पत्र-पत्रिका आ सम्पादकीय दायित्व
आजुक युगमें पुस्तक-पत्रिका-विश्वकोषक कमी नहिं. मुदा, लेखन ले लिखबाक
लूरि तं चाही, लिखल के सुधारबाक समय आ रूचि तं चाही. छपाई कतेक सुलभ छैक से
सर्वविदिते अछि. छपल सामग्रीक प्रतिष्ठा एखनो छैक, नहिं तं रचनाकें छपयाबाले लोक
किएक आफन तोड़इत ! तथापि, हमरा जनैत, एखनुक
युगमे पत्र-पत्रिकाक शुद्ध छपाई आ सामग्रीक
प्रमाणिकतामें ह्रास भेलैये. ई नीक नहिं, से तं सब मानब. पांडिचेरीमें किछु
बन्धु-मित्र गप्पक क्रम मे कहलनि, भारतक स्वतंत्रताक पूर्व ' हिन्दू' दैनिक
अखबारकें तमिलनाडूक लोक 'माउंट रोड-महाविष्णु' कहैत छलैक आ 'हिन्दू'मे प्रकाशित सामग्रीकें
सरकारी 'गजेट' जकां प्रमाणिक मानल जाइत छलैक . आइ 'हिन्दू'में सेहो अनेको अशुद्धि
भेटत . एहन परिस्थिति में पोथी-पत्रिकामे छिडियायल तथ्यात्मक अशुद्धि निर्विवाद
पत्र-पत्रिकाक एवं पोथीक प्रमाणिकता आ प्रतिष्ठा दुनूपर प्रश्न चिन्ह लगबैत अछि.
एकर छार-भार ककरा पर ? एहि समस्यापर प्रतिष्ठित
पत्र-पत्रिका सब अपन संस्थाक भीतर
आत्म-मंथन करैत छथि आ स्वतंत्र पर्यवेक्षक (ombdsman) नियुक्त केने छथि. मुदा, सब
पत्र-पत्रिकाकें ने तकर साधन छैक आ ने सुधि. तें, प्रकाशनक एहि पक्षपर दृष्टिपात
आवश्यक.
एक लेखकक कृतिक हेतु प्रमाणिकता आ शुद्धि-अशुद्धि सब कथुक दायित्व लेखक-प्रकाशकक
थिकनि . किन्तु, बहुलेखक ग्रन्थ आ पत्र-पत्रिकाक ममिलामें सामग्रीक प्रमाणिकताक
हेतु लेखक आ सम्पादक दुनू उत्तरदायी छथि.
एहि थोड पृष्ठभूमिक संग आजुक मैथिली पत्र-पत्रिका सबमे सम्पादकीय वृत्ति पर
संक्षिप्त विचार प्रस्तुत करब हमर उद्देश्य अछि. एहि लेखक सम्बन्ध कोनो एकटा
पत्रिका सं नहिं, बल्कि, सम्पादकीय वृत्तिपर विस्तृत चर्चा आरम्भ हो से हमर अभीष्ट
अछि.
सम्पादक के थिकाह . सामान्य अर्थमें जे 'कोनो काज (सम्पादन) करथि ओ भेलाह
सम्पादक. ऑक्सफ़ोर्ड डिक्शनरी' अनुसारें, ' पत्र-पत्रिका आ बहुलेखक पोथीक विषय-वस्तु आ
स्वरुपक निर्णायक सम्पादक थिकाह'. मुदा, जं एखुनका पितामह ' गूगल विकिपेडिया' के पुछियनि तं 'संपादन, संशोधन,
संक्षेप, संरचना आ संगठन द्वारा कोनो भाषा, चित्र
वा ध्वनिकें प्रदर्शनक हेतु सुधारबाक /
नीक बनयबाक प्रक्रिया थिक; आ संपादन केनिहार संपादक कहबैत छथि .'
मैथिलीमें ने कोनो समाचार पत्र नहिं छैक. एखनुक पत्र-पत्रिका
अपन प्रमाणिकताक मानदण्ड स्वयं स्थापित केने होथि से सम्भव. मैथिलीक हस्तलिखित
पत्रिका सब सं हम परिचित नहिं छी. ओहि युगमे सम्पादक लोकनि केहन पत्रिका छपइत छलाह से शोधकर्ता लोकनि कहि सकैत छथि . मुदा, (स्व.
