Sunday, January 19, 2020

मैथिलीमें लिखबाक औचित्य आ चौराहा पर मूर्ति स्थापनाक सम्भावना

      

मैथिलीमें लिखबाक औचित्य आ चौराहा पर मूर्ति स्थापनाक सम्भावना

पढ़बे-जकां लिखब सेहो व्यसन थिकैक. हं, जे जीविकोपार्यनले लिखैत छथि, से व्यक्ति एकटा फूट श्रेणीक व्यक्ति थिकाह. किन्तु, जिनका लिखबाक व्यसन छनि, तथापि हुनकर लिखल केओ पढ़इत नहिं छनि, ओ ककराले लिखैत छथि ? हमरा-सन मैथिली लेखक जनिकर जीविका डाक्टरी आ अध्यापनपर निर्भर छनि, तनिका प्रसिद्धि आ अर्थ दुनू अंग्रेजीमें लिखलासं होइत छनि. मैथिली लेखनसं फ़ुरसतिमें समय भले बीति जाइनि, किन्तु, व्ययसं के बंचओतनि. चलू, एतबो धरि ठीक. मुदा, सोचैत छी, अपन हानिक पर्यन्तो, हमरालोकनि मैथिलीमें लीखिकय किनकर उपकार करैत छियनि ! इएह एहि लेख केर विषय थिक.
आब एहि विषयपर कनेक खुलिकय गप्प करी. किन्तु, आगू बढ़बा सं पूर्व एतबा धरि कहिए दी जे एहन विचार हमरा मन में किएक आयल. असलमें हमर मैथिली लेखन नितान्त अनियमित अछि. कारण, हम ने कोनो स्तम्भकार छी, जनिका ‘डेडलाइन’क दवाब रहैत छनि, आने, कर्नल रंजीत, इब्ने शफ़ी वा केन फोलेट-सन जासूसी कथा-लेखक जनिकर कथाक रहस्यक प्रतीक्षामें पाठकलोकनिक  नीन नहिं होइत छनि. फलतः, चालीस सालमें हमर केवल चारिए टा पोथी छपल अछि. ततबे नहिं, जं, लिखल आ बिनु छपल सबटा पन्ना सबकें समेटिओ ली तं एखन केवल दू वा तीन-टा पोथीक सामग्री जमा कय सकब. किन्तु, समस्या ई अछि से एतबो थोड़ पोथीक प्रकाशनसं, लगैत अछि, जक-थक पड़ल पोथीक बंडल सब घरकें छेकने अछि. आब, जे लोकनि दस वर्षमें पैंसठि टा पोथी लीखि लैत छथि, हुनकर तं गप्पे नहिं हो. किन्तु,  जे लेखक लोकनि ताहि सं कमो लिखने छथि, सम्भव अछि, तनिको घरमें पोथी रखबाक समस्या अवश्ये हेतनि.
आब हम अपन गप्प करी. छपल पोथीसं जे स्थान घरमें अजबाडि अछि, तकरा खाली करबाले एके टा उपाय सूझैत अछि: छपल पोथीकें मुफ्तमें बांटि दिऐक. किन्तु, ताहू में समस्या अछि. हम  पांडिचेरिमें रहैत छी. कतबो प्रयास करब तं एक दर्ज़न सं बेसी मैथिली पढ़निहार नहिं भेटताह. बंगला सहित आन सब भाषा-भाषीकें तं जखन मैथिलीक चर्चा होइत छैक, मैथिलीक परिचयमें ततेक भाषण देबय पड़ैत अछि, जे मैथिली जं अपन मातृभाषा नहिं होइत तं एतेक कष्टों नहिं करितहु ! कखनो सोचैत छी, डाकक खर्च वहन कय मुफ्तोमें पोथीकें डाक सं पठा दिऐक, पोथी बिलहि दिऐक. किन्तु, व्हाट्सएप पर फ्री अंतर्राष्ट्रीय फ़ोन कॉलक जमानामें आब डाकपिउन सेहो गामक फेरी किएक लगओताह ! चलू, पोथी रद्दीओ में बेचि दितिऐक. किन्तु, आब तं मशाला-मरचाई सेहो पुड़ियामें नहिं बिकाइत छैक. छोट किताबक पन्नासं ठोंगा तं बनतैक नहिं.  2000 सं ल कय एखन धरि कतेको पोथी मुफ्तमें बिलहल.  वर्ष 2017 में छपाओल ‘कुरल’ मैथिली सेहो खुलिकय बिलहल. कतेको गोटे तं खूब प्रशंसा कयलनि. एकटा सम्पादक तं व्हाट्सएप्प पर इहो लिखलनि, ‘महत्वपूर्ण काज’. किन्तु, एखन धरि हुनकर पत्रिकामें  दू वर्षमें दू पाँतिओक पोथी-परिचय नहिं आयल. भाग्यवश प्रशंसामें एकटा समीक्षक इहो लिखि गेलाह जे ‘कुरल मैथिली’, प्रत्येक मैथिली-भाषीक घर में हेबाक  चाही. मुदा, हुनको अनुशंसापर पोथीक जमा बंडलक आकारमें कोनो परिवर्तन नहिं भेल.
सत्यतः, हमर शुभचिंतक लोकनिक संख्यामें थोड़ नहिं अछि.  तें, जनिका जे उचित फुरलनि, सुझाव आ सम्मति देलनि. मुदा, केओ पोथी नहिं किनलनि. ओहुना मित्र लोकनिकें गाछी-कलममें फडल आम आ छपाओल पोथी पर अधिकार रहिते छनि. सत्य कहैत छी. एक शुभचिंतकक सलाह मानैत, फेसबुक आ व्हाट्सएप्प पर चौबीस घंटाक चक्रमें, भिन्न-भिन्न समय पर, हफ्ता भरि सब कद्रदान सबसं  पोथी  किनबाक निवेदन करैत रहलहु. फल : निल बट्टे सन्नाटा ! तें, हम आब अपन गप्प छोड़ी.
किछु एहनो लेखक छथि जे गंभीर वैज्ञानिक, साहित्यिक आ सामाजिक लेख लिखैत छथि. किन्तु, हुनको लोकनिक स्थिति एकरंगाहे छनि.  बेचारे, भरि-भरि राति जागि संदर्भ तकैत छथि, आ नव-नव विषयपर लेख लिखैत छथि. कम्प्यूटरपर घंटाक-घंटा काज करबामें आँखि लाल भ जाइत छनि. तैयो पोथी छ्पलापर ग्राहक देवताक दर्शन नहिं. मैथिल धिया-पुताकें मैथिली पढ़ल नहिं होइत छैक. जे पढ़ि लैत छथि, हुनका बुझबामें नहिं अबैत छनि. तें, गम्भीर विषयक लेखक लोकनिकें सेहो गोली मारू.

