जीवकांतक चारि गोट पत्र
2002 वर्षमें स्वर्गीय जीवकांत जी सं हमर पत्राचार महज संयोग छल. हम ओहि समय बंगलोरमें रही. एक दिन 'भारती-मंडन' क एकटा अंक आयल. ओहिमें जीवकांत जीक कोनो एकटा लेखमें हुनक चीनीक रोग आ 'हुनकर अनुमाने' वार्धक्यक कारण आँखिक रोशनीमें आयल विपर्ययक चर्चा रहैक. ओही लेख केर प्रतिक्रियामें डाक्टरी सलाह दैत, आ चीनीक रोगक आँखि पर दुष्प्रभावसं अवगत करबैत हुनका हम एकटा पत्र लिखलियनि. तुरते हुनकर जवाब आयल. तकर बादे हुनका सं हमर पत्राचारक सिलसिला आरम्भ भेल. अनुमान अछि, ताधरि जीवकांत जीकें आँखिपर डायबिटीजक दुष्प्रभाव बूझल नहिं रहनि. प्रायः तें, लिखलनि, अहाँक चिट्ठी नीक लागल. मर्मस्पर्शी ', संगहिं इहो जे ' एहि दिस ध्यान नहिं गेल छल.' अपन चिट्ठीमें हम जीवकांत जी कें आंखिक जांचले बंगलोर अयबाक हेतु आमंत्रण देने रहियनि.
संयोग सं, हमर चिट्ठी पहुंचला सं पूर्व हुनका लग श्री भीमबाबूक माध्यम सं वर्ष 2000 में प्रकाशित हमर कविता संग्रह 'जडि' पहुचल रहनि. मुदा, ताधरि ओ हमर पोथी पढ़ने नहिं रहथि. पत्र भेटला पर ओकरा पढ़लनि. लिखलनि. ' अहाँक पत्र अयलाक बाद छज्जी पर सं एकटा पोथी उतारल. नाम थिकैक 'जडि'..... एक दिन में अर्थात् काल्हि आ आइ में एकरा पढ़ल.' बांकी गप्पक अतिरिक्त एहि अंतर्देशीय पत्रमें लाल रंगक मोसि में ' जडि' में ' एक जनवरी दू हज़ार' शीर्षकसं प्रकाशित हमर कविता 'क एकटा उद्धरण सेहो लिखने रहथि, जे निम्नवत अछि:
अपने बलें दौडे छथि पृथ्वी
अपने शक्तिएँ तपै छथि सूर्य
अपने गतिएं धड़कैए ह्रदय,
अपने बलें चलैए हाथ
तखन की करत प्रशासनक बैशाखी ?
की करत माथ ?
जीवकांत जी हमर एहि धारणाकें 'मौलिक धारणा' कहि कविताक प्रशंसा केने रहथि.
जे किछु.
31.03.02 क जीवकांत जीक दोसर चिट्ठी आयल. लिखने रहथि, ' दरभंगा में डाक्टर मनोज कुमार सं आँखि देखाओल. मोतियाबिंदु नहिं अछि.' रक्तमें सुगर सेहो नियंत्रण में रहनि.
पत्रमें ओ इहो लिखने रहथि, अहांक पोथी 'जडि' पर किछु पढ़बाले 'भारती मंडन'( सुपौल) आ 'रचना' ( दरभंगा) में भेटत.
हर्ष अछि, पछाति, 'जडि' पर स्व. जीवकांत जीक लिखल समीक्षा भारती मंडन में छपबो कयल.
मन पडैत अछि, हम एकटा पत्रमें जीवकांत जी सं हुनक उपलब्ध पोथी सब किनबाक इच्छा व्यक्त केने रहियनि. ताहि पर ओ लिखने रहथि, ' गद्यवला पोथी बहुत पहिने प्रकाशित भेल छल. आब अप्राप्य अछि.एहि भाषा में प्रकाशन आ वितरणक काज कठिन अछि.' ओहि पत्रमें ओहि समयमें मैथिलीमें प्रकाशित होइत किछु पत्र-पत्रिकाक विवरण सेहो रहैक . प्रायः हुनका अनुमान छलनि, हमरा-सन प्रवासी धरि मैथिलीक बेसी पत्र-पत्रिका नहिंए पहुँचैत हो. तें, लिखनेरहथि, ' बांकी पत्रिकाक पता 'केदार कानन' द सकैत छथि.
तकर पछाति हमरा लग हुनकर आओर दू टा पत्र आयल. पोस्टकार्ड पर लिखल एक पत्र में ओ अपन रांची प्रवास आ ओतुका ' बदलल भूदृश्यमें लिखबाक प्रेरणा' क चर्च केने रहथि.
हुनक चारिम पत्रमें हमर चिट्ठीक संग हमर कथा आ कविताक पहुँचनामाक संग हुनक व्यस्तताक चर्चा रहनि. हमर नाम जीवकांत जीक एकटा पत्र आओर कतहु हयबाक चाही जाहि में ओ हमरा 'कविता पर समय देबाक' सलाह देने छथि. संयोग एहन जे डाक्टरी आ अध्यापनक व्यस्तता मेंं कविता लिखब एखन मोटा-मोटी निष्क्रिये अछि, जं ' कुरल मैथिली भावानुवाद' कें छोडि दी.
एहि युगमें जखन फ़ोन चिट्ठीकें नीक-जकां चिबा गेले, सोचल, फाइल में बंद एहि धरोहरके बाहर निकालि एकरा कनेक इजोत देखाबी. अस्तु, जीवकांत जीक हमर नाम चारू पत्रक छाया प्रति एतय देल अछि.
No comments:
Post a Comment
अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.