Sunday, August 29, 2021

किरण जीक सान्निध्य में किछु देखल, किछु सुनल

 

किरणजीक मृत्युक 32 वर्षसँ बेसी भए गेलनि. हुनकर समकालीन, आ हुनकर सहकर्मीक अतिरिक्त मैथिलीक प्रचार-प्रसारक आन्दोलन मे फाँड़ बान्हि हुनक संग चलनिहार म सं आब प्रायः किछुए बंचल होथि. हमरा लोकनिक पीढ़ीक किछु गोटे अवश्य किरणजीक मैथिली अभियानक प्यादा वा foot-soldier रहल हेताह. मुदा, हमरा सेहो गौरव प्राप्त नहिं अछि. तथापि, एक अर्थ मे हम किरणजीक समानधर्मा अवश्य छी.मुदा, से पछाति. एखन उद्देश्य अछि, किरणजीक निकट रहि जे किछु देखल, वा हुनका मुंहें जे सुनल, ताहि म सँ किछु किछु प्रेरक आ चमत्कृत करबा योग्य संदर्भक चर्चा.

हम जहिया ककहरा पढ़ब शुरू कयने हएब तहिया किरणजी ‘ किरणजी’ क रूपें प्रसिद्द भए चुकल छलाह. तें, हुनकर छवि कें हमर दिवंगता माता हमरा समक्ष प्रेरणा-पुंज वा आदर्शक रूप प्रतिष्ठापित कयने छलीह. तकर कारणों छलैक. हमर माताक दृष्टि मे किरणजी एहन योद्धा छलाह जे स्थापित मान्यताक छहरदेवाली कें सहजहिं अपन बाटक अवरोध मानबा ले तैयार नहिं होइत छलाह. एहि तथ्यक पक्ष मे अनेक प्रमाण सुनने छलहुँ. पहिल, सुनल जाइछ जे किरणजी अपन पित्तीक भविष्यवाणी रहनि जे ‘ हिनका जं विद्या होइनि तं तरहत्थी मे केश चरितार्थ हएत.’ मुदा, किरणजी अपन परिश्रमक बलें उच्च शिक्षा क कोन श्रेणी धरिक बटिखाराकें भजारलनि से सर्वविदित अछि. एहि संदर्भ में किरणजीक मुँहें सुनल दू टा आओर गप्प मन पड़ैछ. पहिल, किरणजीक शिक्षा-दीक्षाक युगमें अंग्रेजी शिक्षा ने सुलभ रहैक आ ने सर्वग्राह्य. मुदा, ई अपन दू गोट जेठ भाई जकाँ, रजौर (अजुका बांग्लादेश) जा कए राजा टंकनाथ चौधरीक संरक्षण में मैट्रिक पास केने रहथि. ओ कहथिन,  ‘ 16 म वर्ष में ABCD सिखने रही. पहिने, संस्कृत पढ़बाक-घोखबाक हिस्साक छल. रजौर गेला पर अहल भोर उठि जोर-जोरसँ  पाठ घोखए लगैत छलहुँ. राजा टंकनाथ चौधरीक आवास लगहिं में रहनि. मुदा, हमरालोकनिकें कोनो वर्जना नहिं. तथापि, एक दिन राजाक एकटा निकट संबंधी कहलनि, ‘एतेक भोरे, एतेक जोर-जोरसँ पढ़इत छी. राजाकें निन्न में बाधा हेतनि तं विदा कए देताह. बस. हमर जोर-जोरसँ पढ़ब बन्न भए गेल. दिन दुइएक पछाति राजाक नज़रि हमरा पर पड़लनि. पुछलनि, ‘ नत्थू, आइ-काल्हि पढ़इत नहिं छह ? हमरा हुनकर संबंधी जे हिदायत देने  रहथि, से हम राजाकें सुना देलियनि. राजा हँसय लगलाह. कहलनि, ‘ जाह, तों आओर जोर-जोरसँ पाठ पढ़ह.’

