Friday, December 23, 2016

रजांग-ला केर बाट पर-2

पेंगोंग-सो झीलक बाट पर
कीर्तिनाथ झा
रजांग-ला शहीद स्मारककेर दर्शनक पछाति ओहि दिन आ राति चुशूलमें विश्राम भेलैक. समुद्र तल सं 14300 फुट सं बेसीक ऊंचाई. पूब-पश्चिम दुनू दिस ऊँच-ऊँच पर्वतमालाक बीच सपाट मैदान. सितम्बरक मास. राति में जाड़ तं छलैके. मुदा, ओढ़ना-बिछाओनक अभाव नहिं. तथापि हाई-एलटीच्युडक इलाकामें अनिद्रा, अभूख, आ चिंताक शिकायत आम थिकैक. परिश्रम एहि सब रोगक अचूक औषधि थिक. सैनिकक जीवनमें तकरो  अभाव नहिं. मुदा, व्यक्तित्व आ मनोबलक असरि तं स्वास्थ्य पर पड़ते छैक. संयोगसं हमरा लद्दाख़क अढ़ाइ वर्षक प्रवासक बीच हाई-एलटीच्युडक  कोनो दुष्प्रभाव सामना नहिं करय पड़ल.                                                             आइ तांगसे गाम स्थित फील्ड-एम्बुलेंस (युद्ध क्षेत्रक  स्वास्थ्य-सेवा प्रतिष्ठान ) में स्कूली नेना सबहक आँखिक जांच करबाक अछि. सुदूर क्षेत्रमें स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करायब भारतीय सेनाक पुरान संस्कृति थिकैक. तें, भोरहि हमरा लोकनि तांगसे ले विदा भेलहुँ. ताधरि चुशूल उपत्यकामें सबतरि भोरुका रौद पसरि आयल रहैक. बाट काते-कात गौंआ सब उठि गाय-गोरु आ माल मवेशी में लागल छलाह.
बकरीक बाड़ा: चुशूल
पहाड़ी इलाकामें लोक सबेर उठैत अछि आ सुतितो अछि सांझे राति. नेपाल में, उपहासमें, लोक कहैक, सूर्य अस्त- नेपाल मस्त. आइ सं पचास वर्ष पूर्व मिथिलांचलहु में इएह हाल रहैक. सूर्योदय सं पहिने उठब, आ पहिले सांझ भोजन-भात सं निश्चिंत भ गाम तेना निशब्द भ जाइक जे रातिक नौ बजे धरि लोक एक नीन मारि लैत छल. प्रायः,  दिन रहैत सूर्यक रोशनी में काज निबटेबाक (daylight-saving) ई साविक व्यवस्था रहैक. मुदा, लद्दाख़में तहियाक मिथिलांचलक बाध्यता नहिं छैक. एतय बिजुली
आ सड़क सबतरि छैक. दूर-दराजहुमें  शिक्षा व्यवस्था छैक. तें, देशक केंद्रसं  लद्दाख़ दूर भले हो, सरकारी व्यवस्था एतय आन ठाम सं बीसे छैक, उन्नैस नहिं. एतय माल-जालले मालकघर-गोठुलाक- जगह  लोक पाथरक बाड़ा बना लैछ. बकरी-भेंडीकें भीतर केलक आ फाटक लगा देलक. मच्छर- मांछी-डांसकेर प्रकोप नहिं. तें, घूड़-धुंआंक परिपाटी नहिं; जाड़ एतेक जे घुड़ लग बाहर बैसब असम्भव. ततबे नहिं. गाछ-वृक्ष कतहु छैक नहिं,जारनि कतय पाबी. गोबर-करसी तं चुल्हामें जरि जाइछ. सुखायल घास-पात मवेशीक चारा भ जाइछ; जाड़ मासमें तं माल-जाल सुखायले घासपर गुजर करैछ. तें, भरि गर्मी किसान लोकनि घरक छातपर घास पात जमा करैत छथि , जे जाड़ मास कहुना कटि जाय. जाड़ मासमें हरियर घासले माल-जाल एतेक लल्ल भ जाइछ, जे देखलियैक, भेंडी-बकरी सब जीबैत गाछक छालकें दांत सं छीलि खा लैछ. तें, लेह केर इलाकामें सड़कक कातक गाछक निचला 2-3 फीट हिस्सा पर टिन ठोकल देखलियैक. ई कनेक विषयांतर भेल. मुदा, एहि सं ई अवश्य बुझबामें आओत जे हाई-एलटीच्युडक इलाकामें प्राणिमात्र कोना गुजर करैछ. करीब 1 घंटा यात्राक बाद पेंगोंग-सो झीलक दर्शन भेल.
