Wednesday, December 20, 2023

मैथिली पत्र-पत्रिकाकें गाम-गाम धरि लए जाएब आवश्यक अछि

 

मैथिली पत्र-पत्रिकाकें गाम-गाम धरि लए जाएब आवश्यक अछि

मैथिलमे मैथिली प्रेमक अभाव नहि। मुदा, जीवनक यथार्थक कारण लोक मैथिलीके आत्मसात नहि कए पबैत अछि। से जँ नहि रहितैक तँ ओ लोकनि जे मैथिलीसँ अपन जीविका चलबैत छथि, अपन नेनाकेँ मैथिली किएक नहि पढ़बितथिन, मैथिली पर प्रहार भेने विरोध किएक नहि प्रकट करितथि। दोसर दिस, जँ संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षामे मैथिलीक माध्यमसँ सफलताक संभावना बेसी नहि होइतैक तँ इतिहास, राजनीति शास्त्रक छात्र  विज्ञानक छात्र संघ लोक सेवा आयोगक परीक्षामे वैकल्पिक विषयक रूपमे मैथिली किएक चुनितथि ?

तथापि ई तँ देखिते छियैक जे मैथिलीक पत्र-पत्रिकाक गहाकि (ग्राहक) नहि। किछु मैथिली प्रेमी जीतोड़ परिश्रमसँ मैथिली दैनिक छपैत छथि। मुदा, पढ़निहार नहि भेटैत छनि। एकर कारण पर मंथन होइते रहैत अछि। मुदा, एहि लेखमे ओकर निवारणक चर्चा करय चाहैत छी। यद्यपि, एहि विषय पर हम पहिनहुँ लिखने छी

एहिमे कोनो संदेह नहि जे भाषाक रूपमे मैथिली अपन प्रासंगिकताक अवसर पहिल बेर तखनहि चूकि गेल जखन राज दरभंगा अपन राज-काजमे हिन्दी भाषाके चुनलक। दोसर बेर, मगही आ भोजपुरीक संग  मैथिली अपन प्रासंगिकता स्थापित करबामे तहिए चूकि गेल जहिया बिहार एवं ओड़िसा राज्यक विघटनक बाद ओड़िसाक स्थापना तँ भाषाक आधार पर भेलैक किन्तु, बिहारक स्थापनाक संग संपूर्ण बिहारक भाषा हिन्दी भए गेल। पछाति भोट-बैंकक लोभें मैथिलीभाषी मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रक कांग्रेस सरकार उर्दूकें बिहारक दोसर भाषा कए देलक। ई सब पुरान बात दोहराएब भेल. तें एहि इतिहासकें समाधानसँ कोनो मतलब नहि।

हाल-सालमे जतेक बेर मातृभाषाक माध्यमसँ प्राथमिक शिक्षाक निर्णय भेल सरकार कान-बात नहि देलकैक। किन्तु, किएक ? उत्तर सोझ छैक। हमरा लोकनि पहिने बिहारी, हिन्दू-मुस्लिम, ब्राह्मण, राजपुर, भूमिहार, कायस्थ, दलित, पिछड़ा, इत्यादि-इत्यादि छी। मैथिल-जकाँ हमरालोकनिक परिचय सबसँ पाछू अबैछ वा नहिओ अबैछ। मैथिली भाषी छी से तँ आओर सुदूर भेल। कारण, बहुत दिन धरि मैथिल शब्द मिथिला रहनिहार प्रत्येक नागरिकक पर्याय नहि छल। एखनो जखन आब ई परिभाषा सर्वमान्य होबय लागल अछि तैओ मैथिली पढ़बाक-लिखबाक लाभ सबकें एक रूपें उपलब्ध नहि छैक । एहि विषयकें आओर खोंइचा छोड़यबाक काज नहि, तथापि इहो मैथिल समाजक अनेक वर्गमे अशंतोषक कारण नहि थिक, से मानब सत्यसँ आँखि चोराएब होएत। अस्तु, आब केवल मैथिली पाठकक विषय पर आबी।

