डाक्टर-वैद्य रोगक विश्वकोष नहिं थिकाह
बहुत दिन पूर्व हमरा लग एकटा रोगी अयलाह. कहलनि, ‘पेटमें बड गैस होइत अछि. मुदा, जखन बामा बाँहिकें दाहिना हाथ सं जोर-जोर सं दबबैत छियैक, ढकार होइत अछि, आ पेट कनेक हल्लुक भ जाइए’. तहिया हम मेडिकल कॉलेज सं नवे-नव पास भ बहरायल रही. अपन ज्ञानक अनुसार रोगिक समस्याक वैज्ञानिक कारण ताकब उचिते छल. किन्तु, हुनकर अनुभवक जोड़ा किताबमें कतय भेटैत ! डाक्टरीक
व्यवसाय एहन थिकैक, जे रोगीक समस्या डाक्टरके भले कतबो हास्यास्पद लगैक, डाक्टरकें ओकर हंसी उडायब तं एकदमे अनुचित. हम अपन विद्यार्थी लोकनिकें पढ़बैत छियनि, ‘अहाँकें रोग नहिं देखबा में अबैत अछि से अहांक समस्या थिक. रोगीकें
कष्ट तं छैके ( You may not have a diagnosis. The patient has a
problem! ) अतः, रोगी अपन समस्याकें भले जेना कय कहथि, रोगीकें
हमरा लोकनि आर्त अवश्य बूझैत छियनि. सत्य थिक, जा धरि लोककें कष्ट सहाज योग्य रहैत छैक, के डाक्टरकें देखाबय जायत ! तथापि आब डाक्टरी व्यवसायमें लगभग अड़तीस वर्षक अनुभव इएह कहैत अछि, जे रोगक सम्बन्धमें डाक्टर-वैद्य रोगक विश्वकोष नहिं थिकाह. जं- जं एहि व्यवसायमें समय बितैत गेले, हमर ई आस्था दृढ़ होइत गेले. आब एहि बात कें कनिएक फडिछाबी.
एतबा बूझब आवश्यक जे मानव शरीरक समानताक वावजूद प्रत्येक व्यक्तिक वंशानुगत (जेनेटिक) बनावट भिन्न होइत छैक. तें, भिन्न –भिन्न व्यक्तिमें एके उपचार आ औषधिक भिन्न भिन्न प्रभाव होइत छैक. देखिऔक ने, केओ खूब चावसं भरि मोन ओल खाइत अछि आ किछु नहिं होइछ. आ ककरो ओल छूबिते हाथ खलोदार भ जाइत छैक. तें, डाक्टर रोगीसं हुनक व्यक्तिगत आ पारिवारिक इतिहास पूछब नहिं बिसरैत छथि.
एतबा बूझब आवश्यक जे मानव शरीरक समानताक वावजूद प्रत्येक व्यक्तिक वंशानुगत (जेनेटिक) बनावट भिन्न होइत छैक. तें, भिन्न –भिन्न व्यक्तिमें एके उपचार आ औषधिक भिन्न भिन्न प्रभाव होइत छैक. देखिऔक ने, केओ खूब चावसं भरि मोन ओल खाइत अछि आ किछु नहिं होइछ. आ ककरो ओल छूबिते हाथ खलोदार भ जाइत छैक. तें, डाक्टर रोगीसं हुनक व्यक्तिगत आ पारिवारिक इतिहास पूछब नहिं बिसरैत छथि.
