Saturday, April 22, 2023

समाङ (लघु कथा) : विश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष ( पुनर्प्रकाशन )

समाङ

अपन बाड़ीमे, विशाल सिनुरिया आमक गाछक ठाम पैघ खाधि देखि कय दुखमोचनकें तेहने पीड़ाक अनुभव भेलनि , जेहन पीड़ा लोककें कोनो आप्त व्यक्ति क साराक नव माटिपर रोपल तुलसिक गाछ देखिकय होइत छैक. कतय चल गेलैक विशाल , चतरल आमक गाछ , ओकर सघन छाया आ बसातक तरंगपर हिलकोरैत डारि ? सिनुरिया आमक गाछक वार्षिक जीवन-चक्र , नान्हिएटा सं दुखमोचनले ऋतु-परिवर्तन , आनन्द-उल्लास , आशा-निराशाक कारण बनैत छलनि .   गाममे वसंत ऋतुक आगमनक सूचना सिनुरिया आमक मज्जरे दैत छलैक . सरस्वतीक पूजा हेतनि , पूजामें मज्जर हेबेक-टा चाही , विहित छै . मुदा भेटत कतय ? सब वर्ष , दुखमोचने अपन गाछक नमरल डारिसं चोरा-नुका कय मज्जर तोडि संस्कृत पाठशालापर पहुँचबैत छलाह . केओ चेतन देखितथिन , दमसबितथिन - हां, हां , सबटा मज्जरे  उजाडि लेबै तं आम कतयसँ  फड़तै ? मुदा दुखमोचन ले धनि सन !आखिर भक्तिक सवाल रहै , गुरु आ सरस्वती दुनूक .गुरूक इच्छा शिष्यक कर्तव्य . सरस्वतीक  पूजा विद्यार्थीक धर्म .                                

सुन्नबाड़ी आ भकोभंड अंगनाक कोनटा लग दुखमोचन अकस्मात ठमकि गेलाह, आ ओत्तहिसँ चारुकात अखियासैत , एखुनका दृश्यकें  अपन बाल्यकालक स्मृतिसँ पर-दर-परत मिलबय लगलाह . अंगनाक पछ्बरिया-उतरबरिया कोनटा लगक दड़िम्मा लतामक गाछ . पछ्बरिया बाड़ीक शरीफा सबहक गाछ , आ दलानपर आमक गाछपर लतरैत , पानक अजस्र लत्ती . सबटा तं बिला गेल छलैक . मुदा तें की ? गाममे आओर बहुत किछु तं बदलि चुकल छलैक. माय-दादा, लाल काका ,काकी लोकनि , आ किछु संगी-साथीसब  सेहो .केओ गाम छोडि देलनि , केओ दिवंगत भए गेलाह . मुदा सब किछु दुखमोचनकें मोने छनि . मुदा, एतेक दिनक पछातिओ सिनुरिया आमक गाछक ठाम खाधि देखिकय जतेक विस्मय आ कचोटक अनुभव भेलनि-ए , ततेक कथूसँ नहि .सिनुरिया आमक गाढ़ हरियर रंग आ नकुब्बा आकृति , पकैत कालक , ओकर उपरका दिसुका सिनुरिया लाली आ पेन  दिस, सरिसबक दाना सन पीयर रंगमे मिझड़ायल हरियरी , जखन दुखमोचनकें मोन पड़लनि तं लगलनि , जेना सुपक्क सिनुरिया आमक एक कतरा अनायासे केओ खोआ देने होइनि . मुदा, से तं स्मरण मात्रे छलनि ; सत्य छलैक , सिनुरिया आमक गाछक ठाम मुँह बओने खाधि ! तथापि ,दुखमोचन मोने-मोन सोचय लगलाह , ओ तं सिनुरिया आमक गाछ छलैक , परिवारकसमाङतं नहिं .तखनि कथीक पीड़ा ? आखिर , मनुष्यो तं एक दिन मरिए जाइछ . तहिना गाछ-वृक्षहु तं  सुखाइत अछि , खसि पड़ैत अछि , कदाचित ओहिपर ठनका खसि पड़ैत छैक . अक्तेको वर्ष भ’ गेलैक , दुखमोचन सिनुरिया आमक एको कतरा कहाँ खेलनि-ए . गामोमें कतेको तं चिन्हल जानल , परिचित गाछ छलै - आमक गाछ , बड़क गाछ ,पाकडिक गाछ , पीपरक गाछ . जेना , उलुआ पाकडि. बाटक कातेमें तं रहैक . ओकर छाहरि में कतेक बैसाड आ बात-विचार भेल हेतैक . मुदा कतय गेलै ककरा मोन छै ? ठेंगीझा गाछीक लडूबबा , नकुब्बा ,केरबी , मिश्री भोग , बम्मैया ,धुमनाहा , पीरी ,सुरसुरहा , सब तं कटि गेलैक . बड़की नरै में ट्रेक्टर चलइए . भोलीबाबूक गाछी आब ओही गृहस्थ सब टाकें मोन छनि जनिकर ओतय खेत-पथार छनि .बोनही गाछीक नाम , टोल-पड़ोसक मौगीसब श्रापे टा दैले लैछ ; 'बोनही गाछीमें डाहि एबै'. आब गाममें तकनहु , जर्दालू , दोफसिला , राढ़ी , कतिकी , सीपिया, सुकुल कतय पाबी ? सब बिला गेलै.

