Saturday, March 26, 2022

हर घर नल का जल : योजना आ यथार्थ

 

हर घर नल का जल : योजना आ यथार्थ 

अवाम, 21 मार्च 2022 

कोरोनाक भय गाम में एकदम नहिं छैक. अर्थात् आब लोक सामूहिक रूपें सब प्रकारक सामाजिक उत्सव मना रहल अछि. हमरा ओहि ठाम मातमी माहौल छैक. ‘ब्राह्मणस्य ब्राह्मणों गतिः’ क अनुकूल ब्राह्मणकें पयर पुजबैत देखलियनि. ई पयर पूजा हम स्वयं सिमरिया घाट में 1975 में कए चुकल छी. ओहि वर्ष हमर जेठ भाई ऊधोजी अकस्मात् चलि बसल रहथि. मुदा, हमरा अपना, ने तहिया आ ने आइ एहि सब में विश्वास रहल. देखि रहल छी, तीस हज़ार रुपैया में बच्छा तरे दू टा गाए अइलीहे. मुदा, दान होइते पात्र ओकरा पाँच हज़ार डिस्काउंट पर घाटहिं पर बेचलनि. मने मन सोचैत छी, ई पात्र जं स्वयं गाए बेचबाक व्यवसाय करितथि तं यजमान कें आफियत होइतैक.

युगक अनुकूल दानक लिस्ट समकालीन भेल जा रहल छैक. सात वर्ष पूर्व हमर स्वशुरक काज भेल रहनि. ओहि में मोबाइल फोन सेहो दान भेल रहैक ! एखनो टॉर्च, रेचार्जेबुल लालटेन लिस्ट में शामिल अछि. चौकी-खाट-पलंग तं हेबेक चाही. मच्छड़ स्वर्गहु में छैक. तें, मच्छरदानी सेहो.

हमर जेठ भाई भरत जीक बालक, सरोज कुमार एखन एहि कर्मकांडक कर्त्ता थिकाह. सब किछु एही परिवार में भए रहल छैक. किन्तु, हमर भाई भरत जी सब किछु कें एक वाक्य में समेटि कए कहलनि, ‘ एहि सबहक एके टा उद्देश्य; समाज में जकर खा आयल छिऐक, तकर बदला चुका रहल छी. बाँकी के देखलकैए !’ हमरा नहिं लगैत अछि, कोनो दार्शनिक एहि विषय कें एहिसँ बेसी नीक जकाँ बुझा सकैत छथि. किन्तु, लोक खर्च करैत अछि.

नवकी पोखरिक मोहार पर जाहि ठाम भौजीक काज भए रहल छनि, ओकर लगहिं एकटा नव पानिक टंकी देखैत छियैक. बिहार सरकारक नारा ‘ हर घर नल का जल’ पानी टंकीक गुमटी में लिखल छैक. एहि परियोजना में 12,59,000 टाका खर्च भेलैए, से गुमटीक देवाल पर लिखल छैक. मुखिया लोकनिक नाम सेहो लिखल रहनि. मुदा, केओ उकाठी पद छोड़ि, केवल नाम कें पाथरसँ मेटा देने छनि. सेहो नीके. कारण, टोल पर गेला पर घरे-घर पानिक टैप लागल देखलिऐक. मुदा, सुखायल. पानि नदारद. पता लागल जे पानि ने टंकी में छैक, आ ने नल में. एहन परिस्थिति में एहि परियोजनाक समापनक वाहवाही के लेत !

सोचए लगलहुँ, गाम में इनार सब पहिनहिं भत्थन भए चुकल अछि. जं लोक एहि नल जल पर हैण्डपंप कें उखाड़ब आरंभ कए देलक तं ओ दिन दूर नहिं जे एतहु चेन्नई आ बंगलोर जकाँ, एतहु लोक प्रतिदिन पानि किनब आरंभ कए देत. ओना किछु गोटे कहलनि, गाम में बोतल बंद पानि बिका रहल अछि. ततबे नहिं कमला कात हमर गाम में भूमिगत जलक स्तर तीन सौ फीट धरि पहुँचि गेल छैक ! शुकुर अछि, हमरा अंगना में ज़मीनक 120 फीट नीचा धरि गाड़ल कल में एखनो ओहने निर्मल शीतल मधुर पानि आबि रहल अछि जेहन 1979 में कल गड़यबाक समय अबैत छल ! हमरा अंगनाक ई कल हमर पिताक निसानी थिक. मुदा, कहिया धरि रहत, कहब असंभव.

