Thursday, June 22, 2017

पत्र-पत्रिका आ सम्पादकीय दायित्व

पत्र-पत्रिका आ सम्पादकीय दायित्व 
आजुक युगमें पुस्तक-पत्रिका-विश्वकोषक कमी नहिं. मुदा, लेखन ले लिखबाक लूरि तं चाही, लिखल के सुधारबाक समय आ रूचि तं चाही. छपाई कतेक सुलभ छैक से सर्वविदिते अछि. छपल सामग्रीक प्रतिष्ठा एखनो छैक, नहिं तं रचनाकें छपयाबाले लोक किएक आफन तोड़इत ! तथापि, हमरा जनैत,  एखनुक युगमे पत्र-पत्रिकाक शुद्ध छपाई आ सामग्रीक  प्रमाणिकतामें ह्रास भेलैये. ई नीक नहिं, से तं सब मानब. पांडिचेरीमें किछु बन्धु-मित्र गप्पक क्रम मे कहलनि, भारतक स्वतंत्रताक पूर्व ' हिन्दू' दैनिक अखबारकें तमिलनाडूक लोक 'माउंट रोड-महाविष्णु' कहैत छलैक आ 'हिन्दू'मे प्रकाशित सामग्रीकें सरकारी 'गजेट' जकां प्रमाणिक मानल जाइत छलैक . आइ 'हिन्दू'में सेहो अनेको अशुद्धि भेटत . एहन परिस्थिति में पोथी-पत्रिकामे छिडियायल तथ्यात्मक अशुद्धि निर्विवाद पत्र-पत्रिकाक एवं पोथीक प्रमाणिकता आ प्रतिष्ठा दुनूपर प्रश्न चिन्ह लगबैत अछि. एकर छार-भार ककरा पर ? एहि समस्यापर  प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका सब अपन संस्थाक  भीतर आत्म-मंथन करैत छथि आ स्वतंत्र पर्यवेक्षक (ombdsman) नियुक्त केने छथि. मुदा, सब पत्र-पत्रिकाकें ने तकर साधन छैक आ ने सुधि. तें, प्रकाशनक एहि पक्षपर दृष्टिपात आवश्यक.
एक लेखकक कृतिक हेतु प्रमाणिकता आ शुद्धि-अशुद्धि सब कथुक दायित्व लेखक-प्रकाशकक थिकनि . किन्तु, बहुलेखक ग्रन्थ आ पत्र-पत्रिकाक ममिलामें सामग्रीक प्रमाणिकताक हेतु लेखक आ सम्पादक दुनू  उत्तरदायी छथि. एहि थोड पृष्ठभूमिक संग आजुक मैथिली पत्र-पत्रिका सबमे सम्पादकीय वृत्ति पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत करब हमर उद्देश्य अछि. एहि लेखक सम्बन्ध कोनो एकटा पत्रिका सं नहिं, बल्कि, सम्पादकीय वृत्तिपर विस्तृत चर्चा आरम्भ हो से हमर अभीष्ट अछि.
सम्पादक के थिकाह . सामान्य अर्थमें जे 'कोनो काज (सम्पादन) करथि ओ भेलाह सम्पादक. ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी' अनुसारें, ' पत्र-पत्रिका आ बहुलेखक पोथीक विषय-वस्तु आ स्वरुपक निर्णायक सम्पादक थिकाह'. मुदा, जं एखुनका पितामह ' गूगल विकिपेडिया' के पुछियनि तं 'संपादन, संशोधन, संक्षेप, संरचना आ संगठन द्वारा  कोनो भाषा, चित्र वा ध्वनिकें  प्रदर्शनक हेतु सुधारबाक / नीक बनयबाक प्रक्रिया थिक; आ संपादन केनिहार संपादक कहबैत छथि .'   
