Monday, July 8, 2019

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान


कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख 


मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान 

कीर्तिनाथ झा

वैश्वीकरण आ इन्टरनेटक प्रचार सं समाज में अनेक दूरगामी परिवर्तन भेलैये. भाषाकेर प्रचार-प्रसारपर सेहो एहि दुनूक असरि अवश्य पड़लैए; किछु नीक, किछु बेजाय . तथापि, एहि युग में विश्व भरि में सैकड़ो भाषा विलुप्त सेहो भ रहल अछि. मैथिलीक अस्तित्व पर तत्काल कोनो संकट नहिं लगैछ ; एखन मैथिली बजनिहार बांचल छथि. तथापि, मैथिली विलुप्त हयबाक खतरा सं पूर्णतया सुरक्षित अछि, से कहब कठिन.  एहन स्थिति में जं मैथिली जीवैत अछि तं तकर श्रेयकेर दावेदार के छथि. आ जं मैथिली के विलुप्त हयबाक  खतरा छैक तं एहि हेतु कोन तत्व जिम्मेदार अछि. अछि एही विषय पर विचार करब एहि लेखकेर उद्देश्य अछि.
मनुखक जन्म-जकां भाषाक जन्म-मृत्यु निर्धारित तिथि सं नहिं होइछ. यद्यपि, भाषा वैज्ञानिक लोकनि भाषाक उद्गम आ विकासक आदि-अंतक अनुमान लगबैत छथि. मैथिली कें केओ 1100 सौ वर्ष पुरान कहैत छथि, तं, केओ 700 वर्ष पुरान. केओ एतेक धरि कहैत छथि जे मैथिली सीताक युगक भाषा थिक. सम्भव अछि, मैथिली सीता सं सेहो पुरान हो. जं, मिथिला नामक राज्य रहैक, तं, सम्भव अछि ओ राज्य सीता सं पहिनहु छल होइ. तखन सीतासं पहिनहु एतुका लोक वएह भाषा बजैत छल हयत जे सीता बजैत छलीह, सीता जनमिते तं कोनो नव भाषाक अविष्कार नहिं केने हेतीह. तथापि, एहि तर्क कें एखन एतहि विराम दी.
अनुभव आ भाषा विज्ञान दुनू एक मत अछि जे भाषाक स्वरुप निरंतर ओहिना बदलैत रहैछ जेना मनुखक स्वरुप. ततबे नहिं, एकेटा भाषाक भिन्न-भिन्न स्वरुप, बजबाक शैली, शब्द-भंडार आ लोकोक्तिक सम्पदा अनुभूत सत्य थिक. तें, मैथिली आरम्भमें केहन छल आ आगाँ केहन रहत, ‘देवो न जानाति, कुतो मनुष्यः’ ! हमरा जनैत भाषा समय केर चाक पर चढ़ल कुम्हारक हाथक माटि थुम्हा थिक जकर स्वरूप कांच माटिक विपरीत अत्यन्त मंद गतिएं निरंतर परिवर्तनशील रहैछ. व्याकरण एहि स्वरूप कें स्थिर करबाक जोगाड़ में लागल रहैछ. किन्तु, मनुखक जीह व्याकरणक अवहेलना करैत भाषा कें तरासैत ओकरा नव-नव स्वरूप दैत चल जाइछ. तें, शेक्सपियरक अंग्रेजी आ विद्यापतिक मैथिली एखनुक भाषा सं भिन्न बूझि पड़ैछ. किन्तु, ई विषयान्तर भेल आ  इहो विषय एहि लेख केर विवेचनाक विषय नहिं. तें, आब हमरा लोकनि सोझे एहि विषय पर आबी जे मैथिली जं जीवैत अछि तं ओकरा कतय सं ऊर्जा भेटैत छैक,  ओकर जडि में खाद-पानि - साहित्य आ व्याकरणक रचना आ राजनैतिक समर्थन- जे केओ दैत  होथु, मैथिली क वृक्षकें ग्लूकोज,  आ प्राणवायु कतय सं भेटैत छैक.
