Saturday, May 29, 2021

जटही पोखर

 

जटही पोखर

तालाबों भरे गाँवमें मैं वर्षों तक अछूत-सा था : जटही पोखर. दक्षिणमें भुतही गाछी. उत्तरमें बड़ा-सा कलम बाग़. भीड़के ठीक नीचे उत्तर-दक्षिण जाता सड़क, बड़ा-सा मैदान, पीपल का पेड़, बच्चोंका स्कूल, संस्कृत पाठशाला, और फिर दूसरा पोखर जो नजदीक के लक्ष्मीनारायण मन्दिर का पोखर है. मेरे पूरब, और मेरे पश्चिम के पोखर के पश्चिम जहाँ तक नजर जाए केवल धान के खेत.

लोग कहते हैं, गाँवोंमें जहां भी लोग होते हैं, भूत और चुड़ैल भी वहां डेरा डाल ही लेते हैं . लेकिन, बच्चे केवल डरते मुझसे हैं- जटही पोखरसे. इसलिए, मैं थोड़ी अपनी बातें कर लूं.

ऊँचे भीड़. खड़े किनारे. साफ़, गहरा पानी और भरपूर मछली. अलबत्ता एकबार चोरों को चोरी के सामान को  छिपाने की जगह नहीं  मिली तो उसे मेरे जटही पोखर मे ही डुबा गये और आज तक किसीको उसकी खबर न मिली.

कभी कभार कोई दिलेर इंसान रात को मछलियों के लिए जटही पोखरके पानी में चारे डाल जाता है और दिनमें बंसी डाल कर अपना हुनर आजमाता है. मछली मिली तो ठीक, नहीं तो कमला के किनारे इस गाँव में मछली की कमी है भला.

बच्चे भूल कर भी हमारे किनारे पर नहीं आते. बच्चों को कहते कई बार सुना है, ‘जटहीके पेट में गोह है. पानीमें पैर डाला कि नहीं, सीधा खीच लेता है. सुना है, कभी-कभी गोह पानी से निकलकर बच्चों की तलाशमें किनारे पर भी बैठा होता है. पत्तों के बीच. पत्तों जैसा ही रंग. रंग बदल लेता है. आखिर है तो गिरगिट ही !’ इसलिए नजदीक के गाछी के पेड़ों के पके और गिरे हुए आम भले सड़ जाएँ, ये बच्चे इधर मुंह नहीं करते. बर्ना, बच्चे कहीं पके आम को छोड़ते हैं ! पर, कभी-कभार चरबाहे, हल-कुदाल चलानेवाले किसान और बटोही  जटहीमें पैर हाथ धो लेते हैं. लक्ष्मीनारायण के मन्दिर का पोखर सड़क से थोड़ा अलग जो है. 

जटही पोखर 

आखिर किसको अपना जन्म याद होता है. मगर, बरगदके पेड़ के नीचे बैठे बड़े-बूढ़ों की बातें एकबार सुनी थी. कहते हैं, एकबार बहुत बड़ा अकाल पड़ा था. रोजगार की तलाश में दूर दूर से आए लोग जहां-तहां घूम रहे थे. उसी समय दूर से आया जाटों के एक जत्थे ने इस गाँवमें डेरा डाला था. उन्होंने ही यहाँ एक तालब खोदा था, जिससे मेरा नाम जटही हो गया: जाटों का खोदा तालाब. आस पास के गाछी-कलमबागमें भूत चुड़ैल भले हों, मगर, मेरी असली बदनामी बाद में हुई, जब मोदाइ झा नाम का एक गबरू जवान जटही में डूब कर मर गया था. सुनते हैं, मिर्गी की बिमारी थी उसे. किनारे के पास से जा रहा था. दौरा पड़ा. दौरे में ही लुढ़क कर पानी में जो गिरा, बाहर नहीं आ पाया. लोग कहतें हैं, आस-पास की चुड़ैले उसकी गर्दन चबा गयी थी. बच्चे तो खौफ से पूरब की तरफ देखना भूल गये थे. क्यों न हो. यहाँ के स्कूल के बच्चे कद में इतने छोटे होते थे कि उनकी ऊँचाई स्कूलके चबूतरे तक भी नहीं पहुँचती थी. मोदाई झा तो उनके सामने ताड़ था. जब जटही उसे गटक सकती है, तो बच्चों की क्या बिसात ! स्कूल में भी जब किसी बच्चे ने पैंट में मूता या क्लास में बातें की, कि मास्टर जोर से चिल्लाते, ‘इसे जटहीमें फेक आओ’. मजे लेने के लिए जैसे ही बड़े बच्चे गुनहगार बच्चे की ओर लपकते, अपराधी बच्चे को साँप सूंघ जाता था. छिपने की तो कोई जगह थी नहीं. स्कूल भी क्या था, मिट्टी का एक लम्बा चबूतरा था जिसके उत्तर और दक्षिण के  दोनों छोर पर शीशम के दो ऊँचे खम्भे थे. खम्भे के उपर एक सीधा बरी था और पूरब और पश्चिम के तरफ गिरती एक-एक छप्पर. जब छप्पर जर्जर होने लगता था, कोई गौवां पांच- दस बोझ फूस दे जाता था. मास्टर लोग श्रमदान से उसे किसी तरह छत पर डलबा देते थे. इसी भवन (!) के उत्तरी हिस्से में स्कूल का क्लास लगता था और दक्षिण के तरफ मौलवी मोहम्मद युनुस का मदरसा , जहाँ मौलवी साहब अपने शागिर्दों को उर्दू की तालीम देते थे.

एकबार बड़े अंधड़ में स्कूल का छप्पर जो उड़ा, सो उड़ ही गया. जाड़ेके दिन तो बच्चे धूप में बैठ लेते थें और मास्टर लोग संस्कृत पाठशाला के बरामदे पर अपना बेंच  डाल लेते थे. मगर मौलवी साहब ने भी हौसला नहीं छोड़ा. लेकिन ये बातें, तो बात की बात है. स्कूल तो बाद में बड़े पीपल के नीचे, और उसके बाद गाँव के तीसरे किसी पोखर के भीड़ पर चला गया था. इस छोटे से गाँव में भला पोखर और कलमबाग़ की कमी है ! हमारे करीब से स्कूल के हंटते ही  बच्चे सदा के लिए मेरी नजर से दूर हो गये. और जटही का खौफ भी जाता रहा !

लक्ष्मीनारायणके मन्दिर का पोखर. उसकी तो और ही बात थी. कहते हैं, दरभंगा महाराजा की माँ इस गाँव में पैदा हुई थीं. उन्होंने यहाँ पोखर खुनबाने की सोची, तो चमत्कार हो गया. तालाब से लक्ष्मीनारायण की मूर्ति जो निकल गयी. मूर्ति निकल गयी, तो मन्दिर भी बन गया. मन्दिर बन गया  तो संस्कृत पाठशाला भी खुल गया. लक्ष्मीनारायण तो उस पोखर के पानी से नहाते ही थे, लोगों को भी उस पोखर का पानी मीठा लगता था. पीछे किसी ने उस पोखर में मखाने के बीज डाल दिए तो डूबने की परवाह किए बिना कच्चा मखाना के लिए बच्चे पोखर के पानी में उतरने लगे. मखाने से याद आया. यहाँ के लोग पान और मखान के लिए पागल हैं. कहते हैं, पान और मखान स्वर्ग में भी नहीं मिलता है. पर, वो तो दूसरी बात है.  मखाने की एक और बात है: इसके फूलों का रंग केसर के फूलों जैसा भले हो, पर, पत्तों पर कांटे ! बाप रे बाप !! तभो तो अगर कभी किसी लड़के, ने इस गाँव की किसी लड़की को छेड़ा, तो वह मुँह बनाती है और कहती है, ‘ मखाने के पत्ते से मुँह पोछ कर आ जा !

पर बातें तो हम पोखरों की हो रही थी. हम लड़के-लड़कियों पर कहाँ चले गये. हाँ,  लड़के-लड़कियों से याद आया. एक दिन इस स्कूल का कोई ‘बूढ़ा’ बच्चा शहर से यहाँ आया था. गाँव में वैसे ‘बूढ़े’ बच्चों की कमी नहीं. यहाँ की ‘बूढ़ी’ बच्चियों को तो मैंने कभी लौटकर आते नहीं देखा. एक बार गाँव से गयीं, सो गयीं. तो फिर यहाँ के  ‘बूढ़े’ बच्चों की बात करते है. उस दिन जब इस स्कूल का वह ‘बूढ़ा’ बच्चा शहर से यहाँ आया था तो लक्ष्मीनारायण के मन्दिर का पोखर देखकर वह शहरी ठंडी साँसे ले रहा था. लक्ष्मीनारायण के मन्दिर के पोखर का जलकुम्भी से भरा पेट. ढहते भीड़ और सूनसान सा मैदान ! स्कूल तो कब का यहाँ से चला गया था. संस्कृत पाठशाला के खपरैल कमरे कब के मिट्टी में मिल चुके थे. कभी-कभार कोई भूला भटका बूढ़ा पण्डित लक्ष्मीनारायण का दर्शन करने आता है तो पाठशाला मिट्टी माथे लगाता है. एकबार स्कूल का एक बूढ़ा विद्यार्थी बूढ़े पीपल की तस्वीर भी खींच कर ले गया था.

हाँ, तो, उस ‘बूढ़े’ विद्यार्थियों की बात तो रह ही गयी. वह शहरी लक्ष्मीनारायण के मन्दिर का पोखर देखकर ठंडी साँसे ले रहा था. जलकुम्भी से भरा पेट और ढहते भीड़ को देखकर पुरानी बातें कहा रहा था. कहा रहा था, जटही से तो लोग बाग़ सब दिन ही डरते रहे, लेकिन, लक्ष्मीनारायण का पोखर ? वह तो हमरा साथी था. लगता है, एक के बाद एक गुजरते जाते  हमारे बांकी साथियों की तरह यह भी नहीं बचेगा ! इस पर ग्रामीण बूढ़े ने जो कहा उससे मुझे कैसा लगा यह कहना मुश्किल है . ग्रामीण बूढ़ा जो शहरी के बचपन का अजीज था, कहा रहा था, अब  यहाँ कोई पोखर, कोई इनार नहीं बंचेगा. घर-घर में नल है, पर  खेतो में हल नहीं. गाँवमें मवेशी नहीं, चरवाहे, हरवाह, बहलमान भी नहीं हैं . लक्ष्मीनारायण के मन्दिर में भी नलका लग चुका है. पोखर के पानी में रसोई बनाकर खाने से नए, युवक पुजारी की आंत उखड़ गयी थी. अब गाँव के लोगों के पास अफरात पैसे हैं. पर गाँव में जमीन नहीं है. जमीन का भाव आसमान छू रहा है. इसलिए, इस बार जो देखना हो देख लो. तस्वीर खींच लो. अगली बार आओगे तो न तो जटही मिलेगा, न लक्ष्मीनारायण का पोखर. सब सपाट हो जाएगा !