एहि बेर पुनः किछु गौआं / टोलबैया लोकनि हमरा लोकनिक ओतय जमा छथि. दुर्गामन्दिरक परिसर में गेट लगयबा ले सहायता चाहियनि. एहि गाम में आइ धरि कहियो केओ सड़कक मरम्मत वा स्कूल में पढ़ाईक समस्याक चर्चा धरि नहिं केलनिए. केओ अस्पताल वा हेल्थ सब सेंटर खोलबाक गप्प नहिं करैत छथि. मुदा, ब्राह्मण, पिछड़ा, दलित, सब गोटे मन्दिरक नाम पर एकमत छथि. ताहू में पिछड़ा वर्गक लोक मन्दिर निर्माण में अगुआ छथि. हमरा आश्चर्य नहिं होइछ, किन्तु, गामक प्राथमिकता बदलितैक से मनोरथ तं होइते अछि. मुदा, गामक लोकक अनपढ़ होइतो हिनक लोकनि कें गार्जियनक आवश्यकता नहिं. केवल हिनका लोकनिक योजनाक कार्यान्वयन ले अर्थ चाहियनि. ततबे.

गामक पूब कमलाक तटबंध पर हाईवे बनत से सुनलहुँ. मिथिला में सड़कक जाल बिछाओल जा रहल अछि. किन्तु, कोनो उद्योग आरंभ हएत वा कल-कारखाना लागत तकर कोनो लक्षण नहिं. माने, बिहार अगिलो समय में पंजाबसँ ल कए केरल धरिक हेतु दिहाड़ी मज़दूर आपूर्तिक हेतु झारखंड आ उड़ीसाक संग मुख्य श्रोत  रहत. बिहारक विद्यार्थी इंजीनियरिंग पढ़बाले कर्णाटक, तमिलनाडु वा महाराष्ट्रे जेताह. पढ़ल इंजीनियर नौकरी ले  बंगलोर, गुडगाँव, चेन्नई, हैदराबादे जेताह !

नहिं जानि कहिया बिहारक प्रतिभा आ परिश्रम बिहार में बिकायत. बिहारक उत्पादन में योगदान करत.

अवाम गामक भोरुकबासँ भेंट

 

अवाम गामक भोरुकबासँ भेंट

अवाम, 20 मार्च 2022

अहल भोरे टहलबा ले विदा भेलहुँ तं बहुत दिनक बाद अवामक भोरुकबासँ भेंट भेल.

हम सन 1971 मे गाम छोड़ल. मुदा, गाम आयब नहिं छोड़ने छी. मुदा, अवामक ई बिसरल भोरुकबा बहुत दिन बाद भेटलाहे. आइ बहुतो गप्प मोन पड़ैत अछि. वर्ष 1971 सँ पूर्व सूर्योदयसँ दू तीन घंटा पहिनहिं उठि कए पढ़ब आरंभ करी. कोनिया ओसाराक एक कात चौकी पर दादा सूतथि. दोसर कातक चौकी पर जीतन सूतथि. हमर चौकी बीच में रहैत छल. हमरा उठयबा ले हिनका दुनूक अतिरिक्त हमर माता सेहो तत्पर रहथि. दादा कें सूर्योदयक बाद उठैत हम कहियो नहिं देखलियनि. ओहि युग में परिवारक मुखिया लोकनिक इएह नियम रहनि. जीतनक हेतु भोर हेबाक सूचना भोरुकबे दैत रहनि. कहियो काल हमरा अलसाइत देखि कहथि, ‘बौआ उठू, ओएह भोरुकबा उगि गेलैक !’

गाम में भोरुकबाक देखब भोर हेबाक एलार्म रहैक. महिसबार सब ओहिसँ पहिनहिं पसर चरबै ले महिस के लए  कए निकलि जाइत छल.

