व्यंग
चर्चित
‘बालानन्द
सहाय केर कथा-संग्रह, खेसारीक साग, पुस्तकालयमे आयल अछि। सुरुचिपूर्ण भाषामे लिखल ग्राम्य जीवनक स्केच उतारैत कथा सब पढ़बा
योग्य अछि। कथाकार तँ पुरान छथि, किन्तु, चर्चित नहि ।’
प्रोफेसर बलेल
बाबू जखन ई सूचना पुस्तकालयक सोशल मीडिया पेज पर पढ़लनि तँ देहमे जेना कबाछु लागि गेलनि। सोशल मीडिया पोस्टकेर
दूइए पाँतीमे प्रशंसा आ यथार्थ दुनूक
समावेश देखि सहायजीकें जोरगर झटका लागल छलनि। एहन-एहन समालोचनासँ हुनका आओर किछु
लिखबाक प्रेरणा भेलनि कि नहि से तँ ओ अपने मोन धरि रखलनि, मुदा, अंततः ओ दरभंगामे कतेक
दिन धरि चर्चाक विषय अवश्य बनल रहलाह।
दरभंगा शहरमे
लेखकक कोन कमी। जेम्हरे ढेप फेकबैक ओम्हरेसँ
केओ ने केओ साहित्यकार चोट लगलासँ किकिहारि काटि उठताह।
बलेल बाबू
चालीस पार क’ चुकल छथि। आब चालीस सालसँ कम वयसमे भेटबावला युवा पुरस्कार तँ नहिएँ भेटतनि। ईहो
गप्प सोचि मोन खौंझाय लगलनि। भेलनि, एतेक दिन बी एम कालेजमे नौकरी केलहुँ । कनियो जँनेतागिरी केने रहितहु तँ
आन किछु भले नहि ग्रेजुएट लोकनि कोटासँ एम
एल सि तँ अवश्ये भ’ गेल रहितहुँ। आ जँ भाग्य संग दैत तँ कोन ठेकान ! मिनिस्टरो !!
आ जँ एक बेर राजनीतिमे चल गेलहुँ तँ सत्तरि
वर्ष धरि युवा-तुर्के कहैतहुँ, एक पयर अछियामे रहैत तथापि भारतीय क्रिकेट बोर्ड केर अध्यक्षे
बनल रहितहुँ। ई मनकथा तँ लगले छलनि, कि अपने गाल पर जोरसँ एक चाट मारलनि: ई बूड़ि
रे ! परफेसरी करू!! साहित्यकार, कथाकार, लेखक बनबाक मनोरथ, आ चर्चित हेबाक सेहन्ता
पूरे नहि भेलनि आ चललाहे मंत्री बनय !
दरबज्जाक
बाहर दिसुक केबाड़ लगसँ घरवाली कुजड़िनिक बाट तकैत हिनके दिस नजरि गडौने रहथिन। कहलखिन,
जा ! अपने गाल पर अपने चमेटा !! बताह भ’ गेलहुँ-ए !!!
बलेल बाबूक
मोन अपरतिब भ’ गेलनि। कहलखिन, एतुका पोखरि सब जे ने कराबय। कोरपोरेशन भले एतुका
पोखरि सबहक बलें दरभंगाकें उदयपुर बनेबाक मंसूबा बनाबय, मुदा, हम सब तँ मच्छड़सँ परेशान छी। सत्य कहै छी, तेहन जोरसँ
ने मच्छड़ कटने छल जे अचानक अपने चाट अपने लागि गेल।
बलेल बाबूक
पत्नी मुसुकाइत भीतर चल गेलखिन। मुदा, बलेल बाबूक मोन उद्विग्न भ’ उठलनि। किन्तु, तखने
हुनका अपन आत्मीय पड़ोसिया मोन पड़लखिन। बलेल बाबूक पड़ोसी बंगट बाबू थिकाह तँ विज्ञान-संकायक
प्रोफेसर। मुदा, हिनकर आयब जायब कतय नहि छनि। पछिले वर्ष हिनक पोथी, भौतिक-शास्त्रक सिद्धांत,
छपल छनि। सुनैत छी, ई पोथी ततेक ने लोकप्रिय छनि, जे एखन हिनक कोनो छात्र एकर
मैथिली अनुवादमे लागल छनि। आ से, जँ, छपि गेल तँकोन ठेकान रातिए भरिमे ई चर्चित साहित्यकार भ’ जाथि। तखन हिनका कोन
साहित्यकार साहित्य अकादेमीक सलाहकारक पदसँ रोकि सकथिन ! माय-बाप हिनकर नाम अनेरे
बम गोपाल ठाकुर नहि रखने छथिन !