दोसर गप्प ओकर बहुत दिनक पछातिक थिक: केओ हितैषी वा मित्र  किरणजी कें पुछलखिन, ‘ किरणजी, अहाँ कें M.A., Ph D. आदि परीक्षा देबाक कोन प्रयोजन ! अर्थात्, अहाँक योग्यता सर्वविदित अछि. एहि पर किरणजी कहलथिन, ‘से जे बूझैए तकरा ले ने. जे नहिं बूझैए तकरा ले भजारि देलिऐक-ए.’

किरणजीक प्रकृतिसँ योद्धा हेबाक अओरो उदहारण छनि. सुनल अछि जे युवावस्था मे किरणजी कालाजारसँ  बहुत दिन धरि मरणासन्न भए पड़ल रहथि. तथापि, परिवारजन भले हुनक जीवाक आस त्यागि देने होथुन, किरण जी अपन जिजीविषा आ आन्तरिक उर्जाक बलें ओहि युग में मृत्यु पर विजय पओने  छलाह जहिया प्रतिवर्ष मलेरिया, कालाजार आ यक्ष्मासँ अजस्र लोक मरैत छल.

प्रारम्भिक जीवन मे किरण जीक परिवार आर्थिक दृष्टिऍ झमारल छलनि. किन्तु, अपन बाहुबल आ मितव्ययी स्वभावें ई एकटा शिक्षकक वेतन पर अपन आर्थिक परिस्थिति कें सुदृढ़ कयलनि. एहि संदर्भ मे किरणजी निम्नलिखित किछु पाँति जेना हुनक अपने जीवनक कथा कहैछ:

की थिक भाग्य, विधाता के अछि  ?

सबसँ पौरुष हमर प्रबल अछि .

                                    कतेक दिनक बाद, पृष्ठ 2

दाढ़ी मोंछ न पुरुखक लच्छन

ढेपा, चेपा, कांकर, पाथर, कांट-कूस ओ जंगल झाँखुड़

चूरि-चारि ओ थूरि-थारि पथ, पुरुख बनाबय चिक्कन

                                    विजेता विद्यापति, पृष्ठ 37

सर्वविदित अछि, आरम्भ में किरणजी व्यवसायें वैद्य छलाह. मुदा, अपन ज्ञान-प्राण में हमरालोकनि हुनका वैदागरी करैत नहिं देखने रहियनि. संयोगसँ हम जखन दरभंगा मे पढ़इत रही तं हुनकासँ  नित्य भेंट होइते छल. ओहि समय मे बुझबा में आयल जे किरणजीक चिकित्सा शास्त्रक ज्ञान आ अनुभव, दुनू गम्भीर छलनि. परिस्थितिवश चिकित्सा व्यवसाय छूटि गेल रहनि. प्रायः तकर कचोट सेहो रहनि. तें, कदाचित् बनारस हिन्दू विश्वद्यालय आ कलकत्ता विश्वविद्यालयक अपन जीवनक चर्चा सेहो करथिन. ओहि में काशी विश्वविद्यालय में मैथिलीक मान्यताक हेतु कयल हुनक प्रयासक चर्चा सेहो रहैत छल. ई प्रसंग आब सुपरिचित अछि, आ अनेक ठाम विस्तारसँ एकर चर्चा भेल अछि, तें ओकर चर्चा एतय छोड़ि दी.

किरण जी एक दिन हमरा लोकनि कें अपन बैदागरीक जीवनक आरम्भिक कालक एकटा रोचक प्रसंग कहलनि:  ‘बैदागरी पढ़िकए गाम आयल रही. अपने दरबज्जा पर .....( एक गोटे ) भेटलाह. कहलनि, ‘बैदागरी पढ़लहुँ-ए.’ आ से कहैत अपन गट्टा आगू बढ़बैत कहलनि, ‘ कहू तं हमरा कोन रोग अछि.’

