Wednesday, May 27, 2020

सत्तरिक दशकमें दरभंगा मेडिकल कॉलेज -2

सत्तरिक दशकमें दरभंगा मेडिकल  कॉलेज -2
DMCH Campus. Courtesy: Google Earth

1970 क दशकमें मेडिकल कॉलेजमें  नव-नव आयल छात्रकेर रैगिंग- हुथबाक वा रेबाड़क –विकृत परंपरा आम रहैक. रैगिंग सामूहिक आ एसगर दुनूमें  होइत छलैक. सीनियर लोकनि एकरा अपन अधिकार आ कर्तव्य दुनू बूझथि. सीनियर लोकनिक धारणा रहनि जे रैगिंग सं कालेजमें नव-नव आयल विद्यार्थीकें सीनियर लोकनिसं  परिचय-पात तं होइते छनि, एहिसं हुनका लोकनिक धाख सेहो छूटैत छनि. ततबे नहिं, रैगिंगसं समाजक  भिन्न-भिन्न  पृष्ठभूमिसं आयल छात्र आसानीसं ‘ स्मार्ट’ भ’ जाइत छथि. सर्वविदित अछि देशक अनेक भाग आ अनेक संस्थामें रैगिंगक अति सं अनेको छात्रक मृत्यु धरि भेल छैक. तें, तहियो 1973 में रैगिंग गैर-कानूनी रहैक आ हमरा लोकनिक तत्कालीन प्रिंसिपल स्व. डाक्टर चक्रधर झा रैगिंगक ततेक विरोधी रहथि जे कतेक बेर रैगिंग-सन  गतिविधिक कनेको आशंका पर ओ स्वयं अपने होस्टल दिस दौगैत चल आबथि. संयोगसं हम रैगिंगसं आसानी सं छूटि गेलहुँ, किछु अपन बुधियारीसं आ किछु स्थानीय हेबाक कारणे . तथापि हमर रैगिंग नहिं  भेल छल, से कहब तं असत्ये हयत.
ओहि युगमें मेडिकल शिक्षाक चारूकात एकटा आभा-मंडल रहैक, ओहिना जेहन आभा-मंडल डाक्टरी व्यवसायक चारू कात तहिया रहैक. किन्तु, शिक्षक आ विद्यार्थीक बीच सामाजिक स्तर पर मेलजोल कम रहैक. छोट-छोट भूल-चूक पैघ दण्ड वा प्रतिशोधक धमकी धरि कारण बनि जाइक. अधिकतर छात्र लोकनिकें अपन जाति-पांतिक  परिचयक प्रति गौरव तं रहबे करनि. तें, प्रतिद्वन्दिता सेहो पनपैत छलैक. किछु गोटे जाति-भाई आ phylum ताकि कय रूम-मेटक चुनाव सेहो करथि. संयोगसं जं एक वर्गक छात्रक रैगिंग दोसर वर्गक द्वारा भ’ गेल तं ‘पीड़ित’ छात्रक जातिक नेता लोकनि शुर्ख-रू भ’ जाथि. एहि सं कखनो काल मारि पीटिक परिस्थिति सेहो आबि जाइक.
फर्स्ट इयरमें हमरा लोकनिकें ओल्ड होस्टलमें कमरा भेटल छल. 24 नम्बर कमराक चारि कोनक चारि निवासी- कीर्तिनाथ झा, मुसर्रत हुसैन, सतीश कुमार दास, आ विजय कुमार सिन्हा, संयोग सं सोशल मोसैकक इन्द्रधनुष रही.  यद्यपि, एहन उदाहरण कमी नहिं रहैक, तथापि, हमरा लोकनिकें तकर गौरव छल. कारण, तहिया आ आइओ बिहारमें रहैत अधिकांश बिहारी नागरिकक सोचकें जाति सं उपर उठबामें बड बाधाक सामना करय पड़ैत छनि. फल सभक सोझां अछि. संयोगसं विद्यार्थी लोकनिक जातिवादी सोचमें किछु दोष शिक्षक लोकनिक सेहो रहनि. किन्तु, ओ लोकनि की करितथि, समाजक बहावक विपरीत जायबकें लोक आत्महत्या-जकां बूझैत अछि, तें, जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी कीजै’ क नीति सब अपनाबथि. संगहि, ओ सब जाहि समाजक गुण-दोष भोगैत रहथि, सएह जीवैत रहथि. किछु शिक्षक प्रायः अपन अहं केर संतुष्टिक हेतु सेहो विद्यार्थीक जातिवादी विचार आ समूहक पृष्ठ-पोषण करथि. एहिसं हुनका लोकनिकें कोनो लाभ होइत होइनि, से असंभव . सम्भव छैक, किछु व्यक्ति मनहिं-मन अपन समुदायक छात्रक सुरक्षाक भर अपना पर उठौने होथि, आ अपन सहकर्मी लोकनिसं प्रतिद्वन्दितामें अपन हथियार-जकां छात्रक उपयोग  करैत होथि.किन्तु, ओ लोकनि एतबे सं संतुष्ट तं रहबे करथि, प्रत्यक्ष व्यवहारमें केओ जातिवादी बूझि पडलाह तेहन अनुभव हमरा कहिओ नहिं भेल. ओना हमरा लोकनि ने ककरो कृपाक मोहताज रही आ ने ताहि सं कोनो लाभ वा हानि भेल. सत्यतः, शिक्षकक जातिवादी व्यवहारसं कोनो छात्रकें कनेक लाभ भले भ' जाउक , किन्तु, प्रत्यक्षतः ककरो हानि भेल हेतनि से हमार नहिं बूझल अछि. तें, कालेजक दिनक जातिवादक विरुद्ध हमरा लग कोनो शिकायतक कारण नहिं. अस्तु,पहिल डेढ़ वर्षक एनाटोमी, फिजियोलॉजी आ बायोकेमिस्ट्री पढ़बाक अध्याय निरापद निकलि गेल . यद्यपि, हमर अपन सोझमतिया बुद्धि , आ समाजमें सब कानूनक अनुसार चलय ताहि धारणाक प्रति आग्रहक, कारण एकटा शिक्षा अवश्य भेटल. किन्तु, ‘हमरा अपन भूल’सं  कोनो हानि नहिं भेल, तकरा हम शिक्षक लोकनिक उदारता आ कानूनक प्रति हुनका लोकनिक निष्ठाक उदाहरण मात्र बूझैत छी. किन्तु, तकर गप्प फेर कहियो. 
