसारी आ कुसियारक खेती होइत छलैक;  पहिने मिथिला कुसियार आ चीनीक मिल ले प्रसिद्द छल. स्कूलसँ आपसीमे भुखाएल विद्यार्थीकें मन भेलैक तं कहियो दू बुट्टी बदाम उखाड़ि लेलक आ छिम्मड़ि सोहि कए खेलक. केओ नहिं देखलकैक तं बेस. केओ देखि लेलकैक, आ मास्टरकें शिकाइत भेलनि, तं विद्यार्थी लठिआओल गेलाह. मुदा, से तं सोहाग-भाग भेलैक. लोकक खेतसँ बदाम उजाड़बै, कुसियारक छर तोड़बैक तं ओ शिकाइत नहिं करत ! आ शिकाइत करत तं दण्ड नहिं लागत !! लगतैक तं, लगतैक !!! देखल जयतैक ! एतेक आगू सोचि सोचि पबितहुँ तं विद्यार्थी नहि, गार्जियने रहितहुँ.

हमरा ई सब प्रवृत्ति नहिं छल. चोरि अधलाह थिकैक. हमर शिकाइत हयत, आ मास्टर हमरा दण्ड देताह! किन्नहु नहिं. हमही गामक सबसँ नीक विद्यार्थी छी. हमर अग्रज, ऊधोजी( स्व. उदयनाथ झा ) क नाम तहियो गाममे चर्चित छलनि.  आह ! ऊधोजी सन विद्यार्थी होअए ! सबतरि फस्ट ! माए कहथि: मोनसँ पढ़ह. देखैत छहुन माम लोकनिकें, विद्यहिंसँ सब उपार्जन केलनि-हें. परिवारक कमजोर आर्थिक स्थिति आ माएक निरंतर प्रेरणा मनमे सबसँ नीक बनबाक धुनिसँ भरि देअय. गाममे सब प्रशंसा करैत छल. आ हमर मन सिक्का चढ़ि जाइत छल.

उजान मिड्ल स्कूलमे वातावरण एकदम ग्रामीण रहैक. शिक्षक आ छात्र लोकनि आसे पासक गाँओक रहथि. शक्तिनाथ ठाकुर उर्फ हरिबाबू (सर्वसीमा), बलभद्र झा (कनकपुर),पं. बुद्धिनाथ मिश्र(उजान), रामबहादुर मिश्र(नडुआर), कुल चारि गोटे शिक्षक रहथि. अनुशासन सख्त रहैक. शिक्षक लोकनि  दक्ष रहथि. स्व. शक्तिनाथ ठाकुर अंग्रेजी व्याकरण पढ़बैत छलाह. अंग्रेजीक पढ़ाई मातृभाषा, राष्ट्रभाषा आ संस्कृतक अतिरिक्त चारिम भाषाक रूपमे हिन्दीक माध्यमसँ- माने, हिज्जेक संग – होइत रहैक. तें, शहरी परिवेशमे सुपरिचित, किन्तु ग्रामीण परिवेशमे अनभोआर कतेक सामान्य प्रयोगक वस्तु- जेना कप-सौसर – केर अर्थ सेहो विद्यार्थी शब्दकोषमे ताकथि. वाक्यक संरचना प्रयोगसँ  नहि, व्याकरणक माध्यमसँ  सिखाओल जाइत छलैक. ततबे नहिं, पोथीमे पढ़ल पाठकें सामान्य जीवनमे प्रयोगक ने प्रेरणा देल जाइक, ने उदहारण. विज्ञानक पोथीमे स्वास्थ्य शिक्षाक स्थान पर मानव शरीरक रचना आ फूल-पत्तीक वर्णन रहैक. सफाई आ स्वास्थ्यक गप्प स्कूलमे नहिं होइक.

हमरा लोकनि वर्ग छौ आ सातमे हिन्दी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञानक अतिरिक्त इतिहास-भूगोल आ मैथिली सेहो पढ़ने रही. हाई स्कूलमे विज्ञान-शाखामे गेलाक बाद, पाठ्यक्रममे इतिहास आ भूगोल  पढ़बाक अवसर हमरा पुनः कहियो नहिं भेल. कारण, तहिया बिहारमे बिहार बोर्डक कोर्स चलैत रहैक. हमरा लोकनि CBSE शब्द सुननहु नहि रहियैक.   

