Monday, February 11, 2019

पाताल भुवनेश्वर : जतय लोक कदचिते पहुँचैत अछि


पाताल भुवनेश्वर : जतय लोक कदचिते पहुँचैत अछि

सैनिक छी, तं, व्यवसायहिं, आ यायावर छी, तं, प्रवृत्तिएं एहन-एहन स्थान पर पहुंचि जायब जतय जेबाक ने केओ  नेयार करैत अछि आ’ ने स्थानीय लोकक आलावा अनका ककरो किछु बूझल होइछ. पाताल भुनेश्वर सेहो हमर एकटा एहने अनुभव छल. 1993-1996 क बीच हम बरेली मिलिटरी अस्पताल में पदस्थापित छलहुं. ओहि समयमें नैनीताल, रानीखेत, पिथौरागढ़, अल्मोडा, कौसानी एहि सब ठाममें सेनाक यूनिट सब रहैक, किन्तु, आंखिक डाक्टरक सुविधा नहिं रहैक. अस्तु, प्रत्येक मास हमरा एकाधिक बेर पिथोरागढ़ आ रानीखेत जाय पड़ैत छल. युवक शरीर आ यायावर मन. हमरा आओर चाही की ! अपन अधीन सरकारी गाड़ी आ ड्राईवर. संगहिं, सरकारी काजक पहिने आ बाद पर्याप्त समय. खूब घुमलहु. पाताल भुवनेश्वर सेहो ओहि अवधिमें पिथौरागढ़क एक यात्राक उपलब्धि थिक. ओहि ज़मानामें विकीपीडिया तं रहैक नहिं. अजूबा–अजगुत स्थान, लोक, आ घटनाक खबरि लोक एक दोसरे वा  स्थानीय लोक सं सुनैत छल. सुनल स्थान के देखबाक कौतूहले हमरा पातल भुवनेश्वर ल गेल छल. बहुत दिन भ गेलैक, कोना कोना गेल रही तकर बहुतो गप्प बिसरी गेले. सम्भव छैक, स्थान देखबाक लोभ में हमरा लोकनि ओहि स्थानक समीपक गाओंमें कोनो मेडिकल कैंप सेहो आयोजित केने होइ. ओहि इलाकामें भूतपूर्व सैनिक लोकनिक संख्या काफी छैक ; कुमांऊ रेजिमेंट, गढ़वाल रेजिमेंट आ गढ़वाल स्काउट बटालियन सबहक सैनिक लोकनिक घर-द्वार तं एही इलाकामें छनि.
आब पाताल भुवनेश्वरक गप्प करी. पाताल आ भुवनेश्वर. माने, एतय भुवनेश्वर पातालमें छथि .  पाताल छैक कतय ? पाताल थिक की  ? शास्त्र -पुराण आ धार्मिक मान्यताक अनुकूल श्रृष्टिक संरचनाक तीन श्रेणीमें सबसँ ऊपर आकाश आ सबसँ नीचा पाताल अछि. भूमि दुनू क बीच अछि. पृथ्वीक गर्भकें सेहो पातालक पर्याय बूझल जाइछ. सामान्य अर्थ में पृथ्वीक सतह सं नीचा, भूमिक गर्भ, पाताल थिक. तें, कोयला, सोना-चानी, हीरा, आ अन्य धातुक खान सेहो पाताल थिक. भूमि सं नीचाक गुफा-कन्दरा सेहो पाताल थिक. पाताल भुवनेश्वरक पाताल पिथौरागढ़ आ अल्मोड़ाक बीच, गंगोरीहाट गाओंक समीप एकटा भूमिगत गुफा थिक जकर संकीर्ण प्रवेश ज़मीनक सतहसं नीचा एकटा खड़ा प्राकृतिक द्वार बाटें होइछ. हमरा लगैत अछि, पहाड़क सतहसं खड़ा द्वारकेर गहराई कम सं कम दू-तीन मर्द (माने बीस फुट ) तं हेबे करतैक. पहिने पता नहिं लोक कोना एहि गुफामें प्रवेश करैत छल. हमरा लोकनि जहिया गेल रही, लोहाक सीढ़ी सं नीचा उतरल रही. जेना, हेबाक चाही, भीतर बज्र अन्हार छैक. किन्तु, एखन एहि गुफामें  बिजली-बत्तीक व्यवस्था छैक . गुफामें उतरलाक पछाति, विभिन्न सतहपर सम्पूर्ण इलाका कम सं कम दू हज़ार वर्गमीटरमें अवश्य पसरल हेतैक. हयत जे कोनो पैघ सभागारमें पहुँचल छी. पहाड़क उंचाई, आ सूर्यक किरणक अभावमें गुफाक भीतरक वातावरण एकदम शीतल. ठाम-ठाम संकीर्ण जलधार. किन्तु, भुवनेश्वर कतय छथि ? हद्द भ गेल ! भगवान तं सबतरि छथि. किन्तु, एतुका भुवनेश्वर कें एतेक सूक्ष्म जुनि बूझी. भक्त लोकनिक आस्था अक्षुण्ण रखबाले प्रकृति नीक खेल खेलायल अछि. सम्पूर्ण गुफामें भूगर्भक आन्दोलन, पानिक श्राव आ खनिज यौगिकक सहयोग सं यत्र-तत्र पाथरक विभिन्न आकारक पिंडक  अजस्र समूह जहां-तहां छिडियायल भेटत. स्टेलेक्टाइट आ स्टेलेग्माइटक एही अजस्र आकारकें एतुका भक्त लोकनि विभिन्न देवी-देवताक स्वरुप बूझि ककरो बदरीनाथ, ककरो केदारनाथ आ ककरो भुवनेश्वरक संज्ञा सं विभूषित केने छथि.
शहरज़मीनसं नीचा एहि प्रकारक गुफा बहुत आनो ठाम भेटत. जेना, नेपालमें पोखराक इलाकामें, हिमाचल प्रदेशमें. आ नहिं जानि, कतय-कतय. किन्तु, भक्त छी, तं, प्राकृतिक खेलक बलें बनल आकारे भुवनेश्वर थिकाह.  वैज्ञानिक बुद्धिसं प्रेरित छी, तं, ई सब प्रकृतिक प्रयोग, रसायनक प्रताप, आ भूगर्भक उथल-पुथलकेर परिणाम थिक. किन्तु, कारण जे किछु हो, दैवी वा  प्राकृतिक, खेला ककरा नीक नहिं लगतैक ! हमरा तं दू टा लाभ भेल, खेला आ यात्रा दुनू. संगहिं, गढ़वाल-कुमांऊ केर पवित्र वायु सेहो भरि मोन फेफड़ामें भरल. वायु एहन वस्तु थिक जे जतेक मन हो सेवन करू ल कय जा नहिं सकैत छी. तथापि, शहर बाज़ारमें बढ़इत प्रदूषणक कारण ई प्राणवायु सेहो अमोल भ गेले. की पता, किछु दिन में पानिक बोतल जकां बोतल बंद  हवा सेहो राशन-पानि जकां लोक के मासिक बुताद जकां किनय पड़ैक. कारण, सरकार तं क्रमशः सब किछु सं हाथ धोनहिं जा रहल अछि.  तें, जखन एहि दिस हिमालयमें आबी पाताल भुवनेश्वर गुफा कें देखी, स्वच्छ निर्मल वायुक प्रचुर सेवन करी आ प्राणकें पुनर्जीवित कय अपन-अपन शहर-नगर आपस जाइ.   

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