Sunday, July 31, 2022

सूक्ष्म आदर्श आ स्थूल प्रतीकक प्रासंगिकता

 

सूक्ष्म आदर्श आ स्थूल प्रतीकक प्रासंगिकता

राष्ट्रीय आदर्श आ मान्यता सूक्ष्म थिक. राष्ट्रीय आदर्शकें राष्ट्रक अस्मितासँ जोड़ने होसगर नागरिक स्वतः आदर्शक पालनक बाध्यता अनुभव करैत छथि. मुदा, सामाजिक परिस्थिति आ स्वार्थक कारण लोक आदर्श बिसरिओ जाइत अछि. तें, समय-समय पर समाज सुधारक  प्रेरक आ गुरु समाजकें कर्तव्य स्मरण दिअबैत छथिन. किन्तु, जखन चारूकात सामजिक मूल्यक ह्रास होबय लगैत छैक, आ जखन स्वार्थक बस मे लोक कर्तव्यसँ विमुख होमय लगैछ, तखन स्थूल प्रतीक सब, आदर्शक आ  सामाजिक मूल्यक स्थान लेबय लगैछ. एहना स्थिति मे सूक्ष्म आदर्श जहिना बिलाइत चल जाइछ, स्थूल प्रतीक जतबे पैघ होइत जाइछ. एखन,जखन विश्व भरि मे निरंतर सामाजिक मूल्यक ह्रास भए रहल अछि, सब ठाम स्थूल प्रतीक राष्ट्रीय संस्कारकें धकियौने जा रहल अछि. कोना ? से देखी. अपन कथ्यक पक्ष मे  हम दुनू प्रकारक  उदाहारण दैत छी, जे कोना विराट् स्थूल प्रतीक, सूक्ष्म मूल्यक रक्षा मे विफल भेल, आ कोना आदर्शक अवहेनाकें विराट् प्रतीकसँ झाँपल जा रहल अछि. निष्कर्ष अहाँ स्वयं निकाली. कारण, विचार मे भिन्नता आ दोसरक विचारक आदर लोकतंत्रक आत्मा थिकैक.

आब हमरा लोकनि पहिने किछु विराट् प्रतीक, आ पछाति सूक्ष्म मूल्यक परिस्थिति कें देखी.   

बामियान बुद्ध: अफगानिस्तानक बामियान क्षेत्र मे हेबनि धरि, करीब ८००० फुटसँ ऊपर ऊंच पहाड़ी क्षेत्र मे, महात्मा बुद्ध केर दू गोट मूर्ति रहनि. अनुमानित अछि, पहाड़क पक्खा पर बनल एहि मूर्ति सबहक निर्माण छठम् आ सातम शताब्दी मे भेल छल. एहि म सँ एक मूर्तिंक ऊंचाई ५५ मीटर आ दोसरक उंचाई ३८ मीटर रहैक. वर्ष २००१क घटना थिक. निर्माणक करीब १३ सँ १४ सौ वर्षक पछाति, ओतुका तत्कालीन शासक, तालिबानक, समर्थक लोकनिकें  बुद्धक ई मूर्ति सब अनसोहांत लगलनि. आ ओ लोकनि बामियान बुद्धकें ध्वस्त कए अपन ‘धार्मिक कर्तव्य’ पूर्ण कयलनि. किन्तु, सोचबाक विषय ई थिक जे, जं बुद्धक विराट् मूर्ति अफगानिस्तान मे अनंत काल धरि बौद्ध मान्यताक स्थायित्व निर्धारित कए पबैत तं बामियान बुद्धक अछैत, अफगानिस्तानसँ  बुद्ध नहि, बिलैतथि; बोधगयाक अछैत बिहारसँ बौद्ध धर्म नहि बिलाइत. मुदा, ई तं यथार्थ थिक ! बुद्ध ओहिना बैसले रहि गेलाह आ बौद्ध धर्म एहि दुनू क्षेत्रसँ बिला गेल छल !!

स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टी ( Statue of Liberty): अमेरिका मे स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टीक विशाल मूर्ति, ४ जुलाई १७७६ क दिन स्वतंत्र राष्ट्रक रूप मे अमेरिकाक उदय आ ओतुका दास प्रथाक समाप्तिक उद्घोष थिक. ओतय एहि मूर्तिक स्थापना २८ अक्टूबर १८८६ क दिन भेल छल. किन्तु, मूर्तिक स्थापना अमेरिका मे समान अधिकार आ व्यक्तिक समानता स्थापित करबा मे  सफल तं नहिए भेल, अमेरिकी सरकारी तन्त्र आ स्वयं समाज, अश्वेत नागरिकक स्वतंत्रताक विरुद्ध कतेक षडयन्त्र रचलक से ककरोसँ छपल नहि अछि. फलतः, मार्टिन लूथर किंग जूनियरकें स्टैच्यू ऑफ़ लिबर्टीक मूर्ति स्थापनाक करीब सौ वर्ष पछाति,१९५५ ई. मे समान अधिकारक हेतु अहिंसक आन्दोलन आरंम्भ नहि करय पड़ितनि. ओएह आन्दोलन अंततः हुनक प्राणक बलि सेहो लेलक. मुदा, अमेरिकी समाज मे कतेको अश्वेत एखनो ओहिना तिरस्कारक सामना करैत छथि, जेना भारत मे अनेक ठाम दलित आ आदिवासी जनजाति.

मुक्तिदाता ईसा (Christ the Redeemer) : हिओ द’ जानिरो, ब्राज़ील मे मुक्तिदाता ईसाक मूर्ति विश्व भरि मे स्थापित ईसाक तेसर सबसँ पैघ मूर्ति थिक. मुक्तिदाता ईसाक एहि मूर्तिक निर्माण समाज मे पसरैत ‘अनीश्वरवादी प्रकृति’क निराकरणक उद्देश्यसँ  प्रेरित छल. संसार भरिक कैथोलिक लोकनिक आस्थाक केन्द्र ई मूर्ति समाज मे खंडित होइत धार्मिक प्रवृत्तिक संरक्षण में कतेक हद धरि सफल भेल अछि, से आँखिक सोझाँ अछिए.

राष्ट्रीय ध्वजक आकारक ओदौद:  फ्लैग कोड ऑफ़ इण्डियाक नियमानुसार राष्ट्रीय ध्वजक न्यूनतम आकार १५  सेंटीमीटर गुणा १० सेंटीमीटर आ अधिकतम आकार ६३० सेंटीमीटर गुणा ४२० सेंटीमीटर निर्धारित अछि. आकार अतिरिक्त राष्ट्रीय ध्वजक मर्यादा सेहो भारतीय संविधान मे विहित अछि. मुदा, आइ जखन राजनेता, आ समाजक सबल वर्ग, प्रतिदिन संवैधानिक नियमक उल्लंघन कए रहल छथि, ध्वजक आकार, राष्ट्रीय मूल्यक स्थान लेने जा रहल अछि. फलतः समाजक जे वर्ग सबसँ बेसी झंडा फहरबैत अछि, कानूनक सबसँ बेसी उल्लंघनो ओएह वर्ग करैछ ! देशक विभिन्न भाग मे न्यायालय सब मे राजनेता लोकनिक विरुद्ध लंबित आपराधिक मामलाक संख्या एकरा प्रमाणित करैछ. तखन सामान्य नागरिकक मन मे ई प्रश्न  उठब उचिते: की बहुतो लोकक दृष्टि मे राष्ट्रध्वजक आकार राष्ट्रीय मूल्यसँ अधिक महत्वपूर्ण तं नहि भए गेले ?  

रामानुजार आ समताक मूर्ति : संत रामानुजार भक्ति आन्दोलनक स्तंभ थिकाह. हुनक विचार आ व्यवहार लाखों मनुष्यक प्रेरणाक श्रोत थिक. हेबनि मे संत रामानुजारक पंचलोहक विशाल मूर्ति तेलंगाना राज्य मे स्थापित भेले. सुनैत छी, चीन मे निर्मित समताक मूर्ति नामक एहि मूर्तिक ऊंचाई २१६ फुट छैक. की एतेक महान संतक एहन आडम्बर पूर्ण प्रतीक, संतक संदेशक अपमान नहि थिक ! की ई मूर्ति हुनक विचारक पराजय नहि थिक ? प्रश्न उठैछ, की रामनुजारक मूर्तिक आकार हुनक विचारसँ पैघ भए गेल !!  एकर उत्तर देबा मे अनेको वैष्णवकें ठकमुड़ी लागि जेतनि.