स्कूलमे सब तरहक छात्र रहथि. मुदा, समाजक सब वर्गक नहि. छात्र सबमे सबसँ बेसी संख्या ब्राह्मण लोकनिक. किछु बनिया, कायस्थ, किओट-धानुक-अमात. मुदा, अनुसूचित जाति आ मुसलमानसँ एकोटा नहि. आइ ई आश्चर्यजनक लगैछ. मुदा, तहिया तं ओ समाजक रीति रहैक. कारण, उजान आ लगक गाम सबमे मुसलमानक टोल रहबे करैक, अनुसूचित जातिक लोक तं रहबे करथि. परिवार आ समुदायक भीतर वा राजनीतिक दल दिससँ बच्चाकें पढ़यबाक कोनो मुहिम केर अभाव एकर प्रमुख कारण छल. मिथिलांचल में सार्वजानिक शिक्षाक अभावमे  छुआछूतक योगदान सेहो रहैक. ओना के नहिं जनैत अछि, गरीब समुदायमे सबसँ बड़का प्राथमिकता भूखसँ लड़ैत प्राण बचयबाक रहैत छैक. तहिया सर्व शिक्षा (अभियान)क तं लोक नामो नहि सुनने छल. एतय कहैत चली जे, रूसमे निरक्षरता उन्मूलनक अभियान वर्ष 1920 मे आरम्भ भेल छल. ओहि अभियानमे ‘स्थानीयकरण’ वा मातृभाषाक प्रयोग पर बल रहैक. किन्तु, जे स्वतंत्र भारत विकासक अनेक प्रेरणा सोवियत रूससँ नेने छल, ओ स्वतंत्रताक आरंभिक दशकमे साक्षरता आ साक्षरता अभियानमे मातृभाषाक प्रयोग पर कनेको ध्यान नहि देलक. कारण केवल आर्थिक छलैक कि नहिं, ताहि पर मतभेद संभव. हमरा जनैत, साक्षरता तहियाक सरकारक प्राथमिकता नहि रहैक. असलमे हमरो लोकनिक प्राइवेट मिड्ल आ हाई स्कूलमे पढ़लहुँ.  शिक्षकक वेतन छात्रक फीसेसँ  अबनि. मिड्ल स्कूलक भूमिमे उपजल अन्न सेहो शिक्षक लोकनि अपना में पारिश्रमिक जकाँ बाँट-बखरा करथि ! हमरा जनैत स्वतंत्र भारतक ई पहिल बड़का चूक छल.

उजान मिड्ल स्कूलक अधिकतर छात्र अपन परिवारक पहिले पढ़ुआ रहथि. तें, घर परिवारमे पढ़ओनिहारक अभाव रहैक. गामहुमे शिक्षितक अभाव रहैक. पिछड़ा वर्गमे कदाचिते केओ साक्षर भेटिते. तें, गाम पर बहुत कमे विद्यार्थीके पढ़बयबला भेटनि. गाम पर शिक्षकक अभाव, ताहू पर गणित पढ़ओनिहारक अभावक अनुभव हमरो होइत छल.

अनुशासनक नाम पर स्कूलमे भयक वातावरण रहैक. क्लासमे विद्यार्थीकें भरि मुँह बाजल नहि होइक. शिक्षकसँ शंका-समाधानक वा पूछताछक साहस नहि होइक. फलतः, कमजोर विद्यार्थी आओर कमजोर होइत जाइत छल. ताहि पर आर्थिक विपन्नता. फीस नहिं जुरैक. तें जे छात्र फेल भेल, स्कूल छोड़ि दैत छल.

मास्टर लोकनिमे बलभद्र झा आ पण्डित बुद्धिनाथ मिश्र स्वभावसँ सहृदय रहथि. ओ लोकनि विद्यार्थीक शंका सुनबो करथिन.कने मने गप्पो कए लेथिन. हमरा लोकनि हुनकासँ  किछु समाधान पाबि ली. मुदा, कमजोर विद्यार्थीकें भय होइक; जं किछु पुछलिऐक आ उलटे जवाब देबय पड़ल तं परम पहपटि ! हेडमास्टर शक्तिनाथ ठाकुर (हरिबाबू) दण्ड देबामे इलाकामे नामी रहथि.यद्यपि, ओ ओतेक दण्ड देथिन नहि जतेक हुनक दण्डसँ  छात्रकें भय होइक. हं, अनुशासनमे ओ सख्त अवश्य रहथिन. हुनकासँ ककरो किछु पुछबाक साहस कदाचिते होइक. मुदा, हुनकर पढ़ाईसँ अंग्रेजीक वाक्यमे कर्ता आ कालक अनुसार क्रियाक दोषरहित प्रयोग तं हम सीखिए गेलहुँ. किन्तु, अधिकतर विद्यार्थी जेना-तेना अपन शंका अपनहि दूर करय आ अपने भरोसे आगू बढ़ैत छल.