कमला कातक बड़का तेतरिक गाछ .जेठ बैसाखक रौदमें कतेक हरबाह -चरबाह आ इसकुलियासब तेतरिक छायामें सुस्ताइत छल . तेतरिक गाछकें कमलाक धार बहाकय ल गेलीह कि केओ काटिकय डाहि-जारि लेलक , ककरा मोन छै !कतय गेलैक बन-बहेड़क गाछ सब ? कतय गेल बकुलक गाछ ? अंगनाक कोनटा लग ठाढ़े-ठाढ़ दुखमोचनकें मनकथा लागि गेलनि . सोचय  लगलाह , सिनुरिया आमक गाछसँ हमर कोन सम्बन्ध ? मनुक्खक संग तं सोणितक सम्बन्ध होइत छैक , सामाजिक सम्बन्ध होइत छैक , दोस्ती-दुश्मनी होइत छैक , कुटमैती होइत छैक . मुदा ई कोन सम्बन्ध थिक जे आमक गाछ्ले हमरा उद्वेग लागि रहल-ए; आ हम एना व्याकुल भए रहल छी .

टखने मोन पड़लखिन दिवंगत माता , आ हुनकर काग-भुसुंडी ! माय कहने रहथिन , एकटा कुआ , नित्तः चूल्हि में पजार पडिते ओसरापर आबिकए बैसि जाइत छलनि . माता , संल चिक्कसक एकटा लोइया उठाकय ओसाराक कगनी पर राखि दैत छलखिन . कौआ चिक्कसक लोइयाकें लोल में लैत छल आ उड़ि जाइत छल . भोर आ साँझ, नित्तह  एके बानि . कतेक वर्षक पछाति , एकाएक , ओहि कौआक आयब बन्न भ गेलनि . नहि जानि , कतेक दिन धरि माता कें कौआक उद्वेग लगनि . माय कहने रहथिन , ' बौआ , एकठाम रहने , चिड़ै-चुनमुनी सेहो चिन्हार भए जाइत छैक .सीता बौआसिन कहने रहथि, भनसा घरक चारक मधुमाछिक छत्ता सेहो हुनकर पड़ोसिया भए  गेल रहनि . मधुमासक पछाति जखन कड़ोडिया सब , छत्ता काटिकय मधु निकालि दैत छलनि आ मधुमाछीसब जहिं -तहिं , दहो -दिस उडि जाइत छलै तं बौआसिनकें कछ्मछी होमय लगैत छलनि . तें पछाति ओ ककरो मधुमाछिक छत्ता काटय नहि देथिन .

दुखमोचनकें , क्रमशः , आब अपन कछ्मछीक उत्तर भेटि रहल  छनि .                   

एक वर्ष, जखन दुखमोचन छोटे रहथि , बाडिक सिनुरिया आमक गाछ खूब मजरल रहै. सबहक मोनमे उत्साह ; खूब आम फड़त. फडबो कलै. अजस्र . मुदा बशाखहिं मासमें तेहन ने पानि -बिहाडि-बिजलोका भेलै , आ पाथर खसलैक जे गाछकें टिकुले झाड़ि कय सुन्न कए देलकै. ओहि बरखा बिहाडिक पछाति सिनुरिया आमक गाछतर झडल टिकुलाक पथार लागि गेल रहै .दुखमोचन तहिया नेने रहथि .भोरे उठलाह तं अनायास , गाछतर टिकुलाक पथार देखिकय मोन हुलसि उठलनि . कहलखिन - माय , कतेक आम ! माय कहलखिन - बस , भ’ गेल . खेबा ले आब किछु नहि रहलह . की पकतै, आ की खयबह ! मायक गप्प सुनिते , दुखमोचन हँसिते , हँसिते कानय लागल रहथि . माय कहलखिन -'बताह छह ! ने पोखरि कहियो माछसं सुन्न होइत छैक , आ ने आमक गाछ आमसँ . किछु फल तं हेबे करतै .