 

Tuesday, May 25, 2021

सिद्धार्थ गौतम बुद्ध केर पदचिन्ह पर चलैत

                                                 सिद्धार्थ गौतम बुद्ध केर पदचिन्ह पर चलैत

सिद्धार्थ गौतम जन्मसँ राजकुमार रहथि. मनन आ चिंतनसँ ओ बुद्ध भए गेलाह. पछाति, हुनक अनुयायी लोकनि हुनका महात्मा, भगवान, आ अवतार, सब किछु बना देलखिन. तथापि, समाज हुनका जे किछु बूझनु, गौतम रहथि तं समाज सुधारक. हमरो लोकनि नेना मे बुद्धक खीसा किछु एहिना पोथीमें पढ़ैत रही. हं, दोसर गप्प जे हमरा मोन अछि, से छल एकटा प्रश्न जे शिक्षक लोकनि हमरा लोकनिसँ  पूछथि : बिहारक नाम ‘बिहार’ किएक पड़लैक. एकर उत्तर – ‘पहिने एहि क्षेत्र में अनेक बिहार सब रहैक’- सेहो छात्र लोकनि  सुग्गा-जकां सुनथि आ सएह जवाबो देथिन. मुदा, ककरो मन में ई नहिं अबैक जे संस्था-बिहार- पहिने बहुतो ठाम छलैक , से कतय चल गेलैक ! ततबे नहिं, जं बुद्ध भगवान छथि तं हुनकर मन्दिर कतहु किएक नहिं छनि !! ई गप्प ने शिक्षक पढ़बथिन, आ ने छात्र पुछथिन. हमरो मन में ई प्रश्न छात्र जीवन में कहियो नहिं आयल. हमरा लोकनिक मोन में प्रश्न किएक नहिं उठैत छल, प्रायःतकर कारण ताकब कठिन नहिं; जाहि परिवारमें ढेर लोक रहतैक ताहि ठाम अनुपस्थित सदस्यक खगता लोक कें कदाचिते अनुभव होइत छैक. हमरा लोकनि कें छत्तीस करोड़ देवताक अतिरिक्त शीतला माता, नाग-नागिन, डिहबार- सलहेस, धरमराज की नहिं रहथि ! तखन जं बुद्ध नहिए छथि, तं कोन खगता. तथापि, बुद्ध केर शिक्षाक जे मूल विन्दु सब रहनि से हम प्राथमिके वर्गमें कंठस्थ कए नेने रही. कारण, ओहि सब म सँ  अनेको - सत्य बाजब, चोरि नहिं करब, अनका दुःख नहिं देब- हमरा रुचैत छल. तथापि, जाधरि हम मैट्रिकक परीक्षा नहिं देलहुँ, बुद्धक विषयमें हमरा एतबे धरि ज्ञान भेल छल जे सिद्धार्थ गौतम राजा शुद्धोदनक पुत्र रहथि.हुनका बोधगया में कठिन साधनासँ ज्ञान प्राप्त भेलनि आ ओ ‘बुद्ध’ कहयलाह . गया तं हिन्दुओ लोकनिक तीर्थ छले. मिथिलांचलसँ माता-पिताक मृत्युक पछाति, जेठ बेटा सुविधानुसार गया जा कय फल्गू नदीक तट पर पिण्डदान कय माता-पिताक मुक्तिक दायित्व पूर्ण करैत रहथि आ गाम वापस आबि गौआं-सौजनिया ले भोज करैत रहथि.

1971 वर्षमें हम मैट्रिकक परीक्षा देल. परीक्षाक पछाति, पहिल बेर पटना जेबाक अवसर भेटल. ओही बेर जेठ भाई लोकनिक संग गया-बोधगया सेहो गेलहुँ. पछाति, 2005 में सारनाथ, 2006 में उत्तरप्रदेश में कुशीनगर गेलहुँ, आ  2008 में बुद्धक जन्म-स्थान लुम्बिनी, नेपाल जा कय बुद्धसँ जुड़ल चारू  पवित्र तीर्थक यात्रा समाप्त भेल. पछाति तं भारतसँ  बाहर सेहो बुद्धक उपस्थितिसँ परिचय भेल. मुदा, तकर  गप्प एतय नहिं.

महत्मा बुद्ध: महाबोधि मन्दिर, बोधगया 

संयोग एहन छल जे बुद्ध हमर चेतनामें बाल्य-कालहिं एकटा महापुरुषक स्थान ल चुकल रहथि, आ ओ भौतिक रूपें सेहो हमरा संग-संग चलैत गेलाह. इहो संयोगे छल जे 1983 में जखन हम सेनामें योगदान कयल तं हमर पहिल पोस्टिंग तिब्बती शरणार्थी लोकनिक संग भेल. ओ लोकनि भारत कें पवित्र देश आ भारतीयकें गुरु-जकां बूझैत रहथि. एतेक तक जे तिब्बती सैनिक आम भारतीय सैनिकक नामक पाछां गुरु जोड़ि देथिन, जेना, शर्मा गुरु, आदि. बौद्ध लोकनिक संगक अनुभव कें हम अपन कथा आ संस्मरण में आनो ठाम लिखने छी. तें, एतय ओकर दोबारा कहब आवश्यक नहिं. तिब्बती शरणार्थी लोकनिक संग छोड़लाक करीब चौदह वर्ष बाद हम लद्दाख़ पहुँचलहुँ. लद्दाख़में भगवान-भगवतीक पूजा-स्थल नाम पर चाहे तं बुद्ध केर मन्दिर रहनि,  वा मस्जिद. लद्दाख़क अढ़ाई वर्षक प्रवासमें पुनः हम बुद्धकेर पद-चिह्नक अनुगमन करैत रहलहुँ . आब पछिला आठ वर्षसँ दक्षिण भारत में छी. एतय बुद्ध केर प्रत्यक्ष दर्शन तं कतहु नहिं हयत, किन्तु, सुदूर अतीतसँ अबैत ध्वनि कें जं नीकसँ अकानबैक तं बुद्धक स्वर सुनबामें अवश्य आओत.ओकर विस्तारसँ चर्चा पछाति फूट हेतैक. तें, ओकर गप्प एतय नहिं. एतय लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ आ कुशीनगरक यात्राक छोट-छोट झलक देब हमर उद्देश्य अछि.

हम जहिया लुम्बिनीक बौद्ध तीर्थ गेल रही, 2008 साल रहैक. नेपाल में राजतन्त्रकेर  सूर्य अस्त भय गेल रहैक आ कम्युनिस्ट लोकनिक लोकतंत्रिक सरकार सत्ता में छल. ओतय पुनः चुनाव हयबा ले रहैक. हमरा लोकनि छुट्टीमें पोखरासँ  पटनाक बाट में रही. सोचल लुम्बिनी सेहो देखि ली. सोनौली बॉर्डर लग नेपालक ‘प्रकाश’ नामक होटल में डेरा छल. रिक्शा लेलहुँ आ लुम्बिनी दिस विदा भ’ गेलहुँ. हम जतय कतहु जाइत छी जकरासँ भेंट भेल, किछु गप्प- सप्प करय लगैत छी. रिक्शावाला हिंदी-भोजपुरी भाषी छल. पुछ्लिऐक : एहि बेर ककरा भोट देबैक, कम्युनिस्ट कें, कि नेपाली कांग्रेस कें ? रिक्शावाला रिक्शा चलयबाक व्यवसाय करैत छलाह, किन्तु, बुद्धि में थोड़ नहिं छलाह. कहलनि, ‘उकासी आयगा, तब न मुँह खोलेंगे !’ हमरा अर्थ लागि गेल ! हम सोचल एखन नीक हयत जे हिनकासँ  लुम्बिनीएक गप्प करी, आ एहि ऐतिहासिक स्थलक दर्शने करी.

सिद्धार्थ गौतमक जन्मस्थल 

सरोवर जतय सिद्धार्थकें नहाओल गेल रहनि 

नेपाल आ भारत पड़ोसी अछि. किन्तु,जखने सीमा पार करब अंतर देखबा में आओत. भारतमें जोगबनी-सुनौली-रक्सौल गंदगीसँ भरल; गंदगीमें बिहारमें रक्सौल सबसँ अव्वल. विराटनगर-भैरहबा-वीरगंज साफ-सुथरा आ चिक्कन-चुनमुन. लुम्बिनी तं अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थान थिक, तें सहजहिं साफ़-सुथरा. ओहुना ई महानगर तं थिकैक नहिं. गाम सब दूर दूर छैक. एतय हमरा लोकनिक पर्यटनक केंद्र-विन्दुमें छल महात्मा बुद्ध केर जन्म-स्थान. एहि ठाम अनेक पुरातात्विक अवशेष आ पवित्र स्थल सब छैक जाहि में सबसँ  प्रमुख थिक ओहि भवनक भग्नावशेष, अवशेषक भीतर ओ स्थान जकरा सिद्धार्थ गौतम  केर माताक पेटसँ बहरयबाक स्थल-जकां चिन्हित कयल गेल छैक. इतिहास विदित अछि, सिद्धार्थ गौतम केर जन्म गाछ तर भेल रहनि. सम्भव छैक, पछाति राजा महराजा लोकनि ओतय भवन-निर्माण कयने होथि जे आब ध्वस्त भय गेल छैक. समीपे में एकटा सरोवर छैक जाहि में जन-श्रुतिक अनुसार शिशु सिद्धार्थकें पहिल बेर स्नान कराओल गेल रहनि. एकर अतिरिक्त एहि ठाम अनेक भवन आ उद्यानक भग्नावशेष छैक. बुझबाक थिक, बुद्धकेर जन्मक पछाति पिछला पचीस सौ वर्षमें कतेक राजा आ सामंत अपन आस्थाक प्रतीक बुद्ध केर जन्म भूमि में कतेक निर्माण करओने हेताह, कतेक उत्सव मनओने हेताह आ ओहि निर्माण में कतेक पुरान घर खसल हयत. तथापि, एहि सब स्थानक वर्णन चीनी तीर्थयात्री आ लेखक फाहियान आ ह्वान त्सांगकेर यात्रा-वृत्तांतमें अछि.

