Wednesday, March 12, 2025

कुँवर सिंह महाविद्यालय, लहेरियासराय (1971-73 )

 

 कुँवर सिंह महाविद्यालय, एवं दरभंगा मेडिकल कालेज, लहेरियासरायक अध्याय  

१९७१ वर्षमे हमरालोकनिक इलाकामे केवल दुइए टा कालेज रहैक- झंझारपुर जनता कालेज आ सरिसब कालेज. सायंसक पढ़ाई दुनूमे कोनोमे  नहि रहैक. हमरा डाक्टर बनबाक धुनि सवार छल. ताहिसँ कम वा बेसी, कथूक कल्पनाओ नहि छल. लगसँ आओर कोनो व्यवसाय देखनहुँ नहि रहिऐक. छोट वयसमे हमरा रोगो खूब भेल. चिकित्सा लेल दरभंगा जाइ. डाक्टर लोकनिक ताम-झाम, यंत्र-उपकरण आ चमक-दमक मोहि लियअ, डाक्टरलोकनिक छवि आकृष्ट करय. रोड पर जतेक गाड़ी देखिऐक, अधिकतर डाक्टरे लोकनिक रहनि. ऊपरसँ डाक्टर बनबाक विचारक पाछू एकटा आओर प्रेरणा रहथि: स्व. किरणजी. यद्यपि हुनका हम कहिओ वैदागरी करैत देखने नहि रहियनि, मुदा, ओ वैद्य रहथि,.

एतावता मैट्रिक पास केलाक पछाति, गाममे पढ़बाक इच्छा नहि छल. मुदा, परिवारक साधन सीमित छलैक. दादा हमर उपलब्धिसँ गौरवान्वित होथि, मुदा, हाथ छुच्छ रहनि. जमीन्दारी उन्मूलनक संगहि ओ बेरोजगार भए गेल रहथि. हुनकर नौकरीमे कोनो प्रोविडेंट फण्ड, पेंशन वा ग्रैच्युटी तं रहबे नहि करनि. ऊपरसँ जहिया सेवानिवृत्त भेलाह, किछु मासक वेतन संबंधी जमीन्दारक ओतय बांकीए रहि गेल छलनि. तथापि, हुनका पाछू घूरि तकबाक प्रवृत्ति नहि रहनि, असंतोषक गप मुँहसँ नहि बहराइनि. तथापि, सुनैत छी, कहिओ काल कहथिन: ‘सब दिन तं नौकरी संबंधीएक लोकनिक केलहुँ, मुदा, एखनहुँ ओएह लोकनि बंकिऔता रखने छथि!’
फलतः, मैट्रिकक परीक्षामे अप्रत्याशित सफलताक अछैतो, आगू नहि पढ़ि सकब कि नहि, ताहिमे हमरा संदेह होमए लागल छल. मुदा, अंततः हमर संदेह निराधार प्रमाणित भेल, आ हमर जेठ भाई उदयनाथ झा प्रसिद्ध ऊधोजीक प्रयासें हमर पित्ती उमेश बाबूक ओतय हमर रहबाक व्यवस्था भेल आ हम नवजात कुँवर सिंह कालेजमे नाम लिखाओल.

कुँवर सिंह कालेजक स्थापना ओही वर्ष (१९७१ ई.) मे भेल रहैक. संस्थापक लोकनिमे डाक्टर ब्रह्मानन्द सिंह अगुआ रहथि. कालेज डाक्टर ब्रह्मानन्द सिंहक सहायक, परमेश्वर प्रसादक निजी भवनमे चलैत रहैक. स्थानीय सी एम कालेजक अर्थशास्त्र विभागक लेक्चरर, रामविनोद सिंह, प्राचार्य रहथि. अधिकतर शिक्षक सद्यः उत्तीर्ण युवक आ दाता लोकनिक परिवारक सदस्य आ संबंधी लोकनि रहथिन.

शिक्षक लोकनिमे राघवेन्द्र प्रसाद अग्रवाल स्मरण अबैत छथि. डाक्टर अग्रवाल पढ़बा-लिखबामे निष्णात, अनुभवी आ परिपक्व रहथि. ओहि समयमे हुनका-सन योग्य आओर कोनो शिक्षक नहि रहथि. पछाति, ओ वनस्पति विज्ञानक अनेक पुस्तको लिखलनि आ यशस्वी, किन्तु, अल्पायु भेलाह. विज्ञान संकायमे जीव विज्ञानं विभागक केशव कुमार सिंह  एवं रसायन शास्त्र विभागक विश्वेश्वर सिंह मन पड़ैत छथि. दुर्भाग्यवश, इहो दुनू गोटे अल्पायु भेलाह; युवक केशव कुमार सिंहकें काला अजार लए गेलनि, आ विश्वेश्वर सिंह कैंसरक शिकार भेलाह. तहिया काला अजारक कारगर औषधि नहि भेटैक. औषधिक अनुपलब्धताक कारण केशव कुमार सिंहक निधन हमरा बहुत दिन धरि विचलित केने रहल. किन्तु, दुःखद थिक, एतेक दिनक पछातिओ बिहारसँ काला अजारक काल निर्मूल नहि भेले.

