Tuesday, December 26, 2017

स्मार्ट फ़ोन, फेसबुक आ साहित्य

इन्टरनेट,स्मार्ट फ़ोन, फेसबुक, आ साहित्य
इन्टरनेटक उपयोग सबसँ पहिने उन्नत देश सबहक सेना अपन आतंरिक संचार ले केलक. 1990क दशक में क्रमशः इन्टरनेट जनसामान्यक जीवनमें आबि गेल . पछिला पन्द्रह वर्षमें इन्टरनेट पढ़ल-लिखल शहरीक  जीवनक हिस्सा बनि गेल. तथापि कम्प्यूटरसं अभिज्ञक हेतु इन्टरनेट पहुँचकेर बाहर छल. तें, पुरान पीढ़ीक साहित्यकार लोकनि  कम्प्यूटर आ इन्टरनेट कें दूरेसं देखैत रहलाह. स्मार्टफ़ोन जहियासं सार्वजनिक भेल, स्थिति एकदम बदलि गेल.  कवि- कथाकार लोकनि जखन स्मार्टफ़ोनक प्रतापें फेसबुकसं परिचित भेलाह तं  बहुतो गोटे  एक दोसरा सं जुड़लाह, जे पहिने असम्भव छल. तथापि, आरम्भमें  ई  सम्पर्क  नमस्कार-प्रणाममें आ like ( नीक लागल ) धरि सीमित छल. किन्तु, पछिला किछु दिन में  स्मार्टफोनक उपयोगक नव- नव  आयामक उदय होमय लागल-ए . सद्यः रचल कविता  कविगोष्ठी आ सम्मलेनसं पहिनहिं आकाशवाणी जकां साइबर स्पेसमें गुंजय लागल अछि.   क्रमशः फेसबुक पर कविता आ टीका-टिपण्णीक आदान-प्रदान होमय लागल अछि . ई एकटा स्वागतयोग्य परिवर्तन थिक. कवि-कथाकार उदय चन्द्र झा 'विनोद' तं  एकरा स्वीकार केलनि, आ स्मार्टफ़ोनसं कविता लिखब आ आदान-प्रदान सुलभ भ जेबाक गप्पकें अपन फेसबुक पोस्टपर लिखबो केलनि. फलतः, हमरो लोकनि भोर होइते, घरे बैसल नव-पुरान कवि लोकनिक, चूल्हिपर चढ़ले काव्यक रिन्हका चिखैत छी. 
किन्तु, अनेको नव अविष्कार भले अनूप हो, उपयोगक दोषसं वा अविष्कारमें सन्निहित दोषसं पछाति  प्रत्येक विधाकेर किछु अप्रत्याशित असरि समय-समय पर देखबामें आयब असम्भव नहिं . इन्टरनेट आ स्मार्ट फ़ोन सेहो एहिसं अछूत नहिं. नीचा देल किछु उदहारण हमर वक्तव्यकें स्पष्ट करत.
हालमें एकटा सम्पादक मैथिलीक 'कोनो' प्रोफेसरके भुसकौल कहि देलखिन. बड बेस. टटका-टटकी किछुए दिन पहिने, केओ एक गोटे बड परिश्रमसं प्रोफेसर भेल छलाह . हुनका लागि गेलनि . ओ बमकि उठलाह. पक्ष आ विपक्ष दुनू में तर्क-वितर्क शुरू भेल . किन्तु. फेसबुकक अपन सीमा छैक. अस्तु, ने  केओ पूर्णतासं अपन पक्ष रखैछ, आ ने से सम्भव छैक. तखन वाद-विवादक  जे नियति हेबाक छलैक, से भेलैक. किन्तु, एखनुक युगमें  नीक जकां तर्कसंगत पक्ष रखबाक  समय  सबकें नहिं छैक; अवगतिक गप्प सं हम परिचित नहिं. तें,ओकर गप्प तं छोडू. किन्तु, हमरा जं पूछी, तं, जे मुद्दा  एहि विवादक  कारण छल, ताहिपर तर्कसंगत आलेखसं विद्वान लोकनि अपन पक्ष रखितथि, जाहि सं पाठक लोकनि अपन निष्कर्ष  स्वयं निकालितथि, से नहिं भेल.  एहिले पक्ष रखबाक आग्रह आ प्रतिबद्धता दुनू चाही. चूंकि, तर्कमें सीताक भाषाक स्थान पर, विवादक मुद्दा प्रोफेसर जातिक दक्षता भ गेल, तें, विवाद शाश्त्रीय नहिं भ' कय व्यक्तिगत भ' गेल. ओना, हनुमानक संग सीताक संवादक भाषा  मैथिली छलनि वा नहिं, तकर संधान तं समाप्त भ' गेल, से  लगइये !
स्मार्टफोन पर लिखल साहित्यक दोसरो  बाध्यता छैक. ई बाध्यता थिक, तुरत लीखि, लिखबो सं पहिने (!) छापि देबाक आग्रह. ताहिसं लेखतं छपि जाइछ, किन्तु, लेख केर पहिले ड्राफ्ट फाइनल  भ जाइछ. अस्तु, कतेक बेर बिनु धोअल-बिछल  चाउरसं आंकड़-पाथर-पिलुआक संग जेहन पुलाव बनतैक , से बनि गेल आ परसल भ गेल. एहिसं लेखककेर तुरत शेयर करबाक आग्रह तं पूर्ण भ गेलनि, किन्तु, जे प्रतिष्ठा स्वादिष्ट भोजन रन्हनिहार भनसियाक बनाओल भोजन कें भेटैत छैक ताहि सं साहित्यकार, आ विचारक, वंचित भ जाइत छथि. किन्तु, एहि टावर ऑफ़ बाबेल (Tower of  Babel ) में ककरा के सुनैत अछि ? आ पढ़ल-सुनलकें के कतेक दिन मोन राखत, से के कहत !
इन्टरनेट आ स्मार्ट फ़ोनपर लिखबाक विधाकें एकटा आओर पक्ष छैक: अप्रत्याशित मांग. हाल में एकटा प्रॉक्सी फेसबुक  पोस्ट देखल.  एहि पोस्टमें वयोवृद्ध आ समादृत  साहित्यकार गोविन्द झासं एकटा आग्रह कयल गेल छनि : ' गोविन्द बाबू अमुक पत्रिका में छपल  'किरणजी'अमुक इंटरव्यूकें पढ़थि, आ तन्त्रनाथ झाक सम्बन्धमें किरण जीक विचारक सम्बन्धमें अपन ( गोविन्द झा केर ) उक्तिक परिमार्जन करथि' ! भेलैक ने अतत्तः !                               
स्मार्टफ़ोन पर लेखसबमें  अभिव्यक्तिक स्वतंत्रताक अति - गारि-गरौअलिक- एकटा तेसर समस्या थिक. पत्र-पत्रिकाक    संपादक तं अपन पत्रिका में छपल सामग्रीले किछु हद धरि दायित्व लैत छथि. इन्टरनेट आ फेसबुक पोस्टले दायित्व के लेत !
ततबे नहिं, एखनुक लेख सब में परिचित विद्वान, बुद्ध-चाणक्य आ नेहरू- गाँधीक एहन उद्धरणसब देखबैक जकर कोनो आधार नहिं छैक. किन्तु, ई सब शुद्ध- अशुद्ध आ जानल-बूझल उपद्रव हजारों बेर बिनु पढ़ने 'लाइक' आ फॉरवर्ड (पुनः प्रेषित ) भ जाइछ . अर्थात्, असत्य,अशुद्ध आ अनर्गलो  भोपाल आ चर्नोविलक विषाक्त गैस जकां क्षण भरिमें देश आ महादेशक सीमाकें नांघि जाइछ . सुधी समाज आ साहित्यकारकें  ई मोन राखब उचित.

