Thursday, November 25, 2021

कमला के किनारे का बूढ़ा इमली का पेड़

 

कमला के किनारे का बूढ़ा इमली का पेड़

1

कमला के रेत पर सब कुछ उगता है; घास-फूस, कास-पटेर. धान, दलहन. परोड़, फूंट-खरबूज. तरबूज-पहलेज-ककड़ी. सब कुछ. और सब कुछ बिना मेहनत के. बस बीज होना चाहिये. धूप सूरज देता है और रेत गर्मी. पानी कमला देती है और खनिज-नमक हिमालय से आता है. हिमालय समुद्दर का बेटा जो है.

लेकिन कमला नदी  है बड़ी मनमौज. जो इसके साथ चले उसका वाह-वाह. जो सामने खड़ा हो जाय उसे तो उखाड़ ही फेंकती है. लेकिन कुछ लोग न कमला से डरते हैं, न राजनेता से. ये वैसे लोग हैं, जो टूटते हैं, पर झुकते नहीं . दुबौली कें सपाट बाधमें अकेला खड़ा इमली का पेड़ ऐसा ही अक्खड़ है. एक तो कमला के पेट यानी नदी के पाट के आसपास  में पैदा होना और फिर पांक, रेत, पानी से जूझते बरसों-बरस बढ़ते जाना. यह एक कमाल नहीं तो और क्या है !

शायद यह पेड़ कुम्मरि पोखर के भीड़ पर पैदा हुआ था. कुम्मरि पोखर की भी अपनी कहानी है. लेकिन वह बाद में कभी. हाँ, तो पहले के जमाने में कमला-कोसी की धार के पाटों के दोनों तरफ कोई बाँध नहीं था. इन नदियों की जिधर इच्छा होती थी, चल देती थी. एक बार कमला नजदीक के गांव कर्णपुर को ही लील गयी. गाँव के घर, माल मवेशी सारे बह गये. गाँव के बाहर का सोलकन्ही गढ़ बंच गया, और गाँवके पूरब कुम्मरि पोखर बंच गयी. सच पूछिए तो बंच क्या गयी, पानी से घिर गयी. भीतर पानी, बाहर पानी. केवल भीड़ ही तो था जो पानी के बाहर दीख रहा था. शायद यही पोखर का भीड़ इमलीके इस बिरबे को बंचा गया होगा. अकाल-बिकाल में थोड़ा भी सहारा मिल जाय, तो जीव जीवन को सम्हाल लेते हैं. सहारा नहीं मिले, तो कितने हवा,पानी और धूप की  भेंट चढ़ जाते हैं.

सच पूछिए तो यहाँ किसी को मालूम नहीं, यह पेड़ कितना बूढ़ा है. शायद कभी गिर कर मर खप जाय तो वैज्ञानिक इसकी आंत में से इसके उम्र की रहस्य निकालें. लेकिन, अपनी औकात साबित करने के लिए मरना भी एक बेवकूफी ही है !

जिस इलाके में नदियाँ हर साल अपनी राहें बदल लेती हैं, वहाँ गाँव वालों को रास्ते ढूढने में मुश्किल भी होती है, और नहीं भी. जहां पैर रखने की जगह मिल गयी, लोग बस गये. जहाँ आगे जमीन दीख गयी रास्ते बन गये. इसलिए, कमला के किनारे का यह इमली का पेड़  अभी राहगीरों का साथी बना हुआ है. वैसे तो, पाकड़, बरगद और पीपल नामी गिरामी होते हैं; सब को सहारा देने वाले को पंथ का पाकड़ जो बोलते हैं. लेकिन, यहाँ का सहारा यह इमली का पेड़ ही है. स्कूल जाते बच्चे जब ऊपर धूप और नीचे रेत से पक जातें हैं, तो यह इमली का पेड़ यहाँ ठंडी छायाक एकमात्र धनी है.  वैसे तो इनार और पोखर सब के होते हैं, और नहीं भी होते हैं. पर,  धनवान के धन पर केवल धनवान का अधिकार होता है. लेकिन, कमला के किनारे की इस घनी छायाके धनवान इमली की छाया सबकी है. और दुबौली का यह इमली का पेड़ सबका अपना है. इसकी एक वजह है; इमली का पेड़ कोई शीशम-सागवान तो नहीं जिसकी लकड़ी बेशकीमती हो. यह  आम-जामुन भी नहीं जिसके फल के लिए आदमी तो क्या कौवे-कोयल -गिलहरी भी मार करें. आम से भरे इस इलाके में भला इमली की क्या बिसात. पर बच्चों के लिए बातें वैसी नहीं है. उनके लिए न आम की कमी है, ना जामुन की किल्लत.पर इमली–इमली है. फिर, लकड़ीवाले दरख़्त से उन्हें क्या लेना. पेड़ की छाया  की जरूरत उन्हें आते-जाते रोज ही होती है. इस इलाके में ढूँढने पर भी इमली के पेड़ शायद हीं मिले. इसलिए, यहाँ इमली की छायामें बैठे-बैठे अगर इमली के दो फल, या दस बीस बीज मिल गये तो दोस्ती बन भी सकती है, और बिगड़ भी सकती है. इसलिए, बच्चों के लिए कमला के किनारे का यह इमली का पेड़ इस इलाके का अकेला हीरो हैं !

2

बूढ़ा इमली का पेड़ कमला नदी के किनारे का हीरो है, यह पहली बार किसने कहा था किसी को याद  नहीं. बूढ़े-पुराने लोगों को हीरो कहाँ मालूम है. लेकिन, स्कूल जाते लडकों के बीच दो लड़के- सोहन और माधव-में किसी बात पर  जब ठन गयी तो नौबत कुश्ती और मुक्केबाजी पर उतर आयी. बात तो छोटी-सी थी, लेकिन स्कूली बच्चों में मारपीट के लिए कौन-सी ज़मीन-जायदाद का मामला चाहिये. कभी कच्चे अमरुद, पके आम, बेर और तरबूज ही ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते हैं जिसका जोड़ केवल महाभारत में मिलेगा. सो उस दिन  जब मल्लयुद्ध होने पर ही था तो, जीतन ने बीच-बचाव करने की कोशिश की. बीच-बचाव से वे चिढ़ गये और  युद्ध पर उतारू योद्धा जीतन पर बमक पड़े. असल में सोहन और माधव और जीतन, सभी महावीर जी के भक्त थे  और परियाग बाभन के अखाड़ा पर सुबह-सुबह बदन में मिट्टी लगाते थे. ऐसे पहलवानी के शौक़ीन को अगर कोई कुश्ती से रोक दे, तो जो होना था, हुआ ; दोनों जीतन पर टूट पड़े. तुम कौन होते हो फौज़दारी से मामला  सुलझाने वाले ! हम अपना फैसला खुद करेंगे. जीतन ने कहा, ‘मालूम नहीं, हम यहाँ के हीरो हैं. पिछले तीन साल में कर्णपुर के अखाड़े पर अपनी बराबरी का कोई मुझे पछाड़ नहीं पाया है ! वो तो मुझे कोई लड़ने नहीं देता है कि बच्चे हो, बरना तो मैं फुचुर झा पहलवान को पछाड़ दूं !’

 फुचुर झा पहलवान इस इलाके के नामी गिरामी पहलवान थे. इतने नामी कि उनके मरे हुए तीस-चालीस साल हो गये पर, पहलवानी में उनका नाम अभी भी चलता है. लोग कहते हैं, फुचुर झा जब भी कहीं बाहर जाने के लिए घर से निकलते थे तो बजाफ्ता उनके गले उन तगमों की हार होती थी जो उन्होंने समय-समय पर जीती थी.

-अच्छा ?- सोहन ने कहा.

-तो क्या ?

-तो चढ़ो इस इमली के पेड़ पर. और गिराओ इसके फल देखें तो तुम्हारा साहस.

-‘यह क्यों चढ़ेगा ईमली के पेड़ पर ? इस पर तो भूत रहता है.’  जीतन के दोस्त  आगे आये .

अच्छा तो अब समझे हीरो का राज. भूत के नाम पर मूत !

इस पर जीतन ने सोहन और माधव को एक-एक  तमाचा जड़ डाला. वैसे तो दोनों इस बेइज्जती के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन वे जीतन से कुश्ती में जीत भी नहीं सकते थे.मगर, मुँह को कौन रोके. वे एक साथ बोलने लगे, ‘सच कहा तो लग गयी ना. हमने कौन सा झूठ कहा था. यहाँ का हीरो तो यह इमली का पेड़ ही है. हिम्मत है तो दिखाओ. महेसर सिंह मास्टर साहब तो उस दिन भी बोले थे, ‘ भूत हमरा वहम है .’ और वैसे भी इस पेड़ पर चढ़ना कौन- सी बड़ी बात है. डालें ज़मीन से थोड़े ही ऊपर से तो निकली है . और मदनपुर के भैंसवार तो इस पेड़ से रोज इमली तोड़ते हैं, ऐसा कौन नहीं जानता !

अब बात हिम्मत और पहलवानी पर आ गई तो फैसला होना ही था !  