सर्वविदित अछि, प्रागैतिहासिक समयसँ एखन धरिक सब राजा, सामंत आ प्रशासक अपन कार्य आ निर्माणसँ पहिलुक कृति आ निर्माणमें उत्कृष्टताक रंग टीप करैत छथिन.बुद्ध केर निरंतर स्मरणहिक फल थिक जे बुद्ध एखनो लोककें स्मरण छथिन. ककरो, महात्मा-जकां, ककरो ईश्वर-जकां, आ ककरो सनातन धर्मक शत्रु-जकां !

हमरा सर्वदा ई जिज्ञासा रहल अछि जे बुद्ध केर समय में ओ क्षेत्र केहन छल जतय ओ साधनामें बैसल छलाह आ ज्ञान प्राप्त केने रहथि. विदेशी पर्यटक फाहियान आ ह्वेनत्सांगक वृत्तांत आ तारानाथक इतिहास क्रमशः भारतमें बौद्ध परम्पराक पुरान इतिहास सब थिक. किन्तु, फाहियान आ ह्वेनत्सांग सेहो  बुद्धकेर मृत्युक अनेक शताब्दीक पछाति भारत आयल रहथि. फाहियान आ ह्वेनत्सांग अपन वृत्तांतमें बुद्धसँ सम्बन्धित प्रत्येक स्थलक वर्णन कयने छथि. हुनका लोकनिक वृत्तांतमें बाटमें पड़ैत आनो स्थान सबहक वर्णन अछि. भाषाक दुरूहता, विभिन्न अनुवादक विपर्यय आ दीर्घ कालक कारण बहुतो स्थान कें चिन्हब कठिन छैक. तथापि, फाहियान आ ह्वेनत्सांग भारतीय महाद्वीप में ततेक समय बितौने रहथि जे बुद्धसँ सम्बन्धित कोनो स्थान आ ओही दिनुक जनश्रुतिक चर्चा हुनका लोकनिसँ छूटल नहिं छनि.


महाबोधि मन्दिर 

बोधि वृक्ष आ बज्राशन- ओ चबूतरा जाहि पर बैसि सिद्धार्थ साधना केने रहथि 

आब बोधगया पर आबी. फाहियान 399 ई. सँ 412 ई. धरि चीन, मध्य एशिया,भारत, दक्षिण आ दक्षिण-पूर्व एशियाक यात्रा केने रहथि. फाहियान लिखैत छथि,’गया शहर खाली-खाली छल. एकदम भकोभंड’. ओ पहिने गया शहरसँ  करीब 6-7 माइल दक्षिण दिस ओतय पहुँचलाह जतय सिद्धार्थ गौतम बुद्धत्वक प्राप्तिक पूर्व छौ वर्ष धरि कठिन तपस्या कयने छलाह. फाहियानक समयमें ओहि स्थानक चारू दिस जंगल छलैक. ओहि स्थान सं करीब एक माइल पश्चिम ओ जलाशय रहैक जतय बुद्ध स्नान कयने रहथि.स्नान करबाक समयमें सिद्धार्थ गौतम कठिन तपस्याक कारण ततेक दुर्बल रहथि जे हुनका जलाशयसँ  बहरयबाक हेतु ओतुका एकटा वृक्षक शाखाक सहारा लेबय पड़ल रहनि. ओही जलाशयसँ किछुए दूर ओ स्थान सब छलैक जतय ग्रामिका कन्या हुनका चाउरक खीर देने रहथिन आ सिद्धार्थ प्राण-रक्षाक हेतु भोजन केने रहथि. फाहियान लिखैत छथि, ‘ ओ वृक्ष आ ओ शिला एखनहु ओतय अछि, जतय सिद्धार्थ बैसि कय भोजन केने रहथि.’ एहिना फाहियान बुद्धसँ सम्बन्धित आओर सब स्थानक वर्णन कयने छथि. एहि वर्णनमें स्थान-सन स्थूल आ स्थायी संज्ञाक संग मिथक, पूर्व-जन्मक संदर्भ, आ दैविक चमत्कार सब कथुक चर्चा छैक. स्पष्ट छैक, समयक संग-संग ऐतिहासिक घटना आ चमत्कार महापुरुषक जीवनक सत्य संगे ओहिना मिझर होइत चल जाइत छैक जेना चाउर दालि संग अकटा-मिसिया. मुदा, दुनूमें अन्तर छैक, चाउरमें मिझर अकटा-मिसियाक दानाकें बिछि फूट कय सकैत छी. किन्तु, महापुरुषक जीवनक इतिहासक संग मिझड़ायल मिथक आ चमत्कारकें फुटकयबाक प्रयासकें धर्मक विरुद्ध आचरण बूझल जाइछ. कारण दैवी चमत्कार ईश्वरत्वक प्रमाण आ अभिन्न अंग बूझल जाइछ.

हम 1971 क गर्मीक मासमें जहिया बोधगया गेल रही, जहां धरि हमरा स्मरण अछि, महाबोधि मन्दिरक परिसर जनशून्ये-जकां रहैक. मुदा, महाबोधि मन्दिर, ओकर पछुआड़क बोधि वृक्ष आ दुनूक बीच बज्रासनक चबूतरा ओतुका सबसँ प्रमुख  आ दर्शनीय छल. तहिया कैमरा तं छल नहिं. तें फोटो तं नहिंए झिकने रही. मुदा, मन पड़ैत अछि, महाबोधि मन्दिरक अतिरिक्त तब्बिती आ जापानी मन्दिर आ धर्मचक्र तखनो रहैक.  दोसर बेर 2011 में जखन बोधगया गेलहुँ तं महाबोधि मन्दिरक आसपास ओहने चहल-पहल देखलियैक जेना धर्मस्थानमें होइत छैक. मुदा, भीड़-भड़क्का हिन्दू धर्मस्थान-जकां नहिं. कारण बूझब कठिन नहिं. जे किछु. महाबोधि मन्दिर केवल बोधगया केर नहिं, विश्व भरिक बौद्धक हेतु आस्थाक केंद्र-विन्दु थिक. ह्वेनत्सांगक वृत्तांतक अनुसार आरम्भिक महाबोधि मन्दिरक निर्माण एकटा शैव ब्राह्मण द्वरा भेल छल.ओहि ब्राह्मणक भाई एतुका पोखरि खुनबौने छलाह. एहि मन्दिरक पाछांक पीपरक गाछ तं इतिहास विदिते अछि. कहल जाइछ, सम्राट अशोक सेहो अपन शासनक दसम वर्षमें बोध गया आयल रहथि. बोधि वृक्षक प्रति सम्राट अशोकक अगाध प्रेम आ निष्ठाक प्रति इर्ष्यासँ  कारण हुनक पत्नी बोधिवृक्षकें कटबा देलखिन्ह. तथापि, बोधिवृक्ष समूल नाश नहिं भेल.पछाति सम्राट अशोककहिंक प्रेरणासँ बोधिवृक्षक ब’ह श्रीलंका गेल. इतिहासक अनुसार एखनुक बोधिवृक्षक ठीक पहिलुका पूर्वज 1876 ई. क पछातिक थिक. पुरातत्वविद आ भारतक सर्वेयर जनरल एलेग्जेंडर कनिंघम बोधिवृक्षकें 1862 सँ 1875क अनेक बेर भिन्न-भिन्न अवस्थामें देखने रहथिन. कनिंघम लिखैत छथि, ‘1876 में गाछक बंचल भाग केर खसला उत्तर बोधिवृक्ष समूल नष्ट भए गेल छल.’ पछाति ओकरे बीआसँ ओही वृक्षक वंशज आइ बोधिवृक्षक रूपमें अछि.

एखन बोधगयामें महाबोधि विहारक अतिरिक्त अनेको विहार, स्मारक, मूर्ति, सेवा-संस्थान अछि. किन्तु, दुःखद थिक जे बुद्धकेर साधना-भूमि, गया सम्पूर्ण बिहारमें अपराध आ अपहरण ले प्रसिद्ध अछि. तथापि, एहि स्थानक महत्व आ ऐतिहासिकताक कारण अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन आ हिन्दू तीर्थयात्रीक तीर्थाटन एतुका आमदनीक मुख्य श्रोत थिक. गयामें अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनि गेने निर्विवाद पर्यटनकें बल भेटलैए.

नालंदाक अवशेष 

पावापुरीक भव्य द्वारि 

सड़कसँ पटनासँ  गया-बोधगया जाइत जहिना बाटक कातेकात लहलहाइत खेत, भोरुका बसातमें अगराइत फसिल भेटत, तहिना इतिहास एम्हर पग-पग पर छिड़ियायल भेटत. समय अछि, तं थम्हू. आ सुदूर भूत केर इतिहासक स्वरकें अकानू. समय अछि तं थोड़बे घुमानसँ नालंदा, राजगीरक अवशेष , आ  पावापुरीक जैन तीर्थ सेहो देखि लेब. इतिहास बिहारक हेतु जतबे उदार छैक, वर्तमान ओतबे कंजूस. दोष तं हमरे लोकनिक थिक. बिहार आ बिहारी तं ओएह थिक. भूमि, जलवायु, वनस्पति आ भैषज्य तं ओएह छैक. तखन उर्बरता किएक नष्ट भए गेल से सोचबाक थिक. आब सारनाथ चली.

इतिहास विदित अछि, सारनाथक मृग-वनमें गौतम बुद्ध पहिल बेर उपदेश देने रहथि. गौतम बुद्धकें बोधिवृक्षक परिसरसँ  सारनाथ जयबामें किछु दिन लागल रहनि. हमरा ई दूरी तय करबा में करीब 34 वर्ष लागि गेल.

