Monday, April 28, 2014

जे किछु फुरल

1
वृद्ध केर ह्रदय होइछ नेने जकां 
नेनोक मोन होइछ बूढ़ 
बुझबा ले मनुक्खक ह्रदय चाही 
से बुझथि  नहिं  मूढ़ 

2
कडलूर क साँझ , पांडिचेरी क सूर्योदय 
अवाम केर घास परहक ओस 
लद्दाख क रौदक दुलार 
उत्तरांचलक फुलबारी क सिंगार
मोन में जगबइ अछि एके भाव; 
जं सबतरि  के बूझी अप्पन, 
तं कथुक नहिं अभाव !

3
दृष्टिक सीमाक पार 
दूर दूर धरि पसरल
 चंचल सागरक  पसार 
दूर दूर धरि समयक असीम पसार में 
बौआईत मोन 
एकहि संग देखबैत अछि 
स्मरण नन्दन काननक 
आ नरकक दारुण दृश्य 
जेना 
नागफनीक जंगल सं  छनि कय अबैत सूर्योदय क स्वर्णिम किरण 
थिक जीवनक सत्यक प्रतिरूप

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