पं.
काशीनाथ झा का. ती., धौत परीक्षोत्तीर्ण
(1902-1944)
(1902-1944)
कीर्तिनाथ
झा
जाहि व्यक्तिकें
नहिं देखने हेबैक, तनिकर छवि कागतपर कोना उतारब ? ओहिनाने जेना विद्यापति ठाकुरक
फोटोमें हुनका झमटगर मोछ छनि, माथपर
त्रिपुण्ड चानन छनि. तिरुवल्लुवरक केश खोपाबान्हि माथपर रखने छथि. किन्तु, हम एहि
लेखमें जनिकर स्केच बनबय जा रहल छी, हुनकर कमसं कम एकटा फोटो हमरा लग उपर भेले. हं,
एहि लेखक विषय थिकाह पं. काशीनाथ
झा का. ती. उर्फ़ बलदेव जी. हमर माता आ काशीनाथ झाक छोटि, बहिन स्व. विन्देश्वरी
देवी, कहथि, ‘ भाई अपन नाम एहिना लिखैत रहथि: काशीनाथ झा का.ती.’ व्यवसायसं शिक्षक
आ रूचिसं स्वयं-शिक्षित वैद्य, स्व. काशीनाथ झा बीसम शताब्दीक तेसर-चारिम दशकमें कवि-कथाकारक
रूपमें परिचित रहथि.
आचार्य रमानाथ झा द्वारा सम्पादित आ 1941में प्रकाशित मैथिली
कविता संग्रहमें स्व. काशीनाथ झा का.ती. क तीन टा कविता- आशा, कर्तव्य आ सांध्यभ्रमण-
संकलित छनि. ओहि संकलनमें हिनक परिचयमें
आचार्य रमानाथ झा लिखैत छथि:
बामा सं दहिना :आचार्य रमानाथ झा, पं. काशीनाथ झा का. ती. | ( साभार: प्रोफेसर केदार नाथ झा, धर्मपुर ) |
धर्मपुर
( दरभंगा ) ग्रामवासी सहित्योपाध्याय प. काशीनाथ झा मिथिलाभाषामें लब्ध-दरभंगा-राजकीय-धौतप्रतिष्ठ
ओ मैथिलीक व्युत्पन्न कवि ओ लेखक छथि. ई अनेको काव्य नाटक ओ उपन्यास लिखने छथि जे
सब अमुद्रिते छैन्हि. एहिठाम उद्धृत तीनू कविता हिनक रचनाक दृष्टान्तस्वरूप देल गेल
अछि.
एतबे परिचयमें
आचार्य रमानाथ झा हिनका सम्बन्धमें लगभग सब किछु कहि देने छथिन. दुर्भाग्यवश, स्व. काशीनाथ
झाक एकोटा पुस्तकाकार कृति उपलब्ध नहिं छनि. अस्तु, मैथिली साहित्य सेहो हिनका
सम्बन्धमें बौक अछि. तथापि, हम अपन माताक मुंहें सुनल आ हिनकर कुल उपलब्ध कृतिक बलें
एहि लेखमें काशीनाथ झाक छवि बनेबाक प्रयासक
रहल छी. हिनक परिचितलोकनिकसं सुनल अछि ‘ काशीनाथ झा अद्भुत प्रतिभाशाली व्यक्ति
छलाह आ मैथिलीमें धुरझार लिखैत रहथि’. स्मरण
रखबाक थिक,अल्पायु व्यक्तिक हेतु प्रति परिवार आ समाजमें अनेरो मात्सर्य होइत छैक.
तें, आवश्यक ई जे ममत्वसं दूर, हिनके-सन, मैथिलीक
अनेक आरंभिक साहित्यकारलोकनिक विषयमें क्रमशः विलुप्त होइत सामग्रीकें एकत्र कय
मैथिली-साहित्यक यात्राकें समग्रता देल जाय. एहि दिशामें बहुतो गोटे पहिनहिंसं लागल छथि. तथापि, जतबे किछु संभव प्रयास
करी.