पेंगोंग-सो झील
ई दर्शन साधारण नहिं तें कनेक धैर्य करू. कहैत छी. सड़क किछु दूर झीलक कछेरे-कछेरे चलैछ. हम एहि सं पूर्व प्रायः तीन बेर एतय आयल छी. मुदा, चुशूल बाटें ई पाहिले यात्रा थिक. तें, एहि बेर झील केर दोसर आ वृहत फलक केर दर्शन भेले. ई सब अवसर सेनाक नौकरीक अमूल्य बोनस थिक.  आब कनेक  पेंगोंग-सो झीलक गप्प करी . सत्यतः आब अनेको
फिल्ममें एहि झीलकेर आस पासक इलाका आबि चुकल अछि. तें , सम्भव अछि बहुतो लोक पेंगोंग-सो झीलक चित्र देखने होथि. जिज्ञासु ले विकिपेडिया पर कोन वस्तु परिचय नहिं छैक ! तथापि एतबा अवश्य कहब, मौका हो तं एकबेर पेंगोंग-सो झीलक कछेर पर आउ अपना आँखिए देखू आ अनुभव करू जे संसारक परिचित आश्चर्यसं आगुओ आओर कतेक आश्चर्य जहां-तहां छिडियायल छैक ! 120 कि. मी. लम्बा पेंगोंग-सो झील कतेको अर्थ में अजगुत अछि. आसमान छूबैत उन्नत हिमालयक शिखरसं पघिलैत बर्फ़क स्वच्छ आ निर्मल जलसं पूरित एहि झीलक नोनगर पानि मनुखक हेतु पीबा जोग नहिं. झीलकेर पानि एतेक स्वच्छ आ पारदर्शी छैक जे जतय झील कम गहिंड छैक, झीलक सतह परक बालु आ पाथर अयना जकां झलकैछ. तथापि, झीलमें जीव-जंतु नदारद. तथापि एहि झीलक नीलम-सन पानिक रंग अवर्णनीय छैक. हाई-एलटीच्युडक इलाकाक निर्मल आकाश, विरल वायु, आ चमकैत रौदमें नील पानिक प्रतिपल बदलैत दर्जनों रंगकें ने कैमरा पकडि सकैछ, ने एल इ डी मोनिटर ओकरा देखा सकैछ; एहि झीलक सुन्दरता केवल मनुखक आँखिक अनुभवक वस्तु थिक, जे देखि सकैत छी, जकरा सं चकित भ सकैत छी. तें, यात्री सब झीलक  कछेर पर किछु काल बैसथि, झील केर रंग-रूपक आनंद लेथि आ एहि अपरुप सौन्दर्यकें स्मरणक पौती  में जोगाबथि. पेंगोंग-सो झीलक उत्तर पश्चिम कोन पर सेनाक इंजिनीरिंग कोर केर एकटा दल रहैछ. इएह लोकनि हमरा लोकनिकें ले नौका विहारक व्यवस्था केलनि. सामान्य पर्यटकक लेल ई सुविधा उपलब्ध नहिं. कारण, ई झील भारत-चीनक बीचक विवादित क्षेत्रक बीचमें पड़ैछ ; झीलक उत्तर -दक्षिणक  करीब 40 कि. मी. लम्बाई पर भारतक अधिकार छैक आ पूब-पश्चिम अंशक करीब 80 कि. मी. लम्बाई पर चीन अधिकार जमौने अछि. झीलकेर पुबरिया कछेर धरि चीन जबर्दस्ती सड़क सेहो बनौने अछि. 