3

गाँव के पछबार टोले के सारे लड़के नवकी पोखर के भीड़ के अखाड़े पर सुबह-सुबह जाते थे. किसी को फौज में भर्ती होकर पलटनिया होने की साध थी, तो कोई कुश्ती कर के किसी दूसरे को मजा चखाना चाहता था. फिल्म में हीरो बनना या लडकियों को लुभाने की बात कोई करता नहीं था; गाँव में फिल्म की बाटें नहिं होती थी और अखाड़ा जाने वालों के लिए लड़कियों से दूर रहने की सख्त हिदायत थी.

बहरहाल, दूसरे दिन जब जीतन वहाँ पहुँचा तो परियाग झा पोखर के दाउर पर बैठे नीम का दातून चबा रहे थे. दूर से ही जीतन को देखकर आवाज दी: का रे ? सुना है, तू फुचुर झा को मात दे रहा है !

-       कहाँ नारद जी - जीतन सकुचाते हुए बोला. चेला चाटियों के बीच में परियाग झा का नाम नारद जी है. लोगों का कहना है, इस पूरे गाँव में झगड़ा लगाने में नारद जी अव्वल हैं.

-       ठीक है. आज चल. फैसल हो ही जाय.

जीतन मन ही मन सोचने लगा; कहाँ मैं गाँव के लडकों को एक दूसरे का सर फोड़ने से बं चाव कर रहा था. और कहाँ इन लोनो ने मेरी चुगली कर दी. तभी उसको वहाँ से खिसकने की एक तरकीब सूझी. बोला, नारद जी मैं जरा हलुमान जी को जल चढ़ा कर आता हूँ. आज अखाड़ा से छूटकर सीधा बाध जाकर गेहूं कटबाना है. बाबूजी बोलते हैं, एक दिन स्कूल छूट ही जाय तो कोई बात नहीं, गैर हाजिरी का फैन दे देंगें. और जीतन परियाग झा की बातों को अनसुना कर के आगे बढ़ गया.

                                                                        4

स्कूली बच्चों की लड़ाई की एक खासियत है : यह लड़ाई, लड़ाई नहीं पुआल की आग होती है, जैसे ही तेज लपटें उठतीं वैसे हीं बुझ जातीं हैं. यह लड़ाई उम्रदराज लोगों की लड़ाई जैसी नहीं होती है. इसलिए, समझदार माँ-बाप इन लड़ाईयों में नहीं पड़ते हैं. और इमली के पेड़ के नीचे की उस दिन की लड़ाई का भी ऐसा ही हुआ. एक नयी सुबह और एक नयी कहानी.

दूसरे दिन लड़के दूसरी ही बात ले कर आये. लेकिन स्कूल और गाँव की लम्बी दूरी के बीच आराम से बातें इमली के पेड़ के नीचे ही होती थी. रेत पर पैदल चलते या कमला का धार पार करते बातें होतीं हैं, लेकिन, जिस सहूलियत से बाटें पेड़ के नीचे होतीं हैं, वैसी नहीं.

आज बदरी पण्डित एक नयी बात लेकर आया था. बोला- सुनते हो, माँ कहती थी कि भली माँ होगी तो इमली के पत्ते के भी खाना खिला देगी.

बदरी की बातें सुनकर सभी खिलखिला कर हँस पड़े. इमली पत्ते के भी खाना !

बदरी बिलबिला गया. बोला माँ तो कह रही थी. पर तुम लोग हँस लो.

                                                                        5

‘बदरी माँ कहती थी कि भली माँ होगी तो इमली के पत्ते के भी खाना खिला देगी.’ पण्डित जी क्या सच में इमली के पत्ते लोग खातें हैं ? – नथुनी ने पण्डित जी से पूछा.

पण्डित जी मुस्कराने लगे. पण्डित जी बनखंडी मिशिर बच्चों के चहेते हैं. जबकि इसका कोई ठिकाना नहीं कि कब किसको डांट पड़ जाये, थप्पड़ लग जाय या मुर्गा बनना पड़े. इसका कारण है : पण्डित जी किसी भी प्रश्न को सुनकर हँसते नहीं है. सब के बातों का जवाब उनके पास होता है. और कहानियाँ ? कहानियों का तो पिटारा है उनके पास. क्या शेर- खरगोश, नेवला-साँप, गीदर और सियार . उनके पास सब की कहानी होती है. और तो और पंडित जी जर्मन और जापान की अंग्रेजों से लड़ाई की भी कहानीमें गोला-बारूद का ऐसा  मिर्च-मशाला डाल कर सुनाते हैं कि बच्चों की भूख-प्यास मिट जाती है .

खैर, आज भी पहले के तरह, पण्डित जी थोड़े गम्भीर हुए. पर जब जवाब देना शुरू किया तो उनकी हँसी छूट गयी. बोले, बदरी तुम्हारी माँ ने सच कहा. पर तुमने ठीक से सुना नहीं.

पण्डित जी की बाटें सुनकर सारे बच्चे उनकी तरफ देखने लगे. तो पण्डित जी ने कहा – ‘ हाँ, बदरी की तुम्हारी माँ ने सच कहा. भली माँ होगी तो इमली के पत्ते के नहीं, इमली के पत्ते पे  भी खाना खिला देगी ! कभी देखा है , इमली के पत्ते ?

क्यों नहीं, पण्डित जी ! सारे बच्चे एकसाथ बोल उठे. तो फिर शंका किस बात की. इतने छोटे पत्ते और उसके सैकड़ों हिस्से. जिस पर  एक चावल रखना मुश्किल है , उसपर खाना खिलाना  ! हैं न ताज्जुब.

-       तभी तो !

-       पण्डित जी तभी तो तुम सब भोले हो !

-       सभी बच्चे उपर की और देखने लगे .

-       पण्डित जी ने कहा: अरे, भोले इसका मतलब, माँ असम्भव को संभव कर सकती है !

सभी बच्चे एक साथ ठहाक लगा कर हँसने लगे: इतनी-सी बात !

‘हाँ. इतनी-सी बात. और किसी ने समझा नहीं.

और उस दिन  की सभा खत्म हो गयी. अब इमली का पेड़ हीरो है या नहीं इसका फैसल हो या ना हो, इसके नीचे रोज की बैठक को कौन रोक सकता है .   

 

                                                                                                            ......क्रमशः

Saturday, November 20, 2021

दो-अनियाँ होटल

 

 दो-अनियाँ होटल

दरभंगा का हॉस्पिटल रोड १९६२ की लड़ाई के वक्त जैसा था, लगभग आज भी वैसा ही है. या यूं कहिए, आज उससे भी बदतर है : अस्पताल के सरकारी मकानों की गिरती दीवारें और कचरे का ढेर. सड़क के बीचो-बीच का मलबे कहीं-कहीं पर के  ढेर पर घास उग आयी है, और मलबे का ढेर खेतो के बीच मेड़ जैसा लगता है. सुना है, यहाँ स्मार्ट सिटी का काम चल रहा है ! पर, शहर जब भी स्मार्ट बने, फिलहाल स्मार्ट लोग शहर के बाहर अपने-अपने महल बना रहे हैं.

हाँ, तो १९६२ और आज ? अब फर्क इतना ही हुआ है कि हॉस्पिटल रोड की फूस की झोपड़ियाँ गायब हैं. और उसमें चलती ‘दो-अनियाँ’ होटल (जिसे बासु ‘दु-अनियाँ’ होटल कहता था) अब मुझे ढूँढना पड़ेगा. लेकिन आज यहाँ के सरकारी अस्पताल की खस्ता हालत से  लगता है, कि ‘ बासु के ‘दो-अनियाँ’ होटल का आधुनिक एडिशन  आज भी यहाँ चलता ही होंगा. क्योंकि, सुना है, अब इस सरकारी अस्पताल में मवेशी और कुत्ते-बिल्ली के अलावे अब केवल वही लोग आते हैं जिन्हें जाने के लिए कोई और अस्पताल नहीं है, खाने के लिए सस्ता होटल नहीं है ! सुनते हैं, हाल फिलहाल में एक महामारी के गरज से यहाँ के अस्पताल के दो बड़े ओहदेदारों को सरकार ने रातों-रात बर्खाश्त कर दिया था. पर, वह खबर पुआल की आग की तरह जली, और बुझ गयी. अस्पताल जैसा था, वैसा है. किसी का मजाल है, इसे सुधार दे !

