Sunday, September 10, 2023

मैथिली लेखनक एकफेंड़ा गाछकें चारू दिस चतरब आवश्यक छैक

 

मैथिली लेखनक एकफेंड़ा गाछकें चारू दिस चतरब आवश्यक छैक

ऐतिहासिक युगमे जहिया अधिकतर लोक निरक्षर छल तहियो विभिन्न विधामे लेखन होइत छल. से नहि होइतैक तं संस्कृतहिमे गद्य, पद्य, महाकाव्यक अतिरिक्त आ ज्योतिष, चिकित्सा-विज्ञान (चरक आ सुश्रुत संहिता), कामसूत्र, योगसूत्र, नाट्यशास्त्र कोना लिखल जाइत.

मैथिलिओमे किछु गोटे लेखक विधामे विविधताक प्रयास अवश्य कयलनि. मुदा, अधिकतर लेखन कथा, कविता, नाटक मूलतः, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत अंशतः, आ आलोचना तथा आध्यात्म किछु-किछु, धरि सीमित रहि गेल. फल ई भेल जे एखन मैथिली लेखन चतरल बड़क गाछक विपरीत एकफेंड़ा  गाछ-जकाँ  सुरुंग भेल ऊपर मुँहे जा रहल अछि. तें आइ जं कोनो एहन व्यक्ति होथि जे मैथिलीए टा पढ़ैत होथि – ई कनेक असंभव अवश्य अछि- हुनका प्रौद्योगिकी, प्रशासन, आ चिकित्सा-विज्ञान तं दूर समसामयिक विषय, इतिहास, भूगोल, सामान्य विज्ञान, जलवायु धरिक कोनो प्रमाणिक लेखन मैथिली मे प्रायः नहि भेटतनि. एतय हम मैथिली लेखनमे विविधताक अभाव पर विचार करय चाहैत छी. यद्यपि एहि विषयपर करब बिढ़नीक छत्तामे हाथ देब थिक.

इन्टरनेटक एहि युगमे लिखब आ छपाएब कतेक सुलभ अछि, से कहबाक काज नहि. ऊपरसँ ChatGPT-सन ऑनलाइन कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence)क सहायतासँ जखन कथा-कविताक कोन कथा, न्यूज़ पेपर लेखसँ ल’ कए थीसिस आ पोथी धरि लिखल जा रहल अछि, तखनो मैथिली लेखनमे विविधताक अभाव ककरा नहि खटकटैक. अस्तु, संक्षेपमे एतय किछु संबंधित विन्दुकें रखैत छी, जाहिसँ  एहि विषयपर वाद-विवादकें बल भेटैक, समुचित समाधानक खोज हो, आ वांछित परिणाम आगाँ आबय.

मिथिलांचलमे मैथिली शिक्षाक माध्यम नहि थिक. ई लेखनमे विविधताक अभावक सबसँ बड़का कारण थिक. मैथिली शिक्षाक माध्यम नहि थिक तें एखनुक पीढ़ी जे केवल हिन्दी वा अंग्रेजीक माध्यमसँ पढ़ैत छथि ओ मैथिली पढ़बामे असमर्थ छथि. तें, इच्छा रहितो छात्र आ युवा लोकनि मैथिलीमे उपलब्ध साहित्य नहि पढ़ि पबैत छथि.

एक उदाहरणसँ हमर तर्क स्वतः स्पष्ट भए जायत. डाक्टर योगेन्द्र पाठक वियोगी सरल मैथिलीमे लोकोपयोगी, आ प्रमाणिक वैज्ञानिक लेख लिखबामे सुपरिचित छथि. हिनक लेख सब ‘विज्ञानक बतकही’ नामक पोथीक दू  खण्डमे प्रकाशित छनि. हमरा लग दुनू खण्ड उपहार स्वरुप आयल छल. हम गाम गेलहुँ तं हाई स्कूलक एक विद्यार्थीकें एहि पोथीक दुनू खण्ड दए आबि गेलहुँ. अगिला बेर जखन गाम गेलहुँ, तं पुछलियनि, ‘ बाऊ, पोथी कहन लागल ?’

हुनकर उत्तर हमरा आश्चर्यजनक नहि लागल. कहलनि, ‘बाबा हमरा लोकनिकें ओ पोथी पढ़ल नहि भेल !’

विद्यार्थीक गप्प सुनि हमरा डाक्टर वियोगी जीक ‘ बिनु जड़िक गाछ’ स्मरण भए आयल. एहि लेखमे वियोगीजी  विस्तारसँ मैथिलीक पढ़ब आ प्रसारपर विस्तारसँ विचार कयने छथि.       

इन्टरनेटक एहि युगमे सूचनाक प्रसार बिजुलीक गतिसँ होइछ. तें, जे भाषा सबसँ पहिने सूचना उपलब्ध करबैछ, ओ बाजि मारि लैछ, बाँकी लटैत-बुडैत पिछड़ि जाइछ. तथापि, अपन भाषामे विषय वस्तु पढ़निहार नहि भेटताह से नहि. सब तं भोरे-भोरे सब किछु इंटरनेट पर नहि पढ़ैत छथि.

दोसर विषय: सोशल मीडिया साहित्यक सहयोगी आ गरदनिकट्ट प्रतियोगी दुनू थिक. बहुतो व्यक्ति जे पहिने खाली समयमे पोथी पढ़ैत छलाह, आइ-काल्हि Whatsapp (व्हाट्सएप्प) यूनिवर्सिटीक बाढ़िमे भरि दिन भासि कए अबैत कूड़ा- कचरा पढ़बामे समय बिता दैत छथि. हम अपन एक मित्र, जे भारतीय सेनाक सेवानिवृत्त अफसर थिकाह, कें कहलियनि, ‘अहाँकें  पढ़बा लेले हम अपन लिखल किछु पठाबी ?’

  हमर वाक्य पूरा हेबासँ पहिनहि हाथ जोड़ि लेलनि: ‘ नहि, नहि. हम अनेको व्हाट्सएप्प ग्रुपक सदस्य छी. दिन भरि एतेक अग्रसारित ‘सामग्री’ अबैत अछि, जे ओएह सब पढ़बामे दिन बीति जाइछ !’

हमर मुँहक गप्प मुँहे रहि गेल.

तेसर गप्प: मैथिली भाषाक सबसँ प्रतिष्ठित पुरस्कार,साहित्य अकादेमी पुरस्कार, मोटा-मोटी सर्जनात्मक साहित्य धरि सीमित अछि. अंग्रेजीमे आत्मकथा, इतिहास, आलेख-संचयन, जीवनीक अतिरिक्त साहित्यिक समालोचना पर सेहो साहित्य अकादेमी पुरस्कार देल गेलैक अछि. मुदा, मैथिलीमे प्रायः से अपवादे हएत. अस्तु, प्रतिष्ठा(?) आ पुरस्कारक लोभ बहुतो लेखककें लेखनक विधाक ओहि संकीर्ण बाट दिस ठेलि दैत छनि जेम्हर पुरस्कारक  प्रबल संभावना छैक.

तथापि, एहिमें कोनो दू मत नहि जे भाषा-साहित्यक लेखन लेखककेर रुचि, आ पाठकक आवश्यकता आ मांग पर निर्भर छैक. उदाहरणक हेतु, हेबनिमे मेडिकल कालेजमे पढ़ाईक हेतु हिन्दीओकें माध्यमक रूप मे स्वीकृति भेटलैए. फलतः,अनेक राज्य सरकार मेडिकल कालेजमे हिन्दीमे पढ़ाई आरम्भ करबाक निर्णय केलक-ए. फलतः, भले हिन्दी माध्यमसँ मेडिकल शिक्षा ओतेक लोकप्रिय नहि होउक, भले सरकारहुक सहायतासँ, हिन्दीमे चिकित्सा विज्ञानक पोथी तं अवश्य छपत. तें एतय सरकारी नीतिक भाषा लेखनक विविधता पर धनात्मक प्रभाव हेतैक.

एकर अतिरिक्त, लेखकलोकनि रुचिक अनुकूल विषयक चुनाव करैत छथि. ताहिमे विविधताक नितांत अभाव देखबामे अबैछ. मैथिलीमे जतबो दू चारि टा पत्रिका छपैछ, उलटा कए देखि लिऔक. विषय कथा, कविता, आलोचना, विद्यापति, आ बहुत- तं- बहुत जय श्री रामसँ आगू नहि बढ़ैछ. समाजमे नारि पर अत्याचार, वर्त्तमान समाजिक-राजनैतिक परिदृश्यक चुनौती, कामकाजी महिलाक समस्या, शहरमे संघर्षरत श्रमिकक समस्या मैथिली लेखककें किएक नहि उद्वेलित करैत छनि? सरकार मैथिलीक जड़िपर नित्य कुड़हरि बजारैछ. ककरो बोल किएक नहि, फुटैत छनि? दिन-दहाड़े  नागरिकक खयबाक-पीबाक स्वतंत्रता, आ धार्मिक आस्था पर आघात होइछ, किओ किएक नहि बजैछ? मैथिलीमे दोसर यात्री आ किरण किएक नहि भेलाह ? आत्म-मंथन करू.