दरभंगा मेडिकल कालेजक आरंभिक दिन केहन रहैक, से कहब कठिन. मुदा सत्तरिक दशकमें एहि कालेजक आर्थिक स्थिति भारतक अर्थव्यवस्थाक भिन्न नहिं रहैक : सारांशमें जर्जर. बहुत दिन पहिने बनल निस्सन भवन आ दक्ष शिक्षक लोकनिक समूह जं कालेज सुदृढ़ आधार रहथि, तं कालेजक प्रशासक लोकनिमें कालेज उत्तरोत्तर विकासक हेतु सम्यक दृष्टिक अभाव आ सरकारक उदासीनता विकासक सबटा बाट छेकि कय रखने छल, जकर परिणाम आइ पचास साल बाद सभक सोझाँ अछि.
शिक्षण संस्थान आ स्वास्थ्य सेवाक एहि दुर्दशाक कारण म सं सब सं प्रमुख रहैक बिहार राज्यक जर्जर अर्थव्यवस्था आ समाजक सब स्तर पर व्याप्त चतुर्दिक भ्रष्टाचार, आ उच्च शिक्षा तथा जन स्वास्थ्य सेवाक प्रति राज्य सरकारक उदासीनता . संयोगसं स्वतंत्र भारतमें गरीबी कें जेना महिमा मंडित कयल गेल रहैक. ओतय तक तं चलू ठीक छलैक. किन्तु, व्यक्तिगत संपत्तिक उपार्जन , आ निजी उद्यमकें  हेय बुझबाक जाहि दर्शनकें ओहि युगमें बल भेटलैक ओ भ्रष्टाचारक संग मीलि कय अंततः समाजक अर्थकें जर्जर क' देलक. सर्वविदित अछि, ओहि युग में निजी कल-कारखानामें कोन वस्तुक कतेक उत्पादन हेतैक तकर निर्णय, समाजमें वस्तुक  मांग नहिं, सरकार करैत छल. सब किछु पर कोटा-परमिटक ताला लागल छलैक. एताबता, सरकारी कोषमें आमदनी बूँद-बूँद अबैत रहैक, आ खर्च तं रहबे करैक. ततबे नहिं, यद्यपि, उद्योग-धंधा सं ल कय शिक्षा धरिमें सरकारक एकाधिकार रहैक, तथापि, सरकारक हाथ छुच्छ रहैक. तखन विकासले टाका अबितैक कतय सं. तें दिन-प्रतिदिनक खर्च, अर्थात वेतन आ मामूली मरम्मति आलावा सरकारी कोषमें धन रहैत नहिं छलैक. तखन नव योजना आ पुरान संस्थाक विकासमें निवेश कतय सं  अओतैक ! फलतः, जाहि विभागमें जतय जे किछु छलैक, से जं जं टूटिओ-फूटि गेलैक तं काज ओही सं चलैक. नव विभागक स्थापनाक आ नव उपकरणक खरीद गप्प छोडू, पुरान भवन आ उपकरण धरिक रखरखाव आ मरम्मति नहिं भ' पबैत छलैक. एहन परिस्थिति सं सब परिचित छल. किन्तु, सरकारी स्वामित्वबला संस्था तं ककरो अपन छलैक नहिं, जे अपन प्रैक्टिस छोडि केओ ओकर चिंता करितथि.प्रायः नजरिया सं परिचित व्यवहार कुशल प्रशासक लोकनि  अपन अनुभव सं,सरकारी तन्त्रसं लडबकें निर्थक बूझैत रहथि.   किन्तु,  परिस्थिति सं यदा-कदा शिक्षक लोकनिक  हताशा परिलक्षित भइए जाइत  छलनि.  ओहि समयक एकटा फिजियोलॉजीक प्रोफेसर डाक्टर डी एन शर्मा कहथिन, ‘ हमरा लोकनिक प्रयोगशाला अर्कियोलोजी (पुरातत्व विभाग) विभागक म्यूजियम थिक !’ डाक्टर डी एन शर्मा स्कॉटलैंडक सेंट एंड्रूज विश्वविद्यालयसं पी. एच-डी. रहथि. ओहि दिन में बेसिक साइंस आ क्निनिकल विज्ञान विभागमें ब्रिटेनक विश्वविद्यालय सबमें शिक्षित अनेक  तेजस्वी आ समर्थ  शिक्षक सब रहथि. हुनका सबकें  यूरोपकेर अनेको  शिक्षण-संस्था आ शिक्षा व्यवस्था देखल रहनि. किन्तु, अपना ओतय साधन आ संकल्पक  अभावमें छात्रकें पढ़यबाक अतिरिक्त संस्थाक विकास ले केओ किछु नहिं क' सकलाह. आ तकर परिणाम थिक समयक बहावमें  माटिक देबाल-जकां झहरैत आजुक दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालय !

Monday, May 25, 2020

हमरा लोकनिक ओतय: लघु कथा


हमरा लोकनिक ओतय

अबोध नेनाकें छोडि आन ककरो ले सम्पूर्ण संसार अपन नहिं होइत छैक. तथापि, अपन घर-अंगना आ माय-बापक संपत्तिओ जं अपन नहिं हेतैक तं धिया-पुता कथीकें अपन कहत !
गौरीकें जहियासं बजबाक लूरि भेलनि, हुनका अपन घर-अंगनामें जाहि कथू पर नजरि पड़नि, हुनके रहनि. दुलारि कन्या आ छोटि, प्रतिवाद के करितनि ! जं केओ हंसिओ में कहि देनि,’ बड़ भेलीहे घरवाली ! अहांके बियाह हयत आ अपना घर जायब ’ तं , नोरे-झोरे एक भ’ जाथि. बाप बुझबथिन, ‘ तों बताहि भेलह-ए ! तोरा केओ किछु कहैत छथुन तं एतबे कहहुन ने , अहाँके जे पुछबाक हो , बाबूजी सं पूछि लियनु. हम बुझा देबनि’. आ गौरी बूझि जाथि.
आब गौरी साठि बरखक छथि. अपन घर-अंगना छनि. नैहर जहिया जाइत छथि, पाहुन-जकां . माय छथिन. सब समस्याक तत्काल समाधान कयनिहार पिताक आब केवल स्मरण छनि. तथापि, मध्यवयसाहु शरीरक कोनो कोन में आम-लतामक गाछ पर फुदकैत, पोखरिमें चुभकैत, आमक गाछी-कलममें आब बिछैत नान्हि-टा गौरी कतहु ओहिना नुकायल छथि. नैहर, ‘ हमरा लोकनिक ठाम’  आ ओतुका संपत्तिक चर्चा, ‘हमरा लोकनिक पोखरि, मन्दिर, गाछी आ समाज’- जकां करैत छथि.
आइ भोर में गौरीक पुतहु, पुतुल, अमेरिकासं फोन केलथिन. सासुसं पुतुल कें किछु बात-व्यवहारक गप्प पुछबाक छलनि. नारि कतहु रहथु, हुनका संग गौरी-गणेश- गोसाउनि सब ठाम संगहिं जाइत छथिन.
पुतहु पूछय लगलथिन, ‘ माँ, करवां-चौथ आबि रहल छैक. पूजा भारतक सूर्योदय-सूर्यास्तक हिसाबें हेतैक, कि अमेरिकाक तारीख सं ?
गौरी प्रश्न तं सूनि लेलनि, किन्तु, पुतहुक प्रश्नक उत्तर देबाक बदला हुनका मुँह सं प्रश्ने बहरयलनि : आब अहांके करवां-चौथ कोना हयत. आब नैहरक बिध-व्यवहार-पाबनि तिहार अहाँक नहिं थिक. हमरा सबकें करवां-चौथ नहिं होइत अछि.’ बेचारी पुतुल चुप भ’ गेलीह.  मनहिं-मन सोचलनि, हम करवां-चौथ केलहुं, कि नहिं, से तं माँ के तखने बुझबा जोग हेतनि ने जखन हम पूजाक फोटो पठेबनि. तें सासुक प्रतिवाद उचित नहिं बूझि चुप भ’ गेलीह. कहलथिन, ‘ जी. ठीक छैक .’
गौरी बड प्रसन्न भेलीह. कहलखिन ‘ देखियनु पुतुल कें. सासुरक व्यवहारकें अपन बूझि, सासुरेक व्यवहारकें ध’ लेलनि ! अजुका युगमें सबहक बुते ई पार लगतैक !!’
-       ‘पहिनहु नहिं पार लगैत छलैक ’- लगेमें बैसल गौरीक बेटी मुन्नी गप्प काटि देलखिन.
-       ऍ ? से की कहलहु, मुन्नी !
-       उचिते कि ने !
-       की उचित ? गौरी कें मुन्नीक बात काटब नीक नहिं लगलनि.
-       की उचित ? तों अपने कहिया सासुरक विधि-व्यवहार केलहिक ? हमर पितामही कहिते रहि गेलीह. तों हमरा तुसारी नहिंए पूजय देलें. कि तं हमरा ओतय नहिं होइत छैक !  हमर बाबा दुद्धा वैष्णव. एहि परिवारमें कहियो बलिप्रदान नहिं भेल. आ तों, एखनो नैहर जा कय कबुला-पाती करैत छें आ बलि-प्रदान करबैत छें. ऊपर सं नैहरक गप्प होइत छौक तं कहैत छहिक, ‘ हमर सबहक  बाड़ीमें ओ गाछ अछि. हमरा लोकनिक ओ खेत-पथार, ओ कलम, ओ पोखरि अछि, ब्रह्म-बाबा छथि.
-       ठीके कि ने !
-        ठीक कोना ? तोहर बियाह-दान भेलह. सासुर बसलह. जमाय-पुतहु भेलखुन.  नैहर कोना तोहर घर भेलह ?  - कातमें बैसल, ओतहि जलखै करैत, गौरीक माय निर्विकार भावें निर्णय द’ देलखिन. 
     गौरी अवाक् भ गेलीह !
   