हं, किछु लेखक एहन अवश्य छथि जे पहिले बॉलपर छक्का मारबामें सफल भ जाइत छथि. पहिले पोथीपर बड़का पुरस्कार पाबि भरिए रातिमें प्रसिद्द भ जाइत गेलाहे. मुदा, हुनको लोकनि कें अर्थ-लाभ तं पुरस्कारेसं भेलनिए, पोथीक बिक्री सं नहिंए. किन्तु, एहि बीचमें छपाईक क्षेत्रक क्रांति एकटा नव आ बड़का समस्या ठाढ़ कय देलकैए- पुरस्कारक प्रतीक्षामें ठाढ़ सब वयसक लेखक लोकनिक लम्बा पतिआनी. पहिने लेखक- कवि लिखैत-लिखैत मरि जाइत छलाह, अपना आँखिए अपन पोथीकें छपैत नहिं देखि पबैत छलाह. आब तं कतेक लेखक पोथी लिखबा सं पहिनहिं पोथी छपबा लैत छथि. तें, मोट पुरस्कारक प्रतीक्षामें ठाढ़ सब वयसक लेखक लोकनिक पतिआनी दिनानुदिन पैघे भेल जा रहल अछि. आ लाइन जखन पैघ हेतैक तं लाइन में धक्का-धुक्की, धक्का-मुक्की हेबे करतैक. लोकक वयस तं बैसल नहिं रहतैक ! युवा-पुरस्कारक प्रतीक्षामें ठाढ़ युवाकें बूढ़ भ जयबाक भय सेहो उचिते सतबैत छनि.  मुदा, समस्या दोसरो छैक : जं, पुरस्कारक पछातियो पोथी नहिं बिकयलनि, तं , थोड़ किरायाक मकान वा छोट फ्लैटमें कोन-कोन पोथीक बंडल रखताह. सबहक पोथी तं बी. ए, एम. ए. कोर्समे नहिं आबि जेतनि. सुनैत छी, आब मैथिली विभागमें छात्रक संख्या सेहो दिनानुदिन थोड़े भेल जा रहल छैक. आ नहिओ होउक, बी. ए, एम. ए. पास करबाले पोथी पढ़बाक कोन काज. फलतः, लेखक पोथी भले कोर्समें प्रेस्क्राइब करबा लेथु, ताहि सं पोथी बिकयतनि तकर कोन गारंटी ! रहलाह प्रोफेसर लोकनि. तं, किछुु प्रोफेसर लोकनि तं अपनो लिखल नहिं पढ़इत छथि, से छपल सामग्री पढ़लासं प्रतीत होइते अछि. फलतः, एहि सब समस्याक कारण बुधिआर लोककें बुद्धि अवश्य भेलनिए. तें, पोथी-प्रकाशन आ मैथिली पोथीक बिक्रीक समस्याक सत्यक अनुभवक आबामें पाकिकय निस्सन भेल किछु tech-savvy साहित्यकार अग्रज लोकनि, हेबनिमें पोथी छपयबासं ‘तौबा’ केलनिए आ अपन कृतिकें केवल amazon kindle आ e-book- जकां छापि संतोष करब आरम्भ केलनिए. हमरा जनैत, ई नीक समाधान थिक. मुदा, एहि सं बांकी लोक विमोचनक गरम-गरम समोसा-जिलेबीक पार्टीसं बंचित भ जायत. विमोचन केनिहार विशिष्ट व्यक्तिक फोटो अखबारमें नहिं छपतनि. संगहिं, वैज्ञानिक विधाक विपरीति, साहित्य अकादेमी प्रायः एखन धरि ebook कें बुक केर श्रेणीमें नहिं गनैछ. एहि सं आन प्रतियोगी लोकनि भले प्रसन्न होथु, रचनाकार तं हुसिए जेताह ! तथापि, लेखक कें निःशुल्क पोथीक मूर्त रूप देखबाक मनोरथ तं पूर भइए जेतनि, से सत्य.  आ निरंतर जमा होइत पोथीक बंडल घर आ अलमारी सेहो नहिं छेकतनि. तथापि, मैथिली साहित्यक भंडार सेहो भरिते रहतैक.

