Sunday, January 19, 2020

मैथिलीमें लिखबाक औचित्य आ चौराहा पर मूर्ति स्थापनाक सम्भावना

      

मैथिलीमें लिखबाक औचित्य आ चौराहा पर मूर्ति स्थापनाक सम्भावना

पढ़बे-जकां लिखब सेहो व्यसन थिकैक. हं, जे जीविकोपार्यनले लिखैत छथि, से व्यक्ति एकटा फूट श्रेणीक व्यक्ति थिकाह. किन्तु, जिनका लिखबाक व्यसन छनि, तथापि हुनकर लिखल केओ पढ़इत नहिं छनि, ओ ककराले लिखैत छथि ? हमरा-सन मैथिली लेखक जनिकर जीविका डाक्टरी आ अध्यापनपर निर्भर छनि, तनिका प्रसिद्धि आ अर्थ दुनू अंग्रेजीमें लिखलासं होइत छनि. मैथिली लेखनसं फ़ुरसतिमें समय भले बीति जाइनि, किन्तु, व्ययसं के बंचओतनि. चलू, एतबो धरि ठीक. मुदा, सोचैत छी, अपन हानिक पर्यन्तो, हमरालोकनि मैथिलीमें लीखिकय किनकर उपकार करैत छियनि ! इएह एहि लेख केर विषय थिक.
आब एहि विषयपर कनेक खुलिकय गप्प करी. किन्तु, आगू बढ़बा सं पूर्व एतबा धरि कहिए दी जे एहन विचार हमरा मन में किएक आयल. असलमें हमर मैथिली लेखन नितान्त अनियमित अछि. कारण, हम ने कोनो स्तम्भकार छी, जनिका ‘डेडलाइन’क दवाब रहैत छनि, आने, कर्नल रंजीत, इब्ने शफ़ी वा केन फोलेट-सन जासूसी कथा-लेखक जनिकर कथाक रहस्यक प्रतीक्षामें पाठकलोकनिक  नीन नहिं होइत छनि. फलतः, चालीस सालमें हमर केवल चारिए टा पोथी छपल अछि. ततबे नहिं, जं, लिखल आ बिनु छपल सबटा पन्ना सबकें समेटिओ ली तं एखन केवल दू वा तीन-टा पोथीक सामग्री जमा कय सकब. किन्तु, समस्या ई अछि से एतबो थोड़ पोथीक प्रकाशनसं, लगैत अछि, जक-थक पड़ल पोथीक बंडल सब घरकें छेकने अछि. आब, जे लोकनि दस वर्षमें पैंसठि टा पोथी लीखि लैत छथि, हुनकर तं गप्पे नहिं हो. किन्तु,  जे लेखक लोकनि ताहि सं कमो लिखने छथि, सम्भव अछि, तनिको घरमें पोथी रखबाक समस्या अवश्ये हेतनि.
आब हम अपन गप्प करी. छपल पोथीसं जे स्थान घरमें अजबाडि अछि, तकरा खाली करबाले एके टा उपाय सूझैत अछि: छपल पोथीकें मुफ्तमें बांटि दिऐक. किन्तु, ताहू में समस्या अछि. हम  पांडिचेरिमें रहैत छी. कतबो प्रयास करब तं एक दर्ज़न सं बेसी मैथिली पढ़निहार नहिं भेटताह. बंगला सहित आन सब भाषा-भाषीकें तं जखन मैथिलीक चर्चा होइत छैक, मैथिलीक परिचयमें ततेक भाषण देबय पड़ैत अछि, जे मैथिली जं अपन मातृभाषा नहिं होइत तं एतेक कष्टों नहिं करितहु ! कखनो सोचैत छी, डाकक खर्च वहन कय मुफ्तोमें पोथीकें डाक सं पठा दिऐक, पोथी बिलहि दिऐक. किन्तु, व्हाट्सएप पर फ्री अंतर्राष्ट्रीय फ़ोन कॉलक जमानामें आब डाकपिउन सेहो गामक फेरी किएक लगओताह ! चलू, पोथी रद्दीओ में बेचि दितिऐक. किन्तु, आब तं मशाला-मरचाई सेहो पुड़ियामें नहिं बिकाइत छैक. छोट किताबक पन्नासं ठोंगा तं बनतैक नहिं.  2000 सं ल कय एखन धरि कतेको पोथी मुफ्तमें बिलहल.  वर्ष 2017 में छपाओल ‘कुरल’ मैथिली सेहो खुलिकय बिलहल. कतेको गोटे तं खूब प्रशंसा कयलनि. एकटा सम्पादक तं व्हाट्सएप्प पर इहो लिखलनि, ‘महत्वपूर्ण काज’. किन्तु, एखन धरि हुनकर पत्रिकामें  दू वर्षमें दू पाँतिओक पोथी-परिचय नहिं आयल. भाग्यवश प्रशंसामें एकटा समीक्षक इहो लिखि गेलाह जे ‘कुरल मैथिली’, प्रत्येक मैथिली-भाषीक घर में हेबाक  चाही. मुदा, हुनको अनुशंसापर पोथीक जमा बंडलक आकारमें कोनो परिवर्तन नहिं भेल.