हम कहलियनि, ‘ हम पशु चिकित्सा नहिं पढ़ने छी. पुछनिहार अपरतिब भए गेलाह.’

मुदा, एतबा अवश्य जे किरणजी कें चिकित्सा व्यवसायक प्रति लगाव छलनि. 1973 मे जखन दरभंगा मेडिकल कालेज में हमर नाम एम बी बी एस कोर्स में लिखल गेल तं कहने रहथि, ‘ दरभंगा मेडिकल स्कूल में नाम लिखेबाक लेल हमर चुनाव भेल छल. मुदा, पचास रुपैया नहिं छल. तें, नाम लिखबितहुँ से नहिं भए सकल. आइ ( दरभंगा मेडिकल कालेज में ) अहाँक नाम लिखल गेल, तं ओ मनोरथ पूर्ण भए गेल.

मुदा, हमरा हरदमे ई प्रश्न खिहारैत छल जे एहन तीक्ष्ण बुद्धि आ चिकित्सा शास्त्रक एहन विलक्षण ज्ञानक धनी चिकित्सक व्यवसायसँ  विमुख किएक भए गेलाह. एक बेर पुछलियनि: अहाँ चिकित्सा व्यवसाय किएक छोड़ि देलिऐक ? तं ओ कहलनि,’ की करितिऐक. एहि इलाका में तहिया अत्यंन्त गरीबी रहैक. जतय चिकित्सा करय जाइत छलहुँ, औषधिक मूल्य आ वैद्यक फीस देबाक हेतु लोककें रोगी / नेनाक काड़ा-माठा, वा खुट्टा पर बान्हल माले-गाए बेचब वृत्ति होइत छलैक. घर मे औषधि किनबाक मूल्य नहिं, पथ्य ले अन्न नहिं. चिकित्सा की करितिऐक !

फलस्वरूप, किरणजी चिकित्सा व्यवसाय छोड़ि शिक्षक बनि गेलाह. किरण जी शिक्षकक रूप में केहन रहथि, से तं ओएह सब कहताह जे हुनकासँ पढ़ने छथि.  हमरा से सौभाग्य नहिं भेल. किन्तु, हुनक दृष्टि एतेक स्पष्ट रहनि जे  कोनो विषय पर ओ एहन उपलक्षण दितथि जे हुनक उक्ति अएना जकाँ झलकि उठैत. एकर एकटा प्रसंग एतय कहब अप्रासंगिक नहिं हएत.

किरणजी चंद्रधारी मिथिला महाविद्यालयक अपन सेवाक अवधि मे रहमगंज, लहेरियासराय में डेरा रखने रहथि. दरभंगा प्रवासक ओहि अवधि में ओ प्रायः प्रतिदिने सांझ कए  हॉस्पिटल रोड स्थित हमरा सबहक डेरा आबथि. एक दिन हमरा लोकनि हुनकासँ गप्प करैत रही. किछु हंटि के एकटा नेना सेहो ओतहि पढ़इत रहथि. पढ़बासँ नेनाक ध्यान हंटि जाइनि. पढ़बासँ  ध्यान हंटिते, ओही परिवारक एक गोटे बेर बेर कहथिन, ‘अहाँ पढ़ू’, तं किरणजी कहलथिन, ‘ पोथी-किताब घास नहिं थिकैक, जे मालक आगू  फेकि दिऔक आ खा लेतैक. पढ़ाएब आवश्यक छैक.’  किरणजीक  संग बिताओल समयक एकटा आओर प्रेरक प्रसंग मन पड़ैत अछि.

हमरा लोकनिक डेरा परहक साँझुक  एहने एक बैसाड़क पछाति एक दिन किरणजी अपन डेरा ले बिदा भेल रहथि. राति करीब दस बाजि गेल रहैक. मेडिकल कालेजक गेट लग हुनका रिक्शा लेबाक विचार भेलनि. एकटा रिक्शावाला कें पुछलखिन, ‘ रहमगंज चलबह ?