सरदार पटेल आ एकताक मूर्ति : एकताक मूर्तिक नामे प्रसिद्द, नर्मदाक कछेर पर स्थापित सरदार पटेलक मूर्ति विश्व केर सबसँ पैघ प्रतिमा थिक! मुदा, विराट् मूर्ति लग ठाढ़ मनुष्य एहन बौनवीर प्रतीत होइछ, जे हुनक पयर लग ठाढ़ भए ओ हुनक छविओ नहि देखि सकैछ. एहि योजनाक व्यय,आ पर्यावरणक असंतुलन मे एहि योजनाक योगदान एहि लेखक विषयसँ भिन्न थिक. हं, एतबा तं अवश्य जे ३१ अक्टूबर २०१८क एहि मूर्तिक अनावरणसँ पूर्व जखन सम्पूर्ण कच्छ जिला आ आसपासक छौ गोट आओर तहसील भयानक रौदी आ पानिक भयानक अभावक चपेट मे छल, तखनो उद्घाटनक अवसर पर मूर्तिंक चारूकातक बनाओल गेल कृत्रिम झीलकें भरबाक हेतु सरदार सरोवर डैमसँ पर्याप्त पानि छोड़ल गेल. सुनैत छी, डैमसँ आयल पानिकें पंप द्वारा पुनः डैम दिस आपस करबाक व्यवस्था सेहो सुनिश्चित कयल गेल छल ! की सरदार पटेल अपना जीवन काल मे लगभग ३००० करोड़ रुपैयाक एहन योजनाक मंजूरी दितथि ? पहाड़क मस्तककें ढाहि राष्ट्रपिताओक स्मारकक निर्माण करितथि? मुदा, समयक संग-संग परिपाटीओ बदलैत छैक, समृद्धिक संग प्राथमिकताओ बदलैत छैक ताहिसँ के असहमत हएत.    

अशोक स्तंभ  आ संसद भवन

अशोक स्तंभ राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न थिक ! उपलब्ध अशोक कालीन स्तंभ पुरातन थिक ! संसद भवन लोक सभा थिक. जनताक आकांक्षाकें अभिव्यक्ति देबाक हेतु, आ ओकरा साकार करबाक हेतु सांसद एतय एकत्र होइत छथि. किन्तु, जखन लोकसभा मे लोकहितक चर्चा निरंतर थोड़ भए रहल अछि, प्रस्तुत बिल पर गंभीर मंथनक परंपरा मरि रहल अछि, तखन प्रायः पैघ राष्ट्रीय प्रतीक चिह्ने टा सांसद लोकनिकें संसदक गरिमाक स्मरण करबैछ. प्रश्न उठैछ, की विशाल अशोक-स्तंभ संसदक गरिमाक पर्याय थिक ! की संविधानक शपथ लेनिहार सांसद लोकनिकें संसदीय मूल्यक स्मरणक हेतु आँखिक सोझाँ मूर्त अशोक स्तंभकें राखब आवश्यक अछि. वा ई एहि बातक संकेत थिक जे सांसद लोकनि अपन शपथ तेना बिसरि रहल छथि जे केवल संसद भवन पर स्थापित विशाल सिंहहि टा हुनका लोकनिकें कर्तव्यक स्मरण दिआ सकैत छनि? ई सब किछु सोचबाक थिक.

सोचबाक कारण एकटा आओर. १७/२/२२ क बंगलोरसँ प्रकाशित दैनिक ‘हिन्दू’ मे भारतक सर्वोच्च न्यायालयक मुख्य न्यायाधीशक एक वक्तव्य छपल छल. एहि वक्तव्य मे मुख्य न्यायाधीश एन भी रमना कहैत छथि:’अकारण आ जल्दीबाजी मे गिरफ्तारी, लम्बा अवधि धरि विचाराधीन कैदीक जेलबंदी, (पुलिस द्वारा) जमानतकें लगभग असंभव करब, एहि  तथ्यक प्रमाण थिक जे व्यवस्था मे परिवर्तन अत्यावश्यक अछि.’  

मुख्य न्यायाधीश आगू कहैत छथि, ‘हमरा लोकनि आपराधिक दण्ड व्यवस्थाक प्रक्रिया स्वयं दण्ड थिक. एकरा अबिलंब बदलब आवश्यक अछि. (कारण) सम्पूर्ण भारत मे जेलबंद  कुल छौ लाख १० हज़ार कैदी म सँ ८० प्रतिशत कैदी, विचाराधीन कैदी छथि.’

ततबे नहि, नई दिल्लीसँ प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ प्रकाशित एक समाचार मे मुख्य न्यायाधीश रमना केर दोसर वक्तव्य छपल अछि. १६/७/२०२२क दिन  राजस्थान विधान सभा द्वारा आयोजित ‘ संसदीय लोकतंत्रक ७५ वर्ष’ नामक आयोजनक अवसर पर भाषण दैत मुख्य न्यायाधीश रमना ‘वर्तमान भारत मे राजनितिक प्रतिपक्षक सीमित होइत भूमिका, बिना वाद-विवाद आ गहन छानबीनक (विधायिका द्वारा) कानून पास करबाक परिपाटी, आ सत्ता एवं विपक्षक बीच ‘शत्रुताक भाव’ पर खेद व्यक्त केलनि. ओ इहो कहलनि, ‘ई लोकतंत्रक हेतु स्वस्थ परंपरा नहि थिक.’     

दोसर दिस जं भारत मे प्रेस स्वतंत्रताक दिस नजरि घुमाबी. एहि विषय पर ५/५/२२क, चेन्नईसँ प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दू’ मे ‘प्रेस स्वतंत्रताक सूचकांक मे भारतक स्थान’ नामक लेख मे पत्रकार जी संपत लिखैत छथि, ग्लोबल मीडिया वाचडॉग, ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा प्रकाशित अद्यतन रिपोर्ट मे विश्व केर १८० देशक बीच, प्रेस स्वतंत्रताक सूचकांक मे भारतक स्थान १५०म अछि; पछिला वर्ष एहि सूची में भारत १४२म स्थान पर छल.’

उक्त रिपोर्ट मे कहल गेल अछि, जे पत्रकारक विरुद्ध हिंसा, राजनीतिसँ प्रेरित पत्रकारिता, आ पत्रकारिताक स्वामित्व पर बढ़ैत एकाधिकारक कारण, पत्रकारिताक हेतु भारत एखन विश्व मे सर्वाधिक खतरनाक देश म सँ एक अछि.’

मुख्य न्यायाधीश रमनाक उक्त दो गोट कथन आ भारत मे  प्रेस स्वतंत्रताक वर्तमान स्थितिक उपरोक्त रिपोर्टकें जं  मिलान करी, तं एतबा अवश्य प्रतीत होइछ जे संसद भवन पर एतेक पैघ अशोक स्तंभक स्थापनाक एहिसँ बेसी उपयुक्त समय भारत मे आओर कहिओ नहि छल. संगहि, एहि मे अविश्वासक कोनो संभावना नहि जे  संसद भवन दिस अबैत जाइत, विधायिका आ  कार्यपालिकाक सदस्य लोकनिक दृष्टि एहि विशाल राष्ट्रीय प्रतीक पर पड़बे टा करतनि, आ हुनका लोकनिकें अपन शपथ मन पड़बे टा करतनि. जं से भेल तं भारतक भविष्य आ लोकतंत्र सुरक्षित अछि.

अंतिम विन्दु: अशोक स्तंभ पर विराजमान सिंह केर छवि पर उठल विवाद पर पुरातत्वविद माथापच्ची करथु. नवका प्रतीक चिह्न पर प्रदर्शित सिंह, शान्त एवं गंभीर अछि, वा आक्रामक आ भयानक तकर निर्णय ओएह लोकनि कहथु. नहिं, तं संविधानक भाष्यकार, माननीय सर्वोच्च न्यायालय तं छथिए. ओना आँखि तं हमरो अहाँकें अछिए. प्रश्न उठैछ, अशोक स्तंभक निर्माण पर कतेक खर्च भेलैक ? तकर उत्तर एतबे: सरकार लग धन छैक, तं धनक व्यय ओ कोना करय, से सरकारक अधिकार थिक. हं, प्रश्न पुछबाक  अधिकार जनता आ जन प्रतिनिधि दुनूकें छनि. ओ अपन अधिकारक उपयोग अवश्य करथु.   