फल ई भेल जे
बलेल बाबूक मनकथा कखन विश्वासमें बदलि गेलनि से ओ अपनो नहि बुझलखिन। आ बाहरेसँ पत्नीकें
हाक द’ देलखिन, ‘ सुनै छी ?’
-की ?
-हम कनेक
बंगट बाबूक ओतयसँ भेल अबै छी।
- आ चाह ?
- अहाँ
हमरो बखरा अहीं पीबि लियअ। कोन ठेकान, जँ बंगट बाबूक ओतय केओ आओर आयल होथि तँ हमहू
ओतहि पीबि लेब।
-अवश्ये। पछिला
हफ्ता भोरे-भोर हुनकर नाम लेलासँ हमरा तँ भरि दिन मुँहमे पानियो नहि गेल छल। जाउ। अहाँ चाह नहि , बिस्कुटो खा आउ’
कहैत पत्नी मुँह दूसि लेलखिन। मुदा, बलेल बाबूकें से सुनबाक फ़ुरसति नहि रहनि ! ओ तँ एके छरपानमे पोखरिक दोसर पार बंगटबाबूक दलान पर पहुँचि गेलाह।
बलेल बाबू
जखन बंगट बाबूक दलान पर पहुँचल छलाह, बंगट बाबू कोनो विद्यार्थीकें बोकिअबैत रहथिन:
‘अहाँ बज्र बूड़ि छी। एतबो नहि अबैए। ई जे
भाषण लीखि कय अनलहुँए सएह पढ़बैक स्थापना दिवसमे। एहीसँ प्रिंसिपल अहाँकें चिन्हताह
! एहीसँ अहाँ चर्चित हयब !! जाउ। जेना कहने रही, तहिना दुबारा लीखि कय नेने आउ।’
विद्यार्थी
मुँह बिधुऔने ओसारा परसँ उतरि विदा भेल। मुदा, बंगट बाबूक तामस थोड़ नहि भेल रहनि। ओ स्वगत तामस निकालैत रहथि: ‘अबंड
कहीं के !’ मुदा, अबैत बलेल बाबूक आहट पाबि पाछू घुमलाह तँ भोरुका रौदमे चमकैत बलेल बाबूक बत्तीसी पर नजरि पड़लनि।
बंगट बाबूक
ओसारापर चढ़ैत बलेल बाबू मनमाफित गप्पक सूत्र पकड़ैत शुरू भ’ गेलाह: ‘ ठीके तँ कहै छलियै अहाँ। अहिना
चर्चित हयब ! लेकिन, अहाँकें कनेक हमरो सहायता करय पड़त’ बलेल बाबू पड़ोसिया पर कनेक
अधिकार आ कनेक अपनैती देखबैत कहलखिन।
-माने ?
-- ‘अहाँ तँ
हमरे मोनेक गप्प करैत छलहुँ!’ कहैत बलेल बाबू अपन पीड़ित ह्रदयक रहस्यकें अपन
पड़ोसियाक लग खोलि कय राखि देलखिन। सारांश ई जे, हमर गुण तँ अहाँ जनिते छी। हम कतेक
उत्कृष्ट कथा लिखल। कविता पाठ कयल। आलेख छपल। मुदा, तकर कतहु कोनो चर्चा नहि भेल, हम चर्चित नहि भ’ सकलहुँ।
- बलेल
बाबूक गप्प सूनि बंगट बाबू भभाकय हँसय लगलाह: ‘ माने, अहूँकें ई भूत सवार भ’ गेल !’
