Saturday, March 16, 2019

हिंदुस्तान का दिल देखो-1



इंदौर, उज्जैन आ ओंकारेश्वर  
.....उज्जैन के संत देखो
बौद्धिक महंथ देखो
खजुराहो शिल्पकारी  देखो
भीमबेठका कलाकारी देखो
धर्मो की महफिल देखो
हिन्दुस्तान का दिल देखो...
मध्य प्रदेश पर्यटनक प्रचारक एकटा सुपरिचित विडियोक ई संक्षिप्त अंश थिक.  पर्यटनक प्रचार  डेढ़ मिनटकेर ई  विडियो आकर्षके टा नहिं छैक, ई मध्य प्रदेशक सब प्रमुख पर्यटन स्थलकें सेहो समेटने अछि. किन्तु, एहि प्रचारमें सम्मिलित सब स्थानकें एक बेरमें देखब तं ककरो ले सम्भव नहिं. हमरा तं एखन धरि भोपाल स्टेशन छोडि मध्य प्रदेशमें किछुओ नहिं देखल छल . सेहो संयोगे. सेनाक सेवाक पहिल पोस्टिंगक आरम्भ पूर्वोत्तर भारतक सीमान्त सं केने रही. पछाति सियाचिन सं ल कय तमिलनाडु धरि भारतक माटि माथमें लगाओल. किन्तु, ‘हिन्दुस्तान का दिल’  देखब तैयो बांकीए छल. एहि बेर अखिल भारतीय नेत्र-चिकित्सा संघकेर वार्षिक अधिवेशन इंदौरमें भेलैक. फरबरी मास, अनुकूल समय, आ हमरा लोकनिक अकाडमिक कैलेन्डरमें खाली समय. प्रोग्राम बनि गेलैक.
बूझल बात: अपन राष्ट्रकेर प्रशस्ति के नहिं सुनने रहैछ. हमरो लोकनि सुनने छी. किन्तु, पर्यटन सम्बन्धी बहुतो गप्प तखने बुझबा में अबैत छैक जखन अपने घूमी फिरी. आब यूरोप, अमेरिका, आ दक्षिण पूर्व एशिया देखलाक पछाति भारतमें पर्यटनक आनन्द आ असोकर्य दुनूक अनुभव भेले. किन्तु, जं सबटाकें जोडिकय देखियैक तं इएह अनुभव भेले जे देश आ विदेश दुनू पर्यटनक भिन्न-भिन्न स्वाद होइतो अपना देशक पर्यटन सब ममला में उत्तम थिक; थोड़ खर्च, झलकौआ ! अपनो देशमें पर्याप्त टाका हो तं हवाई जहाज पर उडू, फाइव स्टार होटल में रहू. बजट सीमित हो, तं, ट्रेन सं यात्रा करू आ धर्मशाला - होस्टल- बजेट होटल वा सर-सम्बन्धीक ओतय राति बिताऊ, आ दिनमें दुनिया देखू, तीर्थ करू. समाजक असली  दर्शन तं तखने हयत जखन मनुखक बीचमें यात्रा करब. असुविधा-असोकर्य हयबे करत गंगा-यमुनामें डूब देबैक तं नदीक जलक संग धूल-माटि, थाल-कादो सं कोन परहेज. आखिर सबटा तं थिक अपने देशक माटि !                     
ब मध्य प्रदेशक गप्प करी. वर्ष ईसवी 2000 धरि जाधरि मध्य प्रदेशक विभाजन नहिं भेल रहैक, ई राज्य क्षेत्रफलक अनुसारें देशक सबसँ पैघ राज्य छल. एखनो आकारमें छोट नहिं. एहि बेर हमरा लोकनि केवल इंदौर, उज्जैन, ओंकारेश्वर, आ भोपालक प्रोग्राम बनौने छी. पचमढ़ी सेहो जेबाक प्रोग्राम छल. किन्तु, से सम्भव नहिं भ सकल. किन्तु, तकर गप्प पछाति.
अखिल भारतीय नेत्र चिकित्सा विज्ञानक वार्षिक अधिवेशन 2019
इंदौर मध्य भारतक आर्थिक केंद्र, मध्य प्रदेशक सबसँ पैघ शहर, आ होल्कर वंशक भूतपूर्व राजधानी थिक. एखनुक युगमें पछिला तीन वर्ष सं ई शहर भारतक सब सं स्वच्छ शहरकेर ताज सेहो पहिरने अछि. आ से उचितो, से बूझि पड़ल. सत्यतः, इंदौर वाणिज्य-व्यापारक केंद्रक अतिरिक्त आधुनिक शिक्षाक केंद्रक रूप में सेहो सुपरिचित अछि. किन्तु, पर्यटनक दृष्टिएं शहरक भीतर बहुत आकर्षण प्रायः नहिं छैक. एतुका सर्राफा बाज़ार फ़ूड मार्केट भोजन-प्रेमी लोकनिक बीच प्रसिद्द अछि. ई बाज़ार राति 9 बजे सं भोरहरबा धरि चलैछ आ स्थानीयसं ल कय पर्यटक लोकनिक धरिक बीच अत्यन्त लोकप्रिय अछि. मैथिलीमें कहबी छैक, भोजन ले ‘जुरब, रुचब आ पचब’ तीनू आवश्यक. से जं नहिं हो तं, देह लगा कय मारू. अस्तु, एहि मार्केट कें हमरा लोकनि दूरहिं सं नमस्कार कयल. किन्तु, बहाना तं किछु चाही. से जाड़क ऋतु आ रातुक समयमें भेटि गेल, आ संतोष करैत होटल क भोजन सं पेट भरल आ कल्याण करोट देल. जिनगी-जान बंचल तं फेर कहियो. दोसर दिन कजराना गणेशक दर्शन कयल. 