हमरा जनैत कोनो एक भाषाक मूलभूत ऊर्जाक श्रोत ओ नागरिक लोकनि छथि जनिका एक दोसरा सं संवादले मातृभाषा क अतिरिक्त आन कोनो भाषा क ज्ञान नहिं छनि.  किछु उदाहरण सं ई गप्प कनेक फडिच्छ भ सकैत अछि. 1999 वर्ष में हम जखन बंगलोर पहुंचल रही, कन्नड़ सिखबाक प्रबल इच्छा भेल छल. ओहि समयमें  बंगलोरक दैनिक टाइम्स आफ इंडिया में Know your Kannada नामक दैनिक स्तंभ छपैत रहैक. एहि स्तंभ में रोमन लिपि में कन्नड़ केर दैनिक उपयोगक कन्नड़ भाषाक वाक्य सब अंग्रेजी अनुवाद क संग देल जाइक. हम एकर कटिंग सबके संकलित कय एकटा कापी मे साटि कय राखी आ कन्नड़ सिखबाक प्रयास करी. किन्तु, एहिसं  हमरा कन्नड़ में कोनो दक्षता हासिल नहिं भ सकल. एकर विपरीत तहिया बंगलोरक  आर टी नगर में रहनिहारि किछु मैथिलानी लोकनि धुर्झार कन्नड़ बाजथि. हमरा अवश्य आश्चर्य भेल. पुछलियनि, तं, ओ लोकनि  कहलनि , 'जं हाट, मांछक बाजार आ मोहल्ला क दोकान-दौड़ी जाय लागब तं अपने कन्नड़ सिखल भ जायत ! ई गप्प हमरा युक्तिसंगत लागल. हम हाट, मांछक बाजार आ मोहल्ला क ओहि दोकान-दौड़ी नहिं जाइत रही जतय दोकानदार केवल कन्नड़ बजैत रहथि. हमर कार्य-स्थलमें (वायुसेना कमान अस्पताल मे) सेहो हमरा कन्नड़ बजबाक बाध्यता नहिं छल. ओतय  हमरालग अयनिहार अधिकांश रोगी कन्नड़ भाषी रहथि, किन्तु, हिन्दी-अंग्रेजी में दक्ष.  ओ लोकनि बोल-चाल में हमरा संग अंग्रेजी वा हिन्दीक प्रयोग करथि. अतः, ओतय  हम कन्नड़ नहिं सीखि सकलहुँ.  माने, बंगलोर  वायुसेना कमान अस्पतालमें, वा ओतय कतहु जतय हम बंगलोरमें जाइछ रही, हमरा वा ओतुका कन्नड़ भाषीकें  कन्नड़ बजबाक बाध्यता नहिं छलनि. किन्तु, अनपढ गंवार मैथिल, वा आन कोनो भाषा-भाषी कतहु जाथु,वैकल्पिक भाषाक अभाव में हुनका ले संवादक माध्यम मातृभाषा छोड़ि आन कोनो भाषा नहिं, जाधरि आवश्यकताक दवाबमें, ओ स्थानीय भाषा नहिं सीखि लेथि. तें, मिथिलाक ओ वर्ग जे मैथिलीए टा  बाजि सकैत छथि वा जनिका मैथिली बजबा में हीनताक बोध नहिं होइत छनि, मैथिलीक हेतु असली ग्लूकोज आ आक्सीजन वएह थिकाह. ई लोकनि केवल मैथिली बजिते टा नहिं छथि, अनको मैथिलीसं परिचित करबैत छथिन, ओहिना जेना, कन्नड़क अतिरिक्त अन्य भाषासं अभिज्ञ स्थानीय, मैथिल लोकनि कें, बाध्यतामें, कन्नड़ सिखा देलखिन ! तहिना, लोक भले भाषा बुझनु वा नहिं , केवल मैथिली-हिन्दीए टा बजनिहार जन-मजदूर तमिल, कन्नड़ वा मलयालीकें मैथिलीमें संबोधित कय, कम सं कम  मैथिली कोनो भाषा थिकैक तकर  बोध करबैत छथिन.   दु:खद थिक, हमरा-सन बहुतो शहरी मध्य वर्गक लोक गौरव में रहैत छथि जे मैथिली हुनके सहयोग सं जीवित अछि. दोसर दिस गाम-घर में मैथिली बजैत करोड़ों नागरिक एकर श्रेय लेबाक सोचितो नहिं छथि. गाम घरक लाखों एहन गरीब-गुरुबा आ निरक्षर  लोकनिकें इहो बूझल नहिं छनि जे ओ कोन भाषा बजैत छथि. मातृभाषासं अपरिचयक कारण पर वैज्ञानिक योगेन्द्र पाठक वियोगीजी अपन लेख ‘ बिनु जडिक गाछ’ पर विस्तृत विवेचना प्रस्तुत केने छथि. हुनक कथ्य ई जे, ‘अधिकांश के ई बुझले नहिं जे ओ कोन भाषा बजैत अछि’ .   सत्यतः, मिथिलांचलमें  बाल-वर्ग सं हाई स्कूल धरि शिक्षामें मैथिलीक आभाव छात्रकें ई अनुभव नहिं होमय दैत छनि जे जाहि भाषा ( हिंदी वा अंग्रेजी) में ओ लिखैत-पढ़इत छथि से हुनकर मातृभाषा नहिं थिकनि,आ हुनक मातृभाषा मैथिली थिकनि.’ ई पढ़ल लिखल लोकक गप्प भेल.  हमरा लोकनि निरक्षर तं गप्पे नहिं करी. फलतः, जनगणनाक खानापूर्ति में गणक लोकनि भाषामें  हुनकालोकनिक नामक सोझाँ हिन्दी वा कोनो आन भाषा दर्ज  करैत आयल छथिन, जाहि सं मैथिलीक अहित तं होइते छैक, मैथिलीक असली संरक्षक अपन अर्जित श्रेय सं अछूत रहि जाइत छथि.  तथापि, मैथिली क असली संरक्षक लोकनि इएह लोकनि  थिकाह तं इएह ! जनगणनाक एखनुक सन्दर्भमें प्रासंगिकता ई जे वर्ष 2021 में आगामी जनगणना हयत . ओही समयमे हमरा लोकनिकें सतर्क रहब आवश्यक जाहि सं मैथिली भाषी लोकनिक सही गणना  सुनिश्चित हो.
आब एहि विषय पर विचार करी जे जं मैथिली कें विलुप्त हयबाक संभावना  छैक तं एहि हेतु कोन-कोन  तत्व जिम्मेदार अछि.
भाषाक राजनीति जं बूझी तं मैथिलीक जडि पर असली कुडहरि साबित भेल. स्वतंत्रताक पूर्व सम्पूर्ण बिहारमें मातृभाषाक रूप में एकमात्र हिन्दीक स्थापना जं मैथिली  हित पर पहिल चोट छल तं अस्सीक दशकमें बिहारमें मैथिली, भोजपुरी, मगही, वज्जिका आदिकें दरकिनार करैत उर्दूके बिहारक दोसर सरकारी भाषाक रूप में दर्जा भाषा सबहक जडि पर दोसर एहन छौ छल जे मैथिलीक संग आन सब भाषाकें सोझे धराशायी क देलक. एहि सत्यकें के अस्वीकार करताह जे मिथिलांचल, मगध, वा भोजपुरी क्षेत्रमें केओ कोनो जाति-धर्म-संप्रदाय वा सामाजिक वर्गक होथि अपन परिवारमें स्थानीय भाषाक अतिरिक्त कदाचिते आन भाषा बजैत होथि. ओहिना, जेना, केरल, तमिलनाडु, बंगाल, कर्नाटक में सब स्थानीय भाषा बजैत अछि. हं, बिहारक विपरीत एहि दक्षिण भारत में सरकारी आ व्यक्तिगत काजो मातृभाषाए में होइछ.  ओतय मातृभाषाक अतिरिक्त लोक केवल अंग्रेजी सिखैछ. ई बात अवश्य जे बंगाल व दक्षिण भारतक राज्य सबहक विपरीत मिथिलांचलक मैथिली- भाषी राजनेता लोकनि, मैथिली साहित्यकार सहित, अपन-अपन पार्टीक भाषा-नीतिक अनुकूल पार्टीक मीटिंग, भाषण, मतदानक प्रचार सामग्रीमें  लम्बा अवधि धरि मैथिलीक ने प्रयोग केलनि, आ ने एखन धरि भाषाके स्थानीय राजनैतिक मुद्दा बनओलनि.  तथापि, मैथिलीकें संविधानक आठम अनुसूचीमें सम्मिलित कय लम्बा अवधि सं लम्बित मैथिलीक वैधानिक दावाकें स्वीकार करबाक तत्कालीन प्रधानमन्त्री स्व. वाजपेयीजीक योगदान मैथिलीक अभिवृद्धिमें सकारात्मक राजनैतिक पहल छल, जाहि हेतु  हमरा लोकनि वाजपेयी जीक प्रति कृतज्ञ रहब.
भाषाक एक भाषा सं दोसर भाषा क समागम भाषाक हेतु नीक थिकैक वा बेजाय ताहि पर प्रायः मतैक्य नहिं. किछु गोटेक मत छनि,  भाषा सबहक बीचक मेलजोल भाषाकें जीवन दान दैत छैक. किन्तु, किछु गोटे इहो कहताह जे एहि सं वर्णसंकर भाषाक उदय ( जेना, हिन्दी आ फ़ारसी सं उर्दू),  आ भाषाक विकृति, दुनूक संभावना रहैछ. फलतः,विश्व केर कतेक भाषा-भाषी, जेना, फ्रेन्च, लोकनि अपन भाषामें आन भाषाक शब्दक आमदक ततेक विरोधी छथि जे प्रतिवर्ष  नियमतः आन भाषासं फ्रेन्च मे आयल शब्दकेँ जजात महक मोथा-जकां बाछि कय बाहर फेकि अबैत छथि. एकर विपरीत अंग्रेजीभाषाक ऑक्सफ़ोर्ड शब्दकोष  प्रतिवर्ष आन-आन भाषाक नव-नव शब्दकेँ अपन शब्दकोषमें आनि ओकरा स्थापित आ परिभाषित करैत अछि . तथापि, विश्वमें अंग्रेजी क वर्चश्व बढ़िए रहल अछि. तें, हमरा जनैत, मैथिली में आन भाषाक एहन शब्द जकर पर्याय मैथिली में छैक, तकर अयलासं मैथिली क शब्द संसार क्षीण हयब संभव. किन्तु, नव अविष्कार, नव भोजन, परिधान आ उपकरणक नाम मैथिलीमें आयब उचित आ दुर्निवार दुनू. मैथिली एहि सं समृद्ध होइछ, दुर्बल नहिं.
अपना घरमें बोल-चालमें हिंदी-अंग्रेजीक प्रयोग एकटा नव रोग थिक जे मैथिली  कें दुर्बल करैछ. मैथिल मैथिली किएक नहिं बजैछनामक प्रोफेसर शंकर कुमार झाक लेख अस्सीक दशकमें पूर्णिया कालेजक पत्रिका में छपल छल, जाहि में प्रोफेसर झा एहि विषय पर गम्भीर विवेचना प्रस्तुत कयने रहथि. कालेज पत्रिकाक सीमित  परिधि आ प्रसारक बावजूद, संभव अछि, मैथिलीक गंभीर अध्येता क नजरि एहि लेखपर गेल होइनि. एहि लेखमें मैथिल लोकनि मैथिली किएक नहिं बजैत छथि व टूटल फूटल हिंदी बजैत छल ताहि पर गंभीर चिंतन छलनि. एहि लेखक एतय चर्चाक कारण ई जे ओहि लेख में लेखकक अनेक विचार विन्दुमें एकटा ईहो निष्कर्ष रहनि जे अधिकतर शिक्षित मैथिल टूटल फूटल हिन्दी आ अंग्रेजी बजबामें मैथिली सं बेसी गौरवक बोध करैत छथि. लेख पैघ छलैक आ निष्कर्षक बहुतो विन्दु आब स्मरण नहिं अछि. किन्तु, आइ  ओही लेखक प्रकाशनक करीब 30-35 वर्ष पछाति स्थिति खराबे भेलैये नीक नहिं. कारण, सब ठाम देखबा में आओत. यद्यपि ई सत्य, आइ रांची, गुवाहाटी, दिल्ली, देहरादून, रायपुर,मुंबई, हैदराबाद सबठाम मैथिल-मैथिलीक समुदाय सक्षम, संगठित आ सक्रिय छथि, किन्तु, एहि संस्था सबहक कतेक सदस्य लोकनि अपना घर में मैथिली बजैत छथि, से हमरा नहिं बूझल अछि. एतबा अवश्य, जे जं मैथिल लोकनि मैथिली नहिं बजताह तं मैथिली कोना जीवित रहती ! भाषाक मूल आ असली अस्तित्व तं लोक-कंठे थिकैक. लोक जं दिन-प्रतिदिन मैथिली नहिं बाजत तं भले कतबो साहित्य आ शास्त्र मैथिलीमें लिखल जाओ मैथिली संस्कृते-जकां केवल पुस्तकालयक शोभा बनि के रहि जेतीह.  तें, घर परिवारमें मैथिली बाजब मैथिलीक अस्तित्व ले ओतबे आवश्यक अछि जतेक मनुखक अस्तित्व ले भोजन , पानि आ वायु. तें, जे केओ घर परिवारमें मैथिली बजैत छी, निस्संदेह मैथिलीक आयु बढ़बैत छियैक. घर-परिवारमें मैथिली नहिं बजैत छी तं मैथिली दुर्बल होइछ.