हं, रहल ओहि रचनाकार लोकनिक गप्प जे अति गम्भीर आ कालजयी, किन्तु, समाजमें अपरिचित, रचनाक श्रृजनमें लागल छथि. हुनका लोकनिले हम एके टा गप्प कहब: ओ लोकनि एखन घटनाक अत्यंत करीब छथि (They are too close to the event !). तें, ओ लोकनि एकदम चिन्ता जुनि करथु. धैर्य राखथु. कोन ठेकान, भले समाज हिनकालोकनिकें बिसरि जाइनि, हिनका लोकनिक डिजिटल फोटो बिलाइओ जाइनि, विश्वास करथु, 500-1000-2000 वर्षक बाद विद्यापति आ भानुभक्त-जकां चौक-चौराहापर मूर्ति तं स्थापित हेबे करतनि. इहो संभव अछि, राजनेता आ पार्टी सब हिनका लोकनिक मूर्तिकें तिरंगा वा गेरुआ वस्त्र पहिरयबाक ओदौद सेहो करनि. ततबे नहिं, संभव अछि, एहन कालजयी कृतिक कवि आ लेखक अपने भले नास्तिक रहल होथु, परवर्ती समाज हिनक कपारपर त्रिपुण्ड चानन वा गंगौटक छाप सेहो क देनि !
अह-हा ! कनेक थम्हू ! थम्हू !! ई तं अद्भुत सम्भावना अछि ! आब तं हमरो लगैए, आब क्रमशः हमहूँ मैथिलीमें लिखबाक औचित्य सं सहमत भ रहल छी !!
ठीक ने ?           

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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