स्तूप: सारनाथ 
वर्ष 2005. बनारसमें अखिल भारतीय नेत्र- चिकित्सक संघ केर वार्षिक सम्मेलन रहैक. हम बनारस पहिनहु अनेक बेर गेल रही. किन्तु, एहि बेर सारनाथ जयबाक पहिल अवसर भेटल. सारनाथ में जे सबसँ  पहिने आकृष्ट करत ओ थिक ऐतिहासिक स्तूप. आब तं ऐतिहासिक हो वा समसामयिक, परमपावन संत होथि वा दुर्दान्त अपराधकर्मी, राजनेता वा अपराधकर्मी-राजनेता, सबहक चारुकात सुरक्षाचक्र, लोहाक गजाड़ा, आ ए.के.- 47 बंदूक नेने सुरक्षाकर्मी अवश्ये भेटत. बोधगया, सारनाथ वा सोमनाथ केओ एकर अपवाद नहिं ! केहन विडंबना ने !    

सारनाथक स्तूपक समीपहिं, संग्रहालयमें अनेक ठामसँ उत्खननमें प्राप्त मूर्ति, शिलालेख, पात्र, आ आन सामग्री सब भेटत. संग्रहालयकेर बाहर बौद्ध-मूर्ति, फोटो, तंखा, पात्रक संग खयबाक वस्तु, चाह-पानि सेहो भेटत. मुदा, जं वाराणसी आ सारनाथमें बौद्ध परम्पराक अनुशासनक कनियो अन्वेषण करबाक मनोरथ हो तं बिसरि जाउ. इतिहास विदित अछि, बौद्ध धर्मकें सनातन धर्म, विरोधीए टा नहिं, धर्मक शत्रु बूझैत छल. अस्तु, बौद्ध चिंतन जं सनातन धर्मक गढ़ बनारससँ बिला गेल तं उचिते. किन्तु, बनारसमें अपराध, ठगी, व्यभिचारकें देखबाक हो तं सब ठाम भेटत. हमरा तं जे अनुभव भेल से भेले. तें, धर्म तं अपन मनहिं में ताकी सएह उचित !

जेना हम सबठाम कहैत आयल छी, जं भारतीय सेनाक देल अवसर नहिं भेटैत, तं टाका खर्च क’ कय पर्यटन ले मध्यवित्त लोक कतेक ठाम घूमत. 2006 ई. हम लखनऊ कमान अस्पताल में पदस्थापित रही. भारतीय सेनाक कलकत्ता स्थित पूर्वी कमान आ लखनऊ स्थित मध्य कमान प्रति वर्ष नेपाल गोरखा भूतपूर्व सैनिक आ हुनका लोकनिक परिवार जनक हेतु प्रति वर्ष अनेक मेडिकल वेलफेयर टीम नेपाल पठबैत अछि. हमरा 1995 आ 2006 में एहि दलक नेतृत्वक अवसर भेटल. लखनऊसँ जाइत ई टीम गोरखपुर होइत जाइछ. 2006 में नेपाल जेबा काल किछु प्रशासनिक कारणसँ  हमरा लोकनिकें गोरखपुरक गोरखा रिक्रूटिंग डिपो ठहरय पड़ल छल. कुशीनगरमें महात्मा बुद्धकेर परिनिर्वाणक स्थान गोरखपुर सं बेसी दूर नहिं. बस, करीप 55 किलोमीटर. अस्तु, एक दिन स्थानीय बस पकड़ल आ कुशीनगरसँ भए एलहुँ .

ह्वेनत्सांग लिखैत छथि, कुशीनगरमें निरंजना नदीक कछेर पर दू गोट वृक्षक बीच, उत्तर दिशा दिस माथ राखि,  गौतम बुद्ध परिर्वाण प्राप्त कयलनि. ह्वेनत्सांग आगू लिखैत छथि, कुशीनगरमें तहिया साधु-समाजक भिन्न-भिन्न समाजक  किछु- किछु सदस्य, निवासी-जकां कतहु-कतहु रहथि.

एहि इतिहासक अनुसार मृत्युक पछाति, बुद्धके स्थानीय राजा, चक्रवर्ती राजाक समान सम्मान दैत, बुद्ध केर अंतिम संस्कारक हेतु अपन राज्याभिषेकक सभागार में स्थान देलखिन. मृत्युक पछाति बुद्धक पार्थिव शरीरकें स्वर्ण-मंजूषामें राखल गेल रहनि.

महापरिनिर्वाण में बुद्ध  (श्रोत: साभार, विकिपीडिया)  

एखनो, कुशीनगरमें परिनिर्वाणक स्थलमें दाहिना करोट लेने बुद्धके लम्बा प्रतिमा छनि. ओत्तहि पुरान भवन सबहक भग्नावशेष, आ  बर्मा देशक बौद्ध लोकनि द्वारा निर्मित आ परिचारित स्वर्णिम  पैगोडा/ मन्दिर सेहो अछि. हमरा लोकनि सब ठाम घूमि इतिहासक दर्शन कयल. एतहि आबि बुद्धकेर पदचिन्ह पर चलबाक हमर परिक्रमाक एक अंश पूर्ण भेल. भारत-नेपाल सीमक ओहि पार लुम्बिनी धरि जेबामें दू वर्ष आओर लगी गेल से तं कहनहि छी.  

सर्वविदित अछि, वैदिक धर्मक विधिक विरोध वा वैदिक धर्ममें सुधारक धाराक रूपमें विकसित बौद्धमत कें सनातनी लोकनि अपन शत्रु बूझि ओकरा भारत वर्षसँ  उखाड़ि फेकबाक संकल्प केने रहथि. फल ई भेल जे बौद्ध धर्म भारतक हृदयस्थल आ ह्रदय दुनूसँ बिला गेल. किन्तु, बौद्ध धर्मक विभिन्न परम्परा उत्तर, पूर्व, आ पूर्वोत्तर भारतक अनेक भागमें एखनहु जीवित अछि. विगत शताब्दीमें समाजमें अपमानित किछु दलित लोकनि डाक्टर अम्बेडकरक नेतृत्वमें बौद्ध धर्मकें अपनओलनि. किन्तु, आब ओहि घटनाक आधा शताब्दी बाद ओ मुहिम आब केवल सांकेतिक भए कए रहि गेले. तथापि, बुद्ध अमर छथि. कारण, केवल ज्ञान आ निर्देशित मार्ग पर चलबाक जीवन पद्धति बौद्ध धर्मक प्राण थिकैक. आ जाधरि बुद्ध केर दर्शनक तत्वकें  बूझनिहार विश्वमें जीवित रहताह, बुद्धकें सुधी मनुष्यक ह्रदयसबसँ केओ निकालि नहिं सकत. कारण, बुद्ध धर्म केर विरोधी नहिं, कृष्ण केर परम्पराक ओहने धर्म संस्थापक छलाह, जे धर्मक अवनति भेला पर समय-समय पर भूमि पर अवतरित होइत आएल छथि !           

  

Saturday, May 15, 2021

Keeping Healthy in COVID-19 Times


Keeping healthy in COVID-19 times is a challenge for reasons more than one. We are locked at home. Many have no job. Old and infirm have no access to doctors. Family members of sick and wounded cannot reach them. It’s possible your neighbors shall not respond if you ring their doorbells. Under the circumstances what it takes to maintain your health is the question.

WHO defines health as “a state of complete physical, mental and social well-being and not merely the absence of disease or infirmity."

Keeping this definition in mind let us consider the challenges each aspect of health faces today. 

Physical health varies among individuals in so far it is an individual attribute. Each one of us, depending upon awareness, access, and means make attempts to maintain physical health. Considering you enjoyed stable health condition in normal times, eating and other habits, lack of exercise, and isolation may upset the balance. 

Eating habits vary depending upon taste, access, and awareness. Ideally speaking, normal health presupposes a balance between calorie intake and exercise. Those involved in strenuous physical activity may not require conscious efforts to balance calories. Sedentary work and inactivity requires suitable reduction in caloric intake during periods of inactivity. Replacement of portions of calorie-rich food with fruit, green vegetables shall help take care of imbalance arising out of inactivity. Fibres in vegetables and fruits also keep bowels clean. Fruits and vegetables have abundant varieties to suit every choice, season, region, and pocket. Cheaper options of costly commodity may have equal or even better nutritious value. 

Avoiding unhealthy food is as important as eating healthy. It is obvious, alcohol and tobacco lead to numerous problems. We should not lose sight of this. Same goes for excessive consumption of spicy foods, food rich in fat, and excess salt consumption. Pickles are rich in salt. They are best avoided. Healthy food supplies enough vitamins except in situation of improper digestion or excessive loss. Consumption of adequate water maintains healthy milieu interior.

Continue with your usual medications, if any. Diabetes and hypertension are likely to worsen during inactivity and stress. Keep check on your sugars and blood pressure. Occasional telephonic consultations may help temporary upsets.  Emergencies call for timely consultations.

By chance, if you fall sick, seek profession advice, even on phone. Do not treat yourself with the help of prescriptions circulating on social media. Do not consult a Facebook-physician ! 

How to exercise when holed-up at home? Here I am tempted to quote a paragraph from the life of Nelson Mandela when he was imprisoned and confined in a cell for over 3 decades. In his autobiography, Long walk to Freedom, he writes;

‘ … On Monday to Thursday, I would do stationary running in my cell in the morning for up to forty-five minutes. I would also perform on hundred fingertip push-ups, two hundred sit-ups, fifty deep knee bends, and various calisthenics.’

One size does not fit all. Neither everyone can do stationary running, nor fingertip push-ups. Yet, everyone can do simple yogic exercises which apart from Yoga-Guru Ramadeva, many others have brought to our homes. You may learn these with the help of shows on televisions, computers, and mobile phones. You need only motivation and determination. It’s a choice between health and diseases.

Loss of job, uncertain career, loss of loved ones apart from the disturbing images of COVID times is bound to upset mental health of many except the stoic or ‘sthitapragya described in Srimadbhagadgita. How to not lose sleep, remain undisturbed under present conditions, is a big challenge. I offer the following prescription: 

  • Be proud of your logical thinking. Reasoning saves us in the most adverse circumstances. Fear kills us even without disease. Many bitten by non-poisonous snakes die of fear. Numerous abandoned at sea survive. 

