Thursday, August 30, 2018

भोजपुरी गीताक मैथिली भाषी रचयिता स्व. डा. उमेश झा


स्व. डा. उमेश झा 'गीता भाव प्रकाश' प्रतिद्वंदी भाषा सबहक बीचक परस्पर विद्वेषक विरुद्ध प्रखर उद्घोष थिक ! 
मातृभाषा-प्रेम स्वाभाविक थिक. किन्तु, आन भाषक प्रति विद्वेष मातृभाषा-प्रेमक वीभत्स रूप थिक. सत्यतः, एकसं अधिक भाषा बजबाक -लिखबाक क्षमता गुण आ सशक्तीकरण  दुनू थिक. अपन एही क्षमताक कारण भोजपुरी गीताक रचयिता स्व. डा. उमेश झा मैथिल कवि लोकनिमें अपरिचित, किन्तु, अद्वितीय छथि. किएक ? से, कनेक रहि कय.   
स्व. डा. उमेश झा

इतिहास विदित अछि, स्वतंत्र भारतमें करीब आधा शताब्दी धरि हिंदी-अंग्रेजीक अतिरिक्त केवल करीब गोड बीसेक भाषाकें संविधानक आठम अनुसूचीमें स्थान रहैक. फलतः, आठम अनुसूचीसं बाहर भाषा-भाषीकें हीनताक बोध हयब स्वाभाविक. ततबे नहिं, सरकारी मान्यताक अभावमें बहुतो भाषाने अपन क्षेत्रमें शिक्षाक माध्यम छल आ ने  ओहि भाषासब कें समुचित सरकारी सहायता भेटैत छलैक. एहिसं मैथिली-सन भाषाकें जे हानि होइत छलैक से सर्वविदित अछि. तथापि, सरकारी परश्रयक अभाव नागरिक भाषा-प्रेम कें निर्मूल नहिं कय सकल. हं, ओहि समय में अपन भाषाकें उचित अधिकार दिअयबाक अभियानमें जुटल बहुतो गोटेक धारणा रहनि – आ से निराधार नहिं – जे हिन्दीक बोझ मैथिलीक डांड तोडि रहल छैक;  भोजपुरिक सरकारी मान्यता भेटतैक तं मैथिलीकें कमजोर हयत ; बज्जिका पृथक भाषा नहिं, मैथिलीक भिन्न स्वरुप थिक,आदि. 
किन्तु, भाषा- आ साहित्य-प्रेमक एकटा दोसरो पक्ष अछि: भाषा-साहित्यक समर्थक आ विरोधी लोकनिक एहि परस्पर द्वन्द आ विद्वेषसं दूर एक दिस जं कतेको व्यक्ति अपन स्वतः प्रेरणाक बलें मातृभाषा आ राष्ट्रभाषामें सृजन करैत  यात्री-नागार्जुन, आरसी प्रसाद सिंह-जकां दुनू भाषामें प्रसिद्द भेलाह, तं, दोसर दिस  प्रचार आ प्रसिद्धि सं दूर आन कतेको गोटे मातृभाषाक संग आन पड़ोसी भाषामें निःस्वार्थ भावे सृजन करितो विस्मृत भ गेलाह. एहि दुनू कोटिक साहित्यकारक दोसर कोटिक कवि स्व. डॉ उमेश झा एहने साहित्यकार छलाह जनिक भोजपुरी गीता, अपना-सन अपने-टा होइतो अपरिचयक गर्भमें पड़ल अछि. विश्वास नहिं हो, तं, गूगल पर मैथिली-गीता टाइप करू पहिल परिणाम में भोजपुरी भाषाक कोनो वीभत्स गीतक विडियोक लिंक भेटत: गीता रानी सौंग ! अस्तु, हमर ई लेख स्व. डॉ उमेश झा एवं हुनक भोजपुरी गीता आ भोजपुरी सृजन पर केन्द्रित अछि. ज्ञातव्य थिक, डॉ उमेश झाक दरभंगा-लहेरियासराय परिसरमें करीब पचास वर्ष धरि स्वास्थ्य सेवा ( दरभंगा-लहेरियासराय केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट संघ केर प्रमुख), राजनीति (युवा कांग्रेस केर अध्यक्ष), पत्रकारिता ( हिन्दी मासिक ‘त्रिकाल नूतन भारतीक सम्पादक प्रकाशक आ दरभंगा जिला पत्रकार संघ केर अध्यक्ष), समाज सेवा ( दरभंगा स्टेडियम निर्माण समिति ) आ शिक्षाक क्षेत्र (लहेरियासराय पब्लिक स्कूल एवं JMIT दरभंगाक संस्थापक सदस्य ), एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानीक रूप में सक्रिय रहथि. 
