Friday, December 30, 2022

साहित्य, साहित्यकार, साहित्य-गोष्ठी, साहित्य-सम्मलेन आ साहित्यिक-उत्सव

 

साहित्य, साहित्यकार, साहित्य-गोष्ठी, साहित्य-सम्मलेन आ साहित्यिक-उत्सव

साहित्य शब्द सुपरिचित थिक. साहित्यकार के थिकाह, साहित्य-गोष्ठी की थिक, साहित्य सम्मलेन आ साहित्य-उत्सवसँ की अभिप्राय छैक एहि सबहक परिभाषा देबाक काज नहि. तथापि, एहि लघु लेखमे हम एही शब्द सबकें समकालीन परिप्रेक्ष्यमे प्रस्तुत करैत छी. 

साहित्य

राजशेखरकृत काव्यमीमांसाकें उद्धृत करैत म.म. सर गंगानाथ झा साहित्यकें निम्नवत् रूपें परिभाषित केने छथि:

शब्द और अर्थ का यथावत् समभाव अर्थात् ‘साथ होना’ यही ‘साहित्य’ पद का यौगिक अर्थ है- सहितयोः भावः(शब्दार्थयोः) इस अर्थ से ‘साहित्य’ पद का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो जाता है. (अर्थात्) सार्थक शब्दों के द्वारा जो कुछ लिखा या कहा जाय सभी ‘साहित्य’ नाम के अन्तर्गत हो जाता है- किसी भी विषय का ग्रन्थ हो या व्याख्यान हो- सभी ‘साहित्य’ है.[1]

आन अनेक परिभाषाक अतिरिक्त ‘शब्दकल्पद्रुम’ साहित्यकें ‘मनुष्यकृतश्लोकमयग्रन्थविशेषः’ सेहो कहैत अछि: आ उदाहरणार्थ ‘स तु भट्टि-रघु- कुमारसम्भव-माघ-भारवि-मेघदूत-विदग्धमुख- मण्डनशान्तिशतकप्रभृतयः’ उदहारण दैत अछि.

साहित्यकार

साहित्यक श्रृजन कयनिहार - कवि/ नाटककार/ निबन्धकार, वा व्याख्यान देनिहार - साहित्यकार भेलाह.

साहित्यिक गोष्ठी

साहित्यिक गोष्ठीसँ  साहित्यकारक एक छोट समुदायक बोध होइछ जे एक ठाम बैसि अपनहि बीच कृतिक आदान-प्रदान, वा कोनो विषय-विशेष पर चर्चा आ मंथन करैत छथि. ओना शब्दकोषक अनुसार गोष्ठी गोशाला सेहो थिक; आ ई समूहवाचक संज्ञा थिक. ई एहनो एक स्थान थिक जतय एक प्रकारक पशु सब राखल जाइछ. किन्तु, साहित्यक सन्दर्भ मे ई सार्थक नहि.  

साहित्य-सम्मलेन                                                                                                                                 साहित्य-सम्मलेन साहित्यकार लोकनिक स्थायी वा तात्कालिक वृहत् सभा थिक. जे सभा समय-समय पर, वा नियत अवधि पर आयोजित  होइछ. ओकर हेतु, अवधिक अनुसार मासिक, अर्द्धवार्षिक वा वार्षिक इत्यादिक विशेषणक प्रयोग कयल जाइछ. अनियतकालीन सम्मलेन तात्कालिक वा तदर्थ भेल.

साहित्य-उत्सव

उत्सव शब्दक ‘उत’ उपसर्गसँ  ‘सव’ (अर्थात् सांसारिक दुःखक )निवारणक  अभिप्राय अछि. ओना ‘आगम (हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ)’ क अनुसार उत्सवसँ  मन्दिर सबसँ संबंधित विशिष्ट सामुदायिक पर्व इत्यादिक आयोजन आ सहभगिताक बोध होइछ ; दैनिक, मासिक आ सांवत्सरिक अवधिक अनुसार उत्सवक प्रकार थिक.

साहित्यिक उत्सव एहन अवसर वा आयोजन भेल जाहिमे सहभागी लोकनिक हेतु अभिव्यक्ति, प्रदर्शन, समीक्षा एवं (कृति सबहक) मंथनक कारण साहित्यकार आ साहित्य-प्रेमी लोकनिक हेतु आनन्द, उल्लासक वातावरणमे बौद्धिक आदान-प्रदान आ मोनोविनोदक वातावरणक श्रृजन होइक.

अभिव्यक्ति,समीक्षा एवं मंथनसँ  सामूहिक आनन्द आ उल्लासक वातावरणमे बौद्धिक आदान-प्रदानक हेतु आवश्यक थिक जे  एहिमे साहित्यक विविध विधाक रचनाकार- उपन्यासकार, कथाकार, आलोचक, जीवन-वृत्ति, यात्रा-वृत्तान्त, आ संस्मरणक रचनाकार- आ सब स्तर आ वयसक साहित्यकारक सहभागिता होइनि, सबकें अभिव्यक्तिक समुचित अवसर भेटनि. मुदा, से तखने संभव छैक, जखन साहित्यकार आ साहित्य-प्रेमी एकर आयोजनक सूत्रधार होथि, हुनका लोकनिक सहभागिता होइनि, सहित्यकार आ साहित्य-प्रेमीकें एक-दोसराक सोझाँ-सोझी हेबाक मंच भेटनि, कृति आ कृतीकें देखबाक अवसर भेटनि. संगहिं, साहित्यकारकें अपन कृतिकें देखेबाक, सुनेबाक, आ समालोचना तथा पाठकीय प्रतिक्रिया सुनबाक अवसर भेटनि, पोथी देखयबाक आ बेचबाक स्थान आ मंच भेटनि.

एहि सब लेल अर्थ आ आयोजन चाही. मुदा, एहि सबहक खर्च के वहन करत ? आयोजनक भार के लेत ? स्पष्ट छैक, जनिका लोकनिक उत्सव, सएह आयोजन करथु, अर्थ जुटाबथु खर्च वहन करथु. खाली हाथें कोन उत्सव संभव अछि. तें साहित्यकार आ साहित्य-प्रेमी जं आयोजक होथि तं उत्सवो हुनके थिक. हं,जं सम्मलेनमे खरीद-बिक्री आ व्यवसायी-विक्रेताक हेतु अर्थलाभक अवसर होइक तं लाभान्वित व्यापारीसँ किछु आर्थिक सहायताक आशा भए सकैछ. एकर अतिरिक्त केंद्र सरकार, राज्य सरकार, साहित्य-प्रेमी संस्था वा व्यक्ति सबसँ सेहो साहित्यिक आयोजनकें आर्थिक भेटैत छैक. किन्तु, कतेक बेर सहायता शर्तक संग अबैत छैक; संस्था वा सरकार विचार वा वादक प्रति प्रतिबद्धताक आशा करैछ. तर्क ई जे,  he who pays the piper, calls the tune’. एकर अतिरिक्त, कोनो व्यक्ति, समुदाय, वा समूह जं साहित्यिक गोष्ठी-सम्मलेन-वा उत्सवक आयोजन करताह तं ओएह साहित्य, साहित्यकार, आ साहित्यिक उत्सव, ओकर स्वरुप आ आकारकें परिभाषित करताह. एहन आयोजनमे साधारण लेखक आ आम पाठकक उत्सव थिक वा नहि, ओहिमे आम साहित्यकार आ साहित्य-प्रेमीक सहभागिता संभव छैक वा नहि से आयोजक पर निर्भर अछि.

 1. म.म. सर गंगानाथ झा.कवि-रहस्य, 1928. हिंदुस्तान एकेडेमी, प्रयाग.pp 6

Friday, October 7, 2022

बौद्धिक संपदा एवं कॉपीराइट, आ मैथिली

 

सन्दर्भ मैथिली

बौद्धिक संपदा एवं कॉपीराइट, आ मैथिली

विद्या धन थिक से शास्त्र-सम्मत थिक, सर्वसम्मत थिक. स्वरचित साहित्य वा अविष्कार पर लेखक/ अविष्कारक विद्वानक स्वामित्व होइत छनि, से सदाएसँ चल अबैत रहल अछि. प्रागऐतिहासिक गुरु लोकनि सेहो विद्यादानक प्रतिरूप स्वरूपें गुरुदक्षिणाक मांग करैत रहथि, गुरु दक्षिणा पबितो रहथि. किछु गुरुलोकनि कदाच् छात्रकें विद्या देब अस्वीकार सेहो करैत रहथिन. एकर उदहारण सब ततेक सुपरिचित अछि, जे एतय ओकर पुनरावृत्तिक अवश्यकता नहि. किन्तु, ओहि युग मे श्रष्टा केओ होथि, कालक्रमे ज्ञान समाजक सामूहिक संपत्ति भए जाइत छलैक. जाहि ज्ञानकें गुणी लोकनि अपने परिवार धरि सीमित राखथि, वा तेहन सूत्र मे लिखि  देथिन जे अनका बुझबा योग्य नहि होइक से ज्ञान सार्वजनिक तं नहिए भए पबैक, कदाचित् विलुप्त सेहो भए जाइक. मुदा, से बड्ड पुरान गप्प भेल.

प्राचीन काल वा मध्य युग मे बौद्धिक संपदाक स्वामित्वक अवधारणा नहि रहैक. नहि तं फाहियान, चुआन हुआंग, रिनजिंग जान्गपो, आ गुरुपद्मसंभव आ आओर अनेक परवर्ती विद्वान, आ  यात्री लोकनि एतेक ग्रन्थ सब कोना श्री लंका, चीन, जापान, कोरिया, अरब देश, आ  यूरोप धरि लए जैतथि, वा लए अनितथि. ततबे नहि तहिया व्यक्तिगत स्तर पर ज्ञान संबंध मे ‘ व्ययतो वृद्धिमायाति, क्षयमायाति  संचयात’क अवधारणा स्वीकृत छल.

यूरोप मे पोथीक छपाई मशीनक आविष्कार आ औद्योगीकरणसँ सब किछु बदलि गेल. फलतः, पहिने कॉपीराइट कानून बनल आ छपल पोथीक स्वामित्वकें  कानूनी संरक्षण भेटलैक. ई नियम पहिले-पहिल अठारहम शताब्दीक उत्तरार्द्ध मे ब्रिटेन मे लागू भेल. तहिया कॉपीराइट नियमक अधीन कला, साहित्य आ विज्ञानक क्षेत्र मे रचनात्मकता (creativity) कें प्रोत्साहन देब मूलभूत अवधारणा रहैक. मुदा, तहिया लेखकक ‘कॉपीराइट’क छपल पोथीकें, लेखकक अतिरिक्त आन कोनो व्यक्तिक द्वारा पुनः छापि वितरित करबाक निषेध धरि सीमित रहैक. मुदा, जखन क्रमशः समाज मे उपार्जित ज्ञानकें किनबा-बेचबाक वस्तु बनाएब (commodification)क अवधारणा अयलैक, तखन बौद्धिक संपदा शब्द आयल. फलतः, सृजनकें उत्पादक स्वरुप भेटलासँ  साहित्यकार-कलाकार-वैज्ञानिककें आर्थिक लाभक बाट खुजलनि. अस्तु, एहि अवधारणाक अनुकूल साहित्यकार-सर्जक-वैज्ञानिकक अधिकारकें कॉपीराइट आ बौद्धिक संपदा कानूनक अंतर्गत परिभाषित आ निर्धारित कयल गेल.