आइ अपन दरबज्जा परसँ  निकलि पहिने शीबू भाई कें संग करी. शीबू भाई समयक पक्का छथि. बिलंब भेल तं निकलि जेताह. हमरो लोकनि तं तेहने अनुशासन में पलल छी. अजुका नेयार 5 बजे भोरक छैक. माने हम शीबू भाईक ओतय 5 सँ  पाँच मिनट पहिने पहुँची. तखने ने पाँच बजे टहलान ले विदा हयब. अन्यथा On time is late ! माने, निर्धारित समय पर तं नेयारल काज आरंभ भए जेबाक चाही !! भारतीय सेना में सएह अनुशासन छैक. हम अपन पन्द्रह वर्ष लंबा अध्यापनक अवधि में छात्र लोकनि कें इएह सिखौलियनि. एहिना करैत रहलहुँ. हमरा लोकनिक शिक्षक स्व. डाक्टर हरिनन्दन द्विवेदी दुपहरियाक दू बजेक लेक्चर ले क्लास में पौने दू बजे आबि बैसि जाथि. मुदा, आब अनुशासन बदलि गेलैए. अपना ओतय समयक पाबंदी प्राथमिकताक सूची में सबसँ नीचा. पांडिचेरी में जखन हम एकबेर तत्कालीन डीन डाक्टर कृष्णन कें विद्यार्थीक क्लास में बिलंबसँ अयबाक शिकायत केलियनि तं ओ कहलनि, ‘ पन्द्रह मिनट धरिक छूट दिऔक.’ हम कहलियनि,’ असंभव!’ विद्यार्थी कें समय पालन सिखाएब हमरा लोकनिक काज थिक!’ आ सत्यतः  हमरा संग सदा विद्यार्थी सब सहयोग करैत रहल.

आइ शीबू भाई संग भेलाह आ हमरा लोकनि विदा भेलहुँ. टोल परक कुकुर सब अलसायल भोरुका निन्न मारि रहल छल. बनिया टोल पर कोनो कुकुर कें अपरिचित गंध लगलैक. एक दू बेर भूकल. मुदा, हमरा लोकनि आगू बढ़ि गेलहुँ. आइ हमर जयबा काल बेसी गौआं लोकनि सुतले छथि. ग्राम देवता लक्ष्मीनारायण सेहो शेषनाग पर निभेर निन्न छथि. पुजारी कें हुनका उठयबा में एखन बिलंब छनि. हं, लक्ष्मीनारायणक दक्षिण भारतीय प्रतिनिधि, वेंकटेशक स्तुति तं कतेक काल पहिने आरंभ भए गेल हेतनि. अमृतसरक स्वर्णमन्दिर में सेहो भक्त लोकनिक पतियानी लागल हएत. अवामक लक्ष्मीनारायण गौआं लोकनिक परिवारक सदस्य थिकाह. वा पुरान युगक आदर्श राजा थिकाह जनिका समक्ष केओ, कखनो फ़रियाद लए सोझे उपस्थित भए सकैछ.ने कोनो पतिआनी, ने कोनो प्रतीक्षा.

तें, एखन हमरो लोकनि लक्ष्मीनारायण के सूतले छोड़ि सोझे (अवाम आ पोखरभिंडा गामक बीचक) बाध में आबि गेलहुँ. एतय अबिते भोरुकबा आ पूर्ण चन्द्रमा दुनू मुहांमुही ठाढ़ भेटलाह. भोरुकबा पुबरिया आकाश में आ चन्द्रमा पश्चिम दिस. आकाश एखन साफ़ अछि. वातावरण निर्वात, किन्तु सुखद. जेना, हेमंत ऋतु होइक. भोरुका झलफल में खेतक जजात तं नीक जकाँ नहिं देखबा में नहिं अबैछ, किन्तु, एखन रब्बी-राईक समय छैक.

क्रमशः पौ फाटि गेलैए. बाध दिस लोक आब भेटब शुरू भेले. एतय सड़कक एक कात पत्रहीन पीपर ठाढ़ छथि आ दोसर दिस आमक कलम आ गाछी में मज्जरसँ भरल आमक गाछक समूह. लगैत अछि, एहि बेर खूब आम फड़तैक. किन्तु, आमक मज्जर आ आमक फसलक बीच अनेक संभावना छैक. अगिला किछु मास में मौसम केर मिजाज़ सबसँ बड़का निर्णायक थिक.

