एखनुक चलैत पांती सब हमर माताक हमर स्मरणक कड़ी थिक .
किन्तु , माता हमरा किएक मन पड़ैत छथि , जखन हम अपनहु वयसाहु भ चुकल छी. आब माता पिता दिवंगत भ चुकल छथि . हुनका लोकनिक कोनो मांग वा दवाब नहिं . जे किछु मंगलनि आ द' नहिं सकलियनि , आब कतबो पछ्तायब द' नहिं सकबनि . जे किछु नहिं मंगलनि , मुदा, अपना देबाक इच्छा छल से आब अपूरे रहत. आब से अनुभव भेले . आब बुझबामें आयले , माता -पिता- नेनाक सम्बन्धक विविध आयाम केहन होइत छैक से तखने बूझि पडत जखन अपने माता-पिताक भ' जाइ. पहिने किछु बुझबामें नहिं अबैत छैक . हयत , माता-पिताक ज्ञान, हुनका लोकनिक शिक्षा आ परिवेशे धरि सीमित छनि . मुदा सत्य ई छैक जे जीवनक अनुभव माता-पिताकें शिक्षा आ परिवेशक परिधि बहुत आगू , वृहत्तर संसारक दिव्य दृष्टिसं संपोषित केने रहैत छनि. औपचारिक शिक्षाक अभाव मनुष्यक अनुभवक विस्तारकें बान्हि नहिं पबैत छैक . ततबे नहिं , माता-पिता जन्मसं कैशोर्य धरि संतानक प्रवृत्ति आ स्वभावक प्रत्येक फलकक तेहन अनावृत्त स्वरुप सं परिचित रहैत छथि, जे संतानक अंतर में मुड़ियारि देबामे हुनका लोकनि कें एको क्षण नहिं लगैत छनि .तें , आई लगैत अछि हमरा लोकनि केहन अमरुख रही, आ माता-पिता हमरा लोकनिक अनेक व्यवहार पर मनहिं मन कतेक हंसैत छल हेताह वा विस्मित होइत छल हेताह !
किन्तु , माता हमरा किएक मन पड़ैत छथि , जखन हम अपनहु वयसाहु भ चुकल छी. आब माता पिता दिवंगत भ चुकल छथि . हुनका लोकनिक कोनो मांग वा दवाब नहिं . जे किछु मंगलनि आ द' नहिं सकलियनि , आब कतबो पछ्तायब द' नहिं सकबनि . जे किछु नहिं मंगलनि , मुदा, अपना देबाक इच्छा छल से आब अपूरे रहत. आब से अनुभव भेले . आब बुझबामें आयले , माता -पिता- नेनाक सम्बन्धक विविध आयाम केहन होइत छैक से तखने बूझि पडत जखन अपने माता-पिताक भ' जाइ. पहिने किछु बुझबामें नहिं अबैत छैक . हयत , माता-पिताक ज्ञान, हुनका लोकनिक शिक्षा आ परिवेशे धरि सीमित छनि . मुदा सत्य ई छैक जे जीवनक अनुभव माता-पिताकें शिक्षा आ परिवेशक परिधि बहुत आगू , वृहत्तर संसारक दिव्य दृष्टिसं संपोषित केने रहैत छनि. औपचारिक शिक्षाक अभाव मनुष्यक अनुभवक विस्तारकें बान्हि नहिं पबैत छैक . ततबे नहिं , माता-पिता जन्मसं कैशोर्य धरि संतानक प्रवृत्ति आ स्वभावक प्रत्येक फलकक तेहन अनावृत्त स्वरुप सं परिचित रहैत छथि, जे संतानक अंतर में मुड़ियारि देबामे हुनका लोकनि कें एको क्षण नहिं लगैत छनि .तें , आई लगैत अछि हमरा लोकनि केहन अमरुख रही, आ माता-पिता हमरा लोकनिक अनेक व्यवहार पर मनहिं मन कतेक हंसैत छल हेताह वा विस्मित होइत छल हेताह !
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.