ततबे नहिं, ओ अवाममें अपन आवास परिसरहिंमे रमानाथ जन पुस्तकालय क स्थापना सेहो केने रहथि.दुर्भाग्यवश, कमलाक बाढि आ ग्रामीण लोकनिक उदासीनताक कारण ई सुन्दर संस्था आई निर्मूल भ चुकल अछि.
किन्तु, हुनक मृत्यु लगभग सत्रह वर्ष पछातियो हुनक प्रकशित व अप्रकाशित रचना सब ओहिना पड़ल अछि.
दरभंगा जिलाक अवाम ग्राम निवासी स्व. डॉ उमेश झाक जन्म विगत शताब्दीक तेसर दशकमें हिनक मात्रिक तत्कालीन चम्पारण जिलाक ओझा-बरबा गाओं में भेल रहनि. अपन मात्रिकहिक समीप मच्छरगांवा नामक स्थानमें मिडिल स्कूल धरिक शिक्षाक पछाति हाई स्कूलक शिक्षाक हेतु डॉ उमेश झा तहियाक दरभंगा जिलाक मधेपुर हाई स्कूलमें किछु दिन पढ़ने छलाह. किन्तु, पारिवारिक कारण आ स्वतंत्रता संग्राममें सहभागिताक कारण ओतय हिनक शिक्षा पूर्ण नहिं भ सकलनि. तहियाक मिथिलांचलमें आर्थिक विपन्नता घर-घरमें डेरा जमओने छल. अस्तु, जकरा जतबा ऊहि आ अवगति छलैक जीविका तकैत छल. डॉ उमेश झा सेहो मेडिकल व्यवसायक बाट धेलनि आ चालीस आ पचासक दशकमें लहेरियासराय परिसरमें पहिने प्रसिद्द फिजिशियन डॉ भवनाथ मिश्र आ पछाति सर्जन डॉ कपिलदेव प्रसादक सहायकक रूपमें जीविकोपार्जन आ समाजसेवा दुनू केलनि आ समाजक आदर पओलनि. पछाति, ओत्तहि भारत फार्मेसी नामक प्रतिष्ठान चलबैत पूर्ववत आजीवन समाज सेवा सं जुड़ल रहलाह.
डॉ उमेश झाकें नान्हिए टा सं कवित्व आ सामाजिक चेतना दुनू रहनि. जकर प्रमाण कमे वयस नेना लोकनिक हेतु हिनक रचल वर्णमाला पर आधारित पद सब हुनक कतेको पड़ोसी आ परिवारजनकें सुनल हेतनि. युवावस्था में अपन गामक समवयस्क सबमें साक्षरताक अभियान हुनकर सामाजिक चेतनाक ज्वलंत उदहारण थिक. हुनक चटिसारक साक्षर व्यक्तिसब में ओ आजीवन ‘ मास्टरे साहेब’ छलाह. अवामक नब्बे वर्षीय हरिदास आब ओहि ओहि चटिसारक अंतिम जीवित सदस्य छथि.    
आब एहि लेखकेर मूल विषय- बहुभाषाक सहअस्तित्व- पर आबी. स्व. उमेश झाक माता स्व. गंगावती देवीक मातृभाषा भोजपुरी रहनि. किन्तु, ओ छोटे वयसमें बियाहि मिथिलांचल आबि गेल छलीह. अस्तु, क्रमशः ओ मैथिलीकें अपनबैत मैथिली-भाषी भ गेलीह. किन्तु, बाल्यावस्थामें लागल माईक भाषाक लसेढ़ पछाति अपन प्राथमिक शिक्षाक अवधिमें भोजपुरी प्रेमक रूप लेलक आ मैथिली-भोजपुरी दुनू  स्व. उमेश झा मातृभाषा भ गेल; यद्यपि, हुनका अपन माताक संग भोजपुरीमें गप्प करैत हमरालोकनि कहियो सुनने नहिं छियनि. तथापि, जीवनपर्यंत स्व. उमेश झा अपन भोजपुरी-प्रेम कें ‘तूफान का दिया’-जकां जोगा कय रखने रहलाह. हुनक भोजपुरी-प्रेम हुनक मृत्यु ( 2000 ई ) सं किछुए दिन पूर्व फलीभूत भेलनि जखन ओ श्रीमद्भगवद्गीताक भोजपुरी अनुवाद ‘गीता भाव प्रकाश’ क नामें प्रकाशित कयलनि. जहां धरि स्मरण अछि, हम करीब तीस वर्ष धरि स्व. उमेश झाकें  भोजपुरी-गीता पर काज करैत देखने छियनि. अनुवादक पद्यकेर लय आ तुककें परिमार्जित करबाक