  • Power of positive thinking is an asset. Be positive particularly when nothing bad has hit you personally.

  • Do not be the first in the morning to share bad news with your friends and dear ones. Bad news like dangerous contagion spreads quickly and far afield.

  • Involve in your favorite pastime; reading, music, watching television, playing indoor games, prayers and meditation, if that give you peace.

  • Lack of sleep is an important reason for anxiety and depression. It creates a vicious circle. Exercise helps sleep and promotes mental health.

People fear human beings most in COVID times because of the fear of person to person spread of COVID. Today even friends and acquaintances avoid each other when they come face to face. That’s natural. Self-preservation is a must. But this does not preclude contact through phone and social media. Attempt to keep in touch even with log-lost friends and relatives. Remember everyone including the most wealthy and powerful are under stress. After all everyone is  human. They all have same emotions. A phone call and kind word does not provide material support. Sense of being connected provides strength. Try and see for yourself.

Remember, like everything else, COVID times also is temporary. It too shall pass away. Till then let’s keep healthy. By chance, if you fall sick, do not panic. Seek professional help. Remember, most will recover without complications. 

Saturday, May 8, 2021

पांडिचेरी में आठ वर्ष - 2

2

नव क्षेत्रमें भाषासँ अपरिचये टा समस्या नहिं थिकैक . कखनो काल परिचितो भाषाक अपरिचित उच्चारणक कारण,  सामान्यो जानकारी बुझबा में नहिं अबैत छैक. अस्तु, हमरा लोकनिक दरभंगा जिलाक हिन्दी आ आगरा-मथुराक ग्रामीण लोकनिक हिंदी में, बजबाक शैलीक कारण एतेक अन्तर होइछ जे कतेक बेर ओतुका गप्प बुझबामें नहिं आओत. हमरा एकर अनुभव पहिल बेर आगरा में 1980 ई. में भेल छल. किछु एहने अनुभव पांडिचेरीओ में भेल. एतय तं भाषा आ शैली दुनू अपरिचित छल : तमिल आ अंग्रेजी दुनूक बाजबाक तमिल शैली. आइ तकरे गप्प हो .

पांडिचेरी हम सोझे नेपालसँ  गेल रही. पांडिचेरी में पहुंचिते अपन गाड़ी छल नहिं. अस्तु, पांडिचेरी शहर जयबाले, अपन कालेजक बाहर पिल्लैयारकुप्पम बस  स्टैंड पर पांच रूपयाक टिकट ल’ कय पांडिचेरीक बस में चढ़ि जाइ. स्थान भेटल तं बैसि गेलहुँ, नहिं भेटल तं ठाढ़े रहलहुँ . 30 मिनट केर शहर धरिक यात्रा हमरा ने भारी बूझि पड़य ने, कष्टक बोध होइत छल. कष्टक बोध जं नहिं हो, तं,  जनसाधारण बस आ ट्रेनक सेकंड क्लासक डिब्बा में चढ़बाक एकटा अलगे आनंद छैक. समाजक असली स्पन्दनक अनुभूति ओतहि होइत छैक. भिन्न-भिन्न प्रकारक लोक. भिन्न-भिन्न प्रकारक गप्प. जं भाषा जनैत होइ देशक वर्तमान राजनैतिक स्थितिक जमीनी मूल्यांकन ओतहि भेटत. जनताक अनायास प्रतिक्रिया आ चिन्ता ओतहि सुनबैक. ट्रेन-बसमें ककरो गोपनीय गप्प, अनकर सुनि लेबाक भय नहिं रहैत छैक. संगहि, बहुतो ठाम समाज में होइत नीक आ बेजाय प्रचारक आहट ट्रेन आ बस में अनायास सुनबैक. किन्तु, तकर गप्प फेर कहियो. आइ हम टीवी किनबा ले बिदा भेल छी.

केओ कहलनि एकटा ‘डार्लिंग डिजिटल वर्ल्ड’ नामक एकटा स्टोर्स प्रसिद्द आ नीक छैक. ई प्रतिष्ठान शहर में छलैक. मुदा, कतय ? ‘गूगल’ बाबाकें पुछलियनि. जवाब भेटल, विलियनूर रोड. पहिने तं नाम सुनियो लेलासँ अपरिचित नाम एक बेर में दिमाग बैसैत नहिं छैक. अस्तु, नोट-बुक जेबीसँ निकालि विलियनूर रोड  केर नाम नोट कयल. मुदा, विलियनूर रोड जायब कोना. ककरो पुछलियैक, विलियनूर रोड कोना जायब. ओ कहलनि, ...........लग उतरि जाउ .

- कतय ?

-............... किछु बुझबा में नहिं आयल. हम नहिं बूझि सकलहुँ !

कनिए कालक बस यात्रा.भीड़. पता नहिं, कहीं स्टैंड ने निकलि जाय. अस्तु, जेबसँ  नोटबुक निकालि कए देलिऐक. कहलियनि, लिखि दियअ. सहृदय नागरिक अंग्रेजी में लिखलनि, ‘अन्तोनियार कोयिल’. आब तं एकर अर्थ बुझैत छियैक. मुदा, ओहि दिन ‘अन्तोनियार कोयिल’ हमरा ले लैटिन-फ्रेंच-जर्मनसँ एको रत्ती भिन्न नहिं छल. तथापि, पुछैत-पुछैत ‘अन्तोनियार कोयिल’ स्टैंड पर उतरि गेलहुँ. बससँ उतरि, विलियनूर रोड ले शेयर्ड टेम्पो भेटत से केओ कहने छलाह. अस्तु, चौराहा पर ठाढ़ भए टेम्पो स्टैंडकें भंजियाबय लगलहुँ. देखलिऐक सामनेमें एकटा चर्च केर परिसर रहैक. ककरो पुछलिऐक, ‘ ई भवन की थिकैक ?’ उत्तर भेटल: ‘अन्तोनियार कोयिल’. ह, ह, ह !!! संयोगसँ  ताधरि वएह शब्द परिचित-जकां लागय लागल छल. हमरा मुसुकी छूटि गेल. आब बुझैत छियैक, ‘अन्तोनियार कोयिल’ थिकैक : सेंट एंथोनीक चर्च’ ! दक्षिण भारत में मन्दिर आ चर्च ले एके टा शब्द, ‘कोयिल’ क उपयोग होइछ !

जे किछु, अन्ततः डार्लिंग डिजिटल वर्ल्ड’ पहुँचहुँ, आ पछाति एहिना पुछैत-पुछैत भरि मन बौएलहुँ. फलतः आवश्यक आ मनमाफिक सामान भेटि गेल. मुदा, भारी-भारी सामान संगे तं आओत नहिं. अस्तु, दोकानदारकें डेराक पता आ फोन नंबर द कए फेर बससँ डेराक रास्ता धयल. चौड़ा सड़क. बीच में डिवाइडर. दुनू कात दोकान. एकटा बेकरी पर नजरि पड़ल: कृष्णा बेकरी !  तखन मोन पड़ल, ओ आइ तं हमर जन्म दिन थिक , 21 नवम्बर !  चकित जुनि होइ हमरा वयसक आ हमर गामक लोकक दू तीन टा जन्म-दिन भेटब असम्भव नहिं; एकटा तिथि-मास-राशि-नक्षत्रक अनुसार, दोसर ओकरा अंग्रेजी तारीख, आ तेसर, जे पहिल बेर स्कूल में नाम लिखेबाकाल हमर जेठ भाई जी  आ मास्टर साहेब मिलि कए जन्म तिथि निर्धारित केलनि. तथापि, गाम में जाधरि गाम में रही बर्थ-डे सुनने नहिं रहि ऐक. दरभंगा मेडिकल कालेज में एलहुँ, तं, दोस्त मित्र सब बधाई दे08 सितम्बर केए बधाई देबय लागल. शहरी मित्र म सं किछु गोटे केक सेहो खोआबथि. विवाह भेलाक बाद 21 नवम्बर कए केक सेहो  काटय लगलहुँ . आब एतय पांडिचेरीमें जन्म दिन नहिं मनाएब तं पत्नी कें दुःख हेतनि. अस्तु, बससँ  उतरि कृष्णा बेकरीसँ अपन बर्थ-डे केक अपने किनल. संग में एकटा बर्थ-डे कार्ड सेहो किनि लेल. कालेजवला सहकर्मी लोकनि वर्षक भीतर 08 सितम्बर कए हमरासँ  केक कटबेबे करताह ! मुदा, केक किनलसँ  बड़का लाभ भेल. डेरा गेला पर डांडक दर्दक बावजूद, रूपम केर ठोर पर मुसुकी पसरि गेलनि. केक तं कटबे केलैक. वस्तुतः, परिवारजनक प्रसन्नता अनमोल थिक. प्रसन्नतासँ आयु बढ़इत छैक !                 

Friday, May 7, 2021

पांडिचेरी में आठ वर्ष -1


नीलबेम्बू कुडिनीर’ काढ़ाक एक बोतल हमरा जीति लेलक   

उत्तर भारत अथवा दक्षिण, हमर बास सब दिन पर्यटनक दृष्टिए प्रसिद्द शहरे में होइत रहल : चण्डीगढ़, दिल्ली, शिमला, बंगलोर,लेह, लखनऊ आ आब पांडिचेरी. सत्यतः, हम पांडिचेरी पहिनहुँ आयल रही ; 1999-2002 ई. क बीच जहिया हम बंगलोर में रही, चेन्नई- पांडिचेरी घुमबाले आयल रही. पछाति, 2012 में महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज आ रिसर्च इंस्टिट्यूट में नेत्र-चिकित्सा विभागक प्रोफेसरक रूप में नियामिक रूपें पांडिचेरी अयलहुँ.

