कोकिल अंबहि लेत है, काग
निबौरी हेत
जो
जाको गुन जानहिं, सो तिहि आदर
देत ।
कोकिल
अंबहि लेत है, काग निबौरी हेत।।
ई कहावत सुनल तं छल, किन्तु, अनुभव नहिं केने रही. किन्तु, एतबा तं सुनल छल जे कौआ बड्ड बुद्धिमान होइछ. तखन कौआ निबौरी वा नीमक फल किएक खाइछ ? किन्तु, आब बुझबामें आयल निबौरी खायब सेहो कौआक बुधियारीए प्रमाणित करैछ. सत्यतः, बिनु चिखने निबौरीकें दूसि देब ओहने भेल जेना केवल जाति बूझि मनुष्यक अपमान करब ; माने, नीमक गाछमें फड़ल तं तीत भ’ गेल.अर्थात्, पूर्वाग्रह. तें, पूर्वाग्रह सं मुक्त हयबा ले प्रयोग करय पड़ैत छैक, वा लीक सं हंटि कय चलय पड़ैत छैक. कौआ सएह करैत अछि, आइ हमहूं सएह कयल.
करीब आठ वर्षक हर्षिताश्री हमर सहकर्मीक कन्या थिकी. अबैत जाइत हुनकासं
कोलोनीक आने सब बच्चा सब-जकां भेंट आ गप्प-सप्प होइछ. आइ टहलबा काल हर्षिता बाटक
कातहिंक टेनिस कोर्टमें भेटि गेलि. ओ कोर्टक भीतर आ हम लोहाक जालक बाहर सड़क पर रही.
कांच-पाकल फलसं झबरल नीमक गाछ तर ठाढ़ि हर्षिताक हाथमें एकटा चंगेरी आ ओही में नीमक
दू-तीन टा काँचफल छलनि. देखिते ओ हमरा ठाढ़
हेबाक संकेत केलनि आ हाथक चंगेरी हमरा दिस बढ़बैत कहलनि, ‘ एही म सं एकटा फल जालक छेद
बाटें दूर फेकू. ‘जं फल सोझे आगू गेल, तं,’ ओ नीमक गाछ दिस संकेत करैत कहलक, ‘एकटा
पाकल फल भेटत’. कोशिश कयल. हम पहिल प्रयासमें तं सफल नहिं भेलहुँ. किन्तु, हमर दोसर
प्रयाससं संतुष्ट हर्षिता नीमक झुकल डारि एकटा पीयर, पाकल फल तोडि तुरत हमरा
तरहत्थी पर राखि देलनि. आ हम ओही नेना जकां, ओत्तहि ओहि फल, निबौरीक, तत्काल सेवन कयल.
एतेक वयस, आ एखन धरि नीमक पाकल फल नहिं चिखने रही. आइ सेहो भ’ गेल; पाकल निबौरी सत्यतः
मधुर होइछ, से आइ बूझल, आ कौआक बुधियारी पुनः प्रमाणित भेल.
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