खजराना गणेश मन्दिर: परिसरक विशाल बेलक गाछ, आ दीप स्तम्भ  बेजोड़ अछि
एकर अतिरिक्त राजबाड़ाक संग्रहालय सेहो देखी गेलहुं. किन्तु, एखन राजबाड़ाक मरम्मतिक काज चलि रहल छैक, तें गेट बंद रहैक. अतः, इंदौरक भ्रमणक इतिश्री एतहि भ गेल आ हमरा लोकनि सोझे उज्जैन बिदा भ गेलहुं .
उज्जैन  
उज्जैन कतेक पुरान अछि तकर पचड़ामें नहिंओ पड़ी तं एतबा तं अवश्य जे उज्जैनक इतिहास बड पुरान छैक. सुनैत छी, एहि ठाम ईशा सं 6-7 शताब्दी पूर्व बस्ती पुरातात्विक प्रमाण भेटल छैक. एहि सं बहुत बादो, तुर्क-अफगान-मुगलकेर भारतपर आक्रमणसं पूर्व, एतय अनेक प्रसिद्ध राजवंशक प्रमाण भेटैत अछि. किन्तु, हमरा उज्जैनक नाम सं पहिल परिचय तहिया भेल छल जहिया हाई स्कूलमें रही आ कालिदासक अमर काव्यकृति ‘मेघदूत’क पं. रामचन्द्र झा ‘चन्द्र’ रचित मैथिली अनुवाद ‘ मेघदूत काव्यक छाहरि’  पढ़ने रही. मेघदूतक पूर्वमेघ खण्डमें उज्जैनक अनेक प्रसंग अबैत छैक. जं कालिदासक मेघदूत सं परिचित नहिं होई तं एतय एतबे बूझि लियअ जे मेघदूत कविकुलगुरु कालिदासक सुप्रसिद्ध रचना थिक. एहिमें राजाक कोपें अपन देशसं वर्ष भरिले निर्वासित भेल यक्षकेर कथा छैक. रामगिरि नामक पर्वतपर निर्वासनक दण्डकें भोगैत यक्षकें  अषाढ़ मासमें आकाशमें उमडल मेघकें देखि मेघहिंक माध्यमसं अलकापुरी स्थित अपन प्रियतमाकें संदेश पठयबाक भाव मोन में जगैत छनि. फलस्वरूप, कालिदास यक्षकेर दिससं, एक दिसाहे, मेघसं गप्प करैत छथि, आ मेघकें अलकापुरी धरि जयबाक बाट आ जीवनक आओर कतेक रहस्य बुझबैत छथिन. मेघकें यात्राकें बाट देखयबाक एहि क्रममें कालिदास कतेको नगर, पर्वत, नदी, नारि, आ समुदायक वर्णन सुनबैत छथिन. आब कालिदासेक मुंह सं उज्जैनक कनेक वर्णन सुनि लिअय. यक्ष मेघ कें कहैत छथिन: 
‘अलकापुरी जयबाले अहांके उत्तर दिशामें जयबाक अछि. उज्जैन ओहि बाटसं कनेक पश्चिम छैक. किन्तु, तें की ! उज्जैन जाइ अवश्य. उजैन केर वर्णन असम्भव छैक.’ से कहितो कालिदास उज्जैनक प्रसंशामें कोनो कोर-कसर बांकी नहिं छोड़ने छथि. ततबे नहिं आगू कालिदास उज्जैनक महाकालक चर्चा करैत मेघकें महाकाल मन्दिरक सांयकालीन आरतीक समय बजबाबला नगाड़ाक चर्चा करैत, अपन ‘नगाड़ाक ध्वनि-सं अपन गर्जन’ क संग आरतीमें सम्मिलित हेबाले प्रेरित करैत छथिन. सत्यतः, एहन इतिहास विदित नगर आ तकर समीप जा कय काते-कात चल आबी से असम्भव. अस्तु, हमरो लोकनि उज्जैन देखय आयल छी.
फरबरी मासक मध्य आ  दुपहरियाक समय. एखन धरि रातिमें जाड़क अनुभव, भोरमें सीत समाप्त नहिं भेल छैक. यद्यपि दुपहरियाक रौदमें गर्मी मासक तेजी आबय लागल छलैक. विकिपीडिया कहैत अछि उज्जैन मध्य प्रदेशक सातम सबसँ पैघ नगर थिक. नगर जतेक टा हो, महाकाल एहि नगरकेर केंद्र विन्दु थिकाह. दुर्भाग्य एहन जे प्रत्येक धर्म-स्थलमें मनुखक तेहन ने रेडा होइछ जे धार्मिक-स्थलक धार्मिकता आ शान्ति कर्पूर जकां वायुमें विलीन भ जाइछ. से अपना इलाकाक विदेश्वरसं ल कय वैद्यनाथ, तिरुपति सब ठाम देखबामें आओत. जतय जतेक अव्यवस्था ततय ततेक कष्ट. संयोग सं  बितैत समयक संग ई रेडा बढ़इते गेलैये. सुधरैत आर्थिक स्थिति आ यातायातक सुविधा आ जनसंख्या–वृद्धि एहि परिवर्तनक जड़िमें अछि. बढ़इत भीड़कें जनमानसक धार्मिकता सं कोनो सरोकार नहिं छैक. एखन कोनो पर्व त्यौहारक समय नहिं. तथापि, उज्जैनमें दर्शनक टिकट ले मारामारी रहिते छैक, तकर सूचना इंदौरहिं में होटलक मेनेजर  द देने छलाह : ‘ महाकालक भस्म-आरती देखबाक हो तं टिकट चाही. से सोझे भेटब मोसकिल. चाही तं दू-दू हजारमें टिकट भेटत. हम व्यवस्था क सकैत छी.’ हमरा लोकनि अढ़ाई-अढ़ाई सौ टाकाक दर्शनक दू टा टिकट इन्टरनेट पर किनिए कय पांडिचेरी सं विदा भेल रही. किन्तु, भस्म-आरतीक टिकट तं नहिं छल. हमर अपन धारणा अछि जेबमें जं बेसी टाका रहैत छैक तं पाप हेबाक सम्भावना बढ़ि जाइ छैक. संभव छल, होटलक मेनेजर द्वारा ब्लैकमें आरतीक टिकट किनबाक प्रस्ताव पर, कदाचित, मुँह सं ‘हं’ निकलि जाइत ! फेर कहिया उज्जैन आयब !! किन्तु, एहि प्रलोभन पर ब्लैकमें आरतीक टिकट किनबाक विचार हमरा मोन में एकदम नहिं आयल. अस्तु, निर्णय कयल जेना हयत, सोझे दर्शन करब. आम दर्शनक टिकट तं छले.  पहिने पांडिचेरी सं चलबासं पूर्व इन्टरनेटपर भस्म-आरतीक टिकट कटयबाक प्रयास विफल भ गेल छल. इंदौरमें रहैत पुनः प्रयास कयल तं सब सीट फुल. अस्तु, उज्जैन पहुंचि सोझे मन्दिर पर जा कय प्रयास करबाक विचार भेल. बाटमें टैक्सी ड्राइवर कहलनि, मन्दिरक काउंटर पर भस्म-आरतीक टिकट दिनक बारहे बजे बंद भ जाइत छैक. तथापि, होटलमें सामान राखि, मन्दिर धरि जा कय एक बेर अपने प्रयास करबाक विचार भेल. अस्तु, टेम्पो लेलहुं आ मंदिरक टिकट काउंटर धरि गेलहुं, तं, आश्चर्य लागि गेल. दिन केर करीब तीन बजैत रहैक. टिकट-बुकिंग ऑफिस खूजल छलैक. मोस्किल सं तीन-चारि टा दर्शनार्थी.  लाइनमें लागि गेलहुं. दू टा फॉर्म भरिकय देलियैक. किन्तु, आवेदक केर पहचान-पत्रक जांच होइत छैक, फोटो लेल जाइत छैक. हमरा लग दू टा आवेदन-पत्र छल. किन्तु, तत्काल एसगरे रही. ताहि सं काज नहिं चलैत. अस्तु, होटल वापस आबि पत्नीके संग कयल आ अगिला भोरुक भस्म-आरतीक हेतु मुफ्तमें दू टाका टिकट लैत तेना आपस अयलहुं जेना कोनो युद्ध जीति नेने होइ ! चारि हज़ार टाका, आ सरकारक व्यवस्थामें विश्वास बंचि गेल, आ घूस द कय दर्शन करबाक पाप आ पश्चाताप सं सेहो बंचि गेलहुं. लेकिन जनिका आस्था छनि, तनिका विचारें घूस-देनिहार आ घूस लेनिहार दुनूक जनक तं इश्वरे थिकाह. तें, हमरा मतें, सब किछुक जनक विश्वासे थिक !
हमरा सब काल्हिए एतय सं चलि जायब. भस्म-आरतीमें शामिल हयबाले राति में 1 बजे सं भोरुक छौ बजे तक तं जागहिं पड़त. अस्तु, आब उज्जैन देखबाक व्यवस्था करी. होटलक  बाहर एकटा टेम्पोबला युवक भेटलाह. कहलनि, साढ़े तीन सौ टाका आ मुख्य दर्शनीय-स्थल सबहक फैलसं दर्शन. बेरुक पहर रहैक. जाड़क मृदु रौद. भीड़-भड़क्काक नाम नहिं. आओर चाही की. भीड़ हमरा पसिन्न नहिं. टेम्पो चालकक नाम मोहम्मद. एतुके बासी थिकाह. बारहवां धरि पढ़ने छथि. किन्तु, अंग्रेजीमें फेल भ गेलाह. एतय प्रायः ‘कर्पूरी डिवीज़न’-सन बारहवां’क परिपाटी नहिं छैक. अगिला बेर फेर परीक्षा देबाक विचार छनि. टूरिस्ट गाइडकेर पढ़ाई उज्जैन में नहिं छैक. बाहर जा कय पढ़बाक उपाय नहिं. तथापि एतुका मुख्य स्थल सबहक मोटामोटी ज्ञान छनि. ताही सं टेम्पो आ टूरिज्मक व्यवसाय सम्हारैत माता-पिताक सहयोग करैत छथि. हमरा लोकनि एतुका परिसरसं अपरिचित छी. अस्तु, सब किछुक सूचना दैत चलथि तं नीक. हमरा लोकनि सब सं पहिने शहर सं बाहर संदीपन मुनिक आश्रम गेलहुं.
संदीपनी आश्रम  
संदीपनी आश्रममें लेखक दम्पति 