मुदा, ई सब कात जाओ. साहित्यहुक भिन्न-भिन्न विधामे मौलिक लेखन नहिओ होउक, तथापि, भाषा-साहित्यकें समृद्ध करबाक अओरो बाट छैक. हम एकटा प्रश्न पुछैत छी: हमरा लोकनिक पीढ़ीक अधिकतर पाठक हिन्दी मैथिलीसँ बेसी बांग्ला साहित्य पढ़ने छी. मैथिली वा हिन्दीक सहायताक बिना बौद्ध, जैन साहित्य, आ शास्त्र-पुराण सेहो पढ़ैत छी. कोना ? केवल हिन्दी वा अंग्रेजीक माध्यमसँ. आइ चुआँगचुआन वा फाहियानक वृत्तांत जकर मूल चीनी आ कोरियन भाषामे अछि, हमरा लोकनि कोना पढ़ल ? केवल हिन्दी वा अंग्रेजीक माध्यमसँ कि ने. अर्थात् आन भाषाक जे ग्रन्थ उपयोगी बूझि पड़य, मैथिलीमे तकर धुर्झार अनुवाद हो.

मुदा, पढ़त के ? हमरा जनैत ई समस्या थिक आ नहिओ थिक.

जं समस्या थिक, तं ओकर समाधान ताकय पड़त. पचास आ साठिक दशकमे मैथिली प्रचारक अभियानी लोकनि, पैदल, साईकिलपर आ ट्रेनसँ दूर-दूर जाथि. विद्यापति पर्व मनाबथि, गोष्ठी करथि.  आजुक तुलनामे तहिया यातायातक सुविधा नगण्य रहैक. साधनक अभाव छलैक. आ साक्षरता अत्यंत थोड़ छलैक. अभियानीलोकनि नोकरिहा रहथि, गिरहस्थी करथि, गरीबी आ रोगसँ सेहो लड़थि. मुदा, हारि नहि मानथि. आइ जखन हमरा लोकनि सक्षम छी. आर्थिक स्थिति सुधरल अछि, भुखमरी आ रोग थोड़ भेलैए, यातायातक उत्कृष्ट सुविधा छैक, आ हमरा लोकनिकें साधनोक अभाव नहि अछि, तं साहित्यक प्रचार अवश्ये अनेक गुणा सुलभ छैक. तखन प्रयास किएक नहि हो.

साहित्यकें लोकप्रिय बनयबा लेल आ पोथी बेचबा लेल, अमेरिका आ यूरोप-सन समृद्ध समाज धरिमे लेखक लोकनि अनेक मंचसँ पाठकक समक्ष  अपन साहित्य पढ़ैत छथि, पोथीक दोकानमे बैसि ग्राहकसँ संबंध स्थापित करैत छथि आ  पोथीक प्रचार करैत छथि. एहिसँ जनतामे पढ़बाक हिस्सक पनुगैत छैक. अनेक वर्ष पूर्व  सुश्री ओपरा विनफ्रे-सन लोकप्रिय हॉलीवुड-स्टार पाठकक बीच पोथी पढ़बाक अपन मुहिमसँ ई साबित कयने छथि जे लेखक आ पाठकक बीच सोझ संपर्कसँ पाठकमे पढ़बाक रुचिकें पुनर्जीवित करब संभव छैक. तखन मैथिल लेखकलोकनि पाठकक विभिन्न वर्ग, वयस आ समाजमे अपन साहित्यकें ल’ कए किएक नहि जाथि ?

‘सगर राति दीप जरय’ , कवि गोष्ठी, साहित्यक एकल पाठ एही दिशाक अभियान थिक. किन्तु, लेखनकें बहुआयामी बनयबाक आवश्यकता छैक. मैथिलीमें जाहि विधाक साहित्यक अभाव छैक, अनुवादसँ ओहि खाधिकें भरबाक आवश्यकता छैक. लेखक आ पाठक बीच सोझ संपर्कक आधारकें पैघ करबाक आवश्यकता छैक, जाहिसँ मैथिली लेखनक एकफेंड़ा गाछ चारु दिशामे चतरय आ मैथिली लेखक लोकनि समाजमे ओही प्रतिष्ठा आ आर्थिक लाभक भागी होथि जेना समृद्ध भाषा साहित्यक लेखक आइ छथि.

हँ, एतय एकटा गप्प आओर. कृत्रिम बुद्धिक (AI) माध्यमसँ अनुवाद कतेक सुलभ भए गेल छैक से सर्वविदित अछि. Google Translate केर कैमरा खोलू, कैमराकें श्रोत पुस्तकक कोनो पृष्ठ पर फोकस करू, कोन भाषामे अनुवाद चाही से निर्देश दिऔक, आ अनुवाद सामने अछि. एखन एहि प्रकारक अनुवादमे किछु समस्या नहि छैक, से नहि. मुदा, अनुवाद निश्चय निरंतर सुलभ होइत जेतैक. तें, अनेक विधाक लेखक लोकनि, कमसँ कम प्रयोगहुक रूपें, एके संगे अपन पोथीक मैथिली अनुवादक डिजिटल कॉपी प्रकाशित करबाक हेतु प्रकाशककें प्रेरित कइए सकैत छथिन. ई प्रयोग मैथिलीक गाछकें चारू कात चतरबामे सहायक भए सकैछ. एतय उदाहरण स्वरुप एक अंग्रेजी पोथीक पन्नाकें Google Translate माध्यमसँ कयल मैथिली अनुवादक नमूना नीचा देल अछि. 

पोथीक पृष्ठ मूल अंग्रेजी मे

Google translate द्वारा मैथिली अनुवाद 

      

Sunday, July 16, 2023

साधारण लोग, असाधारण विचार-२

 साधारण लोग, असाधारण विचार-२

साधारण लोगों की जीवनी नहीं लिखी जाती है. किन्तु, अनेक साधारण व्यक्ति की साधारण छवि के किसी फलक में अचानक कोई असाधारण चमक दिख जाना आश्चर्यजनक नही. एक शाम लाल काका में मुझे वही चमक दिखी थी. मुझे लगता है, जैसे सोने के किसी बहुमूल्य  आभूषण में उसका रंग, उसकी चमक, उस में जड़ा हुआ पत्थर और उसकी आकृति, सब कुछ मिलकर उसे नायाब बनाता है, उसी तरह अलग-अलग साधारण मनुष्य के चरित्र की छोटी-छोटी चमक का एकत्र संयोग किसी व्यक्ति को असाधारण की संज्ञा देता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न बनाता है.   

लाल काका के मरे हुए तीन दशक से ज्यादा हो चुके हैं. उनमे ऐसा कौन सा गुण कि समाज उन्हें याद रखे. उन्हें संतानों की कमी नहीं थी. इसलिए उन्होंने न कुआँ खुदबाया था, न सड़कें बनबायी थी. उनके जो दोस्त थे, गुजर चुके है. उनके अपने बच्चे बूढ़े हो चुके हैं. उनकी डीह पर घर है, पर जनशून्य, जैसा आज गाँव में  कई लोगों के घर सूने पड़े हैं. खैर, उसे रहने दीजिए. अभी लाल काका पर आयें.

चलिए, उनके नाम को क्यों छिपायें. लाल काका, माने घुरन झा. उनको जो जानते थे उन्हें तान्त्रिक जी बुलाते थे. इतना तक कि उनके बड़े भाई भी जबतक उनसे नाराज न हों, उन्हें तान्त्रिक जी ही बुलाते थे. इसका भी एक इतिहास था. वह अपनी जवानी के दिनों, जब ब्रह्मपुत्र नदी पर एक भी पुल नहीं था, गाँव के अपने अन्य दो साथियों के साथ तन्त्र सीखने के लिए कामरूप( कामाख्या) गये थे. उनके भाल पर त्रिपुण्ड चन्दन के नीचे, भौंह के बीचोबीच बड़ा सा सिन्दूर का टीका, और त्रिकाल भांग के सेवन की आदत उन्ही की देन थी. साक्षर थे; कठिनाई से गीता का हिन्दी अनुवाद पढ़ लेते थे. किन्तु, दिनचर्या में इसके लिये वक्त निकालना उनके लिये आसान नहीं था. आप पूछेंगे, खेती-बारी व्यवसाय में मसरूफ रहते होंगे. अजी साहब, छोड़िये. स्नान-ध्यान पूजा, दस बजे भोजन, भोजन के  बाद थोड़ा  ‘लोट-पोट’ से अगर समय बचा तो ठीक, नहीं तो फिर शाम के भांग की तैयारी के अलावे समय निकालना लाल काका के लिए  कठिन ही था. हाँ, अपनी थोड़ी पुस्तैनी जमीन थी. कोसी इलाके के बड़े खेतिहर के भलमानुस दामाद थे. लेकिन, अपने हाथों खेती करना तो दूर, हाथ बटाना भी उन दिनों भलमानुसों के इज्ज़त के खिलाफ था. पर बुताद, रोग-बीमारी, सर-कुटुम्ब और शादी-ब्याह मे कभी कोई बाधा नहीं हुई. अगर कभी कट्ठा दो कट्ठा ज़मीन इधर-उधर हो भी गया तो फ़िक्र की कौन सी बात थी. यही राय उन लोगों की भी थी जो उनके यहाँ भांग-भुर्रा के लिये जुटते थे.