मैथिलीमें ने कोनो समाचार पत्र नहिं छैक. एखनुक पत्र-पत्रिका अपन प्रमाणिकताक मानदण्ड स्वयं स्थापित केने होथि से सम्भव. मैथिलीक हस्तलिखित पत्रिका सब सं हम परिचित नहिं छी. ओहि युगमे सम्पादक लोकनि केहन पत्रिका छपइत  छलाह से शोधकर्ता लोकनि कहि सकैत छथि . मुदा, (स्व. प्रोफेसर रमानाथ झा द्वारा सम्पादित) मैथिली साहित्य पत्र, मिथिला मिहिर, मिथिला दर्शन ( वर्तमान सहित ) ,वैदेही,  विद्वतमण्डली में समादृत छल से सर्वविदित अछि .  तथापि, तहियो सब छपल सामग्री सर्वथा दोषमुक्त नहिं होइत छलैक से संभव. नहिं तं, स्व. हरिमोहन झा 'प्रेसक लीला' सन कथा कोना लिखितथि. मुदा, ओ भेल केवल छपाईक गप्प.
एखुनक  पत्र-पत्रिका में जं सम्पादकीय वृत्तिक गप्प करी तं सम्पादक लोकनिक समस्याकें अनदेखी नहिं कोना क सकैत छियनि. मुदा, अपन समस्याक समाधान सम्पादक लोकनि अपने ताकथु. तथापि कंप्यूटरक प्रयोग लेखन-सम्पादनमें क्रांति आनि देलकइ-ए से के नहिं मानत. आब लेखन-प्रकाशन केर एक-एक विन्दु पर नजरि घुमाबी.
पत्रिकाक सबसं पैघ समस्या होइत छैक सहज बुझबायोग्य भाषामें लिखल  प्रमाणिक रचनाक अभाव. सब रुचिक रचनाकें एकठाम  संकलित करब दोसर समस्या थिक. जं सामग्रीक  विविधताक गप्प करी, तं, कथा, कविता भेटब प्रायः सुलभ छैक. अनेक कारणसं, विज्ञान विषयक, चिकित्साशास्त्रक, राजनैतिक, यात्रा-वृत्तांत, पाक-विज्ञानक स्तरीय  लेखक अभाव एखनो छैक. स्तरीयताक परवाहि नहिं करी तं एहि इन्टरनेट युगमें सबतरि विभिन्न विषय पर ढउए-ढाकी लेख भेटत. भाषा कोनो होइक 'गूगल अनुवाद' पर अनुवाद क लियअ. चेफड़ी लगाउ, चिप्पी सब (cut and paste ) जोडि-जोडिक नौ हाथक बनारसी-पटोर-साड़ी, माने लेख, तैयार क लियअ ! मुदा, जाहि युग में लोक कें फेसबुक (facebook) आ व्हाट्सएप (Whatsapp) पढ़बा सं फुर्सति नहिं छैक, ताहि युग में समेटल बंगौरकें के पढ़त ! तें, जं लेखकेर सामग्रीक उपयोगिता आ रोचकताक  दायित्व लेखकक थिकनि, तं, लेखकेर चुनावक दायित्व तं सम्पादकके थिकनि. एखन जखनि कि सबतरि सूचनाक बाढ़ि छैक, लेख सबहक  प्रमाणिकताकें भाजारबाक  कष्ट पाठक किएक उठओताह ! अतः एकबेर जे छपल से भ गेल प्रमाणिक. आ प्रमाणिक पत्रिका में छपल तं भ गेल ब्रह्म-वाक्य. एही दुआरे एहि युग में 'पोस्ट-ट्रुथ' (post-truth) सन शब्दक अविष्कार भेले ; 'पोस्ट-ट्रुथ' एहन परिस्थिति थिक जाहिमे प्रचारित सामग्रीकें वस्तुनिष्ठ रूपें बिनु भजारनहिं, पूर्वाग्रह वा अपन विश्वासक अनुकूल लोक (फूसिओकें) सत्य मानि लैछ. तथापि, अनर्गल वा दोषपूर्ण सूचनासं पत्रिकामें पाठकक विश्वास तं अवश्ये घटैत छैक. आ जं पत्रिकासं पाठकक विश्वासे उठि गेलैक तं लोक पत्रिका किनत किएक, आ पत्रिका ले बांकी बंचलैक की ?
दोसर गप्पक सम्बन्ध कहबाक शैली सं छैक . सहज-सरल भाषा लोककें नीक भ' कय बुझबामें अबैत छैक . कठिन भाषा सक्कत फुटहा चिबायब-सन प्रतीत होइछ. सम्पादक भाषा पर माथापच्ची करथि कि नहिं से सोचू. मुदा एतबा तं अवश्य, जं, लेख पढ़िकय सम्पादककें किछु भांजे  नहिं लगलनि तं पढ़निहार के बुझबामें की अओतनि ! आ पत्रिकामें एहन लेख जं छपि  गेल  तं दोष ककर ? आ लाभ की ?
एकटा आओर समस्या. समालोचनात्मक (?) लेख सब जहां-तहां अनेरुआ घास-जकां पत्र-पत्रिका सबकें छारने भेटत. जनिका जखन मोन होइत छनि, समालोचना लीखि बैसैत छथि. तकर ई अर्थ किन्नहु नहिं जे गम्भीर समालोचक नहिं छथि. मुदा, नव गप्प, नव दृष्टि कदाचिते देखबैक. बेसी काल ओहने गप्प, 'चूड़ा-दही बड मधुर होइत छैक.किएक ? तं, 'महराजी पोखरि पर सिपाही सब चूड़ा-दही खाइत छलैक , कहलैक बड मधुर होइत छैक.' माने, अमुक विद्वान ई कहलनि , दोसर ई कहलथिन . तेसर, ई ..... , आदि-आदि. अस्तु, जखन लेख  पढ़ला उत्तर हमरा किछु भांजे नहिं लागल, विद्यार्थी परीक्षामे लिखिए नहिं सकैत छथि, लेखककें  विद्वताक सर्टिफिकेट नहिंए भेटतनि, तखन, सम्पादक अपन दायित्वक निर्वाह किएक ने करथि ? सम्पादकसं पाठककें एतबा अपेक्षा तं होइते छैक.
सम्पादकीय उदासीनताक उदाहरण देब बिढ़नी छत्तामें हाथ देब थिक. हम केवल मैथिलीक पाठक छी. पोथी-पत्रिका कीनि कय पढ़इत छी आ नीक सामग्रीक अपेक्षा रखैत छी. तें, हमर विचार पाठकक दृष्टि थिक. मुदा, एकटा गप्प एतय अप्रासंगिक नहिं होयत . ई थिक वैज्ञानिक आ मानिविकीय क्षेत्रमें peer-review क परम्परा. शोधकर्ता लोकनि ले ई शब्द नव नहिं. तथापि, एतय peer-review के फरिछायब आवश्यक. peer-review में लेखकक  परिचयकें गोपनीय रखैत, एक वा अधिक सुपरिचित विद्वान लग प्रतिपादित तथ्यकेर नवीनता, तर्क, प्रमाण, उपयोगिता, आ भाषाक  निकतीपर तौलबा ले लेख कें गणमान्य विशेषज्ञ लग पठाओल जाइछ. विद्वान लोकनिक सुझावक आधारपर लेखक अपन लेखमें संशोधन करैत छथि आ अंततः लेख स्वीकृत वा अस्वीकृत होइछ. प्रक्रिया श्रम-साध्य छैक, आ लेखकें छ्पबामें बिलंब होइत छैक, मुदा, ताहि सं लेख, लेखक, आ पत्रिकाक सबहक प्रतिष्ठा बढ़इत  छैक. सामान्य रुचिक पत्रिका ले peer-review संभव नहिं. तें तथ्यकेर मोट-मोट अशुद्धिक, भाषा आ छपाईक एकरूपता, आ बांकी सब कथूक दायित्व संपादके केर छियनि. अर्थात, सम्पादके भेलाह peer-reviewer. आ ओएह लेथु सब रूचिक रोचक सामग्रीक चयन, स्तरीयता, भाषा आ कानूनी पक्षक दायित्व. हमरा जनैत, पत्रिका, लेखक आ प्रकाशक सबहक हितमें एतबा अपेक्षा स्वाभाविक. आ एतबा भार उठायब पर्याप्त छैक. हँ, कंप्यूटर सं परिचित, दूरस्थ लेखक सेहो प्रूफ-रीडिंगमें सम्पादकक सहायता तं कइए सकैत छथिन.वर्तमान  युगक  सम्पादक लोकनि ई सुविधा उठाबथि ; विकल्प तं अपनहिं हाथ छनि.        
 

Thursday, June 8, 2017

लेह में पहिल बेर : अगस्त 2002



लेह में पहिल बेर : अगस्त 2002
'लामाक भूमिमें गामा जुनि बनी' से बहुत दिन सं सुनल छल. किन्तु, जखन बंगलोरसं सोझे लेहकेर पोस्टिंग ऑर्डर आयल तं एहि कहावत केर असली अर्थ बूझब बांकीए छल.लेह पहुंचलापर हवाई अड्डापर ले. कर्नल विधान चन्द्र त्रिवेदी, दरभंगा मेडिकल कालेजक 1974 बैचकेर जूनियर, ठाढ़ छलाह. हुनक मुसुकाइत छवि आश्वस्त कयलक  आ हम स्वभावतः धफडि कय विदा भेलहुँ तं कर्नल त्रिवेदी  सावधान करैत   कहलनि, 'सर, धीरे-धीरे चलू'. माने, तेज चलब तं श्वासने फूलय लागय, फेफड़ा ने बम बाजि जाय ! तखन मोन पड़ल एहि कहावत अर्थ. एतबा तं बूझल छल, समुद्रतल सं 10500 फुट केर ऊंचाईपर लेह में गाछ-वृक्षेक नहिं, ऑक्सीजनकेर कमी सेहो छैक.  तें, सावधानी नहिं रखलहु तं हाई-ऑल्टच्युड पल्मोनरी इडिमा ( फेफड़ाक सूजन ) आ  हाई-ऑल्टच्युड सेरेब्रल इडिमा ( मस्तिष्क क सूजन ) सं अचानक प्राण जा सकैत अछि. ई समस्या स्वस्थ सैनिक आ सैलानी दुनूकें समान रूपें प्रभावित करैछ. इहो बूझल छल, जे हाई-ऑल्टच्युड एरियामें रक्त-चाप     ( Blood pressure ) बढ़ि जाइछ, श्वासमें कष्ट होइछ. उपर सं खूब जाड़. कनेक भय नहिं छल से कोना कहब.  मुदा, स्वस्थ शरीर आ जोश में लोक बहुत किछु बिसरि जाइछ. मुदा कर्नल त्रिवेदीकेर चेतावनीक पछाति असावधानी असम्भव छल. अस्तु, ऑफिसर मेसक आवास में आबि निर्देशानुसार ' 6-days' acclamatization schedule' आरम्भ केलहुं. अर्थात् , दू दिन बेड-रेस्ट ( बिछाओन पर आराम ), अगिला दू-दिन समतल भूमिपर किछु-किछु दूरक टहलान, आ आखिरी दू दिनमें आओर दूर आ ऊंचाई दिस चलबाक रूटीनक. ई भेल लेहमें अयनिहार सैनिक लोकनिक पहिलुक छ दिनुक निर्धारित दिनचर्या.
नव स्थान, अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल, आ हमरा-सन  यायावर मोन हताशा तं भेले एहि हाउस-अरेस्ट सं. अस्तु, पहिल दिन परिश्रान्त रही, कहुना बीतल. किन्तु, दोसर दिन भोरहिं सं वायुक कम दवाबक प्रभाव देखबा में आबय लागल: बाथरूम में राखल शेविंग क्रीम आ टूथ पेस्टक ट्यूबक मुनना खोलितहिं क्रीम आ पेस्ट अनायास बाहर बहय लगलैक. पछाति, हाथ-मुंह धोलाक बाद टेबुलपर राखल नमकीन भुजियाक पोली-पैक पर नजरि गेल तं हँसी लागि गेल: भीतर बंद वायुक प्रसार सं भुजियाक पैकेट गोल-मटोल भ गेल छलैक. ई सब छल वायुमंडलमें हवाक कम दवाबक प्रत्यक्ष प्रमाण.                                                                             तथापि, यदि वायुमंडलक कम दवाब, शुष्क वायु, आ शीतल मरुभूमिक गप्प जं छोडि दी तं लेह में आकर्षण कमी नहिं छैक.  तकर कारणों छैक : लद्दाख़क विशेषज्ञ, प्रसिद्द लेखिका, जेनेट रिज़वी, लेहकें पहाड़ी एशिया   (high Asia) क चौबटिया कहैत छथि.  चौबटिया तं वएह भेल जतय चारि दिसुक बाट आबि कय मिलैत हो, वा बाट चारि दिस फूटइत हो. लेह में पूब दिस तिब्बत-चांगथांग-मनालीक बाट , पश्चिम में कारगिल आ कश्मीर-बाल्टिस्तान, उत्तर में नुब्रा वैली-काराकोरम- चीन केर सिंक्यांग प्रान्त आ दक्षिण दिस जान्स्कार आ हिमाचलक बाट तं छैहे. तखन, जतय चारि दिसक मनुक्ख, हवा-पानि, माल-असबाब, कला संस्कृति आ मनुक्खक रक्तकेर संगम होइत होइक ओ स्थान कोना ने अद्भुत हेतैक ! आ तें लेह अछि अद्भुत. कोना ? सएह तं एहि लेख केर विषय थिक. तें, दम धरू.
हम लेह पहुंचल रही तखन अगस्तक मास रहैक. दिनक तापमान प्रायः 11 डिग्री सेंटीग्रेड छल हेतैक, राति में प्रायः 1-2 डिग्री सेंटीग्रेड. लेह केर हिसाबे गर्मिए जकां भेलैक. मुदा, जाड़सं नोकसानक भय नहिं छल से कोना कहब. तें, पहिल राति सुत्बा काल अपना लग जतेक उनी कपड़ा छल पहिरि, ऊपर सं दू गोट तुराई ओढ़ि लेल.  मुँह झाँपि सुतबाक हिस्सक छले, सेह केलहुं. कपड़ाक ओतेक परत, तुराईक ओतेक भार आ झाँपल मुँह सं देह में तेहन ने खौंत फेकलक, जे संदेह होमय लागल जे प्रायः लेह पहिले राति अपन झटका देलक. राति कहुना बीतल. भोरहिं अस्पताल गेलहुं. ECG कराओल. फेफड़ाक जांच- lung function test- भेल . सब ठीक. आश्वस्त भेलहुँ . माता-पिताक देल पचास साल पुरान मॉडलक शरीर पर विश्वास दृढ़ भेल, भेल, शरीरक मॉडल ठीके चलि रहल अछि. मुदा, एतबा अवश्य अनुभव भेल जे जाड़ सं बेसी कपड़ा आ ज़रुरत सं बेसी भय दुनू घातक ! 