हाँ, तो, हम बासु की “दो-अनियाँ’ होटल की बात कर रहे थे. जब बात कर ही रहे थे, तो, बताते चलें कि यह होटल उस सड़क पर था जो मेडिकल कालेज के सामने की सड़क के सामानांतर, बच्चा वार्ड से शुरू होकर आंनद रेस्ट हाउस के गेट के सामने से गुजरती थी. इंट के खरंजे से बने इस सड़क के दोनों ओर पतली नाली बहती थी, जिसमे सुअर निःसंकोच विचरते थे. उन दिनों इस सड़क के उत्तर कुछ जर्जर मकान थे. उन में  ‘जिसकी लाठी, उसकी भैंस’ नियम के मुताबिक़ अस्पताल के कुछ सरकारी मुलाजिम दिन काटते थे. एक-आधा बेहतर खंडहर में कुछ डाक्टर भी रह लेते थे. छौ-सात सौ रुपये माहवारी तनख्वाह पर कोई, आखिर, मकान भाड़े पर कितना खर्च कर सकता है ! इसलिए जो डाक्टर एनाटोमी, फिजियोलॉजी पढ़ाते थे और किल्लत में परिवार चलाते थे, आंनद रेस्ट हाउस के गेट के सामने के मकानों में डेरा डाले हुए थे. पर बासु का अपना घर था ! भगवान जाने कैसे, पर मेडिकल कालेज के इलाके में कुछ लोगों की जमीन की निजी प्लाटें भी थी. राजा की दी हुई ज़मीन, लूट सके सो लूट ! इसी में से एक खुशनसीब बाबू श्यामा प्रसाद सिन्हा थे. श्यामाबाबू किसी ज़माने में मेडिकल कालेज के दफ्तर में बड़ा बाबू थे. सुनते हैं, उन दिनों यहाँ उनकी तूती बोलती थी. उन दिनों लोग कहते थे, श्यामा बाबू के डर से यहाँ ‘खढ़’, यानी घास, जलता था ! यानी चलते हुए, उनके पैरों के नीचे की घास भी जलने लगती थी. उनका इतना रौब था. तो, शायद उसी जमाने में उन्होंने एक बड़ा सा प्लाट अपने नाम करबाया होगा. चाहर दिवारी से घिरे उस प्लाट में उनका अच्छा खासा मकान था. आगे बड़ा सा मैदान. मैदान की दाहिनी तरफ, एक-एक कमरे के दो डेरे थे, जो किराए पर लगते थे. किराए के इसी डेरे के बगल श्यामा बाबू ने बासु को थोड़ी ज़मीन दे रखी थी. उसी ज़मीन में बासु ने अपनी झोपड़ी, और जलावन की लकड़ीकी  दूकान, बना रखी थी. बासु का परिवार और ‘बुढ़िया’ के नाम से ख्यात बासु की बिधवा बहन, इसी झोपड़ी में रहते थे, और यहीं चलता था, बासु का ‘दो-अनियाँ’ होटल.

उस जमाने में जब पाँच पैसे में एक समोसा मिलता था,  दो आने में आम लोगों के लिए सत्तू का नाश्ता तो हो ही सकता था. पर यहाँ तो दो आने में सब कुछ मिलता था. फिर भी, बासु  ‘दो-अनियाँ’ होटल के खाने को दिन काटनेवाला खाना मानने को तैयार नहीं था. इसलिए, रोगियों के इलाज के गरज से आये लोग बासु के होटल की शरण लेते थे. कमर के नीचे फटी-पुरानी धोती, कंधे पर एक गमछा. सर्दी हुई तो सूती तौनी आ नंगा पैर. ऐसे लोगों के लिए बासु का ‘दु-अनियाँ’ बहुत बड़ा आसरा था.

होटल के खाने के अलावे, बासु दही भी बेचता था. लोग जब उससे उसकी दूकान के दही के बारे में पूछते थे, तो बासु का जवाब नपा तुला होता था: ‘खाऊ ने. हमर दही खायम त कलेजा एक बित्ता बढ़ जैत.’  और लोग उसकी कद-काठी देखकर सच में उसका विश्वास कर लेते थे.

गेहूँआ रंग. छोड़ा कद, गठीला शरीर. उसकी छाती चौड़ी थी. नंगे बदन काम करनेवाले बासु के सीने और पेट की मांस-पेशियाँ ऐसे पुष्ट थे कि शरीर-रचना  पढ़नेवाले मेडिकल छात्र किताब में लिखे एक-एक पेशी की संरचना सतह पर देख लेते. बासु का एक बेटा, और दो बेटियाँ थी. बेटियाँ बड़ी थी. ब्याही गयी और अपने घर गयी. बच गया बेटा, जीबछ. सुनते हैं, जीबछ के पैदाइश के पहले दो बहनों के पैदा होने के कारण बासु की माँ ने बहू को बासु की दूसरी शादी की धमकी दे डाली थी. बेचारी बासु की बीबी के लिए ब्राह्मणों से पूजा-पाठ करबाना तो मुमकिन नहीं था. सो, गाँव की औरतों ने बासु की औरत से कहा, ‘जीबछ में नहा आ, कारो. जीबछ किसी को निराश नहीं करती !’ और बासु का बेटा- जिबछा- कमला की छाड़न, जीबछ धार की कृपा थी.

मन्नत मांगी सन्तान, ख़ास कर बेटे, बिगड़े ही होते हैं. सो जिबछा बिगाड़ा बेटा था. अब उसकी कुछ बातें भी सुन ही लीजिये. पर पहले होटल की बातें हो जाएँ.

रोगियों की इलाज से परेशान जो लोग शाम को हॉस्पिटल रोड पर इर्द-गिर्द चक्कर काटते थे, उन पर कई प्रकार के लोग, खाने पर मक्खी की तरह मड़राते थे: डाक्टर के दलाल, रेस्ट हाउस के दलाल, होटल के दलाल, दवाई दुकानों के दलाल. जैसे काशी-बनारस के बारे में कहते हैं, ‘ रांड, सांढ़, सीढ़ी, सन्यासी, चारों से बचे तो तो सेवो काशी’. वही बात, अस्पताल रोड का था. ‘आपको दलालों से बचना होगा’, ऐसा कह कर कई  शातिर दलाल आपका गिरह काट सकते हैं. पर, आपको मालूम भी नहीं होगा. बासु भी इसी तालाब की एक छोटी मछली था. इसलिए,जब बासु की झोपड़ी के सामने की सड़क की दूसरी ओर अस्पताल के बाबुओं की रिहाइश में शाम को उनकी चौकड़ी जमती थी, तो उनकी गप-शप में बासु भी जुड़ जाता था. किसी नए मुल्ले को देखकर बातें कुछ इस तरह शुरू होती थी : अच्छा बासु क्या रेट है, खाने का ?

‘बस, दू आना, बाबू !’

‘दो आने ? बस ?’

‘हाँ, बाबू !’ बासु सीना चौड़ी कर कहता.

‘बड़ी अच्छी बात है. भाई साहब अभी पूछ रहे थे’, सामने खड़े आदमी को दिखा कर एक कहता.

‘आइए न.’ बासु मुर्गे को पोल्हाता. मुर्गा, माने ग्राहक, जिसे यहाँ बारी-बारी से सभी हलाल करेंगे ! कोई आज, कोई कल और कोई परसों, जब तक उसकी टेंट में पैसे हैं. आज बासु की बारी है.

‘खाने में क्या सब मिलाता है ?’

‘सब कुछ.’ बासु दाहिने हाथ की तरहत्थी को ऊपर तैरा कर कहता.

‘सब कुछ, साहू जी ?’ सामने खड़े ग्राहक आश्चर्य से पूछते.

‘हाँ. भात-रोटी, दाल, तरकारी, और दही. बाबू,खाऊ ने. हमर दही खायम त’ कलेजा एक बित्ता बढ़ जैत.’ बासु थोड़ा  रुक कर बोलता, ‘लियअ ने. इहे त’ चौका है. हंडा-पतीला-करछुल-ढकना. हंसुआ- सिलबट्टा-लोढ़ी. लोटा त’ लयने हेबै ने ?’ और बासु जिबछा को आवाज लगाता: ‘जीबछ महासेठ, जीबछ महासेठ !!’ कोई आवाज नहीं. बासु दुहराता, ‘बौआ, बौआ !!’ फिर भी  कोई आवाज नहीं. बासु अब गुस्से से पागल होनेवाला है पर सब्र का बाँध अभी टूटा नहीं है, अभी उसे और ग्राहक चाहिए. तब तक पास बैठे ग्राहक से कहता, ‘ अच्छा, इहे त’ है, लछमी साहू के दोकान. चामल-दाल-नमक तेल ल; आउ. आलू आ लकड़ी त’ हमरे स’ मोल ले लेब.’ और फिर चिल्लाता, ‘ रे जिबछा !’ दुकान के पिछवाड़े में ताश में मस्त जिबछा तक शायद अभी बासु की आवाज पहुँची नहीं होती. पर बासु अब और इंतज़ार नहीं करेगा. वह, चिल्लाता है: ‘रे हरामी, सूअर का बच्चा !’  और जिबछा फ़ौरन दौड़ता हुआ आता है, ‘ की कहै छ’ हौ ?’

बासु, अपने को जब्द करता और ग्राहक को बोलता, ‘ जाऊ बाबू, जिबछा लकड़ी तौल देत !’ हॉस्पिटल रोड में बाप के साथ रहता जिबछा ने , पढ़ने के लिए आठ किलोमीटर  दूर मुकुन्दी चौधरी स्कूल को चुना है. स्कूल दूर है, इसलिए माँ से बस के नाम पर अक्सर दो चार आने ऐंठ ही लेता है. पर पढ़ाई ? अरे ! महाराज, अभी छोड़िये उसे !

ग्राहक बरतन-बासन उठाता. तब तक बासु की बहन बुढ़िया आती. ‘जाऊ ने पानी त’ ल’ आउ. अदहन चढ़ा ने लू. जामे चामल-दाल-नीमक-हरदी ले के आयम, अदहन भ’ जायत. मशाला शिलबट्टा पर पीस लू. कहम त’ बलू हमही रगड़ देब.’ और ग्राहक नलके के पास जा कर पानी ले आता.