किछु आओर आगू बढ़ला पर किछु परिचित गौआं लोकनि अभरलाह आ हमरा लोकनिक संग भए गेलाह. सड़कक कातक खेत में मसुरी उखाड़ि कए गोलियाओल छैक. एकटा ग्रामीण कहैत छथि, ‘ पहिनेक समय रहितैक तं उखाड़ल मसुरी कहिया ने पार भए गेल रहितैक ! आब पन्द्रहो दिन एतय रहतैक तं केओ छूबो नहिं करतैक.’ ई सूनि नीक लागल.

हमरा लोकनि पोखरिभिंडा गाम धरि गेलहुँ. आपस होइत रही तं पूर्वक क्षितिज पर सूर्यक लाल चक्का सेहो उपस्थित भेलाह. महानगर सब में चान-सूर्य-तारा देखबाक सेहन्ता होइछ. गाम घर में एखन धरि ई लोकनि नागा नहिं करैत छथि. धूल-धुआं, धोन, आ मेघ तं सबठाम स्पर्धा करैछ.

आपसी में लक्ष्मीनारायण केन सेहो सुगबुगाइत देखलियनि. हुनक मन्दिरक सामनेक विशाल पीपरक गाछ, हमर बोधि-वृक्ष, एखनहु एहि परिसर कें छाया दैत ठाढ़ छथि. संयोगसँ हिनका शरीर पर पातक आभाव नहिं, ई पत्रहीन नहिं छथि. नहिं जानि, सड़कक पुबारि कातक पीपरक देह एखन नांगट किएक छनि. छथि तं ओएह पोखरिक बेसी लग. मुदा, मोन बिखिन्न छनि. हुनका जड़ि में प्रायः फूल-बेलपात नहिं चढ़ैत छनि. श्मसानक लग छथि. कदाचित भयभीत होथि! चिता सबहक धाहसँ काया कवलित भेल होइनि.  

ई सब सोचिते रही कि, तावते हमर गौआं, विनोद, भजन गबैत बाटे-बाट जाइत भेटलाह. हम प्रत्येक बेर हुनका अपना घर में पितामहक अमल केर कबीरपंथी साहित्यक खोज पुछारि करैत छियनि. मुदा, लोकक रूचि केवल बाप-पितामहक छोड़ल संपत्ति-सोना-बास डीह आ गाछी कलम में होइत छैक. घरक सफाई में सबसँ पहिने पोथीए-पतरा बाहर फेकल जाइछ. दिबाड़ सेहो पहिने पोथीएक संहार करैछ. तखन बाबाक युगक किताब कतय भेटत !  

संयोगसँ एहि बेर गाम में भोरे पढ़ैत केओ नेना देखबा में नहिं आयल. लगैए, कोरोना कालक प्रभाव एखनो छैक. मुदा, गाम में एखन कोरोनाक भए देखबा में नहिं आयल.भरि गाम में एको गोटे मास्क लगौने नहिं भेटल. अंततः हम अपनों मास्क उतारि बैग में राखल.

एहि बेर हम भौजीक निधनक कारण गाम आयल छी. आइ आ काल्हि बहुत गोटे भेटताह. तखन गाम में आओरो  बहुत किछु देखबा में आओत.                            

Thursday, March 24, 2022

पारंपरिक मैथिली में ‘धन्यवाद’ शब्दक समावेश नहिं !

 मैथिली में आभारक अभिव्यक्ति

 पारंपरिक मैथिली में ‘धन्यवाद’क समावेश नहिं !

पश्चिमी सभ्यता में धन्यवादक खर्च बड्ड बेसी. हमरा लोकनि अपन गाम-घरसँ बाहर आबि बसलहुँ . आब हमरो लोकनिक जीवन में धन्यवादक खर्च थोड़ नहिं. तें, अपेक्षा जे लोक भरि-भरि आँजुर धन्यवाद दिअए. आ से नहिं भेटल तं नीक नहिं लगैछ. मुदा, किएक ? मैथिल समाज में हमरा जनैत धन्यवादक परंपरा नहिं. तखन, मिथिला में आभार प्रदर्शनक अवसर आ आभार प्रदर्शनक अभिव्यक्ति केहन होइछ, एतय एही पर विचार करी.