 

Wednesday, July 20, 2022

जीतन

जीतन

जीतन. नेनपनक चिन्हल. सब काज आगू बढ़ि करैवला, पंथक पाकड़ि छलाह, जीतन .१९७१ ई. मे जखन हम गाम छोड़ैत रही हम हुनका कहने रहियनि, ‘ ई दवाई बन्द नहि करिहह.’ गप्प प्रायः १९६७ ई थिकैक. जीतनक हाथक आंगुर में पोरे-पोर घाव भए गेल रहनि. केओ कहलकनि, ‘ डिठौरी थिकह. झड़बा लैह. दोसर केओ कहलकनि, ‘ गरमीक फोका थिकह.’ केओ आन कहलकनि, ‘चानन लगाबह.’किन्तु, घाव सुखयला पर जखनि, आंगुरक पोरक टुरनी सब छोट भए गेलनि तं जीतन अपनहुँ चौंकलाह. हमरा लोकनिक संपर्क (दरभंगा मेडिकल कालेज) लहेरिया सराय अस्पतालसँ छल. हम हुनका दरभंगा लए गेलियनि. चर्मरोग विशेषज्ञ ‘ ‘हैन्सन डिजीज’ कायम केलखिन. फलतः, हमरो लोकनि चौंकलहुँ; तहिया तं हम मेडिकल कालेज मे प्रवेशो नहि केने रही.

हैन्सन डिजीज’ अर्थात् कुष्ठ ! महारोग !!

पहिने तं लोक कुष्ठकें पूर्व जन्मक पापक फल  बूझैत रहैक. उपरसँ रोग संक्रामक रहैक. तें, लोक कुष्ठ रोगीकें परिवारे नहि, शहर-नगर धरिसँ बहार कए दैक. दरभंगा मे के नहि विकलांग कुष्ठ रोगी सबकें भीख मंगैत देखने हेतैक. हमरा मन पड़ैत अछि, करीब १९८१ वर्षक गप्प थिक. एकटा वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ आ हमर शिक्षक, मोतियाबिंदुक ऑपरेशन ले आयल, एक निकट संबंधीकें ऑपरेशन टेबुल परसँ केवल एहि हेतु उतारि देने रहथिन, कारण, हुनका हैन्सन डिजीज’ रहनि ! आब तं हम अपने सैकड़ो ‘हैन्सन डिजीज’क रोगीक ऑपरेशन कयने हयब. पोखरा नेपालक ग्रीन पास्चर्स हॉस्पिटलक ढेरो रोगी हमरा लग अबैत छल. खैर.

जीतन समांग छलाह. पंथक पाकड़ि छलाह. हुनका भगा देबनि कहिओ ई प्रश्नो नहि मन मे आयल. ततबे नहि जं हिनका बिदा कए देल वा ई अपने भागि गेलाह, तं प्रायः इहो ‘ कोढ़िया’ लोकनिक ओहि समूह मे बिला जेताह जे शहर सब में भीख मंगैत देखल जाइत अछि. ओहि भिखारिकें केओ दूरसँ एकटा कैंचा फेकि दैत छैक वा केओ मुँह फेरि चलि दैछ.

पछाति, टी बी जकाँ ‘हैन्सन डिजीज’क हेतु सेहो ‘मल्टी ड्रग थेरापी’ आरंभ भए गेलैक.आब भारत कुष्ठरोग-मुक्त  घोषित भए चुकल अछि. मुदा, सत्तरिक दशक मे लगभग एके टा औषधि- डैप्सोन- रहैक. ओकर खुराक क्रमशः बढ़ाओल जाइक. तरीका  मोन राखब जीतन सन अशिक्षित ले कठिन छलैक. हमरा लोकनि ओकर समाधान निकालल. दरभंगासँ मुफ्त दवाई आनब हमर ड्यूटी छल. नियमानुसार जीतनकें दवाई देबाक भार हमर स्वर्गीय माता लेलनि. फलतः, कतेक वर्षक निरंतर उपचारक बाद जीतन स्वस्थ भेलाह. तावत् जनसामान्यो मे हैन्सन डिजीज’क प्रति चेतना जगलैक. हैन्सन डिजीज’क निदान आ चिकित्सा मे नव परिपाटीक सूत्रपात भेलैक. फलतः, हैन्सन डिजीज’ ने महारोग रहलैक, ने दुर्निवार, आ ने पूर्वजन्मक फल. मेडिकल कालेज मे पढ़ैत हमरा अपनो ‘हैन्सन डिजीज’क क्षेत्र में होइत परिवर्तन ज्ञान भइए गेल छल.

किन्तु, अनंत कालसँ चल अबैत धारणा बदलबा मे समय लगैत छैक.  डाक्टरी में रोगक इलाज छैक. मुदा, भयक इलाज कठिन छैक. रोगीक मनोबल पर पड़ल आघातक चिकित्सा सुलभ नहि छैक. कुष्ठरोगक भले इलाज संभव भए गेलैक, किन्तु ओकर कारण बहुतो रोगी विकलांग तं भइए जाइत छल.  जीतन विकलांग नहि भेलाह. चिकित्सासँ रोग निर्मूल भए गेलनि. फलतः, रोगक सुधारक संग जीतनक अपन चिन्ता सेहो कम होइत गेलनि. सबसँ बड़का संतोष ई जे हुनक बेटी, मंगली, दोसर बेर टुअर नहि भेलनि. दोसर गप्प इहो जे रोग भेलनि, इलाज भेलनि, ठीक भेलाह, मुदा, गाम मे ककरो किछु बुझबो मे एलैक जे हिनका कोनो कठिन रोग भेल रहनि. कारण, कुष्ठरोग भेने केओ कदाचिते बिछाओन धरैत अछि.

खैर, बहुत दिन बीतल. जीतनक बेटा लोकनि कलकत्ता, डिल्ली, अलीगढ़, सूरत रहय लगलखिन. लोक कहय लगलनि, अपने कमायल खाइत छह, घर आँगन छहे. की डाक्टर साहेबक दलान पर धड़फड़निया देने रहै छह !

मुदा, जीतनक हेतु धनि सन. हाथी चलय बजार, कुत्ता भुके हज़ार. कखनो मोन खोंझाइत रहनि, कहथिन-‘ मर बंहि, धड़फड़निया देने रहै छी हम, माथ दुखाइत छौ तोरा सबकें ! आइ हम ई दरबज्जा छोड़ने रहितहुँ तं तों सब पतिआनी मे बैसि कए खाइओ दितें ! लोटना बिसरि गेलौक. भरि टोल कहैक जे गउ गरासक चाउर चोरा कए खेलें एसगरे. आब कुष्ठ फुटलौए त टोल पर रहबें. हमरा कुष्ठ फूटल. डाक्टर साहेब दरभंगा ल’ गेलाह. बौआसिन अपने हाथें गोटी खाइ ले हमर तरहत्थी पर राखि देथि. ओ लोकनि हमर घाव सेहो धोलनि. नीकें भेलहुँ. केओ बुझलही. हम ओही थारी मे खाइत रहलहुँ. ओही दरबज्जा पर सुतैत रहलहुँ. तों सब लोटनाकें टोल पर सं बैला दै गेलही. डाक्टर साहेब अपन दुधपीबा बच्चा कहियो हमरा कोरासँ छिनलनि ?'

टोलबैया सबकें जवाब नहि फुरलैक.      