बलेल
बाबूकें धैर्य नहि रहनि। कारण, यावत धरि
चर्चामें नहि रहथि, तावत धरि तँ गबदी
मारने सबटा सहने जाइत रहथि। मुदा, जखन केओ छौंड़ा-मांडर ‘ चर्चित नहि छथि ‘ लीखि देलकनि तँ ई अपमान बर्दाश्तसँ बाहर भ’
गेल रहनि। कहलखिन, ‘ देखू ने हम कहियासँ लिखैत छी से अहाँसँ छिपल तँ नहिएँ अछि। तखन
कल्हुका छौंड़ा लिखि देत, ‘उत्तम लिखैत छथि, मुदा, चर्चित नहि छथि। एहनो होइ !’
बंगट बाबू
घाघ छथि। हुनका कोनो लाइ-लपटाइ नहि । सोझ-सोझ बलेल बाबूक आँखिमें नजरि गड़बैत
कहलखिन, ‘ चर्चित होबय चाहैत छी ?’
बलेल बाबू
लजाइत-जकाँ नीचा मूड़ी झुकौने मुसुकाए
लगलाह।
बंगट बाबू
शुरू भ’ गेलाह।’ टीचर-प्रोफेसर छी। तैयो
पढ़ओलासँ तँ चर्चित नहिए हयब। लेखक छी, लिखलासँ तँ चर्चित नहिए हयब, से तँ बूझिते
छियैक।’
-तखन ?
- चोरि, छिनरपन,
अपराध करू। पकड़ाउ। भरिए रातिमें चर्चित भ’ जायब।
बलेल बाबूक
मुँह एकाएक विवर्ण भ’ गेलनि। कहलखिन,’बंगट बाबू। नारायण ! नारायण !! केहन गप्प
करैत छी!! ‘ आ मनहि मन सोचय लगलाह, देखू, हम हिनका लग हिनका अपन आप्त बूझि अयलहुँ ,
आ ई सहानुभूतिक बदला घाओ पर केहन नोन छिटैत
छथि। तथापि, संतुलन रखैत कहलखिन, ‘ सुनूँ। छी तँ अहूँ शिक्षके। किन्तु, अहाँक नाम
के नहि जनैछ !’
बंगट बाबू
के हँसी लागि गेलनि। कनेक नरम होइत कहलखिन,’ दुखी जुनि होइ। हम तँ एहिना धुर्ता
करैत रही। अहाँ पड़ोसिया थिकहुँ । आ अहाँ हमरा गामक जमाय तँ सेहो छीहे !’
गप्प बदललासँ
बलेल बाबूकें कनेक मोन हल्लुक-सन होमय लगलनि। मुदा, बंगट बाबू एखन धरि एहि पारीक
आखिरी गेंद नहि फेने रहथि। तें, तुरत गम्भीर होइत शुरू भ’ गेलखिन। ‘अच्छा,
धुर्ता-पात आब जाय दिऔक। जं, हमर सहायता मांगय एलहुँ-ए आ हमर विचार पूछैत छी, तँ,
आब हम जे पूछैत छी तकर सोझ–सोझ जवाब दियअ।’ आ बंगट बाबू शुरू भ’ गेलाह:
-अंतिम कथा-संग्रह
जे छपल छल तकर नाम ?
- अपरोजक।
- कतय छपल
छल ?
- दरभंगासँ
।
-विमोचन
करौने रहियैक ?
-नहि ।
- करेबैक ?
-मनोरथ तँ होइते
अछि।
- हम व्यवस्था
क’ दियअ ?
बलेल बाबूकें
कंठ सुखाय लगलनि। भोरुका चाह गामहुपर छोड़िए कय आयल रहथि।
-खर्चो लगतै,
कि ने ?
- तँ सबटा
फ्री-फंडमे हयत !
