भूमिकाक आवश्यकता, स्वरुप, आ सार्थकता
साहित्य में
भूमिका लिखबाक परंपरा नव नहिं. मुदा, भूमिका लेखक अपनहिं लिखथि कि हुनक अपेक्षित- वरिष्ठ
वा कनिष्ठ- तकर कोनो एक रंग परम्परा देखबा में नहिं अबैछ. मुदा, भूमिका की थिक, भूमिका
आ समीक्षा में की अंतर छैक, आ पाठक कें भूमिकासँ की अपेक्षा करबाक चाही, वा होइत छनि, से हमरा
जनैत लेखक ले बूझब आवश्यक थिकनि. तें, एतय मैथिली में भूमिकाक स्वरुप, भूमिकाक आवश्यकता
आ सार्थकता, आ भूमिकाक, भूमिका लेखकक विश्वसनीयता पर प्रभाव पर विचार करब हमर
उद्देश्य अछि.
ऐतिहासिक काल
में जखन लेखक, ऋषि-मुनि एकान्तवास में पहाड़ पर, जंगल आ गुफा रहैत रहथि आ ग्रन्थ
लिखबा में हुनका लोकनिक जीवन बीति जाइत रहनि, ओहि परिस्थिति में ग्रंथकार कें , जं
ओ भूमिकाक आवश्यकताक अनुभव करथि तं, अपन कृतिक भूमिका अपने लिखबाक बाध्यता रहनि. पछाति
कोनो परवर्ती विद्वान – शिष्य वा पाठक- सेहो देर, सबेर कोनो-कोनो ग्रन्थक भूमिका लिखैत रहथिन.
ओ भूमिका परंपरासँ पोथीक अंगे जकाँ भए जाइत छल. तें, ग्रन्थक भूमिका लेखक/ कविक
अपन लिखल थिकनि कि आन विद्वानक से लोक
ग्रन्थ कें पढ़िए कए अनुमान करैत छल. हं, भूमिका में जं भूमिकाक लेखक अपन परिचय व्यक्त
केलनि तं बड्ड बढ़िया, अन्यथा भूमिका लेखकक परिचय सेहो अनुमानेक विषय रहि जाइत छल.
किछु उदाहरण पुरान
ग्रन्थ सबसँ देखी. श्रीमद्वाल्मीकीय रामायणक पहिल सँ तेसर सर्ग ओकर भूमिका मानल जाइछ. किन्तु, ओकर
भाषा आ ओहि में वाल्मीकि ऋषिक हेतु प्रयुक्त सर्वनाम सँ ई स्पष्ट अछि जे भूमिका हुनक शिष्य वा कोनो आन विद्वानक
लिखल थिकनि. एकर विपरीत, तुलसीकृत रामायण- श्रीरामचरितमानस- क बालकाण्डक मंगलाचरणक
एक अंश कें गोस्वामी तुलसीदास जी भूमिका-जकाँ प्रस्तुत केने छथि, जाहि में रामकथाक
श्रोत आ ग्रंथ लिखबाक उद्देश्य व्यक्त कयल गेल अछि. रघुवंश महाकाव्य में कालिदास
सेहो प्रथम सर्ग में अपन भूमिका जकाँ ‘ अपन अल्पज्ञता, महान कार्य करबाक धृष्टता, आ प्रयासक विधि- मणौ
वज्रसमुत्कीर्णे सूत्रस्य वास्ति मे गतिः-
कें’ उदाहरणक संग व्यक्त कयने छथि.
आब भूमिकाक
आवश्यकताक गप्प करी. विलियम शेक्सपियर सहित बहुतो विद्वानक ई विचार छनि जे नीक साहित्यकें भूमिकाक
कोन काज.[1,
2] पोथी अपन परिचय अपने कहैछ.
वर्ष 2000
में प्रकाशित ‘जड़ि’ नामक हमर कविता-संग्रह आ प्रथम पोथी क भूमिका, ‘कहबाक आओर किछु
नहिं अछि’ में हमरो तर्क इएह छल जे ‘ जे किछु कहबाक छल सएह तं थिक कविताक संकलन’.
1922 में प्रकाशित ‘मिसेज डैलोवे’ नामक उपन्यास में प्रसिद्ध उपन्यासकार वर्जिनिया वुल्फ सेहो एही
प्रकारक विचार प्रस्तुत केने रहथि. हम यद्यपि, तहिया हम वर्जिनिया वुल्फक ओहि पोथी
सँ अपरिचत रही.