-‘नैं’

हमरा लोकनि कालेजक छात्र रही. कहलिऐक, ‘ किएक नहिं ? आ हमरा लोकनि दू गोटे छरपि कए ओकर रिक्शा पर बैसि गेलहुँ. कहलिऐक- चलह !

किरणजी कहलनि, ‘ छोड़ि दिऔक.’

‘किएक नहिं जेतैक ?’ हमरा लोकनि प्रतिवाद केलियनि, ‘ एकरा सबहक हिस्सके एहने छैक !’

‘नहिं. नहिं जेतैक, तं नहिं जाउक. ओकरो अपन स्वतंत्रताक एतबा अनुभूति तं होबय दिऔक.’ कहैत किरणजी डेरा दिस आगू बढ़ि गेलाह.

आइओ कहैत छी, व्यक्तिगत स्वतंत्रताक प्रति हुनक एहन आदर हमरा लोकनि कें चमत्कृत अवश्य कयलक.

            तहिना छलनि किरण जीक अपन माटि-पानि-देश-भूमि-पर्वत-नदी सबसँ प्रेम जे धर्म-पुण्यक अवधारणासँ दूर आत्मवत्  अनुभूतिसँ अनुप्राणित छलनि. मन पड़ैत अछि, एक बेर हमर माता स्व. बिन्देश्वरी देवी ( स्व. किरणजीक छोटि बहिन) गंगा-स्नान ले सिमरिया घाट विदा भेल छलीह. हमरालोकनि ( किरणजीक धर्मपुर गामक वाससँ किछुए दूर) लोहना रोड स्टेशन पर ट्रेनक प्रतीक्षा मे बैसल रही. किरणजी हमर माताक भेंट करय स्टेशन पर आएल छलाह. गप्प कए वापस गाम पर जेबाकाल ओ हमर माए कें कहलथिन, ‘ अच्छा, गंगा मे हमरो ले एक डूब द’ देब.’

किरणजीक कट्टर नास्तिक रहथि. अस्तु, तहिया हुनक ई गप्प हमरालोकनि कें आश्चर्यनक लागल छल. मुदा, पछाति, किरणजीक मरणोपरांत जखन हुनक काव्य-कृति ‘पराशर’ प्रकाशित भेलनि तं ओहि में पढ़लहुँ:

जय जय धरती मानव जीवन केर आधार

प्राण

जय जय अनिल, सलिल, जय सूर्य-चान

जय आसमान .

जय जय पर्वत राज हिमालय,तोहरे देहक

कण-कण सँ अछि बनल हमर सबहक ई देश .

कोशी, कनकइ, कमला, गंडक, गंगा

द्वारा सनेस जकाँ पठा माटि

एकरा छह पुष्ट करैत

अपन शरीरक घाम सदृश हिमजल सँ

छह पटबैत

पुनि कहिओ-कहिओ तमसैल

जकाँ भूकम्प मचा ध्वंसो छह 

क’ दैत,

तें तीरभुक्ति मिथिलाक थिकह तों

ब्रह्मा-विष्णु-महेश.

                                                        एहि सब पाँति पढ़ि कए हमर भ्रांति दूर भए गेल !

( मैथिली अकादेमी पत्रिका, पटना, अंक 9, 2006 में प्रकाशित लेख केर संपादित, अद्यतन  स्वरुप )

                  

Tuesday, August 10, 2021

गंगा नदी आ अपूर्व चन्द्रोदयक एक सांझ

 