खैर, फिलहाल मुद्दे पर आयें. तीन लडकियाँ, एक लड़का. बड़ी लड़की की शादी कब की हो चुकी थी हमें कहाँ मालूम. हम तो पैदा भी नहीं हुए थी. दूसरी बेचारी  एक दुर्घटना में बेमौत गुजर गयी थी. पर फिलहाल हम उनकी आखिरी सन्तान, लड़के की शादी की बात करें. सबसे छोटे सन्तान, पुत्र की शादी आते-आते लाल काका की माली हालत ऐसी हो चुकी थी कि वह कुछ भी खर्च करने के हालत में नहीं थे. पर अपने ही एक ग्रामीण सज्जन का दवाब था. वह परिचित थे. प्रतिष्ठित और सज्जन भी थे. उनकी कुआंरी कन्या की शादी का सवाल था. लाल काका इच्छुक थे. पर हाथ खाली था. बहरहाल, शादी कए कई महीने पहले कन्यागत पन्द्रह सौ रुपये सहयोग का वादा कर लाल काका की सहमति और वचन लेने में सफल हो गये.

वक्त बीतता गया. शादी का दिन नजदीक होता गया, पर कन्यागत वादा पूरा न कर सके. अंततः शादी का दिन आ गया. आब क्या हो ? लाल काका कर्ज-उधार कर लड़के को शादी के लिये ले जाने को तैयार थे. अभी तक उन्होंने एक भरोसेमंद ग्रामीण पर आस नहीं छोड़ी थी. इसलिए, इंतज़ार में बैठे रहे. शादी का दिन. शाम हो गयी. कन्यागत का कोई नामोनिशान नहीं. आखिरकार जब गाँव में दिये जलने शुरू हुए, किसी ने कहा फलाँ मिश्र सामने के आम के बगीचे में आप का इंतज़ार कर रहे हैं. शादी का दिन, वह भी इस विवशता में उनका दरवाजे पर आना संभव नहीं था. लाल काका कुछ लोगों के साथ बगीचे में गये. बेचारे मिश्र महाशय की स्थिति देखनेवाली  थी. लाल काका कुछ नहीं बोले. लाल काका के साथ गये वहां उपस्थित  कुछ युवक उत्तेजित थे. युवक लोगों ने लाल काका को अलग ले जा कर कहा: फलाँ मिश्र ठकहारा हैं. बारात मत ले जाइये.

लाल काका धीरे बोलते थे. शान्त स्वभाव के थे. उन्होंने ने युवकों की ओर नज़र उठाई. और शान्त भाव से बोले: 'मैंने वचन दे दिया था. लड़की की शादी है'.

उसी शाम थोड़ी ही देर बाद लाल काका अपने एकमात्र पुत्र की बारात लेकर मिश्र महोदय के दरवाजे पर पहुँच गये!    

Saturday, June 17, 2023

पुस्तक समीक्षा: उद्देश्य,प्रक्रिया आ गुणवत्ता

 

पुस्तक समीक्षा: उद्देश्य,प्रक्रिया आ गुणवत्ता

पुस्तक समीक्षा रचनात्मक गतिविधि थिक. प्रतिष्ठित पत्रिकामे प्रकाशित समीक्षासँ जं एक दिस कृतिक प्रतिष्ठा होइछ, कृतिक बिक्री बढ़ैछ, तं दोसर दिस पाठक ओहि दिस आकर्षित होइत छथि, हुनका लोकनिकें अपन रुचिक उत्कृष्ट पोथीक चुनावमे सहायता भेटैत छनि. अस्तु, आवश्यक अछि समीक्षा उत्तम हो. एकरे ध्यान रखैत, एहि संक्षिप्त लेखमे पुस्तक-समीक्षाक उद्देश्य, प्रक्रिया, उपादेयता, आ गुणवत्ताक निर्वाह पर विचार करब हमर अभीष्ट अछि.

ISBN आँकड़ा पर आधारित, विकिपीडियाक एक रिपोर्टक1 अनुसार  वर्ष २०१३ मे भारतमे विभिन्न भाषाक नब्बे हज़ार पोथी प्रकाशित भेल छल. स्पष्ट छैक, ने सब पोथी बिकाइछ, ने पढ़ल जाइछ. सब पोथीक समीक्षाओ किएक छपतैक. समीक्षाक दृष्टिए अंतर्राष्ट्रीय भाषाक स्थिति सेहो बहुत भिन्न नहि छैक. एक पुरान, विश्वस्त आँकड़ाक अनुसार वर्ष २००१ मे अमेरिका मे लगभग चालीस हज़ार पोथी छपल छल.2 ओहि वर्ष दैनिक न्यू यॉर्क टाइम्समे एहिमे केवल चारि सौ पोथीक समीक्षा छपल! अर्थात् न्यू यॉर्क टाइम्स कुल प्रकाशित पुस्तकक केवल १% पुस्तकक समीक्षा प्रकाशित केलक. ओकर बाइस वर्ष बाद आइ इन्टरनेट पर मुफ्त उपलब्ध पढ़बाक सामग्रीक कारण पत्र-पत्रिकाक लोकप्रियता आ बिक्री घटलैक-ए. फलतः, अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त अनेको दैनिक स्वतंत्र बुक-सेक्शनक प्रकाशन करीब दस वर्ष पूर्वहि बंद भए चुकल अछि. अर्थात्  पहिने जतबो समीक्षा छपैत छल, आइ ओतबो नहि छपैत अछि. एहन स्थितिमे आम पाठक अपन रुचिक पोथीक चुनाव कोना करथि ? तें, आवश्यक अछि, प्रकाशित समीक्षा सामान्य पाठकक आ विद्वानक अपेक्षा पर खरा उतरय. ई अत्यंत कठिन अछि.

समीक्षाक उपादेयता                                                                                                                         

शुद्धताक प्रमाणक ठप्पा ( hallmark) जेवर किननिहार ग्राहककें धातुक शुद्धताक गारंटीक विश्वास दिअबैछ. पोथीकें जं सोना बुझिऐक तं ओकरा कसौटी पर जांचहि पड़त. वस्तुतः, निष्पक्ष समीक्षासँ  पाठककें पोथीक चुनावमें ओहिना सहायता होइछ जेना हॉलमार्कसँ   सोनाक आभूषणक चुनावमे. अर्थात् उच्च कोटिक समीक्षा प्रकाशक आ पाठक दुनूकें पोथीक गुणवत्ताक विश्वास दिअएबैत छनि. समीक्षा लेखकक प्रतिष्ठा, आ पुस्तक तथा लेखक भविष्य बना वा बिगाड़ि सकैछ. कारण, प्रतिष्ठित प्रकाशन प्रतिष्ठान द्वारा प्रकाशनक हेतु पुस्तकक चुनाव, वा संस्था सब द्वारा पुरस्कारक हेतु पुस्तकक चयन, मूलतः एकाधिक समीक्षा पर निर्भर करैछ. तें, समीक्षाक उपादेयता स्वयंसिद्ध अछि.    

पुस्तक समीक्षाक प्रक्रिया

पुस्तक समीक्षा कोनो रिसर्च पेपर, रिसर्च वा थीसिस केर प्रस्ताव, रिसर्च ग्रांट केर आवेदन वा थीसिस केर मूल्यांकनसँ भिन्न नहि. रिसर्च पेपर, रिसर्च वा थीसिस केर प्रस्ताव, रिसर्च ग्रांट केर आवेदन वा थीसिसक प्रस्तावमे विषयक पृष्ठभूमि, मौलिकता, (प्रस्तावित विषयक) अध्ययनक औचित्य, उपलब्ध सामग्रीक सिंहावलोकन, अनुसंधानक विधि, परिणाम आ ओकर उपादेयता मूल्यांकनक मुख्य-मुख्य विन्दु थिक. किएक तं सर्जनात्मक कृतिक उद्देश्य आ स्वरुप रिसर्च पेपर, रिसर्च वा थीसिस केर प्रस्ताव, रिसर्च ग्रांट केर आवेदनक स्वरुपसँ भिन्न होइछ, तें ओहि सबहक समीक्षा आ सर्जनात्मक साहित्यक समीक्षामे मौलिक अंतर छैक. ततबे नहि, समीक्षा आ समालोचनामे सेहो भिन्न-भिन्न विधा थिक, यद्यपि, समीक्षामे समालोचनाक किछु बिंदुक समावेश अवश्य होइछ. वस्तुतः, समालोचना कलाक विस्तृत नीर-क्षीर विवेचना थिक. पुस्तक-समीक्षा पुस्तकक परिचयक संग ओकर गुण-दोष पर समीक्षकक अपेक्षाकृत संक्षिप्त विचार थिक, जे मूलतः आम पाठक पर केन्द्रित होइछ. समालोचना विशेषज्ञ पाठक पर केन्द्रित होइछ. समीक्षामे विषय वस्तुक प्रतिपादन, भाषा, आ कृतिक पठनीयता समीक्षाक अहम बिंदु थिक. एहि सब विचारणीय बिंदु पर सम्यक विचार प्रस्तुत करबाक हेतु ई आवश्यक थिक जे समीक्षक विषय वस्तुसँ नीक जकाँ परिचित होथि, कृतिकें मनोयोगपूर्वक पढ़थि, आ कृतिक प्रत्येक फलक पर निरपेक्षता आ गंभीरतासँ विचार कए स्पष्ट शब्दमे ओकर गुण-दोषकें पाठकक समक्ष राखथि. समीक्षकक स्पष्ट विचार आ गुणक अतिरिक्त पोथीक दोषक चर्चा उत्तम कोटिक समीक्षाक अनिवार्य अवयव थिक.