 

विकिपीडियाक अनुसार बौद्धिक सम्पदा (Intellectual property) कोनो व्यक्ति या संस्था द्वारा विकसित कोनो  संगीत, साहित्य, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कापीराइट, ट्रेडमार्कपेटेन्ट आदि  थिक. जहिना कोनो स्थूल संपत्तिक स्वामित्व व्यक्ति वा समूहक होइछ, तहिना बौद्धिक सम्पदाक सेहो स्वामी नामांकित होइछ.

कॉपीराइट सेहो बौद्धिक संपदाक एक प्रकार थिक, जे कॉपीराइटक स्वामीकें एक नियत समय सीमाक अंतर्गत (रचना) सामग्रीक नकल, वितरण, रूपान्तरण, प्रदर्शन, एवं अभिनयक एकाधिकार प्रदान करैछ. अस्तु, , एहि अवधारणाक अनुकूल आब  बौद्धिक संपदा 1 स्वामीक संपत्ति थिकैक, आ एहि स्वामित्वकें कानूनी संरक्षण प्राप्त छैक. फलतः, जे व्यक्ति, समूह, वा संस्था कोनो नव बौद्धिक संपदाक आविष्कार वा विकास करैत अछि, ओकरा बौद्धिक संपदाक स्वामित्वक उपयोगक कानूनी एकाधिकार होइछ.  अर्थात् बौद्धिक संपदाक स्वामी अपन कृतिकें बेच बिकिनि अपन परिश्रमक फल उपभोग कए सकैछ.

बौद्धिक संपदाक आयाम आ प्रकार                                                                                                         बौद्धिक संपदा कानून जहिना-जहिना विकसित भेल, बौद्धिक संपदाक परिभाषा बदलैत गेलैक; बौद्धिक संपदाक क्षेत्र में नव-नव संपदाक समावेश होइत गेल. फलतः, जे ‘कॉपीराइट कानून’ पहिने केवल छपल सामग्रीक पुनर्मुद्रणक निषेध, आ पाछाँ विकसित मशीन आ उपकरण धरिक नकल करबाक निषेध सीमित छल से पछाति गीत-संगीत, दृश्य-श्रव्य कला आ चित्रकला, कम्पूटर प्रोग्राम, भौगोलिक नक्शा, तकनीकी रेखाचित्र, प्रचार-सामग्रीक स्वामित्व धरिकें समेटि लेलक.

कॉपीराइट कानूनक मूल विन्दु

कॉपीराइट कानून बौद्धिक संपदाक जनककें  स्वामित्व तं दैछ, मुदा, स्वामित्वक अपवाद सेहो परिभाषित छैक. एहि कानूनी बिन्दु सब मे एक अछि, उचित उपयोग (fair use and fair dealing)क प्रावधान. सही उपयोग की थिक तकरा विस्तारसँ प्रस्तुत करब एतय संभव नहि. मुदा, एहि शब्दक पाछूक भावना, व्यवसायिक आ आर्थिक लाभक हेतु संपदाक वितरणकें वर्जित करैत, ज्ञानक व्यक्तिगत उपयोगक अपवादकें परिभाषित करैछ. जेना, पुस्तकालय मे पैघ समूह, उपलब्ध कॉपीराइट संरक्षित पुस्तक सबहक दीर्घ  काल धरि उपयोग करैछ. मुदा, एहिसँ पाठकक पैघ समुदाय आ समाज लाभान्वित होइछ. तें ई सदुपयोग (fair use) भेल. तहिना, पुरान पोथीकें दोसर छात्र वा पाठककें बेचि देब गैरकानूनी नहि थिक. ततबे नहि, दृष्टि-बाधित लोकनिक हेतु पोथीक ब्रेल संस्करण वा मोटा टाइप मे कॉपीराइट द्वारा निषेधित पोथीक पुनर्मुद्रण कॉपीराइट अधिकारक अतिक्रमण नहि थिक; ई कॉपीराइटक अपवाद थिक. धार्मिक क्रिया-कलाप मे पोथीक उपयोग सेहो कॉपीराइटक परिधिसँ बाहरक विषय थिक.

बौद्धिक संपदाक भौगोलिक आ समय सीमा

आरंभ मे कॉपीराइट संरक्षण ओही देशक सीमा धरि सीमित छल, जतय पोथी छ्पैत रहैक. फलतः, इंग्लैंड मे छपल पोथीकें अमेरिका मे पुनः छापि बेचबा पर कोनो कानूनी प्रतिबंध नहि रहैक. प्रकाशित पोथीकें एहि कानूनी संरक्षणक समय सीमा सेहो मात्र चौदह वर्ष धरि सीमित छल, जे आओर चौदह वर्ष बढ़ाओल जा सकैत छल. क्रमशः, कॉपीराइट संरक्षणक भौगोलिक सीमा आ  अवधि बढ़ल. अस्तु, अंतर्राष्ट्रीय सहमति, बर्न कन्वेंशन १८८६, 2   अन्तर्गत आइ १७९ संप्रभुता  संपन्न  देश कॉपीराइट संबंधी अंतर्राष्ट्रीय कानूनक पालनक संकल्प केने अछि.

कॉपीराइटक अतिक्रमणक परिदृश्य

अधिकार दावा केला पर भेटैत छैक. क़ानूनक पालन, कानून-व्यवस्थाक नियामक लोकनिक कानूनक अतिक्रमणक निरोधक व्यवस्थाक तत्परता पर निर्भर होइछ. अन्यथा कानून आ अधिकार केवल संहिता धरि में बन्न पड़ल रहि जाइछ, आ कानून तोड़ब निर्बाध चलैत रहैछ. कॉपीराइटक कानून एकर अपवाद नहि. फलतः, कॉपीराइट कानूनक अतिक्रमण विश्वभरि मे आम अछि. विश्वभरिक साहित्यक नव-नव छपल गैरकानूनी प्रति दिल्ली, बंगलोर आ मुंबईक फुटपाथ पर कोन पाठक नहि किनने हेताह. लतामंगेशकर, मोहम्मद रफी, मन्ना डे प्रभृति अनेक कलाकारक गीत पुनः गाबि कतेक ने कैसेट आ सीडी बेचि करोड़पति भए गेलाह. विश्व भरिक फिल्मक सीडी शहर सबमे धड़ल्ले बिकाइत देखनहि हेबैक. ई सब कॉपीराइटक उल्लंघन थिक.

इन्टरनेट युग मे कॉपीराइट

इन्टरनेटक आविष्कार ज्ञानक वितरणक सीमाकें तोड़ि देलक. तें, बौद्धिक संपदाक अधिकारक नियम जं एक दिस क्रमशः  जहिना दृढ़सँ दृढ़तर होइतो गेल, तं तहिना ज्ञानक वितरण सुलभ होइत गेल, वितरण क्षेत्रक परिधि बढ़ैत चल गेल. ज्ञानक वितरण सुलभ भेल तं ज्ञान-विज्ञान आ साहित्यक चोरि सेहो सुलभ भए गेल. आइ स्थिति एहन अछि जे घर बैसल केओ ‘उद्यमी’ विश्वक कोनो भागसँ कोनो सहित्य वा विज्ञानक चोरि कए ओकरा अपन सृजन जकाँ राताराती परसि सकैत छथि. आ ई चोरि केवल ‘गृहचोरा’ नहि, प्रतिष्ठित विद्वान आ प्रसिद्ध वैज्ञानिक धरि करितो छथि आ पकड़लो गेलाहे. हेबनि मे व्हाट्सएप्प, टेलीग्राम प्रभृत्तिक सोशल मीडिया कॉपीराइट उल्लंघनके नव आयाम देलक. आइ मेडिकल, टेक्निकल वा कला विषयक एहन कोनो पोथी  नहि जकर कॉपी इन्टरनेट पर लोक अदला-बदली नहि करैछ ! ई समस्या विश्व भरि मे अछि. थोड़ जनसंख्या, समृद्धि आ  सख्त कानून व्यवस्थाक कारण विकसित देश सबमे ई समस्या थोड़ अछि, मुदा, नहि अछि, से नहि. विकासशील देशमे लोककें स्मरणों नहिं होइछ जे एहन कोनो नियम-कानून छैक.    मुदा,ओ भिन्न विषय भेल. आब पुनः विषय पर आबी.

जनसामान्य  आ अध्येता ले तं इन्टरनेट ज्ञान-विज्ञानक आदान-प्रदानक नव अवसर आ  बाट खोललक. कारण, इन्टरनेटक युगमे कोर्ट केर अनेक आदेश कॉपीराइटक सीमा-रेखाकें पुनः-पुनः परिभाषित कयलक अछि. कारण भिन्न छलैक. विज्ञान, तकनीकी, मेडिकल आ अन्य क्षेत्रक पोथीक अधिक मूल्यक कारण सामान्य पाठक ले पोथी किनब संभव नहि होइत रहैक. फलतः, लोक चोरा-छिपा कए ओकर फोटोकॉपी करैत छल. कानूनी दायराक बाहर हेबाक कारणें कखनो काल ओहि पर केस-मोकदमा सेहो होइत छलैक. फलतः, कोर्ट सबहक अनेक निर्णय आयल. ओहि निर्णयक फलस्वरूप छात्र समुदाय द्वारा फोटोकॉपी कयल  पोथीक व्यक्तिगत कॉपीक उपयोग आब अनेक देश मे गैरकानूनी नहि मानल जाइछ. तथापि, नियम मे परिवर्तनक पछातिओ विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका मे प्रकाशित लेख सब आम पाठकक पहुँचसँ  दूरे छल. तें, किछु वर्ष पूर्व अमेरिका मे निर्णय भेल जे सरकारी अनुदानसँ संचालित अनुसन्धानक रिपोर्ट सार्वजानिक संपत्ति थिक. मुद्रक ओकर सार्वजानिक प्रयोग आ वितरणकें नियंत्रित नहि कए सकैत छथि. समकालीन ज्ञान-विज्ञानक वितरणक दिशा मे ई बड़का डेग छल. कॉपीराइट नियम मे एहि परिवर्तनसँ विश्वभरिक वैज्ञानिक आ अध्येता लाभान्वित भेलाह. ततबे नहि विश्व भरिक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय सबहक ऑनलाइन लाइब्रेरी, archive.org 3 Project Gutenberg 4  क माध्यमसँ   आइ घर बैसल हम आ अहाँ  पर उपलब्ध करोड़ों पुस्तक, सिनेमा, गीत-नादक उपयोग कए सकैत छी, पछुआड़क पुस्तकालय जकाँ ओकर निःशुल्क सदस्यतासँ  पोथी उधार  लए सकैत छी ! सेहो कानूनक परिधिक भीतर.

मैथिली आ कॉपीराइट

मैथिलीक बाज़ार छोट छैक, वा मैथिलीकें बाजारे नहि छैक. फलतः, जें मैथिलीक पोथीक बाज़ार अत्यंत सीमित छैक, तें, मैथिली साहित्य आ बौद्धिक संपदासँ उपार्जन कए जे गुजर करैत छथि तनिक संख्या थोड़ अछि. पहिनहु, मूलतः, एकर लाभ ओही लेखक लोकनिकें होइत छलनि जे आइ पोथी लिखथि, आ काल्हि ओकरा स्कूल-कालेजक कोर्स मे सम्मिलित करबा लैत छलाह. तथापि, एहन घटना सुनल अछि जे हुनको लोकनिक पोथीक अनाधिकार मुद्रण आ बिक्री होइत छलनि आ ओ लोकनि शिष्टाचार आ सामाजिक संबंधक कारण किछु नहि बाजथि.

आब स्थिति एहन अछि जे कॉपीराइट नामक कोनो कानून छैको से मैथिलीक मुद्रक प्रकाशक बिसरि गेल छथि. फलतः, कॉपीराइट कानूनक प्रत्येक प्रावधानक खुला उल्लंघन आम अछि. दिवंगत लोकप्रिय लेखक जनिकर पोथी हुनका लोकनिक जीवन काल मे खूब बिकाइत छल, हुनकर लोकनिक रचनाक तं गप्पे नहि हो. एखन केओ दिन-देखार अनकर लेख अपना नामे छापि लैत छथि, तं केओ फेसबुक/ व्हात्सएप्पसँ अनकर लेख उतारि ओकरा तोड़ि, काटि-छाँटि अपन पत्रिका-समाचार पत्रक हेतु संकलित करैत छथि. बाँकी नवसिखा उद्यमी-प्रकाशक लोकनि एकटा दू टा आओर लेख कतहुसँ ऊपर केलनि, लूटि लाउ, कूटि खाउक रीतिसँ किछु लेख जमा केलनि  आ पत्रिका/ स्मारिका छपि गेल. ओहुना अनकर सामग्रीक  अनाधिकार प्रयोगक परंपरा आब एतेक सामान्य भए गेले जे एहन काज कॉपीराइट नियमक अतिक्रमण थिक से संकलन कयनिहारक चेतना धरि किएक पहुँचतनि! एहि मे ने कोनो संकोच, ने कोनो आभार4, ने कोनो शिष्टाचार5. ऊपरसँ, गूगल (‘बाबा’) आ गूगल अनुवाद आब चोरिक अवसरकें तेना अनेक गुणा बढ़ा देने अछि, जे कॉपीराइट सामग्री चोरिक  गतिकें चोर लोकनि पवन समान नहि, प्रकाशक गतिक समान कए देने छथि. तें, ने सामग्रीक कमी, ने देरी हेबाक भय. एहना स्थिति मे बेचारे (मौलिक) लेखक, जे किछुओ लिखबा मे एखनो ‘ नौ डिबिया तेल’ जरबैत छथि, से कतय जाथु ? हँ,‘नकल करबाक हेतु अक्किल चाही, अन्यथा शक्ल बदलि सकैछ’ ! मुदा, तकर भय ककरा. कारण, लिखल वस्तुकें केओ पढ़त तकर विश्वास कतेक गोटेकें होइत छनि. तथापि, एखनो गंभीर लेखन होइत तं अछि. मुदा, लिखल सामग्रीक अनाधिकार प्रयोगक स्थिति मे तत्काल सुधारक कोनो संभावना देखबा मे नहि अबैछ. मुदा, एकर समाधान कोना हो ताहि पर मैथिलीक प्रतिष्ठित लेखक-विद्वान आ प्रकाशक मंथन करथु आ समाधान बहार करथु, अनुशासनक संहिता बनाबथु. सहमतिक वातावरण बनय से सर्वथा वांछित थिक.

सन्दर्भ:

1.  https://en.wikipedia.org/wiki/Intellectual_property

2. https://en.wikipedia.org/wiki/Berne_Convention

3. https://archive.org/

4. https://en.wikipedia.org/wiki/Project_Gutenberg

5 . पारंपरिक मैथिली में ‘धन्यवाद’क समावेश नहिं !

https://kirtinath.blogspot.com/2022/03/blog-post.html

6 . साहित्य आ शिष्टाचार https://kirtinath.blogspot.com/2019/12/blog-post_29.html

 

  

Tuesday, September 13, 2022

द्वंद के संधान में

कश्मीर से कन्याकुमारी तक
द्वारका से इम्फाल तक
पड़े हैं कितने विग्रह
अपूज्य।
किसी को कहते नहीं
सपने में
मैं पड़ा हूं विस्मृत
अकेला, अपूज्य !
हमारे पूर्वजों ने
हर पत्थर
पेड़
नदियों,
पर्वतों में देखे थे
अपने इष्ट !
आज
आखें हमारी
अब देख नहीं पाती
अपने इष्ट,
इन्सानों में भी,
देखती नहीं प्रकृति में
अपने पूज्य।
क्योंकि,
अब हमें देव नहीं
दंभ चाहिए,
पड़ोसी नहीं,
प्रतिद्वंदी चाहिए,
जिससे
हमारी पुरुषार्थ,
पड़ोसी के हित से नहीं,
उसकी हानि से
करना है
प्रमाणित I
देवता का
नम्रता से नहीं,
दंभ से करना है
आवाहन ।
तभी तो,
नये युग में
बनाए हैं हमने
मनुष्य को
अपने
अहंकार का वाहन !