१९८१ ई. दादा मरि गेलाह. जीविका भेटब सुलभ नहि रहैक. हमरा दादाकें मरणासन्न छोड़ि दिल्ली जाए पड़ल. दादा चलि गेलाह. हम दिल्लीए मे रही. गाम आपस एलहुँ. जीतन कोनिया ओसरा पर अपन चौकी पर बैसल छलाह. जीतनक चौकी दादाक चौकीक समानान्तर कहियासँ लागल रहनि, हमरा ठीकसँ स्मरण नहि अछि. जीतन हमरा देखिते भोकारि पाड़ि कए कानए लगलाह: ‘ बौआ, आब एसकरे दरबज्जा पर बैसल रहब.  बड़का बौआ कते तमसाइत छलाह, कते बिगड़ैत छलाह. तैयो राति- बिराति कहथि, ‘ जीतन तमाकू लेबह ? दुखित पड़ला. तमाकू छूटि गेलनि.  कहथि, तोर दुआरे तमाकू छोड़ि देल ! जखन-तखन कहितें, ‘ बौआ एक ज़ूम तमाकू छै ? जोत्तोरी के ! छोड़िये देल !! मुदा, कहियो काल बुन्नी- बिकाल मे गाम परसँ एबा में अबेर भ जाय तं अपने, चोरबत्ती ल कए टोल पर पहुँचि जाथि. कहथि, ‘ चलह, अन्हार, धोन्हार के कोन ठेकान! आब तं टौआइते रहब !!’ आ जीतनक गरा फेर बाझए लगलनि.

दादा चल गेलाह. जीतन दरबज्जा पर एसगर भए गेलाह. मुदा, अपन ठाम नहि छोड़लनि. केओ टोनि दैनि तं कहथिन, ‘ रौ, हम ककरोसँ किछु मंगै छियौ. हम कोनो नौकरी करै छी. बच्चा-बुच्चीक लोभे पड़ल रहै छी. जहिया मरि जायब, तहिया जा क’ क’ दिहें किरिया करम !'

पछाति हमर भातिज डाक्टर पंकज जी अवाम मे रहि प्रैक्टिस करब आरंभ केलनि. ओ सपरिवार अवाम मे रहय लगलाह. जीतन कें फेर दोसराति भेटी गेलखिन. जीतन कें आओर भर भए गेलनि. आदरक शब्द आ मुफ्त दबाई भेटब ओहिना रहलनि जेना पहिने. पंकज कें जीतन कनहा पर चढ़ओने रहथिन, कोरा-कांख खेलओने रहथिन. तं एतबा तं जीतनक अधिकार रहबे करनि. मुदा, जीतन बूढ़ा रहल रहथि अवश्य. पंकज कखनो काल चौल करथिन, ‘की मनेजर, कलमी आमक डारि, कि जामुन ? नहि, कहब तं एकटा कटहरेक फेंड़ कटबा देब !'

जीतन बिहुँसथि आ कहथिन, ‘सहजहिं, सब गाछ मे तं पानि ढारनै छिऐक. अहूँ सब कें तं कन्हा पर चढ़ौनहि छी. जाधरि जीवै छी, बड़ बेस. जखन लोथ भए जायब तं अहाँ सब सोंगर लगा देब. जखन मरि जायब तं ई गाछ बिरिछ सब पार लगा देत.’

१९९६ क अगस्त मे मायक चिट्ठी आयल: ‘जितना बड़ दुखित छथि. लगैए नै बचतै.’ सोचलहुँ, गाम नहि जा सकब, तैयो जहाँ धरि भए सकत, चिकित्सा मे सहायता कए देबनि. दाई यथासाध्य सहायता केलखिन. पंकज तावत् गाम छोड़ि चुकल रहथि. मुदा, जीतनकें तकर बाद बेसी दिन नहि ठहरलाह. दसमीक पूजा चलैत रहैक. दुइए दिनक बाद गामसँ चिट्ठी आयल, ‘जितना नवमी दिन मरि गेलाह. अहाँक बड्ड चर्चा करैत छलाह.’

चर्चा तं कखनो काल हमरो लोकनि आबहुँ  करैत छियनि,. मुदा, मन तं सतत पड़ैत छथि. सपनामे एखनो अबैत छथि, जीतन ! आब ओहन लोक कतय पाबी. आब ओहि पीढ़ीक ओहन लोक गाम मे बिरले भेटताह !   

Tuesday, July 12, 2022

पुरान डाक्टरी रिकॉर्ड राखि अपन चिकित्सा मे सहायक बनी

 

पुरान डाक्टरी रिकॉर्ड राखि अपन चिकित्सा मे सहायक बनी

रोगकें चिन्हब उचित चिकित्साक पहिल आवश्यकता थिक. रोगकें चिन्हबाक प्रक्रियाकें ‘ निदान’ वा diagnosis कहल जाइछ. चिकित्सा शास्त्रमे रोग निदान ( diagnosis) क हेतु तीन टा मुख्य प्रस्थान विन्दु अछि: रोगक लक्षण आ रोग इतिहास (history), रोगीक शरीरक परीक्षा ( clinical examination), आ जांच-पड़ताल( investigations). रोगीक मेडिकल रिकॉर्ड सेहो रोगक इतिहास (history)क अनेक विन्दु म सँ  एक थिक. संयोगसँ  चिकित्सा-शास्त्रक  आधुनिक विकासक संग-संग, जेना-जेना जांच-पड़ताल( investigations)क सुविधा आ संख्या बढ़लैक अछि, रोगक विकासक इतिहास (history), रोगीक शरीरक परीक्षा ( clinical examination) क्रमशः गौण होइत गेलैए. मुदा, एकर महत्व कम नहि भेलैए.

जेना कहल, रोगक इतिहास (history)क अनेक आयाम छैक. मुदा, एतय हम रोगक इतिहास (history) म सँ एक, चिकित्साक इतिहास आ मेडिकल रिकॉर्ड पर अपन ध्यान केन्द्रित करी. एकर कारण हमर अपन अनुभव अछि. पैसा-कौड़ी नहि हेड़ाए एहि हेतु सब साकांछ रहैछ. ई अनुभव थिक. मुदा, मेडिकल रिकॉर्ड लोक कदाचिते सम्हारि कए रखैछ. ई हमरा हरदम अखरैत रहल अछि. अस्तु, एहि लेख मे उचित चिकित्सा मे डाक्टरी रिकॉर्डक उचित रखरखावक महत्वकें रेखांकित करब हमर ध्येय अछि.

चिकित्सा शास्त्रमें रोगक विकासक इतिहास (history) कें अनेक भागमे विभक्त कयल जाइछ. रोगक चिकित्साक इतिहास ओकर केवल एकटा किन्तु महत्वपूर्ण अंग थिक. रोगी वा परिचारकक देल सूचना आ डाक्टरी रिकॉर्ड ( medical record) चिकित्साक इतिहासक दू गोट श्रोत थिक. एहि म सँ  डाक्टरी रिकॉर्ड रोगक चिकित्सा मे हेतु कोन रूपें सहायक होइछ से विन्दु-विन्दु देखल जाय. संग-संग किछु उदाहरण सेहो देखबैक.

उत्तम कोटिक डाक्टरी रिकॉर्ड देखला सबसँनिम्न लिखित सूचना सोझे उपलब्ध भए जाइछ:

            - व्यक्तिक रोगक इतिहास

            - जांच-पड़तालक परिणाम

- रोगक निदान, आ निदान मे भेल चूक

            - औषधिक प्रभाव आ दुष्प्रभाव

            -  ऑपरेशनक  परिणाम

            - कानूनी साक्ष्य (medicolegal evidence) 

आब उपरोक्त प्रत्येक विन्दु पर क्रमशः विचार करी.

व्यक्तिक रोगक इतिहास

सामाजिक परिस्थिति, जलवायु, भोजनक परिपाटी, आ जीवन पद्धतिक अनुकूल प्रत्येक समाज आ प्रत्येक युग आ भूभाग मे किछु प्रकारक रोग आम होइत छैक. जेना, अविकसित आ गरीब देश मे टी बी, कुपोषण, मलेरिया, अनीमिया. समृद्ध समाज मे  मधुमेह( diabetes), उच्च रक्तचाप ( high blood pressure), मदिरा सेवन, मानसिक रोग, आदि. ई रोग सब किछु आन रोग सबकें नोति अनैछ. जेना, डायबिटीजसँ आँखि, ह्रदय, स्नायु, किडनी, आ चमड़ाक रोग. उच्च रक्तचापसँ ह्रदय रोग, किडनीक रोग, पक्षाघात आ आँखिक रोग. मदिरा सेवनसँ लीवरक रोग आ कुपोषण. नेनाक कुपोषणसँ आँखिक समस्या आ शारीरिक विकासक ह्रास, इत्यादि. अतः, पुरान मेडिकल रिकॉर्डसँ एहि प्रकारक रोगक जानकारी भेने, चिकित्सक ओहि आन सब अंगक विशेषतः परीक्षा करैत छथि, जाहि पर मूल रोगक दुष्प्रभावक अंदेशा रहैत छैक. समय रहैत जाँच आ उपचारसँ अचानक नव रोगसँ   रोगीक रक्षा होइत छैक.        

