Tuesday, October 5, 2021

सरल चित्रांकित बाल-साहित्यक प्रकाशन मैथिलीक हेतु संजीवनी भए सकैछ

 

  

वैज्ञानिक योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’ मैथिली कें ‘बिनु जड़िक गाछ’ कहैत छथि. कारण, अजुका पीढ़ीक बेसी गोटे मैथिली पढ़िए नहिं सकैत छथि; ‘छात्र कें मैथिली पढ़बाक आ लिखबाक अवसर हाई स्कूल में जा कए भेटैत छैक, सेहो मातृभाषाक रूप मे नहिं, बल्कि वैकल्पिक भाषाक रूप  मे.’  एहन परिस्थिति में नव पीढ़ी मे  मैथिली पढ़बाक रूचि कोना जगाओल जाय, मैथिलीक पाठक वर्ग कोना तैयार करी ताही विषय पर एतय विचार करैत छी.

सर्वविदित अछि, मातृभाषा मैथिलीक माध्यमे शिक्षा एकटा राजनैतिक निर्णय थिक, जाहि पर हमरा अहाँ कें कोनो नियंत्रण नहिं. ऊपरसँ भाषाक ‘वर्चस्व आ मैथिली ‘साम्राज्यवादक’ विवाद अन्ततः मातृभाषा मैथिलीक माध्यमसँ पढ़ाईक विषय कें कतय ल’ जायत, कहब असंभव. तें, एखनुका चर्चा कें हम ओहिसँ फूटे रखैत छी.

निर्विवाद मैथिलीक पाठक वर्ग तैयार करबाक हेतु कोनो एकटा अचूक नुस्खा नहिं. मुदा, एहि विषय में एखन हम किछु समकालीन अनुसन्धानक निष्कर्ष प्रस्तुत कए अपन विचार प्रस्तुत करैत छी.

सिंगापुरसँ प्रकाशित ‘रीडिंग होराइजन्स’ नामक एक पत्रिकाक 2018 क एक अंक मे ‘Leisure reading behaviour of young children in Singapore’ नामक एकटा अनुसन्धान प्रकाशित भेल छल.1 धिया-पुता की पढ़य चाहैत अछि, कोना पढ़इत अछि, पढ़बाक ओकर रूचि कें कोन-कोन प्रभाव स्वरुप दैत छैक इत्यादि एहि अनुसंधानक मोट-मोट विन्दु थिक. एहि सबहक अतिरिक्त खाली समय मे पढ़बाक (leisure reading क) कारण, प्रेरणा, रूचिक विषय, आ पढ़बा मे बाधा एहि अनुसंधानक आन-आन विन्दु थिकैक. आंकड़ाक संकलन एकटा निर्धारित प्रश्नोत्तरी पर कएल गेल छल जाहि में  6-12 वर्षक करीब अढ़ाई सौ नेनासँ सम्मिलित भेल रहथि.  

एहि अनुसन्धानक  अनुसार अधिकतर नेना रहस्य-रोमांच, हास्य-विनोद, जीव-जन्तुक कथा पिहानी आ साहस-शौर्य विषयक पोथी कें फ़ुरसति मे पढ़बाक हेतु चुनैत छथि. पढ़बामे इबुक आ ऑडियो बुकक बनिस्बत छपल पोथी (print-book) बच्चा  लोकनिकें बेसी नीक लगैत छनि. मुदा, leisure reading मे सेहो मातृभाषाक पोथी मारि खा जाइछ ; जहां 70 प्रतिशतसँ बेसी नेना पढ़बा ले अंग्रेजीक पोथी चुनैत छथि, मातृभाषा पढ़निहारक संख्या केवल 20 % धरि पहुँचैत अछि.

मुदा, एहि अनुसन्धानक जाहि बिंदु कें हम रेखंकित करय चाहैत छी ओ पोथीक चुनावसँ  सम्बन्धित अछि. जतय करीब साठि प्रतिशत नेना विषय वस्तुक आधार पर पोथीक चुनाव स्वीकार केलनि, ओत्तहि करीब चालीस प्रतिशत नेना केवल पुस्तकक नामक आधार पर पुस्तकक चुनाव करबाक गप्प गछलनि. ततबे नहिं, करीब एक तिहाई नेना पोथीक भीतरक  रंगीन चित्रकला आ पढ़बामें सरलताक आधार पर पोथी चुनैत छथि, से स्वीकार कयलनि.