सत्यतः, हमर शुभचिंतक लोकनिक संख्यामें थोड़ नहिं अछि.  तें, जनिका जे उचित फुरलनि, सुझाव आ सम्मति देलनि. मुदा, केओ पोथी नहिं किनलनि. ओहुना मित्र लोकनिकें गाछी-कलममें फडल आम आ छपाओल पोथी पर अधिकार रहिते छनि. सत्य कहैत छी. एक शुभचिंतकक सलाह मानैत, फेसबुक आ व्हाट्सएप्प पर चौबीस घंटाक चक्रमें, भिन्न-भिन्न समय पर, हफ्ता भरि सब कद्रदान सबसं  पोथी  किनबाक निवेदन करैत रहलहु. फल : निल बट्टे सन्नाटा ! तें, हम आब अपन गप्प छोड़ी.
किछु एहनो लेखक छथि जे गंभीर वैज्ञानिक, साहित्यिक आ सामाजिक लेख लिखैत छथि. किन्तु, हुनको लोकनिक स्थिति एकरंगाहे छनि.  बेचारे, भरि-भरि राति जागि संदर्भ तकैत छथि, आ नव-नव विषयपर लेख लिखैत छथि. कम्प्यूटरपर घंटाक-घंटा काज करबामें आँखि लाल भ जाइत छनि. तैयो पोथी छ्पलापर ग्राहक देवताक दर्शन नहिं. मैथिल धिया-पुताकें मैथिली पढ़ल नहिं होइत छैक. जे पढ़ि लैत छथि, हुनका बुझबामें नहिं अबैत छनि. तें, गम्भीर विषयक लेखक लोकनिकें सेहो गोली मारू.

हं, किछु लेखक एहन अवश्य छथि जे पहिले बॉलपर छक्का मारबामें सफल भ जाइत छथि. पहिले पोथीपर बड़का पुरस्कार पाबि भरिए रातिमें प्रसिद्द भ जाइत गेलाहे. मुदा, हुनको लोकनि कें अर्थ-लाभ तं पुरस्कारेसं भेलनिए, पोथीक बिक्री सं नहिंए. किन्तु, एहि बीचमें छपाईक क्षेत्रक क्रांति एकटा नव आ बड़का समस्या ठाढ़ कय देलकैए- पुरस्कारक प्रतीक्षामें ठाढ़ सब वयसक लेखक लोकनिक लम्बा पतिआनी. पहिने लेखक- कवि लिखैत-लिखैत मरि जाइत छलाह, अपना आँखिए अपन पोथीकें छपैत नहिं देखि पबैत छलाह. आब तं कतेक लेखक पोथी लिखबा सं पहिनहिं पोथी छपबा लैत छथि. तें, मोट पुरस्कारक प्रतीक्षामें ठाढ़ सब वयसक लेखक लोकनिक पतिआनी दिनानुदिन पैघे भेल जा रहल अछि. आ लाइन जखन पैघ हेतैक तं लाइन में धक्का-धुक्की, धक्का-मुक्की हेबे करतैक. लोकक वयस तं बैसल नहिं रहतैक ! युवा-पुरस्कारक प्रतीक्षामें ठाढ़ युवाकें बूढ़ भ जयबाक भय सेहो उचिते सतबैत छनि.  मुदा, समस्या दोसरो छैक : जं, पुरस्कारक पछातियो पोथी नहिं बिकयलनि, तं , थोड़ किरायाक मकान वा छोट फ्लैटमें कोन-कोन पोथीक बंडल रखताह. सबहक पोथी तं बी. ए, एम. ए. कोर्समे नहिं आबि जेतनि. सुनैत छी, आब मैथिली विभागमें छात्रक संख्या सेहो दिनानुदिन थोड़े भेल जा रहल छैक. आ नहिओ होउक, बी. ए, एम. ए. पास करबाले पोथी पढ़बाक कोन काज. फलतः, लेखक पोथी भले कोर्समें प्रेस्क्राइब करबा लेथु, ताहि सं पोथी बिकयतनि तकर कोन गारंटी ! रहलाह प्रोफेसर लोकनि. तं, किछुु प्रोफेसर लोकनि तं अपनो लिखल नहिं पढ़इत छथि, से छपल सामग्री पढ़लासं प्रतीत होइते अछि. फलतः, एहि सब समस्याक कारण बुधिआर लोककें बुद्धि अवश्य भेलनिए. तें, पोथी-प्रकाशन आ मैथिली पोथीक बिक्रीक समस्याक सत्यक अनुभवक आबामें पाकिकय निस्सन भेल किछु tech-savvy साहित्यकार अग्रज लोकनि, हेबनिमें पोथी छपयबासं ‘तौबा’ केलनिए आ अपन कृतिकें केवल amazon kindle आ e-book- जकां छापि संतोष करब आरम्भ केलनिए. हमरा जनैत, ई नीक समाधान थिक. मुदा, एहि सं बांकी लोक विमोचनक गरम-गरम समोसा-जिलेबीक पार्टीसं बंचित भ जायत. विमोचन केनिहार विशिष्ट व्यक्तिक फोटो अखबारमें नहिं छपतनि. संगहिं, वैज्ञानिक विधाक विपरीति, साहित्य अकादेमी प्रायः एखन धरि ebook कें बुक केर श्रेणीमें नहिं गनैछ. एहि सं आन प्रतियोगी लोकनि भले प्रसन्न होथु, रचनाकार तं हुसिए जेताह ! तथापि, लेखक कें निःशुल्क पोथीक मूर्त रूप देखबाक मनोरथ तं पूर भइए जेतनि, से सत्य.  