जीवन विस्मयकारी अनुभव सबहक यात्रा थिक

जीवन विस्मयकारी अनुभव सबहक यात्रा थिक. छोट नेनाक विस्मयक विषय आ चेतनक विस्मयक कारण भिन्न होइत छैक. मुदा, विस्मयकारी अनुभवक सिलसिला समाप्त नहिं होइछ. विस्मय बुढ़ारियो में होइछ, मृत्युशय्या पर सेहो होइछ. किन्तु, ओहि दिनुक विस्मयकारी अनुभव प्रकृतिक सुन्दरताक अनुभव थिक. गप्प तं प्रायः 1995- 96 क छियैक. हम बरेली सैनिक चिकित्सालय में पदस्थापित रही. ओहि समयमें मुलायम सिंह यादव रक्षा-मंत्री रहथि. पार्टी कोनो होइनि, राजनेता लोकनि सत्ताक दुधारू गाई कें दुहिते छथि. मुलायम सिंह यादव अपवाद नहिं रहथि. हुनका फ़तेहगढ़, उत्तरप्रदेश में पार्टी कार्यकर्त्ता लोकनिक सार्वजनिक सभाकें संबोधित करबाक रहनि. मुदा, सशस्त्र सेनाक वायुयानक उपयोग ले तं कोनो सरकारी ड्यूटीक बहाना चाहियैक. अस्तु, रक्षा-मंत्रीक सिख लाइट इन्फेंट्री रेजिमेंटल सेंटर आ राजपूत रेजिमेंटल सेंटरक दौराक कार्यक्रम बनल. रक्षा मंत्री फतेहगढ़ जयताह तं ओतुका मिलिटरी प्रतिष्ठान सबकें मंत्री जी कें अपन गतिविधि देखयबाक आदेश भेलैक. मध्यकमानक यु पी एरिया ( आब उत्तर भारत एरिया ) आदेश निर्गत कयलक. हमरा लोकनि बरेली मिलिटरी अस्पतालक दल ल कए फ़तेहगढ़ गेलहुँ. हम पहिनहुँ  फतेहगढ़ गेल रही. मुदा, एहि बेर रक्षामंत्री अबैत रहथि.  

                                                                फ़तेहगढ़ किला 

फ़तेहगढ़, फर्रुखाबाद जिलाक मुख्यालय गंगाक दक्षिणी कछेर पर बसल अछि कैंटोनमेंट थिक, फर्रुखाबाद शहर एतयसँ करीब पांच किलोमीटर दूर अछि. कैन्टोमेंट केर नाम एहि ठामक गढ़ वा किलाक कारण फ़तेहगढ़ थिक. जेना आन सबठाम छैक, एतुको किला सेनाक नियंत्रण में अछि. विकिपीडिया कहैत अछि, 1857 केर सिपाही विद्रोह में विद्रोही लोकनि किलापर कब्ज़ा कए लेने रहथि. एतय लगभग 200 यूरोपियन मारल गेल छलाह. किछु जे  गंगाक बाटें नाओसँ भगबा में सफल भेलाह से बाटे में पुनः पकड़ल गेलाह, आ विद्रोही लोकनिक हाथें हुनकोलोकनि संहार भेल. पछाति, जखन ब्रिटिश सरकार पुनः नियंत्रण स्थापित केलक तखन तं सब किछु फेर ओकरे भए गेलैक. ओना ब्रिटिश सरकारक उपस्थिति विद्रोहसँ पहिनहुँ एतय रहैक. ओहि समय में एतय ब्रिटिश सेनाक गन-कैरेज फैक्ट्री सेहो रहैक, जे सामरिक दृष्टिसँ उपनिवेशवादी सेनाक हेतु महत्वपूर्ण छलैक.                                                                        आब पुनः विषय पर आबी. नागरिक सभाक दिन रक्षामंत्री हेलिकॉप्टरसँ अयलाह. सेनाक प्रदर्शनी टेंट सबमे लागल छलैक. ओ प्रत्येक टेंट में गेलाह. अफसर लोकनिसँ हाथ मिलओलनि. फोटो घिचल गेल.  प्रदर्शनी देखलनि, आ सोझे सार्वजनिक सभामें गेलाह. मुदा, एहि में किछु विस्मयकारी नहिं रहैक. विस्मयकारी अनुभव रातिमें भेल.              रक्षामंत्रीक सम्मान में राजपूत रजिमेंटल सेंटर केर अफसर मेस में रात्रि-भोज भेलैक, जकरा सेनाक भाषामें डिनर-नाईट कहल जाइछ. ई अत्यंत औपचारिक पार्टी थिक जकर वर्दी, ड्रिल, बैंड-बाजा, आ बैसबाक, खयबाक आ उठबाक निर्धारित रीति रिवाज छैक.                                                                                                                  राजपूत रजिमेंट गंगाक कछेर पर बसल छैक. ऑफिसर मेस तं नदीक सबसँ लग छैक. हमरालोकनि गंगाकें हरिद्वार, प्रयाग, बनारस, पटना आ कलकत्ता सब ठाम देखने छी. मुदा, मन नहिं पड़ैत अछि, पहिने कहियो गंगाक कछेर परक चंद्रोदय आ पूर्ण चंद्रमा देखने छी कि नहिं. ओहि राति पूर्णिमाक राति रहैक. अफसर मेस केर गलीचा सन घास पर बार लागल छलैक. रेजिमेंटल मिलिटरी बैंडक सर्वोत्तम कलाकारलोकनि वातावरणकें संगीतमाय केने रहथि. रक्षामंत्रीक सम्मान में जेहन भोजन-साजन उपयुक्त होइतैक से रहैक.                                                                          चन्द्रोदयक पहिने कालिमासँ  गोधूलि आ राति संक्रमण घनीभूत भए आयल रहैक. किछुए काल में पूब क्षितिज पर प्रकाशक आभास एलैक. कनिए कालमें चंद्रमाक आकृति संझुका धूमिल वातावरणक बाटें अवतरित भेल. पछाति, किछुए क्षणमें जे भेल से अपूर्व छल; चंद्रमाक गाढ़ रक्ताभ चक्का, क्षितिज कालिमा पर एकटा नैसर्गिक कला जकां उदित भेल. क्रमशः, जखन  सम्पूर्ण चंद्रमा मेसक परिसरक गाछ सबहक उपर आयल तं दृश्य अभिभूत कए देलक. एहन निर्मल चंद्रमा, एहन मृदु वायु आ एहन व्यवस्था, जे ओहि पार्टी कें भेना पचीस वर्षसँ बेसी भए गेलैक आ हम ओकर अनुभव आइ लिखए बैसल छी. चंद्रमा परसँ नजरि हंटल तं एकाएक भान भेल जे हमर लग जे अफसरलोकनि छलाह ताहि म सँ कर्नल दाश गायब रहथि. मुदा, हुनका दुबारा प्रकट हयबा में देरी नहिं लगलनि. हम चकित रही. पुछ्लियनि: कतय बिला गेल रही आ कोना अवतरित भए गेलहुँ ? ओहि पर जे ओ कहलनि से आओर विस्मयकारी छल. कहलनि : एतेक अनुकूल मौसम. एहन मनोरम वातावरण. एहन इजोत आ गलीचा सन घास. हम तं लॉन केर कोन पर दू चारि बेर ओंघराकय आबि रहल छी ! हम देखलिअनि हुनकर शूट पर एक दू टा सुखायल दूबि तखनो सटल रहनि ! हमरा बुझबा में आबि गेल. सेना में अफसर मेसक इतिहास कहैत अछि, जे बहुत पहिने लेडिज लोकनिक हेतु अफसर मेस परिसर वर्जित रहनि. कोनो औपचारिक अवसर में जं बजाओल जेतीह, तं अओतीह. अन्यथा ‘ हाई स्पिरिट’ में अफसर लोकनि अपना सबहक बीच की कए बैसताह, देवो न जानाति कुतो मनुष्यः. सत्ते, हमरोलोकनि जखन सेना में कमीशंड भेल रही तं इएह सुनने रही: अफसर मेस अविवाहित अफसर लोकनिक घर थिकनि. माने, ओतय ओ लोकनि ‘प्राकृतिक’ ( वा अप्राकृतिको) अवस्था में विचरण करैत छथि ! मुदा, सेनाक अनुशासन केहनो जीव कें साधि दैछ ! से हमर अपन अनुभव कहैछ.   

