आइ एकटा नव व्यक्तिसं भेंट भेल ; राकेश शर्मा . वयस दू दिन . रंग ? श्वेत, श्याम ? उहु, रक्ताभ . दुइ दिन पहिने धरि तं माइक पेटे में छलाह . दू दिन सं भूमि पर छथि . मुदा , जनमिते लागि गेलनि डाक्टरक फेरी . राम कहू . दुनू आँखिमें मोतियाविन्दु . मुदा, आँखि खोलि चारू भर तकैत छथि . तेज रोशनी पसिन्न नहिं . मुदा, आँखिक तं खोलैत छथि . माताक कोंढ़ फटैत छनि. मुदा की करतीह ? सोचने छलीह , राकेश चानपर जेताह . मोतियाविंदुक नाम सुनि एखन दुखी छथि . मुदा कोन ठेकान . मूक होई बाचाल ! तें , राकेश एवेरेस्ट चढ़ताह, कि चान के केर चानि पर भांगड़ा करताह के कहय !
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
Thursday, February 19, 2015
Saturday, February 14, 2015
सुनसान बाट पर एसगर हम
सुखद , सोहाओन बसात , आ सूर्यास्तकालक अरुणाभ इजोत ,
दूर-दूर धरि पसरल परिसर,
मुदा सूनसान बाटपर अनेरे टौआइत छी .
भोर हो वा सांझ बन्न खोभाड़ी में औनाइत अछि मन ,
भने , एसगरे बौआइत छी .
भोरे उगैत छथि सूर्य , सांझे उगैत छथि चान
ने नानी खुअबैत छथिन चान केर कौर ,
ने बाबा देखा पबैत छथिन बाउ कें भोरुका किरन .
की करताह चान -सुरुज ?
उगैत छथि , डूबैत छथि , डूबैत छथि, उगैत छथि !
की करत कौआ आ मेना ?
ने बौआ तकैत छथिन बाट ,
ने बौआसीन करैत छथिन खोज .
मुदा, हमरा चाही सबटा .
चान-सुरुज , कौआ-मेना
मनुक्ख आ जानवर,
वायु आ बसात ,
सांझुक घूड़-धुआं
भोरुका ओस आ कुहेस
दिनुका रौद आ रतुका तरेगन .
धानक खेत आ आमक गाछी
मुदा, सबटा कोना भेटत ? बैसल अपन कोठलीक अभयारण्य में !
तें,
हम, सूनसान, निःशब्द बाटपर अनेरे टौआइत छी .
बन्न खोभाड़ी में औनाइत अछि मन ,
तें,भने , एसगरे बौआइत छी .
कदाचित् , एहि सांझमें , वा कल्हुका भोर में,
होई ,
कतहु कोनो मनुक्खक आहट, वा नेनाक स्वरक सनेस
आ हठात ,
निःशब्दताक होई दमन ,
आ मनुक्खक होइ प्रवेश .
सुखद , सोहाओन बसात , आ सूर्यास्तकालक अरुणाभ इजोत ,
दूर-दूर धरि पसरल परिसर,
मुदा सूनसान बाटपर अनेरे टौआइत छी .
भोर हो वा सांझ बन्न खोभाड़ी में औनाइत अछि मन ,
भने , एसगरे बौआइत छी .
भोरे उगैत छथि सूर्य , सांझे उगैत छथि चान
ने नानी खुअबैत छथिन चान केर कौर ,
ने बाबा देखा पबैत छथिन बाउ कें भोरुका किरन .
की करताह चान -सुरुज ?
उगैत छथि , डूबैत छथि , डूबैत छथि, उगैत छथि !
की करत कौआ आ मेना ?
ने बौआ तकैत छथिन बाट ,
ने बौआसीन करैत छथिन खोज .
मुदा, हमरा चाही सबटा .
चान-सुरुज , कौआ-मेना
मनुक्ख आ जानवर,
वायु आ बसात ,
सांझुक घूड़-धुआं
भोरुका ओस आ कुहेस
दिनुका रौद आ रतुका तरेगन .
धानक खेत आ आमक गाछी
मुदा, सबटा कोना भेटत ? बैसल अपन कोठलीक अभयारण्य में !
तें,
हम, सूनसान, निःशब्द बाटपर अनेरे टौआइत छी .
बन्न खोभाड़ी में औनाइत अछि मन ,
तें,भने , एसगरे बौआइत छी .
कदाचित् , एहि सांझमें , वा कल्हुका भोर में,
होई ,
कतहु कोनो मनुक्खक आहट, वा नेनाक स्वरक सनेस
आ हठात ,
निःशब्दताक होई दमन ,
आ मनुक्खक होइ प्रवेश .
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