पांडिचेरी अनेक अर्थमें भारतक आन शहर सबसँ भिन्न अछि ; इतिहास, भूगोल, आ स्थानीय संस्कृति, सबमें. आ से नहिं रहैत तं क्रांतिकारी युवक, सिद्धहस्त कवि-लेखक आ गहन चिन्तक-साधक अरविन्द घोष पांडिचेरीए कें अपन आश्रमक हेतु किएक चुनितथि. हं, ओहि समय में अरविन्द तत्कालीन ब्रिटिश शासनक नजरि में सजायाफ्ता क्रांतिकारी रहथि. ते, ओ फ्रांसक नियंत्रणक क्षेत्र अपनाले चुनने रहथि सेहो महत्वपूर्ण थिक.

पुदुच्चेरी  केन्द्रशासित प्रदेशक रोचक भूगोल सेहो बहुतोकें  बूझल नहिं हएत. पांडिचेरी प्रदेशक क्षेत्र, एक दोसरासँ दूर-दूर, चारि भिन्न-भिन्न स्थान पर अछि. राज्यक भूभागक एहन स्थितिक उदहारण विरले भेटत. पांडिचेरीक भूभाग म सँ  यानम ( आंध्र प्रदेशक तट पर ), पांडिचेरी आ करैक्कल ( तमिलनाडुक तट) भारतक पूर्वी तट पर, आ माहे (केरलक तट) भारतक पश्चिमी कछेर पर अछि. तथापि, पर्यटक वा मेडिकल-शिक्षाक क्षेत्रमें काज कयनिहार ले  सामान्य अर्थमें पांडिचेरी शब्दसँ, राज्य केर मुख्यालय पांडिचेरीए जिलाक बोध होइछ, जे  अरविन्द घोषक आश्रम-स्थली, औरोविल नामक अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिक गामक क्षेत्र, आ अंतर्राष्ट्रीय पर्यटनक केंद्र-विन्दु थिक. एतय तमिल मुख्यभाषा थिकैक. यद्यपि, एतय किछु फ्रेंच भाषी सेहो भेटिए जेताह. कारण, तमिल केर अतिरिक्त फ्रेंच भाषा पुदुच्चेरी राज्यक दोसर सरकारी भाषा थिक.पांडिचेरी जिलाक भूभागक सीमा सरल रेखा-जकां नहिं भेने,पांडिचेरी जिलाक भीतर यात्रा करैत तं अहाँ कतेक बेर पांडिचेरी सबसँ तमिलनाडु , आ तमिलनाडुक क्षेत्र में पैसब आ बहरायब ! एकर अनुमान अहाँकें सरकारी प्रतिष्ठानक साइन बोर्ड वा गाछ वृक्षक प्रकारमें अन्तर देखि कय बुझबामें आओत. तमिल लिपि तं सबठामे देखबैक. महात्मा गाँधी मेडिकल कालेज आ रिसर्च इंस्टिट्यूटक परिसर पांडिचेरी शहरक क्षेत्रक भीतर, किन्तु, शहरसँ बाहर पांडिचेरी आ तमिलनाडुक कडलूर जिलाक मुख्यालय, कडलूर शहरक बीच पड़ैछ.

हम 14 नवंबर 2012 क पांडिचेरी पहुँचल रही. ओहिसँ ठीक चारि दिन पूर्व - 09 नवम्बर 2012क - हम मणिपाल मेडिकल कालेज, पोखरा, नेपालसँ कार्यभार मुक्त भेल रही.13 नवंम्बर 2012 क दीपावली रहैक . प्रायः एखन धरि केवल ओही वर्ष हमरा लोकनि आशियाना नगर, पटनाक अपन फ्लैट में दीपावली मनौने रही. दोसर दिन भोरे पटनासँ चेन्नई विदा भेल रही. मोन अछि, चेन्नई एअरपोर्टसँ  पांडिचेरी शहर केर करीब 175 किलोमीटर केर दूरी कालेजक ड्राइवर केवल पौने तीन घंटा में ल अनने छल. ज्ञातव्य थिक, प्रति वर्ष होइत दुर्घटना आ सड़क दुर्घटनामें होइत मृत्युक संख्याक दृष्टिए, चेन्नई आ पांडिचेरीकें जोडैवला ईस्ट कोस्ट रोड भारतक सबसँ बेसी खतरनाक सड़क  थिक.

हमरा लोकनि जखन पांडिचेरी पहुँचल रही तं रातिक पौने एगारह बाजि गेल रहैक. एतावता, पोखरामें पूरा घर समेटबाक काजसँ ल कए, पटना घर धरि केर साफ़-सफाई आ नेपाल-पटना आ चेन्नईक एतेक लम्बा यात्राक कारण नीक थकान भेल छल. संयोगसँ  आरंभिक तीन दिन में रहबाक व्यवस्था होटल में छल आ जयबाक हेतु अस्पतालक गाड़ी रहय. तें दोसरे दिन 15 नवम्बर 12 क जा कय अस्पताल में ज्वाइन कयल आ काज आरम्भ भए गेलैक. किन्तु, पांडिचेरी पहुँचैत-पहुँचैत हमर पत्नी कें डांडक भयानक दर्द आरम्भ भ’ गेल रहनि. ई एकटा नव समस्या छल. किन्तु, सुख वा दुःख, जवान, मध्य वयस वा वृद्ध एखन सब कें निमहता अपनहिं करय पडैत छनि. सेह कयल. 

17 नवम्बर 12 शनि दिन छलैक. हमरा प्रशासनसँ सूचना भेटल जे होटल रूम केर हमर बुकिंग रवि अठारहे तारिख धरि अछि. माने, रवि दिन डेरा में शिफ्ट हयब अनिवार्य छल. कालेजक इलाकामें डेरा अलॉट भइए गेल छल. मुदा, सामानक नाम पर हमरा सब लग केवल दू टा सूटकेस छल. हवाई जहाजमें एहि सबसँ बेसी जे किछु सामान अनने रही तकर भरपूर किराया पटनामें लागिए गेल छल. वस्तुतः, हमरा लोकनि लखनऊसँ पोखरा सेहो अहिना गेल रही. अस्तु, बाज़ार जा कय बेसिक फर्नीचर किनल आ ओकरा डेरामें राखि अयलहुँ. पोखराक विपरीत एतुका क्वार्टर में फर्नीचरक नाम पर किछु रहबे नहिं करैक. खरीददारीक कालमें, भानस करबा ले  बिजली पर चलबाबला एकटा इंडक्शन स्टोव सेहो किनि लेलहुँ. रवि दिन भोरे एकटा टैक्सी कयल आ होटलसँ  विदा भए डेरा आबि गेलहुँ. सुतबा ले बिछाओन, भानस करबा ले स्टोव आ राशनक सामग्री छले. जीवन में पहिल बेर भानस-भात आ पीबाक हेतु पानिक व्यवस्था करय पड़ल. ई नव अनुभव छल. ओहि दिनुक दुपहरियाक भोजन ले पर्याप्त चूड़ा आ दही कीनी नेने रही. बस, गृहस्थी आरम्भ भ’ गेलैक. पछाति, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव इत्यादि किनल. खबासनी राखल. हमर बेटा अमिय आ पुतहु, अदिति जखन बंगलोर सं अबैत गेलीह तं घरकें कनेक-मनेक सजायब सेहो भेलैक. किन्तु, ई सब तं सामान्य भेल. सैनिक-अफसरक रूपमें हमरा लोकनि सत्यतः सबदिने खानाबद्दोशक जिनगी जिबैत आयल छी.

किन्तु, पांडिचेरी शुरूएमें एक झटका दए देलक. हमरा पांडिचेरी पहुंचलाक अफिले हफ्तामें डेंगू बुखार भए गेल. वस्तुतः, भारत में आब कतहु जायब, मच्छड़- महिस आ गाय-गोरु सब ठाम भेटत. मच्छड़ भेटत तं, मलेरिया, फैलेरिया, डेंगू, चिकुनगुन्या, स्वाइन फ्लु सोहाग-भाग थिक ! पहिने सब शहर में पीबाक पानि मुफ्त भेटैत रहैक, आब जहियासँ  पानि बोतल में बिकाय लागल, केवल मच्छड़ आ बुखार मुफ्तमें भेटैत छैक ! से हमरो भेटल. हम सोचल चलू, दरभंगे में छी. किन्तु, हमर पत्नीक मनोभाव पर एकर एकटा भिन्न असर भेलनि. ओहि वर्ष 2012 में तमिलनाडुक केवल मदुरै शहरमें डेंगू सँ करीब दू सौ व्यक्तिक जान गेल रहैक. मुदा, हमरा रोगसँ हठे भय नहिं होइत अछि. चिकित्सकक रूपमें हमर चिंतन रोग-व्याधिमें हमरा सबसँ बड़का बल प्रमाणित होइछ. मुदा, हमरा विभागमें लोक नीक-जकां जनितो नहिं छल. तथापि, हमार सुखद आश्चर्य तखन भेल जखन वर्त्तमान विभागाध्यक्ष डाक्टर श्रीकान्त, अपने मोने, हमराले सिद्ध चिकित्साक प्रणालीक, डेंगूक हेतु गुणकारी औषधि-‘ नीलबेम्बू कुडिनीर’- नामक  काढ़ाक एक बोतल, हमराले कीनि कय अनने रहथि. हुनक एहि सौजन्यसँ  हमरा तहिया भान भेल छल जे हम अपन परिवारक बीचे आबि गेलहुँ-ए. हुनक ई गुण हम से कोना बिसरबा योग्य नहिं छल.  

हम एतेक ठाम भारत देखल, हमर धारणा अछि, भारतमें सबठाम लगभग एके प्रकारक लोक भेटत. यद्यपि, सब  दोसरा कें अपनासँ भिन्न कहत, आ निम्न क कए बूझत. तथापि, व्यक्तिगत स्तर पर बाहरी लोककें स्थानीय लोक संदेहक दृष्टिसँ तखने देखैत छैक, जखन अपन जीविका पर खतरा बूझि पड़ैत छैक. जिलाक कलक्टर जं तमिल हो तं ककरा परिबाहि छैक. किन्तु, संगमें काज केनिहार किरानी पटनाक हो तं कहबैक, ‘ ओकर गप्प करै छी, धुर ! ओहि मगहियाक ! एहन अनुभव हमरा भारतीय सेना, नेपाल , आ पांडिचेरी में सेहो भेल. मुदा, एकर कारण केवल ओहि व्यक्तिक असुरक्षाक भावना प्रतीत भेल छल, जनिका हमर ओतय गेला पर अपन कुर्सी पर खतराक अनुभव भेल छलनि. मुदा, जन सामान्यमें हमरा कतहु एहन भावना कदाचिते देखबा में आयल. जे किछु.