श्याम वर्ण, गठीला शरीर आ औसत कद. केशव कुमार सिंह मृदु भाषी, मुदा, विचारें आग्रही रहथि. हमरा ओ खूब मानथि. तें, हुनका प्रति हमरो एकटा भक्ति भाव भए गेल छल. संयोगसँ जहिया ओ कला अजारसँ पीड़ित भेलाह, हम दरभंगा मेडिकल कालेजक छात्र भए गेल रही. तें, जखन ओ दरभंगा मेडिकल कालेजक मेडिकल वार्डमे भर्ती रहथि, करीब मास दिन भरि हम हुनका ओगरि, हुनक बेडक कातमे राति बितौने हएब. मुदा, ओ बंचि नहि सकलाह. दुःखक विषय जे जखन डाक्टर सी पी ठाकुर-सन यशस्वी चिकित्सक भारतक स्वास्थ्य मन्त्री भेलाह तकर पछातिओ बिहारसँ काला अजारक उन्मूलन नहि भए सकल.

सत्तरिक दशकक आरंभ धरि बिहारक शिक्षा व्यवस्था ध्वस्त भए चुकल रहैक.ताधरि कालेजक संख्या ततेक नहि रहैक, किन्तु, परीक्षा प्रणाली अत्यंत दूषित भए गेल रहैक; विश्वविद्यालयक परीक्षामे किताबक नकल आम रहैक. कुँवर सिंह कालेज नवे टा नहि रहैक. शिक्षक लोकनिक उत्साहक अछैतो हुनका लोकनिक अनुभवक अभावक पढ़ाईक मांग पूरा नहि कए पबैक. संयोगसँ , १९७३क वार्षिक परीक्षासँ किछुए दिन पूर्व विश्वविद्यालयक कमान, नागमणि,आइ ए एसक हाथमे आबी गेल रहनि. नागमणि अनुभवी प्रशासक आ शिक्षा व्यवस्थामे सुधारक प्रति कटिबद्ध आइ ए एस अफसर रहथि. ओ परीक्षामे सख्ती कए देलखिन. जर्जर शिक्षा व्यवस्था आ अचानक सख्त परीक्षाक फल ई भेलैक जे आइ एस-सीक वार्षिक परीक्षामे लगभग ९५ प्रतिशत विद्यार्थी असफल भए गेलाह.


    

   

      

 

Thursday, March 6, 2025

अदृश्य किन्तु सर्वव्यापी

 

अदृश्य किन्तु सर्वव्यापी 

सत्संग समाप्त भए गेल रहैक. भक्तलोकनि घोदा-माली भेल गुरूजीकेँ घेड़ने बैसल रहथि. जकरा जे फुरैक, प्रश्न पूछि शंका-समाधान करैत छल. शीबू सेहो कतेक शंका शमाधन केलनि. हुनक शंका-समाधानसँ गुरुजी संतुष्ट भेलाह, तँ मन भेलनि चूल्हि पर चढ़ल बासनमे रन्हाइत भात म सँ एकटा चाउर निकालि परीक्षा कइए ली, भात सिद्ध भेलैक की नहि. अस्तु, ओ सोझे शीबू दिस तकैत पूछि देलखिन, ‘भगवानकेँ अहाँ कोन रूपमे देखैत छियनि?’
शीबू एहि प्रश्न लेल प्रस्तुत नहि छलाह. अकस्मात् पूछल एहन प्रश्नसँ हुनक वाक् बन्न भए गेलनि. ओ अकबकाएल चारू भर ताकए लगलाह. शीबूकेँ अकबकाएल देखि गुरूजी जोर दैत एक बेर फेर पुछखिन: ‘भगवानकेँ अहाँ कोन रूपमे देखैत छियनि?’ अकस्मात् शिबूक नजरि मंचक एक कातमे ओंघड़ायल थ्री-एक्स रम केर एक खाली बोतल पड़ पड़लनि तँ जानमे जान एलनि. नजरि ऊपर उठओलनि तँ देखलखिन गुरुजीक दृष्टि हुनकहि पर केन्द्रित रहनि. फलतः, हड़बड़ीमे अकस्मात् शीबूक मुँहसँ बहरा गेलनि: ‘रम-रम, शराब-जकाँ!
‘अच्छा?’ कहैत आश्चर्यमे गुरुजी मुँह खुजलनि से खुजले रहि गेलनि.
‘जी.’ पूर्ण आत्मविश्वाससँ शीबू अपन उत्तर स्वीकारैत कहलखिन.
‘से कोना?’
‘ईश्वर अदृश्य छथि, कतहु देखबनि नहि’
‘ठीके.’
‘मुदा, छथि सबठाम. सर्वत्र विद्यमान.’
‘अद्भुत्!
‘मुदा, जखने परम भक्तिसँ आर्त्त भक्त ईश्वरकेँ स्मरण करतनि, प्रकट भए जेताह.’
शिष्य द्वारा विषयक एहन प्रतिपादनसँ गुरु अकस्मात् अभिभूत भए गेलाह आ हुनक दुनू हाथ प्रणामक मुद्रामे माथक ऊपर चल गेलनि. मुदा, शीबूक कहब एखन समाप्त नहि भेल रहनि. ओ पुनः बाजब शुरू केलनि, तँ गुरु पुनः साकांछ भेलाह.
‘एहन गुण बिहारमे शराबेटाकेँ छैक, गुरूजी!’ कहैत शीबू अपन तर्ककेँ विराम देलनि.
गूढ़ विषयक एहन सूक्ष्म विश्लेषणसँ गुरूजीकेँ भेलनि जेना शिष्यक सोझाँ दुझपिबा नेना होथि. ओ ठामहि अचेत भए गेलाह!


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