Wednesday, December 13, 2017

'जिस पथ जावें वीर अनेक '-2



2
परतापुर / थोइस, आ तुर्तुक
अहल भोरे तैयारी , जलपान आ मेडिकल टीमक संग तुर्तुक ले विदा भेलहुँ .संगमें ले.कर्नल इन्दरजित  हजारी आ ले.कर्नल अखिल राठौड़. तुर्तुक पहुँचैत दस बाजि जेतैक हमरा लोकनि ओतय पहुंचब तखने रैली , कैंटीन आ मेडिकल कैम्पक उद्घाटन हेतैक. लेह में रहैत हमरालग तुर्तुक सं अनेक रोगी अबैत अछि . पछिले मास में हम तुर्तुकक एकटा दस वर्षक रोगिक आँखिमें लेंस लगौने  छियैक आइ ओहो एबे करत . हुन्डर मिलिटरी अस्पताल में मेडिकल स्पेशलिस्ट आ सर्जन केर सुविधा छैक. किन्तु , सम्पूर्ण लद्दाख़ में मिलिटरी विभागमे एकमात्र लेह जनरल हॉस्पिटल में आंखिक इलाजक सुविधा छैक. सोनम नोर्बु अस्पताल में एकटा नेत्र चिकित्सक छथि . किन्तु , सुविधा- सहूलियतक कारण अधिक लोग मिलिटरी अस्पताल में अबैत अछि. किन्तु, लेह जनरल हॉस्पिटलक अनुभव फेर कहियो .एखन सयोक नदीक बामा कछेर धेने आगू बढ़ी .एहि बाटपर हुन्डरसं आगां THOISE एयरफील्ड अबैत छैक.एतय छोट-सन गाम सेहो छैक. थोईस Transit Halt OIndian Soldiers Enroute (to Siachen) केर संक्षिप्त रूप (acronym) थिक. नुब्राक इलाकामें एकमात्र चाकर-चौरस भूमि ई एयरफील्ड सियाचिन आ सम्पूर्ण नुब्रासं संचालित सैनिक अभियानक संचालनले तं महत्वपूर्ण अछिए , नुब्राक इलाकामें ई मात्र सिविलियन एअरपोर्ट थिक. ज्ञातव्य थिक, एहि इलाका दोसर मिलिटरी एयर स्ट्रिप दौलत बेग ओल्डी नामक स्थान में छैक जतय आवश्यकतानुसार भारतीय वायु सेनाक उतरैत अछि. किन्तु, ओम्हर ने आबादी छैक आ ने पर्यटनक अनुमति आ सुविधा. गर्मीक मासमें दिल्ली सं लेह आ परतापुरक सिविल फ्लाइट पर्यटक सब सं भरल रहैछ. किन्तु, लद्दाख़ अनेक अर्थमें अजूबा अछि. भ सकैत अछि , अहाँ ट्रिप बनाबी , टिकट ली , आ मौसमक बदलिक जाइक आ अहां लद्धाख जा नहिं सकी . एतुका मौसमक कोन ठेकान, दुलारि संगिनी-जकां हिनक कखन मूड बदलि जेतनि , के कहत ! दोसर , लेह आ परतापुर पहुँचि गेलहुं तैयो आपसी में सेहो बाधा भ सकैत अछि . एहि ठाम गर्मी मास में जखन तापमान बढ़इत छैक तं विरल वायु ( low atmospheric pressure ) क कारण हवाई जहाजक वजन उठेबाक क्षमता ( payload lift ) कम भ  जाइछ . अस्तु , भ सकैत अछि , हवाई जहाज में बहुतो सीट खाली होइक आ अहाँकें लेह वा परतापुर में दोसर दिनक फ्लाइट ले प्रतीक्षा करय पड़य . तें ,लेह एवं परतापुरक फ्लाइट चंडीगढ़ आ दिल्लीसं अहल भोरे करीब 5 बजे धरि उडि जाइछ, जाहि सं रौद तेज हेबा सं पहिने वापसीक फ्लाइट उडि सकैक. आब पुनः बाटपर आबी. डिस्किटसं आगू तुर्तुक केर सड़क भारत -पाकिस्तानक सीमाक समीप छैक. तें , पहिने एम्हर पर्यटक केर अवर्यात नहिं रहैक. किन्तु, हाल-सालमें पर्यटक केर आमदरफ्त बढ़लइ-ए. पर्यटक सब मोटामोटी तुर्तुक जाइछ. बीचमें चलुंका नामक   गाम अबैछ . किन्तु, ओतय पर्यटकक दृष्टिऐ कोनो तेहन आकर्षण नहिं. थोइससं तुर्तुक केर  सड़क मोटा -मोटी समतल भूमि में चलैछ, आ बेसी ठाम नदीसं दूर.
किन्तु, कतहु-कतहु सड़क नदीक तलसं ऊँच चढ़ि जाइछ आ नदीक कछेर सडकक एकदम लग सहटि अबैछ. ताहिपर बामा कात 75-80 डिग्री खड़ा पहाड़क बलुआह फलक. आ सडकक दाहिना तरफ़ गहिंड नदी.  एहन सब स्थानमें  बालु-माटिक आ मलवा कखन हहरि क सड़क पर आबि जायत आ सड़क बंद क देत वा चलैत गाड़ी-घोड़ा कें ल क नदी में विलीन क देत कोन ठेकान. तथापि, राष्ट्रीय सुरक्षाक दृष्टिएं महत्वपूर्ण एहि सड़कके सीमा सड़क संगठनक निरंतर चालू रखने रहैछ , आ बस-मोटर कार आ सैनिक साज सामन सं लदल  भारी वाहनक यातायात चालू रहैछ . पहिलुका युगक घोड़ा-खच्चर आ ऊँट कारवां तं आब इतिहास भ गेल अछि. तें, ओ सब आब कतय पाबी .एहि इलाकामें दाहिना तरफ बाटें-बाट सैनिक चौकी , तोपखाना , आ नदी पार करबाक सैनिक पुल सेहो देखबा में आओत . स्थान सबहक नाम स्थानीय जनता आ सैनिके लोकनि बूझैत छथि . कारण, जं गाम नहिं तं स्थानक नाम की ? एहि बाट पर चलैत-चलैत  चाकर -चौरस नदी , बलुआह-रोड़ाह मरुभूमिमें जं एकाएक हरियरी, आडूक गाछ , मटरकेर लत्ती , जौ-गहूमक खेती , टमाटर -मूर-गाँठ गोभीक खेत नजरि आबय लागय तं बूझि लिअय , तुर्तुक पहुँचइ बला छी . किन्तु, गाम सं पहिने सड़कक बामा कात सबसेक्टर हनीफ़में कारगिल युद्ध में अपन प्राण उत्सर्ग केनिहार पहिल सैनिक , जाट रेजिमेंटक लान्स नायक खड़ग सिंह , सेना मेडल , आ ओहि युद्धमें शहीद कप्तान हनिफुद्दीन , वीर चक्र केर स्मारक आकृष्ट करत.