मिथिलांचलमे एखनो मैथिली प्राथमिक शिक्षाक माध्यम नहि थिक। तें, मैथिली लेखक छोड़ि मैथिली पढ़बामे दक्ष लोकक संख्या कतेक अछि तक्र अनुमान करब कठिन। मुदा, जँ मैथिली प्राथमिक शिक्षाक माध्यम भइओ जायत तँ ओकर गति देखबाक हेतु दक्षिण भारतक दिस देखने सत्य सोझाँ आबि जायत। दक्षिणहुमे हाई स्कूल धरि स्थानीय भाषा पढ़ब अनिवार्य छैक. किन्तु,ओतहु स्थानीय भाषामे ओएह छात्र पढ़ैत छथि जनिक अभिभावककें अपन सन्तानकें अंग्रेजी माध्यमक प्राइवेट स्कूलमे पढ़ेबाक उपाय नहि छनि। बिहारहुमे परिस्थिति एहिसँ भिन्न नहि। तें, जँ मिथिलांचल क्षेत्रमे मैथिलीक माध्यमसँ पढ़ाई आरंभ भइओ गेल तँ कतेक छात्र हिन्दी छोड़ि, मैथिलीक माध्यमसँ पढ़बाक विकल्प चुनताह, से कहब कठिन। उपरसँ आब मैथिली अंगिका, बज्जिका, सूरजपुरिया, पुबरिया आ पचपनियांमे विभक्त भए रहल अछि। एहि मुहिमकें सरकारी प्रोत्साहन भेटैत छैक. तें एहि प्रयासकें राजनैतिक समर्थन भेटब कठिन नहि। मुदा, एखन मैथिलीक माध्यमसँ प्राथमिक शिक्षाक विषयकें एतहि छोड़ि दी। आ पुनः मैथिली दैनिकक हेतु पढ़निहार कोना जुटाबी ताहि विषय पर घूरि आबी। आ ओहि विषयकें पुनः एहि स्थापनाक संग आरंभ करी जे ‘मैथिली अनपढ़ मैथिली भाषीक बलें जीवित अछि’।

जँ अपने क्षण भरि ले हमर उपरोक्त परिकल्पनाकें मानि ली तँ समाचारपत्रक पाठक बढ़यबाक हेतु निम्नलिखित प्रयास काज करय पड़त:

१.     किछु दिन पाठककें समाचारपत्रक मुद्रित प्रति मुफ्त उपलब्ध होइक। ई अनेक कारणसँ असंभव छैक। कारण, एकर ले अर्थ के जुटाओत? गाम-घरमे पुस्तकालय-वाचनालय तँ छैक नहि जे पहिने जकाँ लोक ओतय पढ़त। हमरो लोकनि आब समाचारपत्र मोबाइल आ टेबलेटहि पर पढ़ैत छी। अस्तु, ई-समाचारपत्र आ मोबाइल एडिशन अधिकसँ अधिक पाठक धरि पहुँचय।

२.      मिथिलांचलक विद्यालय सबमे समाचारपत्रक प्रिंट एडिशन मुफ्त पहुँचैक। आ स्कूलक प्रातःकालीन असेंबली मे मैथिलीमे ५ मिनटकेर समाचार वाचनक अनुमति भेटैक। एहि हेतु प्रायः सरकारी सहमति चाहिऐक। कालक्रमे मोर्निंग-असेंबलीमे उकृष्ट प्रदर्शनक हेतु चुनल छात्र सबकें वर्षमे एकबेर सांकेतिक पारितोषिक भेटैक।

३.      की मैथिल एहि हेतु एक मत हेताह जे, जे व्यवसायी/ प्रकाशक मिथिलांचलमे हिन्दी-अंग्रेजी समाचारपत्र बेचैत छथि तनिका समाचारपत्रक मैथिली संस्करण छापब अनिवार्य हेतनि। की एहन आन्दोलन संभव अछि. मैथिली पत्रिकाकें जं सरकारी आ गैरसरकारी विज्ञापन भेतैक तं ई असंभव नहि. पाठक बढ़तैक तं विज्ञापनो बढ़तैक.

४.     विगत शताब्दीक मैथिली आंदोलनी लोकनि बिना साधन, यातायात छिन्न-भिन्न रहितो कोना मिथिला भरिमे विद्यापति पर्वक प्रचार केलनि, से ककरोसँ छिपल नहि। आइ लगभग मिथिलांचलक प्रत्येक गाओं सड़कसँ जुड़ल अछि। की ई संभव नहि जे युवक लेखक-कवि  आ आंदोलनी लोकनि  स्थानीय उत्साही ग्रामीण युवकलोकनिक सङोर करथि, गाम-गाम जाथि ओतय आ पाठककें अपन साहित्य सुनबथिन। हमरालोकनि धियापुताकें मैथिलीक कथा-कविता पढ़बाक हेतु उत्साहित करिऐक। जे साहित्य धियापुताकें रुचतैक ओ कालक्रमे ताकि कए पढ़ब आरंभ करत। प्रायः एहि प्रकारक अभियान अगिला पीढ़ीमे मैथिलीकें जीवित रखबाक हेतु बिआ बाग करब-जकाँ होएत।एहि अभियानकें जँ वयस्क शिक्षाक अभियान संग जोड़ल जाए तँ सद्यः साक्षर भेल पाठक मैथिलीक स्थायी पाठक प्रमाणित हेताह। ई अभियान गाम अतिरिक्त महानगर धरि जाए, से आवश्यक. जुनि बिसरी, ओ अनपढ़ जे मैथिली छोड़ि आन कोनो भाषा नहि बजैत छथि, मैथिली हुनके बलें  मैथिली जड़ि धेने अछि।


       

 

 

           

   

 

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो