पिंजड़ामें बंद अम्बेडकर, गांधी, आ राम
मूर्ति चाहे ब्राज़ील केर शहर,रियो द जेनेरो लगक पहाड़ी पर ‘क्राइस्ट द रिडीमर’
के होइनि, आ केवाडिया, गुजरात में पटेल केर; अयोध्यामें राम केर, वा कालाकुरिची,
तमिलनाडु में अम्बेडकर केर. ई सब मूर्ति नागरिकक आस्थाक प्रतीक थिक. किन्तु, समाजक
नागरिक जं एक दोसराक आस्थाक आदर नहिं करथि, तं एहन स्थिति उपस्थित भ’ जाइछ जे पुलिस
आ प्रशासनकें अम्बेडकर, गांधी, आ रामहु कें पिंजड़ामें बन्न करय पड़ैत छनि.
चेन्नईसँ प्रकाशित 21 जनवरी 2021 क अंग्रेजी दैनिक ‘हिन्दू’ में छपल एहने एकटा फोटो हमरा आकृष्ट केलक. एहि फोटोमें ऊँच आधार पर स्थापित, डाक्टर अम्बेडकर केर एक मूर्तिकें चारू दिससँ लोहाक जालीमें बन्न तं कयले गेल छनि, मूर्तिक नाकक सोझमें पुलिस-प्रशासन हाई रेजोल्यूशन सि सि टी वी कैमरा सेहो लगओने छथि, जाहिसँ मूर्तिकें क्षति तं नहिए होइक, वरन मूर्तिकें क्षति कयनिहार उपद्रवीक पहचान भ’ आसानीसँ भ’ सकैक.
फोटो साभार : अंग्रेजी दैनिक ' द हिन्दू', चेन्नई, दिनांक 21 जनवरी 2021अजुका एही फोटोकें देखि अयोध्याके तहियाक ध्वस्त, तथाकथित ‘विवादित ढांचा’में
स्थापित राम-लला, बनारसमें विश्वनाथ, आ आन-आन ठामक राजनेता लोकनिक मूर्तिक चारू
कात बेढ़ल सुरक्षा-चक्र मन पड़ि आयल.
जं मूर्ति भंजन केर आरंभिक इतिहासकें देखी तं सबसँ पहिने प्रायः इस्लामी धर्म
प्रचारक सैनिक अभियानी लोकनि अपन धर्मक प्रचार ले मूर्ति भंजनकें अपन उद्देश्य
बनओलनि; तालिबान द्वारा बामियान बुद्धक ध्वंस आ पाकिस्तानमें हास-सालमें हिन्दू मंदिर सब पर
आक्रमण एकर नवीनतम उदाहरण थिक. इसाई धर्मक प्रचारक प्रायः ग्रीक आ मिस्रकेर प्रागैतिहासिक मूर्तिक
भंजनकें अपन अभियानक हिस्सा नहिं बनओलनि, यद्यपि नव धर्म- इसाई - क स्थापना ले जे
‘धर्मयुद्ध’ सब लड़ल गेल से इतिहास विदित अछिए.
सवाल उठैछ, लोक आन नागरिकक आस्थाक प्रतीकक ध्वंससँ की पबैत अछि ? की अपन आस्था,
वा अपन प्रतीक में आस्था दृढ़ करबाले मूर्ति भंजन आवश्यक छैक ? आइ एही पर विचार
करी.
मनुष्य ईश्वर के मूर्त रूप कहिया देबय लगलनि, से ठीक-ठीक कहब कठिन. बौद्ध आ
जैनकालीन राजा लोकनि अनेक भव्य मन्दिरक निर्माण कयलनि, तथापि, अशोक आ हर्षवर्धनसँ ल
कय, दक्षिण केर पल्लव, चोल, आ चेर राजा लोकनि कतहु अपन पूर्तिक स्थापना नहिं कयलनि.