आ निरंतर जमा होइत पोथीक बंडल घर आ अलमारी सेहो नहिं छेकतनि. तथापि, मैथिली साहित्यक भंडार सेहो भरिते रहतैक.

हं, रहल ओहि रचनाकार लोकनिक गप्प जे अति गम्भीर आ कालजयी, किन्तु, समाजमें अपरिचित, रचनाक श्रृजनमें लागल छथि. हुनका लोकनिले हम एके टा गप्प कहब: ओ लोकनि एखन घटनाक अत्यंत करीब छथि (They are too close to the event !). तें, ओ लोकनि एकदम चिन्ता जुनि करथु. धैर्य राखथु. कोन ठेकान, भले समाज हिनकालोकनिकें बिसरि जाइनि, हिनका लोकनिक डिजिटल फोटो बिलाइओ जाइनि, विश्वास करथु, 500-1000-2000 वर्षक बाद विद्यापति आ भानुभक्त-जकां चौक-चौराहापर मूर्ति तं स्थापित हेबे करतनि. इहो संभव अछि, राजनेता आ पार्टी सब हिनका लोकनिक मूर्तिकें तिरंगा वा गेरुआ वस्त्र पहिरयबाक ओदौद सेहो करनि. ततबे नहिं, संभव अछि, एहन कालजयी कृतिक कवि आ लेखक अपने भले नास्तिक रहल होथु, परवर्ती समाज हिनक कपारपर त्रिपुण्ड चानन वा गंगौटक छाप सेहो क देनि !
अह-हा ! कनेक थम्हू ! थम्हू !! ई तं अद्भुत सम्भावना अछि ! आब तं हमरो लगैए, आब क्रमशः हमहूँ मैथिलीमें लिखबाक औचित्य सं सहमत भ रहल छी !!
ठीक ने ?           

Tuesday, January 14, 2020

एहि पार आ ओहि पार


एहि पार आ ओहि पार

इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा !
यह चाँद उदित होकर नभ में कुछ ताप मिटाता जीवन का,
लहरालहरा यह शाखाएँ कुछ शोक भुला देती मन का,
कल मुर्झानेवाली कलियाँ हँसकर कहती हैं मगन रहो,
बुलबुल तरु की फुनगी पर से संदेश सुनाती यौवन का,
तुम देकर मदिरा के प्याले मेरा मन बहला देती हो,
उस पार मुझे बहलाने का उपचार न जाने क्या होगा!
इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा !

हरिवंश राय बच्चनक उक्त सुपरिचित  पांति भविष्यक अनिश्चितताक प्रति संशयक अभिव्यक्ति थिक. करीब पच्चीस वर्ष धरि सेनाक सेवाक पछाति आम नागरिकक जीवनक प्रति हमरा मनमें अनिश्चितताक भाव स्वाभाविके छल. सेनाक संरक्षित जीवनक छायाकें छोडि दोसर बाट धरबाक  निर्णय में सन्निहित लाभ आ हानि बेरा-बेरी मोन पर अपन आबिए जाइत छल. किन्तु, हम निर्णय क चुकल छलहुं. 18 जुलाई 2007 क सेनाक ओलिव ग्रीन यूनिफार्मकें उतारल आ 22 जुलाई 2007 क पोखरा, नेपालक मणिपाल कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेजमें नेत्र-चिकित्साक प्रोफेसरक रूप में योगदान कयल. शहर आ संस्था नव छल. किन्तु, ओतय अनेको व्यक्ति हमर पहिलुक सहकर्मी वा पूर्वपरिचित सैनिक अफसर छलाह. तें, ओतुका जीवनमें हमरा लोकनि तेना मीलि गेलहुं , जेना पानि में चीनी मीलि जाइछ.
