माताक स्मृतिक पर्व - मातृनवमी
आई सिन्धु चरणतल,
पितृपक्षक तर्पणक बेर
सियोकक कछेर में ,
छी पितामहक तिथि दिन नुब्राक उद्गम लग .
यायावरी व्यवसाय आ घुमक्कड़ प्रवृत्ति !
शत्रुदमन सेनाक अनुगमन
आ रोगहरणक वृत्ति !
हे ,माता , पिता , आ पितर
कतय करू ? अहाँक प्रति जल तर्पण !
कतय, ब्राह्मण भोजन ?
कतय, वर्षी-पार्वण ?
वैश्वीकरण-भूमंडलीकरणक बिहाडि में ,
आब नित्तः मनाओल जाइछ,
फादर'स, मदर'स आ नहि जानि कोन-कोन दिन !
वृद्धाश्रम आ अनाथाश्रम में -
एकाकी जीवनक अभिशापक बंधन में ओझरायल ,
हताश मानव अस्थिपंजर ले ओहि दिन मात्र -
एक गफ्फी फूलक कोंढ़ी,
एकटा केक, एक डिब्बा मिठगर बिस्कुट !
मुदा, साल भरिक तिक्त जीवन ,
आ एकाकीपनक खटास , कहाँ मेटा पबैत छैक एहि वार्षिक अर्घ्य सँ-
जे अन्हरिया में औनाइत वर्ष में होइछ ,
सुदुक क्षणिक बिजलोका जकां !
तें , हे माता ,
ने मातृनवमी में ब्राह्मण भोजन ,
ने पितृपक्ष में तर्पण हे, पिता ,
ने सुखरात्रि में उर्ध्व मुख ऊक हे , पितर !
मुदा ,
क्षण , पल, दिन, राति, प्रति निमेष,
हमर शरीरक प्रत्येक रोम ,शिरा,कोशिकाक स्पंदन , आ आन्दोलन
थिक अहिंक स्मृतिक निरंतर आवृत्ति !
लद्दाख, १८.१०.२००४
कीर्तिनाथक आत्मालाप, आत्ममंथनक क्षणमें हमर मनक दर्पण थिक. 'Kirtinathak aatmalap' mirrors my mind in moments of reflection.
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