लोहना रोड स्टेशनक
निकट धर्मपुर गांओ अनेको मैथिली-साहित्यकार लोकनिक जन्मभूमि थिक. इहो विदित अछि एतुका
भिन्न-भिन्न परिवारक एकाधिक साहित्यकार मैथिली-संस्कृतक
श्रीवृद्धि कयलनि. साहित्यकार लोकनिक एहि
परम्परासं सम्बद्ध पं. काशीनाथ झा
का. ती., पण्डित मुकुंद झाक पहिल पुत्र आ स्व. किरणजीक जेठ भाई छलाह. किरणजी सहित
हिनक सब भाईक शिक्षा रजौर गाओं (आजुक कटियार हाट गाओं, अविभाजित भारतक दिनाजपुर
जिला, आ वर्तमान बंगलादेशक ठाकुरगांव जिला) में भेल छलनि. सुनल अछि, काशीनाथ झा ओतुके
बुद्धिनाथ इंस्टीच्यूट हाई स्कूलसं 1922 ई. में मैट्रिक पास कयने छलाह. पारम्परिक
पद्धतिमें पं. काशीनाथ झा साहित्य शास्त्री आ काव्यतीर्थक सेहो रहथि. एकर अतिरिक्त अध्यवसाय आ अध्ययनसं ई जाहि प्रकारक
विद्वता हासिल कयने छलाह तकर प्रमाण, शीर्ष
पण्डित लोकनिकें सम्मानित करबाक हेतु दरभंगाक महाराज आरम्भ कयल द्वारा
आयोजित ‘धौत परीक्षा’में हिनक सफलतासं भेटैत
अछि. 1941 में आयोजित एहि धौत-परीक्षाक अंतिम संस्करणक एक प्रतियोगी, पण्डित
दुर्गाधर झा अपन संस्मरण, ‘राज दरभंगाक धौत-परीक्षा’ में लिखैत छथि, जे धौत-परीक्षाक
एहि संस्करणक संपादक छलाह म. म. सर गंगानाथ झा आ ‘ओहि परीक्षामें मैथिली (विषय )
में उजानक अंतर्गत धर्मपुरक स्व. काशीनाथ झा उर्फ़ बलदेवजी प्रथम भेल छलाह’
जीविकाक हेतु
काशीनाथ झा किछु दिन रजौरहिंमें रहि राजा टंक नाथ चौधरी द्वारा स्थापित स्कूलमें मैथिलीक
प्रथम शिक्षकोक रूपमें काज कयलनि. पछाति किछु दिन ई कटिहारक महेश्वरी एकेडेमीमें सेहो
छलाह .किन्तु, ओहि युगमें अविभाजित भारतक पूर्णिया आ दिनाजपुर जिलामें मलेरिया, काला-जार
आ ब्लैक-वाटर फीवर (ज्वर) सं प्रति वर्ष असंख्य लोकक जान जाइत छलैक. रजौरमें पं.
काशीनाथ झा ब्लैक-वाटर फीवरसं ग्रस्त भेल
रहथि आ किरणजीकें सेहो काला-जारसं मरैत-मरैत बंचल रहथि, से किरणजीक मुंहें सुनल
अछि. अस्तु, रोग-व्याधि आ आन कतिपय कारणसं हिनका लोकनिक परिवार रजौर (दिनाजपुर) सं
गाम आपस आबि गेल छलनि. गाम आपस अयलाक पछाति काशीनाथ झा, कटिहारक जमींदार उमानाथमिश्रक जमींदारीमें,
पहिने कटिहारमें, आ पछाति मिथिलांचल स्थित बगहांत गांओक मौजेपर, किछु दिन तहसीलदारी
सेहो केने छलाह. पछाति, तहसीलदारी छोडि काशीनाथ झा सरिसब-पाहीक समीप भटपुरा गाममें
एकटा प्राथमिक विद्यालय स्थापित कय ओतहु शिक्षकक रूपमें काजतं केनहि रहथि, ई सरिसब
हाई स्कूल ( एखनुक लक्ष्मीश्वर एकेडमी)क सूत्रधारक रूपमें सेहो जानल जाइत छथि. यद्यपि
एहि तथ्यक आओर खोजबीनक आवश्यकता छैक. अध्यापनक अतिरिक्त पं. काशीनाथ झाक रूचि
वैदागरी आ ज्योतिषमें सेहो रहनि. हमर माता
कहथि, ‘ भाई पढ़बामें अत्यंत तेज रहथि, जतय जाथि, फस्ट आबथि. धौत-परीक्षामें महराज
साल-चद्दरि देने रहथिन. भाई वैदागरी सेहो करथि. वैदागरीमें हुनका नुनू भाई (किरणजी
) सं बेसी यश रहनि.’ हमर माता कहथि, ‘परिवारमें जनमैत धिया –पुताक सबहक टिप्पनि
सेहो भाई अपने बनाबथि. किन्तु, मरिए गेलाह बड थोड़ वयसमें. आ सेहो, ओ मरबासं बहुत
पहिनहिं लीखि गेल छलाह जे कोण दिन मरब. आ से सत्यो भेल.’ यद्यपि, किरणजी, स्व.
काशीनाथ झाक अपन मृत्युक समयक भविष्यवाणीकें आत्महत्याक प्रमाण बूझैत छलाह. सत्य
जे हो, काशीनाथ झाक मृत्यु करीब बयालीस
वर्षक वयसमें 1944 ई. भ गेल रहनि.
प्रश्न उठैछ, पैघ परिवार, बाढ़ि, गरीबी, आ रोगक भार उठबैत इकतालीस वर्षक आयु धरि काशीनाथ झा कतेक रचना कयने छल हेताह. सत्यतः, एकर सही अनुमान करब असम्भव अछि. किन्तु,आचार्य रमानाथ झा एतबा तं अवश्य लिखने छथि, ‘ई अनेको काव्य नाटक ओ उपन्यास लिखने छथि’. एहि उक्तिपर संदेह करबाक हमरा कोनो सशक्त आधार नहीं भेटैत अछि. तथापि, हमरा नहिं मोन अछि, किरणजी हमरा समक्ष स्व. काशीनाथ झाक कोनो पुस्तकाकार कृतिक चर्चा कहियो केने हेताह. तकर कारणों छैक. स्व. किरणजी अध्ययन आ नौकरी-चाकरीक कारण लगभग 1930 सं 1944 धरि अधिकाँश अवधि काशीमें आ किछु समय कलकत्तामें बितौलनि. संयोगसं,1944 में पं. काशीनाथ झाक असामयिक मृत्युक समय, स्व. किरणजीक काशीएमें रहथि. अर्थात्, लगैत अछि, पं. काशीनाथ झाक सक्रिय साहित्य-सृजनक अवधिमें किरणजी बेसी समय बाहरे रहलाह. तथापि, काशीसं प्रकाशित ‘मिथिला-मोद’ पत्रिकामें पं. काशीनाथ झाक सहभागितासं किरणजी परिचित अवश्य रहथि. किन्तु, पत्र-पत्रिकामें प्रकाशित पं. काशीनाथ झाक रचनाक अतिरिक्त हुनक पुस्तकाकार कृतिक सूचना किरणजीकें होइनि से सम्भव आ असम्भव दुनू. तें, किरणजी मुंहसं कहिओ ई नहिं सुनबामें आयल, जे भाई एतेक पोथी, वा अमुक-अमुक पोथी लिखने रहथि.
प्रश्न उठैछ, पैघ परिवार, बाढ़ि, गरीबी, आ रोगक भार उठबैत इकतालीस वर्षक आयु धरि काशीनाथ झा कतेक रचना कयने छल हेताह. सत्यतः, एकर सही अनुमान करब असम्भव अछि. किन्तु,आचार्य रमानाथ झा एतबा तं अवश्य लिखने छथि, ‘ई अनेको काव्य नाटक ओ उपन्यास लिखने छथि’. एहि उक्तिपर संदेह करबाक हमरा कोनो सशक्त आधार नहीं भेटैत अछि. तथापि, हमरा नहिं मोन अछि, किरणजी हमरा समक्ष स्व. काशीनाथ झाक कोनो पुस्तकाकार कृतिक चर्चा कहियो केने हेताह. तकर कारणों छैक. स्व. किरणजी अध्ययन आ नौकरी-चाकरीक कारण लगभग 1930 सं 1944 धरि अधिकाँश अवधि काशीमें आ किछु समय कलकत्तामें बितौलनि. संयोगसं,1944 में पं. काशीनाथ झाक असामयिक मृत्युक समय, स्व. किरणजीक काशीएमें रहथि. अर्थात्, लगैत अछि, पं. काशीनाथ झाक सक्रिय साहित्य-सृजनक अवधिमें किरणजी बेसी समय बाहरे रहलाह. तथापि, काशीसं प्रकाशित ‘मिथिला-मोद’ पत्रिकामें पं. काशीनाथ झाक सहभागितासं किरणजी परिचित अवश्य रहथि. किन्तु, पत्र-पत्रिकामें प्रकाशित पं. काशीनाथ झाक रचनाक अतिरिक्त हुनक पुस्तकाकार कृतिक सूचना किरणजीकें होइनि से सम्भव आ असम्भव दुनू. तें, किरणजी मुंहसं कहिओ ई नहिं सुनबामें आयल, जे भाई एतेक पोथी, वा अमुक-अमुक पोथी लिखने रहथि.