Tuesday, May 19, 2020

मानव-शरीर पवित्र थिक. मृत शरीरक आदर करी

दरभंगा मेडिकल कॉलेजक आठ वर्ष
[ एम बी बी एस पढ़ाई साढ़े चारि वर्षक होइछ. एक वर्षक अनिवार्य इंटर्नशिप वा चिकित्साक अनुभव. तखन हमरा लोकनिक बैचकें इंटर्नशिप पूर्ण होइत नवम्बर 1973 सं मार्च 1981 तक केर अवधि कोना लागि गेलैक ? सुनू ताहि
प्रकरणक धोखरैत चित्र आ बिसरैत गप्प.] 

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मानव-शरीर पवित्र थिक. मृत शरीरक आदर करी 

1973 ई. में मनमे जोगाओल मनोरथ पूर भेल; ओही वर्ष दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालयमें एम बी बी एस कोर्स में  हमर नाम लिखल गेल.ठीक तीन वर्ष पूर्व बिहारमे मेडिकल कॉलेजमें एडमिशनले प्रतियोगता परीक्षा आरम्भ  भेल रहैक. एहिसं हमरा-सन अनेको ग्रामीण विद्यार्थीक हित भेलैक.
दरभंगा मेडिकल कालेजक परिसर दू वर्ग किलोमीटरक, पैघ इलकामें पसरल छैक. एखुनका समय-जकां तहिया कालेजक भूमिक  एतेक अतिक्रमण नहिं भेल रहैक. एखने-जकां आरम्भिक डेढ़ वर्षक एनाटोमी, फिजियोलॉजी आ बायोकेमिस्ट्रीक विभाग, अनेक होस्टल, कॉलेजक फील्ड आ फैकल्टी लोकनिक आवास अस्पताल सं दूर, अलग परिसरमें रहैक. इतिहास कहैत अछि, दरभंगाक महाराज रामेश्वर सिंहक विपुल दान आ हुनके देल भूमिसं एहि संस्थाक  स्थापना भेल छलैक.
दरभंगा मेडिकल कॉलेजक बेसिक मेडिकल साइंसक  परिसरक अंग्रेजीक T- आकारक भवनक तीन भिन्न-भिन्न खंडमें तीनू विभाग, लेक्चर-थिएटर, प्रयोगशाला, म्यूजियम सब छैक. दरभंगा मेडिकल  कालेजमें नामांकनसं पूर्व एहि परिसरमें आयब-जायब तं छले. छोट बालकक रूप में जाहि भवन आ परिसरकें भय-मिश्रित आश्चर्यसं देखैत रहिऐक ताहिमें अधिकारपूर्वक प्रवेश हमरा अभूतपूर्व उत्साहसं भरि देने छल. मानव शरीरक छेदन आ शरीर-रचनाक  प्रत्यक्ष दर्शन अद्भुत रोमांचक लागय. संगहिं नव-नव संगी-साथीसं परिचय आ हमर अपन समाजिक  आ मानसिक परिधिक अकस्मात् विस्तारक  अनुभव अभूतपूर्व छल.
प्रतिदिन भोरे क्लास 8.10 बजे आरम्भ होइक. आरम्भमें दू टा लेक्चरक पछाति, प्रतिदिन बारह बजे धरि डिसेक्शन- हॉल में एक सौ पचास छात्र- छात्राक सम्पूर्ण क्लास एके समूहक भिन्न-भिन्न ग्रुप-जकां जमा होइत छल.
तहिया मेडिकल कॉलेज सब में बेसिक साइंसक पढ़ाईमें डिसेक्शनक बड महत्व रहैक. दरभंगा मेडिकल कॉलेजकेर लम्बा डिसेक्शन हालक  दछिनबरिया, पुबरिया, आ उतरबरिया देवालपर बहुत बड़का-बड़का खिड़की शरीर-रचना पढ़बाक हेतु अत्यंत उपयुक्त रहैक. पूब दिसुक देवालमें दू टा द्वार आ बीचममें छोट-सन ब्लैकबोर्डक आगाँ शिक्षक लोकनिक बैसबाक कुर्सी-टेबुल रहनि. ताहिसं आगू प्रायः आठ-आठ टा ग्रेनाइट-टॉप बाला डिसेक्शन टेबुल रहैक. हाल में प्रवेश करिते एनाटोमीक पितामह ‘हेनरी ग्रे’ केर, छत सं झूलैत पेंटिंग रहनि. छतसं झूलैत दोसर बोर्ड पर छात्र लोकनिक हेतु निर्देश रहनि; Body is secred. Pay respect to  it. ( मानव-शरीर पवित्र थिक. शरीरकें आदर दियनि )  .