एकर अतिरिक्त पोथी मनोरंजक छैक वा नहि ताहिमे पाठकक रुचि स्वाभाविक थिक. जं कविता, उपन्यास, वृत्तांत, नाटकक पोथीकें एक बैसाड़मे समाप्त कयल जा सकैछ, तं मनोरंजन आ पठनीयताक स्केल पर ओ पोथी १०/१० अवश्य भेल. पठनीयतामे भाषाक सरलताक आ कथाभूमिक रोचकताक योगदान मूलभूत थिक. समीक्षामे एहि सब विन्दुक समावेश आवश्यक थिक. एकटा गप आओर. जेना बिना मनोयोग आ परिश्रमक नीक पकवान नहि बनैत छैक, तहिना दक्ष संपादनक विना त्रुटिविहीन पोथी प्रकाशन असंभव छैक. अर्थात् सरल भाषामे लिखल रोचक पोथीओमे मुद्रणक दोष, सुस्वादु पकवानमे आँकड़ पाथर जकाँ प्रतीत होइछ.  अस्तु, सजग समीक्षकक दृष्टि ओम्हरो जायब आवश्यक.

समीक्षा आ समीक्षक

Perspective on History नामक पत्रमे  The  Art of  Reviewing  लेखक ब्रूस मजलिश लिखैत छथि, ‘समीक्षक जतबे पोथीक समीक्षा करैत छथि, समीक्षा सेहो समीक्षकक ओतबे समीक्षा करैछ.’ 2 अर्थात् समीक्षाक गुणवत्ता स्वयं समीक्षकक अवगति आ दक्षताक प्रमाण थिक. निष्पक्ष आ संतुलित समीक्षा समीक्षकक प्रतिष्ठा बढ़बैछ; पक्षपातपूर्ण प्रशंसा वा निंदासँ पाठक तं सहमत नहिए होइत छथि, ओहन समीक्षासँ कदाचित्  समीक्षकक प्रतिष्ठाक हानिए होइत छनि. ततबे नहि, त्रुटिपूर्ण समीक्षासँ लेखक, पाठक वा समीक्षक ककरो लाभ नहि. तहिना, अनोन (lukewarm) समीक्षा जाहिमे समीक्षक अहम बिंदु पर स्पष्ट विचार देबासँ बचैत छथि, ओहूसँ ककरो लाभ नहि. एहन समीक्षा पक्षपातपूर्ण समीक्षा जकाँ अकार्यक थिक.

उत्तम समीक्षाक आवश्यक शर्त

- समीक्षासँ पूर्व समीक्षक विषयक अधययन करथि. अपरिचित विषयक पोथीक समीक्षासँ बचल जाय. विषयसँ अपरिचय वा अध्ययनक अभावमे समीक्षा करब घातक थिक.

- पोथीककें बिनु पढ़ने, केवल भूमिका, ब्लर्ब(blurb) वा अनकर समीक्षा पढ़ि कए समीक्षा नहि लिखल जाय. विद्वान लोकनि एहन आग्रहसँ बचैत छथि. एहि विषय पर एकटा रोचक कथा सुनल अछि. ई कथा एकटा लेखक आ राजनेता- आर. आर. दिवाकर आ भारतक विभूति स्वर्गीय डॉ अमरनाथ झासँ संबंधित अछि. ई कथा हम स्वयं एक प्रत्यक्षदर्शी प्रतिष्ठित विद्वानक मुँहे  सुनने छी. एहि घटनाक विवरण पर अविश्वासक कोनो कारण नहि बूझि पड़ैछ, तें, एतय ओकर चर्चा करबाक विचार भेल. घटना निम्नवत् अछि: एक दिन बिहारक तत्कालीन राज्यपाल आर. आर. दिवाकर अपन कोनो पोथीक भूमिका लिखयबा लेल डॉ अमरनाथ झाक पटना आवास पर उपस्थित भेलाह. मुदा, डॉ अमरनाथ झा केवल ई कहि जे ‘मैं बिना पुस्तक पढ़े सम्मति नहीं लिखता’ राज्यपाल आर. आर. दिवाकरकें विदा कए देलखिन!

-जाहि पुस्तक वा लेखमे समीक्षकक आर्थिक वा अन्य रूपें सहभागिता होइनि, ओ ओहि पुस्तकक समीक्षासँ बचथि. पक्षपातक आरोपसँ बचावक हेतु ई अनिवार्य थिक.

सारांशमे समीक्षा प्रबुद्ध पाठकक अध्ययनक रचनात्मक परिणाम थिक. ई श्रमसाध्य काज अध्ययन,प्रतिबद्धता, मनोयोग आ निष्पक्षताक सार्थक फल थिक जाहिसँ लेखक पाठक आ साहित्य लाभान्वित होइछ.

सन्दर्भ:

1.      Wikipedia: Books published per country per year

https://en.wikipedia.org/wiki/Books_published_per_country_per_year. Accessed 17 June 2023.

2.      Bruce Mazlish. The Art of Reviewing. Perspectives on History Feb 1, 2001 https://www.historians.org/research-and-publications/perspectives-on-history/february-2001/the-art-of-reviewing accessed 17 June 2023.

Sunday, June 11, 2023

बांकी सब ठीक छैक बाबा

 यात्री जयंती पर विशेष: 

बांकी सब ठीक छैक बाबा

बांकी सब ठीक छैक बाबा

मुदा, कनिए टा गप्प :

चारू छथि कात लेखक-कवि

आ बहराइत छनि नहि बकार

खाइत छथि मलाई आ करैत छथि ढकार.

मैथिलीए नहि

होइत अछि दिन दहाड़े कपालक्रिया संविधानक

मुदा निपत्ता छथि  बुद्धिजीवी महंथानक

बांकी सब ठीक छैक बाबा

आइओ चढ़ओलनि अहाँकें फूल

मुदा,

अनताह कतएसँ ओ आगि

ओहन शब्द जाहि सबसँ

अहाँ देलियनि प्रधानमंत्रीओकें दागि !

बांकी सब ठीक छैक बाबा

मधुवाता ऋतायते !

मधुवाता  ऋतायते

सरकारी चरौत में

चरि रहल अछि गाय, गोरु, साँढ़  

सरकारी रखौत में !!

बांकी सब ठीक छैक बाबा

मुदा, लिखै छी

कनिए टा गप्प !

Saturday, May 20, 2023

 

यात्रा : भीमाशंकर, शिर्डी, त्र्यम्बकेश्वर

गेलहुँ बहुतो ठाम, मुदा, देखलहुँ किछुए ठाम; कतेक ठाम बाटें-बाट गेलहुँ आ घूरि एलहुँ, वा आगू चलि गेलहुँ. श्रीनगर(जम्मू-कश्मीर) आ महाराष्ट्र एखन धरि एहने लिस्टमे छल. एहि बेर एक विशिष्ट पारिवारिक उत्सव छलैक; हमर भातिज डाक्टर पंकजक पुत्र- प्रणव- आ तेजस्विताक विवाहमे जा रहल छी. अस्तु, विवाह पुरबाक संग पर्यटन/तीर्थाटनक संयोग सेहो बनल. सेहो तीन ठाम: भीमाशंकर, शिर्डी, आ त्र्यम्बकेश्वर.

हमरा लोकनि बंगलोरसँ पूनाक फ्लाइट लेल. आगूक यात्रा टैक्सीसँ. पुणे एयरपोर्ट पर पहिनेसँ बुक कयल टैक्सी एरोसिटी मालमे भेटत. इहो नव अनुभव छल. पुछैत-पुछैत एरोसिटी माल पहुँचहुँ. बेसी दूर नहि, सटले छैक. श्रम बेसी नहि. लिफ्ट आ एस्केलेटरक सुविधा. किन्तु,  पछिला किछुए दू दशकमे अपन देश तेना बदलि गेले, जे निरंतर विकाससँ चिन्हलो स्थान, अनचिन्हार सन लगैछ; आब ओहि ले अनेक हुज्जत; कतेक मोड़, कतेक तल जे मोन हलतल भए जाएत. हएत जे ई तं चिन्हार स्थान नहि, कतय आबि गेलहुँ !

पुणेसँ भीमाशंकर

पुणे हम अनेक बेर आयल छी. मुदा, तहिया लक्ष्य भिन्न रहैत छल. भ्रमणक समय थोड़. तें देखल कम अछि. मध्य फरबरी. शहर केर बाहर गर्मी. भूमि बंजर आ बलुआह. गाछ-वृक्ष रेगिस्तान जकाँ- बबूर-कीकर आ आक. आगू जयबा साढ़े तीन चारि घंटाक यात्रा; दूरी तं केवल ११० कि. मी. किन्तु, आरंभिक ३०-४० कि, मी. बाद चाकण पहुँचैत भोजन बेर भए गेलैक; भोजन कयल आ आगू बढ़लहुँ.