हिनका लोकनि परवर्तीओ राजा लोकनि जतय कतहु मन्दिरक निर्माण कयलनि, ओतय मन्दिरक पटल पर निर्माताक नाम भले होइनि, हुनका लोकनिक मूर्ति नदारद अछि. तें, राजनेता लोकनिक मूर्ति स्थापना प्रायः आधुनिक कालक
परिपाटी थिक, जे प्रायः उपनिवेशवादक संग आरम्भ भेल. उपनिवेश कालमें प्रशासक लोकनि विभिन्न
स्थान पर राजा-रानीक मूर्तिक संग-संग प्रशासक आ सेना नायक लोकनिक मूर्ति अवश्य
स्थापित केलनि. सत्ता परिवर्तनक पछाति, बहुतो ठाम ई मूर्ति सब तोड़ल गेल,तं, किछु तस्करक हाथें
बेचलो गेल. समयक संग संग जं अनेक मूर्ति पर बड़-पीपर जनमि गेलैक, तं, किछु मूर्ति
अपने आप कालक गालमें समा गेल . किछु
स्थान पर पहिलुका युग में अराध्य, देवी-देवता-जकां पूजित, राजा-रानीक मूर्ति ओहिना
कतबहि में पड़ल अछि. कारी पाथरसँ बनल ब्रिटिश महारानी विक्टोरियाक एकटा एहने आदमकद
मूर्ति हम राजपूत रेजिमेंटल सेंटर, फतेहगढ़, उत्तर प्रदेश में करीब सत्ताइस वर्ष
पूर्व देखने रही. अनुशासित सैनिक लोकनिक बीच ई मूर्ति तहियो केवल एकटा सजावट वा
इतिहासक संकेतक रूप में ओहिना पड़ल छल, जेना अंग्रेजक शासन काल में. राजनीतिसँ दूर सैनिक वातावरणमें प्रायः ताधरि एहि मूर्ति
पर कोनो राजनेताक नजरि नहिं गेल रहनि. आब ओ मूर्ति ओतय अछि वा नहिं, कहि नहिं सकैत
छी.
मुदा, ई सर्वविदित अछि जे सोवियत यूनियनक विघटनक पछाति जहिना लेलिन सहित अनेको
नेताक मूर्ति सब ढाहल गेल, तहिना इराकमें सद्दाम हुसैनक शासनक अंतमें हुनक मूर्ति
सबहक गरदनि में लोहाक रस्सी बान्हि ओकरा भूमिसात कयल गेल. अर्थात्, मूर्तिओक उदय आ
अस्त राजनीतिक शक्तिक उदय आ अस्त संगे-संग होइछ. मुदा, जखन राष्ट्र सब में सोवियत
यूनियनक विघटन, वा इराकमें सद्दामक शासनक अंत-सन परिवर्तन नहिओ होइत छैक समाजमें भीतरे-
भीतर मूर्ति स्थापना आ मूर्ति-भंजनक प्रक्रिया निरंतर चलैत रहैछ. भारतमें जखन
स्वतंत्रताक अभियान चलल, एहिना लार्ड-लेडी, राजा-रानीक मूर्ति पर कारिख पोतब आरम्भ
भेल छल. एकर परिणति भारतक स्वतंत्रता में भेल. तथापि, ओहि समयमें
गाँधी-नेहरु-पटेल-सुभाष केर मूर्ति स्थापना आरम्भ नहिं भेल छल. क्रमशः अपन
राजनैतिक रुझानक अनुकूल आ राजनीतिक शक्तिक प्रदर्शन रूपें समाज, अपन नेता लोकनिक
हेतु पार्क-सड़क-चौक-चौराहा हथियायब आरम्भ केलक. जे कनेक बेसी दूरदर्शी छल से
हनुमान जीक मूर्ति ठाढ़ केलक. मुदा, समाज आ समाजक सोच निरंतर नदीक धार-जकां बहैत
रहैछ. ऊपरसँ कखनो अकस्मात् कोनो सामाजिक-राजनीतिक
बिहाडियो आबि जाइछ, अचानक कोनो धूमकेतुओ
चमकि जाइत छथि. समाजमे आयल ओहि अचानक बिहाडिक प्रभावें, वा नव धूमकेतुक आभामंडलमें समाजमें सब किछु एकाएक बदलए लगैछ.
कालाकुरिची, तमिलनाडु में डाक्टर अम्बेडकरक मूर्तिक चारुकात लागल लोहाक जाली आ हुनक नाकक सोझ लागल हाई
रेजोल्यूशन सि सि टी वी कैमरा एही परिवर्तनक द्योतक थिक !
देश हो वा विदेश..एहनो स्थिति आबि सकैत अछि,से के सोचि सकैत छल..जीबी त की की ने देखी...
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