हमरा डिसेक्शनमें खूब मन लागय. हमर ग्रुप में गोड बीसेक छात्र म सं हमर रूममेट मुसर्रत, आ सतीशक अतिरिक्त हमर करीबी मित्र अजयकुमार झा आ आओर बहुतो गोटे रहथि. विद्यार्थी लोकनिक एहि समूहकें पुनः 5 सं 7 व्यक्तिक छोट-छोट ग्रुपमें बांटि  ककरो, बांहि ( upper extremity ), ककरो, जांघ-पयर (lower extremity ), छाती (thorax), पेट ( abdomen) इत्यादि केर डिसेक्शनक टास्क देल जाइनि. एहि सब अंगकेर छोट-छोट हिस्साक- जेना, तरहत्थी( पांच दिन ), तरबा (पांच दिन )- विस्तृत अध्ययन आ फूट-फूट जांच-परीक्षा आ मार्क ले शिक्षाक आ छात्रक बीच  खींचा-तानी होइक.
डिसेक्शनक छोट-छोट सब-ग्रुप में सब प्रकारक छात्र रहथि; किछु गोटे शरीरक डिसेक्शन करथि. बांकी किछु छात्र लोकनि पोथी पढ़ि-पढ़ि पोथीमें लिखल निर्देश आ थ्योरी सबकें बुझबथिन  आ चिरल-फाडल शरीर रचनाकें अपनहु आत्मसात करथि. डिसेक्शनक एहि क्लासमें ग्रुप-वर्क हंसी –विनोद, आ मित्रताक अद्भुत वातावरण रहैक. क्लासमें गप्प करबाक छूट बड़का बोनस. ताहिसं  किछु गोटे क्लासक समय  हंसी मजाकमें  सेहो गुजारि देथि आ अंतमें उपर-झापर किछु-किछु देखैत हाजिरी बजाबथि आ काज पूरा करथि. बांकी छात्र  मेडिकल कालेजमें पढ़बाक एहि अनूप अवसरसं भावी जीवनक निस्सन आधारशिलाक निर्माण सेहो करथि.
बेरुक पहरक समयमें फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, हिस्टोलोजीक प्रयोग वा ट्युटोरिअल क्लास आ डेमोन्स्ट्रेशन क्लास होइक.  ओहि अवधिमें डाक्टर भूपेन्द्र नारायण सिन्हा, डाक्टर बी के श्रीवास्तव आ डाक्टर बी एन सहाय क्रमशः एनाटोमी, फिजियोलॉजी एवं बायोकेमिस्ट्रीक विभागाध्यक्ष रहथि.
मेडिकल कालेजक आरंभिक डेढ़ वर्षक जीवनक एकटा अनुभव हमरा एखनो मोन अछि. एकरा कनेक विस्तार सं कही. जेना समाजमें होइत छैक, कालेज आ चिकित्साक व्यवसाय सेहो विभिन्न प्रकारक लोकक बहुरंगी फलक- मोज़ेक- थिक. कोनो शिक्षक  समयक पाबन्द अपन अनुशासनसं बान्हल रहथि, तं केओ लेट-लतीफ़ आ कायदा कानूनसं निरपेक्ष. हमरा लोकनि स्वतंत्रताक पछातिक पीढ़ी थिकहुं , तें ‘ अंग्रेजक जमानामें अनुशासन केहन रहैक’ से सुनैत रहियैक. किन्तु, देखल तं नहिं छल. तथापि, दुनिया में सब अनुशासनसं चलय आ हमर अधिकारक हनन नहिं हो, हमरा किशोर मनमें ताहि हेतु आग्रह ‘ अव्यवहारिकताक हद’ धरि छल. तथापि, लेक्चर क्लासमें  डाक्टर हरिनन्दन द्विवेदी–सन  किछु