1
शोर में सुनाई नहीं देती थी अपने ही मन की बातें ,
आज तन्हाई में बहुत सी दास्ताँ याद आई है !
2
मीलों दूर की दौड़ और बेइन्तहां फजीहत
आज पास की दरिया और अपने ही समन्दर ने मेरा दिल जीता है !
3
आसमा को चूमती तुम्हारी बुत कितनी बौनी है
पीपल के नीचे का बैठा वो बुद्ध का शिर कितना ऊंचा है !
4
इंसानियत ही मजहब की खुशबू है
फिरकापरस्ती ने ही हम सब को लूटा है !
सुन्दर अभिव्यक्ति..
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