तब तक बासु लौट कर ग्राहक के पास आता, ‘लाउ त बाबू ढौआ. तनी मटिया तेल लेले अबै छी. अहूँ के त’ चूल्हा जलाबे ले काम होत. ले आयम, अहूँ ले ?’

हम लोग आधी शताब्दी के बाद यहाँ दरभंगा आये हैं. मैं बासु की याद करता हूँ, और यहाँ उसकी ‘दू-अनियाँ होटल’ ढूँढता हूँ. यहाँ बासु का ‘दो-अनियाँ’ होटल नदारद है. पर बांकी सब कुछ तो वैसा ही है. या कहिए उससे भी बदतर है ! पर, दरभंगा छोड़ते-छोड़ते कादिराबाद टैक्सी-स्टैंड पर अचानक बौआ,जीवछ महासेठ,जिबछा, मिल गया. उसने दूर से लम्बा प्रणाम किया. जीबछ ने कहा अब यहाँ उसका टैक्सी का दलाली है. हमने पूछा, और ‘दू अनिया होटल’, जीबछ ?

जीबछ शिर हिलाते हुए बोला, ना ! अब होटल कहाँ बरक्कत है, भाई जी !

तब तक मेरी टैक्सी पटना के लिए चल पड़ी.

              

   

 

Monday, November 15, 2021

समय-पूर्व शिशुक रेटिनाक रोग, Retinopathy of prematurity (ROP)

Retinopathy of prematurity (ROP)

Retinopathy of prematurity (ROP) समय पूर्व जनमल (Preterm birth) शिशुक आँखिक रोग थिक; ई रोग  आँखिक संवेदी पर्दा, रेटिना, कें प्रभावित करैछ आ दृष्टिहीनताक कारण भए सकैछ.  ज्ञातव्य थिक, समय-पूर्व (Preterm) जन्म नवजातक मृत्युक प्रमुख कारण थिक. एकर अतिरिक्त, समय-पूर्व जनमल शिशुकें अनेक आनो बीमारीक खतरा रहैत छैक; एहि में सेरेब्रल पाल्सी (लकबा ),संज्ञा-शून्यता,मंद-बुद्धि आ श्वासक रोग प्रमुख थिक. स्वास्थ्य सेवा आ शिशु-चिकित्साक क्षेत्रमें गुणात्मक परिवर्तनक कारण नवजात शिशु (जन्मसँ 28 दिन धरिक वयसक) क मृत्युक संख्या घटलैक अछि. मुदा, रेटिना क रोग- Retinopathy of prematurity(ROP)- सँ अंधताक खतराक विषय में जनसामान्य आ चिकित्सक समुदाय में जानकारी थोड़ छैक. एहि लेखक उद्देश्य Retinopathy of prematurity (ROP) क विषयमें जनसामान्यक हेतु आवश्यक सूचना देब थिक. [1,2]

समय-पूर्व शिशुक रेटिनाक रोग, Retinopathy of prematurity (ROP)

समय-पूर्व जनमल शिशुक रेटिनाक रोग, ROP, आँखिक पर्दा,रेटिना,क रोग थिक; एहिसँ अन्धता संभव अछि. जाहि नेनाक जन्म पूर-समयसँ चारि हफ्ता वा ओहिसँ बेसिए पहिने होइछ, आ जकर चिकित्सा सघन शिशु चिकित्सा केंद्र ( Neonatal Intensive Care Unit) में भेल होइछ, ओकर आँखि कें (ROP) सँ प्रभावित हएबाक खतरा होइछ.

ROP क मुख्य कारण थिक, अविकसित रेटिना पर अत्यधिक ऑक्सीजनक दुष्प्रभाव. ऑक्सीजनक दुष्प्रभावक कारण रेटिनाक रक्त-नली (शिरा आ धमनी)क अनियंत्रित विकाससँ  रेटिना में अनेक प्रकारक विकार उत्पन्न भए जाइछ जकरा वैज्ञानिक भाषा में  ROP कहल जाइछ. समय पर ROPनिदान आ चिकित्साक अभावसँ,  रेटिना अन्ततः अपन स्थानसँ हंटि जाइछ, जकरा retinal detachment कहल जाइछ. Retinal detachment   क कारण  आँखिक ज्योति नष्ट भए जाइछ. एतेक कम वयस में आँखिक ज्योतिक कम हयबाक दुष्परिणाम बूझब कठिन नहिं.  अतः, ROP सँ दृष्टिक बचावक हेतु नियमतः प्रत्येक समय-पूर्व शिशुक आँखि जाँचक हेतु राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रमक अंतर्गत भारत सरकारक दिशानिर्देश छैक. तथापि, जानकारी आ आँखिक जाँचक  सुविधाक अभावक कारण दिशानिर्देशक पालन में ढिलाईक दुर्भाग्यपूर्ण परिणाम कदाचित समाचारक सुर्खी अबैछ. किन्तु, ततबे. वर्ष 2019 में दिल्लीक महाराज अग्रसेन अस्पतालक ROP क कारण समाचार में आयल छल. ओहि अस्पताल में चिकित्सा ले आयल एक शिशुक ROP क कारण आँखिक रोशनी नष्ट भए गेल रहैक. सुप्रीम कोर्ट महाराज अग्रसेन अस्पतालक डाक्टर लोकनि कें एहि त्रासदीक जिम्मेदार मानि  पीड़ित परिवारकें 76 लाख टाकाक हर्जाना मंजूर कयने रहैक. तथापि, एखनो जनसामान्य आ स्वास्थ्य सेवा में ROP क विषय में जानकारीक अभाव तं अछिए, अधिकतर अस्पताल में समय-पूर्व शिशुक रेटिनाक नियमतः जाँच नहिं भए पबैछ. हाल में हमर एक मित्रक परिवार में एक समय-पूर्ण नेनाक जन्म भेल रहनि. हम ROP क हेतु आँखि जांचक सुझाव देलियनि. मुदा, बच्चाक रेटिनाक जाँच नहिं भेलैक ! ओना, प्रत्येक समय-पूर्व शिशु ( preterm infant ) कें रेटिनाक रोग नहिं होइछ,से सत्य थिक.

ROP क कारण बाधित दृष्टि 

ROP क हेतु शिशुक आँखिक जाँच (Screening for ROP)

भारत में दिशानिर्देशक अनुसार सघन शिशु चिकित्सा केंद्र ( Neonatal Intensive Care Unit) में चिकित्सा भेल निम्नलिखित शिशुक  आँखिकक पर्दाक जाँच अनिवार्य अछि :

1. गर्भ-धारणक 34 हफ्ता वा ओहिसँ पूर्व जन्मल शिशु, जकरा आनो रोग सबहक खतरा होइक वा सघन चिकित्सा भेल होइक.

2. जन्मक समय 2000 ग्राम वा ओहिसँ कम वजन

3. गर्भ-धारणक 34 हफ्ताक पछाति जन्मल शिशु जकरा आन रोग सबहक खतरा होइक.

4. शिशु-रोग चिकित्सक द्वारा समय-पूर्व (Preterm ) मानल गेल शिशु

ROP क आँखिक जाँचक समय

1. ROP   हेतु शिशुक आँखिक पहिल जाँच जन्मक 25-30 दिनुक भीतर निर्दिष्ट छैक.

2. जं शिशु जन्मक 25 दिनसँ पहिनहि अस्पतालसँ  डिस्चार्ज होइत हो  तं अस्पतालसँ डिस्चार्जसँ शिशुक आँखिक जाँच वांछित थिक.

शिशुक आँखिक  जाँच  अस्पतालक Neonatal Intensive Care Unit वा आँखि-विभाग में भए सकैत छैक. जाँचक परिणाम कें तिथिक संग शिशुक केस-रिकॉर्ड में लिखल जयबाक चाही. जं, जाँचक अनुसार शिशुक आँखि में  नुकसान करबा योग्य रोग ( sight-threatening ROP ) होइक, आ चिकित्सा आवश्यक होइक तं  जाँचक 48 घंटाक भीतर लेज़र द्वारा ROP क चिकित्सा आरंभ हेबाक चाही. संगहिं, भविष्य में शिशुक आँखिक पुनः जाँचक आवश्यकताक सूचना शिशुक माता-पिता कें उपलब्ध हेबाक चाही.

 ROP क हेतु आँखिक जाँचक विधि

ROP क हेतु  आँखिक जाँच सामान्य टॉर्चसँ  असंभव अछि. ई जाँच आँखिक पर्दाक जाँच थिक. तें, जाँचसँ पूर्व शिशुक आँखि में पुतलीक आकार बढ़यबाबला बूँद द’ कए आँखिक पुतलीक आकार बढ़ाओल जाइछ. तकर पछाति आँखिक डाक्टर अथवा प्रशिक्षित तकनीशियन विशेष यंत्र- Indirect ophthalmoscope क सहायतासँ आँखिक पर्दा-रेटिनाक- जाँच करैत छथि. जाँचक परिणामकें शिशुक केस रिकॉर्ड में तिथि आ समय सहित रिकॉर्ड कयल जाइछ. चिकित्साक आवश्यकता भेलासँ लेज़रक द्वारा रेटिना विशेषज्ञ ROP चिकित्सा करैत छथि. चिकित्सा कोना आ कहिया धरि हेतैक, से रेटिना विशेषज्ञ निर्धारित करैत छथि. ई सूचना माता-पिता कें देब आ अस्पतालक रेकॉर्ड में राखब अस्पताल / चिकित्सकक दायित्व थिक. जाहिसँ आवश्यकता पड़ला पर शिशुकें अस्पताल बजाओल जा सकय आ रोगक समुचित चिकित्सा भए सकैक.

