मणिमेखलै
महाकाव्य
मादवि आ मणिमेखलै
तमिल महाकाव्य शिलापत्तिकारम् मे वर्णित कन्नगी कोवलनक कथा दुखान्त छैक. किन्तु,
कन्नगीक चरित्र समाज मे हुनका देवी बना देलकनि. वणिक् कवि सत्तनसँ कन्नगीक जीवन-वृत्त
सुनि, सर्वप्रथम सम्राट् सेंगुट्टवन हिमालय प्रदेशसँ पाथर आनि कन्नगीक मूर्ति बनबओलनि
आ एक भव्य मंदिर मे ओकर स्थापना केलनि. पछाति आनो ठाम हुनक प्रतिमा स्थापित भेल,
मन्दिर बनल. ई सिलसिला एखनो धरि जारी अछि. फलतः, तमिल जनमानस मे कन्नगीक चरित्रक
एक स्थायी स्थान बना लेलक आ कन्नगी सत्ताक विरुद्ध नारी विद्रोहक अग्रदूत जकाँ
समादृत होइत छथि. मुदा, विख्यात कलापारंगत मादवि? मादवि, कन्नगी-कोवलन आ काड़ाक कथा मे मुख्य
पात्र जकाँ अबैत तं छथि, मुदा, अनेक अर्थ मे उदात्त चरित होइतो काड़ाक कथाक अंतक
संगहि ओ कथा-पटल परसँ लुप्त भए जाइत छथि.
सत्यतः, कन्नगी-कोवलनक कथाक संग ने मादविक जीवनक अंत होइत छनि आ ने हुनक कथाक
अंत. तखन मादविक की भेलनि ? मादवि आ कोवलन कन्या- मणिमेखलै-क की भेलनि? एहि सब
विषयक उद्घाटन होइछ मणिमेखलै नामक काव्य ग्रन्थ मे. असल मे मादविक असमाप्त कथा
पुनः एही काव्य ग्रन्थ मे अभरैत अछि. आ ओतय मादवि अभरिते टा नहि छथि, बल्कि, मणिमेखलै
महाकाव्यहि मे मादवि आ मणिमेखलैक कथाक
समापन होइछ. मणिमेखलै महाकाव्य मे मणिमेखलै प्रथमतः आ मादवि पुनः उदात्त चरित्रक
रूपमें उगैत छथि, जकर समानांतर कथा सुदूर वैशालीमे, आम्रपालीक जीवनमे देखबा मे अबैछ.
तथापि, आम्रपाली आ मादवि आख्यानक बीच कोनो एकटा अंतर नहि. दुनूक बीच अनेक शताब्दीक दीर्घ कालखण्ड छैक. मुदा, समयक दीर्घ अंतराल, समाज पर महात्मा बुद्धक प्रभावकें निष्क्रिय
नहि कए पबैछ. अस्तु, कन्या मणिमेखलैक कथा मूलतः
मणिमेखलैक आ मादवि जीवनक असमाप्त कथाक
अगिला कड़ी थिक, जाहि मे महात्मा बुद्ध केर शिक्षासँ प्रभावित भए दुनू माए-बेटी अपन आगूक मार्गकें कोना सार्थकता प्रदान करैत छथि तकर रोचक कथा छैक. ई कथा कोवलन-कन्नगीक
कथासँ एको मिसिया कम रोचक नहि.
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