जनश्रुति छैक, कृष्ण-बलराम एतय संदीपन मुनिक आश्रममें रहि आरंभिक शिक्षा ग्रहण केने रहथि. परिसरमें कृष्ण-बलरामक शिक्षाक सांगोपांग आधुनिक झांकीक मण्डप, शिवालय, जलाशय, वैष्णव संत बल्लभाचार्य एवं हुनक परवर्ती वैष्णव वंशज लोकनिक जीवन-वृत्तिक चित्र-वीथी आ बगीचा छैक. तें, उज्जैन वैष्णव लोकनिक तीर्थ सेहो थिक. सुनबामें आयल, एतुका विशाल ( करीब तीन फुट उंच, तीन फुट व्यास केर ) शिवलिंग हजारों वर्ष पुरान छैक. किन्तु, असली ऐतिहासिकता ले प्रमाणिक मानक श्रोतकें ताकी से हमर विचार. शिवलिंग आकार में भले छोट-पैघ होइक
, हमरा जनैत, शिवलिंग विशिष्ट छवि तं कतहु होइत नहिं छैक. पाथरक प्रकार, लिंगक आकार, वा वर्णमें भले अन्तर होइक. एकर चर्चा पुनः हेतैक.

मंगलनाथ
मंगलनाथ उज्जैनकेर ग्राम देवता थिकाह. मंगलनाथ शिव केर मन्दिर शहरसं बाहर क्षिप्रा नदीक कछेरपर अवस्थित छनि. मंदिरक निर्माण उंच आधारपर भेल छैक. तें, मन्दिर धरि जेबाले कम-सं-कम पचास सीढ़ी तं चढ़हि पड़त. से संभव नहिं हो तं दूरे सं महादेवकें हाथ जोडू आ आपस भ जाउ, हमर पत्नी सएह कयलनि. अन्यथा, मन्दिरक परिसरसं समीपस्थ नदी आ धानक खेत, आस-पासक इलाकाक नीक विहंगम दृश्य देखबामें आओत. हम जखन मंगलनाथ मन्दिर पर पहुँचल रही, सूर्यास्त हेबा पर रहैक. पश्चिमक क्षितिज पर निस्तेज सूर्यक केवल विशाल लाल गोला आ क्षिप्रा नदी में ओकर प्रतिबिम्ब धरि दिनान्तक प्रमाण छल. क्षिप्रामें पानि छलैक, प्रवाह नहिं; मनुक्खक स्वार्थ नदी सबकें प्राणहीन आ सूर्य-चन्द्रमाकें निस्तेज क देने छनि. तथापि एखन एतय सूर्य, आ पानि में हुनक प्रतिबिम्ब, एकाकार भ गेल रहैक. नदीक कछेरपर सं दूर क्षितिजपर सूर्यक गोलाक आ समीपक धानक खेतक हरियरी घनीभूत होइत छायामें करिछोंह भ चुकल रहैक. हमरा पुनः मेघदूत मोन पड़ल. कालिदासक शब्दमें, उज्जैनमें सूर्यास्त कालक वर्णन करैत, कथा-नायक निर्वासित यक्ष, मेघकें  कहैत छथिन: ‘सूर्यास्तकालक रक्ताभ अरुणक किरणसं तोहर श्याम वर्ण शोणित टपकैत, ओहन टटका गज-चर्म-सन भ जयतह जेहन गज-चर्म तांडव-नृत्यक समय शिव धारण करैत छथि. एहिसं शिवकें नव गज-चर्मक आभास तं भइए जेतनि, शिवकेर संगिनी उमा रक्तरंजित गज-चर्मकें देखबाक संताप सं सेहो बंचि जेतीह. पार्वती तोरा अनिमेष देखैत रहथुन तकर जे लाभ तोरा हेतह, से तं फूटे !’ जे किछु. कवि आ कालिदास कें सब किछु माफ़ छनि !
हमहू भारतवर्षमें अनेक ठामक सूर्योदय-सूर्यास्त देखने छी. शिमलाक सघन-श्यामल जंगलक आगाँ, समीपक गहिंड उपत्यकाक दोसर पार, दूर  क्षितिजपर डूबैत सूर्य हमरा अपूर्व लगैत छलाह. हमरा मोन अछि, तीन वर्ष शिमला प्रवासमें जहिया कहियो हम लोंगवूड इलाकाक अपन आवास लग अपने टहलैत, कुकुर कें टहलबैत, वा आन काजें कार्ट-रोडक तिमुहानीपर सूर्यास्तकाल में जखन कखनो ठाढ़ होइ आ पश्चिम क्षितिजपर नजरि पडैत छल, मन मुग्ध भ जाइत छल. लगैत अछि, शिमला-सन  सूर्यास्त भारतमें कदाचिते आन ठाम होइत होइक. आब पिछला छौ वर्ष सं समुद्र-तटपर सूर्यास्त देखैत आबि रहल छी. कन्याकुमारीक तट पर सूर्योदय-सूर्यास्त देखबाले पर्यटक लोकनि कतेको टाका खर्च करैत छथि. किन्तु, समुद्रतट पर भोर आ सांझमें बेसी काल मौसम धूमिल भ जाइत छैक, आ कएक दिन घंटोसं प्रतीक्षारत पर्यटक अन्ततः हियाहारुण भ आपस जाइत छथि. किन्तु, क्षिप्रा नदीक कछेरपर उज्जैनक ई सूर्यास्त सेहो बहुत दिन धरि मोन रहत. हं. अपना गामक कमला कातक बाधक पश्चिम क्षितिज पर, शरद ऋतुमें दूर दूर धरि पसरल हरियर धानक समुद्रक उपर होइत सूर्यास्तकें देखब जुनि बिसरी. आसिन-कातिक मासमें धानक बाधक, ‘किरण’जीक ‘सारि-वारिधि’ क ऊपरक सूर्यास्तक आभा कोनो जोड़ नहिं ! 