शिक्षक जं  समयसं पहिनहु आबि जाथि, तं बांकी शिक्षक लोकनि समय पर अवश्य आबथि. किन्तु, डिसेक्शन हालमें  अयबामें शिक्षक लोकनि समयक परबाहि नहिं करथि. माने, अपना समयसं अहाँ अपने पढ़ू- आइ काल्हि शिक्षा-विज्ञानमें एकरा self-directed learning ( स्वाध्याय) कहैत छैक. डिस्सेकशन हालक एहि संस्कृतिसं छात्र सबकें एक दिस क्लासमें रहितो अपन रूचि आ इच्छाक अनुसार स्वतंत्रता भेटनि तं हमरा-सन जिज्ञासु छात्रकें  कखनो-काल शिक्षकक कमी अखरय. शहरी विचार-व्यवहार सं अभिज्ञ तं रहबे करी. अस्तु, एक दिन टीचर लोकनिक टेबुल परसं चौक उठाओल आ ब्लैक बोर्ड पर निम्नांकित संदेश लीखि देल:
“Teachers are requested to come to the dissection-hall on time. Late coming is injustice on the part of students.”
फल ई भेल जे शिक्षक लोकनिकें एना प्रतीत भेलनि जेना हुनका लोकनिक बीच केओ मूर्ख छात्र  अकस्मात बम खसा देने होइनि. दोसर दिस, एखन धरि हमर जे परिचय मित्रे लोकनि धरि सीमित छल, से क्लासक बाहर सीनियर लोकनि धरि नव खबरिक संग पहुँचि गेल. फलतः, टीचर लोकनि डिसेक्शन-हाल आ क्लास में एकाएक सख्ती आरम्भ क’ देलखिन.  हम अपन संदेश नुका कय तं लिखने नहिं रहियैक, हमरा सब देखनहिं छल. केवल हमर एहि  initiative में अनकर ककरो सहयोग वा सहमति  नहिं रहैक. सुरक्षा विज्ञान में एहि  प्रकारक  initiative वा ‘आघात’ कें ‘lone wolf attack’ कहल जाइत छैक. जे किछु. सख्तीसं तिलमिलायल  हमर सहपाठी लोकनि हमरा पर टूटि पड़लाह. भय एकर जे हमर भूलकेर मूल्य प्रायः पूरा क्लासकें ने चुकबय पड़तैक ! ते, हमरा किछु गोटे प्रत्यक्षतः  लुलुआबय लगलाह तं बांकी लोकनि चुप्पे-चाप हमर सोझमतिया प्रकृतिपर मुसुकाथि. किछु ब्राह्मण सीनियर लोकनि हमर बंचावक हेतु आगू अयबाक प्रस्ताव सेहो केलनि. दोसर दिस, किछु व्यवहारिक मित्र हमरा ‘अपन आ क्लासक हितमें’ विभागाध्यक्ष लग जा कय क्षमा-याचनाक सुझाव देलनि. हमरा अपन अनुशासन आ जीवनमें अपन सिद्धान्त पर चलबाक बानि पर कोनो भ्रम नहिं छल. अतः, जातिवादक नाम पर सीनियर लोकनिसं समर्थन लेबाक बदला संगी लोकनिक संग विभागाध्यक्ष लग जा कय अपन ‘अपराध’ स्वीकारैत  क्षमा-याचनाक निर्णय लेल. ओहि में हमर सिद्धान्तहु कें  कोनो  ठेस नहिं पहुँचैत छलैक : विद्यार्थी छी. भूल भेल. गुरु माता-पिताक समान पूज्य थिकाह. जा कय क्षमा मांगि ली. आ सएह कयल.
कालेजक ओहि युग आ ओहि पक्षमें जखन विभागाध्यक्षक अप्रसन्नताक कारण कतेको छात्र वर्षों धरि एके विभागमें फेल होइत रहि जाथि, अंततः हमरा कोनो अवघात नहिं भेल. आ ओहि घटनाक करीब सैतालीस पछातियो ओ शिक्षक, डाक्टर भूपेन्द्र नारायण सिन्हा, हमरा स्मृतिमें पूज्य छथि. ओहुना डाक्टर भूपेन्द्र नारायण सिन्हा स्वभावसं मृदुभाषी रहथि. हमरा शिक्षकक अनुशासनप्रियता ओहुना नीक लगैछ.