एहि अनुसन्धान में लेखक लोकनि एहू तथ्यकें उजागर कयलनिए जे जीविकाक हेतु माता-पिताक स्थान परिवर्तनक कारण नेनाक मातृभाषाक बुझबाक आ पढ़बाक दक्षता कें प्रतिकूल रूपें प्रभावित केलकैक अछि, ओकर पढ़बाक क्षमता में ह्रास भेलैए. मातृभाषाक पोथीक उपलब्धता सेहो बड़का समस्या छैके. मुदा, ताहूसँ बेसी कठिन छैक एहन पोथीक उपलब्धता जकर भाषा सरल आ सुगम होइ, आकार छोट होइक, विषय रोचक होइक, आ शब्दाबली सीमित होइक. आब जं मैथिलीभाषी नेनाक स्थितिक गप्प करी तं सर्वविदित अछि, मैथिली में नेनाक रुचिक पोथी सुलभ नहिं छैक. चित्रांकित पोथी, सरल छोट-छोट कथा, नेनाक रुचिक रहस्य रोमांच आ साहस-शौर्यक एहन कथा नेनाक कल्पनाकें आकाश मे उड़ाबय तकर मैथिली में सर्वथा अभाव छैक. स्व. मणिपद्मक ‘भारतीक बिलाड़ि’  लेफ्टिनेंट कर्नल मायानाथ झाक ‘इजोत’ आ ‘ जकर नारि चतुर होइक’ मन पड़ैछ. रहस्य-रोमांच में योगेन्द्र पाठक ‘वियोगीक उड़न छू गोला’ नवीनतम आ उत्कृष्ट योगदान थिक. किन्तु, चित्रांकित बाल-साहित्य तं मैथिली में विरले भेटत. हमरा लोकनि सुनने छी जे हरिमोहन झाक कथा पढ़बाले बहुतो गोटे  मैथिली पढ़ब सिखने रहथि. अस्तु, कोन ठेकान, रोचक कथा, आकर्षक चित्र आ सरल भाषासँ आकृष्ट भए भूमण्डलीकरण एहि युग में सुदूर महानगर में बसैत मैथिल नेना सेहो मैथिली पढ़बा ले आकृष्ट हो. तें, हमरा जनैत मैथिली में सरल आ चित्रित बाल-साहित्यक प्रकाशनक आवश्यकता छैक.

ततबे नहिं, पढ़बाक रुचिक विकास मे माता-पिताक, शिक्षकक आ  संगी-साथीक  प्रेरणा, समयक उपलब्धताक योगदान सेहो छैक. किछु माता पिता जे बच्चा के बड्ड छोटे वयससँ पोथी पढ़ि कय सुनबैत छथिन, कथा-चित्र देखबैत छथिन ओहि म सँ  अधिकतर नेना कें छोटे वयससँ  पोथी पढ़बा में रूचि जागि जाइत छैक. तें जं एहि वयस में नेना कें मातृभाषा में कथा-पिहानी सुनबाक अवसर भेटैक, मातृभाषाक चित्र-कथा देखबाक अवसर भेटैक तं पछाति मातृभाषा पढ़ब निर्विवाद सुलभ भ’ जेतैक.  हं एहि में माता-पिताक संकल्प, प्रेरणा आ योगदान चाहियैकक. मुदा, एहि सब प्रयाससँ जं हमरा लोकनि आगामी पीढ़ी में मैथिली पाठकक संख्या में किछुओ वृद्धि कए सकी तं मैथिली कें बंचयबा दिशा में एकटा ई सार्थक प्रयास हयत.

 

1. Majid, S. (2018). Leisure Reading Behaviour of Young Children in Singapore. Reading Horizons: A Journal of Literacy and Language Arts, 57 (2). Retrieved from https://scholarworks.wmich.edu/reading_horizons/vol57/iss2/5

Monday, October 4, 2021

ओ बाबू भोजन नहिं ने मंगैत छथिन !