आरम्भ ‘धन्यवाद’ शब्दसँ करी. सत्यतः, ‘शब्दकल्पद्रुम’ में ‘धन्यवाद’ शब्द नहिं भेटल. अर्थात् संस्कृत साहित्य में वार्तालाप में (प्रायः) धन्यवाद शब्द नहिं भेटत. हम अपने संस्कृत साहित्य नहिं पढ़ने छी. अस्तु, ई गप्प केओ संस्कृतक विद्वाने अधिकार पूर्वक कहि सकैत छथि.

आब मैथिली में आभार प्रदर्शनक किछु उदाहरण देखी. मूलतः, एहि सब में उपकार मानबाक स्वीकृति छैक.

हमर बड़ उपकार भेल.

ई उपकार जिनगी भरि नहिं बिसरब.

ई गुण नहिं बिसरब.

बेर पर (वस्तु/ अर्थ) काज आयल/ (अहाँ काज) अयलहुँ.

आबि कए पार लगा देलहुँ.

अहाँक सहयोगसँ  पार घाट लागल

पति रखलहुँ/ (सहायता) पतिराखन भेल.

पतित हेबासँ बचाओल.

उत्तरी(य) तोड़ाओल/ उत्तरी(य) टूटल.

जाति बचल

अजाति हेबासँ बचलहुँ.

खोज पुछारी राखल, उपकार भेल.

आभार-  ई शब्द मैथिलीक गप्प सप्प में पहिने तं नहिंए छल. आब तं हमरा लोकनि प्रयोग करिते छी.

धन्यभाग- एहि शब्द में आभार वा धन्यवादक ध्वनि नहिं छैक. एहि में अपन भाग्य पर संतोष छैक. अर्थात् ‘धन्यभाग. अहाँ अयलहुँ’ में सेहो अयबाक कारण अपन भाग्यक प्रशंसा छैक, आयल व्यक्तिक प्रति आभार नहिं.

पश्चिमी परंपरा में प्रीति- भोज आ निमंत्रणक हेतु सेहो आभार प्रदर्शनक परंपरा छैक. अपना ओतय नोतहारी ‘नोत मानि’ घरवारी पर उपकार करैत छथिन. तखन, धन्यवाद कथिक ? ऊपरसँ आइ अहाँ नोत देलहुँ, तं काल्हि हमहू देब. तखन उपकार कथिक! ऊपरसँ, आब तं सुनैत छी, गाम घरहुँ में नोतहारी भेटब कठिन. शहर में तं केओ नोत खयबा ले अयबो करताह तं रवि दिन, वा राति कए. यदि रविओ क नोतहारी कें आयब कठिन होइनि तं swiggy वा zomato app पर भोजन घर पर पठा दियनु. नोतहारीसँ भेंट नहिं हएत.  मुदा, ई विषयांतर भेल. मूल बात जे खयबाक निमंत्रण आभारक विषय नहिं भेल. हं, ‘थैहर-थैहर भए गेलैक !’ भोजनक प्रशंसा भेलैक, धन्यवाद नहिं.

वस्तु  वा पदार्थक हेतु प्रशंसा ले ‘बड़ दिब लागल’, ‘बड़ सुन्दर’ पर्याप्त थिक.

नीचा लिखल अभिव्यक्ति अनुरोध-सूचक थिक, आभार सूचक नहिं:

( ई कए दी/ दए दी तं) बड़ गुण मानब

खोज पुछारी राखल / राखी ( अनुरोध सूचक).

‘पोथी नीक लागल’ पोथीक प्रशंसा थिक. मुदा, उपहार-स्वरुप देल पोथीक प्रति आभार नहिं थिक.

अस्तु, हमरा जनैत, पारंपरिक मैथिली गप्प-सप्प में अपन परिवार में तं नहिंए, अनको संग गप्प में ‘धन्यवाद’क

समावेश नहिं !     

 


मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

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