-सत्ते ?

-सरिपहुं .

दुखमोचनक लटकल मुँहपर क्षणहि में मुसुकी छिटकि आयल रहनि , जेना, घनगर मेघक बीच एकाएक रौद आबि गेल होइ . कहलखिन - ' माय, तखन तं काल्हि मचकी अबस्से लगेबै. मुदा गाछक नीचाक जंगल तं छिलबहि पड़तउ . माय कहलखिन -' बड बढ़िया . मुदा एखन चंग नहि करह .'

किछुए दिनक पछाति आर्द्रा नक्षत्रमें  भगवतीक पातडि पड़ल छलनि . सब केओ भरि-पेट खीर सरपेटि कय दुपहरियामें लोट-पोट करैत छलाह . मुदा, दुखमोचनक आँखिमे निन्न कतय ! सिनुरिया गाछक डारि आ मचकीएमे जान बसैत छलनि . अकस्मात , भट-दए  एकटा आम खसलै. बिछल आम हाथमें नेने माय लग दौगलाह - 'माय आम काटि दे .'

माय कहलखिन- 'किन्नहु नहि . कौआक खोधल आम कतौ खाइ .' दुखमोचनकें मन पड़ैत छनि, अपन मुँह लटकि गेल रहनि . माय बूझि गेल रहथिन .कहलखिन- 'बताह छह ! ख़ुशीक गप्प बुझलहक ? '

-की ?

-'सिनुरिया आम पाकब शुरू भ गेलै !हप्ता-दस दिन में भरखरि भ’ जेतैक . कतेक खेबह !'

-सत्ते ?

-तं, की ! आ दुखमोचन हाथक आमकें ओसारहि पर छोड़ि  , दोस्त-महिमक हाक पर , खेलेबाले भागि गेल रहथि . दुखमोचनकें सबटा मोने छनि. दूसरा वर्गमे पढ़इत रहथि . हिन्दीक पोथीमे एकटा पाठ  रहै , 'पेड़-पौधे भी हँसते-रोते हैं '. दुखमोचन स्कूल सं घूरिकय अयलाह  तं मायकें पुछलखिन - 'माय, सत्ते गछो-बिरिछ कनै-हँसै छैक ?'

-त !

-तखन लोक गाछ बिरिछ किएक कटै छै ?

-की करतै ? जारनि-काठी तं चाहियै. लोक घरो-घरहट कोना करत ? मुदा गाछ कटैमें लोककें मात्सर्य तं लगिते छैक . देखै नै छहक ,गाछ कटबासँ पहिने कुड़हरिबाह सब गाछकें गोड लगैत छैक . बड-पीपर तर लोक पूजा करैये. बड-पीपर-पाकडि-धात्रीक जारनि नहि डाहइए .असलमे गाछो-वृक्ष तं मनुक्खेक भाई-बहिन थिकै; ओकरे बालें तं लोक जिबैये .

दुखमोचनकें भेल रहनि माय बेजाय तं नहि कहैये . कहलखिन , 'तखन तं हमहूँ जे सिनुरिया आमक डारिमे मचकी लगौने छियैक तहू सं गाछक डारि कनकनाइत हेतै ? मायकें हँसी लागि गेल रहनि . कहलखिन -'नहि .तों नेना छह , फूल सन  हल्लुक. हमरा कान्हपर चढ़इत छह तं हमरा नीके लगइए किने.' दुखमोचन कहलखिन- 'तं , कन्हापर चढ़ा ले.' आ स्वयं छरपि कए मायक कान्हपर चढ़ि गेल रहथि .

अंगनाक कोनटालग  ठाढ़े-ठाढ़ , दुखमोचनक स्मृतिक जेना एकाएक खूजि गेल रहनि . मोन पड़लनि , जेना-जेना अपने बढ़इत आ पढ़इत आगू बढ़इत गेलाह , सिनुरिया आमक गाछ बुढ़ाइत गेल छलै . ताहि परसँ बरखे-बरख कमलाक बाढ़ि गाछक सिरसबकें जगा जाइत छलै . पहिलुका गुदगर सिनुरिया आम , आब, ढेर सोनाः होमय लागल छलै. तखन फेर जखन काज करतेबता होइक , जारनिक काज होइक , तं सबसँ लग तं सिनुरियेक गाछ . एक डारि काटि लाउ ; आमक जारनि काँचहु जरैत छैक . फलतः , गाछ ठूठ होइत गेलै आ फल थोड़ .सिनुरिया आम गाछ जेना गामक कोनो बुढ़ा होथि ; बेर-बेगरतामे आवश्यक, मुदा, मोटा-मोटी अकार्यक ! क्रमशः दुखमोचनकें गाम छूटि गेलनि . दोस्त-मित्र ,काकी-भौजी , बहिन-भाइक प्रीति जकाँ सिनुरिया आमक फल सेहो बिसरैत गेलनि . पछाति , भाइ-भैयारीमे जखन डीह-डाबरक बंटवारा भेलनि तं ककरो हिस्सामे कटहरक गाछ पड़लै तं ककरो शीशो-जामु . दाड़िम-नेबो-लताम तं सुन्न अंगनासँ लोक पहिनहि उजाड़ि नेने रहैक . सिनुरिया आमक गाछ भले किनको हिस्सामे पड़ल छलनि , दुखमोचन कतेक बेर मोनहिं-मोन निआरने हेताह , एक बेर , नवगछुली कलमबाग़क आम खयबाक लाथे गरमी छुट्टीमे अपन सन्तान लोकनिकें गाम अनताह . सिनुरिया आमक गाछतरक जंगल छिलाकय , मचकी लगबौताह आ शहरू धिया-पुताकें आमक गाछक डारिसँ मचकी झुलौताह आ कहथिन -' देखह, सिनुरिया आमक डारि आ मचकी . मुदा , से नेआर कहियो सफल नहि भए सकलनि.

एहिबेर कतेक वर्षक पछाति , संयोगहिसँ , गाम अयलाहे तं खाधि देखिकय क्षुब्ध भए गेलाह . पयर लोथ भए  गेलनि . सुन्न अंगनाक दरबज्जापर मोटरगाड़ी लागल देखि पड़ोसिया कुशेश्वर अंगना पैसि आयल छलाह .दुखमोचनकें एकहि ठाम ठमकल देखि पाछूसँ हाक देलखिन - 'दुखमोचनजी ?'

दुखमोचन पाछू उनटिकय  देखलथिन तं बाल-सखा कुशेश्वर ठाढ़ रहथिन . दुखमोचनक मुँहसँ हठात्  प्रश्ने बहरयलनि - ' सिनुरिया आमक गाछ कटि गेलै ? कतेक मचकी झुलइत रही, कतेक आम बीछैत रही हमरा लोकनि .'

-'हँ , ठूठ गाछ , हद्दे बुढ़ा गेल रहै . दू-चारि टा फड़ितो छलैक तं सुरुंग पर . ताहिपर मारि घोड़नकेर छत्ता . के चढ़त, आ के तोड़त आम . बौआ कहै छलाह जे ऐ गाछमे जे किछु फड़ितो छलैक , कौए-लुक्खीकें पटि होइत छलै . आब तं , की कहू , कुम्हारो गाछ नहि चढ़इत छै . हमर अपन आमक गाछ सबपर जहत्तर-पहत्तर बाँझी छारि देने छै . मुदा, कटैले केओ तैयार नहि . पहिने तं कुम्हारसब बाँझी कटैले ओदौद करैत रहै छलैए . मुदा आब तं बोनियोपर केओ तैयार नहि हयत .आब तं किछु नहि रहलै पहिने जकाँ . कुशेश्वर जखन सब किछु कहि  गेलाह तं दुखमोचन बजलाह - से तं ठीके . मुदा सिनुरिया आमक गाछ तं हमरा लोकनिक बाल-सखा छल , बूढ़-पुरान आ घरक समाङ जकाँ छल . नेनपनक कतेक गप्प सुनने हयत , आ कतेक रहस्य-रोमांचक सहभागी छल .'