    1

कुञ्ज बिहारी बाबू आब बेस बृद्ध भए गेल छथि. जहिया धरि देह में पैरुख छलनि, जाधरि दिन में एक बेर भरि गामक फेरा नहिं लगा अबैत छलाह, नीक जकां अन्न नहिं पचनि. आब ठेहुन कज्जी भए गेल छनि, तें बेसी काल, दिन दलाने पर बिछाओने पर बितबैत छथि.

चिक्कन-चुनमुन कोठली, सीमेंटक फ्लोर नित्य चक-चक क’ कए पोछ्ल जाइछ. कोठलीक एक भाग उंचगर पलंग पर बिछाओल उज्जर दप-दप चद्दरि पर कुञ्जबिहारी बाबू पड़ल छथि. शरीर घटने जे अशक्तता आ उपेक्षाक बोध  होइत छनि, से चेहरापर घनीभूत भेल छनि.

आइ कतेक दिन पर दीनानाथ, कुञ्जबिहारी बाबूक पुत्र मणिनाथसँ भेट करए अयलाह तं हुनकर नजरि देबाल पर टांगल बुढ़ाक फोटो पर पड़लनि. एगारह गुणा चौदह इंचक भरिगर फ्रेम में कुञ्जबिहारी बाबूक भव्य स्वेतश्याम फोटोसँ  अप्रतिम आभा टपकि रहल छलनि.

फोटो देखि दीनानाथकें मणिनाथक प्रति असीम श्रद्धाक भाव जागि उठलनि. फोटोक प्रशंसा करैत कहय लगलखिन: बाबा,अहाँक ई फोटो बहुत दिन पहिनेक हयत ने ? ‘हूं.’ – कुञ्जबिहारी बाबू अन्यमनस्कतासँ  कहलथिन.

-‘सएह देखियौक मणिनाथ कहन जोगा कए रखने छथि. लगैए, आइए फ्रेम चढ़ाओल गेलैए !

दीनानाथक प्रशंसा सुनि बुढ़ाक माथ तबि गेलनि. कहलखिन, ठीके किने. ओ बाबू  भोजन नहिं ने मंगैत छथिन !

दीनानाथक मुँह अपन सन भए गेलनि.    

2

दादी  रहैत छथि ‘मोबाइल फ़ोन में !

जहियासँ बौआ बाजब सिखलनि, दादा-दादी कें प्रतिदिन हुनकासँ मोबाइल फ़ोन पर देखा-देखी होइत छनि. किछु-किछु गप्प सेहो होइत छनि. कहियो ओ कोनो कथा आ कविता सेहो सुनबैत छथिन. आब हुनका अपन नाम-गाम, माता-पिताक नाम सेहो आबि गेलनि-ए. दादी पुछैत छथिन:

-‘अहाँ कतय रहैत छी, बौआ ?’

-‘लालपुर’

-‘डैडीक नाम की अछि ?’

-‘एम एम कुमार.’

-‘मम्मीक नाम ?’

-‘लक्ष्मी कुमार.’ 

-‘आ,दादा कतय रहैत छथि ?’

बच्चा बिसरि गेलैये, गुणाकरपुर. नान्हि टा बच्चा आ बड़का टा नाम. बच्चा मन पाड़ैक कोशिश करैछ. बाप कहैत छथिन, ‘कहियौ, गुणाकरपुर’.

‘गुणाकरपुर’ बच्चा दोहरबैत अछि.

दादी पुछैत छथिन : ‘आ दादी कतय रहैत छथि ?’ बच्चा फेर सोचय लगैछ. ओकरा प्रतिदिन दादीसँ गप्प होइत छैक. बाप पहिने अपन माएसँ फ़ोन मे गप्प करैत छथि. बच्चा फ़ोन देखैत देरी, दादी-दादी, दादा-दादा, कहय लगैछ. आ बाप विडियो कॉल ऑन के दैत छथिन. आइ बच्चा कें जवाब देबा मे कनेक बिलम्ब होइत छैक तं बाप फेर पुछैत छथिन, ‘दादी कतय रहैत छथि ? कहियौ.’

बच्चा चटसँ  जवाब दैछ: ‘मोबाइल फ़ोन में !’

सब एके संग हँसए लगैत छथि. बच्चा ख़ुशी मे थोपड़ी बजबय लगैछ.


मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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