हमर मातासं एतबा
अवश्य कहथि, भाई भरि-भरि राति बैसिकय लिखथि. कएक लिखैत-लिखैत भोर भ’ जाइनि.’ ‘भाई बाईस टा किताब लिखने रहथि’. ओ इहो कहथि जे ‘ भाई रामायण सेहो लिखने रहथि.’ आ
ओ गौरवसं काशीनाथ झाक रामायणक किछु पद सेहो सुनाबथि. किन्तु, तकर चर्चा आन ठाम
कतहु नहिं भेटल अछि. संगहिं, ‘बाईस टा किताब’ सेहो कनेक बेसी अवश्य लगैत अछि. ततबे
नहिं, एहि अनुमानमें अशुद्धि हेबाक एकटा आओर कारण: हमर माता कुल एगारह वर्षक वयसमें
सासुर आबि गेल रहथि ! ओहि युगमें अर्थाभाव आ छपाईक असुविधासं बहुतो गोटेकें अपन
रचना छपायब सम्भव नहिं होइनि, से सर्वविदित अछि. तथापि, एतबा अवश्य जे, पं. काशीनाथ
झा मिथिला-मोद, आ भारती सहित ओहि समयक आनो पत्रिकामें लिखैत छलाह. पं. काशीनाथ झाकेर
मिथिला-मोदमें प्रकाशित रचनाक चर्चा, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालयमें पी.एच-डी.क
उपाधिक हेतु प्रस्तुत स्व. कैलाशनाथ झाक शोध-प्रवंधमें सेहो छनि. किन्तु, ओ शोध-प्रबंध
एखन हमरालग उपलब्ध नहिं अछि. तें, ओकर सम्बन्धमें किछु कहब असम्भव हयत. श्री महेन्द्रनाथ
झा द्वारा 1986 में स्व. किरणजी निर्देशनमें
सम्पूर्ण आ पी एच-डी उपाधिक हेतु ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगामें
प्रस्तुत, ‘उजान परिसरक विशिष्ट मैथिली साहित्यकारक कृतिक समीक्षात्मक अध्ययन’
नामक अप्रकाशित शोध-प्रबंधक किछु अंश काशीनाथ झाक व्यक्तित्व आ कृतित्व सेहो प्रकाश
दैत अछि. एहि शोध-प्रबंधमें किरणजी सहभागिता एहि कृतिकें प्रमाणिक आ प्रारंभिक
श्रोतक दर्जा दैत अछि. तें, काशीनाथ झा सम्बन्धी एहि दुनू शोध-प्रबंधमें उपलब्ध
सूचना प्रमाणिक थिक, से मानबामें कोनो दुविधा नहिं. एकर अतिरिक्त पं. काशीनाथ झाक एक पौत्रकें हम
हुनक पितामहक बंचल, अप्रकाशित कृतिक मूल श्रोत मानिकय चलैत छी. हुनक पौत्र लोकनि
कहैत छथि, जे हुनक घरमें उपलब्ध किछु प्रकाशित कृतिक अतिरिक्त हुनक घरमें निम्न दू
गोट अप्रकाशित कृति उपलब्ध छनि :
काशी
पंचशती ( पूर्वार्ध, उत्तरार्द्ध, आ परिशिष्ट)
धृतराष्ट्र
विलाप
एतबा अवश्य
जे पं. काशीनाथ झाक असामयिक मृत्युक कारण हुनक परिवारक आधार ध्वस्त भ गेल रहनि आ धिया-पुता
तेना बिलटि गेल रहथिन जे हिनक सबसं छोट बालक- कुशल- ‘गुदरिया’ भ’ गेल रहथिन. आर्थिक विपन्नताक एहि अवधिमें हिनक परिवार बहुत
दिन धरि सुल्तानगंज, भागलपुरक राजा कृष्णानन्द सिंहक सेवा में रहथिन. उपरसं बाढ़ि
ग्रस्त मिथिलांचलक असुरक्षित घर-आँगनसं पलायन आ दूर आन ठाम गुजर-बसरक परस्थितिमें घर-आंगन
तेना उजडि-उपटि गेल रहनि, जे पच्चीस-तीस साल धरि हुनक डीहो सुन्ने रहनि. एहन
परिस्थितिमें घरमें राखल पोथी-पतराकें जोगा कय राखब कतेक कठिन छैक, से सहजहिं बूझल जा सकैछ. पछाति, सत्तरिक दशकक आरम्भमें हुनक दू गोट बालक
लोकनि धर्मपुर आबि डीहपर घर बनबैत गेलखिन,जतय एखन हुनक तेसर पुत्रक बालकलोकनि रहैत
छथिन. एहना परिस्थिति तें, एखनहु काशीनाथ झाक किछुओ कृति पौत्रलोकनिक लग छनि, से अवश्ये
कृतिकें जोगाकय रखबाक परिवारक संकल्पक द्योतक थिक.