तथापि जं
लेखक ई बूझथि जे विषय-वस्तुक नवीनता कारणें भूमिका आवश्यक अछि, तं भूमिका हेबेक
चाही. किन्तु, लेखकक मन में भूमिकाक आवश्यकता आ उद्देश्य स्पष्ट हयब आवश्यक. सत्यतः,
भूमिका शब्दक संबंध विषयक भूमि वा पृष्ठभूमिसँ छैक. भूमिका प्रायः ओ सीढ़ी सेहो थिक
जाहि बाटें पाठक कें विषय-प्रवेश में सुविधा होइत छनि. किन्तु, व्यवहारतः भूमिका ओ
छोट वा पैघ लेख थिक जे पुस्तक आ लेखकक परिचय दैछ. जं लेखक पाठकक बीच सुपरिचित होथि
तं परिचयक कोन काज ? आ तहिना जं विषय सर्वविदित होइक तखनो विषय-प्रवेशक हेतु लेख
केर कोन काज. मुदा, विषय नव होइक तं परिचय देल जा सकैछ. लेखकक परिचय तं हुनक
बायोडाटासँ सेहो ज्ञात होइते अछि. ई भेल लेखकक दिससँ भूमिकाक आवश्यकता.
आब लेखकसँ
भिन्न दोसर विद्वानक लिखल भूमिका पर आबी. एहन भूमिकासँ पुस्तक आ लेखकक परिचयक अतिरिक्त पाठक कें की
अपेक्षा करबाक चाही ? की भूमिका लेखकक हेतु अनुशंसा( testimonial) थिक ? जं, हं,
तं भूमिका लेखकसँ पाठक कें की अपेक्षा करबाक चाही ? ई अनुभूत थिक जे लेखकक अपन तथा
लेखकक वरिष्ठ वा अपेक्षित द्वारा लिखल भूमिकाक स्वरुप में भिन्नता होइछ. तथापि, की
भूमिकाक लेखकसँ ई अपेक्षा करब अनुचित थिक जे ओ पाठकक समक्ष पोथीक विषय-वस्तुक
वस्तुनिष्ठ आकलन प्रस्तुत करथि. अन्यथा, भूमिका लेखकक विश्वसनीयता पर आँच नहिं अओतनि
! तर्क संगत थिक, पुस्तकक संगहिं केओ लेखक समालोचनाकें प्रकाशित नहिं करय चाहताह.
मुदा, ई अनुसंधेय थिक, जे कतेक पाठक पोथीक भूमिका पढ़बाक कष्ट करैत छथि. वा की पाठक
भूमिका लिखनिहारक नाम देखि भूमिका पढ़बाक निर्णय करैत छथि ? की इहो संभव जे भूमिकाक
आकार देखि पाठक भूमिका पढ़बाक विचार करैत छथि. तें, भूमिकाक आकार कतेक टा हेबाक
चाही सेहो विचारणीय थिक. ई तं भूमिकाक उद्देश्य में निहित हेबेक चाही. कारण जं
भूमिका केओ पढ़बे नहिं केलनि तं भूमिकासँ लेखक वा पाठकक कोन हितसाधन हेतनि.
आब मैथिलीक
पोथी सब में भूमिकाक स्वरुप पर एक नजरि घुमाबी, देखिऐक जे मैथिली आ आन भाषा में भूमिकाक
स्वरुप केहन छल आ केहन अछि. एहि हेतु हम अपन अलमारीसँ मैथिली, हिन्दी आ अंग्रेजीक
विभिन्न विधाक बीस गोट पोथी निकालल अछि. एहि में इतिहास, संस्मरण, उपन्यास आ
विज्ञान आ व्याकरण सब किछु अछि. जं सरसरी नजरिसँ देखी तं लगैत अछि, मैथिली में
अनकासँ भूमिका लिखयबाक परंपरा बेसी प्रचलित अछि. यद्यपि, आरंभ में ई परंपरा नहिं
छल. तें, सन् 1340 साल (1932 ई.) में
प्रकाशित उपन्यास ‘चन्द्रग्रहण’ क भूमिका, ‘किछु’ आ 1345 साल में प्रकाशित ‘बीरप्रसून’
नामक बालोपयोगी पुस्तकक ‘ पहिने ई पढ़ि लिय !’ लेखकक अपने लिखल छनि.एहि पोथी सबहक
संक्षिप्त भूमिका रोचक अछि. ‘बीरप्रसून’क भूमिका में एकदम संक्षिप्त भूमिका में किरण जीक लिखैत छथि:
‘हम अपना में
सम्पादनकलाक ज्ञानक सर्वथा अभाव अनुभव करैत छी. परन्तु, मैथिलीक प्रति अदम्य भक्ति
तथा सहयोगीक आज्ञा स विवश भै हमरा ई भार स्वीकार करै पड़ल.’
एहि में अपन
परिचय वा पोथीक संबंध में किछु नहिं छैक. तहिना ‘चन्द्रग्रहण’क ‘किछु’ क भूमिका
सेहो देखबा योग्य अछि:
अपने लेखक
नहिं. मैथिली भाषा में एहि प्रकारक कोनो पुस्तक नहिं जाहिसँ- मणौ वज्रसमुत्कीर्णे
सूत्रस्य वास्ति मे गतिः- चरितार्थ हो.