Thursday, August 18, 2022

अवैध श्रमिकक आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: एक भुक्तभोगीसँ साक्षात्कार

अवैध श्रमिकक आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: एक भुक्तभोगीसँ साक्षात्कार

आधुनिक इतिहासकार लोकनिक मतें १९म शताब्दीक अमेरिकाक पूंजीवादक विकासमे  दास श्रमिकक प्रमुख योगदान रहैक. ओ व्यापार घृणित आ मानवाधिकारक नितांत विरुद्ध छल. फलतः, दास श्रमिकक व्यवस्थाक विरुद्ध १८३९ हि मे लंदनमे अभियान आरंभ भेल छल. कतेक बाधा आ प्रयासक  पछाति विगत शताब्दीमे अंतर्राष्ट्रीय दासता विरोधी संगठन (Anti-Slavery international )क संगठन भेल. ई संगठन दासता आ दासताक कारण मानव शोषणक विरुद्ध कार्य करैछ. तथापि, आइओ विश्वमे कोनो ने कोनो स्वरुपमे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर श्रमिकक शोषण, देह व्यापार आ आ किशोरक वेच-विकिनक व्यापार जारी अछि. सामान्यतः ई व्यापार हमरा लोकनिक आँखिक आगाँ नहि अबैछ. मुदा, गहिकी नजरिसँ देखने अपना आस-पास वा दूरमे मानवक अवैध व्यापारसँ साक्षात्कार भइए जायत.  हमरा गत २०२१क सितम्बर मासमें श्रमिकक अंतर्राष्ट्रीय अवैध व्यापारक एक भुक्तभोगी युवक भेटलाह. ई वृत्तांत ओही भेंट पर आधारित अछि.

हम विवाहक नोत पुरबा लेल टैक्सीसँ बंगलोरसँ  कडलूर (तमिलनाडु) जाइत रही. व्यापार पर कोविड महामारीक प्रभाव समाप्त नहि भेल रहैक. अतः हमर टैक्सी-ड्राइवर युवक पार्ट-टाइम ड्राइवर रहथि. कैटरिंग टेक्नोलॉजी मे डिप्लोमा ई युवक रोजगारक अभावमे लाखो आओर युवक जकाँ घर बैसल रहथि. कहैत छैक, बैसलसँ बेगार भला. अस्तु, जखन सवारी भेटनि, टैक्सी चला लैत छलाह.

ट्रेन, टैक्सी, बसमे सहयात्रीसँ परिचय करबा ले पर्याप्त समय भेटैछ. समय बितयबाक हेतु सेहो ई नीक. गप्प–सप्पक बीच कतेक बेर अनेक नव गप्प भेटि जायत. हमहू ओहि दिन ड्राइवरसँ परिचय पात कयल आ गप्प करय लगलहुँ. किन्तु, गप्प मे जं किछु नव होइक आ अहाँकें सूचना एकत्र करबाक हो, तँ बाजी कम आ सुनी बेसी. बीच-बीच मे वक्ता कें उत्साहित करियनि, जाहिसँ गप्प चलैत रहैक. मुदा, एहि हेतु गप्पी संगबे चाही. हमर ड्राइवर निर्विवाद अनुभवी रहथि. हुनका गप्प करब पसिन्न रहनि, आ अंग्रेजी हिन्दी में नीक जकाँ व्यक्त करबा मे अपन भाव दक्ष छलाह. एहिसँ बेसी चाही की.

दू दिनक यात्रामे समयक अभाव नहि. अस्तु, ओ खूब विस्तारसँ अपन अनुभव कहैत गेलाह. गप्पक विषय  नव आ रुचिकर छल. किन्तु, ई विषय तेहन छल जे सूचना पर सोझे विश्वास हयब कठिन छल.

आब गप्प सुनू. अथ ड्राइवर, श्री सिदप्पा, उवाच:                                                                                       वर्ष २००३. हम नौकरी तकैत रही. मनोरथ छल, विदेशमे नौकरी भेटय तँ आओर नीक. संयोगसँ तखने बंगलोरक समाचार पत्रमे केरल केर एक कंपनीक विज्ञापन बहरायल रहैक. विज्ञापनमे कैटरिंग सुपरवाइजर / मेनेजर, ड्राइवर, भनसिया, लेबर(श्रमिक)क रिक्ति बहराएल रहैक. इंटरव्यू आ बहाली भारतक अनेक शहरमें हेबाक सूचना रहैक. संयोगसँ इंटरव्यूक एकटा केन्द्र बंगलोरहुमे रहैक. हमरा सुविधा भेल. हम कैटरिंग सुपरवाइजरक पदक हेतु  तुरत आवेदन पठा देलियैक. हमरा बंगलोरक एक पांच सितारा होटलमे कैटरिंग सुपरवाइजरक रूप मे काज करबाक अनुभव छल. अस्तु, इंटरव्यू भेलैक आ हमर चुनाव भए गेल. मुदा, समय बेसी नहि रहैक. ओही हफ्तामे कुवैत जेबाक आदेश रहैक. हमरा लोकनि तँ नीक आमदनीक लोभें ‘खाड़ी’ देशक नौकरीक हेतु मुँह बओनहि रही. जयबाक खर्च भेटिते रहैक. बस विदा भए गेलहुँ. सोझे कुवैत.’