-ठीके. मुदा से आब लोक सोचतै तं लोककें पार लगतै . देखै नै छियैक , बड़का छौ-लेन रोड, हनुमानी मिसरक पोखरि तं भरिए देलकैक संगहि नरनाथबाबूक कलम कें सेहो गीड़ि  गेलै. आ गाछ-बिरिछक कोन छै. जखन मनुक्खेक जीवनक कोनो ठेकान नहि, तखन गाछ-बिरिछले  लोक कतेक झखत. मूड़ी उठायक दुखमोचन , कुशेश्वर मुँह दिस दृष्टि घुमौलनि तं भेलनि जेना अनचिन्हार मनुक्खक मुँहे कोनो अनटोटल गप्प सुनि रहल होथि .मुदा, कुशेश्वर निर्विकार भावें , भावशून्य जकाँ गप्प द’ रहल छलाह. 

साभार: मिथिला दर्शन, कोलकाता   

  

Wednesday, April 5, 2023

मणिमेखलै महाकाव्य: मादवि आ मणिमेखलैक असमाप्त कथाक समापन

 

मणिमेखलै महाकाव्य  

मादवि आ मणिमेखलै

तमिल महाकाव्य शिलापत्तिकारम् मे वर्णित कन्नगी कोवलनक कथा दुखान्त छैक. किन्तु, कन्नगीक चरित्र समाज मे हुनका देवी बना देलकनि. वणिक् कवि सत्तनसँ कन्नगीक जीवन-वृत्त सुनि, सर्वप्रथम सम्राट् सेंगुट्टवन हिमालय प्रदेशसँ पाथर आनि कन्नगीक मूर्ति बनबओलनि आ एक भव्य मंदिर मे ओकर स्थापना केलनि. पछाति आनो ठाम हुनक प्रतिमा स्थापित भेल, मन्दिर बनल. ई सिलसिला एखनो धरि जारी अछि. फलतः, तमिल जनमानस मे कन्नगीक चरित्रक एक स्थायी स्थान बना लेलक आ कन्नगी सत्ताक विरुद्ध नारी विद्रोहक अग्रदूत जकाँ समादृत होइत छथि. मुदा, विख्यात कलापारंगत  मादवि? मादवि, कन्नगी-कोवलन आ काड़ाक कथा मे मुख्य पात्र जकाँ अबैत तं छथि, मुदा, अनेक अर्थ मे उदात्त चरित होइतो काड़ाक कथाक अंतक संगहि ओ कथा-पटल परसँ लुप्त भए जाइत छथि.

सत्यतः, कन्नगी-कोवलनक कथाक संग ने मादविक जीवनक अंत होइत छनि आ ने हुनक कथाक अंत. तखन मादविक की भेलनि ? मादवि आ कोवलन कन्या- मणिमेखलै-क की भेलनि? एहि सब विषयक उद्घाटन होइछ मणिमेखलै नामक काव्य ग्रन्थ मे. असल मे मादविक असमाप्त कथा पुनः एही काव्य ग्रन्थ मे अभरैत अछि. आ ओतय मादवि अभरिते टा नहि छथि, बल्कि, मणिमेखलै महाकाव्यहि मे  मादवि आ मणिमेखलैक कथाक समापन होइछ. मणिमेखलै महाकाव्य मे मणिमेखलै प्रथमतः आ मादवि पुनः उदात्त चरित्रक रूपमें उगैत छथि, जकर समानांतर कथा सुदूर वैशालीमे, आम्रपालीक जीवनमे देखबा मे अबैछ. तथापि, आम्रपाली आ मादवि आख्यानक बीच कोनो एकटा अंतर नहि. दुनूक बीच अनेक शताब्दीक  दीर्घ कालखण्ड  छैक. मुदा, समयक दीर्घ अंतराल, समाज पर महात्मा बुद्धक प्रभावकें निष्क्रिय नहि कए पबैछ. अस्तु, कन्या मणिमेखलैक कथा  मूलतः मणिमेखलैक आ  मादवि जीवनक असमाप्त कथाक अगिला कड़ी थिक, जाहि मे महात्मा बुद्ध केर शिक्षासँ प्रभावित भए दुनू माए-बेटी अपन आगूक मार्गकें कोना सार्थकता प्रदान करैत छथि तकर रोचक कथा छैक. ई कथा कोवलन-कन्नगीक कथासँ एको मिसिया कम रोचक नहि.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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