पोखरा नेपालक सब सं लोकप्रिय पर्यटन स्थल आ जलवायुक हिसाबें सब सं अनुकूल शहर थिक. ताहू पर मणिपालकेर कैंपसकें अनेक अर्थमें विशिष्ट कहि सकैत छियैक. स्टाफ क्वार्टरक स्थान पर ओतय  जं होटल वा  रिसोर्ट होइतैक तं अवश्ये प्रीमियम बूझल जाइत. आंखिक आगाँ कल-कल बहैत सेती नदी आ दूर क्षितिजपर आकाशकें बरछीक नोक -जकां  छेदैत  अन्नपूर्णा पर्वत शिखर, कखनो केवल कठोर पाथर, कखनो श्वेत धवल, हिमाच्छादित. समतल-सन भूमि आ बुझबा योग्य भाषा पोखराक अतिरिक्त गुण कहि सकैत छियैक.
सेनाक जीवन निर्धारित लीक पर चलैछ, regimented होइछ. यूनिफार्मकेर अलावा, कार्यपद्धति, जीवन-शैली, अनुशासन, आ सामाजिक मेलजोल सब किछु अनिवार्यतः एकरूपताक  निर्बाह करैछ. एहि सं कखनो काल स्वाभाव सं स्वतंत्र मनुष्यकें मोन उबियायब उचिते. सिविलियन जीवन में एहन कोनो बाध्यता नहिं, वा सरकारी-सेवामें लोक एहि बाध्यताक परबाहि नहिं करैछ. नौकरी करू . बांकी सब किछु अपने निर्धारित करू. अस्तु, लम्बा सैनिक जीवनक बाद खूजल हवामें श्वास लेब ककरा ने नीक लगतैक ! शरीर पर सं एकरंगा ओलिव-ग्रीन उतरि गेल छल. पोखराक अनुकूल जलवायुमें रंग-बिरंगक मनोनुकूल कपड़ा,कोट, टाई, स्कार्फ पहिरबाक-ओढ़बाक मनोरथकें नीक सं पूरा कयल. संगहि एतय पेंशन-पेइंग ऑफिसक परिसर में पोस्टेड भारतीय सैनिक अफसर आ स्थानीय नेपाली सैनिक अफसरक संग नियमतः मेल-जोल सेनाक संग सूत्रकें  सेहो बन्हने रहल.
संयोग सं हम जहिया मणिपाल कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेजमें योगदान करबाक हेतु पोखरा पहुँचल रही , ओतय हड़तालक कारण सब किछु ठप्प रहैक. कारण, डाक्टरक ऊपर रोगीक परिवार-जन  द्वारा प्रहार. डाक्टर भारतीय युवक रहथि. डाक्टर सबहक उपर रोगीक परिवार द्वारा हमला क ई पहिल घटना नेपालक अनेक भाग में आगाँ चलि कय आम भ गेल. आब तं भारत में बिहार सं ल कय केरल धरि ई एकटा विकट समस्याक रूप ल लेने अछि.