भैरवनाथ
भैरवनाथ मन्दिर 
 मंगल नाथ शिवालय सं बेसी दूर नहिं, क्षिप्रा नदीक दोसर कछेर पर, भैरवकेर एकटा प्राचीन मन्दिर छनि. मन्दिर आगाँ तेतरिक गाछ. आगू, मन्दिरक सामानांतर सोझ सडक. सड़कक दोसर पार, मन्दिरक ठीक सोझां देशी-अंग्रेजी शराबकेर अजस्र दोकान. एतुका भैरव केवल मदिरा पिबैत छथि ! भक्त लोकनि मदिराक बोतल खोलि द्रवकें भैरवक छविक नीचाक बिलमें ढारि दैत छथिन, आ मदिरा बहि कय कतय जाइछ, जानथि भैरव ! वा भैरवक पंडा !! हमरा एहि कर्मकांडमें कोनो विश्वास नहिं. अस्तु, मन्दिर देखल आ आपस भेलहुँ. संयोग सं ई भैरव मध्य प्रदेशमें डेरा जमौलनि. बिहार व गुजरात-सन मद्य-निषेधित प्रदेशमें होइतथि तं चाहे डेरा डंडा तोडि बाहर भगितथि वा चोर-उचक्का-पुलिस पटेलक हाथ-पयर जोड़ितथि ! रक्ष रहलनि !!

गढ़कालिका 
उज्जैन नगरकेर बाहर, क्षिप्रा नदीक दक्षिण कालीक ई मन्दिर उज्जैनक प्रमुख दर्शनीय-स्थलमें परिगणित अछि. हमरा लोकनिक गढ़-कालिका पहुँचैत-पहुँचैत झलफल भ गेल रहैक. भीतर गेलहुं तं मन्दिरमें आरती आरम्भ भ गेल रहैक. हमरो लोकनि सम्मिलित भ गेलहु. काली देखलामें प्राचीन लगलीह. कलकत्ताक काली-जकां पूजाक हेतु केवल छविए-टा प्रतीक स्थापित छनि. से बेस पैघ; विशालाक्षी. बनावटमें भैरव आ कालीक छविक शैली एके.  मुदा, ई मन्दिर आ स्थान कतेक पुरान से कहब कठिन. मन्दिरमें समय-समय पर मरम्मति  भेलैये, से प्रत्यक्ष छैक. लोकक कहब छैक, कविकुलगुरु कालिदासक अधिष्ठात्री भगवती इएह थिकी. किन्तु, पहिने ई तं निश्चय भ जाय, कालिदास छलाह कतय केर ! मिथिला में लोक-मान्यता छैक उच्चैठक भगवती कालिदासक इष्ट थिकी. बंगाल, कश्मीर, दक्षिण भारत, सब ठाम, कालिदासक प्रति भिन्न-भिन्न छैक. किछु, जनश्रुति काल-क्रमे मुद्रित इतिहास आ ग्रंथक अंग भ जाइछ. लोककंठमें बसल किछु जनश्रुति नदीक पानि-जकां निरंतर बहैत रहैछ. उज्जैनमें बहैत एही जनश्रुति सबहक स्वाद आइ एहि टेम्पो चालक मोहम्मदक मुंहें सुनल रनिंग-कमेन्ट्री सं लेल.