सारांश

Retinopathy of prematurity(ROP) समय पूर्व जन्मल शिशु (Preterm birth) आँखिक पर्दाक कठिन रोग थिक. ई रोग प्रत्येक समय-पूर्व शिशुकें नहिं होइछ.  मुदा, आँखिकें नुकसान करबा योग्य रोग ( sight-threatening ROP ) भेला पर दृष्टि बाधित भए सकैछ. Neonatal Intensive Care Unit में खास कए ऑक्सीजन द्वारा सघन चिकित्सा, आ दोसर किछु शारीरिक रोगक संयोग Retinopathy of prematurity (ROP) क खतरा बढ़बैछ. तें, गर्भाधानसँ 34 हफ्ता वा ओहिसँ कम समयमें जन्मल, वा जन्मक समय 2000 ग्रामसँ कम वजनक शिशुक आँखिक रेटिनाक जाँच अस्पतालसँ डिस्चार्ज हेबासँ पहिने हयबाक चाही. शिशुक आँखिक रोशनी कें ROP  क दुष्प्रभावसँ  बचयवाक हेतु ई आवश्यक थिक. समय-पूर्व जनमल शिशुक (Preterm birth) बचबाक (survival) में लगातार सुधारक कारण ई सूचना लोकहित में प्रासंगिक अछि.

 

संदर्भ :

1.https://www.nhm.gov.in/images/pdf/programmes/RBSK/Resource_Documents/Revised_ROP_Guidelines-Web_Optimized.pdf accessed 15 Nov 2021

2. Shukla R, Murthy GVS, Gilbert C, Vidyadhar B, Mukpalkar S. Operational guidelines for ROP in India: A summary. Indian J Ophthalmol. 2020;68(Suppl 1):S108-S114. doi:10.4103/ijo.IJO_1827_19     

Wednesday, November 10, 2021

श्रीशैलम-यात्रा

 

 श्रीशैलम-यात्रा

कलौ स्थानानि पूज्यन्ते’. ई कहावत विद्यार्थी जीवन में सुनने रही. किन्तु, पूजा नहिओ करबाक हो तँ नव-नव स्थान में सब ठाम एकाधिक रूचिक आकर्षण भेटिए जायत. एहि  बेर  मल्लिकार्जुन स्वामीक तीर्थ आंध्रप्रदेश राज्यक श्रीशैलम  यात्रा हेतैक. श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग थिकाह आ  श्रीशैलम धार्मिक महत्व छैक.

श्रीशैलम सड़कसँ देशक सब भाग सबसँ नीक जकां जुड़ल अछि. तें, हमरा लोकनि पांडिचेरीसँ अपनहिं कारसँ सोझे ओतय जयबाक नेयार कयल. हवाई जहाजसँ दक्षिणक कोनो पैघ शहरसँ , जेना, बंगलोर, हैदराबाद, चेन्नईसँ श्रीशैलम लग नहिं. यात्रा पोंगलक पछाति, 16 जनवरी 2019 क भोरे पांडिचेरीसँ आरंम्भ भेल. संग में पत्नी आ सासु रहथि. यात्रा में बारहसँ चौदह घंटा लागत. तें, अहल भोरे विदा भेलहुँ.

यात्रा में एहि बेर हमरा लोकनि परशुराम नामक स्थानीय तमिल ड्राइवर कें संग केलहुँ. परशुराम हमरा लोकनिक संग अनेक बेर चेन्नई  यात्रा तं केनहिं छलाह ओ हमरा लोकनि कें रामेश्वरम धरि ल’ कय गेल रहथि. तें, एहि बेरुक लम्बा यात्राक हेतु हुनके संग कयल. मुदा, परशुरामक शर्त रहनि जे ‘पोंगल पाबनि में ओ बाहर नहिं जायब’. तें हमरा लोकनि पोंगलक पछातिए श्रीशैलम प्रोग्राम बनलैक. ओहुना, पर्व त्यौहारक अवसर पर तीर्थाटनसँ बचबे नीक.

यात्राक पहिल चरण, पांडिचेरीसँ  वेल्लोर करीब तीन घंटा. वेल्लोर क्रिस्चियन मेडिकल कालेज अस्पताल में उपलब्ध उत्तम मेडिकल सुविधाक हेतु सम्पूर्ण देश में प्रसिद्द अछि. मुदा, वेल्लोरक संबंध में जे गप्प बेसी लोक कें नहिं बूझल छैक ओ थिक भारतक स्वतंत्रता संग्रामसँ  वेल्लोरक संबंध. तें आइ कनेक ओकर गप्प कइए ली.

वेल्लोर किला आ सिपाही विद्रोह,1806 ई.

1806 केर 10 जुलाई केर दिन वेल्लोर किला प्रायः भारतीय स्वतंत्रता संग्रामक ओ पहिल बिगुल बाजल छल जकर प्रतिध्वनि उत्तर भारत में आधा शताब्दीक पछाति 1857 में बाजल. एहि विद्रोहक अहल भोरेक आक्रमण में ब्रिटिश सेनामें कार्यरत करीब 500 सौ सिपाहीक हाथे करीब 200 ब्रिटिश सैनिक आ अफसर मारल गेल छलाह. इतिहासकार राजमोहन गाँधी कहैत छथि, ‘10 जुलाई 1806 क अहल भोरे अकस्मात् भेल भारतीय सैनिक लोकनिक ई विद्रोह ब्रिटिशक हाथें टीपू सुल्तानक पराजयक कारण उपजल असंतोषक परिणाम छल.’

मुदा, आन श्रोतसँ एहि विद्रोह आनो कारणक उद्घाटन होइछ, जाहि में मूल छल अंग्रेज शासक द्वारा सैनिक लोकनिक धार्मिक आस्था पर प्रहार. एकर अतिरिक्त, ओहि समय में फ़कीर लोकनि दल चुपे-चुप दक्षिण भारत में  जे अभियान चलबैत रहथि. हुनका लोकनिक अभियानक संदेश छल जे ‘ अंग्रेज संख्या में थोड़ अछि , हमरा लोकनिक समुदाय पैघ अछि’, अर्थात् हमरा लोकनि अंग्रेज कें पराजित कए सकैत छी,  केर असरि सेहो एहि विद्रोह आगि कें हवा देलक से इतिहासकार लोकनि मानैत छथि. दुःखद थिक, भारतक  स्वतंत्रता संग्राम में वेल्लोर सिपाही विद्रोहकें जेहन प्रधानता भेटब उचित थिक एकरा नहिं भेटैछ.

एहि विद्रोहक आँखों देखा हाल The Sydney Gazette and New South Wales Advertiser, 14 June 1842, में प्रकाशित भेल छल. वेल्लोर विद्रोहक समय वेल्लोर किलाक कमान अधिकारी सर जॉनफ फैनकोर्ट क पत्नी, एमेलिया फर्रेर, द्वारा लिखित एहि वृत्तांत में अंग्रेज द्वारा ओहि इलाका आ ओतुका सिपाही लोकनिपर कयल अत्याचारक चर्चा निर्विवाद नहिंए छैक.

वेल्लोर नगर कें तमिल लोकनि तीन व्यंग, ‘बिना राजाक किला, विना देवी-देवताक मन्दिर, आ बिना पानिक नदी’ सँ  जोड़ैत छथि. से हमर सहकर्मी डाक्टर श्रीकान्त हमरा एक बेर कहने रहथि, ‘’ सत्यतः, उपलब्ध सामग्रीक अनुसार किला केर भीतरक जलकंडेश्वर मन्दिर में बहुत दिन धरि कोनो देवता स्थापित नहिं रहथि, वस्तुतः, ओतय अस्त्र-शस्त्रक भंडार रहैक. ई बूझब कठिन नहिं. कारण, जे किला समय-समय पर विजयनगरक राजा, मराठा शासक, गोलकुंडाक नवाब, आ अंग्रेज सरकारक हाथ में जाइत रहल ओहि में शासकक आस्थाक अनुसार जं देवी-देवताक पूजास्थल  सेहो पराभवक शिकार भेल तं कोन आश्चर्य. परवर्ती शासक लोकनि ओतय अपना सुविधानुसार चर्च वा मस्जिद तं बनाइए लेलनि. ओना कारागारक मन्दिर में परिवर्तन वा मन्दिरक सभागार बनबाक उदाहरण तं भारतक प्राचीन धार्मिक ग्रन्थहु में भेटत. राजा कंसक जाहि कारागार में देवकी आ वसुदेव बंदी रहथि ओ आस्थावान ले मन्दिर थिक. आधुनिक काल में अंडमान द्वीपक सेलुलर जेल आजुक तीर्थस्थल थिक !  