मणिपाल कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज नेपाल में भारतक एकटा बड़का निवेश थिक . ई संस्था सैकड़ो नेपालीकें जीविका प्रदान करैछ. किन्तु,  2007 धरि मेडिकल टीचिंग में सब स्तर आ विभागक शिक्षक नेपालमें उपलब्ध नहिं छलाह. फलतः, सीनियर पोजीशन में अधिकतर फैकल्टी भारतीय रहथि. एहि म सं बहुतो अनुभवी , कुशल आ आदरक पात्र रहथि, तं, किछु मात्र वयस आ प्रोफेशन में सीनियर. एहि सं भारतीय आ नेपाली फैकल्टीक बीच मतभेद सं बेसी स्टाफक स्तर पर किछु युवक नेपाली फैकल्टी लोकनि भारतीय लोकनिक प्रति विचार आ व्यवहारमें  यदा–कदा  हताशा प्रदर्शित करथि ; पहिले दिन पहिले भेंट में हमरो विभागाध्यक्ष स्वतः हमरा लक्ष्य क कय बाजल रहथि, ‘पता नहीं, इंडिया से आर्मी वालों को क्यों बुलाते हैं !’. माओवादी विचारधारा आ पार्टी सं जुड़ल किछु युवक लोकनि तं संस्था, प्रशासन आ भारतीय शिक्षक लोकनिक प्रति दुर्व्यवहारकें अपन दिनचर्याक हिस्सा बना नेने रहथि. किन्तु, इहो दुर्व्यवहार सबहक प्रति नहिं रहैक. हमरा सं सत्यतः, कहिओ केओ अनादर सं गप्प नहिं केलनि, से सत्य थिक. किछु नेपाली युवक फैकल्टी लोकनिक ई व्यवहार प्रायः अपन अनुशासनहीनताकें प्रशासनक काररवाई सं बंचयबा ले रहनि. यद्यपि, प्रशासन फैकल्टीक अनुशासन दिस तं प्रत्यक्षतः ध्यानो नहिं दैत छलैक. तथापि, हिनका लोकनिक संख्या थोड़ रहनि; सौ-डेढ़-सौ डाक्टरक बीच  एहन डाक्टर चारि वा पांच सं बेसी नहिं छल हेताह. तथापि, हिनका लोकनिक ई व्यवहार  अनुशासनहीनताकें बल तं देते छलैक, अस्पतालक काज कें सेहो यदा-कदा बाधित क दैत रहैक.  किन्तु, व्यक्तिगत स्तर पर दिन-प्रतिदिन क काज में हमरा लोकनि कोनो बाधाक अनुभव नहिं करैत रही. छात्रक अनुशासनकें कालेज सख्ती सं लैत छल. कालेज आ यूनिवर्सिटी प्राइवेट छलैक. विद्यार्थी अपन पढ़ाई अपने फाइनेंस करैत रहथि. यद्यपि, नेपाल सरकारक अनुशंसापर किछु प्रतिशत सीट कम दाम पर नेपाली नागरिक लोकनि ले सुरक्षित छलनि. आरम्भमें अधिकतर छात्र भारत, श्रीलंका, आ नेपालक रहथि. तें, छात्रक हडताल आ धरना-सन शब्दसं लोक अपरिचित छल.पछाति जखन मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडिया अपन मंजूरी वापस ल लेलकैक तं भारतीय छात्रक संख्या कम होइत गेलैक. छात्रक विपरीत स्टाफ लोकनिक हेतु हडताल-आ धरना सोहाग-भाग रहनि. मुदा, भारत हो वा  नेपाल डाक्टरी संस्थाक हडतालकें समाजक सहयोग नहिं भेटैत छैक. कारण, समाजकें एहि सं असोकर्य होइत छैक.
मणिपाल संस्थाक रूप में  भले नेपालमें भारतीय निवेश थिक. तथापि, तकर लाभ भारतकें किएक भेटौक. नेपाल-सन छोट देश एखन वैश्वीकरणक अर्थ केवल अपन वस्तु-जातकें विदेश में बेचबाक अवसर धरि बूझैत अछि. भारतसं सेहो आम नेपाली लोकनिकें एकदिसाह लाभक अपेक्षा रहैत छनि, से बुझबामें आओत . भारतक प्रति  इर्ष्या एतुका जनता सं बेसी बामपंथी राजनीति में सक्रिय सदस्य आ नव उद्योगी लोकनि में परिलक्षित होइछ, जे नेपालमें विदेशी, माने भारतीय, औद्योगिक निवेशक बाट निरंतर बाधित करैछ. एकर विपरीत चीनी निवेशक प्रति एहन जनाक्रोश अभावृत्तिए भेटत. ई चालि  एतुका राजनितिक विशेषता छियैक. एहि सं नेपालकें लाभ होइत छैक वा हानि से नेपाली सं नीक-जकां अओर के बूझि सकैछ ! नेपाली राजनितिक ई चरित्र, आ कखनो काल भारत सरकारक दंभ, भारत नेपाल सम्बन्धकें कखनो नेपाल–चीन वा पाकिस्तान-चीन सम्बन्ध-जकां संशय-मुक्त नहिं होबय देलकैक अछि. भारत- नेपाल सम्बन्धक ई विकृति 2014 में नेपाल