ओंकारेश्वर
ओंकारेश्वरक गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगमें छनि. नर्मदाक कछेरपर स्थापित नर्मदेश्वरक मन्दिर नर्मदाक पेटमें एकटा द्वीपमें, पहाड़क उपर, नदीक खड़ा कछेरक कगनी पर  छनि. लोक-विश्वासक अनुसार ई द्वीप ॐ केर आकारक अछि. किन्तु, से मिथ्या. विश्वास नहिं हो तं ‘गूगल अर्थ’ देखि लियअ; द्वीप त्रिभुजाकार छैक. पहिने जहिया एतय नदी पर पुल नहिं रहैक, लोक नाव पर नर्मदा पार करैत छल आ ज्योतिर्लिंगक दर्शन करैत छल. बरसात आ बाढ़ि-सन विपरीत परिस्थिति में से संभव नहिं भेलापर नदीक पछ्बरिया कछेरपर स्थित दोसर शिवलिंग- ममलेश्वर -क दर्शन कय लोक संतोष करैत छल. अस्तु, एतय लोक ओंकारेश्वर आ ममलेश्वर दुनू कें ज्योतिर्लिंगक संज्ञा दैत छनि. शास्त्र-सम्मत की छैक से शास्त्र पढ़निहार बुझथु. 
ओंकारेश्वर मठ , मार्कण्डेय सन्यास आश्रम परिसर सं : गुलाबी रंगक मन्दिर ओंकारेश्वर मठ थिक 
मरा लोकनि करीब साढ़े आठ बजे भोरमें उज्जैनसं ओंकारेश्वरले विदा भेल रही. रास्तामें चाह-पानि करैत करीब 1 बजे ओंकारेश्वर पहुँचल रही. बाटमें तीन टा घाटी अबैत छैक. संगहिं, ई सडक महाराष्ट्र धरि जयबाक टोल-फ्री सडक थिक. तें, भारी-वाहनक ट्राफिक भेटब उचिते. टैक्सी चालक सचढ़ अछि, से नीक. पहाड़ी रास्ता पहिने जंगली छल हेतैक. किन्तु, आब जे किछु गाछ-वृक्ष छैक से सब नव रोपल. सब ठाम नार पोआर-सन जीवनहीन, सुखायल गाछ. हरीतिमा आ जलश्रोतकेर नितांत अभाव. बरखा ऋतुमें दृश्य अवश्य भिन्न होइत हेतैक. इंदौर शहरकेर समीप आइ आइ टी सेहो एही बाट पर पडैत छैक. मीटर गेज रेलवेक एकटा सिंगल लाइन सेहो एहि बाटे महू छावनी दिस जाइत अछि. आओर आगू गेला पर ओंकारेश्वर सं किछु किलोमीटर पहिने माहेश्वर नामक तीर्थ आ शहर दिस, दाहिना रास्ता फुटइत छैक. माहेश्वरहिंसं  स्थानांतरित कय होलकर लोकनिक अपन राजधानी इंदौर शहर अनने रहथि. एखनो माहेश्वर विशिष्ट शैलीक सूती साडीक उत्पादन ले प्रसिद्ध अछि. किन्तु, हमरा लोकनि माहेश्वर नहिं जायब. अस्तु, सोझे ओंकारेश्वर दिस आगू बढ़लहु.
ओंकारेश्वरमें शहर वा गाओं थिक से कहब कठिन. किन्तु, बहुतो आन ठाम-जकां आब एतहु शहर आ गाँवक अंतर शीघ्रे समाप्त भ जेतैक. एतय हमरालोकनि मार्कण्डेय सन्यास आश्रममें डेरा देब. हमर जमाय सिद्धार्थजीक परिवार एहि आश्रमक शिष्य थिकाह. हमरा लोकनि हुनके लोकनिक अनुशंसापर एतय डेरा देबाक निर्णय केने छी. जखन हमरा लोकनि मार्कण्डेय सन्यास आश्रममें पहुँचल रही दिन केर करीब एक बजैत रहैक. भोजनक बेर बीति चुकल छैक, तथापि एतुका व्यवस्थापक- श्री रमण चैतन्य- सादर भोजन करओलनि. बहुत दिनक पछाति कोनो आश्रम में रहबाक मौका लागल अछि. एहिसं  पूर्व 2001में पांडिचेरीक अरविंद आश्रम में दू राति रहल रही. एतुको अनुशासन एक रंगाहे. नर्मदाक कछेर पर, पीपरक गाछ तर, दोमहला भवनक निचला तल पर एकटा साफ़-सुथरा, सादा कोठली. दूटा खाट, ओढ़ना, बिछाओन. अटैच्ड बाथ, वेस्टर्न कमोड आ बेसिन. पांच बजे सुबह घंटीक संग चाय आ थोड़-सन घुघनी, पोहा, हलवा वा आन किछुक नाश्ता. एगारह बजे भोजन. तीन बजे चाह आ किछु जलपान. रातुक सात बजे भोजन. पाँतिमें ठाढ़ होउ, भोजन लियअ. डाइनिंग-हॉलमें आशनपर, दोसर कोठलीमें कुर्सी, वा मण्डपमें भूमि पर बैसि भोजन क लियअ, आ गोइठाक छाउडसं थारी-बाटी-गिलास मांजि यथास्थान राखि आउ. परिसर सर्वथा शांत, चानन छिलकैत स्वच्छ. कएक टा मजरल आमक गाछ, धात्रीक गाछ, फूल-पत्ती, लता-वितान.  परिसर में एकटा शिवालय; मोन हो तं भोर-सांझ नियत समयपर शिव-महिम्न स्तोत्र पथ आ आरतीमें शामिल होउ. एकर अतिरिक्त आदिशंकर केर एकटा मन्दिर, छात्रावास, गोशाला, डोर्मिटरी, सोलर पैनल, आ औषधालय. परिसरक नीचा, नदीक धार आ आश्रमक बीच, करीब चौथाई किलोमीटर लम्बा आ सौ मीटर चौड़ा पक्का घाट. नर्मदाक उत्तर, दाहिना दिस नदीक खड़ा कछेरपर पुलक पार ओंकारेश्वर तीर्थ, आ ओहिसं आओर दूर दाहिना दिस डैम. एहि हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम सं समय-समय पर नदीमें पानि छोडल जाइत छैक जाहिसं जलक आपूर्ति आ बिजलीक उत्पादन दुनू होइछ. 
आइ हमरा लोकनि  आश्रमहिं में आराम कयल. किन्तु, हमरा टहलानक बिना रहि नहिं होइछ. अस्तु, सांझमें टहलैत समीपक बाज़ार धरि गेलहुं. बाज़ारमें अनेको धर्मशाला, होटल, छोट-पैघ दोकान, आ मन्दिर. देखला सं ई गाओं नेपाल वा  उत्तरांचलक कोनो छोट-सन पहाड़ी तीर्थ आ गाओं-सन लागल. छोट-छोट दोकान. सस्ता सामान. हमरा तं बिसरि गेल छल, पांच टाकामें गरम सिंघाड़ा, आ दस टाकामें चूड़ाक पोहा, आ पचास टाकामें दू गोटेक हेतु सिंघाड़ा-जिलेबी-पोहा भेटैत होई ! पांडिचेरीमें तं दू वर्ष पहिने, जी एस टी लागू भेला पर, छत्तीस टाकामें एकटा सिंघाड़ा किनने छलहुँ से नहिं बिसरल अछि. शहरमें खूब सफाई. मांछी-मच्छरक प्रकोप नहिं. नदीक किनार पर नदीक जलक शुद्धताक डिजिटल डिस्प्ले बोर्ड आकर्षित कयलक. सडक सब सेहो खूब चौड़ा आ साफ़. बिहारमें तं एहन व्यवस्था एखन सपने अछि. मुदा, तैयो एतुका सरकार चुनावमें पराजित भ गेल ! जनता-जनार्दनक इच्छा !!