पछिला पचास वर्षमे शिक्षा व्यवस्थामे निरंतर सरकारी ‘प्रयोग’  बहुतो ले पैघ अभिशाप सिद्ध भेलैक. 1965 ई.मे जखन हम छठम वर्गमे पहुँचहुँ बिहार सरकार सातवाँ वर्गमे बोर्ड परीक्षा आरंभ केलक. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति एहि परीक्षाक आयोजन करैत छल. स्कूल सब बोर्ड परीक्षाक पूर्व टेस्ट परीक्षा लैत रहैक. अधिकतर कमजोर विद्यार्थी टेस्ट परीक्षामे फेल भए जाइत छल. टेस्ट परीक्षामे फेल भेलहुँ तं बोर्ड परीक्षामे सम्मिलित हेबाक प्रश्ने नहि. तें मिड्ल बोर्ड परीक्षाक पूर्वक टेस्ट परीक्षा बहुतो विद्यार्थीक हेतु ई स्कूली शिक्षाक अंत साबित भेल. कारण, बूझब कठिन नहिं. बहुतो परिवार ले स्कूल फीस भारी छलैक. तखन जे फेल भेल ओकरा आगू के पढ़ाओत ! मुदा, जं ई विद्यार्थी लोकनि टेस्ट-परीक्षाक परिणामक आधार पर नहि रोकल जैतथि तं अवश्ये बहुतो हाई स्कूल धरि पहुँचिए जैतथि. कारण, बोर्ड परीक्षामे तहियो चोरि होइते रहैक.

पछाति, जे  विद्यार्थी बोर्ड परीक्षामे फेल भेलाह ओहो लोकनि पढ़ाई छोड़ि खेती-किसानी, पारिवारिक धंधा वा मज़दूरीमे लागि गेलाह. अस्तु, मिड्ल स्कूलक बोर्ड परीक्षा छात्रक भविष्यमे बड़का रोड़ा साबित भेल. हमरा नहि लगैए हमर सातवाँ क्लासक गोड़ पचासेक छात्र म सँ दसटासँ बेसी विद्यार्थी हाई स्कूल पहुँचल हेताह.

उजान स्कूल एकटा बैरकनुमा भवनमे रहैक. स्कूलक आगू छोट-सन अंगनै. खेलयबाक फील्ड नहि. मास्टर लोकनि टिफिन ब्रेकमे स्टाफ रूम- ऑफिसक कोठलीकें भीतरसँ बन्द कए ताश खेलाइत रहथि. विद्यार्थी सब जहिं-तंहि टॉआइत रहैत छलाह. स्कूलमे बाथरूम-टॉयलेट नहि रहैक. निवृत्ति हेबा ले विद्यार्थी आ शिक्षक ‘नदी दिस’ , ‘पोखरि दिस’ जाइत रहथि. स्कूलक पछुआड़ोमे पोखरि रहैक.  प्रत्येक वर्गमे कुल दू-तीन टा छात्रा छलीह. आब अनुभव होइए, कन्या सबकें कतेक असुविधा होइत छल हेतनि. मुदा, एतबा अवश्य जे जन्मसँ ‘नदी दिस’ , ‘पोखरि दिस’ जयबाक परंपराक कारणें ककरो ई कदाचिते अनुभव होइत रहैक जे जहिं-तंहि लघी-नदीसँ वातावरण आ जनस्वास्थ्य कतेक अहित होइत छलैक. आश्चर्य होइछ, इंग्लॅण्डमे शिक्षित, वकील-डाक्टर-इन्जिनीयर राजनेता लोकनि आ स्वतंत्र भारतक निर्माता लोकनि अनिवार्य शिक्षा आ जनस्वास्थ्यक सरल सुलभ आ सस्त तरीका तकबालए कोनो अनुसन्धानक प्रेरक किएक नहि बनलाह. जनताक उन्नतिक लेल आवश्यक एहि आधारभूत आवश्यकताके ओ लोकनि सामाजिक उन्नतिक लेल प्रस्थान भूमि किएक नहि बनओलनि.

आइओ जखन समाजमे रोग, हिंसा, गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता, जनसंख्याक असीमित प्रसार देखैत छियैक तं सभक जड़िमे एकेटा विकृति-अशिक्षा-देखि पबैत छी; समाधान गुणात्मक शिक्षाक प्रसारे बूझि पड़ैछ. किन्तु, से सुलभ कहाँ !             

 

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