हेतु ओ प्रतिदिन अहल भोरे गीताक अनुवादके ल कय अपन लहेरियासराय आवासक बरामदा पर बैसि गीताक सस्वर पाठ करैत छलाह. चूकिं, हुनक आवासक ओ बरामदा बाटक कातहिं रहनि, तें, ई दृश्य बहुतो कें देखल हेतनि,से सम्भव. संयोगसं स्व. उमेश झा हेतु माईक भाषा (भोजपुरी), मातृभाषा (मैथिली), आ राष्ट्रभाषा (हिन्दी) प्रति क प्रेमक बीच कोनहु द्वन्दकेर अनुभव नहिं भेलनि. एकर प्रमाण थिक तीनू भाषामे हिनक समान योगदान. सम्भव अछि, एहि तथ्य सं बहुतो अभिग्य होथि. जं एकदिस ई भोजपुरी गीताक रचना कयलनि तं दोसर दिस भर्तृहरिक नीति, श्रृंगार आ वैराग्य शतककेर मैथिली अनुवाद मैथिलीक पीडी पर हिनक अर्पण थिक. दुःखक विषय जे हिनक मृत्युक एतेक दिनक पछातिओ ई कृतिसब अप्रकाशिते अछि. एकर अतिरिक्त प्रसिद्द स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू वीर कुंवर सिंहक जीवनपर आधारित लघु काव्य कृति ‘वीर कुंवर सिंह’ एवं भूतपूर्व प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गाँधीक प्रशस्तिमें रचित ‘भारत की महान बेटी’ राष्ट्रभाषामें हिनक योगदान थिक, जे सत्तरि दशकमें प्रकाशित भेल छल. ज्ञातव्य थिक, हिन्दी एहि दू प्रकाशित कृतिक अतिरिक्त हिन्दीमें हिनक आओर अनेको कृति एखनहु अप्रकाशित छनि. ततबे नहिं, एहू सं बेसी दुःखद विषय सुनू . हम कौतूहलवश ई तकबाक प्रयास कयल जें स्व. उमेश झाक गीता भाव प्रकाश सं भिन्न आन कोनो गीता भोजपुरी में छैक, कि नहिं. एखनुक युगमें ई सब गप्प एखुनका सर्वग्य गूगलकें छोडि ककरा पुछबनि. अस्तु, हम ‘गूगल सर्च पेज’ पर भोजपुरी गीता सर्च कयल तं परिणाम में गीता तं नहिं भेटल, किन्तु, क्षण मात्रमें सम्पूर्ण गूगल पेज वीभत्स ‘भोजपुरी गीत’ सबसं भरि गेल ! हमरा अपन प्रश्नक उत्तर भेटि गेल: एक, भोजपुरीमें गीता भाव प्रकाशक अतिरिक्त भगवद्गीताक दोसर अनुवाद नहिं छैक; दू, भोजपुरीमें गीताक अनुवाद छ्पलो छैक तकर अनुमान, जनसाधारणक तं गप्प छोडू, ‘गूगुल’ बाबा धरि कें नहिं छनि! 
भोजपुरी गीताक सम्बन्धमें स्व. उमेश झा कहथिन, ‘महिसक पीठ पर बैसि महिस चरबैत महिसबारहु कें जं मोन हेतैक तं ई गीता ओ पढ़ि, आ बूझि लेत.’ दुःखद थिक, हुनकर (भोजपुरी) गीता भाव प्रकाश प्रचारक अभाव में , एहन आनो कतेक ग्रन्थ जकां विस्मृत पड़ल अछि. किन्तु, भाषा साहित्यक जीवनमें ई समय बहुत नहिं. ककरा कहिया कोन विस्मृत कृति नव आविष्कार बूझि पड़ैक आ बिसरल ग्रन्थ स्वतः प्रकाशमें आबि चमत्कृत भ जाय.  
हमरा जनैत, मैथिली-हिन्दी-भोजपुरीमें स्व. उमेश झाक समान साहित्यिक योगदान केवल हुनक राष्ट्रीय दृष्टिक द्योतके टा नहिं पड़ोसी भाषा साहित्यक बीचक परस्पर विद्वेषक विरुद्ध प्रखर उद्घोष थिक ! दुःखद अछि, हुनक गांओ में एहि स्वतंत्रता-सेनानी आ साहित्यिक मूक साधकक आइ कोनो  स्मारक नहिं अछि. 

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