आब पुनः वेल्लोर किला आबी. एखन किलाक भीतर तमिलनाडु पुलिस केर प्रशिक्षण केंद्र छैक. एहि किला में  किला परिसरक में पैसैत दाहिना दिस मैदानक आगू एकटा विशाल मन्दिर छैक. मुदा, दर्शन करबाक समय नहिं छल. तें, आब कोनो देवी देवता ओतय छथि वा नहिं, से कहब कठिन.

पुलिस प्रशिक्षण केंद्रक अतिरिक्त एतय  एकटा संग्रहालय छैक जाहि में तमिलनाडुक विभिन्न क्षेत्रक झांकीक अतिरिक्त अनेक ऐतिहासक अस्त्र-शस्त्र आ आन वस्तु सब प्रदर्शित अछि. संग्रहालयक परिसर में ढेरो टूटल-फूटल पाथरक मूर्तिक पतिआनी लागल भेटल. संग्रहालयसँ किछुए दूर हंटि कए एकटा छोट मस्जिद  आ पैघ चर्च सेहो छैक.

आब पुनः अजुका यात्रा पर आबी. आइ वेल्लोर में यात्रा कें थोड़ेक  विराम देल. ड्राइवर सेहो अहल भोरेसँ जागल छथि; यात्राक सुरक्षामें ड्राइवरक समुचित निन्न आ आराम आवश्यक थिक. नींदक अभाव दुर्घटनाक नोतब थिक.   अस्तु, एतय गाडी रुकल. हाथ पयर सोझ भेल. आर्या भवन रेस्टोरेंट में पवित्र दक्षिण शाकाहारी नाश्ता आ उत्तम कॉफ़ीक सेवन भेलैक. आ आगू बढ़लहुँ. एखन भरि दिन बहुर दूर जेबाक अछि. एखन लगभग एक चौथाईए दूरी तय भेल अछि ! आगू रास्ता दूर आ दुर्गम दुनू अछि.

वेल्लोरसँ श्रीशैलम

एखन हमरालोकनि राष्ट्रीय राजमार्ग 40 पर छी . ई सड़क उत्तम अछि. हमर अनुमान अछि, सड़कक रखरखाव में तमिलनाडु  देश में अव्वल दर्जाक हकदार अछि. यद्यपि, संभव अछि सब एहिसँ सहमत नहिं होथि. आब गाड़ी गति पकड़तैक. मुदा, गाड़ी ड्राइवर चलाबथि, वा अपने हांकी, गति सीमा सर्वदा नियंत्रित सीमा में रहय.एहि विषय पर हम कोनो समझौता नहिं करब. उपलब्ध आंकड़ाक अनुसार वर्ष 2019  में भारत में करीब डेढ़ लाखसँ  बेसी व्यक्ति सड़क दुर्घटना में मारल गेलाह. गति सीमाक उल्लंघन आ लापरवाही, मौसमक खराबी,आ मदिरापान दुर्घटनाक प्रमुख कारण पाओल गेल अछि, से भारत सरकारक आंकड़ा कहैत अछि. तें, सावधानी हंटी दुर्घटना घटी, मोन राखी. तथापि, अपन सावधानीक अछैतो दुर्घटना होइते छैक. मुदा, से पछाति.

एतयसँ  आगू हमरा लोकनि आंध्रप्रदेश केर कुरनूल दिस सोझे उत्तर मुँहे जायब. बाट में चित्तूर, कडप्पा, नन्दयाल,अत्माकुर, दोर्नाला आओत. हमरा लोकनि आगूक कुर्नूल शहरसँ पहिनहिं दाहिना दिस श्रीशैलमक बाट धरब. बीच में नागार्जुन सागर श्रीशैलम टाइगर रिजर्व सेहो आओत, जाहि में अनेक ठाम रहबाक आ जंगल भ्रमणक सुविधा छैक. मुदा, एहि बेर एहि अभयारण्य में रहबाक नेआर नहिं छैक.

ई इलाका खूजल मैदानी इलाका थिक. दूर-दूर धरि क्षितिज धरि कोनो अवरोध नहिं. ज़मीन अधिक ठाम बंजर. थोड़ आबादी. पानिक कमी प्रत्यक्ष छैक. सुनल छल, आंध्रप्रदेशक गुंटूर, प्रकाशम, कृष्णा, खम्मम, वारांगल आ करीमनगर जिला में लाल मरचाईक खेती होइत छैक. मुदा, से देखबाक अवसर नहिं भेल छल. बाट में एहि इलाका में मरचाईक खेती तं नहिं मुदा, सड़कक कात में सुखाइत मरचाईक पथार, आ गामे गाम पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डीक मूर्ति देखल. ई नव अनुभव छल.

सड़कक कात सुखाइत मरचाई 
दिनक करीब एक बाजल हेतैक. हमरा लोकनि कुर्नूलसँ किछु दूरे रही कि अकस्मात् फोनक घंटी बाजल. अपरिचित नंबर आ अपरिचित स्वर. ई  फोन श्री कुलशेखर रेड्डी श्रीशैला देवस्थानमक कार्यालयक प्रोटोकॉल ऑफिसरक फोन छल. सुखद आश्चर्य भेल. हम तं केवल कमरा बुकिंगक हेतु एकटा ईमेल लिखि बिसरि गेल रही. मुदा, ओ लोकनि हमरा सन सेवानिवृत्त सैनिक अधिकारीक आदर करबाक कष्ट केलनि से अभिभूत केलक. सेना सेवा आ देशक नागरिक दुनू पर गौरवक बोध भेल. कहलनि, ‘धाम पर पहुंचि, हमरा फ़ोन करी. हम भेटि जायब.’ एवमस्तु. देखी, ई प्रोटोकॉल अफसर की करैत छथि.

नागार्जुन सागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व

नागार्जुन सागर इलाकाक एक डैम 

हाई वे छोड़ि नागार्जुन सागर श्रीशैलम टाइगर रिज़र्व दिस बाट पकड़बासँ पूर्व करीब डेढ़ बाजि गेलैक. दुपहियाक भोजनक बेर. ड्राइवर सेहो  हाथ पयर सोझ करथु. अस्तु, हमरा लोकनि एकटा गाओं में बाटक कातहि, एकटा गृहस्थक घरक आगू गाछ तर  साफ़-सुथरा  सीमेंटक बेंच पर बैसलहुँ. भोजनक डब्बा खुजलैक. पानि निकालल. ताबत् ओतुका गृहणी सेहो जलपात्रमें जल लए उपस्थित भेलीह. ओ भीतर अयबाक आग्रहो केलनि. हमरा लोकनि कें श्रीशैलम पहुँचबा में समय लागत.  तें, शीघ्रे भोजन समाप्त कए आगू विदा भेलहुँ.

सड़क थोड़ेक दूर धानक खेत बीच होइत जलाशय, आ बाँधक काते कात आगू बढ़ल. चारू कात हरियरी. खुला इलाका. शहरक प्रदूषण, भीड़, ट्रैफिक सबसँ  दूर. पछाति, सड़कक दुनू कातक हरियरी जंगल में परिवर्तित होअए गेलैक. जंगल कतहु सघन नहिं. कतहु पुरान, विशाल गाछ सेहो देखबामें नहिं आयल. सालक गाछ, नव रोप. प्रायः, पुरान जंगलक समाधि पर नव गाछ वृक्ष रोपल जा रहल छैक. कतहु-कतहु बाँस सेहो.नवे लगाओल. सड़क कतहु सोझ, कतहु घुमावदार, मुदा, भूमि समतल, कोनो चढ़ाई नहिं. जंगलक बीचसँ जाइत  वन्य जीवक सुरक्षा, आ कार-बस-आ जंगलसँ काठ ल जाइत ट्रक सबहक आवागमनक कारण प्रत्येक सौ पचास मीटर पर अजस्र स्पीड ब्रेकर. तें, गाड़ीक गति 30 किलोमीटर प्रति घंटासँ  बेसी असंभव. एहि इलाका सबसँ यात्रा में परिपूर्ण समय चाही. कारण, आरंभ में जखन कारक नेविगेशन पर दूरी डेढ़ सौ किलोमीटर देखिएक आ  गूगूल अनुमानित समय चारि घंटासँ बेसी कहय तं आश्चर्य होइत छल. मुदा, जं जं आगू जाइत गेलहुँ, गाड़ीक गति देखि गप्प बुझबा में आयल. संशय होबए लागल जे अन्हार हेबासँ पूर्व श्रीशैलम पहुँचबो करब कि नहिं. आगू बढ़ला पर  बाटक बामा कात अत्माकेर डिवीज़न केर अंतर्गत, नागार्जुन सागर श्रीशैलम टाइगर रिजर्व केर  राजीव गाँधी वन्यजीव अभयारण्यक कार्यालय आ गेस्ट हाउस देखबामें आयल. एहि स्थानक नाम प्रायः बैरलुती थिकैक. पछाति, जखन जंगल सघन भेलैक तखन गाछ वृक्षक झोंझ में हमर पत्नी कहलनि जे  ओ अचानक एकटा बाघ सेहो देखलखिन.दिन देखार बाघक नाम पर  हम  साकांछ भेलहुँ आ गाड़ीसँ उतरि ओकरा देखबाक हेतु गाड़ी कें किछु दूर पाछू कयल. सड़कसँ नीचा सेहो गेलहुँ. मुदा,बाघ ओतय किएक बैसल रहत ! तें, जं बाघ ओतय छल तं हुनका दर्शन देलकनि आ बिला गेल. अन्यथा, गाड़ी सबहक आवागमनक बीच सड़कक कात दिन-देखार बाघक हयब सामान्य नहिं; वन्य जीव कें सबसँ बड़का भय नख-दन्त विहीन ‘सभ्य’ मनुखेसँ होइछ !