-‘नै, नै। हम से नहि कहल।’ बलेल बाबू अपन तर्क प्रस्तुत कए खर्चक भारसँ निकलबाक बाट ताकय लगलाह। ‘ किताब
छपना तँ पांच वर्षसँ बेसी भ’ गेलैक। तैपरसँ , पोथी भले बिकाइत नहि होउक, हमरा नहि लगैत अछि, एतय केओ एहन हेताह जे पोथी देखने नहि हेथिन। हँ, ई दोसर गप्प जे लोक पढ़ैए केवल अपने
लिखल पोथी। ई तँ मैथिलीक रोग थिकैक !’ कुंठामे बलेल बाबू मुंहसँ अपन भाषाक सर्वविदित
सत्य बहरा गेलनि: ‘एहन पोथीक विमोचन केहन लगतैक !’
- केहन
लगतैक ! हॉल केर सजावट हेतैक। पाहुन-पड़क-साहित्यकार,
कवि, युवा-जनता, प्रेस-पत्रकार आओत। चर्चा–भाषण, सिंघाड़ा-रसगुल्ला, चाह-पान हेतैक।
फोटो झिकेतैक। समाचार अखबारमे छपत।
-तकर कोन ठेकान
? सुर्यू बाबू अपन पोथीक विमोचनमे , सुनैत छी, लाख टाका कर्च केलनि। एकोटा किताब
कथी ले बिकेतनि। स्थानीय पेपरकेर आठम पेज पर समाचार छपलनि। ताहूमे फोटोमे अकादेमीक अध्यक्षकेर फोटो एलनि। कहलनि, ‘कान पकड़ल।
सब गुड़, गोबर भ’ गेल !’
- पत्रकारकें
फूटसँ खातिर केने रहथिन ?
- एह, ताहिमे
कोनो शिकाइत रहै। सुनैत छी, सब भरि पोख
समोसा-जिलेबी कचरने छल।
बंगट बाबू कें अधैर्य भ’ गेलनि। तथापि अपना पर
नियंत्रण रखैत कहलखिन,’ एकटा गप्प कहू ? छी तँ अहाँ आ हम समवयस्के, किन्तु, छी
अहाँ डब्बल ! पहिल तँ अहाँक मानसिकता निगेटिविटीसँ भरल अछि। अहाँ सब किछु कें
संदेहक दृष्टिसँ देखैत छियैक। दोसर, अहाँ अत्यंत अव्यवहारिक छी। यथार्थक एको रत्ती
छूति नहि अछि। स्वाइत !’ कहैत, बंगट बाबू
एकटा बड़का निःश्वास छोड़लनि: ‘ पत्रकार समोसा-जिलेबी पर लिखतनि ! बूड़िराज नहितन !
तें, देखैत ने छियनि, डींग तँ खूब हँकैत रहथि, पोथीक कतहु चर्चो भेलनि। कियो
चिन्हितो छनि ?’
बलेल बाबू
सकपका गेलाह। कहलखिन, ‘अहाँसँ किछु छिपल अछि। देखिते छियैक, विश्वविद्यालय छौ-छौ मास
पर दरमाहा दैत छैक। मानविकीमे तँ आब
ट्यूशनक व्यवसाय ठप्पे अछि। जकरा टाका छैक, सोझे दिल्ली जाइत अछि, आ पुरस्कार ल’
अनैत अछि। अहाँ तँ जनिते छी, एखन तँ हमर हाथ खालिए अछि।’
बलेल बाबूक
दुःखनामासँ बंगट बाबूकें कनेक सहानुभूति भेलनि; भोगल दुःख। ओ कनेक नरम तँ भेलाह। किन्तु, यथार्थक धरातल पर
ओकर कोन मोल ! कहलखिन, ‘ अहाँक गप्प, सोलह आना मानल। मुदा, आब तँ अहाँ धिया-पुतावला छी। वयस चालीससँ
उपर भ’ गेल। विवाह दान जँ नहि भेल रहैत तँ
अकादेमीक सलाहकारक संग सम्बन्धो जोड़ि सकैत
छलहुँ !’ कहि बंगट बाबू ठहक्का मारि हँसय
लगलाह। ‘अपन पयर पर तँ अपने ने कुड़हरि मारि लेलहुँ, बलेल बाबू !’