1962 केर युद्धसं पूर्व झीलक पुबारि पारक किछु इलाका पर भारतीय सेनाक अधिकार रहैक. किन्तु, युद्ध काल में झीलकें पार करैत भारतीय चौकी धरि माल-असबाब पहुँचायब आ ओकर  सुरक्षाक करब ततेक कठिन साबित भेलैक जे झीलक पुबारि पारक चौकी पर तैनात कतेक सैनिक लोकनि अंततः अपन  प्राणक आहुति देलनि . पेंगोंग-सो झीलक उत्तर पश्चिम कोन पर सेनाक इंजिनीरिंग कोरक विश्राम-स्थलक लगहिं, पछबारि कात जे पहाड़ छैक तकरा लोक गार्नेट हिल कहैत छैक. यत्र-तत्र पसरल पाथरक ढेप सब में गार्नेट पाथरक कनी सब देखबामें अवश्य आओत. दू-चारि ढेप हमहूँ उठाओल, की पता किछु भेटय. किन्तु, किछु भेटल नहिं. एहि सैनिक विश्राम-स्थल सं पच्छिम मुहें सड़क, लुकुंग गाओं दिस जाइछ. लुकुंग गाओं लग दुनू कातक पहाड़ एक दोसराक लग सहटि अबैछ आ चुशूल उपत्यकाक चाकर-चौरस भूमिक  बनिस्बत ई भूमि संकीर्ण दर्रा जकां भ जाइछ. इएह बाट तांसे-दुर्बुख, आ चांग-ला पास (17350 फुट) पार करैत होइत लेह धरि जाइछ. स्पष्ट छैक, 1962 भारत-चीन युद्धक समय सैनिक सुरक्षाक दृष्टिए ई बाट अत्यंत महत्वपूर्ण रहैक. तें, सड़क सं उत्तरक समतल भूमि कटैया तार सं घेड़ल-बेढ़ल छैक. पुछला सं पता चलल, ई क्षेत्र बारूदी सुरंगक क्षेत्र थिक जे युद्धकाल में भारतीय सेना सड़कक सुरक्षाले बिछओने छल. युद्ध समाप्त भेल. आधा शताब्दी सं लम्बा अवधि बीतल. मुदा, माइन-फील्ड जीविते अछि - मारुख आ निर्दय. जहां ओतय पयर पड़ल कि, धमाका ! विनाश आ हाहाकार . सुनैत छियैक, युद्ध आ गृहयुद्धमें, युद्ध भूमिमें प्रतिद्वन्दी सब जे माइन-फील्ड बिछ्बैछ, से पीढ़ी-दर-पीढ़ी मनुखक हत्या आ विकलांगताक कारण बनैछ. बुझबाक थिक, माइन-फील्ड बिछायब आ साफ़ करब दुनू खतरनाक आ श्रमसाध्य काज थिक. तें, युद्धक समय जे माइन-फील्ड बिछाओल गेल तकरा साफ़ के करत ? पछाति कतेक ठाम माइन-फील्ड पर जंगल-झाड़ जनमि जाइछ, आ मारुख इलाका अनचिन्हार भ जाइछ.  बाढ़ि-पानि, भू-स्खलन, आ माटिक जोत-कोड सं बारूदी सुरंग सब अपन स्थान सं ससरि दूर-दूर धरि पसरि जाइछ, नदी-नाला-समुद्र धरि बहि जाइछ. तें,एखन धरि, द्वितीय विश्व युद्धक सुरंग सब भेटितो छैक आ फटितो छैक. अस्तु, 1962 क युद्धमें चीनी सेना झील सं पश्चिम दिस तं नहिं आबि सकल, किन्तु, ई माइन-फील्ड एखनो मुंह बिचकौने, नागफनी-जकां बाटक कातमें  अछूत-सन  पड़ल अछि आ भयभीत यात्री एहि मारुख भूमि कें दूरहिं सं गोड लगैछ आ काते-कात आगू बढ़ि जाइछ. आब मानव-विध्वंशक माइन (anti-personnel mine)  केर विरुद्ध अनेक अंतर्राष्ट्रीय सन्धि भेल अछि, किन्तु, लगैत नहिं अछि, विश्व भरि में निरंतर बढ़इत द्वन्दक युगमेें अमर-कन नागफनी हठे उकन्नन हयत. हमरा लोकनि करीब 10 बजे तांगसे फील्ड एम्बुलेंस पहुँचलहुं. संगबे महिला लोकनि विश्रामले अफसर मेस दिस गेलीह आ हम फील्ड एम्बुलेंस में स्कूली-बच्चा लोकनिक आँखि जांच में लागि गेलहुं. 