        जेना, उपर चर्चा भेल अछि, प्राथमिक शिक्षामें माध्यमक रूपमें  मैथिलीक अभाव मैथिली प्रचार-प्रसारक मूल में तं अछिए, तथापि, एहि में संदेह अछि जे मैथिलीक कें शिक्षाक माध्यम भेलाक पछातियो, आ मिथिला नामक राज्यक स्थापनाक पछातिओ, शहरी मध्य वर्ग अपन धिया पुता के अंग्रेजी माध्यमक स्कूलमें पठयबाक स्थान पर मैथिली माध्यम स्कूल में पठओताह. संभव अछि, मैथिली-माध्यम स्कूल, मैथिली-मीडियम शिक्षा तखनो ओहने तिरस्कृत रहत जेना एखनहिन्दी मीडियम  अछि. एकर ई अर्थ कदापि नहिं जे हम शिक्षा में मैथिली माध्यम विरोधी छी.  सत्यतः, अंग्रेजी पढलाक व्यावहारिक लाभ सं अंग्रेजी सिखबाक सेहंता आ स्थानीय भाषाक प्रति हीनभावक दोष केवल शहरीए लोकनिकें नहिं छनि . ग्रामीण लोकनि के सेहो मनोरथ होइते छनि जे धिया-पुता अंग्रेजी में गप्प करय. पछिला बेर गाम गेलहुं तं हमर एकटा बाल-सखा, आग्रह सं कहलनि, ‘हमर छौड़ा काल्हि गाम आओत. कनिओ काल ले हम अहाँक गाम पर अवश्य अनबै. हमर छौड़ा  अहाँ सं अंग्रेजी में गप्प करत !’  एहि में हम कोनो खराबी नहिं देखैत छियैक. जं, कोनो ग्रामीणक धिया-पुता दक्षिण भारत वा मध्य-पूर्व विदेश में केवल एहि हेतु नौकरीक जोकर नहिं अछि जे ओ अंग्रेजी नहिं बजैत अछि, तं, ओकरा ले अंग्रेजी सीखब मुक्ति थिकैक. ओ अंग्रेजी अवश्य सिखथु. तथापि, जं, मिथिलांचलमें जं शिक्षाक माध्यम मैथिली भेल तं हमरा लोकनिक सम्पूर्ण समाजक आ राजनैतिक दल लोकनिक सम्पूर्ण समुदाय एकमत भ अपना नेना भुटकाक शिक्षाक लेल मैथिलीकें अपनयाबाक हेतु  सामान रूपें सहमत हेताह, कि नहिं, से के कहत .  तथापि, सबहक सहयोगक  बिना मातृभाषामें शिक्षा संभव नहिं. ततबे नहिं, मैथिलीक माध्यमे शिक्षाक प्रसारसं समाजमें उपलब्ध  भेल नव अवसर सं जं सबकें  सामान रूपें लाभ नहिं  भेलैक तं  भाषाक उत्थानमें सबहक सहभागिताक आशा केवल कल्पना बनि कय रहि जायत.  
एकटा आओर गप्प. वैश्वीकरणक युगमें भाषाक समसर्वत्रीकरण भ रहल अछि. गूगल,फेसबुक, ह्वाट्सएप, इंस्टाग्राम, टेलिग्राम प्रभृतिक अनेक अंतर्राष्ट्रीय मंचपर जहिना विश्वभरिक नागरिक एक दोसरासं जुड़ि रहल, तहिना रोमन अक्षर आ बहुभाषिक शब्द-भंडार भाषाक स्वरूपकें प्रभावित कए रहल अछि. ई परिवर्तन मैथिलीक अस्तित्व पर संकट थिक, वा  मैथिली भाषाकें समृद्ध करैछ, से भाषा- वैज्ञानिक लोकनि कहथु.


 





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