प्रोफेसर रमानाथ झा द्वारा सम्पादित) मैथिली साहित्य पत्र, मिथिला मिहिर, मिथिला
दर्शन ( वर्तमान सहित ) ,वैदेही,
विद्वतमण्डली में समादृत छल से सर्वविदित अछि . तथापि, तहियो सब छपल सामग्री सर्वथा दोषमुक्त
नहिं होइत छलैक से संभव. नहिं तं, स्व. हरिमोहन झा 'प्रेसक लीला' सन कथा कोना
लिखितथि. मुदा, ओ भेल केवल छपाईक गप्प.
एखुनक पत्र-पत्रिका में जं सम्पादकीय
वृत्तिक गप्प करी तं सम्पादक लोकनिक समस्याकें अनदेखी नहिं कोना क सकैत छियनि. मुदा, अपन समस्याक
समाधान सम्पादक लोकनि अपने ताकथु. तथापि कंप्यूटरक प्रयोग लेखन-सम्पादनमें क्रांति
आनि देलकइ-ए से के नहिं मानत. आब लेखन-प्रकाशन केर एक-एक विन्दु पर नजरि घुमाबी.
पत्रिकाक सबसं पैघ समस्या होइत छैक सहज बुझबायोग्य भाषामें लिखल प्रमाणिक रचनाक अभाव. सब रुचिक रचनाकें एकठाम संकलित करब दोसर समस्या थिक. जं सामग्रीक विविधताक गप्प करी, तं, कथा, कविता भेटब प्रायः सुलभ
छैक. अनेक कारणसं, विज्ञान विषयक, चिकित्साशास्त्रक, राजनैतिक, यात्रा-वृत्तांत,
पाक-विज्ञानक स्तरीय लेखक अभाव एखनो छैक. स्तरीयताक
परवाहि नहिं करी तं एहि इन्टरनेट युगमें सबतरि विभिन्न विषय पर ढउए-ढाकी लेख भेटत.
भाषा कोनो होइक 'गूगल अनुवाद' पर अनुवाद क लियअ. चेफड़ी लगाउ, चिप्पी सब (cut and paste ) जोडि-जोडिक नौ
हाथक बनारसी-पटोर-साड़ी, माने लेख, तैयार क लियअ ! मुदा, जाहि युग में लोक कें
फेसबुक (facebook) आ व्हाट्सएप (Whatsapp) पढ़बा सं फुर्सति नहिं छैक, ताहि युग में
समेटल बंगौरकें के पढ़त ! तें, जं लेखकेर सामग्रीक उपयोगिता आ रोचकताक दायित्व लेखकक थिकनि, तं, लेखकेर चुनावक दायित्व
तं सम्पादकके थिकनि. एखन जखनि कि सबतरि सूचनाक बाढ़ि छैक, लेख सबहक प्रमाणिकताकें भाजारबाक कष्ट पाठक किएक उठओताह ! अतः एकबेर जे छपल से भ
गेल प्रमाणिक. आ प्रमाणिक पत्रिका में छपल तं भ गेल ब्रह्म-वाक्य. एही दुआरे एहि युग
में 'पोस्ट-ट्रुथ' (post-truth) सन शब्दक अविष्कार भेले ; 'पोस्ट-ट्रुथ' एहन
परिस्थिति थिक जाहिमे प्रचारित सामग्रीकें वस्तुनिष्ठ रूपें बिनु भजारनहिं,
पूर्वाग्रह वा अपन विश्वासक अनुकूल लोक (फूसिओकें) सत्य मानि लैछ. तथापि, अनर्गल
वा दोषपूर्ण सूचनासं पत्रिकामें पाठकक विश्वास तं अवश्ये घटैत छैक. आ जं पत्रिकासं
पाठकक विश्वासे उठि गेलैक तं लोक पत्रिका किनत किएक, आ पत्रिका ले बांकी बंचलैक की
?