दोसर दिन होइत-होइत हाउस-अरेस्ट सं मोन अकछा गेल. सांझ होइत-होइत कोठली सं बहरा करीब 1 किलोमीटर दूर मिलिटरी जनरल अस्पताल दिस एसगरे बिदा भ गेलहुं. चारू कात नजरि घुमाओल, कनेक लेह तं देखी. मुदा, उपत्यकाक हरियर झमटगर गाछ सबहक कारण ऊँचपर बसल मिलिटरी एरियासं एखन धरि लेह बाज़ार देखब सम्भव नहिं; पतझड़क बाद पूरा इलाका नग्न भ जाइछ. मुदा ताहि में एखन देरी छलैक. तें, दृष्टि-पथक ई बाधा हमरा नीक नहिं लागल. कहिया तं हम 1983 में लेह एबा ले रही. आ कहिया आई लगभग बीस बर्षक बाद एतय एलहु. मुदा, लगैछ लेह बाज़ारक भ्रमण ले हमरा आओर दू दिन क प्रतीक्षा करहिं पड़त.                                       तथापि आस-पास नज़रि घुमौलासं  आरीक धार-सन, बंजर पर्वत शिखर, सर्वत्र फहराइत रंग-बिरंगी बौद्ध पताका, बालु सं पाटल भूमि, आ दूर दक्षिण में हिमाच्छादित पर्वतमाला देखबामें आयल. आई एतबहिं सं संतोष कयल.
अनिवार्य आराम (Compulsory acclamatization schedule) क 6 दिन पूर्ण भेला पर पहिल दिन गाड़ी सं लेह बाज़ार होइत सिन्धुक दर्शन ले बिदा भेलहुँ. शहर सं पूब दक्षिण करीब 5 कि. मी. बाटमें जतय देखू, पग-पग पर छिडियायल बौद्ध स्मारक (छोर्तेन), मंदिर (गोम्पा). एकर सबहक फूट वर्णन आवश्यक. तें एखन सोझे सिन्धु चरणतल. एहि स्थानकें आइ काल्हि लोक सिन्धु दर्शन कहैत छैक. एहि ठाम लेह सं मनाली आ चांगथांग दिस जाइत हाईवे केर दक्षिण आ पूव सं पश्चिम दिस बहैत सिन्धु नदीक उत्त्तर समतल भूमिक पाट चौड़ा भ जाइछ. वाजपेयी सरकार अपन शासनकाल में एतय समतल भूमि में बहैत सिन्धुक उतरबरिया कछेर पर पक्का घाट बनबा सिन्धु दर्शन उत्सवक आयोजन कें छल. तहिया सं एहि स्थानकें सिन्धु दर्शनक नामसं जानल जाइछ. हमरो लोकनि एतहि गाड़ी रोकि घाट पर एलहु. सिन्धु पवित्र शीतल जल कें स्पर्श कयल. आ सिन्धुक जलक स्पर्श आ सिन्धु दर्शनक मनोरथ पूर्ण कयल. अनन्त कालसं  कल-कल बहैत हरियर कचोर सिन्धु, अपन अमृतमय आसव सं एहि प्रदेशकें तं सिचैते छथि, एकर आगू नीचा बहुत दूर, अरब सागर धरि कछेरे-कछेर बसल बासिन्दा सबहक जीवन-रेखा छथि. प्रसारमें संकीर्ण, कतहु उत्थर कतहु गहींर, प्रकृतिए चपल-चंचल, आ नयनाभिराम सिन्धुकेर पवित्र शीतल जल कें स्पर्श करैत भेल, जेना जीवन सफल भ गेल. सरिपहुं, राष्ट्र-गान में भले सिन्धुक चर्चा हो ,भारतमें कतेक गोटे कें सिन्धुक पवित्र जलक स्पर्शक सौभाग्य हेतैक !

तें , लेह अयलापर ऑफिसर मेस केर बाहर हमर पहिल पड़ाव सिन्धु-एक तट थिक. अतः, दू पांती सिन्धुक प्रशस्तिमें :
दूर-सुदूर गगन कें छूने
दृढ़ता सं पृथ्वीके धेने
हिमगिरिकेर मायावी उर सं
कविक मनक कविता-सन मधुमय
तरल-विरल कमनीय धार लय
सिन्धु अहाँ छी हार कंठ केर
भारत भूमिक नाम,
दर्शन भेल, सफल भेल जीवन
शत-शत नम्र प्रणाम .

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो