मध्यप्रदेशक यात्रा भाग-2
भीमबेटका: भूमि पर मनुष्यक पहिल डेग ?
मनुष्य
जखन पृथ्वीपर आयल केहन छल, तकर अनुमान हमरा लोकनिकें पृथ्वीपर प्राणीक
विकासक इतिहास में भेटैत अछि. किन्तु, आरम्भमें प्राणीक रूप में पृथ्वीपर मनुष्यक
सोच आ गतिविधि की छल हेतैक तकर प्रमाण जतबे थोड़ छैक, अनुमान ततबे बेसी. सत्यतः, मनुख
कोनो एके दिन नियारि कय धरती पर तं नहिं पहुँचल ; अनैश्वरवादी दृष्टिएं, मनुष्य प्रकृतिक हजारो
लाखों वर्षक अनायास प्रयोगक प्रतिफल थिक. तखन कोनो एकेटा मनुष्य , नियारिक कोनो एके
दिन बांकी आन सबहक प्रतिनिधि जकां तं रथपर सं भूमि पर नहिं उतरल हयत; पृथ्वीक
एकाधिक भागपर प्राणीक निरंतर विकासक फलक रूपमें अनेको मनुष्यक समूह अनेको ठाम
ओहिना विकसित भेल हयत जेना भूमिपर एके प्रकारक चुट्टी, एक दोसरासं सर्वथा पृथक
अनेक महादेश महादेशमें, पृथक-पृथक रूपमें
पाओल जाइत अछि. माने, सब ठाम एकटा असगरे वा छोट-पैघ झुण्डमें मनुख जतय कतहु
छल हयत, आने सब जीव-जकां अपन अस्तित्वले,
अपन प्रकृतिए अपन आवश्यकता पूर कयने हयत. एहना परिस्थितिमें कतहु वियावान, आ कतहु भरल
पूरल पृथ्वीपर मनुष्य ओएह तकने हयत जे आन प्राणी तकैत अछि : भोजन आ प्राकृतिक प्रकोप सं रक्षा. क्रमशः जखन मनुख पेट
भरबाक आ आश्रय तकबाक दिन-प्रति दिनक निरंतर संघर्षसं नीचेन भेल हयत, माने, पेट भरल
छल हेतैक, आ प्रकृतिक प्रकोपसं सुरक्षाक बोध भेल हेतैक तखन मनुखकें किछु एहन करबाक
सुरता आयल हेतैक जे भले ओकर आवश्यकता नहिं होइक, किन्तु, प्रजातिक प्रवृत्ति-जकां
काले-क्रमे (माने, हजारों बरखक अवधिमें) अनायास विकसित भ आयल होइक. अपन नित्य-प्रतिक
जीवन अनुभव कें भूमि पर वा अपन आवासक पाथरपर लिखबाक-रंगबाक इएह प्रवृत्ति प्रायः मनुखक ओहि आरंभिक
प्रवृत्तिक द्योतक थिक. अपना खोपड़ीक देवाल वा विवाहक कोबरमें रंगब ढओरबाक मनुखक अजुका परम्परा सेहो प्रायः मनुखक
ओही आदिम मनोवृत्तिक समकालीन प्रतिबिम्ब थिक.
वस्तुतः,
आइ हमरा लोकनि भोपाल सं किछु दूर भीमभेटका नामक स्थानपर प्रागैतिहासिक गुफा आ ओही
गुफामें आदि मानवक हाथें लिखल किछु चित्रकला देखबा ले बिदा भेल छी. तें हमरा निचेन
आदि मानवक अंतर्द्वंदक सुरता मोन में आयल.
भीमबेटका
भोपाल-होशंगाबाद सड़कपर भोपाल सं करीब चालीस किलोमीटर दक्षिण-पूब पड़ैछ. सडक सीधा, रेल-लाइनक
लगभग सामानांतर. कतहु-कतहु सड़क एखन बनिए रहल छैक, तें, किछु अवरोध अवश्य. किन्तु,
ई निर्माण राज्यमें चौमुखी विकासक हिस्सा
थिक. तें, दिन आ रुख सुख समयमें एतबा असोकर्य सहब बड़का कष्ट नहिं.
