जुलियस सीज़र : मैथिली
प्रोफेसर रमाकान्त मिश्रक
लिखल शेक्सपियरक विश्वप्रसिद्ध कृति ' जूलियस सीज़र ' क मैथिली अनुवाद मित्रवर
प्रोफेसर श्रीश चौधरीक सौजन्य सं भेटल . 2011 ई० में पिंडारुछक पाञ्चजन्य ट्रस्ट एहि पोथीक कें
प्रकाशित केने अछि.
ओना तं विश्वप्रसिद्द रचना
सबहक सब केओ आदर करैछ; पढ़नहु वा बिनु
पढ़नहु. मुदा, इच्छा रहितो, भाषाक बाधाक कारणें, बहुतो गोटे विश्व साहित्यक अनेक
अनुपम कृतिसब पढ़ि नहिं पबैत छथि; पाठकले
ई एकटा
विकट समस्या होइछ. तें प्रोफेसर श्रीश चौधरी एहि पोथीक प्रकाशकीय में कहैत
छथि ' '(अनुवाद साहित्यक उपलब्धताक
दृष्टियें ) मैथिली कनेक पछुआयल
बुझाइत अछि . संस्कृत , प्राकृत
एवं किछु आधुनिक भारतीय भाषाक थोड़ेक कृतिक अतिरिक्त मैथिली में अनुवाद कम्मे भेल
अछि . तीन सय वर्ष सं बेसी सं अंग्रेज आ अंग्रेजीसं संपर्क रहितो , मैथिली में
अंग्रेजी कृति सबहक संख्या नगण्य अछि .' तें,
पिंडारुछक पाञ्चजन्य ट्रस्ट एहि पोथीक कें प्रकाशित कय पाठकक आ मैथिलीक बड उपकार
केने अछि . तथापि, सुपरिचित नाम आ विश्वविदित पोथीक अनुवाद ले अहाँ की सोचबैक ?
ठीक छै , अनुवाद थिकैक . मातृभाषाक प्रेम में अनुवादक परिश्रम केने हेताह . नव की
हेतैक ! मुदा हम विश्वासपूर्वक कहि सकैत
छी, एहि पोथीमें बहुत किछु नव छैक . ओ नव
गप्प थिक, सरल भाषा आ पाठककें बान्हि
कय रखबाक क्षमता. जूलियस सीज़रक एहि मैथिली अनुवाद कें हम पढ़ब
आरम्भ केलहुं तं 115 पृष्ठक पोथीकें
समाप्त कइएक छोड़ल. हमरा बुझने, ई पोथी
अनुवाद साहित्य में एकटा प्रतिमान स्थापित करैत अछि.
शेक्सपियरक 'जूलियस सीज़र'
नाटकक कथा सर्वविदित अछि . मुदा, मैथिल
समाज वा मैथिली साहित्यमें एहि प्रकारक उपाख्यान, जाहिमे एक सेनापतिक महत्वाकांक्षाकें नागरिकक आ गणतंत्रक शत्रु बूझि, सेनापति लोकनिक दोसर दल राष्ट्रहित में तरुआरि उठौने होथि,
हमरा जनैत , नहिं छैक. तें , मैथिली में एहि नाटकक मंचन दर्शक पर केहन प्रभाव हेतैक
से कहब असंभव . मुदा , ई मैथिली अनुवाद हमरा मोन पर एकटा अमिट छाप छोडलक.
कथानक आ सामाजिक परिदृश्य पुरान छैक. शेक्सपियरक
अभिव्यक्तिक शैली, अंग्रेजी भाषाक बानि, आ कविताक शैली आइ बदलि चुकल छैक . तें
ठेंठ मैथिली भाषा में , मैथिलीक मुहावरा-लोकोक्तिक प्रयोग करैत, 'जुलियस सीज़र' सन ग्रंथक एहन अनुवाद सुलभ नहिं .
तथापि मैथिलीक विपुल शब्द भण्डारक सिद्धहस्त प्रयोगक बलें अनुवादक एहि कालजयी साहित्यक
मूल आत्मा कें सरल आ हृदयग्राही भाषा में प्रस्तुत करबाक में पूर्णतः सफल भेल छथि .
हमरा विश्वास अछि, प्रोफेसर मिश्रक एहि
अनुवाद में पाठक लोकनिकें शेक्सपियरक साहित्यक आ मूल मैथिली ग्रंथ, दुनूक, स्वादक
अनुभूति हेतनि. कविताक सरल प्रवाहमें
महत्वाकांक्षा, षड्यंत्र , ईर्ष्या , वीरता , आ वफादारीक आख्यान तेना गतिमान छैक जे लागत जे विलियम शेक्सपियर आ अनुवादकक आत्मा एकाकार भ गेल छनि;
हयत जे अनुवादक-कवि अपन अनुभव आ मनोभाव कें अपन मातृभाषामें सोझे-सोझ सुनबैत होथि
. दीर्घ काल धरि अंग्रेजी साहित्य आ शेक्सपियरक कृतिक गहन अध्ययन, परिपक्व अनुभूति,
आ परिश्रमक बलें मैथिली कें एहन कृति देबा
ले प्रोफेसर मिश्र अनेकानेक साधुवादक पात्र छथि . लियअ किछु अनूदित कविता प्रोफेसर
मिश्रेक मुँहे सुनु : .............................................
यौ कासका , बाहरन -सोहरन
खढ़-पातमे शीघ्रतासं पकड़इत छैक आगि;
रोमवासीक
संग सीज़र सैह क रहल छथि आइ
एकरा सभकें बाहरन-सोहरन बूझि पजारि रहल छथि महत्वाकांक्षाक आगि
बुझू जे तकरहिं धधरासं आलोकित छनि हुनकर स्वरुप.............. - पृष्ठ 22
आओर सुनु ...............................................
यद्यपि व्यक्तिगत स्तरपर नहिं अछि हुनका सं बैर
मुदा, एहि ठाम त छैक सार्वजानिक हितक बात .
जखन सीज़रक माथपर राखल जयतनि राजाक ताज तखन के कहलक,
कोन रुपें बदलि जाइनि हुनक स्वभाव -
पृष्ठ 25
मैथिली कहावत
.................
आह ! त इएह छी अपने, हे षड्यंत्र
!
ठीके कहैत छै लोक जे चोरकें सह्य नहिं होइछ इजोत
तें , अन्हारे में करैत छ तों घृणितसं घृणित अपराध .............. -पृष्ठ २८
ब्रूटस केर मुँहे निकलैत
शेक्सपियरक अभिव्यक्तिक मैथिली अनुवादक
एकटा पैघ अंश उधृत करबाक लोभ होइत अछि. प्रोफेसर रमाकांत मिश्रक शब्दमें सुनू :
...... बड क्रूर सन लगतैक एतेक हिंसा आ रक्तपात
लगतैक
जेना कसाइ जकां बध्यपशुक मूड़ी काटि
पंगलिऐक हमरा लोकनि ओकर अंग प्रत्यंग .
एन्टोनी त छथि सीज़रक मात्र एकटा अंग
जखन मूडिए देबैक काटि तखन की क सकतैक ओ अंग ?
हमरा-अहाँकें
कसाइ ने बूझय लोक तकर अछि डर;
सीज़र नहिं,सीज़रसाहीक कयल अछि अंत,से बूझय लोक
शरीरक
सत्व थिकैक मन, जाहिमें नहिं होइत छैक
रक्त
संभव होइतैक त शरीर
नहिं, हुनक सत्वे करितहु नष्ट !
........................
तें
आग्रह अछि जे बलिदानक भावें कयल जाय वध ;
आ
ताहि लेल मनमें जुनि राखल जाय विद्वेष आ
क्रोध;
कोनो रुपें नहिं होयबाक चाही हुनक अपमान
बूझक चाही जे ई बलि-पशु छथि
देवता पर चढ़बाक योग्य
कसाइक परिकठक मासु नहिं,जकरा कौओ-कुकुर लैत छैक लूझि ;
................................................
बूझय लोक जे समाजक हितक लेल भेलैक अछि ई दुष्कर्म
......... -पृष्ठ
32
सारांशमें, हमरा मतें, जुलियस सीज़र ( मैथिली ) उत्तम कोटिक अनुवाद
थिक. मुदा, ग्रंथक स्वादक आ नीक-बेजायक निर्णय तं पाठक अपनहिं पढ़ने क सकैत छथि .
नोट: हमरा जनैत मैथिलीमें बहुतो किछु लिखल गेल अछि . मुदा , अर्थाभावे , काल-क्रमें कतेक कृति बाढ़िक पानि में भासि गेल , सडि गेल वा दिवाडक
भोजन भ गेल . प्रोफेसर रमाकान्त मिश्रक मैथिलीमें
हैमलेटक अनुवाद प्रकाशित छनि . तथापि ,प्रायः पाठकक प्रोत्साहनक अभाव
में, प्रोफेसर रमाकान्त मिश्रकें विश्वास
भ गेल रहनि जे जूलियस सीज़रक हुनक मैथिली अनुवाद सेहो ' वल्मीकक भोजनक लेल परसल
-पड़ल' तैयार छलनि . हमरा हर्ष अछि , पाञ्चजन्य ट्रस्ट, पिंडारुछ एहि पोथीकें प्रकाशित कय पाठकक समक्ष अनलक.
जुलियस सीज़र : मैथिली
मूल: विलियम शेक्सपियर
अनुवाद :प्रोफेसर रमाकान्त मिश्र
प्रकाशक:
पाञ्चजन्य ट्रस्ट, पिंडारूछ , जिला
दरभंगा
प्रकाशन वर्ष: 2011 पृष्ठ :
115 मूल्य : रु. 300
पुनश्च : समीक्षा लिखब पाठक-समीक्षकक काज थिकैक . छापब पत्रिका आ सम्पादकक. इहो समीक्षा कतहु, कतहु बौआयल . केओ छपनिहार नहिं . ठीके, जखन पाठकेकें पोथीक परबाहि नहिं, तखन समीक्षा कें के पूछय. आबतं अनुवादको स्वर्गीय भ गेलाह . तें हमहूँ अपन समीक्षाकें अपनहिं छापि लेबाक मनोरथ पूर कय ली ! ततबे .
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