Thursday, August 26, 2010

हे, माता-पिता; हे,पितर

माताक स्मृतिक पर्व - मातृनवमी
आई सिन्धु चरणतल,
पितृपक्षक तर्पणक बेर
सियोकक कछेर में ,
छी  पितामहक तिथि दिन नुब्राक उद्गम लग .
यायावरी व्यवसाय आ घुमक्कड़ प्रवृत्ति !
शत्रुदमन सेनाक अनुगमन
आ रोगहरणक   वृत्ति !
हे ,माता , पिता , आ पितर
कतय करू ? अहाँक प्रति जल तर्पण !
कतय, ब्राह्मण भोजन ?
कतय, वर्षी-पार्वण ?
वैश्वीकरण-भूमंडलीकरणक बिहाडि में ,
आब नित्तः मनाओल जाइछ,
फादर'स, मदर'स आ नहि  जानि कोन-कोन दिन !
वृद्धाश्रम आ अनाथाश्रम में -
एकाकी जीवनक अभिशापक बंधन में ओझरायल ,
हताश मानव अस्थिपंजर ले ओहि दिन मात्र -
एक गफ्फी फूलक कोंढ़ी,
एकटा केक, एक डिब्बा  मिठगर बिस्कुट !
मुदा, साल भरिक तिक्त जीवन ,
आ एकाकीपनक खटास , कहाँ मेटा पबैत छैक एहि वार्षिक अर्घ्य सँ-
जे अन्हरिया में औनाइत वर्ष में होइछ ,
सुदुक क्षणिक बिजलोका जकां !
तें , हे माता ,
ने मातृनवमी में ब्राह्मण भोजन ,
 ने पितृपक्ष में तर्पण हे, पिता ,
ने सुखरात्रि में उर्ध्व मुख ऊक हे , पितर !
मुदा ,
क्षण , पल, दिन, राति, प्रति निमेष,
हमर शरीरक प्रत्येक रोम ,शिरा,कोशिकाक स्पंदन , आ आन्दोलन
थिक अहिंक स्मृतिक निरंतर आवृत्ति !

                                                                                            लद्दाख, १८.१०.२००४

Sunday, August 22, 2010

एतनी टा जान आ एतेक ज्ञान *

( ई बाल कथा हमर दौहित्र तन्मय ले छनि. आओर नेना लोकनिकें जं नीक लागनि त हमरा आओर संतोष हयत )
ई कथा डूगीक थिकैक . डूगी एकटा तेजगर आ होशियार कुकुर छल .हमरा लोकनि ओकरा बड़ स्नेह सं पोसने रही.
एकबेर हमरा लोकनिक ओतय बहुत गोटे आयल रहथि. कनेक ठंढाक समय रहै.केओ एकगोटे हमरा लोकनिक एकटा ओढ़ना ओढ़ि नेने रहथिन .डूगी के ई नीक नै लगलइ ; कुकुरक नाक आ कान बड़ तेज होइत छै. ओही स ओ अपन बस्तु- जात चीन्है छै. तें , डूगी अपना घरक ओढ़ना दांत सं झीकय लगलई. पहिने त लोक के बुझै में नहिं एलई .मुदा, जखन नानी ओतय एली त  हुनका हंसी लागि गेलनि; ओ गप्प बूझि गेलखिन .
पछाति, जखन सब बुझलकई जे डूगी अप्पन-आन बुझै छै तं सब के मुंह सं एकेबेर बहरेलई , एतनी टा जान आ एतेक ज्ञान.

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