हमरा लोकनिक देशक चिकित्सा विज्ञान हजारों वर्ष पूर्व कतेक समृद्ध छल तकर झलक हमरा लोकनिकें सुश्रुत आ चरक संहिता में भेटैत अछि. ओहि समय में कफ, पित्त, आ वायुक असंतुलन रोगक कारण बूझल जाइत छलैक. आधुनिक चिकित्सा शास्त्रक सिद्धांतक अनुसार शरीरमें रोगक कारणक तीन अवयवक परिकल्पना छैक : एहिमें agent, (जेना, जीवाणु,कोनो तत्वकेर अति वा कमी, आघात),व्यक्ति host (रोगी) तराजूक दू पलड़ा थिक. रोगिक आतंरिक वा वाह्य वातावरण, रोगक कारणक तेसर अवयव थिक जे पहिल दुनू अवयवक बीचक संतुलन निर्धारित करैछ. एकर अर्थ ई भेल जे व्यक्ति आ रोगक कारण म सं के लत (भारी ) हयत, से रोगीक शारीरिक पारिस्थिति आ रोगक कारणक प्रकृतिक अतिरिक्त वातावरण पर निर्भर होइछ. जेना, एके भूमिमें एके बीआक भिन्न भिन्न फसिल माटिए टा पर नहिं, नमी आ मौसमक अनुकूलतापर सेहो निर्भर करैछ, तहिना भिन्न भिन्न व्यक्ति आ भिन्न वातावरणक
संयोगसं
रोगक एके कारण, औषधि, आ चिकित्साक भिन्न-भिन्न प्रभाव देखबामें अबैछ. एकरा एना सेहो बूझि सकैत छी : मनुष्यक शरीर जं एके अवस्थामें हो तथापि जाड़क मासमें सर्दी-उकासी बेसी होइत छैक. गर्मीमें
पसेनासं बढ़बाबला चमडाक रोगी बेसी होइत छैक. ई भेल रोगपर वातावरणक प्रभावक उदाहरण. तहिना मनुष्यक
शरीरक आतंरिक वातावरण सेहो रोगक सम्भावना बढ़ा दैत छैक. जेना, निरंतर चिन्तित व्यक्तिमें भूख आ निद्राक अभाव. ई भेल रोग हेबामें मनुष्यक आतंरिक वातावरणक योगदानक उदाहरण.
मनुष्यक आतंरिक वातावरण एकटा एहन विषय थिक जकर थोड़ समयमें डाक्टरकें अनुमान हयब कठिन. पहिलुका
युगक पारिवारिक डाक्टर ( family physician ) कें निरंतर सम्पर्क्क कारण एहि विषयमें बेसी ज्ञान होइत रहनि.तथापि संभव अछि, एकेटा परामर्शमें अनुभवी डाक्टरके रोगीक आतंरिक वातावरणक अनुमान भले भ जाइनि, किन्तु, ओकर परत-दर-दरक संरचना रोगी आ डाक्टरक बीच लगातार सम्पर्कहिं सं खुजैत छैक. रोगीक समस्याक ई पहलू डाक्टरक
नज़रिमें अयबासं पूर्व डाक्टर आ रोगिक बीचक परिचय कनेक गाढ़ हयब आवश्यक. अतः, रोगी डाक्टरकें सब बात खोलिकय कहथि से नितांत आवश्यक. एतय एकटा आओर गप्प. कतेक बेर रोगकेर
आरम्भिक स्वरुप नितान्त साधारण होइत छैक. तें एहन रोग सभहक चिन्हबामें भूल-चूक
संभव छैक. किन्तु, समयक संग रोगीक कष्ट आ आ रोगक लक्षण जेना-जेना बढ़इत छैक, रोगके
चिन्हब सुलभ भ जाइछ. अस्तु, संभव छैक, रोग अविकसित परिस्थितिमें देखनिहार चिकित्सक
रोगके चिन्हबामें असफल रहथि. जे रोगी कें पछाति देखथि तनिका रोग चिन्हबामें कोनो समस्या
नहिं होइनि. किन्तु, एहि सं पहिल चिकित्सकक दोष निकालब उचित नहिं. तथापि पारखी
नजरि आ अनुभवहीनमें अन्तर कोना नहिं हेतैक.
आब एकटा दोसर गप्प:
एके रोगक विभिन्न स्वरुप आ एके औषधिक भिन्न व्यक्तिमें भिन्न-भिन्न प्रभाव चिकित्सा शास्त्रक ई सुपरिचित तथ्य थिक. डाक्टरकें एकर जानकारी हेबाक चाही. किन्तु, कखनो काल कोनो रोगक अत्यंत अपरिचित स्वरूप आ औषधि अपरिचित
दुष्प्रभाव डाक्टरहु कें चकित क दैत छनि. किन्तु, से अभावृत्तिए. किन्तु, सुपरिचित औषधिक अप्रत्यासित असरसं रोगीकें अपनो अवश्य सतर्क रहथि, से आवश्यक. किन्तु, जं कोनो नव औषधिक कोनो दुष्प्रभावक अनुभव होइनि तं पहिने ओहि औषधिकें बंद करथि व तुरत डाक्टरसं
सम्पर्क करथि. ज्ञातव्य
थिक, प्रयुक्त औषधिक कोनो नव दुष्प्रभाव चिकित्सा शास्त्रक नव तथ्य भ सकैत अछि. इतिहास विदित अछि, Thalidomide नामक औषधि एक समयमें गर्भवती नारि लोकनिक हेतु प्रयोग भेल. किन्तु, जखन Thalidomide केर
दुष्प्रभावसं गर्भस्थ शिशुक हाथ-पयरक विकाशक बाधासं विकलांग शिशु सबहक सबहक जन्म भेलैक, तं चिकित्सक लोकनिकें thalidomide क भयानक दुष्प्रभावक भान भेलनि आ thalidomide क प्रयोग तत्काल रोकल गेल. किन्तु, जकर नुकशान भ गेल छलैक, तकर निवारण कोना होइतैक. भोजन आ फल फलहरीक मामलामें व्यक्ति
अपन अनुभवक अनुसार सावधानी राखथु. उदाहरार्थ, ककरो सेव वा खीरा खेला सं पेटमें गैस होइत बूझि पड़ैत छनि. ई डाक्टरक कल्पना सं बाहर थिक.
आब डाक्टर-वैद्यकें की बूझल हेबाक चाही, अथवा की बूझब असंभव छनि तकर गप्प करी. सामान्यतया चिकित्सक
कें शास्त्रक ज्ञान हेबाक चाही. किन्तु, चिकित्सा-शास्त्र आन अनेको विज्ञान जकां निरंतर विकसित भ रहल अछि. अस्तु, विज्ञानक विकासक प्रत्येक
पहलूक ज्ञान चिकित्सककें होइनिसं वांछित थिक, किन्तु, संभव नहिं. विकसित देशमें डाक्टरी
करबाक लाइसेंस चालू रखबाक हेतु समय-समय पर सर्टिफिकेशन परीक्षा देबय पड़ैत छनि.
किन्तु, भारतमें एखन धरि तकर प्रावधान नहिं. तें संभव छैक, अहाँक चिकित्सक
चिकित्सा-शास्त्रक सुपरिचितो तथ्यसं अपरिचित होथि ! किन्तु, एखन हमरा एहि समस्याक
व्यवहारिक समाधान देखबामें नहिं अबैछ. कोशिश रहय जे जानकार चिकित्सक सं सलाह ली. तथापि
एतय एतबा कहब अनुचित नहिं होयत जे जाहि गति सं विज्ञानक प्रगति भ रहल छैक सब ठाम
सब नव तथ्यसं अप-टू-डेट रहब कोनो चिकित्सकक हेतु सरल नहिं !
एतबे नहिं, चिकित्सा शास्त्रक कतेको विषयपर चाहे तं मौन अछि वा कतेको रोग चिकित्साक विधिपर चिकित्सक लोकनिमें मतैक्य नहिं. एतय रोगी अपन विवेक, साधन, आ विश्वाससं निर्णय लेथु. एहन परिस्थितिमें एक सं अधिक चिकित्सकक परामर्श सेहो वांछनीय.
हमर अपन विचार अछि, जं कोनो चिकित्सा स्पष्टरूपें रोगीक हेतु हानिकारक नहिं होइक आ रोगीकें ओही विधिसं रोगसं आराम होइक तं चिकित्सककें कोनो ‘पैथी’क नामपर ओहि सं आपत्ति नहिं हेबाक चाही. किन्तु, चिकित्सककें चिकित्साक सम्बन्धमें एतबा अवश्य मोन रखबाक थिक जे चिकित्सा सं रोगक सुधार भले नहिं होइक, हानि निर्विवाद नहिं हेबाक चाही !
एतबे नहिं, चिकित्सा शास्त्रक कतेको विषयपर चाहे तं मौन अछि वा कतेको रोग चिकित्साक विधिपर चिकित्सक लोकनिमें मतैक्य नहिं. एतय रोगी अपन विवेक, साधन, आ विश्वाससं निर्णय लेथु. एहन परिस्थितिमें एक सं अधिक चिकित्सकक परामर्श सेहो वांछनीय.
हमर अपन विचार अछि, जं कोनो चिकित्सा स्पष्टरूपें रोगीक हेतु हानिकारक नहिं होइक आ रोगीकें ओही विधिसं रोगसं आराम होइक तं चिकित्सककें कोनो ‘पैथी’क नामपर ओहि सं आपत्ति नहिं हेबाक चाही. किन्तु, चिकित्सककें चिकित्साक सम्बन्धमें एतबा अवश्य मोन रखबाक थिक जे चिकित्सा सं रोगक सुधार भले नहिं होइक, हानि निर्विवाद नहिं हेबाक चाही !
तथापि, हमर धारणा आ सलाह अछि, चिकित्सकके
रोगक विषयमें विश्वकोष बूझब ने सत्य थिक आ ने व्यावहारिक.
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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.