किछु काल यात्रा माध्यम गति आ आनन्द में बीतल. पछाति, सड़क संकीर्ण, उबड़-खाबड़ आ तहस-नहस छलैक. सड़कक बामा कात सुरक्षा-देवाल आ ओकर बाद खाधि. जंगल में ई कहब कठिन जे खाधि कतेक गहिंड छलैक. मोन रखबाक थिक कृष्णा तुंगभद्रा नदीक इलाका थिक. एहि दुनू नदीक जल अन्ततः श्रीशैलम डैम केर बैक-वाटर में एकत्रित होइछ. श्रीशैलम डैम भारत में पनिबिजलीक प्रमुख श्रोत म सँ एक आ आंध्रप्रदेश-तेलंगानाक पेय जलक एक श्रोत थिक.

आगू सड़क आओर ख़राब.  सड़कक काते-कात भरि-भरि ठेहुन खाधि. आमने-सामने अबैत गाड़ी कें एक दोसरासँ बचबा ले ड्राइवरक कुशलता आ फुर्ती दुनू चाही. ताहि पर सामनेसँ ट्रक अयला पर कार के अनेरे खतरा. हमर ड्राइवर साकांछ छलाह. हमरा लोकनि सुरक्षित चल जाइत रही. किन्तु, एही बीच सामनेसँ अबैत लकड़ीसँ लदल एकटा लॉरी हमरा सबहक कार कें दाहिना तरफ, पछिला पहिया लग कनेक घंसैत चल गेल. प्रायः गलती ओकरो नहिं रहैक. स्थान संकीर्ण रहैक. खाधिसँ बचबाक प्रयास में प्रायः स्टीयरिंग पर नियंत्रण कनेक ढील भए गेल छलैक. हमरो लोकनि बामा सड़कक संकीर्ण आ जगह गहीड़ रहैक. किन्तु, रक्ष एतबे रहल जे गाड़ी कें कोनो तेहन नोकसान नहिं भेलैक. तत्काल कोनो मरम्मति आवश्यकता नहिं पड़ल. हमरा लोकनि सुरक्षित रही. ट्रकवला किएक गाड़ी ठाढ़ करत. ओ तं  भगिते चल गेल. एक बेर तं मोन भेल खिहारि कए ड्राइवर कें पकड़ी. कनेक दूर दौड़बो केलहुँ. मुदा, ई व्यर्थ थिक. तामससँ नोकसाने नोकसान. टाका तं इन्स्युरेंस कम्पनी दइए दैत छैक. ड्राइवर-ख़लासीसँ ओकर इलाका में झगड़ा क कए जीति नहिं सकैत छी. जीतिओ कए लाभ की. गाड़ी चलबैत अनेक बेर गाड़ी में छोट-छोट चोट-पटक लगैत, इएह दिव्य ज्ञान भेल अछि. तामस तं असल होइत छैक जे हमर गाड़ी कें नोकसान भए गेल. ताहि में नव गाड़ी में पहिल चोटक पीड़ा बेसी होइत छैक. पहिल बेर तं गाड़ी किनलाक पन्द्रह दिनुक भीतरे बंगलोर में हमरा गाड़ीक फेंडर तोड़ि देने छल. एहू बेर, तत्काल तं अपनो लोकनि आतंकित भइए गेल रही. मुदा, जखन ई बुझबा में आयल जे अपने लोकनि सुरक्षित अछि, आ गाड़ीक कोनो नोकसान नहिं भेल, तं आश्वस्त बेल रही. मुदा, ताहि में थोड़ेक समय लागि जाइत छैक. हमर ड्राइवरो चिन्हल, विश्वस्त आ निपुण छल. तथापि दुर्घटना भए गेलैक. ताहिसँ ओ अपने आओर अप्रतिभ भए गेल छल. हमरा लोकनि ओकरा जल पियाओल, भरोसा दिअओलिऐक जे अहाँक कोनो दोष नहिं. हमार एखन आओर दूर जेबाक छल. आगुओ बहुत दूर बाट ओहने रहैक. मुदा,ड्राइवर कें प्रकृतिस्थ हेबा में समय लगलैक. संगक धर्मप्राण लोकनि भगवान कें धन्यवाद देलखिन. ई प्रसन्नताक विषय छल जे गाड़ी चलैत रहि गेल. यात्रा में ई सबसँ बड़का गप्प भेल. छोट छिन  मरम्मति लगतैक, से पछाति भए जेतैक. जं  एहन ठाम गाड़ी अशक्त भेल रहैत, तखन असली पराभव. ऊपरसँ दुर्घटना-स्थल पर जं  फंसि जैतहुँ  तं अबैत-जाइत ट्रैफिक सं गाड़ी कें आओर नुकसानक भय. अस्तु,  आगुए बढ़ब उचित छल. तें, हमरा लोकनि समय कें बचबैत,जंगलसँ निकलैत श्रीशैलमक दिस बढ़िते छल गेलहुँ.

  नागार्जुन सागर श्रीशैलम अभयारण्य 

जंगली मार्ग सं निकलि श्रीशैलमसँ करीब पचास किलोमीटर दूर दोर्नाला जंक्शन नामक कस्बा पहुँचैत बेरू पहरक करीब चारिसँ बेसी भए गेल छल. दोर्नालासँ श्रीशैलम तीर्थ धरि  फेर पहाड़ी बाट छैक. ई नल्लमल्ला जंगलक इलाका थिकैक. पर्यटनक दृष्टिऍ महत्वपूर्ण एहि इलाकाक विकास एतुका सरकारक प्राथमिकता थिकैक. पर्यटन स्थानीय नागरिक आ तीर्थस्थलक व्यवस्थापक संस्थाक हेतु आमदनीक प्रमुख श्रोत थिकैक. तें, पर्यटनक हेतु महत्वपूर्ण इलाकाक विकास में सबहक हित सन्निहित होइछ.

सड़क डबल आ चिक्कन. घुमावदार. मुदा, मनोरम. जंगली इलाकाक विपरीत खोंड़ा-खुच्चा एकदम नहिं . दिनक समय रहितैक, तं कतहु-कतहु ठमकि प्राकृतिक सुन्दरताक सेवन करितहुँ, फोटोग्राफी सेहो करितहुँ. फोटोग्राफी हमर एकटा प्रधान रूचि थिक. मुदा, लम्बा यात्रा, बीच में दुर्घटना आ संझुका समय. निकलिते चल गेलहुँ . अन्ततः हमरा लोकनि जखन श्रीशैलम तीर्थ पहुँचहुँ  तं झलफल भए गेल रहैक. मुदा, श्री कुलशेखर रेड्डी, प्रोटोकॉल ऑफिसर मल्लिकार्जुन सदन में तैनात रहथि. हमरा लोकनिक हेतु दू रातिक हेतु ग्राउंड फ्लोर पर दू टा कमरा बुक छल. इन्टरनेट बुकिंग पर अपना बुते से संभव नहिं भेल छल. प्रोटोकॉल ऑफिसर  महोदय हमरा लोकनिक कमरा दिआ, दोसर दिन भोरे दर्शनक टिकट आदिक व्यवस्था कए कहलनि, ‘काल्हि भोरे छौ बजे हम मन्दिरक द्वारि पर भेटब. समय पर चल आबी.’ हमरा लोकनि कें एहिसँ बेसी कथिक आवश्यकता छल. अस्तु, भोजन भात भेलैक आ विश्राम कयल.

 ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुनक तीर्थ श्रीशैलम

श्रीशैला देवस्थानम केर अतिथि-गृह, मल्लिकार्जुन सदन मन्दिरसँ एक चौथाई किलोमीटर, मन्दिर दिस जाइत सड़कक कातहि. भोरे उठलहुँ. बाहर मल्लिकार्जुन सदनक एक कात शाकाहारी भोजनालय छैक. ओकर कतबहि में एकटा बेलक गाछ. एकटा स्थानीय भक्त बेलक गाछ ऊँचका डारि पर चढ़ि बेलपात तोड़ैत रहथि. हम कतहु जाइत छी, जखन आन गोटे आराम करैत छथि, हम भोर आ साँझ आस-पासक इलाका देखय निकलि जाइत छी. मुदा, अजुका मोर्निंग-वाक मन्दिरे धरि हेतैक. श्रीशैलम स्थान एतेक छोट छैक जे एक घंटा में पूरा नगरक दू चक्कर लगा लेब. से आइ सांझ में हेतैक.