दोसर गप्पक सम्बन्ध कहबाक शैली सं छैक . सहज-सरल भाषा लोककें नीक भ' कय बुझबामें
अबैत छैक . कठिन भाषा सक्कत फुटहा चिबायब-सन प्रतीत होइछ. सम्पादक भाषा पर
माथापच्ची करथि कि नहिं से सोचू. मुदा एतबा तं अवश्य, जं, लेख पढ़िकय सम्पादककें किछु
भांजे नहिं लगलनि तं पढ़निहार के बुझबामें की
अओतनि ! आ पत्रिकामें एहन लेख जं छपि गेल तं दोष ककर ? आ लाभ की ?
एकटा आओर समस्या. समालोचनात्मक (?) लेख सब जहां-तहां अनेरुआ घास-जकां पत्र-पत्रिका
सबकें छारने भेटत. जनिका जखन मोन होइत छनि, समालोचना लीखि बैसैत छथि. तकर ई अर्थ
किन्नहु नहिं जे गम्भीर समालोचक नहिं छथि. मुदा, नव गप्प, नव दृष्टि कदाचिते
देखबैक. बेसी काल ओहने गप्प, 'चूड़ा-दही बड मधुर होइत छैक.किएक ? तं, 'महराजी पोखरि
पर सिपाही सब चूड़ा-दही खाइत छलैक , कहलैक बड मधुर होइत छैक.' माने, अमुक विद्वान ई
कहलनि , दोसर ई कहलथिन . तेसर, ई ..... , आदि-आदि. अस्तु, जखन लेख पढ़ला उत्तर हमरा किछु भांजे नहिं लागल,
विद्यार्थी परीक्षामे लिखिए नहिं सकैत छथि, लेखककें विद्वताक सर्टिफिकेट नहिंए भेटतनि, तखन,
सम्पादक अपन दायित्वक निर्वाह किएक ने करथि ? सम्पादकसं पाठककें एतबा अपेक्षा तं
होइते छैक.
सम्पादकीय उदासीनताक उदाहरण देब बिढ़नी छत्तामें हाथ देब थिक. हम केवल मैथिलीक
पाठक छी. पोथी-पत्रिका कीनि कय पढ़इत छी आ नीक सामग्रीक अपेक्षा रखैत छी. तें, हमर
विचार पाठकक दृष्टि थिक. मुदा, एकटा गप्प एतय अप्रासंगिक नहिं होयत . ई थिक
वैज्ञानिक आ मानिविकीय क्षेत्रमें peer-review क परम्परा. शोधकर्ता लोकनि ले ई
शब्द नव नहिं. तथापि, एतय peer-review के फरिछायब आवश्यक. peer-review में लेखकक परिचयकें गोपनीय रखैत, एक वा अधिक सुपरिचित
विद्वान लग प्रतिपादित तथ्यकेर नवीनता, तर्क, प्रमाण, उपयोगिता, आ भाषाक निकतीपर तौलबा ले लेख कें गणमान्य विशेषज्ञ लग पठाओल
जाइछ. विद्वान लोकनिक सुझावक आधारपर लेखक अपन लेखमें संशोधन करैत छथि आ अंततः लेख
स्वीकृत वा अस्वीकृत होइछ. प्रक्रिया श्रम-साध्य छैक, आ लेखकें छ्पबामें बिलंब
होइत छैक, मुदा, ताहि सं लेख, लेखक, आ पत्रिकाक सबहक प्रतिष्ठा बढ़इत छैक. सामान्य रुचिक पत्रिका ले peer-review संभव
नहिं. तें तथ्यकेर मोट-मोट अशुद्धिक, भाषा आ छपाईक एकरूपता, आ बांकी सब कथूक
दायित्व संपादके केर छियनि. अर्थात, सम्पादके भेलाह peer-reviewer. आ ओएह लेथु सब
रूचिक रोचक सामग्रीक चयन, स्तरीयता, भाषा आ कानूनी पक्षक दायित्व. हमरा जनैत,
पत्रिका, लेखक आ प्रकाशक सबहक हितमें एतबा अपेक्षा स्वाभाविक. आ एतबा भार उठायब पर्याप्त
छैक. हँ, कंप्यूटर सं परिचित, दूरस्थ लेखक सेहो प्रूफ-रीडिंगमें सम्पादकक सहायता
तं कइए सकैत छथिन.वर्तमान युगक सम्पादक लोकनि ई सुविधा उठाबथि ; विकल्प तं अपनहिं
हाथ छनि.