रोगक निदान

रोगक निदान शब्द जतेक सरल बूझि पड़ैछ, ई ओतेक सुलभ नहि. तथापि, कतेको रोगक निदान देखिते संभव होइछ, जेना, घेघ, आँखिक टेढ़/ डेढ़ हएब. कतेको रोगक निदानमे सब प्रयासक पछातिओ सफलता नहि भेटैछ. कतेक बेर तं चिकित्सा करैत-करैत रोगक प्रकृति बुझबा मे अबैछ. तथापि, सामान्य परिस्थिति मे अधिकतर रोगक निदान संभव होइछ. निदान संभव भेल तं चिकित्साक रास्ता खूजैछ. मुदा, आशानुरूप परिणामक अभाव मे उपलब्ध प्रमाणक आधार पर रोगक सही वा त्रुटिपूर्ण निदान स्पष्ट भए जाइछ. संभव छैक, त्रुटिपूर्ण निदानसँ रोग मे सुधार नहि हेतैक आ रोगी स्वयं ई बूझि जयताह. मुदा, से सदा होइत नहि छैक. मूलतः तखन, जखन रोग में अंशतः सुधार होइत छैक, वा रोगक लक्षण बहुत बेसी कष्टदायक नहि होइछ. तथापि,  रोग बढ़ला पर निदान आ चिकित्साक पुनर्मूल्यांकन आवश्यक भए जाइछ. एहन परिस्थिति मे मेडिकल रिकॉर्ड त्रुटिक पहचान मे सहायक होइछ.

जांच-पड़तालक परिणाम

बहुत दिन पूर्व पढ़ने रही: ‘केवल जांच-पड़ताल करब पर्याप्त नहि, परिणामक उचित निष्कर्ष निकालबाक ऊहि आ दृष्टि सेहो चाही.’ ई उक्ति सोलह आना सत्य. एकटा उदाहरण दैत छी: बहुत दिन पूर्वक गप्प थिक. हमरा लग आँखिक एक रोगी आयल रहथि. भारतीय सेनाक सैनिक. हुनका शान्तिकालीन युद्ध-अभ्यास मे आँखि मे  चोट लागल छलनि. समय पर ऑपरेशन भेलनि. आँखिक रोशनी मे सुधार भेलनि. मुदा, किछुए दिनक पछाति, आँखिक रोशनी मे पुनः ह्रास होमए लगलनि. ओ ओही समस्याक हेतु हमरा लग आयल रहथि.

विकसित देश जकाँ, सेना मे सैनिकक मेडिकल रिकॉर्ड रखबाक नियम छैक. ततबे नहि अस्पताल मे भर्ती भेला पर रिकॉर्ड सब ठाम रोगीक संग-संग जाइत छैक. आ आवश्यक भेला पर पछिला रिकॉर्ड डाकसँ मंगयबाक सुविधा छैक. उपरोक्त सैनिकक परीक्षाक संग-संग हम हुनक रिकॉर्डक जांच कयलहुँ. तं स्थिति साफ़ भए गेल. वस्तुतः, चोटक समय ओहि सैनिकक आँखिक डिम्हा मे धातुक एकटा सूक्ष्म कन्नी चल गेल रहनि. से मेडिकल रिकॉर्ड मे उपलब्ध पुरान एक्स-रे मे साफ़ छल. किन्तु, ऑपरेशनक रिकॉर्ड मे आँखि म सँ  धातुक ओहि टुकड़ा के निकालबाक चर्चा नहि छलैक ! अस्तु, संभव छैक, रोगीक एक्स-रे चाहे तं देखल नहि गेलैक, वा देखला पर एक्स-रे मे उपलब्ध साक्ष्य पर पहिल डाक्टरक नजरि नहि गेलनि !

ततबे नहि, हाल-साल मे कयल एहन जाँच-पड़ताल जाहिसँ किछु रोग स्वतः प्रमाणित होइछ वा निरस्त भए जाइछ, तकरा दोहरयबाक काजो नहि होइछ. फलतः, ओहिसँ अर्थ आ समय दुनूक बचत होइछ. ज्ञातव्य थिक, किछु जाँच-पड़ताल एहनो होइछ- जेना, एक्स-रे आ सीटी स्कैन . बेर-बेर एक्स-रे आ सीटी स्कैन  शरीरक हेतु हानिकारक होइछ.

सर्वविदित अछि, अपना ओतय जनताक स्वास्थ्य आ चिकित्साक हेतु कोनो एक संस्थाक जिम्मेवारीक अभाव मे जनसाधारणक स्वास्थ्य संबंधी रिकॉर्ड कतहु भेटब असंभव. संभव अछि, भविष्य मे एहि दिशा मे प्रगति हो.   

औषधिक प्रभाव आ दुष्प्रभाव

प्रत्येक औषधि एक, वा एकाधिक रसायनक संयोग थिक. चिकित्सा-शास्त्र मे एहन कोनो औषधि नहि भेटत, जकर कोनो दुष्प्रभाव नहि होइक. मुदा, जहाँ आम औषधिक अधिकतर दुष्प्रभाव मामूली होइछ, दोसर किछु औषधिक दुष्प्रभाव सामान्यो खोराक मे रोगीक हेतु सहन करब कठिन होइछ. तथापि, ई बड़का समस्या नहि. बड़का समस्या थिक औषधिक दूरगामी आ स्थायी दुष्प्रभाव. चिकित्साक रिकॉर्ड देखलासँ अनुभवी चिकित्सक  ध्यान ओम्हरो जाइत छनि. दू गोट उदाहरण देखी:

(क)    एक टा छोट नेनाकें करीब पाँचे बरखक वयससँ प्रति वर्ष गरमीक मास मे आँखिक नोचब आ लाली शुरू भए जाइक. अनुभवी चिकित्सक तेहन औषधि देथिन जे समस्या तुरत समाप्त भए जाइक. तें, प्रत्येक जांच मे डाक्टर एहि नेनाक हेतु ओएह औषधि लिखैत गेलाह. किन्तु, एकाएक दस वर्षक वयस  मे नेनाकें सूझब कम भए गेलैक. फलतः, दोसर डाक्टर जखन परीक्षा केलखिन तं साबित भेल जे निरंतर corticosteroid रसायनक प्रयोगसँ नेनाक दुनू आँखि मे तेहन मोतियाविन्दु आ ग्लौकोमा भए गेलैक जे दसे वर्षक वयस मे मोतियाविन्दुक ऑपरेशन करय पड़ि गेलैक ! ई लापरवाही भेल. मुदा, नोकसान तं भए गेलैक. उचित छलैक जे पहिल डाक्टर औषधिक एहि दुष्प्रभावक प्रति सजग रहितथि.

(ख)   मध्यवयसाहु महिला. हाई ब्लडप्रेशर. किडनी मे पाथर. ऑपरेशन भेल. पाथर तोड़ल गेल. फेर पाथर. फेर तोड़ल गेल. मुदा, डाक्टरक ध्यान ओम्हर नहि गेलनि जे आखिर एहि रोगीकें पुनः-पुनः किडनी मे पाथर किएक होइत छनि. पछाति दोसर ठाम रक्तक जाँचसँ महिलाक पैराथाइरॉइड ग्रन्थिक होर्मोनक अत्यधिक स्राव कायम भेलनि. फलतः, कंठ मे स्थित पैराथाइरॉइड ग्रन्थि ऑपरेशनसँ निकालल गेल. आब किडनी में पाथर बनब स्वतः बन्न भए गेल छनि !             

ऑपरेशन आ ऑपरेशनक  परिणाम

अनेक रोगक एकाधिक भिन्न-भिन्न ऑपरेशनक विधान छैक. रोगीक शरीरक परीक्षासँ बहुतो तथ्य स्वयं सोझाँ अबैछ. किछु सरलतासँ, किछु जाँच पड़तालसँ. जेना, हर्निया वा हाइड्रोशीलक पछाति रोगीकें स्वतः परिणाम बुझबा मे आबि जाइछ. मोतियाबिंदुक ऑपरेशनक पछाति, आँखिक रोशनी मे  सुधार स्वयं परिणाम बुझबा मे आबि जाइछ. मुदा, कोनो स्त्रीक  वंध्याकरणक ऑपरेशन सफल भेलैक कि नहि, से रोगीके तुरत बुझब कठिन. तें, मेडिकल रिकॉर्डक परीक्षासँ चिकित्सककें पहिने भेल चिकित्सा आ ऑपरेशनक परिणामक अनुसार चिकित्साक योजना बनयबा मे सहायता होइत छनि.

कानूनी साक्ष्य (medicolegal evidence) 

‘औषधोजाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरिः’ कोनो युगक हेतु ने सत्य छल, ने आइ अछि. औषधि रसायन थिक, चिकित्सक वैज्ञानिक थिकाह. ततबे. तखन, जेना रसायनक गुण आ दुर्गुण दुनू होइत छैक, वैज्ञानिक आ चिकित्सकक प्रयास सफलो होइछ, विफलो होइछ. करोड़ों डॉलर केर अंतरिक्षयान सेहो ध्वस्त भए जाइछ आ डाक्टर सेहो लापरवाही मे वा निष्कर्ष मे त्रुटि ( error of judgement ) क कारण अपन प्रयास मे विफल होइत छथि. वर्तमान युग मे जहाँ डाक्टरक लापरवाहीक कारण रोगीक हानि दण्डनीय थिक, ओत्तहि  निष्कर्ष मे त्रुटि ( error of judgement) प्रमाण चिकित्सककें बचाइओ सकैत अछि. अस्तु, दुनू परिस्थिति मे मेडिकल रिकॉर्ड उपयोगी होइछ.

अस्तु, मेडिकल रिकॉर्ड कें सम्हारि कए राखब अनेक अर्थमे रोगीक हेतु लाभकारी आ उचित चिकित्सा मे  सहायक होइछ. परिवारक प्रत्येक सदस्यक मेडिकल रिकॉर्ड के  फूट-फूट फाइल मे राखब नीक अभ्यासक संग उपयोगी व्यवहार थिक. संगहि, प्रयास राखी जे डाक्टरक सलाह लेबा काल अपन पुरान रिकॉर्ड संग रहय, जाहिसँ उचित निदान, सही चिकित्सा, आ अर्थ आ शरीरक बचाव संभव हो. हं, मेडिकल व्यवसाय स्वयं कतेक बेर मेडिकल रिकॉर्ड बनेबा मे लापरवाही करैछ, आ फल भोगैछ. किन्तु, चिकित्साक रिकॉर्ड रोगीकें भेटनि से हुनक अधिकार थिकनि. ओकरा ओ सम्हारि कए राखथि आ चिकित्सक लग अपना संग आनथि, से हुनक दायित्व थिकनि.

   

Wednesday, July 6, 2022

अग्निवीर योजना आ असंतोष

 

अग्निवीर योजना आ असंतोष

अग्निवीर योजना आ युवकक असंतोष एखन किछु दिन पूर्व समाचार मे छल. पहिल कारण युवा असंतोष, आ दोसर कारण असंतोषक कारण भड़कल हिंसा. ई दुनू बेरोजगारीक रोगक लक्षण मात्र छल, जे अप्रत्याशित घोषणाक कारण एकाएक बढ़ि गेल. एकर पृष्ठभूमि मे एकटा आओर कारण रहैक: कोविड-१९ महामारी.

कोविड-१९ महामारी जेहने आकस्मिक छल तेहने संहारक. जेकर जान नहि गेलैक, जीविका चल गेलैक. जकरा जीविका नहि रहैक आ जीविका तकैत छल, तकर जीविकाक बाट बन्न भए गेलैक. सड़कक कात जे चाह-पकौड़ी वा इडली बेचि गुजर करैत छल तकर घरसँ बहरायब बन्न भए गेलैक. जे घरसँ बहरा सकैत छल, ओकर जेब खाली छलैक. नौकरीक एहन उम्मीदवार जे सेना वा पुलिस मे भर्ती हेबाक ले चुनल गेल छलाह, हुनक भर्ती स्थगित की भेलनि. दू वर्षक बाद हुनका लोकनिकें बुझबा मे  अयलनि जे पुरनका भर्तीक प्रक्रिया निरस्त भए गेल ! सब श्रम बेकार भए गेल. तखन कतेको गोटे मुँहे भरे खसलाह. कारण, सेना-पुलिसक भर्ती तं भारतीय प्रशासनिक सेवाक नियुक्ति नहि थिकैक, जकर पात्रता पैंतीस वर्ष धरि बचल रहत. तै परसँ पहिलुका कयल-धयल सब आब बेकार छल.

मार्च २०२० आ जून २०२२. सवा दू वर्षक अंतराल पर जखन सशस्त्र सेना मे बहालीक सूरसार आरम्भ भेलैक तं सब किछु नव. वयस-सीमा, सेवा-शर्त आ सुविधा, किछुओ पहिने जकाँ नहि. सेना मे भर्ती हयब ओहुना कठिन छैक. अनेक स्तर मे विभाजित चुनाव प्रक्रिया मे शारीरिक क्षमताक परीक्षा सबसँ पहिल थिक. अनेक वर्षक तैयारी चाही. शारिरिक दक्षताक परीक्षा पास हएब ततेक कठिन छैक जे दिल्लीक एकटा युवक नित्य दिल्ली-आगरा हाईवे पर घर आ नौकरीक स्थान धरि दौड़ि कए अबैत-जाइत छलाह. ई बहुतो गोटे देखलनि. हुनक विडियो जखन समाचार मे आयल तं सेना भर्ती हेबाक युवक लोकनिक आतुरता समाजक दृष्टि पर एलैक.  एहि धावक युवकक छवि एखन धरि बहुतोकें बिसरल नहि हेतनि. मुदा, ई युवक एहन परिश्रम कयनिहार पहिल आ अंतिम नहि छलाह.

सेना मे भर्तीक प्रक्रिया जटिल छैक. सबसँ पहिने शारीरिक क्षमताक प्रतियोगिता में सफलता. तकर पछाति मेडिकल जांच होइत छैक. मेडिकल जांच मे निर्धारित वजन, ऊंचाई, आ छातीक चौड़ाई चाही. एकर अतिरिक्त हाथ-पयर, आँखि, नाक-कान-गला, हृदय, फेफड़ा, पाचन-प्रणाली, मानसिक विकास, चमड़ा आ दांत धरिक जांच होइत छैक. जांच प्रक्रिया मे मूलतः छटनीक कारण ताकल जाइछ. तकर कारणों  छैक. सेना मे कहावत रहैक, जखन एक टा पद ले एक हज़ार उम्मीदवार छैक, तखन ताजा सेव केर पथिया म सँ  छोट, हरियर, दगल, सड़ल, घोकचल फल किएक लेब ! गप्प एकदम ठीक. कारण, साधारण योद्धा सैनिक (combatant)क काज दिल्ली आ देहरादून मे एयरकंडिशन्ड ऑफिस मे कलम चलायब नहि छैक. दिन-प्रतिदिनक काज श्रमसाध्य होइछ. अत्यंत गर्म रेगिस्तान, जान लेबा ठंडा पहाड़, आ ऊँच पर्वतीय प्रदेश मे जतय बिना वजनहु चलला पर श्वास फूलैछ, ओतय ओजन उठबय पड़ैत छैक,अस्त्र-शस्त्रसँ ल कए गेंती-बेलचा धरि चलबय पड़ैत छैक.  तें, शरीरक ओ साधारण समस्या जे स्वास्थ्यकर स्थान मे बुझबो मे नहि अबैत छैक, से अत्यंत विपरीत जलवायु, जनशून्य स्थान, जानलेबा भूमि मे अनेरे उपकि जाइछ. एहन अशक्तता शत्रुकें पराजित करबाक प्रयास मे अपना अतिरिक्त अनको हेतु घातक साबित भए सकैछ. तें, सेनाकें शारीरिक रूपें सक्षम, दक्ष, ऊँच मनोबल युक्त एहन सैनिक चाही जे अपन बलिदानक भावना आ प्रत्युत्पन्नमतित्वसँ शत्रुकें पराजित कए धधकैत आगि बाटें सोना जकाँ चमैक बहार होअय !

अस्तु, कठिन शारीरिक क्षमताक परीक्षा आ मेडिकल जांचक पछाति लिखित परीक्षा होइत छैक. शारीरिक दक्षता, आ लिखित परीक्षाक परिणामक योग्यता सूची म सँ चुनावक पछाति पुलिस जाँच होइछ. तखन, रिक्तिक आधार पर उम्मीदवारक नियुक्ति होइत छैक.

सेना मे कहावत छैक, भारतीय सेना स्वैच्छिक सेवा थिक. अर्थात् जे उम्मीदवार स्वेच्छासँ ई बाट चुनैत छथि, सएह सैनिक बनैत छथि. इसरायल वा चीन जकाँ भारत मे सैनिक सेवा नागरिकक हेतु अनिवार्य वा बाध्यता नहि छैक. मुदा, समाज मे सेनाक प्रति दृढ़ विश्वास छैक. बाढ़ि अबौक, आतंकवादी हमला हो, कश्मीर वा भारतक उत्तरपूर्व मे उपद्रव होइक, पुलिसक ओ काज जे पुलिस बुते नहि सम्हरैछ, से काज सेना करैछ. तथापि, प्रशासनक दृष्टि मे सैनिक ओहने वेतनभोगी कर्मचारी थिक, जेहन दिल्लीक सचिवालयक वेतनभोगी कर्मचारी, वा सुविधाक दृष्टिएं ओहूसँ कम ! तथापि, जतय असैनिक कर्मचारीक संख्या, वेतन आ सुविधा, समाचार पत्र वा टेलीविज़न डिबेट मे कहिओ नहि अबैछ, सेनाक वेतन आ पेंशनक खर्च पर निरंतर बहस चलैत रहैछ. सारांश ई, जे एतेक व्यय सरकारक साधनकें तेना सोखि लैछ जे सरकार लग सेनाक आधुनिकीकरणक हेतु बहुत थोड़ साधन बचैछ. तें, सेनाक वेतन आ पेंशन पर व्यय घटय. उचिते. एहि व्ययकें थोड़ करबाक अनेक उपाय छैक: सेनाक संख्या घटय. सैनिकक सुविधा घटाओल जाय. सैनिकक सेवा अवधि सीमित हो. सैनिकक पेंशन थोड़ हो, वा ग्रैच्युटी एवं पेंशन नहि देबय पड़य. सैनिकक सेवानिवृत्तिक पछाति ओकरा पर स्वास्थ्य सेवा सुविधाक व्यय नहि हो. ततबे नहि, जखन सैनिक सेवा मुक्त होथि, तखन सैनिकक हेतु सरकारकें थोड़ एकमुश्त राशि देबय पड़ैक. अग्निपथ स्कीम आ अग्निवीर सैनिकक भर्ती सरकारक एहि सब लक्ष्य-प्राप्तिक एक उपाय थिक.

प्रशासनिक निर्णय सरकारक अधिकार थिक ! एहि मे दू मत नहि. किन्तु, समाधानक विषय मे सब एक मत होथि से आवश्यक नहि. ततबे नहि, लोकतंत्र मे सरकार बदलैत रहैछ. तें, सरकारक दायित्व थिक जे सरकार अपन निर्णय मे विपक्षहुक  विचारक समावेश करय, खास कय तखन, जखन निर्णय राष्ट्रीय सुरक्षासँ संबंधित होइक. मुदा, ई आदर्श भेल. व्यवहार मे आदर्श अपवादे बूझल जाइछ. अस्तु, अग्निपथ आ अग्निवीर योजनाक घोषणाक जे तात्कालिक परिणाम भेल जे आँखिक सोझाँ अछि. ओकर दूरगामी परिणाम भविष्य कहत. किन्तु, एतय आब हम एक दोसर विन्दु पर विचार करब जकरा राजनीति वा राष्ट्रीय सुरक्षा विषयक विशेषज्ञक विचारसँ कोनो मतलब नहि. मुदा, एकर संबंध  सेना, सैनिकक जीवन आ भारतीय समाज दुनूसँ छैक.

पहिने, सेनाक गप्प. प्रगति जीवन थिक. भारतीय सेनाकें सेहो समयक संग चलबाक चाही. हमरा लोकनिक सेना अंग्रेजक द्वारा एवं योरोपीय प्रणाली पर आधारित अछि. एतबे नहि, टेक्नोलॉजीक विकासक संग युद्ध केर परिभाषा, ओकर आयाम आ विधि बदलि रहल छैक. अमेरिका सन टेक्नोलॉजी हो तं बिना भूमि पर पयर रखनहि इरान सन देशकें परास्त कए सकैत छी. तथापि, जखन भूमि पर प्रतिस्पर्द्धा हेतैक तं सेना एक दोसरासँ हाथसँ लड़ैत मरत आ मारत, जकर उदहारण ताकब असंभव नहि. तथापि, समयक संग आधुनिकीकरण चाही. आ सरकार से करत, से समाज मानि कए चलैछ, आ सरकार पर विश्वास रखैछ.

आब, समाजक गप्प. सैनिक समुदायक अधिकांश भाग एखनो एहन देहाती निम्न वर्गसँ अबैछ. शहरी मध्यवर्ग, नौकरशाह आ राजनेताक सन्तान सिपाही भर्ती नहि होइत छथि. शहरी आ उच्च वर्ग समाज मे परिवर्तन होइतो, ग्रामीण समाज कतेक अर्थ मे जड़ अछि. बहुतो दिनसँ चल अबैत, ग्रामीण समाजक अपरिवर्तित संरचना, वर्तमान  सैनिकक जीवनकें प्रभावित करैछ. देहाती निम्न वर्गक सिपाही पर ओकर सम्पूर्ण परिवार- माता-पिता, भाई- बहिन- आश्रित रहैछ. तें, जखन कोनो बेरोजगार सैनिकक नौकरी पाबि जाइछ तं परिवार मे सब एक स्वर मे उत्सव मनबैछ; ‘नत्था सिंह/ बंता सिंह / गुलाब सिंह/ किताब सिंह/ राम भरोसे/ पेरूमल/ सेबेस्टियन को नौकरी मिल गई’. माने, आब परिवारकें गुजर करबाक एकटा सुदृढ़ आधार भेटि गेलैक. मुदा, जखन ई खबरि अबैछ जे  ‘नत्था सिंह/ बंता सिंह / गुलाब सिंह/ किताब सिंह/ राम भरोसे/ पेरूमल/ सेबेस्टियन मर गया, या डिस्चार्ज हो कर घर वापस आ रहा है’ तं उचिते घर-परिवारक पयर तरसँ धरती घिसकि  जाइछ. अग्निवीर योजनाक इएह अवगुण भारतीय युवकक असंतोषक मूल कारण थिक ! अग्निपथ योजना मे अग्निवीरकें साधारण सिपाहीसँ अनेक अर्थ मे  सुविधा सेहो बहुत कम छैक. नौकरीक स्थायित्व आ घर घुरलाक पछाति जीविकाक आश्वासनक सत्य की छैक, से ओहि भूतपूर्व सैनिक सबसँ पुछियौक जे पन्द्रह वर्ष ‘कलर सेवा’ बाद पेंशन ल कए घर घुरैत अछि. ओहि वयस में जखन कतेक नौकरशाह लोकनि नौकरी आरंभ नहि कयने रहैत छथि, सैनिक रिटायर भए जाइछ. ओहि समय मे ओकर जीवनक कोनो दायित्व, जेना धिया-पुताक पढ़ाई, घर बान्हब इत्यादि भेलो नहि रहैत छैक.