तांगसे में स्कूली नेना सबहक संग
तेसर दिन. लेह ले विदा. बाटक दाहिना कात दुर्बुख गाम छैक, किछु दूर में शयोक गाम अबैत छैक. ओही बाटें पहिने, उत्तरमुँहे, एकटा खुरबटिया दौलतबेग ओल्डी इलाका होइत कराकोरम पास आ कासगार(चीन) धरि जाइत छलैक. ई बाट ऐतिहासिक सिल्क-रूट केर फीडर छल. बाट दुर्गम आ भूमि बंजर छैक. 1962 क जाड़में भारतीय सेना ओहू इलाकामें बलिदान देने छल. अकसाई-चिन ओएह भूमि थिकैक जकरा सम्बन्ध में नेहरु कहने रहथिन, ' एहि भूमि में एकटा दूबिओ नहिं जनमैछ '. एखन तं भारतीय वायु-सेना क बड़का मालवाही जहाज़ हर्कुलिस सेहो ओतय उतरैत अछि. जे किछु. दुर्बुख सं पश्चिम मुंहक सड़क क्रमशः चांग-ला क ऊंचाई धरि चढ़इछ. बाटमें ठाम-ठाम हरियरी आ चारागाह सेहो छैक. एतय भेंडी-बकरीक तं कम, मुदा याक (चंवरी गाइक) पालन बेसी होइछ. पानिक श्रोत लग गलैचा जकां पसरल अजस्र घास याक खूब चरैत अछि. जाड़क मासमें इएह घास रौदमें सुखायल, छिलल घास आ पोआर -सन भ जाइछ. पुनः, गर्मीमें जमल बर्फ़ जखन पानि बनि पोषक तत्व बहबय लगैछ तं  भूमि पर पोआर-सन  सुखायल-स, दूबि जे पहिन कतहु-कतहु हुलकी दैछ, सेह किछुए दिन में , चतरि हरियर गलीचा बनि जाइछ.  माल-मवेशी एतुका अर्थ-व्यवस्थाक एहन अभिन्न अंग थिक. एतय याक-भेंडी-बकरीक शरीरक सकल उत्पाद  दूध-घी-छेना-मासु,गोंत-गोबर सब प्रयोग में आबि जाइछ. हाड़-सींग-केश धरि दूरि नहिं जाइछ. एकबेर पेंगोंग-सो झीलसं लेह केर यात्रामें अहिना स्थानीय जन-जातिक आवास धरि गेल रही. याक केर केश सं बनल तम्बू. ओही तम्बूमें जीवन-यापनक सब उपादान. भानस-भात, बच्चा-बुतरू, अन्न-पानि, बैसक, बिछाओन. याकक केशक तम्बू  देखिते हमर मनक यायावर जागि उठल छल . द्वारि पर पहुँचलहु तं घरवारीकें हाक देबाक कोनो काज नहिं. एतुका आवासमें ने अंगना छैक, ने दालान . ने खरिहान , डीह-डाबर. जतहि धड़, ततहि घर. तम्बू भेल घरवारीक संसार. लगक पानि श्रोत भेल पोखरि-इनार. घासक अनन्त विस्तारमें, नीचा सं ल कय  पहाड़क शिखर धरि, ताकि-ताकि कय माल-जाल घास चरैछ. जतय जगह भेटय, नेना-भुटका खेलाइछ. माल-जाल कें दुहबाक बेर किसान कें कतेक समय लगतनि तकर कोन ठेकान. कहल जाइछ, जहां-तहां बौआइत याक कें एकठाम जमा करब ततेक कठिन छैक जे 1962 क युद्ध में भारतीय सेना भार-वाहनमें ई बड़का बाधा साबित भेल छलैक; ओहि समय में एहि इलाका में पीच रोड तं रहैक नहिं. सब किछु, घोड़ा-खच्चर-याकहिं