हमरा
लोकनि 2500 टाकामें भरि दिनुक लेल एकटा इंडिगो कार नेने छी. ड्राइवर, बल्ली, हमरा
लोकनिकें भीमबेटका, भोजपुर, साँची आ उदयगिरीक भग्नावशेष देखओताह. हमरा लोकनि भोपालमें
होटल सं करीब 9 बजे विदा भेल रही. पुछलियनि, ई सब देखबामें कतेक समय लागत ? बल्ली स्पष्टवादी
छथि. कहलनि, ‘ से तं अहाँ पर निर्भर अछि !’ सत्ते. टहलबा-घुमबामें युवक छी, फुर्तिगर
छी तं कम समय लागत. वयासहु छी तं, छओड़ा-मांडर सं कोना बराबरी करबैक. अथबल आ बूढ़केर
केर तं गप्पे नहिं. बस बिदा भेलहुँ.
भीमबेटका
भोपाल-होशंगाबाद मुख्य मार्ग सं कनिए दाहिना पथरीला भूमिक जंगल-जकां इलाका थिक.
जंगल-जकां, कारण गाछ-वृक्ष सघन नहिं. जंगलक चेक-पोस्ट सं आगां भूमि एकाएक पथरीला भ
जाइत छैक. रंगमें कोइला-सन कारी. गर्मी मास अयबापर छैक. अधिकतर गाछ-वृक्ष सबहक पात
सुखायल. छाया थोड़ .हमरा लोकनि भीमबेटका पहुँचलहु तं दिन केर एगारह करीब बजैत छलैक.
रौद रहैक. माथपर टोपी आ आँखिपर गोगल्सकेर बावजूद भोपाल आ एतुका तापमानमें अन्तर
सहजहिं बुझबामें आयल. जंगलक आरम्भमें पार्किंगक समीपे एकटा गाइड भेटलाह. आइ वर्किंग-डे
थिकैक. तें, पर्यटक लोकनिक कोनो भीड़ नहिं. अहुना ई स्थान ने पिकनिक ले ने उपयुक्त
आ एतय ने तकर अनुमति छैक. तें जे किछु पर्यटक छलाह, सब सीनियर सिटीजन. जंगली जीव-जंतु,
जे शैलानीकें आकृष्ट करैछ, एतय तकरो अभाव. एतय कोनो युगमें मनुखक आवास छल हेतैक
सेहो, एखुनका परिस्थितिमें असंभव लगैत अछि, कारण एहि बंजर भूमिक समीप ने फल-फूल-सन
वन्य सम्पदा छैक, आ ने पानिक कोनो श्रोत. किन्तु, से वर्त्तमान थिक. सुदूर अतीत
में ई स्थान अवश्य आदि मानवक आवासले उपयुक्त छल हेतैक, अन्यथा मनुख एतय कोना रहैत.
किन्तु, तकर शंका-समाधान गाइड करताह. ई मध्यवयसाहु सज्जन. हमरा लोकनिक भाषा सूनि, हमरा
सब कें सोझे बंगाली बूझि लेलनि. से कोनो नव नहिं. जतय कतहु जाइत छी, बंगाली समेतकें
ई बुझबय पड़ैछ, जे ‘मैथिली एकटा स्वतंत्र भाषा थिक. बिहारमें गंगाक उत्तरक बिहारसं
ल कय नेपालक तराई धरि लोक मैथिली बजैछ. आ गंगाक दक्षिणोमें बिहारक किछु आबादीक
मातृभाषा मैथिली थिक. ई भाषा भारतीय संविधानक आठम अनुसूची सम्मिलित अछि, आदि, आदि.’
जं भाषाक अनुसार राज्य सबहक पुनर्गठनमें मैथिलीकें अपन प्रदेश होइतैक, तं, मैथिलीकें
अपने देशमें अपरिचयक ई अधोगति नहिं भोगय
पडितैक. किन्तु, ई मात्र कचोट थिक. सत्य तं ई थिक जे, मैथिली जनिको भाषा थिकनि, ओहो
लोकनि मैथिली बजैत आ पढ़इत नहिं छथि. संयोगसं गाइड महोदय कें बंगला ततबे अबैत रहनि
जे हुनका मोने केवल ‘चित्र’ वा छविकें ‘छोबी’
उच्चारण कयला सं हिंदी बंगला बनि जाइत छैक ! तें, अनेक बेर जखन ‘छोबी-छोबी’
उच्चारण कय मोन अकच्छ क देलनि तखन, मैथिली सम्बन्धमें हमरा हुनका ई सामान्य ज्ञान
पढ़बय पड़ल. किन्तु, ताहि सं केवल अपन मनक भड़ास निकलल. मैथिली अपनहिं घरमें जाहि
अपरिचयक अन्हारमें औना रहल छथि, हमरा नहिं लगैत अछि तकर निराकरण एना संभव अछि. आब
भीम बेटकाक गप्प करी.