तैओ, नौकरी ले मुँह बओने बेरोजगार सबटा देह लगा कए मारैत, जं नौकरीक स्थायित्वक भरोस रहितैक. किन्तु, एहि योजना मे स्थायित्व कतय पाबी. तें, अग्निवीर योजना किछु अर्थ मे  नौकरी स्थायित्वक भरोसक प्रति भयानक कुठारघात थिक ! ओकर बाँकी गुण-अवगुण पर तं निरंतर सेवारत आ सेवा निवृत्त सुरक्षा विशेषज्ञ मंथन कइए रहल छथि, जे सबठाम छपि रहल अछि. तें, एतय ओहि पर आओर बेसी किछु कहब आवश्यक नहि.

 

         

Tuesday, July 5, 2022

कन्नगी-कोवलनक कथा

 

 नारी विद्रोहक एक पुरान कथा ±

देवीपूजा भारतीय परम्पराक अंग थिक. किन्तु, नारीक प्रति समाजक व्यवहार एहि परम्परासँ  निरपेक्ष रहैत आयल अछि. फलतः, समाजसँ बहुतो नारीक अपेक्षा पूर नहि भेलनि. अहिल्या, सीता, कुन्ती-कन्नगी, मादवि-मणिमेखलै, वा आम्रपाली, सब अपन संकल्पक अपनहि पूर कयलनि. एहि नारि लोकनि म सँ अहल्या, सीता, कुन्ती, आ आम्रपाली सुपरिचित छथि. मुदा, कन्नगी-मादविक उत्तर भारत मे  अपरिचित छथि. तें, मैथिली मे समकालीन दृष्टिऐ कन्नगी-मादविक कथाक  कहबाक विचार भेल. तमिल महाकाव्य ‘शिलापत्तिकारम्’क एहि कथाक आधार थिक. ई ग्रन्थ ‘तमिल संगम’ युगक अनुपम उपहार थिक. एहि ग्रंथक प्रणेता चेर राजकुमार जैन संत इलांगो थिकाह. कथा तमिलनाडुक पुबरिया कछेर पर बसल पुहर-पुम्पुहार-कावेरिपत्तिनम् , तथा मदुरै नगरक, एक  ऐतिहासिक घटना थिक जकर प्रमुख केन्द्रीय पात्र कन्नगी आ हुनक पति कोवलन थिकाह. मुदा, कथाक घटनाक्रम मे कन्नगीक एहन विद्रोही स्वरुप समाजक समक्ष अबैछ  जे अन्यायक विरुद्ध एसगरिए ठाढ़ भए पांडियन सम्राट्कें पराजित कय देलकनि. ई असाधारण थिक. अतः, अपन दृढ़ता आ गुणक कारण कन्नगी सम्पूर्ण समाज मे दूर-दूर धरि पत्नी देवीक नामे  प्रतिष्ठित भेलीह. तें, कन्नगीक उदात्त चरित्र आइओ प्रेरक अछि. इएह हुनक कथाक पुनरावृत्तिक औचित्य थिक.

किन्तु, जखन समाज कोनो मनुष्यकें देवता बना दैत छैक, तखन कालक्रमे ओहि व्यक्तिक चारू कात अनायास अनेक कथा, उपकथा, रहस्य-रोमांच जुड़ैत चल जाइत छैक. कन्नगीओक कथा एकर अपवाद नहि. अस्तु, मूल कथा सोझ होइतो ‘शिलापत्तिकारम्’क कथा अनेक शाखा-उपशाखा दिशा दिस पसरल अछि. ई रचना कालक युगधर्म वा महाकाव्यक बाध्यता थिक. तथापि, शिलापत्तिकारम् प्राचीन तमिल समाजक ऐतिहासिक दस्तावेज सेहो थिक. तें, एहि मे राजा लोकनिक शौर्य-पराक्रमक अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनक अतिरिक्त पौराणिक कथा-उपकथा सेहो अछि. सब किछुक बीच यद्यपि, सत्य, अहिंसा,तप, पूर्व जन्मक कर्मक फल तथा सांसारिक ऐश्वर्यक अनश्वरताक संदेश एहि कथा मे मूल चिंतनक रूप मे सोझाँ अबैछ, तथापि, कन्नगी-कोवलनक कथा तहियाक समाज मे प्रचलित अनेक समानांतर आस्थाक शान्तिपूर्ण धार्मिक सहअस्तित्वकें सेहो रेखांकित करैछ. ई बढ़ैत धार्मिक असहिष्णुताक अजुका युग मे प्रासंगिक अछि.

हिन्दी मे ‘शिलापत्तिकारम्’ क अनुवाद भेल छैक. अमृतलाल नागरक हिन्दी उपन्यास ‘सुहाग के नूपुर’ कन्नगीएक कथा पर आधारित अछि. मैथिली मे प्रायः शिलापत्तिकारम् केर अनुवाद नहि भेल अछि. तें, हम शिलापत्तिकारम् क अनुवादक नहि, सोझ आ सरल भाषा मे एकर कथा कहबाक विचार कयल. मुदा, एतय प्रस्तुत कथा, किछु अर्थ मे मूल कथाक  हमर अपन बोधक परिणाम थिक.

शिलापत्तिकारम् पुरान तमिल ग्रन्थ थिक. तें, साधारण तमिल पाठकक हेतु शिलापत्तिकारम् पढ़ब संभव नहि. स्कूल-कालेजक पाठ्यक्रम मे कन्नगीक कथा छैक. संग्रहालय मे आ  समुद्रक कछेर पर चेन्नई आ पुहर मे कन्नगीक मूर्तिओ देखबनि. मुदा, गीत-संगीत,वाद्ययंत्र आ नाट्यकला सूक्ष्मतासँ वर्णन ‘शिलापत्तिकारम्’क दोसर प्रमुख आयाम थिक. ‘शिलापत्तिकारम्’ संगम कालक गीत-संगीत, वादन, आ नाट्यकलाक श्रोत ग्रंथ जकाँ अछि. किन्तु, ग्रन्थ मे प्रतिपादित गीत-संगीत, नृत्य, नाट्यकलाक आ वाद्य यंत्रक एतेक सूक्ष्म वर्णन जनसामान्यक रुचिसँ  बाहर तं अछिए, ओकरा बूझब विशेषज्ञक हेतु सेहो कठिन अछि. तें, एहि मैथिली कथा मे शिलापत्तिकारम् मे संग्रहित गीत, संगीत, नृत्यकला आ वाद्य-यंत्रक वर्णन  नहि भेटत.

प्राचीन तमिल साहित्य मे तमिल क्षेत्र भौगोलिक दृष्टिए पाँच प्रकार मे विभक्त कयल जाइत छल: कुरिञ्जी (पर्वत प्रदेश), मुल्लै (वन्य प्रदेश),मरुदम् (समतल कृषि क्षेत्र), नेयडल (समुद्र तटवर्ती प्रदेश), आओर पालै (शुष्क मरुभूमि वा पाथरसन भूमि). पृथक्-पृथक् भूभागक निवासी, वृक्ष, फूल, संगीत, वाद्य आ ओतुका देवी देवता भिन्न-भिन्न रहथि. ‘शिलापत्तिकारम्’ मे ओकर सबहक यथास्थान वर्णन छैक. ताहू कारण शिलापत्तिकारम् कें समन्वयवादी साहित्य कहि सकैत छियैक.  मुदा, एहि मैथिली पोथी मे जे गीत सब अछि ओकर पृष्ठभूमि आ प्रेरणा कथाक समीपस्थ घटनाक्रम आ भूगोल सँ होइतो, ओ सब मूल ग्रंथक कोनो गीत-विशेषक अनुवाद नहि थिक. तथापि, कन्नगी-कोवलनक कथा पढ़ि जं किछुओ पाठककें तमिल साहित्यक प्रति रुचि जगलनि तं हमर उद्देश्य अंशतः पूर्ण भए जाएत. हमर प्रयाससँ जं अओरो तमिल ग्रन्थ सबहक मैथिली अनुवाद आ पुनर्पाठकें बल भेटलैक तं हमर उद्देश्य पूर्ण भए जायत.        

± शीघ्र प्रकाश्य कन्नगी-कोवलन कथा उपन्यासक भूमिका )

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो