स्व. तारानाथ झा,(1909-1981); ग्राम-अवाम, पोस्ट-झंझारपुर , जिला -दरभंगा
जनसाधारणक जीवनी नहिं लिखल
जाइछ . लिखल जेतैक तं पढ़तैक के? मुदा, साधारणों लोकमें असाधारण गुण आ विचार हयब आश्चर्य नहिं .एहन गुण आ विचार कतेक बेर अपनहु
परिवारमें देखबैक . मुदा, तकरा के लिखत , के कान-बात देतैक. ओनातं अपन परिवारमें संगे-संग रहैत, लोक कें बेसी काल परिवारजनमें गुण सं
बेसी अवगुण देखबामें अबैत छैक ; खासक लोक जेना-जेना
वयसाहु- बूढ़ होमय लगैछ, अनकर नजरिमे ओकर दोषक संख्या ओहिना बढ़य लगैछ, जेना, पुरान
गाछक सीलक गिरह आ धोधरि बेसी जगजियार होमय लगैछ. तखन इहो सत्य जे
अपन परिवारक प्रशंसामें आत्मप्रशंसाक गंधतं
आबिए जाइत छैक आ प्रशंसामें अतिशयोक्तिक भय सेहो रहैत छैक. माने, ओ वस्तुनिष्ठनहिं भेल. तथापि.
आइ हम अपन पिताक चर्चा करय चाहैत छी . एहि वर्ष हुनक मृत्युक ओतबे वर्ष जतबा दिन
हमरा डाक्टर बनना भेले - 35 वर्ष .
ई गप्प हमर मेडिकल कालेज जीवनक
अवधिक थिक . हमरा लोकनि 1973 ईसवीमें दरभंगा मेडिकल कॉलेजमें भर्ती भेल रही . ओही
वर्ष हम कॉलेजक ओल्ड हॉस्टलमें डेरा लेल . प्रायः 20 x 20 फुट केर कमरा . चारिटा कौट, चारिटा टेबुल- रैक
कॉम्बो, चारिटा खिड़की , एकटा दरवाजा, आ चारिटा विद्यार्थी - कीर्तिनाथ झा , विजय
कुमार सिन्हा , सैयद मुसर्रत हुसैन , आ सतीश कुमार दास . ओहि युगमें, जहिया
मेडिकल कालेजहुमें लोक जिला-जवारी आ जाति ताकि-ताकिकय विद्यार्थीसब रूममेट केर मिलान करैत छल , तहिया ई व्यवहार
क्रांतिकारी नहिं तं आधुनिक अवश्य छलैक . जे किछु .
हम जखन हॉस्टलमें रहय लगलहु, छठि - चौड़चनमें गामसँ सनेस ल कय दादा जखन दरभंगा आबथि तं होस्टलो आबथि . अपन युगमे
व्यवसायें दादा जमींदारक तहसीलदार अर्थात revenue clerk रहथि . माने, अपना युगक सामान्य शिक्षित , तथापि प्रतिष्ठित. औपचारिक
शिक्षातं कमें छल हेतनि . विचार-व्यवहार आ नेम-नियम सेहो अपन युगक अनुकूल रहनि. नेनपनमें
हमरा लोकनि दादासं डेराइत अवश्य रही, मुदा, हुनक स्वभाव सरल रहनि; क्रोधले नामी छलखिन अवश्य. तें नेनपनमें हमरा लोकनि दादाक संग बैसिकय गप्प करितहुं तकर ने लोककें पलखति रहै, ने घरमें तकर
परिपाटी रहैक . तथापि , मेडिकल कॉलेज
अबैत -अबैत हमरा दादासं धाख कनेक छूटय लागल छल . मुदा, तकर पछाति दादा रहबे कहाँ
केलाह ; इंटर्नशिप समाप्त भेले छल कि दादा तेहन रोग-ग्रस्त भेलाह जे तीन मासक
भीतरे चलि गेलाह .
आब गप्प पर आबी . एकबेर एहने पाबनि-तिहारक पछातिक कोनो अवसर पर
दादा ओल्ड - हॉस्टल आयल छलाह . हम पुछलियनि , हमर कोठलीमें एकटा मुसलमानों छथि. (ओहि
युगमें गाम-घरमें मुसलमान लोकनि गाम पर आबथि अवश्य मुदा, ओसारापर वा इनारक चबूतरापर चढ़बाक परिपाटी
नहिं रहैक). दादा कहलनि , कोनो बात नहिं .
हमरा कनेक हिम्मत बढ़ल . हम कहलियनि , दादा , कहियोकाल हमरा लोकनि एके थारीमें
खाइयो लैत छियैक . दादा कहलनि , की हेतैक . अहाँक दोस्त थिकाह ने !
आइ सोचैत छियैक , तं
आँखिमें नोर आबि जाइत अछि .समाजक साधारण मनुक्ख, दादाक, केहन असाधारण विचार रहनि !
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.