भित्ति चित्र : घुड़सवारी |
भित्ति चित्र : विभिन्न वन्य-जीव |
गुफा आ पर्यटकक दल : भीमबेटका |
भीमबेटका
सम्पूर्ण विश्वमें अनेक ठाम पसरल आदि मानवक अनेक आश्रय सब म सं एक थिक जतय ओकर
तहियाक आवासक ठोस प्रमाण एखनहु उपलब्ध अछि.एहि स्थानकें भीमबेटका किएक कहैत छैक. से
के कहत ! सम्पूर्ण भारतमें जतय भीम, पांडव, लाक्षा इत्यादि शब्दक प्रयोग स्थानक
नाम सं जोड़ल छैक, लोक स्थानक संबंध सोझे महाभारत सं जोड़ि लैछ. किन्तु, महाभारतकें एना
स्थान सब सं जोड़ब कें ऐतिहासिक संबंधक प्रमाण बूझब भ्रांतिपूर्ण थिक. एतय भीमबेटकाक
उबड़-खाबड़ पथराह भूमिक ऊपर, प्रायः पानिक प्रवाहसं तरासल, महल-दू-महलक उंचाईक, पाथरक
अनेक छोट पैघ शिला-खण्ड सब छैक, कोनो शेषनागक फन-जकां, कोनो गाछ-जकां, कोनो चिड़ई
आकृति, आ कोनो महज समतल आधारपर भूमिक सामानांतर छायादार छत-जकां . एहि शिला खण्ड सबहक
नीचा व भीतरक उत्थर, चिक्कन खोहमें प्रायः तहिया मनुख अपन आवास बनौने छल हयत, से
मानल जाइछ. गुफा सबहक देवाल सब पर गेरू-सन गाढ़ लाल रंग वा उज्जर वर्णमें मनुखक आ
मनुखक जीवनक अवधिक अनेक अवसरक चित्र बनल भेटत. चारि सं छौ आंगुरक आकार एहि
रेखा-चित्र सब कें आसानी सं अपन गाम-घरमें बाटक काते-काते बनल माटिक घरक देवालपर माटिए सं बनल मनुखक रेखा-चित्रसं क सकैत छियैक. सत्यतः, मनुखक
एखनुको प्रवृत्ति इतिहासकें एखनहु धरि ओहिना सहेज कय रखने अछि जेना ओ सब आदि काल
में छलैक. ततबे नहिं, पृथ्वीक विभिन्न भागकेर मनुखक जीवनक सम्पूर्ण वर्ण-पट पृथ्वीपर
मनुष्यक सम्पूर्ण विकास-यात्राक सजीव दर्पण थिक. अस्तु, भीमबेटकाक एहि रेखा चित्र
सबसं एतबा तं अवश्य प्रतीत होइछ जे आदि मानवक ई आवास तहियाक थिकैक जहिया मनुखक
समाज भले नहिं विकसित नहिं रहल होइक, किन्तु, ओ
समूह में अवश्य रहय लागल छल. एतुका चित्र सब में मनुखक जीवनक सामूहिक
गतिविधि जेना सामूहिक शिकार, युद्ध आ नृत्य आदिक निरूपण एकर प्रमाण थिक. मनुखक
आवासक ओहि अवधि धरि मनुख जीव-जन्तुक उपयोग भोजन आ सवार दुनू ले करब आरम्भ क लेने
छल, से एतुका चित्र सं अपने बुझबामें आओत. चित्रमें कतहु मनुख हाथी पर चढ़ल अछि, कतहु
घोडापर, आ कतहु पयरे अछि. भाला –बरछा-सन अस्त्र-शस्त्रक आविष्कार भ चुकल रहैक. हरिण
आ आन जन्तुक पछोड़में घोड़ा पर चढ़ल शिकारीक
हाथ में बरछी हथियारक आविष्कार आ प्रयोग दुनूक प्रमाण थिक.