प्रश्न उठैछ
एहन परिस्थितिमें काशीनाथ झाक छवि कोना
बनाबी. तें, हम एतबे कहब जे हमरालग उपलब्ध सामग्रीक सहायतासं हम आइ स्व. काशीनाथ झाक पेन्सिल-स्केच बनबय बैसल
छी
; हुनक छविकें पूर्णताक संग प्रस्तुत करबाले जे सामग्री आ समय चाही,
जे हमरा लग नहिं अछि. तथापि,हमर उद्देश्य अछि, एतबोसं मैथिलीक साहित्यिक विकास-यात्राक
आरंभिक सैनिक लोकनिक कृतिक संकलनकें बल भेटैक आ खोजी व्यक्ति लोकनि आओर प्रयास करथि.
आब पं. काशीनाथ
झाक कृतिक चर्चा करी. पं. काशीनाथ झाक जे पहिल कथा हमरा अभरल तकर नाम थिक, ‘सतमाय’.
1937 में भारती नामक पत्रिकामें प्रकाशित ई कथा साहित्य
अकादेमी द्वारा प्रकाशित ‘मैथिली कथा शताब्दी
संचय’, 2010, में संकलित अछि. संकलनकर्ता थिकाह रामदेव झा आ इन्द्रकान्त झा. एहि
पोथीमें लेखकक परिचयमें मात्र एतबे अछि:
काशीनाथ
झा ( बीसम शताब्दीक आरम्भसं पांचम-छठम
दशक धरि विद्यमान ), धर्मपुर, लोहना रोड, दरभंगा (बिहार)I भारती (1937)क नियमित लेखक
‘मैथिली कथा
शताब्दी संचय’ में पं. काशीनाथ झाक रचनाकालक विवरण त्रुटिपूर्ण अछि. कारण, पं. काशीनाथ
झाक मृत्यु, करीब बयालीस वर्षक वयसक करीबमें, 1944 ई. में भेल छलनि. महेंद्रनाथ झाक
उपरोक्त शोध प्रबंधमें हुनक जन्म-मृत्यु आ
शिक्षासं सम्बन्धित सम्पूर्ण सूचना उपलब्ध अछि. तथापि, एहि परिचयसं पं. काशीनाथ झाक
‘ भारती’ पत्रिकाक नियमित लेखक हयबाक सूचना अवश्य भेटैत अछि. संभव अछि, भारती
पत्रिकाक उपलब्ध अंकक जांच-पड़ताल सं पं. काशीनाथ झाक आओर कृतिक संकलन भ’ सकय. एहि
संभावनापर काज संभव छैक. ततबे नहिं, ओहि युगमें छपैत वा हस्तलिखित आन-आन पत्रिकाक
संकलन आ दोहनसं पं. काशीनाथ झाक आओर लेख भेटबाक भेटय, से संभव.
एखन हमरालग पं. काशीनाथ झाक उपलब्ध रचना- कथा, न. न. रे. कं. (नरक नंदन रेल कम्पनी) आ सतमाय, आ चारिटा कविता- क समीक्षा करी.
कथा
न. न. रे.
कं. (नरक नंदन रेल कम्पनी)
न. न. रे.