 वाह! बढ़िया.’ – हम कहलियनि.एखन सुनू ने.’ सिदप्पा हमरा दूरेसँ हाथ देखबैत कहलनि आ पुनः शुरू भए गेलाह: कुवैत पहुँचलहुँ. दोसरे दिन फेर आगूक यात्रा रहैक. मुदा, अगिला यात्राक हमरा लोकनिकें कोनो अनुमान नहि छल. ओतय पासपोर्ट जमा कय लेलक. दोसर हवाई जहाज पर सवार भेलहुँ आ सोझे इराक. आब अहाँ पूछब कतय गेल रही तँ हम एतबे कहब: इराक. बड़का मरुभूमि. अमरीकी सेनाक छावनी. चौबीस घंटा कड़ा  पहरा.  भीतर गेलहुँ. सबहक काज भीतरे रहैक. काज शुरू क’ देलहुँ. बाहर युद्ध छिड़ल रहैक; हरदमे गोलाबारीक आवाज सुनिऐक. हमरा संग भारतसँ आयल बाँकी के कए कतय गेल, की जानि! बाहर कतहु जयबाक कोनो सवाल नहि. देश-दुनियासँ कोनो संपर्क नहि. जे अंतय गेल, ककरा की भेलैक, कहब मोसकिल. डेढ़ बरख ओही जहलमे काज करैत दिन-राति बीति गेल.’

 तँ, डेढ़ बरखक बाद बंगलोर आबि गेलहुँ ?’ सिदप्पा हँसय लगलाह. कहलनि: ‘ बंगलोर कतय ? इराकसँ सोझे ऑस्ट्रेलिया ! ओतहु ओएह खेल. अमरीकी मिलिटरी छावनी. घेराबंदी. सब किछु भीतर. ओतयसँ  डेढ़ वर्षक पछाति फेर कुवैत आपस. पछाति कुवैतसँ  बंगलोर आपस भेलहुँ.’                                         हमर आश्चर्यक ठेकान नहि. मुदा, सिदप्पाकें उत्साहित करैत कहलियनि: तखन तँ अहाँ तीन टा देश देखि लेल. अमेरीकी मिलिटरी सेहो देखल.’                                                                                                 सिदप्पा पुनः हँसय लगलाह: ‘ हम कुवैत छोड़ि कतहु नहि गेलहुँ !’                        

माने?’                                                                                                                          पासपोर्ट ठीकेदार लग छल. ओहि पर केवल बंगलोर, दिल्ली आ कुवैतक ठप्पा रहैक. आपस आबि इराक आ ऑस्ट्रेलिया कहितियैक तँ गिरफ्तार नहि भए जैतहुँ ! हमरा कि कोनो वीसा छल, कि नियुक्ति पत्र. ’

अच्छा?’

तखन की? पासपोर्ट पर कोनो लिखा-पढ़ी नहि. भारत सरकारक अनुमति नहि. तखन हम सब भेलहुँ गैरकानूनी मजदूर. कतहु कोनो सुनवाइ नहि. जे मरिओ-खपि गेल रहितहु, तं ओकरो कोन गिनती.’

टाका तँ कमएहुँ, ने?’

हं. आधा-छीधा! ठीकेदार अपन कमीशन तँ काटिए लैत छैक ने.’

आ अनुभवक सर्टिफिकेट? से  तँ भेटल हएत ?’

 अछि ने. कुवैत केर अमेरिकी छावनीक केटरिंग ठीकेदार सर्टिफिकेट देलक ने’ कहैत ओ टैक्सीक डैशबोर्डसँ लैमिनेटेड कार्ड निकालि हमरा दिस बढ़ओलनि.

हमरा ओहि दिन सिदप्पाक गप्प जं पूर्णतः मनगढ़ंत नहिओ लागल तँ ओहि पर ओहि दिन सोझे विश्वासो नहि भेल. आब अनेक मासक पछाति जखन अमिताभ घोषक उपरोक्त पोथी पढ़ि रहल छी तँ आधुनिक दास-व्यापारक कटु सत्य आँखिक सोझाँ मूर्त भए रहल अछि. सैनिक अभियान वा नागरिक आपूर्तिक हेतु वर्तमान युगक उपस्कर(logistic)क भंडारण आ वितरण आ एहि मे निहित ‘बंधुआ’ श्रमिकक संबंध मे २०२१मे प्रकाशित अपन पोथी ‘The Nutmeg’s curse (Parables for a planet in crisis), मे लेखक अमिताभ घोष लिखैत छथि:              

साधारणतया ‘logistic city’ पूर्णतः नियंत्रित श्रमिक बलसँ संचालित अत्यन्त सुरक्षित वितरण केन्द्र थिक जकर माध्यमसँ विश्वव्यापारमे वा सैनिक अभियानमे उत्पादनक स्थान आ उपभोक्ताक बीच माल-असबाबक निर्बाध यातायात सुनिश्चित कयल जाइछ.’

अस्तु, जहिना विश्व भरिमे नागरिक उपभोक्ता वस्तुक वितरणक हेतु  अमेजन, आइकिआ, वालमार्ट, नेस्ले, आ टारगेट सन बहुराष्ट्रीय व्यापारी संस्थाक वस्तु जातक वितरण हेतु विश्व स्तर पर माल-असबाब संकलन, भंडारण आ वितरण कंपनी सब तत्पर अछि, तहिना सामरिक अभियानक हेतु सेहो विभिन्न पक्ष अंतर्राष्ट्रीय अभियानक संचालन ले माल-असबाबक केन्द्र ( logistic centre )क स्थापना करैत अछि. उदहारणक हेतु, ‘२००१ मे अफगानिस्तानमे अमरीकी आक्रमणक आरंभक तुरत बाद अमेरिकी सेनाक हेतु आवश्यक वस्तुजातक आपूर्तिक हेतु दुबई मे माल असबाबक केन्द्र (logistic city) क स्थापना भेल छल. एहने logistic city इराक केर बसरा नगर आ अमेरिकाक ओकलैंड आ वैंकुओवर शहर मे सेहो अछि.’