गाइड
महोदयक अनुसार ई बसेरा शिकारी-संग्राहक (hunter-gatherer) समाजक सामाजिक गतिविधिक अवशेष थिक. ओ कहलनि, मनुखक बसेराक ई आकार
पाथरपर समुद्रक पानिक बहावक परिणाम थिक. ई सत्य वा असत्य से हमरा नहिं बूझल अछि. किन्तु,
एतेक पैघ-पैघ शिलाखंडकें ऐना तरासब प्रकृति- जल वा वायु-क आलावा आओर कोन शक्ति क
सकैत अछि ! मानल जाइछ, प्राणिक रूपमें मनुख सबसँ पहिने प्रायः अफ्रीका महादेशपर
अवतरित भेल छल. तहिया एशिया आ अफ्रीकाक बीच समुद्रक बाधा नहिं रहैक. तें अफ्रीका
सं मनुख सहजहिं एशिया दिस पसरैत गेल. हजारों वर्षक मनुखक विकास-यात्रामें शिकारी-संग्राहक,
पशुपालक, खेतिहर आ नागरिक लोकनिक वर्गीकरण म सं
शिकारी संग्राहक (hunter-gatherer) लोकनिक आवासक प्रमाण भीमबेटकाक
अतिरिक्त सोआन नदीक पक्खा, आ पोटवार पठारपर भेटैत अछि. ई लोकनि जंगली जन्तुक शिकार
आ फल-मूलक संग्रह कय भोजन करैत रहथि. खेती हिनका लोकनिक वृत्ति नहिं रहनि, से
इतिहासकार लोकनि कहैत छथि. भीमबेटक-सन गुफा अफगानिस्तानक संघाओ आ आंध्रप्रदेशक
कुरनूल जिलामें सेहो भेटैत अछि. प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापरक अनुस्सर पेलिओलिथिक
युगक एहि अवशेष सबमें ईसापूर्व वर्ष 30000 सं ल कय ईसा पूर्व 10000 वर्ष धरि मनुखक
आवास छल हयत. अनुमान इहो छैक, भीमबेटकाक सबटा चित्रकला एके युगक नहिं थिक. ततबे
नहिं, हाथमें बरछी नेने घोड़ा-हाथीपर सवार योद्धा, आ आन चित्रमें जनसमूह युद्ध आ जुलूसक
ऐतिहासिक दस्तावेज थिक. पृथ्वीपर मनुखक यात्राक इतिहास आओर चित्रसब केरल केर एडक्कल
गुफा आ जम्मू-कश्मीर क्षेत्रक गिलगिट बाल्टिस्तान इलाकामें सेहो छैक. उचिते, एहि
सब प्रागैतिहासिक स्थल सबहक समय निर्धारण बड़का चुनौती थिक. तथापि, पछिला पचास-वर्षमें
पुरातात्विक अनुसन्धानमें नव-नव विधिक अविष्कार सं काल-निर्धारणक क्षेत्रमें काफी प्रगति भेलैये. एहि
सब म सं, 10000 वर्षक घटनाक जांचकेरमें, कार्बन-डेटिंग (कार्बनिक यौगिकमें कार्बन-14
केर निरंतर क्षय), डेनड्रो-क्रोनोलोजी (वृक्षक तनामें वार्षिक वलयक गणनाक विधि), आ
थर्मोलूमिनेशेंस (thermoluminiscence)क विधिसं, जाहिमें आगिमें पकाओल माटिक पात्र वा
उपकरण जांच कयल जाइछ, काल-निर्धारणक प्रक्रियामें एकरूपता आ प्रमाणिकता अयलैक-ए.
जे किछु, जं भोपाल आबी आ भरी दिनुक समय हो
तं भीमबेटका जा सकैत छी. छोट धिया-पुता आ
मौज-मस्ती ले आयल पिकनिक ग्रुप ले भीमबेटका उपयुक्त नहिं.
भोजपुर,
मध्यप्रदेश
जेना,
इंदौरमें सबठाम रानी अहिल्याबाई होलकरक पदचाप सुनबामें आओत, भोपाल नगर राजा भोजकेर
प्रशस्ति गबैत अछि. भोपालक बड़का झीलसं ल कय मीलों दूर भोजपुर सं खजुराहो धरि राजा
भोजकेर यशोकीर्ति सबठाम पसरल छनि . समय केर मारि आक्रमणकारीक प्रहार, आ इतिहासकें
मेटयबाक राजनैतिक संकल्प सम्पूर्ण इतिहासकें भूमि पर सं धो-पोछि कय कहाँ साफ़ क
पबैछ. तें, एखनहु विश्वमें सर्वत्र पृथ्वीपुत्र लोकनिक कीर्ति, आ आक्रामणकारी
लोकनिक ध्वंशक भग्नावशेष, भेटिए जायत.
भीमबेटका
देखलाक पछाति हमरा लोकनि भोजपुरक शिवालय देखय चलल छी. छैक तं भोजपुरमें एकटा जैन
मन्दिर सेहो, किन्तु, दुपहरियाक रौद, आ अन्हार हेबासं पूर्व होटल पहुँचबाक निश्चयमें
जैन-मन्दिर कें छोडि देलिऐक. एखन साँचीक शान्ति स्तूप आ ओकरे समीप उदयगिरि देखब
बांकीए अछि.
ईसवी
एगारहम शताब्दी राजा भोजक शासन-काल थिक. कहल जाइछ, एकटा सशक्त बान्हक निर्माणसं अनेक
नदी आ धारक बाट रोकि कय राजा भोज भोजपुरमें एकटा जलाशयक निर्माण कयने रहथि. ओहि
जलाशयक बान्हक अवशेष एतय एखनो अछि, आ भोजपुर जेबाबला सड़क भोजपुर लग किछु दूर धरि एहि बान्हहि पर द कय
जाइछ.
भोजेश्वर मन्दिर |
भोजेश्वर शिवलिंग |
शान्ति-स्तूप
सबहक चर्चा करैत इतिहासकार रोमिला थापर कहैत छथि, ‘स्तूप क आकार शक्ति आ प्रतिष्ठा
दुनूक द्योतक छल. तें, (क्रमशः) स्तूप सबहक आकार बढ़इत गेल.’ हमरा जनैत ई तथ्य आनो
देवी-देवताक मंदिर आ मूर्तिक आकारले सेहो ओहिना लागू होइछ जेना बौद्ध स्मारक सब
ले. तें, हमरा लोकनि सबसं पैघ बुद्ध वा ईशाक मूर्ति , सब सं पैघ मन्दिर, सबसं पैघ शिवलिंग,
सं ल कय सब सं पैघ सरदार पटेलक मूर्ति धरि
पहुंचि गेल छी. रक्ष एतबे जे राजनेता लोकनि अपने हाथें अपन मूर्ति ठाढ़ करब तं
अवश्य आरम्भ केलनि-ए, एखन धरि राजा भोजक शिवलिंगक आकारक अपन मूर्ति स्थापित नहिं
केलनि-ए. मुदा, ताहू में कोनो रहस्य होइक से संभव.
भोजपुर
गाओंक एक कातमें एकटा ऊँच टीलापर निर्मित शिवालय अपूर्ण अछि. किन्तु, पाथरक मण्डप
में एकटा ऊँच आधारशिलापर स्थापित शिवलिंग ठीके आकारमें तंजावुरकेर वृहदेश्वर सं
सेहो पैघ छथि. आधारशिला तं एतेक ऊँच जे गर्भ-गृह में ठाढ़ नमतीमें छौ फुट सं बेसी
ऊँच फिरंग सेहो बौनवीर-सन प्रतीत भेलाह. एतेक ऊँच आधार पर स्थापित शिव, भक्त
लोकनिक पहुँच सं ततबा दूर छथि जे ने शिवकें केओ जल चढ़ा सकैत छनि आ ने स्पर्शे क
सकैत छनि. भ सकैत अछि, इहो निर्माताक आरम्भिके उद्देश्य होइक.
पहिनहिं
कहलहु, ई मन्दिर गामक बाहर एकटा टीलापर छैक. ताहिपर उंच आधार. बहुतो गोटे एहि रौदमें
दूरेंसं भोला बाबाकें प्रणाम केलनि. जाधारि हम दौडइत मन्दिरकें देखि अयलहुं,एकटा
स्थानीय दोकानदार हमर पत्नीकें सादर कुर्सीपर बैसओने छलखिन. हम घूरिकय आपस अयलहुं
तं दोकाने लग छाहरिमें एकटा बृद्धा एकटा पथियामें पाकल ताजा लताम ल कय बैसलि छलीह.
पांडिचेरीमें नीक लताम भेटब असंभव. अस्तु, हमरा सेहन्ता भ गेल आ लताम किनय ठाढ़ भ
गेलहुं. तं, अकस्मात, देखैत छी, करीब दस वर्षक एकटा छोटि कन्या आबि कय लग में ठाढ़ भ
गेलि. भिखारि बूझि दमसयबाक मन भेल तं देखैत छी, ओकरो दृष्टि लताम दिस छलैक. बात
बुझबा में आबि गेल. किनल लताम म सं तुरत हम
एकटा ओकरा द देलिएक. छउडी मुसुकाइत, बिनु दाहिना-बामा देखैत, लंक लेलक आ भागि गेल.
साँची
साँची शान्ति-स्तूप परिसरमें लेखक दम्पति |
1971 में आरम्भ करैत 2006 धरि लुम्बिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर सहित सबटा
बौद्ध तीर्थक परिक्रमा समाप्त क लेल. एतेक वर्षक पछाति भोपाल आयल छी, तं साँचीओ
देखिए ली. भोजपुर सं साँची जेबाक बीचमें घंटा भरि सं बेसिए लागत. भोजनक बेर भ गेल
रहैक. तें, भोजपुरक बाहर पहिने भोजन कयल आ आगू बढ़लहु. साँचीक स्तूप किछु दूर विदिशाक
समीप पडैत छैक.
हमरा
लोकनि जखन साँची पहुँचल रही तं रौद खूब रहैक. नगर सं बाहर उंच स्थानपर शान्ति-स्तूपक
आओर किछु नहिं. परिसर पैघ आ दूर-दूर धरिक विहंगम दृश्य. ज्ञातव्य थिक, वैदिक कालमें धार्मिक अनुष्ठानक स्थायी स्मारकक निर्माणक
परम्परा नहिं छलैक. पछाति धार्मिक आवश्यकताक अनुकूल बौद्ध लोकनि स्तूप , चैत्य, आ
विहारक निर्माण आरम्भ केलनि. तथापि, आकारमें एकरा सबहक स्वरुप जनसामान्यक आवास सं
भिन्न होइक तकर आवश्यकता तं रहबे करैक. प्रायः, ताही कारण सं स्तूप आ बिहारकें दूरहिं
सं चिन्हब मोसकिल नहिं. तथापि, आकारमें पैघ हो वा छोट स्तूप, स्तूप थिक तं एक
प्रकारक स्मारक. साँचीक स्तूप, बिहार आ वन आरंभिक बौद्धकालीन परिसर थिक. परिसरमें
किछु नव निर्माण सेहो भेल छैक. आइ एतय पर्यटक लोकनि थोड़े रहथि. तथापि सुरक्षा व्यवस्था सख्त. तीर्थ-यात्रीमें अनेको
श्रीलंकाक नागरिक. हमरा लोकनि संक्षेप में स्थानकेर देखल आ बाट धेलहु.
उदयगिरि
गुफा
देवी-देवता: उदयगिरी |
अपरिचित लिपि: उदयगिरि |
उदयगिरि
गुफाक भ्रमण अजुका अंतिम कार्यक्रम थिक. ई स्थान लगहिंक एकटा गाओंक बीच एकटा छोट-सन
पहाड़ीपर अछि. देखला सं बूझि सकैत छियैक, एकान्त स्थानक खोजमें लागल अनेको साधक
लोकनि भिन्न-भिन्न कालखण्ड एतय आबि डेरा जमौने छल हेताह. व उपद्रव सं बंचबाले उंच
स्थान पर मूर्ति, मन्दिर वा ईश्वरक प्रतीक स्थापित कयने हेताह. अस्तु, बाटक कातक
गुफा सं ल कय ऊपर चढ़इत सीढ़ीक कतबहि होइत पहाड़ी ऊपर धरि विष्णु, गणेश, भगवतीक
मूर्ति आ पेंटिंग सं ल कय निर्माणाधीन किन्तु अपूर्ण मन्दिरक देवाल आ सामग्री सब
किछु एतय भेटत. किन्तु, ऊपर चढ़इत सीढ़ीक कातमें पाथरक देवाल पर अद्भुत प्रकारक एकटा
लिपि देखल. सुनैत छी, ई लिपि एखनहु पुरातात्विक लोकनिक ज्ञान सं परे छनि. एहू पहाड़ी
परसं सम्पूर्ण विदिशा शहर देखबामें अबैछ.
उदयगिरिक
भ्रमण सं आजुका यात्राक इतिश्री भेल. किन्तु, जाधरि भोपालमें होटल आपस अयलहु, साँझुक करीब साढ़े सात बाजि गेल
छलैक. किछुए काल में हमर छात्र डा. परेश अओताह. अतः, तुरंत तैयार हयब शुरू कयल.
कहितो छैक, अमृतं प्रिय दर्शनम्.