महाभारत क कथा में अभिमन्युक प्रसंग में गर्भस्थ शिशुक अनुभवक कथा रहैक तं लोक कें हठे विश्वास नहिं होइक . आब आधुनिक विज्ञान कहैत छैक , गर्भस्थ शिशु आ माताक बीच मूक सम्प्रेषण चलैत रहैत छैक , तं लोक के विश्वास होमय लगलैक अछि . मुदा , ई दुनू गप्प में भले जे सत्यता होइक हमरा लगइए नेनपन में हम सुतले - सुतल माता सं बहुत किछु सिखने रही .
घरक परिवार नंग-चंगमें माय -बाप कें भोरे उठय पड़इ छलैक आ हमरा लोकनि घसमोड़ने पड़ल रहैत छलहु . मुदा , भोरे- भोर जे श्लोक सब कान में पडैत छल से कहिया आ कोना अनायास कंठाग्र भ गेल से नहिं जानि . मुदा नेनपन में सुनल श्लोकसब एखनो तहिना स्मरण अछि जेना काल्हिये सिखने होइ :
गंगा गीता गायित्री गोविन्द गरुड़ध्वजः
गकारादिं स्मरेनित्यः ग्लानिस्तस्य न जायते
लोलार्क केशवोकोटि नगरनन्धनुह
कनर्लक्षः पुण्यात्मा अहम् काशी गमिष्यामि
तत्रैव निजसाम्यहम सप्तं काशीवास फलं लभेत . काशी , काशी , काशी ....
जवाकुशुम संकासं काश्यपेयं महाद्युतिम
तमोरिसर्व सर्व पापघ्नं प्रणतोसि दिवाकरम
आदि , आदि ..
फेर जाड़क भोर में सुरु होइ पराती .
' माधव आब न विलासक बेर .......
कहियो उठाबथि, ' उठो लाल आँखें खोलो , पानी लायी हूँ मुख धो लो '
नहिं जानि ओहि युग में हिन्दीक ई पद कतय सं सिखने रहथि . हँ , एतबा अवश्य जे घर में बिहारी कविक ' बिहारी सतसई ' , मैथिली शरण गुप्त केर 'जयद्रथ बध' आ तुलसी आ चंदा झा रामायण तं अवश्ये रहैक .
पिता पंडित रहथिन . भाइ लोकनि पढ़ल लिखल; एक गोटे तं 'धौत पंडित' सेहो. तें , विद्याक संपर्क तं जन्मे सं रहबे करनि , धिया पुता अनुशासन सं रहय आ पढ़ि-लिखि आगू बढ़य तकर दुर्दांत आग्रह सेहो छलनि . इएह थिक माताक , हमर आरंभिक स्मृति .
घरक परिवार नंग-चंगमें माय -बाप कें भोरे उठय पड़इ छलैक आ हमरा लोकनि घसमोड़ने पड़ल रहैत छलहु . मुदा , भोरे- भोर जे श्लोक सब कान में पडैत छल से कहिया आ कोना अनायास कंठाग्र भ गेल से नहिं जानि . मुदा नेनपन में सुनल श्लोकसब एखनो तहिना स्मरण अछि जेना काल्हिये सिखने होइ :
गंगा गीता गायित्री गोविन्द गरुड़ध्वजः
गकारादिं स्मरेनित्यः ग्लानिस्तस्य न जायते
लोलार्क केशवोकोटि नगरनन्धनुह
कनर्लक्षः पुण्यात्मा अहम् काशी गमिष्यामि
तत्रैव निजसाम्यहम सप्तं काशीवास फलं लभेत . काशी , काशी , काशी ....
जवाकुशुम संकासं काश्यपेयं महाद्युतिम
तमोरिसर्व सर्व पापघ्नं प्रणतोसि दिवाकरम
आदि , आदि ..
फेर जाड़क भोर में सुरु होइ पराती .
' माधव आब न विलासक बेर .......
कहियो उठाबथि, ' उठो लाल आँखें खोलो , पानी लायी हूँ मुख धो लो '
नहिं जानि ओहि युग में हिन्दीक ई पद कतय सं सिखने रहथि . हँ , एतबा अवश्य जे घर में बिहारी कविक ' बिहारी सतसई ' , मैथिली शरण गुप्त केर 'जयद्रथ बध' आ तुलसी आ चंदा झा रामायण तं अवश्ये रहैक .
पिता पंडित रहथिन . भाइ लोकनि पढ़ल लिखल; एक गोटे तं 'धौत पंडित' सेहो. तें , विद्याक संपर्क तं जन्मे सं रहबे करनि , धिया पुता अनुशासन सं रहय आ पढ़ि-लिखि आगू बढ़य तकर दुर्दांत आग्रह सेहो छलनि . इएह थिक माताक , हमर आरंभिक स्मृति .
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.