एहि भंडारण-वितरण  नगर सबमे श्रमिक लोकनि अत्यंत कठिन सुरक्षाक बीच रहैत छथि. चूकि, एहि सब संगठन-भंडारण-वितरण  (logistic hub)मे प्रवेशसँ पूर्व श्रमिक लोकनिके अनेक करार पर हस्ताक्षर करय पड़ैत छनि, तें ओ लोकनि स्वेच्छया अपन अनेक मूलभूत अधिकारसँ समझौता तँ करिते छथि, एतुका सब गतिविधि मानवाधिकार आ स्थानीय कानूनक अधिकारक परिधिसँ बाहर होइछ. एहि तथ्यकें रेखंकित करैत लेखक अमिताभ घोष कहैत छथि: ‘ ई logistic city वा hub प्रथम दृष्टया भले भिन्न बुझाइत हो, मुदा, थिक तँ ई बीतल युगक दास-किला, दास-व्यापार बंदरगाह आ कंपनी नगरे, जकर स्थापना डच आ ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कंपनी ( अपन व्यापार ले ) कयने छल.’[1]

अमिताभ घोषक एहि पोथी पढ़लाक पछाति हमरा ड्राइवर सिदप्पाक गप्प, गप्प नहि यथार्थ थिक, से विश्वास भए गेल. हं, भारत इराकमे अमिरकी युद्ध (२००३-११)  मे प्रत्यक्षतः सम्मिलित नहि भेल छल. मुदा, अनाधिकार रूपें भारतीय बेरोजगार ठेकेदारक माध्यमसँ ‘खाड़ी-देश’ जाइत छलाह तकर आओर दू गोट प्रमाण समाचार पत्र ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ आ दिल्लीसँ प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ मे प्रकाशित समाचारसँ भेटल जाहि मे भारतक तत्कालीन विदेशमंत्री यशवंत सिंहसँ इराक मे फंसल भारतीय श्रमिक लोकनिक उद्धारक हेतु अपीलक समाचार छपल छल. [2,3] संयोगवश सिदप्पा इराक वा ऑस्ट्रेलियामे कोनो प्रकारक प्रताड़ना वा अमानवीय व्यवहारक गप्प नहि कहलनि. मुदा, जतेक वेतनक आश्वासन भेटल रहनि से तँ नहिए भेटलनि. ऊपरसँ नियत अवधि धरिक सेवाक प्रतिबंध तँ भोगबे केलनि. रोजगार आ आर्थिक लाभक हेतु आर्त लोक की ने सहि लैछ!  

ततबे नहि, गत १७ अगस्त २०२२क ब्रिटेनक प्रमुख समाचार पत्र ‘द गार्डियन’ मे जॉर्ज मोनबियो नामक लेखकक, एक दोसर प्रकारक प्रतिष्ठान-  ब्रिटेन स्थित स्पेशल इकनोमिक ज़ोन वा फ्रीपोर्ट (Free Port )क- संबंध मे एक विचार  छपल अछि. एहि लेखमे मोनबियो लिखैत छथि, ‘वस्तुतः, स्पेशल इकनोमिक ज़ोन वा फ्री-पोर्टक भीतरक कार्यकलाप सबसँ एना प्रतीत होइछ जेना ई क्षेत्र सब देशक सीमा (आ कानूनसँ ) बाहर हो, जेना मध्यकालीन इंग्लैंडक जंगली क्षेत्र सब छल, जतय राजाक व्यक्तिगत अधिकार नागरिक अधिकारसँ ऊपर छल. एहि लेख केर सारांशमे लेखक कहैत छथि: ‘ फ्रीपोर्ट संगठित अपराध, काला धनक गोरखधंधा (money  laundering), आ मादक द्रव्यक अवैध व्यापार (drug-trafficking) कें बढ़ावा दैछ. मुदा, एहि सबसँ देशकें न्यूनतम लाभ होइछ. परश्रय केवल पूंजीकें भेटैछ.[’4]

इएह थिक वर्तमान युगक पूँजीवादक नग्न सत्य.

एहि सबसँ एतबा तँ स्पष्ट अछि, दासता आ दास-व्यापार भले प्रतिबंधित भए गेल हो, दास-किला, दास-व्यापार बंदरगाह आ कंपनी नगर प्रतिबंधित भए गेल हो, किन्तु, भिन्न-भिन्न नामसँ, आ विकसित आ विकासशील देश मे कानूनक क्षत्रछाया मे एखनो दास-व्यापार-सन गतिविधि जारी अछि, आ कानूनक आ मानवाधिकारक निरंतर हनन चलि रहल अछि.

नोट: गोपनीयताक निर्वाह ले व्यक्तिक नाम बदलि देल गेल अछि. 

सन्दर्भ:

1. Ghosh Amitabh. The Nutmeg’s curse (Parables for a planet in crisis) 2021. Penguin Allen.

2. George Monbiot. Welcome to the Freeport, where turbocapitalism tramples over British democracy. The Guardian 17 August 2022.

3. Indian workers escape from US army camp in Iraq .The Hindustan Times, New Delhi, May 06, 2004.

4. Rohde David: The struggle for Iraq: foreign labor; Indians Who Worked in Iraq Complain of Exploitation. The New York Times. May 07, 2004.


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