सड़कक कात जलाशय

आगू नारायण गाँओसँ बाटक दिशा बदललैक तं बाट सेहो बदलि गेल; क्रमशः  लचकदार, संकीर्ण सड़क आ ऊपर-नीचा चढ़ाई-उतराई. आगूक इलाका भीमा नदीक जल अधिग्रहण क्षेत्र थिकैक. पथरीला आ लहरदार भूमि. जतय कतहु भूमि नीचा छैक आ पानिक प्राकृतिक बहावक बाट नहि छैक, ओतय अनेक छोट-पैघ झील. छोट-पैघ डैम. पेय जल आ विद्युत् परियोजना. पुणे जिलामे भीमा नदी पर बनल चासकमन डैम एहि क्षेत्रक सबसँ पैघ डैम थिक. सड़कक कातहिसँ ई डैम देखबैक. रोडक कातमे ठाढ़ होउ फोटोग्राफी करू. केवल पहाड़क कगनी पर ठाढ़ भए सेल्फी जुनि घीची. सेल्फीक कारण बहुतो गोटे, डैममे डूबि, रेलमे कटि, ऊँच बहुमंजिली भवन आ पुल सबसँ नीचा खसि व्यर्थमे प्राण गंवओने छथि. अस्तु, पर्यटन सर्वथा सुखद रहय से ध्यान राखी.

चासकमन डैम पुणे जिला 

एम्हर सड़कक काते कात आबादी थोड़ छैक. एक ठाम पैघ झील सन जलाशय देखि ठमकलहुँ. पूनासँ मोटर साईकिल पर आयल दू गोट युवक ओतय भेटलाह. ओहो लोकनि ओतय ठाढ़ भेलाह. हम कहलियनि, ‘ ई कोन झील थिक? कहलनि,’झील नहि भीमा नदी थिक’.                                                                                                  

१२ फरबरी २०२३. रवि दिन. एहन सुन्दर इलाकामे आउटिंग आ पिकनिक जे बहराएबा ले स्थानक कमी नहि. संयोगसँ एहि दिस पूना-मुंबई हाईवेसँ देहाती रास्ता धयला पर ट्राफिक सेहो बहुत थोड़. हमरा लोकनि आगुओ बाटमे एक दू ठाम गाड़ी रोकि लैंडस्केप केर फोटो घिचल. फोटो घिचब शौक थिकैक. मुदा, फोटोक एकटा आओर उपयोग करैत छी; दिन, स्थान, परिदृश्य आ घटनाकें मन पाड़बामे फोटो उपयोगी होइछ. डिजिटल फोटोग्राफीमे रील पर कोनो खर्च नहि. मोबाइल फोन आब मूलतः कैमरा आ कंप्यूटर थिक. संगे, मोबाइलसँ लोक गप्प-सप्प सेहो कए लैछ. मोबाइलमे आब एतेक मेमरी (memory) रहैत छैक, साल पूर्व ओतेक मेमरी कतेक लैपटॉपो नहि होइत छलैक. तें, परिपूर्ण फोटोग्राफी करू, आ जेना इच्छा हो उपयोग करू.

MTDC रिसोर्ट भीमाशंकर 

हमरालोकनि भीमाशंकर गाँओ पहुँचल रही तं प्रायः बेरुक पहरक चारि बजैत छल हेतैक. महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम केर होटल गाँओक शुरुएमे. खूब पैघ परिसर. रहबाक पर्याप्त कमरा. कमरा सबहक आकार पैघ. एतय डोर्मेट्रीक सुवुधा सेहो छैक. सेवा-सुविधा सरकारी गेस्ट हाउस जकाँ. फ़ोनक नेटवर्क कमजोर. होटलक वाई फाई सेहो कमजोरे. किन्तु, डेस्क स्टाफ अपन फोनकें हॉटस्पॉट कए तत्परतासँ  सहायता केलनि. तखने घुरती यात्राक टैक्सी बुक भेल.

भीमाशंकर स्थान बहुत छोट. एतय टैक्सीक आवागमन कम. बेसी लोक ग्रुपमे मिनी वैन वा बससँ अबैत छथि. लोकल टैक्सी नहि भेटैछ, से मंदिर जयबाले टैक्सी कोना भेटत से पुछलापर बुझलहुँ. ऑनलाइन  आउट स्टेशन यात्रा बुक केला पर टैक्सी पूनासँ अबैछ. तें, भाड़ा कनेक बेसी. मुदा, टैक्सी भेटि गेल, ताहिसँ अगिला यात्राक चिंता दूर भेल. आब काल्हि टैक्सीकें संपर्क करबाक हेतु पुनः डेस्क लग आबए पड़त. एहि युगमे जं इंटरनेटसँ दूर छी, तं, बुझू अहाँ कोनो द्वीप पर छी! ने संपर्क, ने बुकिंग, ने भुगतान आ ने समाचार- खबरि! एतय होटलमे रूम सर्विस नहि छैक. चाह चाही तं रेस्टोरेंट में आर्डर करिऔक आ चाहे ओतय बैसि कए पीबू वा अपने लए आउ. मेनेजर एकदम सरकारी स्थायी कर्मचारी जकाँ. लागल हॉस्पिटैलिटी शब्दसँ  अपरिचित छथि. पैरमे घाव रहनि. लंगड़ाइत रहथि. पुछलियनि की भेले. कहलनि, ‘नाश्ता करू!’ ओ ओही घाव नेने किचेनक बाहर भीतर करैत छलाह.                                                                 हमरा सब विचारने रही जे काल्हि भोरे दर्शन करब. मुदा, जखन डेस्कसँ हम पूछताछ करैत रहिऐक तं एकटा मिनी वैन ड्राइवर ओतय ठाढ़ छलाह. ओ करीब बारह-तेरह  स्त्री-पुरुषक दलकें पूनासँ अनने रहथि. यात्री सब दिल्लीवासी. हमरा ओ ड्राइवर कहलनि हमरा गाड़ीमे एखने चलू. तथापि, हम ओहि ग्रुप केर एक वरिष्ठ नागरिकसँ पुछलियनि तं ओ सहर्ष तैयार भए गेलाह. मुदा, बाँकी पराभव एखन बाँकीए छल. ताहिसँ अपरिचित रही.                                    

होटलसँ मंदिर करीब २-३ किलोमीटर. छायादार आ गाछ-वृक्षसँ भरल हरियर ड्राइव. गाड़ी दुनू भागसँ अबैछ जाइछ. ई इलाका भीमाशंकर अभयारण्य थिकैक. ई क्षेत्र अनेक स्थानीय गाछ वृक्ष आ प्राणीक विविधताक हेतु सुपरिचित अछि. विशेषतः ई क्षेत्र ( Indian Giant squirel) नामक जंतुक आवासीय क्षेत्र थिक. मराठी मे सेकरू नामसँ परिचित  ई जंतु महाराष्ट्र राज्यक राजकीय जन्तु थिक. मुदा, जतय लोकक आवागमन ओतय वन्य प्राणी कतय आओत. भोजन-पिरामिडकेर शीर्ष पर बैसल मनुष्य आदि कालहिसँ प्राणी, भैषज्य आ पर्यावरणक एतेक हानि केलक अछि जे आब कोनो जीव जन्तुकें मनुष्यकें चिन्हबामे भांगठ नहि. ओ सब मनुष्यकें देखिते लंक लैत अछि, आ भागि जाइछ.                 

हमरा लोकनि दस मिनटमे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंगक थोड़बे दूर स्थित पार्किंगमे उतरलहुँ. एहिसँ आगू सड़क निर्माण कार्य चलि रहल छल. किछु जोगाड़ी वा सरकारी अधिकारी गाड़ी मंदिरक लग धरि लए जाइत छलाह. मुदा, जनसाधारण ले तकर सुविधा नहि. किछु उद्यमी युवक सब दर्शनार्थी सबकें मोटर साइकिलहु पर नीचा लए जाइत रहथिन. मुदा, हमरा लोकनिकें एहन पहाड़ी बाटमे पैदल चलब मोटर साईकिलसँ बेसी सुरक्षित बूझि पड़ल. एही कारणसँ मुक्तिनाथ, नेपाल,मे हमर पत्नी पयर कज्जी रहितहुँ २-३ किलोमीटर केवल हुबा पर ऊपर-नीचा चढ़ि कए आपस आबि गेल रहथि. एतहु सएह भेल. नीचा मुँहे रास्ता आ दस गोटेक संगोर, ताहिमे कएक गोटे हमरहु लोकनिसँ वयासाहु रहथि. चलि पड़लहुँ.

आगू करीब २०० मीटर आगू, मुख्य ढलानसँ दहिना मंदिर दिस जयबाक नीचा दिस कच्चा ढलान. बाट पर  इंटा-पाथर आ माटि. तकर बाद कमसँ  २०० सौ सीढ़ी. सीढ़ी सबहक ऊंचाई बेसी नहि. बाट चौड़ा. ऊपर छत. एक कात पकड़बाक रेलिंग आ दुनू कात दोकान सब. आगू जा कए ई सीढ़ी बामा दिस घूमि जाइछ. तें,  एहि सीढ़ीसँ मंदिर नहि देखबैक. स्वस्थ सक्षम ले ने ई बेसी लंबा भेल आ ने कठिन; कठिन आ सुलभ वस्तुतः वयस, स्वास्थ्य आ चलबाक क्षमता पर निर्भर करैछ. तथापि, हम नीचा मुँहे लम्बा बाट  देखि कए आतंकित भेलहुँ. किन्तु, आस्थावान दर्शनार्थी कतहु आपस हो. हमरा सन लोक जे ने करय! हमरा तं ओहुना कोनो असक्तता नहि. ओहुना असली कठिनता ऊपर चढ़बामे होइछ, से भेल.