सत्यतः, पांडिचेरी अयलाक बाद अस्पतालक बाहर सबसँ  बेसी असोकर्य भाषाएसँ  बूझि पड़ल छल. यद्यपि, तमिल वर्णमाला आ तमिलक किछु परिचयात्मक वाक्यसँ हम ओतबे दिनसँ  परिचित छी, जहियासँ संत तिरुवल्लुवरसँ . तथापि, शहरक भीतर आ दोकान-दौरी-होटल-अस्पतालमें मोटामोटी अंग्रेजीसँ काज चलि जाइत छल. बंगलोर, हैदराबाद आ केरल केर विपरीत, एतय हिन्दीक प्रयोग नगण्य. तें, टेम्पो-टैक्सी ड्राइवर, दोकानदार  आ तरकारी बेचनिहारक संग गप्प कोना करब. कखनो तामसो होइत छल; ककरो अंग्रेजी किएक नहिं अबैत छैक. मुदा, दरभंगा टावर पर चाह-पानक दोकानदार वा गुदरी बाज़ारक कुजडनी अंग्रेजी बजलासँ चाह वा तरकारी किनि सकब ! ई सोचला पर तामस कर्पूर भए उड़ि जाइत छल. संगहि, हमर संकल्प तं तमिल सिखबाक छल. तथापि, तुरत काज कोना चलत. टेलीफोनक लाइन मैनसं फ़ोन पर गप्प कोना हयत, फ़ोन पर गैस कोना बुक करब, बाहर सबसँ रोगी फोन करत तं कोना जवाब देबैक ! क्रमशः, हम तकरो समाधान निकालल. मुदा, एहि ले हम अपन सहकर्मीक सहयोगेक बड़ाई करबनि. जहाँ कोनो तमिलभाषीक फ़ोन आबय हम फ़ोन अपन सहयोगी लोकनिके थम्हा दियनि. डेरा पर हमर बगलगिर प्रोफेसर आ हुनक पतिदेवक सहायता भेटय. फलतः, कहियो अशक्त-जकां अनुभव नहिं भेल. आ हम देश सं दूर छी, से कचोट कहियो नहिं भेल !      


Sunday, May 2, 2021

कोरोना-संकट 2021 : समस्या, सीख, आ समाधान,

 

कोरोना-संकट 2021 : समस्या, सीख, आ समाधान

पछिला वर्ष जखन अस्कस्मात कोरोनाक संकट आयल तं सम्पूर्ण विश्व स्तब्ध भ’ गेल. जखन प्रधानमंत्री जी घोषणा कयलनि जे ‘जं, अगिला एक्कैस दिन घरसँ  बहरयहुं  तं भारत कें हमरा लोकनि  21 वर्ष पाछू कय देबैक’, तं, हमरा लोकनि प्रधानमंत्रीक आह्वानकें ब्रह्मवाक्य मानि भारतके बचौलहुँ . ओहि प्रयासमें ककरा केहन पराभव भेलैक से भले समाज बिसरि गेल, भुक्तभोगी कें सबटा ओहिना मोन छैक .

एहि बेर जखन जनवरीमें कोरोनाक विरुद्ध टीकाकरण चलल, सुविधाक अछैतो केओ टीका लगबओलनि, केओ दुबकि रहलाह. स्थिति ई भ’ गेलैक, जे मार्चक मध्य धरि पांडिचेरी-सन छोटो केन्द्रशासित प्रदेश में टीकाकरणक केवल  छौ प्रतिशत लक्ष्य पूरा भेल रहैक. अन्ततः, ओतुका लेफ्टिनेंट गवर्नर कोरोनाक विरुद्ध टीकाकरणकें व्यक्तिगत चुनौती-जकां ल’ कय टीकाकरण अभियानमें गति अनबाक निर्देश देलखिन, तं, देखल गेलैक जे स्वास्थ्यकर्मीओ लोकनि म सँ  अधिकाँश टीका नहिं लेने रहथि !

पछाति, जखन क्रमशः टीकाकरण आरम्भ भेलैक तं उपलब्ध संख्याक विपरीत, राजनैतिक  संकेत एहन आबय लगलैक जे भारत कोरोनाक विरुद्ध युद्ध जीति गेल ! भारत विश्व भरि में उदाहरण प्रस्तुत कयलक-ए !! यद्यपि ई सत्यक विपरीत छल. तकर प्रमाण  आँखिक सोझाँ अछि ; राजधानी दिल्ली, भारतक सिलिकॉन वैली बंगलोरमें मंत्रीओ लोकनिक अपन सर-सम्बन्धी रोगी लोकनि ले अस्पतालमें सीटक व्यवस्था करबामें असफल साबित भए रहल छथि !

प्रश्न उठैछ एहन परिस्थितिमें हमरा लोकनि कोना पहुँचलहुँ  ?  प्रत्यक्षतः, एकर जवाब एकेटा अछि – पैघ स्तर पर कोरोनाक संक्रमन पसरि गेले, आ कोरोना संक्रमितक संख्या उपलब्ध सुविधासँ  बहुत बेसी अछि. मुदा, एहि प्रश्नकें कनेक विस्तारसँ जाँची. संभव अछि, एहि जांच-पड़तालसँ हमरा लोकनि एहि संकटसँ  उबरि सकी आ भविष्यक हेतु राष्ट्रकें मार्गदर्शन भेटैक. मुदा, एहि विषयकें जंचबा ले हम एखनुक समस्या-सन महामारीक स्थिति में, आ दिन-प्रतिदिनक हेतु सामान्य स्वास्थ्य सेवाक क्षमता आ दुर्बलता दुनूक अनेक विन्दु पर फूट-फूट विचार करी. एहि हेतु किछु उदहारण देब आवश्यक अछि.

विगत वर्षक अमेरिकाक उदहारण कें देखी. जनवरी 2021 में अमेरिकामें प्रतिदिन कोरोना पीड़ितक मृत्युक संख्या 3000 सँ  बेसी रहैक. ई संख्या आइ करीब मात्र 700 अछि. एकर विपरीत भारत में फरवरीक अंतमें कोरोनक कारण मृत्युक संख्या केवल 100 क करीब छल. आइ ई संख्या 3000 प्रतिदिन सँ  बेसी बढ़ि चुकल अछि ! दोसर दिस, जं, टीकाकरणकेर संख्या देखी, तं , अमेरिका में फरवरी 2020क अंत धरि केवल 2.4 करोड़ नागरिककें कोरोनाक विरुद्ध टीकाकरण पूरा भेल रहनि. आइ ई संख्या करीब 10  करोड़ पहुंचि चुकल अछि ; ई संख्य कुल जनसंख्याक 30.4 प्रतिशत थिक. एकर विपरीत भारतमें आइ धरि भारतमें केवल 2.5 करोड़ व्यक्तिक टीकाकरण सम्पन्न भेले ; ई संख्या भारतक जनसंख्याक केवल 1.9 प्रतिशत थिक. तथापि, एहि सबहक बीच जीवन-यापन आ हमरा व्यवहार क बाध्यताक अतिरिक्त पांच राज्यमें चुनाव आ कुम्भ-स्नान सब किछु भेले. माने, भरोस तं केवल भगवाने ने, विज्ञान ताख पर राखल गेल आ कोरोना अपन तांडव नचैत रहल. ज्ञातव्य थिक, कोरोना कालसँ  पहिनहुँ  विकसित देशमें प्रतिवर्ष फ्लू सब बंचावक हेतु  लोक टीका लगबिते छल . ई सब हमरा लोकनि एहि महामारीक अछैतो बिसरि गेलहुँ. मोन रखबाक थिक, राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान केर अंतर्गत टीका द्वारा नियंत्रित रोगक विरुद्ध टीकाकरणक अभियानकें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन केर अंतर्गत केंद्र सरकार अपना जिम्मा रखने अछि. मुदा, कोरोना-सन महामारीक परिस्थितिओ में केंद्र सरकार एकरा केंद्र सरकार, राज्य सरकार आ प्राइवेट उद्यमक बीच बंटैत एहि तीनू म सँ  जिम्मेदारीक मामलाकें पूर्णतया अस्पष्ट क देलकैक. भारत सरकार कोरोनाक विरुद्ध टीका सम्बन्धी अनुसन्धानमें निवेश, वा टीका उत्पादक कम्पनी सबकें अगुबार टीका खरीदक हेतु करार वा ओहि हेतु निवेशक कोनो व्यवस्था नहिं केलक.एकर चर्चा राष्ट्रीय दैनिक सबमें पछिले वर्षसँ चलि रहल अछि. एकर  परिणाम सामनहिं अछि . 

आब हमरा लोकनि एहि विपत्तिक परिस्थितिमें रोग निवारणक हेतु दोसर विन्दु, उपलब्ध स्वास्थ्य संरचना, पर नजरि घुमाबी.

भारतीय संविधानमें स्वास्थ्य-सेवा राज्य केर लिस्टमें अबैछ. अर्थात् नगरिकक स्वास्थ्य-रक्षाक भार राज्य सरकारक थिकनि. नियमानुसार एहि हेतु सरकार सब अपन-अपन राज्यमें प्राथमिक स्तरसँ, रेफेरल आ विशेषज्ञक सेवा धरिक व्यवस्था करबाक हेतु जिम्मेवार अछिओ, आ  नहिओ अछि. कारण, यद्यपि भारतीय संविधानक अंतर्गत नागरिकक जीवन-रक्षाकें मूलभूत अधिकारक दर्जा भेटल छैक, मुदा, ओहि में निःशुल्क स्वास्थ्य-रक्षाक गारंटी नहिं छैक ! तें, अपन दायित्वक रूपमें प्रत्येक राज्यमें स्वास्थ्य सेवाक विभाग आ व्यवस्था छैक. तथापि, स्थानीय स्तर पर आ व्यवहारिक  दृष्टिऐ राज्य सबहक बीच स्वास्थ्य-सेवामें गुणात्मक दृष्टिए  बहुत अन्तर छैक. एक दिस जं स्वास्थ्य केर आधारभूत आ रेफरल एवं स्पेशलिस्ट संरचनामें दक्षिण भारत उपेक्षाकृत सुदृढ़ अछि, ततय उत्तर केर बहुतो राज्यमें स्वास्थ्य-सेवाक स्थिति अत्यंत लचर छैक. किएक ? ताहि प्रश्नकें एखन छोड़ि दी. किन्तु, नीक वा बेजाय, उपलब्ध चिकित्सा सेवा एखन कोरना कालमें किएक  टूटि रहल अछि  ताहि दिस देखियैक. एकर उदाहरण हम सेनाक स्वास्थ्य सेवाक संग तुलनासँ  करी.

सेनाक सब विभागक संरचना नीचासँ ऊपर धरि, पिरामिड-जकां होइछ. बटालियन, जे सेनाक आधारभूत इकाई थिक, ओहि स्तर पर केवल एकटा डाक्टर आ एकटा नर्सिंग-सहायक रहैत छथि. ई लोकनि कखनो एक यूनिट वा लग-लग में स्थापित एकसँ  बेसी यूनिटक स्वास्थ्यक जिम्मेवारी उठबैत छथि. ओतय सामान्य स्थिति में केवल ओ पी डी सेवा उपलब्ध होइछ. किन्तु, आकस्मिक परिस्थितिमें किछु काल धरि रोगीक हेतु इमरजेंसी प्राण-रक्षक सेवाक हेतु सुविधा-सामग्री आ दक्षता रखैत छथि. समय पड़ला पर रोगी ओहिसँ  अगिला स्तर वा विशिष्ट स्पेशलिस्ट सेवा ले ओहूसँ ऊपर पठाओल जाइत छथि. संगहि, सामान्यतया रोगी कखन स्पेसिलिस्ट सेवा ले अगिला स्तरक स्पेशलिस्ट सेवा ले आगू जायत तकर  प्राथमिकताक निर्धारण आ निर्णय  बटालियन लेवल केर डाक्टर करैत छथि.  मुदा, अहम गप्प से नहिं. अहम बात थिक जे जाहि स्तर पर जे सुविधा हेबाक चाही से होइत छैक, से प्रशासन सुनिश्चित करैत अछि.

असैनिक सेवामें  प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रक आधारभूत स्तर भेल. एतय असैनिक सेवा हारि जाइत अछि. अनेक ठाम सुविधा आ व्यवस्था पूर्णतः फोंक छैक. सरकारी योजनामें एहिसँ उपर भेल रेफेरल अस्पताल. ओकरो स्थिति सर्वविदिते अछि. रेफरलक हेतु रोगीकें एक स्तरसँ  दोसर स्तरक स्पेशलिस्ट सेवा ले रेफरलक नियम नहिं. जकरा जतय मोन भेलैक चल गेल. ओहुना, स्वास्थ्यकर्मी आ नेता लोकनि मिलि कय एकरो कोनो काजक नहिं छोड़ने छथिन. लोक एहिसँ ऊपर जायत तं कतय ? मेडिकल कालेज. ओकर स्थिति सबहक सामने अछि. दरभंगा मेडिकल कालेज-सन लगभग सौ साल पुरान कालेज आइ खंडहरमें परिवर्तित भ’ चुकल अछि. तें, गामक दरिद्र सेहो रोग भेला पर सोझे दिल्ली जाइत अछि, बम्बई जाइत अछि. माने, जे संरचना, सेवा, सुविधा आ दक्षताक जाल भरि देश में पसरल होइतैक से आइ महानगर टा में अछि , आ सेहो मुफ्त नहिं !! मुदा, ओतहु जनसंख्याक अनुकूल आधारभूत सेवा थोड़ पडैछ. फलतः, आमसँ ल कय अत्यंत बीमार रोगी सब सोझे बड़का अस्पताल जाइछ. ताहि परसँ  कोरोनाक रोग में अधिकतर रोगीकें ऑक्सीजन केर आवश्यकता एकटा नव चुनौती थिक. मुदा, ई समस्याक केवल एकेटा पहलू भेल.

तें, मानि ली जे आइ PL-480 क गहूम-जकां सम्पूर्ण भारतमें अजुका सबसँ बेशकीमती वस्तु ऑक्सीजन सिलिंडर-कंसेंट्रेटर- ऑक्सीजन प्लांट सब ठाम बाँटिओ देल जाइक तैओ उचित रखरखाव, निरंतर मरम्मत, आ प्रशिक्षित सेवा कर्मीक बिना ओहिसँ  ककर उपकार हेतैक. हमरा सब मेडिकल कालेज में रही तहिया 1977 में सत्तामें आयल जनता पार्टीक सरकारक काल में प्रायः देशक सौ टा मेडिकल कालेजकें, सब सुविधासँ लैस बड़का बस केर आकारक उज्जर रंगक मोबाइल बस भेटल रहैक. आओर सब किछुक अतिरिक्त ओहि विशाल गाड़ीमें गाड़ीमें जनरेटर आ छोट-छोट ऑपरेशनक सुविधा सेहो रहैक. मुदा, दरभंगा मेडिकल कालेजक संग आनो बहुतो ठाम ओ मोबाइल बस ,जकरा लोक निंदामें सफ़ेद हाथी (white elephant) कहैत छलैक, पड़ल-पड़ल सड़ि गेल ! बहाना ई जे ई गाड़ी कोन  रोड पर चलत ! एहि गाड़ीक ड्राइवर, आ पेट्रोल के देतैक ? मरम्मति कोना हयत ! माने, स्थानीय संकल्पक आभावमें एकटा अनुपम उपकरण नष्ट भए गेल. सरकार तं खर्च केबे केलक.   

आब एकटा दोसर गप्प. 'कुरल' में तिरुवल्लुवर कहैत छथि:

रोगी, वैद्य, सेवक, उपचार

चारि खाम्ह पर रोग-विचार I

कुरल,950

अर्थात् रोग केर चिकित्सा हो वा  शमन, नागरिक वा रोगीक दायित्व प्रथम होइछ . अज्ञानता वा लापरवाही,  भले कथूसँ होइक, पसरैत अगड़ाही, भगवानो-भगवतीक परवाहि नहिं करैछ. कोरोना-सन संक्रामक रोग ककर परवाहि करत. कुम्भ-स्नान हो वा चुनाव स्वार्थ लोककें लापरवाह बना दैत छैक; सामाजिक दूरी राखि संक्रमणक पसारकें रोकबा ले पछिला पूरा वर्ष बाल-वर्गसँ ल’ कए विश्वविद्यालय धरिक छात्र लोकनिक पढ़ाई ऑनलाइन-विडिओ पर भेलैक. किन्तु,आइ जखन टी वी घरे-घर पहुंचि चुकल अछि, चुनाव प्रचारक रैलीमें हजारों ठाम लाखों लोक तेना जमा कयल गेल जे कलकत्तामें एक ठाम प्रधानमंत्री धरि चकित होइत बजलाह, जे, ‘एहन जनसमूह हम कहियो देखने नहिं छी’ ! सरिपहुं, जनिका ले वर्चस्व दांव पर लागल होइनि से ककर परवाहि करताह. जनता सेहो एहन महाकुम्भमें अपन पेट भरबा ले, वा वैचारिक प्रतिबद्धता ले ‘ महाजनो येन गताः सः पन्थाः ‘ कें चरितार्थ केलक. फलतः, बंगलोर, बम्बई आ दिल्ली में राजनेता लोकनि अशक्त भेल पड़ल छथि. आ ककरो किछु फुरि नहिं रहल छनि, की करी !

आब अंतिम विन्दु : एहन परिस्थितिसँ  कोना उबरब ? सत्यतः, एहि ले कोनो रामबाण नहिं . हमरा लोकनिकें विज्ञानक शरण लेबहिं पड़त; देशव्यापी टीकाकरण करहिं पड़त. सामाजिक दूरी आ मास्क लगबहिं पड़त. आखिर पोलियो आ स्माल-पॉक्सक उन्मूलन कोना संभव भेल !  दीर्घकालीन संकल्पक अंतर्गत, स्वास्थ्य जीवनक अधिकारक अंतर्गत मौलिक अधिकार थिक, से संविधान में निहित हो.  चिकित्सा क्षेत्र में सकल राष्ट्रीय उत्पादक दस प्रतिशत तक सरकारी निवेश हो. राज्य सरकार सब स्वास्थ्य सेवाक, आधारभूत स्तरसँ विशेषज्ञ सेवा धरिक संरचनाकें सुदृढ़ करय. एकर निगरानीक जिम्मेवारी प्रत्येक स्तर पर  नागरिक अपन हाथमें लियए आ सरकारसँ  पर ई सुनिश्चित करबाबथि जे नियमानुसार उपलब्ध सम्मग्री उपलब्ध होइक, ट्रेन्ड स्टाफ उपलब्ध होथि, आ रेफरलक कड़ीक अनुपालन हो जाहि सबसँ एखन-जकां उच्च स्वास्थ्य सेवाक हेतु नियत संस्थासब प्राइमरी सेवाक भारसँ मुक्त रहय. सत्यतः, राजनैतिक नियंत्रण सैद्धांतिक रूपें नागरिके नियंत्रण थिक. किन्तु, व्यवहारतः ई नियंत्रण स्थानीय स्वशासनक हाथ में हो, जाहिसँ  उपलब्ध सुविधा सर्वदा स्थानीय नागरिकक स्वास्थ्यक दैनिक आ आकस्मिक दुनू आवशयकता पूरा करबा में सक्षम रहय .हं, जं, समाज पंचायतक नियंत्रण मुखियाक स्थान पर मुखिया-पतिकें दए  देनि तं हमरा लोकनि ककरा दोष देबैक !

तथापि, एखन एहि महामारीसँ  राष्ट्रक आ विश्वसँ उपलब्ध उपलब्ध सामग्री, विश्व स्तरपर  उपलब्ध सब ज्ञान, देशमें उपलब्ध समस्त कार्मिकक सहायतासँ लड़ीं, जाहिसँ कोरोनाक ई तांडव पर नियंत्रण हो. बिसरबाक नहिं थिक, जे राष्ट्रीय विपदाक निवारणमें सब पक्षकें सम्मिलित करब सरकार दायित्व थिक.  

        

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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