ओंकारेश्वर मन्दिर 
ओंकारेश्वर मठकेर द्वार
मार्कंडेय आश्रम सं मठ गोटेक किलोमीटरक भीतरे हेतैक. किन्तु, पहाड़ी चढ़य पडत. तें, दोसर दिन भोरे एकटा टेम्पो किराया कयल आ ओंकारेश्वर मन्दिरक समीप गेलहुं. मन्दिरक बाट एकटा पक्का झूला पुल ( सस्पेंशन ब्रिज ) बाटें छैक. तीर्थयात्री लोकनिमें मराठी लोकनिक बहुलता ; मन्दिरक बाटमें एकटा मराठी दाता द्वारा निर्मित विशाल धर्मशाला-गजानन धर्मशाला- देखबा में आयल. पुलक दोसर पार मन्दिरक बाटमें फूल-पत्ती-बेलपातक बिक्री. मन्दिर ट्रस्ट द्वारा संचालित प्रसादक दोकान. भीड़ एकदम नहिं. फूल-पात सस्ता. छोट-स्थान आ गाओंमें लोककें अपन खर्चाक आलावा लोभ सेहो कम होइत छैक; संतोषम् परमं सुखं . परसू मंगलनाथमें जतबा फूल सौ टाका में किनने रही एतय दस टाकामें भेटल. दर्शन में कोनो धक्कम-धुक्की नहिं. तें, हमर पत्नी तीन दिन में तीन बेर दर्शन केलनि. संगिनी छथि तं हमहूँ संग देलिअनि आ दाम्पत्य-धर्मक निर्बाह कयल. 
ओंकारेश्वरसं आपस घुरैत सस्पेंशन ब्रिज पर लेखक दम्पति 
गुलाबी रंगक सैंडस्टोनक ओंकारेश्वरक मन्दिर. एतय स्थानक अभाव छैक. ते, मन्दिर आकारमें छोट. गर्भ-गृह सेहो 5 x 4 फुट . शिवक विग्रह लिंगक आकारक नहिं. शिवक प्रतीक पिंड ‘वोल्कानिक-रॉक’ जकां प्रतीत होइछ. एतय रहिते अखबार में नजरि आयल, एखनुका गर्भ गृह केर नीचा एकटा चैम्बर भेटलैक अछि. प्रायः आक्रमणकारी सबहक भय सं  प्राचीन शिवलिंग ओही तहखानामें नुकाओल होइक. ओहि कक्षकेर  फाइबर ऑप्टिक स्कोप द्वारा जांच पड़ताल जारी छैक. सत्य की छैक, समय कहत. ओंकारेश्वरक दर्शनक पछाति ममलेश्वरक दर्शन सेहो केलहुं. एहि मन्दिर परिसरक  कएक टा मन्दिर ढहि रहल छैक. जीर्णोद्धारक काज चालू छैक. सरकार आ समाज सजग अछि, से लागल. आखिर एतुका जनताक जीविकाक श्रोत तं मन्दिर आ नर्मदाए थिकी. ओहुना ‘नर्मदे हर !’ एतुका सुपरिचित अभिवादन थिकैक.

नर्मदामें झिलहरि
नमामि देवि नर्मदे  !
नर्मदा आ नर्मदाक प्रति एतुका लोकक निष्ठा आ भक्ति सं कविकोकिल विद्यापतिक एकटा पाँति मन पडैत अछि:
      बड अपराध क्षमब मोहि जानि
परसल माई पाय तुअ  पानि
एतहु रेवा वा नर्मदाक प्रति लोकक तेहने भाव छैक, जेना हमरा लोकनिकें कमला कोशी व गंगा माइक प्रति अछि. मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र आ गुजरातमें तं नर्मदाक बामा कछेर पर अमरकंटकसं भरूच,  आ पुनः नर्मदा  पार कय नदीक दाहिना कछेर पर पूब मुंहें  चलैत भरूच सं अमरकंटक धरि नर्मदा परिक्रमाक परम्परा छैक. एहना परिस्थितिमें नर्मदामें मनोरंजन शैलानी टा केर उद्देश्य भ सकैछ. हम पर्यटक छी. हमर पत्नी पर्यटक आ भक्त दुनू छथि. किन्तु, नर्मदा-भक्त नहिं. तें, एहू नदीक जलक स्पर्श करी. नदीक तलहटीक भूमि पथरीला आ किनेरक  खड़ा  छैक. पानिक गहराई कम. संगहि, नर्मदाक उपरी भागमें अनेक बाँधकेर कारण एतय नर्मदामें पानिक स्तर दिनमे कतेक बेर घटैत-बढ़इत रहैत छैक. मोटा-मोटी भोरुक समयमें नियमतः डैमकेर फाटक खोलि जखन पानि छोड़ल जाइछ, तं पानिक स्तर में 8-10 फुटकेर वृद्धि भ जाइत छैक. ओही समयमें बढ़ल पानिमें नदीक पेटमें जागल पाथर सब  डूबि जाइछ. तें, बोटिंग हमरा ले वएह समय अनुकूल बूझि पड़ल. आठ सौ टाका. दू टा नाविक आ दू टा यात्री. थोड़ेक मोल-मोलई तं करहिं पड़ल. एक घंटाक समयमें ओंकारेश्वर द्वीपक परिक्रमा कयल. ओंकारेश्वर द्वीप, एतय पूबसं पश्चिम दिस बहैत, नदीकें दू धार में विभाजित करैछ. दाहिना भाग कें एतुका लोक कावेरी कहैछ, आ बामाकें रेवा वा नर्मदा . दू किलोमीटरक भीतरे जतय दुनू धार पुनः एकाकार होइछ एतुका लोक ओही स्थानकें संगम कहि पवित्र बूझैछ, आ संगम-स्नान करैछ. हमरा सुनल छल अमरकंटक सं, गुजरातमें भरूच धरिक नर्मदा नदीक  कोनो–कोनो खण्ड मगरमच्छ ले बदनाम अछि. यद्यपि, देवीक स्वरुपमें भव्य नर्मदा-देविकें सबठाम निर्भीक मकर वाहिनीक रूप में  देखबनि. तथापि, झिलहरिक दौरान जीव-जन्तुक नाम पर केवल कारी रंगक सिल्ली सब सेहो देखबा में आयल. माछकेर नाम निशान नहिं. प्रायः, नदीक निरंतर दोहन सं माछ विलुप्त भ गेल होइक,  किन्तु, नर्मदाक एहि खण्डमें मगरमच्छक कोनो भय नहिं, से एतुका मल्लाह लोकनि सेहो कहलनि. ओंकारेश्वर मठक समीप नदीक गहराई काफी हेतैक, किन्तु, एतय घड़ियालसं ककरो कहियो कोनो अवघात भेलैये, सेहो सुनबामें नहिं आयल. बेरुक पहर तं, जखन नदीमें पानि कम भेल रहैक, तं , करीब प्रतिदिन पर्यटक लोकनिकें नदीक पेटमें पानिसं उपर जागल पाथर सब पर तड़पैत, नदीमें जहां-तहां जाइत देखलियनि. एतय नर्मदाक पानि स्वच्छ छैक आ बहाव मन्द.
नर्मदाक धार आ कछेर ; स्वच्छ, शान्त आ मनोरम 
कछेर सब पर नदी उत्थर छैक. तें, कतेक ठाम नाविक सब नाओ सं उतरि नाओ कें घिचैत गेलाह. काज श्रमसाध्य छैक. ताहिपर नाओक मोटर ले डीजलकेर खर्च अलग. अस्तु, आठ सौ रुपैया अपव्यय नहिं बूझि पड़ल, आ संतोष पूर्वक नर्मदाक स्पर्शक मनोरथ पूर कयल. स्नान अगिला बेर अमरकंटकमें हेतैक. ता धरि, चरैवेति, कीर्तिनाथ !         

  
        



8 comments:

  1. अपन देशमें भ्रमण आ तकर वर्णन. अजगुत लागत ने. स्थान परिचित भ सकैत अछि, किन्तु, देखनिहारक दृष्टि आ अनुभवमें भिन्नता होइछ. इएह अन्तर भिन्न-भिन्न वृत्तान्तक विशेषता थिक. आइ उज्जैन, आ ओंकारेश्वरकें हमरा दृष्टिए तं देखिऔक. किछु नीक लागय, तं, अपन सम्मति देब जुनि बिसरी. एक दोसरा सं अनुभवकें बाँटब लेखककेर प्रकृति होइछ.एहि लेखकें ओही दृष्टिसं देखिऔक तं !

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद. एहि ब्लॉग-स्पॉट कें आओर मैथिली-भाषीक संग शेयर करी.

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  3. नीक वर्णन,प्रवाहआउर तारतम्यता के साथ

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद. एहि ब्लॉग-स्पॉट कें आओर मैथिली-भाषीक संग शेयर करी.

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  4. जिक्र उस परीबस का और फिर बयां अपना.

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    1. पढलहुंं आ सम्मति देल, आभारी छी.

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  5. पौराणिक भौगोलिक एवं वर्तमानक तारतम्यता संगहि भाषाक सरसता स्वतः पढ़बाक उत्सुकता बढ़बइत गेल

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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