नीचा मंदिर लग पहुँचलहुँ. ओतहु निर्माण कार्य. दू चारि गाड़ीओ ओतय देखलिऐक. नहि जानि ककर रहैक. मंदिरक समीप सेहो फल-फूल आ पूजा सामग्रीक दू चारि टा दोकान. कोनो भीड़ नहि. मुदा, वर्दीधारी पुलिस कांस्टेबल सेहो टाका ल’ कए दर्शन करएबाक हेतु आगू.

कोनो पर्व-त्यौहारक दिन नहि. अनुमानतः लोक भीमाशंकर आबि दर्शन करैछ आ आपस भए जाइछ. आस-पासमे बेसी आवास-होटल देखबामे नहि आयल. एहि ठाम रहबाक प्रायः कोनो कारणों नहि. देखबाक स्थान भीमाशंकर तीर्थे टा छैक. यद्यपि, कतहु पढ़ने रही एम्हर ट्रेकिंग रूट सेहो छैक. आ जखन पहाड़ आ जंगलमे निकलि जायब तं देखबाक वस्तुक कमी नहि, केवल देखबाक आँखि, धैर्य, मनक शान्ति आ समय चाही. प्रकृतिकें देखबाक हेतु ई सब आवश्यक छैक.

भीमाशंकर पर्वत भीमा नदीक उद्गम स्थल थिक. मुदा, से देखबामे नहि आयल. कारण, मूलतः हमरा लोकनि ज्योतिर्लिंगक दर्शन ले आयल रही. दोसर, संध्या काल. ई उपयुक्त समय नहि. दिन देखार निचेनसँ घूमि फिरि, इलाका नीक जकाँ देखि सकैत छी. ओहुना सब नदीक उद्गम सेहो एक रंग नहि. संकीर्ण उपत्यकामे ग्लेशियरसँ निकलैत गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्र-सिन्धु सन नदीक उद्गम एक ठाम देखि सकैत छी. किन्तु, जतय ग्लेशियर नहि छैक, आ रुख-सुख समयमे पहाड़सँ जलक प्रवाह क्षीण रहैछ, ओतय एक स्थान पर नदीक उद्गमकें देखब सुलभ नहि. वस्तुतः, एहि सबठाम नदीक उद्गम एक स्थान नहि, एक क्षेत्रसँ होइछ. प्रायः तहिना भीमाशंकर क्षेत्रक एक विस्तृत क्षेत्रसँ  भीमा नदीक अवतरण होइछ, जाहिमे आने सब नदी जकाँ, जल अधिग्रहण क्षेत्रक आओर धारा सब मिलैत चल जाइछ आ अंततः समतल भूमिमे अबैत-अबैत नदी, भूमिक भौगोलिक गुणक अनुकूल स्वरुप धए लैछ.

मुदा, हमरा एतबेसँ संतोष नहि भेल. Google Earth पर खोजबीन कयल. ओहिमे स्थानक ठोस स्वरुप देखि सकैत छी. से देखलासँ बुझल जे श्रीभीमाशंकर ज्योतिर्लिंग स्थल एहि इलाकाक सबसँ ऊँच स्थल थिक. ओहि ठामसँ जे जलधार बहराइछ जे मंदिरक पाछूक खड़ा ढलान पर दए भीमा नदीक रूप लैछ. ओतय नदी नहि देखबाक दुःख नहि. 

श्रीभीमाशंकर ज्योतिर्लिंगक गर्भगृहक सामने  
कारी पाथरसँ निर्मित भीमाशंकर ज्योतिर्लिंगक मंदिर आकारमे छोट, किन्तु भव्य. मंदिरक आगू नांदी युगल तत्पर. मंदिरक बनावट ओहने जेहन उत्तर भारतमे अधिकतर मंदिर होइछ; नागरा शैलीक मंदिर. मंदिर परिसरमे कोनो भीड़ नहि, सब मिला कए गोड़ पचासेक लोक- भक्त, पुजारी आ पुलिस. साँझ होइत रहैक. गर्भगृहक केन्द्रमे शिवलिंग, शिवलिंग चानीक झाँपनसँ झाँपल. भीतर एक टा पुजारी आ एकटा कांस्टेबल. पुलिस कांस्टेबल पुजारीक सामने हमर पत्नीक हाथसँ चढ़ावाक सौ टाका बुझू छीनि लेलकनि, ताहिसँ ओ ज्योतिर्लिंगक चानीक आवरणक स्पर्श कए तृप्त भेलीह. ई बड़का तृप्तिबोध, आ यात्राक सफलता. गर्भगृहक आगूक आयताकार बरामदा पर टेबुल पर एक दू टा पुलिस सिपाही बैसल. बरामदा पर एकटा टेबुल लगा कए मंदिरक एक प्रौढ़ पुजारी बैसल दानक टिकट कटैत रहथि. जे जुरल, हमरो लोकनि प्रस्तुत कयल आ रसीद लेल. पुजारी जी एकटा लिफाफ पर हमरासँ  हमर पता लिखबओलनि.

श्री भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग मंदिर 

संकीर्णस्थान, निर्माण कार्यक मचान, लोहा-लक्कड़, सिमेंट-बालु. तथापि, मंदिरक परिसरमे एक दू टा फोटो लेल आ आपस भेलहुँ. दोसर दिन फेर ओम्हर गेलहुँ नहि.  घुरतीमे एतेक सीढ़ी कोना चढ़ब, आपस कोना हएब ताहि पर ध्यान लागल छल. समस्या नहि भेल, से कोना कहब. खैर, कोहुना आपस तं होइत गेलहुँ. जं हम कहब जे अस्वस्थ, भारी देह आ जोड़क समस्याक संग भक्त एतय नहि आबथु, तं से उचित नहि. कारण, एक तं ई आस्थाक विपरीत भेल- पंगु चढ़य गिरिवर गहन-, आ दोसर, कोन ठेकान हमर विचार धर्म-विरुद्ध आचरण आ दण्डनीय मानल जाए ! अस्तु, यात्राक योजना बनेबासँ पूर्व मंदिर परिसरक स्थिति आ जेबाक बाटक सूचना एकत्र करी आ अपन पौरूखक अनुकूल स्वयं निर्णय करी.

श्री भीमाशंकर तीर्थयात्राक करीब मास दिनक पछाति एकटा लिफ़ाफमे ‘क्षेत्रोपाध्ये उदय बालकृष्ण गवांदे (थोरले इनामदार)’ क दिससँ  भीमाशंकर महादेवक बिभूति (श्री श्री भीमाशंकरचा प्रसाद) डाकसँ आयल.

शिर्डी यात्रा

शिर्डी  आ शिर्डी साई बाबाक परिचय आवश्यकता नहि. शिर्डी महाराष्ट्रक अनेक मुख्य पर्यटन स्थलमे एक अछि. हेबनिमे साईबाबा सेहो विवादक घेरामे छलाह. विवादक संबंध साईओसँ- ओ मस्जिदमे रहथि आ नमाजो पढ़थि, आ वर्तमान आबोहवा दुनूसँ छैक.

श्रीमद्भगवद्गीताक अनुसार नीक लोक देवताकें पूजैत छथि,राजसी प्रवृत्तिक लोक यक्ष, राक्षस (आ महामानव/ सिद्धपुरुषकें) पूजैत छथि, आ तामसी प्रवृत्तिक लोक भूत-प्रेतक पूजा करैत छथि.

[यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसा:
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जना
: ।। अध्याय १७, श्लोक ४]

विचार भिन्नता स्वस्थ समाजक लक्षण थिकैक. विचारक भिन्नता केवल परस्पर आदरक आधार पर होअए. कारण, धार्मिक आस्था मनुष्यक मौलिक अधिकार आ स्वतंत्रता थिकैक. तखन एहिमे कोन विवाद.

भक्त लोकनिक अनुसार, शिर्डी साईंबाबा सोलह वर्षक वयसमे शिर्डी (जिला अहमदनगर, महाराष्ट्रक) आबि, ओतय डेरा देलनि आ अंततः ओतहि रहि गेलाह. हुनक मृत्युक पछाति भक्त लोकनि , हुनक समाधि आ आवासकें साईबाबाक स्मारकक स्वरुप देलखिन. साईंबाबाक  आवास( द्वारकामाई मस्जिद ) हुनक समाधि आ समाधिक आसपास हुनक समकालीन-सहयोगी- समीपी भक्त लोकनिक आवास आ स्थानक कारण  शिर्डी अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल अछि. इएह स्थल एतुका ह्रदय आ पर्यटन उद्योगक मूल थिक.

साईबाबाक स्मारक आ स्मारकसँ जुड़ल आओर सब स्थलक प्रबंधन  श्री साईबाबा सेवा संस्थान ट्रस्ट, शिर्डी द्वारा संचालित अछि. एहि संबंधमे सब जानकारी https://sai.org.in पर उपलब्ध अछि. अपन उत्कृष्ट गतिविधि ले सुपरिचित, ई समाजसेवी संस्था भक्त लोकनिक विपुल आर्थिक योगदानसँ सामाजिक आ धार्मिक क्षेत्रमे अनेक महत्वपूर्ण काज करैछ. हमरा लोकनि सेहो एतय साईंबाबा समाधिए भ्रमण ले आयल छी.