मन्दिर परिसरक सुन्दर भित्ति चित्रक अवलोकन 

हमरा लोकनि निरधारित समय पर मन्दिरक द्वारि पर पहुँचि गेलहुँ. जयबाकाल मन्दिर परिसरक पाथरक देवाल पर उत्कीर्ण भित्ति चित्र आकृष्ट केलक. प्रोटोकॉल अफसर श्री कुलशेखर रेड्डी महोदय पहिनहिंसँ ओतय उपस्थित रहथि. हुनका ताकय नहिं पड़ल. सफाई, समयक पाबंदी, आ गुणवत्ता, उत्तर भारत में हमरा लोकनि कें जकर सेहन्ता होइछ, दक्षिण भारतक ट्रेड मार्क थिक. आब बहुतो ठाम उत्तर भारत में एहि प्रकारक परिवर्तन आबि रहल छैक. मुदा, आम नागरिकक अभाव में ई संभव नहिं. नियम तोड़ि आगू बढ़बा में गौरवक बोध आ वी आइ पी कल्चर एकर मूल में अछि. नव पीढ़ीक अनुशासन प्रिय नागरिक एहि परिपाटी कें बदलबा में निर्णायक भए सकैत छथि. नव पीढ़ीसँ बहुत आशा अछि.

दर्शनक संतोष 

श्रीशैलम  ज्योतिर्लिंग मल्लिकार्जुनक तीर्थ थिक. एतय शिवलिंग अतिरिक्त भ्रामरी देवीक मन्दिर सेहो छनि. भ्रामरी देवीक मन्दिर सेहो शक्तिपीठ मानल जाइछ. भक्त लोकनिक आस्थाक अनुसार शिव आ पार्वती एहि स्थान पर तहिया अपन पुत्रक समीप निवास करबा ले आयल रहथि जहिया बुद्धि, ऋद्धि आ सिद्धिक श्री गणेशक संग पहिने विवाह भए गेलासँ असंतुष्ट कार्तिकेय कुमारब्रह्मचारीक रूप में क्रौंज पर्वत पर एकान्त वास में चल गेल रहथि. आरंम्भ में मल्लिका (जूही)क फूलसँ पूजित हयबाक कारण एतय शिव मल्लिकार्जुनक नामसँ  प्रसिद्द छथि. विकिपीडियाक अनुसार एतय दोसर शताब्दीसँ  मन्दिर हेबाक शिलालेखक प्रमाण उपलब्ध अछि. शैव परंपरा में श्रीशैलम कें ‘पाडल पेट्र स्थलम्’ (प्रशस्ति गान में चर्चित स्थान ) कहल जाइछ. ‘पाडल पेट्र स्थलम्’ ओ भेल जकर चर्चा  शैव परंपराक  संत नयनारलोकनिक (शिवक) प्रशस्ति गान में  अछि. 275 ‘पाडल पेट्र स्थलम्’ में श्रीशैलम सेहो अबैछ. वैष्णव परंम्परा में आड़वाड़ संत लोकनिक प्रशस्ति-गां , ‘दिव्य-प्रबन्धम’ में जाहि  108 तीर्थ स्थलक चर्चा अछि ओकरा दिव्य-देशम कहल जाइछ. श्रीशैलम मन्दिरक परिसर में पर निर्माण में समय-समय पर सातवाहन, विजयनगर, आ रेड्डी शासक लोकनिक योगदान अछि. कहल जाइछ, 1677 ई. में शिवाजी महाराज सेहो श्रीशैलम आयल रहथि आ एहि मन्दिरक उत्तरी गोपुरम( द्वार)क निर्माण हुनके द्वारा भेल छल. तें उत्तरी गोपुरम कें शिवाजी गोपुरम कहल जाइछ.

एखन एतय कोनो पर्व त्यौहारक भीड़ नहिं. भीड़ पूजा अर्चनाक पवित्रताक नाश कए दैछ. हमर विचार थिक, दर्शनक आलावा तीर्थ स्थल आत्म-दर्शनक स्थल सेहो थिक, जाहि हेतु शान्ति आवश्यक. प्रायः ओही शांतिक अन्वेषण में संत लोकनि एहन निर्जन स्थल सब में आबि साधना कयलनि. मुदा, धर्मक पहाड़ निर्माण करबाक मनुष्यक लोभ धर्म-स्थल सबकें तेहन बना देलक जे ओतय धर्म छैक कि नहिं कहब तं मधुमाछी क छत्ता में हाथ देब थिक, मुदा, जं एहि सब ठाम शान्ति खोज करब तं प्रायः निराशाए हाथ लागए, से संभव. एहि में असहमति संभव अछि. तें, हमर विचार जे अपने भ्रमण करू, मनन करू आ अपन निष्कर्ष निकालू. आइ हमरा लोकनि प्रातःकालक मृदु आ सुखद बेला में नीक जकां दर्शन कयल. बाहर आबि रेड्डी महाशय विदा लेलनि. हमरा लोकनि हुनका धन्यवाद देलियनि. हमर अपन अनुशासनक अनुसार एतुका एग्जीक्यूटिव ऑफिसर कें पत्र लिखि हम हुनकर सहायताक धन्यवाद आ श्री रेड्डीक प्रशंसा अवश्य लिखि तुरंत ईमेल कए देल. धन्यवाद देब अनुशासन थिक. प्रशंसा ककरा नीक नहिं लगैछ.

पूजा अर्चनाक पछाति हमरा लोकनि मल्लिकार्जुन सदन अयलहुँ. मुदा, कमरा में जेबासँ पूर्व रेस्तोरां में जलखै भेलैक. इडली-दोसा आ काफी. एतुका इडली आकार में खूब पैघ. चटनी-साम्पर सब किछुक स्वाद भिन्न. असल में दक्षिणक प्रत्येक क्षेत्र में समाने खाद्यक भिन्न-भिन्न स्वाद भेटत. तमिलनाडु-पांडिचेरीक साम्पर में तेत्तरि बेसी, नारिकेर चटनी में कॉच लहसुनक गंध. आंध्र में खट्टा कम, किन्तु मरचाई बेसी. कर्नाटक में साम्पर कनेक मीठ. हमर पत्नी आ हुनक माता विश्राम करतीह. हम बेरू पहर पयरे श्रीशैलम केर धांगब. ई हम कतहु नहिं छोड़ैत छी.

शिवाजी महाराज: श्री शिवाजी  स्फूर्ति केंद्र 

पैदल यात्राक क्रम में देखल, शहर खूब साफ़ सुथरा. चौड़ा सड़क. शहर केर परिक्रमा करैत हम शहरक एक कात ऊँच स्थान पर श्री छत्रपति शिवाजी स्फूर्ति केंद्र पहुँचलहुँ. एकर स्थापना छत्रपति शिवाजीक राज्याभिषेकक तेसर शताब्दी पूर्ण भेला पर भेल छल. गुलाबी रंगक पाथरसँ  निर्मित एहि केंद्रक भूमि तल पर समर्थ सभा-मंडप में श्री शिवाजी महाराज मूर्तिक अतिरिक्त हुनक राज्यसँ संबंधित किछु नक्सा-चित्रक प्रदर्शनी आ  ऊपरक तल पर दरबार हॉल छैक जे ध्यान आ मनन ले उपयुक्त अछि. एहि केंद्रक आगूक  भूमि खुला आ बेस पैघ छैक. एतयसँ सम्पूर्ण शहर आ आगूक दूरक इलाका देखबामें कोनो अवरोध नहिं. स्फूर्ति केंद्रक दाहिना दिस मन्दिर एकटा छैक. मन्दिरक बगलक सड़कक दोसर तरफ एक पाँति में आगू पर्यटकक लेल बहुत रास छोट-छोट किरायाक कॉटेज. शिवाजी स्फूर्ति केंद्र देखि मल्लिकार्जुन सदन आपस भेलहुँ.

मल्लिकार्जुन सदन सं आ आगू जे सड़क जाइछ तकर बामा दिस बाज़ार आ सोझे आगू कृष्णा नदीक कछेर पर जयबाक सीढ़ी छैक. नदीक कछेर दिस पातालगंगा रोप वे सेहो जाइछ. तकर पछाति नाओ पर कृष्णा नदी धार पर जाइत नदीक दोसर पार अक्कामहादेवी गुफा छैक. मुदा, हम एहि बेर समयाभाव में ओम्हर नहिं गेलहुँ.  बुड़बकहाक खेती अगिला साल.

श्रीशैलम नगरक एक चौराहा पर भव्य मूर्ति 

सांझ में पत्नी आ हुनक माँ कें ल कए मन्दिरक आगूक बाज़ार में कनेक टहलान भेलैक. किछु सनेस-बाड़ी किनल. पहिने जहिया दूरस्थ तीर्थ स्थल जयबाक उपाय सुलभ नहिं रहैकतं अनको ले लोक अणाची दाना आ बद्धी अनिते छल. मुदा, से इतिहास भए गेल. आब ई यात्रा समाप्त हेबा पर अछि. काल्हि भोरे आपसक यात्रा. मुदा, घुरती में एहि नगरक चौक-चौराहा पर स्थापित भव्य मूर्ति सब देखब जुनि बिसरी. चौक-चौराहा पर स्थापित देवी देवताक एहन भव्य मूर्ति हम भारत में आन ठाम नहिं देखने छी.  

 

     

 

    

 

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