            ओहि पार्टी आ परिसर दोसर छवि जे आइओ स्मृति पटल पर खचित अछि, ओ थिक राजपूत रेजिमेंटल सेंटर परिसरमें स्थापित रानी विक्टोरियाक आदमकद ग्रेनाइटक मूर्ति. तहिया, संयोगसँ, भारत में तेना भ’ कए मूर्तिभंजनक  आधुनिक परिपाटी आरम्भ नहिं भेल रहैक. तहिया औरंगजेब खलनायक आ दाराशिकोह भारतप्रेमीक रूप में नामांकित नहिं भेल रहथि. सेनाक परिसरसँ मूर्ति उठायब, मूर्ति-तस्कर सुभाष कपूर ले सेहो सुलभ नहिं रहनि. नहिं जानि, आब विक्टोरियाक ओ मूर्ति ओतय अछि कि नहिं. कारण, आब इतिहासक पुनर्लेखन जारी अछि. हम सोचैत छी, जं भारत अपन इतिहास म सँ सबटा ‘अवांछित’ अंश हंटा देतैक तं भारत आ पकिस्तानक इतिहास में की अन्तर रहतैक; भारत आर्य लोकनिक इतिहासकें अपनाओत. पकिस्तान मुग़लकालीन इतिहासकें अपन पोथीमें स्थान देने छैक ! मुदा, हमर से चिन्ता नहिं. हमर विचार जे जं मौक़ा लागय तं एक बेर जखन आकाश निर्मल होइक, गंगा कछेर पर चन्द्रोदय अवश्य देखू. कारण, सौन्दर्यक अनुभव वस्तु थिक, लिखबाक नहिं. एहि बीच में कतहु पढ़बो केलहुँ  जे भाषा अपनामें अन्तर्हित सत्य कें छोड़ि आन कथुक वर्णन नहिं के सकैछ. आ से सत्य थिक ! जं आँखि मूनि ली, कान बंद कए ली तं शब्द, संगीत, आ कलाक स्वरुप चेतना धरि कोना पहुँचाओत !

हं, समाप्त करबासँ पूर्व एकटा आओर गप्प. हमरा लोकनिक प्रदर्शनी रक्षामंत्रीक गेलाक पछातियो, दोसरो दिन छल. जेना, अनुमान कए सकैत छी, स्थानीय फोटोग्राफर प्रत्येक अफसर आ जवानकें रक्षामंत्रीसँ  हाथ मिलबैत फोटो लेने रहथि. आइओ फोटो बेचए आयल छलाह. मुदा, जखन हमरा लग अयलाह तं हम कहलियन्हि, ‘ हमरा एतेक हिम्मत नहिं जे मुलायम सिंहक संग अपन फोटो घर में राखब ! हमर परिवार आ धीया-पुता हमरा घरसँ  निकालि देताह. तं, सब हंसय लागल. मुदा, पछाति अपना लागल जे हम अनर्गल कहि देलियैक. हमरा लोकनिक व्यवस्था लोकतंत्र थिक. बेचारी चलिए गेलीह. नहिं तं कोन ठेकान अगिला बेर स्व. फूलन देवी रक्षामंत्रीक रूप में अबितथि, हमरा  लोकनि हुनको गार्ड-ऑफ़-ऑनर देबे करितियनि ! ओ समाजवादी पार्टी क एम पी तं रहबे करथि. बेचारोक हत्या भए गेलनि ! नहिं, तं कोन  ठेकान !        

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

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