कं. (नरक नंदन रेल कम्पनी) बाबू भोला लाल दास द्वारा सम्पादित ‘भारती’ नामक
पत्रिकाक 1937क वर्ष 1 अंक 9 में प्रकाशित व्यंग-कथा थिक. एहि कथाक शैली आ कथानक दुनू
समकालीन अछि. न. न. रे. कं. नामक कथामें स्वर्ग आ नरकक बीच बेरोक टोक यातायातक हेतु स्थापित नरक नंदन रेल कम्पनीक
स्थापनाक चर्चा अछि. एहि रेलसं स्वर्गमें
अवांछित लोकक प्रवेशकें रोकबाक हेतु, कठिन प्रक्रियाक द्वारा चुनिकय, टिकट चेकिंगक
हेतु, महात्मा बुद्ध, ईसा आ युधिष्ठिर-सन सत्यवादी आ इमानदार प्रहरी नियुक्त होइत
छथि आ द्वारि पर तैनात कयल जाइत छथि. किन्तु, अवांछित लोकसब बुधिबधियासं एहि विशिष्ट प्रहरीलोकनिकें
बुझा- सुझा कय उपहार देबामें सफल होइत छथि आ स्वर्गमें प्रवेश करैत अछि. ई कथा अवांछित लोकसबहक
स्वर्गमें अनाधिकार प्रवेशमें सफलताक एहि
प्रकरणक रोचक वर्णन थिक. ततबे नहिं, एहि कथाक अंत एक मनोरंजक विन्दुपर होइत अछि: अपन
काजमें विफल हयबाक कारण ई तीनू महोदय स्वर्गसं निष्कासित होइत छथि. से तं उचिते. किन्तु,
स्वर्गसं निष्कासनक पछाति, पृथ्वीपर आबि, ई तीनू गोटे उत्तर बिहारक वन्योद्धारक
नामें चंदा असूलैत स्वयंसेवी लोकनिक दलमें मीलि स्वयंसेवक बनि गेलाह, से जतबे
सांकेतिक अछि, ततबे, तत्कालीन बिहारमें व्याप्त भ्रष्टाचारपर कठोर प्रहार. एहि कथाक
प्रवाह आ शैली हास्य-सम्राट हरिमोहन झाक गल्पकेर स्मरणतं करबिते अछि, ई कथा समकालीन
पाठकहुकें हँसैत-हँसैत लोट-पोट कय देत. ई कथा पं. काशीनाथ झाकें सोझे सिद्धहस्त
कथाकार आ व्यंगकारक कथाकार श्रेणीमें बैसेबाक हेतु काफी अछि. हालमें ई कथा ‘मिथिला
दर्शन’में धरोहरक रूपें पुनः प्रकाशित भेले.
सतमाय
साझी परिवारमें सतौतहुसं कम वयसक सतमाय आ हुनक भाई, तथा सतमाय आ सतौत बेटा लोकनिक परस्पर व्यवहारक चारूकात बुनल एहि कथाक आरम्भ एकटा रोचक संस्कृत सूक्ति, ‘स्त्री रत्नं दुष्कुलादपि’सं होइत अछि !’ ई सूक्ति चाणक्य नीतिक निम्नलिखित श्लोकसं उद्धृत अंश थिक:
साझी परिवारमें सतौतहुसं कम वयसक सतमाय आ हुनक भाई, तथा सतमाय आ सतौत बेटा लोकनिक परस्पर व्यवहारक चारूकात बुनल एहि कथाक आरम्भ एकटा रोचक संस्कृत सूक्ति, ‘स्त्री रत्नं दुष्कुलादपि’सं होइत अछि !’ ई सूक्ति चाणक्य नीतिक निम्नलिखित श्लोकसं उद्धृत अंश थिक:
विषादप्यमृतं
ग्राह्यममेध्यादपि काञ्चनम्। नीचादप्यत्तमां विद्यां स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि।।
अर्थात् विषहुसं
अमृत ग्रहण करबाक चाही. मलहुपर पड़ल सोना ग्राह्य थिक. नीचहुसं विद्या उपार्जन करी
आ अधलाहो कुलसं स्त्री-रत्नकें आत्मसात
करी.
प्रायः
मनुस्मृतिमें सेहो एहि प्रकारक एकटा श्लोक
छैक:
श्रद्दधानः
शुभां विद्यामाददीतावरादपि ।
अन्यादपि परं धर्मं स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि II अध्याय 2, ॥ 238 ॥
अन्यादपि परं धर्मं स्त्रीरत्नं दुष्कुलादपि II अध्याय 2, ॥ 238 ॥
‘मैथिली
कथा शताब्दी संचय’ में ई कथा ‘भारती’ पत्रिकाक दिसंबर-जनवरी, 1938 लेल गेल अछि.
एहि कथाक, शैलीक समकालीन अछि. किन्तु, कथानक बीसम शताब्दीक पूर्वार्धक अछि. विषय
थिक- बहु-विवाह, पैघ, अशिक्षित, रोग-ग्रस्त परिवारक भीतरक समस्या, खींचा-तानी, आ स्वार्थ,
जाहिमें सतमाय, सतौत लोकनिकसंग व्यवहारमें संदेहक परिधिमें अबितो, अंततः, परिवारक रक्षकक प्रमाणित होइत छथि.फलतः, पुनः ‘स्त्रीरत्नं
दुष्कुलादपि’ चरितार्थ होइत अछि. हमरा जनैत जाहि युगमें ई कथा लिखल गेल अछि ताहि दृष्टिएं
एहन विचार जं क्रांतिकारी दृष्टि नहिं, तं,
आधुनिक अवश्य थिक . स्मरणीय थिक, लेखक बहुत दिन धरि बंगालमें पढ़ने रहथि. सुनल अछि,
ओ बांग्लाक किछु गद्यक मैथिली अनुवाद सेहो केने छलाह. अस्तु, हुनकर विचार आ
व्यवहारपर अपन संस्कारक संग बंगालक उदारवादी विचारधाराक प्रभाव सेहो होइनि से असम्भव
नहिं.
कविता
मंदोदरी विलाप
आ आओर तीन गोट कविता
एकावन टा
चौपाई युक्त रामायणक अनेक घटनापर आधारित, ‘मंदोदरी
विलाप’ नामक, , नितान्त पारम्परिक शैलीक तुकान्त, दीर्घ कविता, रावण-वधक पछाति मंदोदरीक
मनकथा थिक. एहि कवितामें दू गोट सुपरिचित मैथिली लोकोक्ति – ‘भाबी करय बुद्धिहुक
नाश’ आ ‘धरफूटैतौं लुटय गमार’ – क प्रयोग भेल अछि. एकर अतिरिक्त एहिमें कतेको शब्दक एहन वर्तनी, जेना, शूनल ( सुनल ),
यखने (जखने), रूषि (रूसि), शूनि ( सुनि), भाय (भाई), तौं ( तं ), करै (करय ), टिकै
( टिकय ), सड (संग), अछि, जे बीसम शताब्दीक पूर्वार्द्धमें प्रचलित छल. आब, ई
कविता पं. काशीनाथ झाकेर ओहि मैथिली रामायण अंश थिक जकर चर्चा स्व. विन्देश्वरी
देवी करैत छलीह वा ई स्वतंत्र दीर्घ कविता थिक , से कहब कठिन. प्रायः, ई कविता,
1937 में प्रकाशित पं. काशीनाथ झाकेर न. न. रे. कं. कथासं पहिलुक रचना थिक. कारण,
ओहि कथाक शब्द सबहक वर्तनी आ शैली उपेक्षाकृत समकालीन बूझि पड़ैछ.
एकर अतिरिक्त आचार्य रमानाथ झा द्वारा संकलित तीन गोट आओर कविता ' आशा', 'कर्तव्य' आ 'सांध्यभ्रमण' प्रोफेसर भीमनाथ झाक सौजन्य सं उपलब्ध भेले.
उपलब्ध रचनाक
आधारपर साहित्यकारक रूपमें पं. काशीनाथ झा
सत्यतः,
किछुए रचनाक आधारपर कोनो साहित्यकारक मूल्यांकन ओहने त्रुटि पूर्ण हयत, जेना, आन्हर
लोकनिक समूह हाथीक छूबि-छूबि हाथीक स्वरुपक
त्रुटिपूर्ण अनुमान केने छल. तखन, वृहत् खोजक आभावमें हमरा लग तत्काल कोनो उपायों
नहिं अछि. तें, हम एहि लेखमें साहित्यकारक नहिं, केवल हमरालग उपलब्ध हुनक उपरोक्त कृतिक
समीक्षा कय सकैत छी, जे निम्नाकित अछि :
1.
‘सतमाय’ कथाक रूपमें
अनूप नहिं अछि. किन्तु, एहि कथाक आरम्भहिंमें लेखक कथाक सार ‘स्त्री रत्नं दुष्कुलादपि’सं
द’ दैत छथि. एहि उक्तिकें सामान्य उद्धरण वा नारिक प्रति लेखकक दृष्टि दुनू बूझि
सकैत छी. मुदा, लेखकक दृष्टिक रूपमें एहि निष्कर्षक त्रुटिपूर्ण हयबाक संभावना छैक, से के नहिं मानत.
2.
न. न. रे. कं. (नरक
नंदन रेल कम्पनी) नामक व्यंग-कथा कोनो आने कथा-जकां समाजक दर्पण थिक. किन्तु, कथाक
शैली आ विषय-वस्तु पाठककें अन्त धरि बन्हने अवश्य रहैछ. ततबे नहिं, कथाक अंतिम पाँती
एकाएक एकटा सामजिक यथार्थकें, जे वस्तुतः समकालीनो भ सकैछ, तकरा पाठकक आँखिक सोझाँ
सोझे रेखांकित कय जाइछ.
3.
मंदोदरी विलाप पारम्परिक
कविता थिक, जाहिमें कल्पना तं छैक, किन्तु, कल्पनाक अतिरिक्त आओर किछु नवीनता छैक,
से नहिं कहि सकैत छी. संभव अछि, काशीनाथ झाक समयमें मैथिली कविताक ई शैली समकालीन
होइक.
4.
आशा, कर्तव्य आ सांध्यभ्रमण
कविता – कविताक विषय वस्तु नवीन नहिं. ‘आशा’ कविता पढ़िकय कतहु स्व. सुमनजीक
संस्कृतनिष्ठ काव्यक स्वाद प्रतीत भेल. किन्तु, शैली आ तुकबन्दीसं ई कविता सिद्धहस्त कविक कृति बूझि पड़ैछ:
संकटमें
जी जं दहलै अछि, अपनों लोक न घूरि तकै अछि, साहस दृढ़ता जखन तजै अछि, तखनहु तों चिरसंगिनी !
ढाढ़स दए नव पथ देखबै छह , आशे ! संकट-हरणी ll
‘कर्तव्य’
शीर्षक कविता वीररसक तीन गोट उदवोधन थिक. एहि कवितामें कतहु सं किरण जीक विजेता
विद्यापतिमें ‘ दाढ़ी- मोंछ न पुरुखक लच्छन’ सदृश कविता सं समानता प्रतीत होइछ.
देखू:
ढाढ़स बान्हु, ह्रदय करू थीर l
अंत अनंत रूप
धए आबओ, तें जुनि होउ अधीर ll
राखू सतत अपन
अबलम्ब, स्थापू निज जय-कीर्ति-स्तम्भ ,
रुधिर मांस मज्जास्थि
लगाकय ;
शत शत
सूर्य्य चूरिकए गूंड , गढ़ू सतत उज्वल ओ
चूड़ ;
देखय नभ सं
अमर शरीर ll
तेसर कविता ‘सांध्यभ्रमण’
साँझुक कालक वर्णन थिक जाहिमें कवि तत्कालीन दृश्यक अतिरिक्त बदलैत वयसक संग
दायित्वक भारकें सेहो रेखंकित करैत अछि. तथापि एहि कविताकें कविक सौन्दर्य-प्रेमक
प्रतीक कहि सकैत छियैक:
निशिगंधा तजलक अवगुंठन, मूढ़ मधुप रटइत
अछि वन वन ;
चतुर
पवन कए कए रस-चुम्बन, परिमलसं पाटय संसार l
श्रान्त जगतपर हिमकर वर्षण करथि सुधाकर शांत्युपचार
ll
5. एहि रचना सबहक परायणसं पं. काशीनाथ झा पारम्परिक कविक संग संग, सिद्धहस्त आधुनिक कथाकार प्रतीत होइत छथि.
5. एहि रचना सबहक परायणसं पं. काशीनाथ झा पारम्परिक कविक संग संग, सिद्धहस्त आधुनिक कथाकार प्रतीत होइत छथि.
आभार
1.
प्रोफेसर भीमनाथ झा आ डाक्टर अशोक कुमार मेहता जे आचार्य रमानाथ झा
द्वारा संकलित काशीनाथ झाकेर तीन गोट कविता उपलब्ध करओलनि.
2.
प्रोफेसर केदार नाथ
झा जे श्री महेन्द्रनाथ झा द्वारा 1986 में स्व. किरणजी निर्देशनमें सम्पूर्ण आ पी.
एच-डी उपाधिक हेतु ललितनारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगामें प्रस्तुत, ‘उजान
परिसरक विशिष्ट मैथिली साहित्यकारक कृतिक समीक्षात्मक अध्ययन’ नामक अप्रकाशित शोध-प्रबंधक
किछु अंश उपलब्ध करओलनि.
3.
श्री कौतुक रामन आ
श्री कोमल किसलय, पं. काशीनाथ झाकेर पौत्रलोकनि, जे अपन घरमें उपलब्ध पं. काशीनाथ
झा केर अप्रकाशित रचनाक सूची देलनि.
नोट:
1.
आशा अछि, भविष्यमें उपलब्ध पं.
काशीनाथ झा सम्बन्धी आओर सामग्री एहि लेखमें जोड़ल
जायत.
2.
जं पाठक लोकनिक घरमें
मिथिला मोद, भारती, वैदेही-सदृश पत्रिकाक अंक उपलब्ध होइनि आ उपलब्ध सामग्री देथि
तं मैथिली साहित्यक उपकार होयत.
बहुत सुंदर आ विलक्षण विवरण।एकरा आओर बढाउ आ हुनक कथा आ फोटो सहित भारती मँडन लेल सुरक्षित राखल जाय।लोहना रोडसँ लास वेगस काल्हि दिल्ली पठायब।देखि लेल अछि..
ReplyDeleteअनेक धन्यवाद.
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