पर लादल जइतैक. एतय किछु दूर पर नुब्रा उपत्यकामें तं ऊंटपर सेहो भारवाही होइत छलैक. ओतय एखनहु ऊंट भेटत. मुदा, पहाड़ में यत्र-तत्र बौआइत याक अस्तबल में बान्हल घोड़ा नहिं थिक जे खुट्टा पर सं खोलि आनू आ कसू सवारी. प्रवृत्तिए याक जंगली सांढ़ थिक, जकर नियंत्रण ले कल-कौशल आ अनुभव दुनू चाही. आ जखन काज हो, ओकरा ताकू , आनू आ दुहू, सवारी करू. खुट्टा पर बान्हल ओकरा चैन नहिं . जे किछु. ओहि बेरुक यात्रा में अपन आवास लग हमरा सब कें देखि, गृहपति पारंपरिक 'जूले' ( नमस्ते-स्वागत-शुभकामना) सं स्वागत केलनि ; सैनिक लोकनिक एम्हर अद्भुत आदर छैक. गृहपति बैसक अनलनि आ  गृहणी तुरत नोनगर चाह बनौलनि; नोनगर चाह एतुका अमृत थिकैक. एतेक सरलता आ एतेक आदर. हम चाह पीबि गेलहुं . 
याक केर केश सं बनल आवास
दूरस्थ प्रदेशक एहेन आवास देखबाक कौतूहल सं हमर कन्या आ पत्नी कनेक काल तम्बू में बैसलीह तं अवश्य, किन्तु, शिघ्रे किछु अजीब बेचैनीक  अनुभवक कारण तुरत टेन्ट सं बहरा गेलीह. लेह-लद्दाख़-तिब्बत केर रहस्य-रोमांच-तन्त्र- आ हवा केर तरगं पर उड़इत लामाक अनेक कथा पढ़ने आ सुनने छी. किन्तु, अपना कोनो प्रत्यक्ष अनुभव नहिं. तें, एहि लद्दाखी दम्पतिक तम्बू में कोन पराभौतिक शक्तिक प्रभाव छल हेतैक जकर अनुभव, एके समयमें, एके ठाम  भिन्न-भिन्न लोक कें भिन्न-भिन्न रूपें भेल हेतैक, कहि नहिं सकैत छी. एहि बेर हमरा एहि सब ले समय नहिं तें आगू बढ़लहु. दुर्बुख सं चांग-लाक यात्रा में करीब 2 घंटा लागल हयत. आन  सब कोनो पहाड़ी पास जकां एतहु बाबाक मन्दिर , मिलिटरी पुलिस केर चेक-पोस्ट, आ चाह-पकौड़ीक स्वागत.
चांग-ला पास
हम एहि बाटें कतेक बेर यात्रा केने छी . तें एहि बेर फोटो-विडियो नहिं . हमर संगबे पर्यटक लोकनि फोटो घिचबौलनि. आ शिघ्रे जिंगराल-शक्ति गाओं-कारू होइत लेह केर बाट धयल . कोन ठेकान झटमें रूसनिहारि नारि जकां चांग-लाक मौसमक कखन मूड बदलि जाइक. बरखा-बर्फ़ शुरू भ जाइ, भू-स्खलन भ जाइ, चांग-ला बन्न भ जाय आ हमरा लोकनि ने एम्हरुक , आ ने ओम्हरक भ जाइ. एहि बाटें अबैत जाइत सब यात्री एहि पहाड़ सब कें भय-मिश्रित आदर सं देखैछ, सावधानी पूर्वक आगू बढ़ि जाइछ. कारण कनिए असावधानीक कारण प्राकृतिक विपदा , मारुख सड़क वा ऑक्सीजनक कमी कखन जान ल लेत, कोन ठेकान !                      



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