Saturday, February 14, 2015

                              सुनसान बाट पर एसगर हम
सुखद , सोहाओन बसात , आ सूर्यास्तकालक अरुणाभ इजोत ,
दूर-दूर धरि  पसरल परिसर,
मुदा सूनसान बाटपर अनेरे टौआइत  छी .
भोर हो वा सांझ बन्न खोभाड़ी में औनाइत अछि मन ,
भने , एसगरे बौआइत छी .
भोरे उगैत  छथि सूर्य , सांझे उगैत छथि चान
ने नानी खुअबैत छथिन चान केर कौर ,
ने बाबा देखा पबैत छथिन बाउ कें भोरुका किरन .
की करताह चान -सुरुज ?
उगैत छथि , डूबैत छथि , डूबैत छथि, उगैत छथि !
की करत कौआ आ मेना ?
ने बौआ तकैत छथिन बाट ,
ने बौआसीन करैत छथिन खोज .
मुदा, हमरा चाही सबटा .
चान-सुरुज , कौआ-मेना
 मनुक्ख आ जानवर, 
वायु आ बसात ,
सांझुक घूड़-धुआं
भोरुका ओस आ कुहेस
दिनुका रौद आ रतुका तरेगन .
धानक खेत आ आमक  गाछी
मुदा, सबटा कोना भेटत ? बैसल अपन कोठलीक अभयारण्य में !
तें,
हम, सूनसान, निःशब्द  बाटपर अनेरे टौआइत  छी .
 बन्न खोभाड़ी में औनाइत अछि मन ,
तें,भने , एसगरे बौआइत छी .
कदाचित् , एहि सांझमें , वा कल्हुका भोर में,
 होई ,
कतहु कोनो मनुक्खक आहट, वा नेनाक  स्वरक सनेस
आ हठात ,
निःशब्दताक होई दमन ,
आ मनुक्खक  होइ प्रवेश .


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