शिर्डीमे हमरा लोकनि महाराष्ट्र टूरिज्म विकास निगम केर रिसोर्टमे डेरा देल. ई रिसोर्ट आ साईबाबाक समाधिक परिसर सटले अछि. ओना एहि सड़क पर होटल, गेस्ट हाउस, दोकानक कमी नहि. श्री साईबाबा सेवा संस्थान ट्रस्ट केर सेहो प्रायः हज़ार कमराक अतिथिशालाक अनेक भवन छैक.  MTDC Resorts शिर्डीक कमरा, भोजनालय आ परिसर साफ़-सुथरा आ आरामदेह लागल. पार्किंग सेहो पैघ. भोजन आ सर्विस ६/१०. हमरा होटल बुक करबाक हिस्सक अछि, तें ऑनलाइन बुक केने रही. आ कोनो असुविधा नहि भेल.

कोनो पर्व त्यौहार नहि. स्कूल खूजल छलैक. ओहुना सोम दिन; साई संस्थान सबमे बृहस्पति दिन मेला रहैत छैक. तें, हमरा लोकनि टहलैत समाधिक साइड गेट लग गेलहुँ. सीनियर सिटिज़न देखि हमरा लोकनिकें पुलिस रक्षाकर्मी ओतहिसँ प्रवेशक अनुमति दए देलनि. मोबाइल फ़ोन भीतर वर्जित छैक. अस्तु, मोबाइल फ़ोन रखबाक एवजमे एकटा दोकानसँ किछु मेवा-मिसरी किनल. ओ हमर फ़ोन राखि उपकृत केलनि. मुदा, चिंता तं खूब भेल. आइ काल्हि मोबाइल फोनसँ केओ हमर जन्मपत्रीसँ ल कए हमर बैंक अकाउंट धरि रहैत छैक. मोबाइल फोन हाथमे भेने केओ हमर अकाउंट  ऑपरेट कए सकैछ. किन्तु, हमरा आओर कोनो उपाय नहि छल.

शिर्डी साईबाबा समाधिक पाछाँ, दहिनाकात द्वारकामाई मस्जिद 

समाधि भवनक भीतर भीड़ नहि. वस्त्रसँ झाँपल साईबाबाक समाधि. फूलक माला. समाधिक पाछाँ हुनक आदमकद बैसल मूर्ति. नियंत्रित शान्त वातावरण. प्रणाम केलहुँ आ बाहर अयललहुँ. दर्शन करबाकाल भीतरमें एकटा अनेरुआ कुकुर सेहो छल. केओ कहलक जे बाबाक लग जीव जन्तु अहिना अबैत रहैत छलनि. तें, कुकुरकें एतय केओ भगबैत नहि छैक ! समाधि भवनसँ  बाहर निकलि लेंडी बाग़ नामक परिसरमे अयलहुँ. ओतय एक भवनमे छोट संग्रहालय. समीपमे नीमक गाछ. सुनैत छी, साईबाबा एहि नीमक गाछ तर अधिक काल बैसथि. कनेक दूर हंटि कए हुनक पाँच सहयोगी आ सेवक लोकनिक समाधि; एक कात एकटा मज़ार सेहो. मज़ार लग एकटा मौलवी हाथमे मयूरपाँखिक मुट्ठी रखने. धूप जरैत. लगमें एकटा धुनी सेहो.

सब किछु देखि परिसरसँ बाहर अयला पर प्रसादक दोकानसँ एक पैकेट प्रसाद लेल. साईंबाबा ट्रस्टक प्रसादक दोकान एहि शहरमे प्रत्येक सड़क, गली, नुक्कड़ पर भेटत. आब सब सब ठाम जाइत अछि. तें, प्रसाद, बद्धी आ बिभूत सनेस नहि. तैयो तीर्थमे लोक किछु किनिए लैछ.

हमरा लोकनि दोसरो दिन शिर्डीमे रही. घुमैत-फिरैत ‘द्वारकामाई’ नामसँ  प्रसिद्ध पुरान मस्जिद, चावड़ी, इत्यादि सेहो देखल.

सिद्धपुरुष लोकनिक जीवन सदासँ  लोककें प्रभावित करैछ. ताहिमें आश्चर्य नहि. मुदा, महापुरुष लोकनिक लाखों भक्त लोकनि जं संत लोकनिक जीवनक अनुकरण करैत सत्य, इमानदारी आ चोरिसँ परहेजक प्रण लए लेथि तं भारतक स्वरुप बदलि सकैछ; पूजा करब कतेक सुलभ छैक, जीवन पद्धतिकें सुधारब कतेक कठिन !               

(शनि) शिंगनापुर 

शिर्डी प्रवासक दोसर दिन हमरालोकनि (शनि) शिंगनापुर नामक  गाँओ गेलहुँ. ७५ कि. मी. दूर. देहाती इलाका. बाटमे कुसियारक अजस्र खेती. सड़कक कातमे ठमकि एकठाम गुड़ सेहो किनल.

शिंगनापुर गाम शनिक प्रतीकक हेतु प्रसिद्ध अछि. एहिसँ पूर्व असम केर दूमदूमामे आ कतहु राजस्थानमे शनिक मंदिर देखने रही.

शनिग्रहक प्रतीक 

शनि शिलाखण्डक दोसर चित्र 

एतय विशाल परिसर. भीड़ नहि. मुदा, घेड़-बेढ़ देखि लागल जे समय-समय पर भीड़ होइत हेतैक.  शनि ग्रहक प्रतीक नाम पर समेंटेड चबूतराक बीच करीब चारि फुट ऊँच, दू फुट चौड़ा,  कारी ग्रेनाइटक एक शिलाखण्ड गाड़ल. एतय लोक कडू (सरिसबक) तेल अर्घ्य चढ़बैछ.चबूतराक  एक कात, स्टैंड पर एक स्टीलक  पैघ बर्तन राखल. ओहिमे तेल ढारू. मोटरसँ, पाइप द्वारा तेल पाथर पर खसैत रहैछ. नीचा बहैत तेल   अंततः नालामे जाइछ. सुनैत छी, केओ बहैत तेलसँ उर्जा उत्पादनक विचार केने छथि. मुदा, गणेश जी दूध पिबैत छथि, ओहि दूधक कोन उपाय!

शनि शिंगनापुरसँ आपस आबि हमरालोकनि सोझे श्री साईबाबा सेवा संस्थान ट्रस्ट, शिर्डीक भोजनालयमे भोजन करय गेलहुँ. सुनैत छी, प्रति दिन हजारो पर्यटक-भक्त एतय भोजन करैत छथि. हमरोलोकनि कूपन लेल आ डाइनिंग हॉलमे सादा साकाहारी भोजन कयल. हमरा लोकनि अरविंद आश्रम पांडिचेरी आ गुरुद्वारा मणिकरण साहेब(हिमाचल प्रदेश) आ स्वर्णमंदिर परिसर, अमृतसरमे सेहो प्रसाद ग्रहण कयने छी.

एहि भोजनक संग शिर्डीक भ्रमण समाप्त भेल. हमरासँ चूक ई भेल जे एहि यात्रामें समीपहिक घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंगक दर्शन, एवं अजन्ता-एलोराक यात्रा नहि भेल. मुदा, से फेर कहियो. कारण एखन धरि भीमाशंकरक अतिरिक्त कतहु तेना भए परेशान नहि भेल रही. किन्तु, १५ फरबरी २०२३ शिर्डीसँ इगतपूरीक यात्रा ले विदा हेबाले रही कि हमरा एक बड़का उल्टी भए गेल. पछाति हमर पत्नीकें सेहो पेट ख़राब भेलनि. पछिला राति MTDC Resorts मे आबेशसँ जोवारक रोटी खयने रही. आइ भोर मे अंगूर खयने रही. आब दोषी MTDC Resorts क भोजन, श्री साईबाबा सेवा संस्थान ट्रस्ट, शिर्डीक भोजनालयक ‘प्रसाद’ वा अजुका भोरुका अंगूर छल, कहब मोसकिल. मुदा, एतबा कहबामे तं कोनो संकोच नहि जे ई पेट खराब बरिआतीक विशिष्ट भोजनक आनन्द तं हरण कइए देलक. आगुओ अगिला एक हफ्ता धरि हमरा लोकनिक संग नहि छोड़लक. रक्ष एतबे रहल जे ‘पेट खराबी’ ततेक सीरियस नहि छल. फलतः, अस्पतालमे भर्ती हेबासँ बचलहुँ, आ यात्रा-कार्यक्रम यथावत् पूरा भेल.

त्र्यम्बकेश्वर,महाराष्ट्र

इगतपुरीमे बरिआती पुरलाक बाद हमरा लोकनिक अगिला पड़ाव नासिकक समीप त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगक नगर छल. ६० कि. मी. क दूरी. टैक्सीसँ अयलहुँ.

त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्रमे तीर्थयात्री शैव लोकनिक हेतु प्रमुख तीर्थस्थल थिक. हमरा लोकनि १८ फरबरी २०२३ क शिवरात्रिक दिन त्र्यम्बकेश्वर पहुँचल रही. भक्त लोकनिक हेतु शिवरात्रि शिवालय जयबाक उत्तम अवसर थिक. किन्तु, हमरा सब भीड़सँ बचय चाहैत छी. तें, ओहि दिन दर्शन नहि कयल. एतहु MTDC Resorts मे कमरा बुक छल. एहि यात्रामे महाराष्ट्र पर्यटनक गेस्ट हाउसक गुण-अवगुणसँ परिचय करबाक नेयार छल. उत्तर भारतक स्थिति सबकें बुझले अछि. हम गुजरात, तमिलनाडु, केरल इत्यादिमे सरकारी पर्यटन गेस्ट हाउसमे रहल छी. पर्यटन विभागक गेस्ट हाउसक गुण छैक, प्राइम-लोकेशन, ऐल-फ़ैल स्थान, आ कएक ठाम तीन सितारा होटलसँ कम खर्च. किन्तु, अवगुण अनेक. साफ-सफाईक अभाव, भोजनक कमजोर क्वालिटी, कमजोर कस्टमर सर्विस आ स्टाफमे सेवा भावक अभाव. अनेक सुविधा रहितो ई सब अवगुण सरकारी उपक्रमकें हॉस्पिटैलिटी उद्योगमे प्राथमिकता सूचीमे सबसँ नीचा कए दैछ.

त्र्यम्बकेश्वर MTDC Resorts क  लोकेशन ज्योतिर्लिंगक मंदिरसँ करीब 1 किलोमीटर. सोझ रास्ता. फ़ैल स्थान, कमरा एवरेज, किन्तु, साफ़ सुथरा. किन्तु, एहिसँ आगू सब अवगुणे-अवगुण: परिसरक बीच गोड़ पचासेक युकलिप्टसक गाछ पर निरंतर लाखों पैघ-पैघ बादुर (चमगादड़) लटकल. परिसरमे सुरक्षाक देवालक अभावमे अजस्र सुगरक बेरोकटोक अबर्यात. रिसोर्टमे कैटरिंगक सुविधा नहि. फोन पर आर्डर केला पर भोजनक आपूर्ति कोनो बाहरक - पता नहि कोन- भोजनालयसँ. परिसरमे चाहोक व्यवस्था नहि. लगमे कोनो होटल-भोजनालय नहि जे जाइओ कए किछु लए आनी. कुल मिलाकए जं केवल रातिमे सुतबाक हो तं एतय डेरा ली. ताहू पर चमगादड़ आ सुगरक बीच रहए पड़त. हमरा लोकनि एतय दू राति बिताओल तें बेस असुविधाक अनुभव भेल.

एहि रिसोर्टक लगहिसँ ब्रह्मगिरिक ट्रेकिंग टूर केर बाट आरंभ होइछ. एतय बहुतो गोटेकें back पैक आ हाथमें लाठी नेने ऊपर दिस जाइ देखलिऐक.

ब्रह्मगिरि 

१९ फरबरीक अहल भोरे ज्योतिर्लिंगक दर्शनक हेतु जयबाक हेतु एकटा ऑटो १८ तारीखक दिन बुक केने रही. ऑटो ड्राइवर पाँच बजे भोरमे आयब गछने छलाह. मुदा, आधा दर्जन बेर फोन केनहुँ अयलाह. अंततोगत्वा अपनहि पयरे मंदिर धरि गेलहुँ आ ऑटो आनल.

श्रीत्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंगक मंदिर 

गर्भगृहक आगाँ 

भोरक समय. छोट इलाका. साफ़-सुथरा आ भीड़ नहि. किन्तु, शिवरात्रिक कारण मंदिर प्रवेशक सोझ द्वारक बदला लंबा रास्तासँ जाए पड़ल. खूब फ़ैल परिसर. नीक व्यवस्था. एतय स्पेशल दर्शनक टिकट मंदिरक द्वारिए लग, बीच बाज़ारहिमे छैक. मुदा, हमरा लोकनिकें टिकटक आवश्यकता नहि भेल.

मंदिरमे भक्त 

अंगनैक बीच मंदिर. दर्शन कयल. जलधरीमे शिवलिंगक कोनो प्रमाण नहि. लगैत अछि, बैद्यनाथहि जकाँ निरंतर जल प्रवाहक आघातसँ शिवलिंगक क्षरण भए गेल छनि. भीमाशंकर जकाँ एतय चानीक झाँपन नहि रहनि. एतय स्पर्श आ जलाभिषेकक मनाही छैक.

दर्शनक बाद हमरा लोकनि गर्भगृहक आगाँक मंडपमे किछु काल ले ठाढ़ भेलहुँ. फोटोग्राफीक मनाही तं सब ठाम रहिते छैक. तथापि, पुलिसक सोझाँ सैकड़ों, हं, सैकड़ों, तीर्थयात्री मोबाइलसँ फोटोग्राफी आ विडियोग्राफी कए रहल छलाह. हम ओतुका एक प्राइवेट गार्डकें पुछलिऐक, ‘हम एकटा फोटो ली ?’ ओ अनुमति देलनि तं हमहूँ मोबाइल निकालि, फोटो लेबाक सोचिते रही, कि बिजुलीक गतिसँ पुलिसक एक सिपाही हाथसँ मोबाइल छीनि लेलक. ओकर एहन अचानक फोन छिनबसँ हम स्तब्ध भए गेलहुँ. हम ओकरा मोबाइल आपस करबा ले कहलिऐक तं अनठाबए लागल. हम पहिएँ जाहि गार्डकें पुछने रहिऐक ओ ओतहि ठाढ़ छल. हम पुलिस कांस्टेबलकें कहलिऐक, ‘हिनका पुछियनु.’ ओ गार्ड जखन कहलकैक तखन हमर फोन आपस भेल. बादमें विचार कयल: बाहरी लोक आ सीनियर सिटीजन. भोरे-भोर कांस्टेबलकें किछु आमदक उद्देश्य छल होइक; लखनऊमे २००७ मे तं पासपोर्ट बनेबाक हेतु पुलिस वेरिफिकेशन ले एकटा सिपाही रम केर बोतल डेरासँ लइए गेल छल.   

एतय मंडपक नीचा, लगहि, एक सब इंस्पेक्टर सहित कएक टा पुलिस कांस्टेबल कुर्सी लगा बैसल छल. चारू कात निर्विकार फोटोग्राफी आ विडियोग्राफी चालू छल. दर्शन कयलो  पर हमर मन तिक्त भए गेल छल. भगवानक मंदिरमे बैसि भरि दिन पंडा-पुरोहित आ पुलिस सबहक सामने टाका बटोरैत रहैत अछि आ हमरालोकनि देखैत रहैत छी. किन्तु, एहि जनतंत्रमें नागरिककें एतेक हिम्मत नहि जे पुलिसकें केओ टोकय. कारण, भारतमें सरकारी तन्त्र  भ्रष्टाचारक जनक तं छीहे,  इएह नागरिकक सबसँ बड़का उत्पीड़क सेहो थिक. पुलिस-प्रशासन- आ जांच विभागक एही उत्पीड़क शक्तिक प्रयोगसँ  सत्ताधारी लोकनि विरोधीक नियंत्रण आ आ अपना ले टाका बटोरैत छथि. मुदा, ई सब एतेक सामान्य भए गेल छैक, जे जं एकरा विरुद्ध किछु बाजू तं मारि खाउ. सज्जन व्यक्ति सामने कहिऔक तं ओ अहाँकें नीक जकाँ बुझा देताह जे एना सदासँ भ’ एलैए, सब लैत छैक, इत्यादि, इत्यादि. तें, हमरा स्थान देखबामें रुचि अछि, दर्शनमे एकदम नहि. भगवानकें तकबाक काज नहि, ओ हमरा-अहाँक भीतर आ सब प्राणीमे छथि. तखन, ‘कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे वन माहि’ ! मंदिरमे कपार फोड़बैत रहू. मूर्तिक कार्बन डेटिंग करैत रहू. एहि बेर मार्च २०२३मे, अहल भोरे चारि-पाँचक बीच, बनारस विश्वनाथक मंदिर परिसरमे दर्शन करैत श्रद्धालुक बीच,  बिना मेलाके पुलिस आ पुजारी सब मिलि तेहन रेड़ा  केने छल जे बांहिकें पसारि जं बचाव नहि केने रहितहुँ तं छातीक एक-आध पसली अवश्ये टूटि जाइत. सेहो नहि बिसरल अछि.  

त्र्यम्बकेश्वरक मंदिरमे दर्शनक पछाति बाहर आबि, ओतहि ठाढ़ भए चाह पियल. एहि ठाम आँ फल फलहरीक संग कथ बिकाइत देखलिऐक. एक ठाम दू गोट बूढ़ी पैघ-पैघ दानेदार वस्तु, गोंद कहि बेचैत रहथि. हमरा लोकनि टेम्पो पकड़ि होटल आपस एलहुँ. टैक्सी समय पर आयल. त्र्यम्बकेश्वरसँ  पुणे पाँचसँ छौ घंटाक यात्रा. बाटमे भोजन भेलैक. चारि बजे धरि पुणे एयरपोर्ट. बंगलोर डेरा पहुँचैत रातिक दस बाजि गेल. सुरक्षित दुनू गोटे घर आपस भेलहुँ से सबसँ बड़का संतोष.   

        

  

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