हमर विचार जे गाओं में प्रवेशसं पूर्व एहि हुतात्मा लोकनिक स्मरणमें एक क्षण मौन आ एकटा नमन. देशक सर्द वीरान भूभाग में प्राणक बलि देनिहार ई युवक योद्धालोकनि, देशक हृदयस्थलमें अपन घरमें सुरक्षित , निस्संक सूतल नागरिकक आ ब्लैक -कैट कमांडोक घेरामें दिल्लीमें चलनिहार राजनेताक दृष्टिपथ पर नहिं अबैत छथिन . किन्तु, जं अहाँ कोनो सैनिककें सद्यः देखने छियनि ,तं , एतबा धरि जुनि बिसरी , जे , घर परिवारक संग प्रसन्नमुख सैनिक एहनो निर्जन प्रदेश आ विषम जलवायुमें में घर-परिवारकें बिसरि निरंतर देशक सुरक्षाक लागल रहैछ. मन में एके सुर आ एके राग, स्वर्गीय कप्तान विक्रम बत्रा, परम वीर चक्रक  शब्द में , 'चाहे तं शत्रुक छाती पर राष्ट्र ध्वज कें फहरायब, वा राष्ट्रध्वजक परिधानमें हमर पार्थिव-शरीर वापस आओत '. अतः ई 'जिस पथ जावें वीर अनेक' बाट थिकजाहिपर फेकल जयबाक ‘अभिलाषा’, फूल स्व.माखन लाल चतुर्वेदी अमर कविता ‘पुष्प की अभिलाषा में ‘ व्यक्त कयने अछि . स्वतंत्रता संग्रामक युगमें लिखल ई कविता आब विस्मृत भ गेल अछि तें हम एकरा एतय उद्धृत करैत छी :
'चाह नहिं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहिं सम्राटोंके शव पर हे हरि, डाला जाऊं
चाह नहिं देवों केर शिरपर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथपर देना तुम फेक ,
मातृभूमि पर शीश चढ़ानेवाले , जिसपथ जावें वीर अनेक
हमरा लोकनि तुर्तुक पहुँचि चुकल छी . करीब दस बाजि गेल छैक . समयसं पहुँचबाक धुनि में ने कतहु चाह-पानि आ ने दम मारबक फ़ुरसति. एडवांस पार्टी रैली एवं मेडिकल कैंपक व्यवस्था केने अछि . सैनिक लोकनिक अपना स्टालपर मुस्तैद छथि . आर्मी यूनिटक गेट पर लागल हरियर फीता कटलैक आ भ गेल उद्घाटन.
किन्तु , ओहि सं पहिने तुर्तुक गामक परिचय . तुर्तुक गाम सयोक उपत्यकामें बाल्टिस्तानी मूलक मुसलमान लोकनिक गाम थिक. भारतक विभाजनसं पूर्व ई गांओ सम्पूर्ण भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेशक भूमि-जकां भारतेमें छल. विभाजनमें ई गांओ पाकिस्तान में पडि गेल. अस्तु, एतुका कतेक नागरिक  पाकिस्तानी प्रशासनक अमलमें पाकिस्तान सरकारक सेवा कयलनि .किन्तु , भूमिपर मनुष्य द्वारा खींचल डांरि पर पृथ्वी हंसैछ. वस्तुतः,प्रकृति वा मनुष्य द्वारा पृथ्वीपर पाडल कोनो सीमा नियमिकी नहिं . विश्वकेर अनेक भाग में राष्ट्र सबहक निरंतर बदलैत सीमा एखनहु देखिये रहल छी. तहिना 1971क भारत –पाक युद्धमें भारतीय सेना पाकिस्तान सेनाके तुर्तुक सं खेहारि सयोकक पछ्बरिया पार पहुंचा आयल. तहियासं पाकिस्तानी सेनाक अनेक उपद्रवक वावजूद तुर्तुक भारतक अंग अछि . स्पष्ट छैक , एहन परिस्थितिमें सामान्य नागरिकक मनमें शंका उठब उचिते छैक. एतुका बहुतो नागरिकक सर-सम्बन्धी एखनहु पाकिस्तान में छनि , आ ओलोकनि पाकिस्तानी सरकारक दमन-उत्पीड़न सहैत छथि. तथापि एतुका लोक पाकिस्तानी ख़ुफ़िया संस्था आई एस आइ क प्रभाव में नहिं आयल अछि , से एतुका लोकक विवेक, आ भारत सरकार व्यवस्थाक सफलताक  प्रतीक थिक. तुर्तुकक लोकक दुविधाक विषय पर हमर कथा ‘ अब्बास अली बताह छथि ‘( जखन तखन , वर्ष ) में चर्चा भेल अछि. वययोवृद्ध साहित्यकर पंडित गोविन्द झा एहि कथाकें पढ़ि कहने रहथि, 'हम एहन अओर कोनो कथा नहिं पढ़ने छी . नीक लागल'.  
आइ हमरा लोकनि दिनभरि रोगिक जांच कयल. हमर पहिलुक रोगी बालक रहमत अली हमरा देखि खूब प्रसन्न भेल. मोतियाविंदुक ऑपरेशनक बाद ओकर आंखि आब नीक जकां सुझैत छैक. ओ आब ओहिना स्कूल जाइछ जेना आंखिमें सीबकथोर्न कांट गडबा सं पहिने जाइत छल.
ओकर पिता हमराले एक शीशी खुबानीक तेल अनने छथि. ग्लौकोमा अमीना बेगमक दुनू आंखिकें निपट्ट क देने छनि , तथापि हमर चकित्सासं आब आंखिमें पीड़ा नहिं छनि.
. तें, ओहो प्रसन्न छथि . डाक्टरी सलाह समाप्त भेलापर अमीना बेगम, लजाइत अपन खोंइछसं प्लास्टिकक एक टा पैकेट निकालैत छथि .पैकेटमें एक आंजुर सुखायल खुबानी छैक. हम ककरोसं हठे उपहार स्वीकार नहिं करैत छियैक . किन्तु, एहन शुष्क प्रदेश आ आवेशक एहन आर्द्रता ! हम एहि उपहारकें कोना अस्वीकार करिऐक ! शहरी छल-छद्मसं अपरिचित एहि सुदूर सीमान्त प्रान्तक परिचिताक मन कोना दुखा सकैत छियैक.
एहि दुनू रोगी आलावा आन कतेक नव-पुरान रोगी हमरा लग, आ हमर आन सहकर्मी लग आयल अछि.  ओना तं बुझू एखन भरि गाओं उनटि कय  कैंप में आयल अछि . ई एहन दूरस्थ गांओ ले स्वाभाविके. अस्तु, जतय जे सुविधा छैक, लोक लाभ उठौलक. आब  दिनान्त भ रहल छैक स्टाफ सब वस्तु-जात बान्हि गाड़ी में रखलनि . हमरा लोकनि वापस जा रहल छी . गामक बाहर दाहिना दिस वीर शहीद लान्स नायक खड़ग सिंह , आ शहीद कप्तान हनिफुद्दीनक स्मारकक ओहिना तैनात अछि सेना सैनिक अपन चौकी पर मुस्तैद रहैछ. बाटक कातमें गाछक डारि आ फूल सबहक गुच्छासब संझुका वायुमें डोलि  रहल अछि .मने कहैत हो :
मुझे तोड़ लेना बनमाली उस पथपर देना तुम फेक ,
मातृभूमि पर शीश चढ़ानेवाले , जिसपथ जावें वीर अनेक
सरिपहुं इएह तं थिकैक ओ पथ 'जिस पथ जावें वीर अनेक’ !