किन्तु, क्षमा-याचना आ क्षमाक बीच ओहि दिन जे ज्ञान ओ हमरा देलनि ओ एखन धरि हमरा मोनो अछि, आ हमरा  कहबाक मोनो होइत अछि. स्पष्ट छैक, जखन क्षमा-याचनाले वरिष्ठ शिक्षक लग ठाढ़ हयब तखन भाषण सुनहिं पड़त. तथापि, ओहि दिनुका गप्प म सं दू टा विन्दु एखनो खूब नीक-जकां मोन अछि. सएह सुनू:
पहिल गप्प मुनि अष्टावक्रक रहनि. डाक्टर सिन्हा कहलनि, ‘ अष्टावक्र जखन मायक पेटेमे रहथि, माता-पिताक बीचक शास्त्रार्थक बीच बापक उक्तिकें अशुद्ध कहि देलखिन. फलतः, बाप श्राप द’ देलखिन आ ‘मुनिक’  शरीर आठ ठाम टेढ़ ( अष्टावक्र) भ’ गेलनि. अर्थात् गुरूक त्रुटि क उद्घाटनक परिणाम भयानक होइछ !'
दोसर गप्प, माताक गर्भमें पलैत शिशुक शरीरक रहैक. कहलनि, ‘आगू जखन प्रजनन आ प्रसूति-विज्ञान पढ़ब तं सीखब, जे, मायक गर्भमें पलैत, जाहि शिशुकक गरदनि नीचा झुकल,आ माथ छातीमें सटल रहैत छैक, ओकर जन्म सामान्य रूपें भ’ जाइत  छैक. एकर विपरीत,जं कदाचित शिशुक गरदनि (गौरवाह मनुख-जकां)  पाछू दिस तानल रहैत छैक, तं ओकर प्रसवमें शिशुक जान जेबाक खतरा तं रहिते छैक, मायक जान पर सेहो खतरामें रहैत छैक. तें, कालेजमें आयल छी, गरदनि झुका कय राखू, आ सहजतासं बहराइत चल जाउ. गरदनि जं अकड़ल रहत, तं  अकड़ल गरदनि बला  गर्भस्थ शिशु-जकां कालेजसं बहरायब ( पास करब ) कठिन भ’ जायत.’  हम ओहि गुरुदेव डाक्टर सिन्हाक व्यवहारिक सीखकें आइ धरि गेठरी बान्हि कय रखने छी !
तथापि, आब एतेक वर्षक पछाति कखनो-काल मन में ई भाव अबैत अछि जे यद्यपि हमर व्यवहार उचित नहिं छल किन्तु, की शिक्षक समुदायकें अपन अनुशासनक प्रति आत्ममंथन नहिं करबाक चाहियनि !  
[ नोट: एहि वर्ष ( फरबरी 2020 ) में कालेजक स्थापना दिवसकेर अवसरपर करीब तैतालिस वर्ष बाद हमरा ओहि परिसरमें जेबाक अवसर भेटल. एखन हमर सहपाठी डाक्टर हर्षनारायण झा दरभंगा मेडिकल कालेजक प्रिंसिपल छथि. देखल जे तहियाक ओ डिसेक्शन हाल एखनहु ओहिना अछि. किन्तु, तहिया आ एखुनका डिसेक्शन हालक अंतर ज़मीन आ आसमान सं कम नहिं. सम्पूर्ण हालमें  डिसेक्शन करबाक हेतु वा डिसेक्शन कयल एको टा शरीर नहिं ! भवन प्राकृतिक प्रकोपें आ सरकारी उदासीनताक कारण जर्जर अछि. प्रिंसिपल कहलनि, अगिला बेर आयब तं प्रायः ई भवन देखबाले नहिं भेटत. आब एहि भूमि ( वा दरभंगा मेडिकल कॉलेजक समाधि पर ) पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बनेबाक सरकारक योजना छैक. अपना आंखिंक आगाँ लगभग एक सौ वर्ष पुरान आ कम सं कम 150000 डाक्टरक दीक्षा-भूमि भूमिसात हेबा पर अछि. हमरा शोक हयब उचिते. ]