में आयल भयानक भूकंपक पछाति भारतक तत्काल आ अभूतपूर्व  सहायता, आ नेपालक संविधानक लागू हेबाक पूर्वक भारतक असहयोग, दुनू समयमें प्रत्यक्ष भ गेल छल. सम्भव अछि, पछिला किछु वर्षमें नेपालमें मेडिकल कॉलेजक आ डाक्टरक बढ़इत  संख्याक कारण आब ओतय  भारतीय मेडिकल टीचरक आवश्यकता नहिं हो आ नेपाली लोकनिकें बाहरी व्यक्ति कें डाक्टरक रूप में रोजगार देबाक बाध्यता नहिं होइनि. किन्तु, एहि सं भारत नेपालक बीच आ ओतुका टीचिंग–अस्पताल सब में सौहार्द्रक वातावरण में  कतेक वृद्धि भेलैये कहब कठिन. तथापि, दिन-प्रतिदिन कार्यमें  हमरा लोकनि कें कोनो बाधा नहिं होइत छल. ओहुना मणिपालमें ओतय रोगीक संख्या सीमिते रहैक. एहि सं छात्रक पढ़ाईमें कनेक असुविधा तं अवश्य होइत रहैक , किन्तु, फैकल्टी लोकनिककें  पढ़बा लिखबाक असीमित समय भेटनि. तथापि, लेख व पोथीक प्रकाशनमें ओतुका शिक्षक लोकनिक योगदान नगण्य रहनि. तकर विपरीत एखन भारतमें विश्वविद्यालय आ कालेज सबहक उपर नेशनल एक्रेडिएशन कौंसिलक दवाबमें फैकल्टी लोकनिपर वैज्ञानिक लेख आ पुस्तक लिखबाक आ प्रकाशित करबाक अभूतपूर्व दवाब देखबामें आबि  रहल अछि. कारण, भारत सरकारक मानव –संसाधन विकास  मंत्रालय निर्धारित मानदण्डक आधारपर  कालेजक उपलब्धिक लेखा-जोखा आ वर्गीकरण  वर्गीकरण करैछ  आ ओकरे आधारपर छात्रलोकनि  कालेजक चुनाव करैत छथि.  कालेज सब कें सरकारी अनुदान, जं सरकारक इच्छा हेतैक, तं सेहो ओही आधारपर भेटतैक. मणिपाल कालेजमें बाहरी फैकल्टी द्वारा लेक्चर, निरंतर मेडिकल शिक्षा (CME ), वर्कशॉप इत्यादि बहुत थोड़ होइत छलैक कालेज में मेडिकल एजुकेशन यूनिट नहिं रहैक . अर्थात, कालेजमें  छात्रक पढ़ाई  पर्याप्त सुविधा छलैक. किन्तु, कालेज स्नातकोत्तर छात्रक पढ़ाई, आ उत्कृष्ट एकेडेमिक वातावरणक तराजू पर झूस पड़ैत छल. यद्यपि, भूमि, भवन आ आधारभूत संरचनामें नेपालक कोनो मेडिकल कालेज बराबरी नहिं क सकैत छल.
पोखरामें सामाजिक वातावरण हमरा लोकनि ले अनुकूल छल. फैकल्टी कॉलोनी में सब कें एक दोसरा सं जुड़ाव रहैक ; लगभग तीस टा परिवार तं भारतीय सैनिके अफसर लोकनिक रहनि. एकर अतिरिक्त भारत सरकारक रक्षा मंत्रालयक पेंशन पेइंग कैंप परिसर, अध्यापन आ विभिन्न व्यवसायसं जुड़ल भारतीय समुदाय आ स्थानीय नेपाली बुद्धिजीवी, सैनिक अफसर, आ व्यवसायी , सब सं हमरा लोकनिकें सामाजिक स्तर पर जायब-आयब छल. भारतक शहर आ महानगरमें एहि सामाजिकताक अभाव आब  हमरा लोकनि कें खटकैत  अछि ; पछिला किछु वर्ष पूर्व एतय पांडिचेरीमें कैंपस पर लम्बा बीमारीक बाद एकटा प्रोफेसरक मृत्यु भ गेलनि. किन्तु, स्थानीय पड़ोसी- शिक्षक समुदाय - एहि सं जाहि रूपें निरपेक्ष रहल से हमरा लोकनिक हेतु नव अनुभव छल. पोखराक सामजिक जीवन में हमरालोकनिक जुड़ावक एकता अओर कारण छल. हमरा लोकनि नेपाली भाषा बजैत आ बूझैत छी. हमर पत्नीक नेपाली सुनि कय तं हमर सहकर्मी प्रोफेसर सचेत श्रेष्ठ कहलखिन,’ you speak like one of us’ ( अहाँ तं हमरे लोकनि-जकां बजैत छी !) एहि सं हमरा लोकनिकें सामाजिक मेल-जोलक आलावा हाट-बाजारमें सेहो लाभ होइत छल. किछु स्थानीय नौकर-चाकरमें इहो धारणा रहैक जे हमर पत्नी, ‘गुरुंग’ छथि. आब भ सकैत अछि, ओतहु सामाजिकताक ह्रास भेल होइ; इन्टरनेट, फेसबुक आ व्हाट्सएप्प तं विश्वव्यापी अछि. किन्तु, एकर दुष्प्रभाव जतेक बेकार लोक पर भेलैये ओतेक प्रायः रोजगार में लागल लोक पर नहिं. यद्यपि, फेसबुक आ  व्हाट्सएप्पक उपयोग तं व्यापारहुक क्षेत्रमें होइते छैक.