Tuesday, December 12, 2017

'जिस पथ जावें वीर अनेक' -1




नुब्रा : डिस्किट, आ हुन्डर गांओ
युद्ध कें अनेक रूपें परिभाषित क सकैत छी; अधिकार प्राप्त करबाक अभियान; असत्य कें पराजित कय सत्यकें स्थापित करबाक द्वन्द ; मानवाधिकार आ लोकतन्त्रक स्थापनाक आग्रह. किन्तु, युद्ध थिकैक वर्चस्वक हेतु प्रतिद्वंदिता. एहि सब में राष्ट्र आ देशक मुखिया जितैत छथि किन्तु, सब ठाम कोनो-ने-कोनो रूपें मनुष्य हारैत अछि. हमर अगिला यात्रा डिस्किट, हुन्डर, परतापुर ,थोइस, आ तुर्तुक गांओ धरिक अछि. तुर्तुक इलाका में युद्ध बेर-बेर अंतर्राष्ट्रीय सीमाकें घुसकबैत रहलैए. अंतरराष्ट्रीय सीमा क एहि परिवर्तन सं स्थानीय नागरिक कोना प्रभावित होइछ, से देखियैक. किन्तु, से कनेक पछाति. हमरा लोकनि लेह सं (खर्दुंग-ला होइत) खलसर आयल रही. आ खलसर सं सियाचिन बेस कैंप
सयोक नदी खलसर सं पहिने

डिस्किट बौद्ध विहार
रौद खसि चुकल छैक आ थोड़बे काल में सूर्य पहाड़क पाछू चल जेताह ज्ञातव्य थिक पहाड़ी भूमि में सबठाम इजोत अन्हार सूर्योदय आ सूर्यास्तक संग नहिं होइछ .शिमला जकां पहाड़क शिखरपर बसल बस्ती में रुख-सुख समयमें सूर्योदयसं सूर्यास्त धरि रौद रहैत छैक .ओतय उगैत  सूर्यक लालिमा आ डूबैत सूर्यक गोला दुनू देखबैक. किन्तु, संकीर्ण उपत्यका में कतेक ठाम सूर्य माथपर अओताह तखने देखबनि आ सूर्य जहां कि पश्चिमक पहाड़क पाछू गेलाह कि बुझू दिनान्त भ गेल . लद्दाख़-सन शीत प्रदेशमें अबैत जाइत सूर्यक संग तापमान में गंभीर परिवर्तन होइछ .लद्दाख़क किछु इलाकाक सम्बन्धमें कहबी छैक , 'जं एहन ठाम बैसी जे चेहरा पर रौद पड़ैत हो आ पैर छायामें हो, तं, चेहरा (तेज परवैगनी किरणक कारण) झरकि जायत आ भ सकैत अछि पयरमें फ्रॉस्ट-बाइट (frost-bite) भ जाय ! एखन हमरा लोकनि हुन्डर स्थित  फील्ड एम्बुलेंस जायब. ओत्तहि रात्रि-विश्राम हेतैक. मुदा, हुन्डर सं पहिने डिस्किट अओतैक. डिस्किट नुब्राक मुख्यालय आ स्थानीय बाज़ार थिकैक. ई गाम एतुका विशाल बहुमंजिली (डिस्किट) बौद्ध विहार ले प्रसिद्द अछि.
दू टा कूबड़बाला ऊँट (double-humped Bactrian camel)
दू कूबड़बाला ऊँट ओहि विगत युगक प्रतिनिधि थिक जहिया लेह आ काशगारक व्यापारी लोकनिक कारवां अपन माल-असबाबक संग  दुनू दिस अबैत जाइत छलाह  आ भारत –तिब्बतक बीच वाणिज्य-व्यापार करैत छलाह . जलवायु विषम छलैक . बाट-घाट-नदी-दर्रा भयानक . मौसम अचानक कखन बदलि जेतैक, तकर ठेकान नहिं .तथापि मनुष्यक जिजीविषा स्वतः सब भय पर विजय क लैछ. भारतक स्वतंत्रताक समयसं ई बाट बंद अछि .आब एहि बाट परक साविकक trans karakoram व्यापार इतिहासक पन्ना में दबि चुकल अछि . तथापि, एहि ऐतिहासिक व्यापारक भग्नावशेष double-humped Bactrian camel आ दुनू दिसक लोकक बीचक  औपचारिक वा अनौपचारिक रक्त सम्बन्धकें मिटयबामें आओर बहुत समय लगतैक.  अन्यथा, मंगोल लुटेरा चंगेज खान केर अनुवांशिक पद-चिन्ह ( Genes ) एखन धरि विश्वसं विलुप्त भ गेल रहैत !              डिस्किट सं पश्चिम दक्षिण में हुन्डर गाँव अबैत छैक.  डिस्किट आ हुन्डरक बीच कनेक काल सडकपर पश्चिम मुंहे  ठाढ़ होउ .सोझ मुहें हिमाच्छादित पर्वत माला देखबैक .पहाड़क एकदम नीचा भूमिपर सयोक नदी , कखनो मंथर, कखनो घोर-मट्ठा आ, तीब्र आ तमसायल .
सयोकक तटपर सैंड ड्यून
सडक आ नदीक बीच लद्दाखी कटैया झाड़ –सीबकथोर्न-लेह बेरी- क जंगलक अवलोकन करू. सीबकथोर्न वा लेह बेरी लद्दाख़ आ नुब्राक विशेषता थिक. लेह बेरीक मटरक दानाक आकारक , नारंगी रंगक खटमधुर फल अनेक पौष्टिक तत्व- जेना,विटामिन सी , विटामिन ई , आ एंटी-ऑक्सीडेंट तत्वक-खान मानल जाइछ. एहि बेरीमें गुद्दा तं कम आ आंठीक भाग  बेसी होइत छैक . गाछक डारिपर  सक्कतसं गंथल फल ने अपने खसैत छैक आ ने भूमिपर पटकि एकरा डारिसं झाड़बे सुलभ . रक्षा अनुसन्धान विभागक लेह स्थित फील्ड रिसर्च लेबोरेटरी (FRL)  लेह बेरी पर अनेक अनुसन्धान केने अछि .फलतः , डाबर कम्पनी सीबकथोर्नक जूस कें लेह बेरीक जूसक नामसं बाजारमें बेचैछ . लेह बेरीक मसुरिक  आकारक कारी-हरियर बीआकें परिशोधित कय तेल बहार कयल जाइछ , जकर प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधनक अनेक प्रोडक्ट सबमें होइछ .
सीबकथोर्न( लेह बेरी ) क जंगल 
ततबे नहिं , लेह बेरीक कंटइया डारिसबकें माल-जाल सं सुरक्षा क हेतु लोक खेतक आरि आ परिसरक परिधि पर सेहो रखैत अछि . लेह बेरीक कंटइया डारिसब जारनि में सेहो खूब नीक जकां जरैछ. किन्तु , एकरा चुल्हामें जरायब सुलभ नहिं . लद्दाख़में जाड़ तं जानलेबा होइछ. किन्तु, एतय घूड़-धुआंक परिपाटी नहिं छैक .
लेह बेरी लग सं : कांट आ गुणकारी फल
कारण दू : एक, घास-पात आ जारनि -काठीक अभाव ; दोसर ,एतुका शीत लहर, आ तेज बिहाडि-सन बसातमें घरक बाहर बैसब असंभव . सत्यतः, एतुका बसात ततबे कन-कन होइछ जे पारम्परिक घर सब में खिड़की-जंगला अभावृत्तिए देखबैक. जे किछु. आब पुनः , पश्चिम मुंहक परिदृश्य पर दृष्टिपात करी .   राजस्थानक मरुभूमि-जकां बालुक छोट-पैघ असंख्य टीला (sand -dunes) देखबैक. भारतक समतल भूमि में सैंड-ड्यून देखबाक हो तं जैसलमेर सं करीब चालीस किलोमीटर दूर साम गांओ जाउ, ऊंट पर चढ़ू आ ओहि इलाकाक जनजातिक मुहें ' पल्लो लटके , म्हारो पल्लो लटके .., क गीत सुनू. सामक  सैंड-ड्यून (बालुक ढेर) अपन निरंतर बदलैत स्वरुप ले प्रसिद्द अछि . 1986-87में भारतीय सेनाक प्रसिद्द युद्ध अभ्यास 'ऑपरेशन ब्रास-टैक्सक' अवधि में हम छः  मास धरि  राजस्थान में बौआइत रही. ओहि अवधिमें हम फौज़ी तामझामक संग राजस्थानक टूरिस्ट आकर्षण shifting सैंड-ड्यूनक इलाका गेल रही. किन्तु, ओकर गप्प फेर कहियो  दोसर बैसाड में . आब हमरा लोकनि हुन्डर स्थित  फील्ड एम्बुलेंस लग आबि चुकल छी .एहि युद्ध कालीन प्रतिष्ठानक हॉस्पिटल सियाचिनमें तैनात सैनिक लोकनिक हेतु निकटस्थ अस्पताल छी . हमरा लोकनिक लेहक मिलिटरी जनरल हॉस्पिटल एहि अस्पतालक रेफरल सेंटर थिक . काल्हि इएह फील्ड एम्बुलेंस भारतीय सेनाक ऑपरेशन सद्भावनाक तहत तुर्तुकमें मेडिकल कैंप आ सद्भावना रैलीक संचालन करत . आइ राति हमरा लोकनि फील्ड अम्बुलेन्सक ऑफिसर मेस में रात्रि विश्राम करब फील्ड एम्बुलेंसकेर कमान अधिकारी ले.कर्नल इन्दरजीत हजारी गयाक निवासी थिकाह.एतय  सामान्य शिष्टाचार , मित्रभाव आ आतिथ्यमें कोनो कमी नहिं. आइ लम्बा यात्रा भेलैये आब कल्याण करोट होइ.
लेखक (बामा ), पृष्ठभूमि में , बालुक ढेर,शयोक नदी आ हिमाच्छ्दित पर्वत 

Monday, December 11, 2017

पुस्तक समीक्षा: प्रसंगवश

प्रसंगवश
आइ एकटा सद्यः प्रकाशित पोथीक चर्चा. पोथीक नाम सेहो थिकैक 'प्रसंगवश'. लेखक थिकाह,न्यायविद् रबीन्द्र नारायण मिश्र. लेखक हमरा पोथीक pdf version पठौलनि. आ 118 पृष्ठ क एहि पुस्तककें घंटाक भीतरे पढ़ि गेलहुं.
विगत पचास वर्षमें संख्या दृष्टिऐं मैथिली पुस्तकक प्रकाशन में अभूतपूर्व वृद्धि भेलैए. किन्तु ,जं मैथिली लेखन कें विधाक समग्रताक दृष्टिऐं देखिऐक तं स्थिति ओतेक संतोषप्रद नहिं छैक. जतय कथा-कविता संख्या सबसं अधिक अछि, ततहि वैज्ञानिक, प्राविधिक, चिकित्सा संबंधी, अार्थिक-राजनैतिक, न्यायिक,समसामयिक विषयक परिचर्चा, संस्मरण, आ यात्रा-वृतांतक लेखन एखनहुं न्यून अछि. रबीन्द्र नारायण मिश्र क 'प्रसंगवश' एहि कमीकें पूर्ण करबाक दिशा में एकटा नीक प्रयास थिक. लेखक शब्द में ई पुस्तक 'ज्वलंत सामाजिक समस्या पर लेख सबहक संकलन' थिक. पुस्तकक भाषा सरल आ  शैली रोचक छैक. उपादेयताक दृष्टिऐं न्याय विषयक लेख सब- वरिष्ठ नागरिक, इच्छा-पत्र ( Legal Will),हिन्दू महिलाक सम्पत्ति में अधिकार, कानूनी आतंकवाद - एहि पुस्तकक विशेषता थिक. बदलैत सामाजिक परिदृश्य में समाजकें जागरूकता आ जानकारी दुनू चाहिऐक. ताहि दृष्टिऐं उपरोक्त लेख सब उपयोगी छैक. अनुमान करैत छी, भविष्य में लेखक आनो लोकोपयोगी कानूनी विंदु पर विचार प्रकाशित करताह.एखनुक युगमें, टाकाक घटैत मोल सर्व विदिते अछि. अतएव,150 टाकाक मूल्य बेसी नहिं. सुनैत छी, आब मैथिली पोथी बिकाइतो छैक ! अतएव, एहि सामान्य रुचिक लोकोपयोगी पुस्तकक  स्वागत हेबाक चाही.

प्रकाशक: भोरहरबा प्रकाशन
House No : C 42, NSG SAS Ltd, Black Cat Enclave
Pocket No : 6 Builders Area Greater Noida
District : Gautam Buddha Nagar
UP : 201310
Phone No : 0120 2343563
मूल्य:150 रुपये.