Tuesday, May 12, 2020

नेनपनक स्मृति

अपन ब्लॉग ‘आत्मवत्’ केर पन्ना सं : Monday, August 2, 2010,

नेनपनक स्मृति
नेनपन केर सब सँ पुरान स्मृति ? कहब मोसकिल अछि . मुदा जं चिर अतीत में भसिआइ, तं सब सँ पुरान आ भयावन स्मृति कमलाक बाढ़िक हयत. चारू दिस पसरल पानि, त्राहि-त्राहि करैत मनुक्ख , रंग-बिरंगक कीड़ा- मकोड़ा-साँप-बीछ आ असक्क माल-जाल. ने जयबाक बाट, ने खायाबक अन्न , ने जरयबा ले जारनि, आ ने रहबाले निचू चार . मुदा संतोष एतबे जे गाम में सबहक हाल मोटा -मोटी एके रंग रहै. तथापि सब के तं अपने जानक चिंता , अपने धिया-पुताक बेगरता . दिन भयावह लगै, आ राति पहाड़. ककरो टाटक घर भसि जाई, तं  ककरो भीत खसि पड़ैक. ककरो भीतक तर माल-जाल मरि जाई आ पतिया लगै, तं केओ अपनहि अपंग भ जाय.
तै पर सँ लागल जजात दहा जाई , पाकल आम लोक तोडि नहिं पाबय . रेलक पटरी बही जाई , बान्ह भासि जाई . सब कतौक बाट बन्न  जाई . लोक पड़एबो करत त कतय ? इएह ह थिक हमर सब सँ पुरान स्मृति जे एखन धरि मानस पटल पर शिलालेख-जकां पड़ल अछि .
सब सँ सुखद स्मृति ? पोखरि में भरि मोन चुभकब , गाछी में भट- भट खसैत पाकल आम बीछब- चोभा मारब . लातम,जामुक गाछ पर चढ़ब, बाड़ीक गुलाबखाश आमक डारि पर मचकी झूलब . छैठ-चौरचनक पकबान खायब , पंचमी-आर्द्राक खीर सपेटब, आ सरिसब बाला माछक झोर सुरकब.
ठनका सँ डर होइत छल आ ताश- पचीसी सँ दूर रहैत छलहुँ. अनका पढ़एब नीक लागैत छल मुदा लाल-बहिन माय के शिकायत करथिन तै सँ साकांछ रहैत छलहुँ.
दरबज्जा पर गाय छली ,मुदा मरखाहि. दूध नहिए, तरद्दुद ढेर. दादा बेसी काल बाहर रहैत छलाह . हुनका सँ डेरैत बहुत रही , तें नीके लागे.
अन्हरिया पक्ष में चोरहोक बड्ड हल्ला होई , राति में डरे सकदम्म भ’ कय सूती आ भोरे निःश्वास लैत उठी.
पढ़ैक जिज्ञासा अत्यंत छल मुदा गाम में शिक्षित लोकक संख्या बड्ड कम रहै; बाल-बर्गक गणित पढ़ओनिहार धरि केओ नहि. जीबू आ शिबू भाई सबसँ लग में आ सुलभ शिक्षक छलाह. स्कूल में मास्टर सेहो बुझाबथि. स्कूल जयबा काल गाछी सब में सब के भूत-प्रेतक डर होई.गामक चारू कात त गाछी- कलम छलैहे. ताहि पर सँ लकड़सुंघा बाबाजीक भय .संगी-साथी में छर्पा ( स्व. नारायण चौधरी ), नथुनी , राजिन्द्र ( ठाकुर) , दुखी (मंडल) , ठकनी ( प्रभा कुमारी ), मिथिलेश कुमारी , राम दाई आ, अपन लाल-बहिन ( दिवंगता शीला देवी) छलीह . खेलायाबाक खेलौना में कनैलक बीया , काचक गोली- गोलीक मनाही रहैक-, आ गेंद. दौड़-धूप, कबड्डी- कुश्ती सेहो होइक, मुदा हम ताहि सब सँ दूर रही , माय कहथि ई कमजोर छथि, पेट कहियो ठीक नहीं रहै छनि, डंडाडोरि हरदम डांड सँ खसैत रहैत छनि. कोना नहिं होइत , संतुलित आहार शब्द स्कूल में सुनने नहिं रहिए. स्वास्थ्य- विज्ञानक ककरो ज्ञान नहिं रहै . टीकाक नाम पर चेचक केर टीका होई जाहिमें एकेटा रोटरी- लांसेट स हेल्थ-वर्कर भरि स्कूलक नेना के पाचि देथिन. हैजाक टीका के ले केओ आबथि त चांगला चांगला सब स्कूल सँ भागि जाय , की त सुई सँ ज्वर भ’ जायत .
बहुत दिन भ' गेलै, बहुत लोक मरि गेल , बहुत गप्प बिसरि गेल .मुदा होइए ,एक बेर सबटा ओहिना देखतिअइ.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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