पछाति, पुनः
सामान्य होइत बंगट बाबू गम्भीरतासँ कहय लगलखिन, ‘चलू, जे भेल, से भेल। अहाँक
निर्देशनमे हालमे अहाँक कोनो विद्यार्थीकें
पी एच डी क डिग्री भेटलैए ?’
-अवश्य ।
- शोध केर
विषय ?
-विद्यापतिक
पुरुष-परीक्षामे राजनितिक सिद्धांतक
प्रतिपादन।
बंगट बाबूकें
अधैर्य भ’ एलनि आ अचानक हुनकर मुंहसँ निकलि गेलनि, ‘ बलेल बाबू, अहाँक कोनो इलाज नहि
। अहाँ नहि सुधरब। एखन जखन सरकारक सबटा
बजेट गाइक गोबर, गाइक गोंत पर खर्च क’ रहल अछि, जोर नवका शिक्षा नीति पर छैक, तखनो अहाँ विद्यापतिक नांगड़ि छोड़बा ले तैयार नहि छी। हमरा लग अहाँक मनोरथक कोनो इलाज नहि !!’ कहैत बंगट बाबू जोर-जोरसँ अपन मूड़ी दहिनासँ बामा आ बामासँ दाहिना डोलबय लगलाह।
-एना नहि कहिऔक !
- अच्छा। अहाँ
वरिष्ठ छी। आदर अछि। कहैत छी, बहुतो दिनसँ नीक लिखै छी। अभिनन्दन-ग्रन्थ छपल अछि ?
आब हँसबाक
पार बलेल बाबूक रहनि। कहलखिन, ‘ हमरा नहि बूझल छल। अहाँ तँ काका हाथरसी आ शैल चतुर्वेदीकें
मात करैत छी ! हमर अभिनन्दन ग्रन्थ ! के लिखत !!’
बंगट बाबू
गम्भीरतासँ कहलखिन तें ने कहैत छी, ’अहाँक कोनो इलाज नहि !’
-माने ?
-औ, अभिनन्दन
ग्रन्थ लिखबेबा ले महान हयब आवश्यक छैक ? जखन अहाँ पोथी लिखब, विमोचन करेबै नहि। विवाहो-दानमे
भविष्यके बिना किछु देखने कोम्हारो हुलि
देबैक, बिनु हवा देखने बड़ आ पीपरक गाछ पर
पी एच डी करेबैक, अभिनन्दन-ग्रन्थमें निवेश नहि करबैक, तखन चर्चा कथिक हेतैक। चर्चित कथीसँ हयब ?
सुथनीसँ ?
बलेल बाबू
बंगटकें नीकसँ चिन्हैत छथिन। दिन हो वा दुपहरिया, जोशमे होश बिसरब बंगट बाबू ले
सोहाग भाग छनि। बंगट बाबूक विपरीत बलेल बाबूकें धैर्यक कमी नहि । ताहिमे आइ हुनका काज अपन छनि। तें, उत्तेजित बंगटकें निर्विकार भावें पूछि
बैसलखिन, ‘ माने, अहाँक विचारे चर्चित हेबाक हेतु एकरा अतिरिक्त आओर कोनो उपाए नहि
?’
‘ अवश्य
छैक ! छैक ने !! ’ उत्तेजित बंगट जवाब देलखिन।
बलेल बाबूक
छाउड़ लेपल चेहरा जेना एकाएक चमकि उठलनि: तखन कहू ने ! सएह एतेक कालसँ पूछैत छी !
मार्गदर्शन आ सहयोगे ले तँ आयल छी।’ ‘ कहू, हम करबैक !!’
-‘डूबि मरू।’
बंगट बाबू निर्विकार भावें आँखि गुड़ारि बलेल
बाबूक हताश आँखिमें देखैत कहि चुप भ’ गेलाह !
- माने ?
- डूबि मरू
!!
दोसर दिन
भोर लोक उठल तँ बलेल बाबूक लाश हड़ाही पोखरिमे दहाइत देखलक।