Friday, July 20, 2018

ICU क बेड आ एकटा बिसरल सुखद अनुभव

रोग आ मोन 
'कुमार सम्भव' नामक ग्रन्थमें कालिदास कहैत छथि :
शरीरमाद्यम खलु धर्म साधनं .
सत्यतः, शरीरे सब धर्म साधनक सोपान थिक. सैनिकक जीवन में शरीरक ततबे प्रधानता छैक जे , शरीरक बलिदाने सर्वोत्कृष्ट सेवा बूझल जाइछ. ' वीरभोग्या वसुंधरा' शरीरेक बलि तं लैत  छथि.
संयोगसं शरीरे भंगठि गेल. कोनो तेहन नहिं, मुदा, भंगठल तं छले. अस्तु, मशीन हो वा शरीर, एकरा सब कें चालू रखबा ले तुरत मरम्मति चाही. हमर माता कहथि, ' रोग आ शत्रु कें थोड़ नहिं बूझी'. अस्तु, मरम्मति तुरत हो.
 हमर डाक्टरी जीवनक वृहत भाग चिकित्सा सेवा कोर (AMC) में बीतल अछि. अस्तु, ओकरे शरण लेल:
वायु सेना कमांड अस्पताल बंगलोर. 
अस्पताल आ डाक्टरी वृत्तिक एकटा रोचक पक्ष छैक : रोगक चिकित्सा करैत-करैत चिकित्सक लोकनिमें रोगक प्रति एकटा निरपेक्षता आबि जाइत छनि. फलतः, डाक्टरी व्यवसाय सं जुड़ल व्यक्ति लोकनिक ई भाव प्रायः हुनका लोकनिक चेतना में नहिं अबैत छनि. किन्तु, रोगी के एहि सं एहन सन भान होइत छैक जे डाक्टर हमर रोगकें तेहन प्रधानता नहिं देलनि, जेहन देबाक चाहियनि. डाक्टर लोकनिके डाक्टरी व्यवसायक ई पक्ष एकाएक तखने चेतना में अबैत छनि, जखन ओ लोकनि स्वयं रोगी बनि अस्पताल जाइत छथि. अस्तु, अस्पताल में गेलहुं तं डाक्टर पुछ्लनि, ' अमुक ऑपरेशन करेबाक अछि ने, भर्ती भ जाउ '. आ भर्तीक आदेशक कागज़ हाथमें थम्हा देलनि. मोन  भेल कहियनि, 'डाक्टर अहाँ छी. अहाँ कहू, अहाँ हमराले अहाँक की सलाह, अहाँ की करब ?.' मुदा, हमरा हंसी लागि गेल. हमरो लोकनि तं पुछैत छियैक, ' मोतियाविन्दुक ऑपरेशन करेबैक ?' रोगी लोकनि, हमरे जकां हंसैत हेताह !  किन्तु, बिनु किछु कहने intensive care unit में टहलैत गेलहुं आ भर्ती भ गेलहुं.
दस टा बेड केर इंटेंसिव केअर यूनिट. हमरा अतिरिक्त आन सब रोगी जीवन-मृत्युक बीच संघर्ष में. करीब सोलह वर्ष पहिने हमहूँ एहि अस्पताल में काज करैत रही. स्टाफ आ चिकित्सक ताहि दृष्टिए सजग रहथि, जाहि सं  हमर सेवामे कोनो कमी नहिं हो. हमरा कोनो तात्कालिक समस्या वा पीड़ा नहिं. पहिल बेर अत्यन्त सीरियस रोगी सबहक बीच 'रोगी-जकां' पड़ल रही; हमरा पचीस वर्षक सेना सेवामें सेहो एक बेर एक-दू दिन ले अस्पतालमें भर्ती होमय पड़ल छल. एतय आइ किछुए काल में एतुके पुरान सहकर्मी डाक्टर आ अत्यन्त सीरियस हुनक पत्नी पर नज़रि पड़ल. हाल-चाल पुछलियनि. पता चलल, ओहि डाक्टरक एकदम तन्दुरुस्त पत्नी अचानक भयानक संक्रमण (infection) सं पीड़ित भ जानलेबा परिस्थिति में एतय आयल छथिन. ई प्रायः ओहि सुपर-बग (दुर्दान्त रोगाणु ) क प्रसारक असर थिकैक जे एखन एंटी-बायोटिकक दुरुपयोगक कारण सर्वत्र पसरि चिकित्सा व्यवसायक  हेतु भयानक चुनौती बनल जा रहल अछि.
दोसरा दिन भोर में अस्पतालक कमांडेंट अयलाह. संग में आधा  दर्जन आओर  विशेषग्य आ प्रशासनिक अधिकारी लोकनि. ओहि में बहुत गोटे  चिन्हलो निकलि गेलाह. कमांडेंट मुसुकाइत कहलनि, 'सर , ऐना किएक पड़ल छी ? अहाँ तं तेहन  बीमार नहिं '. मने मोन  कहलहु, intensive care unit में छी. आओर की करब !
दोसर दिन  जांच-पड़ताल, चिकित्सा ले निर्धारित छल. प्रायः नौ बजे , लेबोरेटरी धरि गेलहुं. पत्नी संग में छलीह, बाहर प्रतीक्षा-कक्ष में बैसलिह. हमर मोन  भाव शून्य छल: ने कथुक चिन्ता, ने ककरो स्मरण. अस्पतालक ऑपरेशन थिएटरमें ने परिवारजनक कोनो सक्क, आ ने भगवानक कोनो भरोस. सत्यतः, जनिको विश्वास छनि , भगवान जं छथि , तं, भरोस मात्रे थिकाह. जीवन अस्पताले में बीतल अछि. हमरो लोकनि रोगी सं सम्मति (informed consent )  लैत छियैक, जाहि सं जांच वा  चिकित्साक अप्रत्याशित दुष्प्रभावसं भेल कानूनी दावा सं बचाव हो. हमहू सम्मति देनहि छलियैक. माने, नीक वा बेजाय जे किछु करबाक होइक, डाक्टरक निर्णय पर हमरा पूर्ण विश्वास अछि  आ डाक्टरकें हमरा हेतु सब निर्णय लेबाक पूर्ण स्वतंत्रता छनि. तखन चिंता कथिक. हमरा मात्र टेबुल पर पड़ल रहबाक अछि. भेबो सेह कलैक. टेबुल पर पड़ल रही तं डाक्टर सं सामान्य गप्प होइत रहल. ओ रांचीक थिकाह. हम एखन मेडिकल-टीचिंग में ( वरिष्ठ प्रोफेसर )  छी, से बूझल छनि. हम निर्भीक रोगी छी, से कहलनि. रोग आ चिकित्साक किछु विन्दु विमर्श केलनि. मुदा, हम सोझे कहलियनि, 'अहाँ के जे उचित लगैछ करू'. बीस मिनटक पछाति बाहर.  पेशेंट-ट्राली पर बाहर-भीतर अस्पताल केहन लगैत छैक से पहिले बेर बुझबामें आयल. अस्पतालक बिल्डिंगकेर सपाट सीलिंग. आँखिक सोझां गोल-गोल, भटरंग फूल; प्रायः जांच-पड़तालक दोष, दस मिनटमें बिला गेल.  
डाक्टर बाहर भ' हमर पत्नी सं गप्प सप्प केलखिन; सेना चिकित्सा कोर परिवारक ई दस्तूर हमर पत्नी कें नीक लगलनि.
दस मिनटकेर बाद हमर पत्नी होटल विदा भेलीह आ हम ICU. एतेक वयस भ गेल. मुंहमें कहियो केओ भोजन करौने हयत से मोन  नहिं. आइ नर्स लोकनिक हिदायत छल, बिछाओन पर उतान भेल पड़ल रहू. पयर नहिं हिलाबी. बड़ बढ़िया. एतेक दिन हम अपने रोगी सब कें हिदायत दैत आयल छियैक. आइ अपनो अनुशासन मानी. बड बेस.
एक कप भात, कनेक तरकारी आ कनिए किछु आओर खेलहु आ बिछाओन पर पड़ल रही. जनवरीक मास. बंगलोर में तं बारहो मास मौसम अनुकूले रहैत छैक; जीवनक करीब चारि सुखद वर्ष एतय बितौने छी. बेरुक पहर. ICU क लम्बा-चौड़ा खिड़की सब  पश्चिम दिस. पूबे पश्चिमे हौस्पिटलक बेड, आ पश्चिम दिस माथ.   खूजल खिड़की सं अचानक जाड- मासक मृदु आ सुखद रौदक एकटा टुकड़ी कपार पर पड़ल. लागल जेना कोनो आप्त परिचायकक सुखद-उष्ण तरहत्थीक स्पर्श भेल अछि. हम आंखि मूनि लेल. जेना सुखद मालिशक स्पर्शक  आंनदसं  शरीर शिथिल होमय लगैत छैक हमर शरीर एकाएक शवासनक मुद्रा में आबि गेल. पसरइत  रौद  क्रमशः मूनल आंखि, छाती सं ल कय सम्पूर्ण शरीर धरि पसरइत गेल, आ हमरा बिसरि गेल जे हम ICU में छी. भेल जेना नबका चाउरक भातक संग कठतिमनाक झोरक भरि पेट भोजनक पछाति अगहनक मासक मृदुल हेमंती रौदमें  बीच अंगनामें धानक झट्टा, पाटिया वा पोआर पर कल्याण करोट देने होइ. सत्यतः, बंगलोरक वायुसेना अस्पतालक ICU क बेड पर जाड मासक रौद एकटा बिसरल सुखद अनुभवकें एतेक दिनक बाद सहजे हमर चेतना में आनि  देलक-ए.          

No comments:

Post a Comment

अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

हिन्दुस्तान का दिल देखो