मेडिकल एडूकेशन, आने तकनीकी शिक्षा जकां नियामक संस्था द्वारा निर्धारित परिधिक अन्दर काज करैछ. भारत आ नेपाल में मेडिकल कौंसिल समय-समय पर मेडिकल कालेजक निरिक्षण कय  ई सुनिश्चित करैछ जे कौंसिल द्वारा निर्धारित  मानदण्डक उल्लंघन तं नहिं भ रहल अछि. एहि प्रक्रियामें मानदण्डक उल्लंघनक परिस्थितिमें  कौंसिलकें मेडिकल कॉलेज सब पर काररवाइ करबाक  अधिकार छैक. एहि अधिकारक अंतर्गत कौंसिल कोनो खास कालेज में छात्रके भर्ती करबा पर रोक लगा सकैछ, वा प्रति वर्ष भर्ती हेबा बला छात्रक संख्याकें कम क सकैछ. कालेज सब एहि सं  डराइत अछि. कारण, विद्यार्थी द्वारा जमा कयल फीस प्राइवेट मेडिकल कालेजक आमदनीक मूल श्रोत थिक ; भारत वा नेपाल में आम जनताकें एखन धरि ई पसिन्न नहिं जे प्राइवेट वा सरकारी अस्पतालमें चिकित्साक लेल टाका दी. चिकित्सामें निरंतर उच्च तकनीकक समावेश आ नियामक संस्था लोकनिक द्वारा बहाल कयल नव नव मानदण्डक कारण  दिनानुदिन चिकित्साक खर्चमें वृद्धि होइत एलैये से सोझे समाजक दृष्टिपर नहिं अबैत छैक. अस्तु, मेडिकल कौंसिल द्वारा कालेजक सीट घटायब  कालेजक  अर्थ पर सोझे प्रहार साबित होइत छैक. अतः कालेज सब अस्पतालक आधारभूत संरचना आ उपलब्ध सुविधा सबहक विषय में अनेक असत्य केर शरण लैछ, जकरा कौंसिल अपन विवेकक अनुकूल स्वीकार वा अस्वीकार करैछ. भारत में लगभग सब नियामक संस्थाक एहने हालत  छैक. तें कालेज सबहक द्वारा तथ्यकें तोडब मरोडब, मनमाना  आंकड़ा प्रस्तुत करब, मेडिकल कौंसिलकें भरपूर चढ़ाबा  चढ़ायब ककरो सं नुकायल नहिं . ई नेपाल आ भारत में  हमरा हेतु नव अनुभव छल. यद्यपि, एतेक कहब असत्य नहिं होयत जे मणिपालमें एकर संस्कृति नहिंए–जकां छलैक . आब भारतमें जे देखैत छियैक ताहि सं तं ककरो आंखि खुजि जेतैक. सुनैत छी, भारतीय मेडिकल कौंसिलक चेयरमैन, डाक्टर केतन देसाईक घरमें छापाक दौरान घरक देबाल में मात्र  डेढ़ टन सोना भेटल छलैक. ई जं सत्य नहिओ होइक तं, एतबा तं सर्वविदित अछि जे डाक्टर केतन देसाई पंजाबक एकटा होटल में घूसक सवा करोड़ टाका संग पकडायल छलाह आ कतेक मास धरि जेल में रहथि. आब मोदी सरकार मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इंडियाक कपाल-क्रिया केलनि, तं, नेशनल मेडिकल कौंसिलक पौ बारह हेतैक. सिविलियन जीवन ई पहलू सं हमरा व्यक्तिगत तौर पर कोनो नोकशान  नहिं. किन्तु, एहि सब कें देखि हमर मोन यदा-कदा विचलित  होइत रहैत अछि.
भारतमें आर्थिक उदारीकरण अयबासं पूर्व भारतमें सब कथूक दोष कोटा-परमिट राज पर मढ़ल जाइत रहैक. माने, घर बनेबाले सीमेंट चाही वा भोज करबाले चीनी चाही सम्बन्धित अफसर सं ( जं भेटि गेलाह, तं ) परमिट उपर करय पड़त. आ से आसान नहिं. किन्तु, ओहि युगक अंतक पछातियो समाजक ओहि क्षेत्र पर जाहि सं सब सं बेसी काला धनक उपार्जन होइछ ,माने मेडिकल आ तकनीकी आ स्कूली शिक्षा उद्योग, तकरा सबहक उपर कार्यरत  नियामक संस्था द्वारा कोटा परमिटक व्यवस्था  एहन कामधेनु थिक जे कहियो नहिं मरत. आ एहि सब पर केवल राजनितिक दल आ राजनेता राज करैत छथि. तें, एखन कोटा-परमिट राजक अंत भ गेलैये, हम ताहि सं सहमत नहिं. हं, कोटा-परमिट द्वारा सौ-दू सौ टाका असूलीक बदला आब राजनेता लोकनि सोझे सैकड़ा आ हज़ार करोड़में टाका उगाही करैत छथि.कांग्रेस सरकारक पराजयक पाछू एहि उगाहीक आरोप रहैक. वर्तमान सरकार द्वारा आनल गेल एलेक्टोरल-बांड सेहो टाका उगाहीक नव व्यवस्था थिक से गत लोकसभा चुनाव में तखन प्रमाणित भ गेल जखन ई गप्प प्रकाश में आयल जे बैंक द्वारा जारी सम्पूर्ण  एलेक्टोरल-बांड म सं नब्बे प्रतिशत बांड सोझे सत्ताधारी पार्टीक खातामें चल गेल ! एहि पारक जीवन में इहो हमरा सोझे प्रभावित नहिं करैत अछि. मुदा, एहि सबहक लक्षण हमरा आसपास देखबामें नहिं अबैछ से कोना नहिं कहब.
नया भारत -New India- में नव की छैक से कहब कठिन. किन्तु, नया शिक्षा नीति, नव National Medical Commission एहन क्षेत्र थिक जकरा सं हम आ हमर छात्र लोकनि सोझे प्रभावित होइत छथि. एहि में जे किछु प्रत्यक्ष देखबा में अबैछ ताहि में दक्षता पाछू आ धन आगू भ रहल अछि. National Institutionl Ranking Framework आ National Assessment and Accrediation Council कें संतुष्ट करबाक हेतु राता-राती नव बाज़ार ठाढ़ भ गेले. एहि बाज़ारमें जहिना खरीददार बौआ रहल छथि, तहिना बिक्रेता स्कूल-कालेजक व्यवस्थापक/ प्रशासकक  कार्यालयक बाहर पतियानीमें ठाढ़ छथि.
आब बंगलोर आ दिल्ली में राताराती एहन कंसलटेंट/ कम्पनी ठाढ़ भ गेले जे कालेज आ विश्वविद्यालयकें एहि नियामक संस्था द्वारा निरीक्षण सं पूर्व सलाह आ सहायता द सकैछ. जे थीसिस प्रकाशित नहिं भेल अछि ओकरा प्रकाशित करबा सकैछ. फैकल्टी सं पुस्तक लिखबा सकैछ. विद्यार्थीकें अनुसन्धानक विषय चुनबामें निर्देशन द सकैछ. फल भेल जे नियामक संस्था लोकनिक अवश्यकता पूर्तिक हेतु  शिक्षकक काज सेहो outsourced क सकैत छी ! केवल टाका चाही. जे संस्था अपन प्रयास आ टाकाक बलें अपन व्यवस्था,सुविधा, आ उपलब्धिकें सही तरीका सं देखयबा में असफल भेलाह हुनका पटना विश्वविद्यालय जकां B ग्रेड भेटतनि. आ कतेको विश्वविद्यालय  जन्मसं पहिनहिं प्रसिद्दकेर कोटि में आबि  जायत. कतेको नवोदित मेडिकल कालेज में प्रतिवर्ष 250 विद्यार्थी भर्ती हेताह आ दरभंगा मेडिकल कालेज-सन 100 साल पुरान कालेजक पचास साल पुरान 150 सीट घटि कय 90 भ जेतैक. कारण, सरकारी कालेजक ने केओ माय-बाप आ ने कालेजक सीट घटबासं प्रभावित सामान्य जनताक ककरो परबाहि. एहि ले ने कालेजक प्राचार्य, ने  मेडिकल एजुकेशन डायरेक्टर सं केओ  इस्तीफा मंगतनि, आ  ने मुख्यमंत्री इस्तीफा देताह ! सम्भव अछि, अगिला किछु वर्षमें सरकार एहू सब बीमार कालेज सबहक व्यवस्थाके ठीकापर देबाले निविदा आमंत्रित करय !!  आ ठीकेदार शिक्षक लोकनिकें बहाल करबाले ठीकेदार निविदा आमंत्रित करथि !!!

मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान

कीर्तिनाथक आत्मालापक पटल पर 100 म  लेख   मैथिलीकें जियाकय कोना राखब: समस्या आ समाधान  कीर्तिनाथ झा वैश्वीकरण आ इन्टर...

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