Wednesday, December 6, 2017

सियाचिन बेस कैम्प

 नुब्रा
वीकिपिडिया के मानी तं नुब्रा भेल एहन उपत्यका जाहि में सबतरि फूले-फूल हो. तथापि  उत्तराखंडक  वैली औफ फ्लॉवर वा कश्मीर-जकां नुब्रा में बाट चलैत वनफूलकेर  जंगल वा ट्युलिपकेर बगीचा नहिं देखबैक. ने सेब, संतोला, बादाम केर बगीचा भेटत. लद्दाखमें हरियरी, फूल, आ आबादी सबकें लद्दाखक शीत मरुभूमिक परिप्रेक्ष्य में देखियौक. एतय जाड मासमें दूबि धरि सुखा कय पोआर-सन पियर भ जाइछ. ओहि दृष्टिऐं ठाम-ठाम चांगथांग (पूर्वी पठार) क बनिस्बत नुब्रामें हरियरी बेसी भेटत. ओना हरियरी आ पानिक श्रोतक संबंध एतहु ओहने छैक देना अंतय होइत छैक.
एतय पानि बेसी छैक, सयोक आ नुब्रा नदी क कारण. किन्तु, एतेक बालु आ sand dunes कतय से अयलैक से कम भूगर्भ शास्त्रीए कहताह. मुदा, एखन सयोक नदी लग आबि गेले ओकरे गप्प करी.
नदीक रूप मे सयोकक धार अद्भुत अछि. सयोकक उद्गम होइछ रिमो ग्लेशियरसं. ई ग्लेशियर सियाचिन ग्लेशियरेक उतरबरिया आंगुर जकां अछि. नुब्राक उद्गम सेहो छैक सियाचिनेसं. माने अगले-बगल. किन्तु , पूब-दक्षिण दिशा में बहैत दुनू नदीक बीच एकटा पर्वत श्रृखला अभेद्य देबाल बनि बहुत दूर धरि दुनू नदी कें दू कात केने रहैछ. एहि बीच निर्बाध नुब्रा नदी पश्चिम मुंहक बाट धरैए आ सयोक नदीकें  पूबक अलावा कोनो बाटें  नहिं.  फलतः सयोक पूब मुंहे बहुत दूर धरि चल जाइछ. अंततः पूब में जखन नदी क आगां   दोसर पहाड़क सयोकक बाट घेडि लैछ, तखन नदी हारि कय, दिशा बदलि,   नुब्रा नदी क दिशामें पश्चिम-दक्षिण दिस घूमि जाइछ . फलतः  खलसर नामक स्थान पर दुनू नदी - नुब्रा आ सयोक- क मिलान होइछ. एतय सं दुनू बहिना एक संग भ'  पश्चिम- दक्षिण दिशा में बहैत पाकिस्तान में जा कय  सिंधु में अपन जल विसर्जित करैछ. एक दोसरासं मिलबासं पूर्व सयोक नदीक एही लंबा यात्राक कारण  एकरा मारुख नदीक ( river of death ) कहल जाइछ.
मोन हयत खरदुंग-ला पार कय हमरा लोकनि खरदुंग गांओ होइत खलसर आयल रही. खलसर गांओसं सयोक  नदीकें पार करैत एकटा सड़क सियाचिन बेस कैम्प दिस, उत्तर पश्चिम मुंहे जाइछ. दोसर सड़क नदीक दक्षिणे सं, पश्चिम-दक्षिण दिशा में नुब्राक मुख्यालय  डिस्किट आ हुंडर-परतापुर होइत भारतक सीमांत गांओ तुर्तुक  धरि जाइछ. ई सड़क सयोक नदीक बामा कछेर धेने चलैछ. एतय ई स्पष्ट करब आवश्यक जे, दुनू नदी क मिललाक पछाति नुब्रा उपत्यकाक ई विशाल नदी सयोकेक नाम से जानल जाइछ.
हमरा लोकनि बेरा-बेरी खलसर सं फुटैत दुनू सडकपर यात्रा करब आ दुनू दिशा में जायब. मुदा, पहिने सियाचिने बेस कैम्प सं भ' आबी. सांझ धरि ओतयसं आपस भ हुंडर केर फील्ड एम्बुलेंस में रात्रि विश्राम हेतैक. पछाति तुर्तुक में सद्भावना रैली, मेडिकल कैम्प आ नागरिक लोकनिक आंखिक रोगक जांच  हेतैक.
खलसर सं सियाचिन बेस कैम्पक रास्ता लगभग समतल भूमि में छैक जे क्रमशः नुब्रा क उद्गम- सियाचिन- दिस जाइछ. आबादी बहुत थोड आ इलाका जनशून्य. पक्की सड़क केर अलावा दुनू कातक भूमि रोडा पाथरसं भरल. पघिलैत बर्फ आ नदीक बहाव क संग, नदीक बाट में जे किछु अबैछ नदी क संग बहैत अछि, आ नहिं जानि कतय धरि पहुंचि जाइछ. बहावक एहि प्रक्रिया में पैघ-पैघ नदी आ भूमि पाथरक आकारकें तेना तरासैत चल जाइछ जे कोनो पाथर शिवलिंगक रूप ल लैछ आ कोनो शालिग्रामक, आ किछु पाथरक पाथरे रहि जाइछ. आ वएह  पाथर-पिण्ड होइछ अंततः मनुक्ख आस्थाक प्रतीक. ओना मनुष्य सेहो नदीक वहावक  आओर अनेक प्रयोग करैत आयल अछि. कहल जाइछ, ब्रह्मपुत्र-सन लंबा नदी (जे पश्चिमी तिब्बतसं आरंभ भ' अरुणाचल क पहाड़क उपरसं होइत भारत में खसैछ) केर उद्गमसं ल कय समतल भूमि धरि ओकर बाटकें प्रमाणित करबाले तहियाक खोजी विद्वान लोकनि तिब्बतक  सांङपो नदीक धार में लकड़ी क पैघ-पैघ खंड खसबैत रहथि आ ओकरा सभ कें ब्रह्मपुत्र में तकैत रहथि. इएह प्रयोग सिद्ध कएलक जे तिब्बतक साङपो आ भारतक ब्रह्मपुत्र एके थिक. यातायात ले  नदी क प्रयोगतं आदि काल से चलिए रहल अछि. खलसर सं सियाचिन क बाटक बामा कात किछु दूर हंटि कय नुब्रा नदी हमरा लोकनिक यात्राक विपरीत दिशा ( पूब-दक्षिण) दिस बहैछ. नुब्रा उपत्यकाक एहि भागमें आबादी बौद्ध लोकनि छथि. तें गामे-गाम गोम्पा भेटत, यद्यपि लद्दाख क एहि भाग केवल चाहिए पांच टा गाम भेटत. पानामिक गाओंक गरम पानिक झरना स्थानीय लोक सबहक हेतु विशेष आकर्षण थिक.  पहाड़ी इलाका में गरम पानिक झरना कोनो अजनबी नहिं. हिमाचलक तत्तापानी- मनिकरन साहेब,  उत्तराखंड में बदरिकाश्रम, लद्दाखे में पुगा इलाका में गरम पानिक अनेक झरना देखबैक. तथापि, लद्दाख-सन शीत मरुभूमि में गरम पानिक श्रोत तं सबदुःख हरणी कोना ने मानल जाउक. गरम पानिक एहि प्राकृक्तिक संपदाक उपयोग बिजली उत्पादन आ घर कें गरम रखबा ले ( space-heating) ले सेहो कयल जा सकैछ. लद्दाख में एहि संभावना क तलाशमें एकबेर आइ. आइ. टी. बंबईक वैज्ञानिक लोकनि हमरा रहैत लेह आयल रहथि आ हमरे लोकनिक मेस में डेरा खसौने रहथि. जे किछु. पानामिकक एहि छोट-सन झरना में स्नान आ जलपान सं रोगमुक्तिक अभिलाषासं श्रद्धालु लोकनि नहाइत छथि, पानि पीबैत छथि. पानामिकक बाद ससोमा गांओ अबैछ. एतय सेनाक अनेक प्रतिष्ठान सब आ चेक-पोस्ट छैक, कारण, एहि सीमांत इलाका में सड़क निर्माण, रख-रखाव, आ सुरक्षा, सब केर दायित्व सेनाएक छैक. ससोमा सं आगू, वारसी, एहि सड़क पर अंतिम गांओ थिक. एतय गांओक अर्थ गोड पांचेक घर. वारसीक आगू, सियाचिन बेस कैम्पक लग इलाका चौड़ा भ जाइछ छैक. सड़क केर आगू सीधा ग्लेशियरक बज्र मटमैल जमल बर्फ, चौड़ा-चौड़ा दराडि, फाटल भूमि देखबैक. ओना भूमि तं ई थिकैक नहिं. ई थिक जमल, किन्तु , निरंतर बहैत नदी.
नुब्रा नदीक मुहाना
एहि गलेशियरसं निसृत नुब्रा नदी बामा दिस द'  कय  बहैछ. तें, सेनाक बेस कैम्प धरि जेबा ले नदीपर सेनाक इंजीनियरिंग कोर केर बनाओल एकटा सस्पेन्सन ब्रिज वा झूला पुल छैक.
झूला पुल
पुलक दोसर पार सेना यूनिटक मेडिकल इन्सपेक्सन रूम (MI Room ), कैन्टीन, ट्रेनिंग एरिया आ सर्वधर्म पूजा स्थल- ओ पी बाबा क मंदिर - छैक.
सियाचिनक बेस कैंपक मेडिकल ऑफिसरक( बामा सं दोसर )संग लेखक ( बामा सं चारिम)
आइ जखन देश में धर्म-संप्रदायक वाद्- विवाद जोर पकड़ने अछि आ नव देशभक्त लोकनि राष्ट्रीयताक लेबुल लगौने हर गली कूचा में बरसाती बेंग जकां बौआइत फिरैत छथि तखन एतय ओ पी बाबा क मंदिर क चर्चा सर्वथा वांछित बूझि पडैछ.
के थिकाह ओ पी बाबा आ की थिक ई सार्वजनिक पूजा स्थल ? सारांश में ओ पी बाबा थिकाह सियाचिन में शहीद एकटा सैनिक जे सियाचिन अभियानक आरंभ में कोनो ओ. पी. आउट पोस्ट (OP) पर
घटनाक दिन एसगरे तैनात रहथि. सर्वविदित अछि सियाचिन इलाका में सेना सबसं पैघ शत्रु प्रतिकूल जलवायु थिक, जकर कारण एतय सैकड़ों सैनिक अपन प्राणक आहूति द चुकल छथि. अस्तु, ओ पी बाबा सेहो अपन आउट पोस्ट से एक दिन तेना विलुप्त भेलाह जे ओकर बाद हिनका केओ घूरि कय नहिं देखलकनि. आब, निरंतर होइत भूस्खलन वा ग्लेशियरक  दराडि हिनका गीडि गेल वा ई शत्रुक  गोलाबारी क शिकार भ गेलाह, केओ विश्वास पूर्वक नहिं कहि सकैछ. किन्तु, सियाचिनक सैनिक लोकनिक धारणा छनि जे ओ पी बाबा  सैनिक लोकनि कें आसन्न खतराक पूर्वाभास दैत छथिन आ अनुशासन भंग केनिहार सैनिक कें दण्डित सेहो करैत छथिन.
अतः सियाचिन में पदस्थापित सैनिक ग्लेशियर क ड्यूटीक अवधि में खानपान आ व्यवहार क कड़ा अनुशासन पालन करैत अपन टेन्योर पूरा कय सकुशल अपन यूनिट वापस जाइत छथि. ओना सियाचिन अयनिहार सब सैनिकक मनमें शंका रहिते छैक. 1984 क अवधि में , जखन सियाचिन अभियान आरंभ भेल रहैक, हमर एकटा मित्र अपन सियाचिन टेन्योर समाप्तिक पछाति कहने छलाह, ड्यूटी तं सैनिक ले सर्वोपरि छैक. किन्तु, ओकर अतिरिक्त जं सियाचिन में पदस्थापित सैनिक मन में कोनो आओर भाव अबैछ तं ओ थिक, सियाचिन सं सकुशल वापस हेबाक अनिश्चितता ! ओ पी बाबा सैनिक सबहक मन से एही दुश्चिन्ता के भगयबामें सहायक होइत छथिन. सियाचिनक सर्वधर्म पूजा स्थलमें ओ पी बाबाक संग दुर्गा, ईसा मसीह क संग काबा क फोटो से हो भेटत. पहिल बेर भारतीय सेनाक सर्वधर्म पूजा स्थल देखनिहार ले ई आश्चर्यनक भ सकैछ, किन्तु, सैनिक ले नहिं. कारण,सर्वधर्म समभाव आ सैनिक  व्यक्तिगत धार्मिक आस्था क आदर सैनिक अनुशासनक परम्परा थिकैक.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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