एहि भाषा में लेखन शैलीयो निश्चित नहिं अतः एहूमें गडबड़ीए होयबाक सम्भावना. लेखन-संसोधन
सभ प्रथमारम्भे. की त्रुटि की नहिं एकरो ज्ञान नहिं. तखन किमर्थ क्षमाप्रार्थी हउ ?’
अयोग्यक हाथ में महान कार्य देखि तत्कार्य्यकुशल ह्रदय में ओहि कार्य के अपनेबाक प्रवृत्ति
स्वाभाविक.’
मुदा,सर्वतन्त्रस्वतन्त्र
श्रीबालकृष्ण मिश्रक ‘ मैथिल महाकवि विद्यापतिठाकुर विरचित पदावली (जुलाई 1937)
में कोनो भूमिका नहिं अछि. मुदा, जं मैथिली व्याकरणक शिरोमणि ‘मिथिलाभाषा विद्योतन’
कें देखी तं 1946 में प्रकाशित एहि पोथीक भूमिका जं लेखकक, उचिते, अपन थिकनि तं
एहि में प्रकाशकीय सेहो छैक जाहि में अत्यन्त
ई संक्षेप में आशा व्यक्त कयल गेल अछि जे
ई ग्रन्थ ‘ मिथिलाभाषाक गौरव बढ़ाओत’.
किन्तु, प्रोफ़ेसर श्री तंत्रनाथ झाक ‘कीचक-बध’ में कोनो भूमिका नहिं छैक. मुदा, 1971
में प्रकाशित किरणजी ‘विजेता विद्यापति’क विस्तृत भूमिका आचार्य सुमन जी लिखने छथि,
जकरा भूमिका आ समालोचना कम, नाटककारक परिचय आ पोथीक प्रशंसा बेसी कहि सकैत छिऐक. ‘विजेता
विद्यापति’ में छोट सन लेखकीय वक्तव्य सेहो छैक, मुदा, ओहि में पोथीक विषय किछुओ
नहिं.
एक्कैसम
शताब्दी में में प्रकाशित पण्डित गोविन्द
झा केर ‘भाषाशास्त्र-प्रवेशिका’ (2011) क भूमिका ‘भाषा प्रबन्ध : प्रवेशिका’ जं
रमानन्द झा ‘रमण’ क लिखल छनि तं प्राक्कथन (लक्ष्य आ’ सीमा) लेखकक अपन छनि.
मैथिलिओ में
मरीचिका में लेखकीय नहिं भेटत, प्रकाशकीय छैक. ‘मिच्छामि दुक्कड़म्’ क ‘उत्स’क लेखक,
लेखक अपनहिं छथि. वैज्ञानिक योगेन्द्र पाठक ‘वियोगी’क अधिकतर पोथी में भूमिका हुनक
अपने लिखल भेटत; केवल ‘चुल्हिचन पुराण’ क आमुखक लेखक स्व. रामलोचन ठाकुर थिकाह आ ‘त्रिनाटकम् ‘ में ‘नाटकक कथा’क लेखक गंगा झा थिकाह. ‘नाटकक कथा’क केवल
एहि में संकलित नाटक सबहक पृष्ठभूमिक कथा कहैत अछि, ई नाटक सभक अनुशंसा नहिं थिक !
‘चुल्हिचन पुराण’क आमुख में पोथीक वस्तुनिष्ठ प्रसंशा छैक.
प्रश्न ई उठैछ
जे प्रस्तावना, भूमिका वा परिचय में एहन की रहैत छैक जे लेखक अपने नहिं लिखि सकैत
छथि. कारण प्रणेताक रूप में अपन कृतिसँ सबसँ
बेसी परिचय तं लेखकेक होइत छनि. तें, अपन वरिष्ठ, समकक्ष, वा प्रसिद्ध कनिष्ठसँ लिखल भूमिका, पोथीक परिचय थिक वा अनुशंसा ? कारण,
अंग्रेजी साहित्यक विभिन्न विधाक पोथी में जतय कतहु आमुख भेटत, ओ लेखकक अपने
वक्तव्य होइत छनि. हं, विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका में पोथीक समीक्षाक प्रशंसात्मक
अंशकेर उद्धरण पोथीक पछिला पीठ पर प्रचारक हेतु देबाक परंपरा जगजाहिर अछि. ई
परंपरा वैज्ञानिक विषयक पुस्तक The Emperor of All Maladies (Siddhartha Mukherjee
), इतिहासक पुस्तक The Anarchy( William Dalrymple), समाज-विज्ञानक Ladakh (Janet Rizavi),
धर्मग्रन्थ Bhagavadgita ( S Radhakrishnan), आ उपन्यास The Glass Palace (Amitav Ghosh),
सब में भेटत.
किन्तु, हमरा
अंग्रेजीक एकटा एहनो पोथी भेटल जाहि में लेखक आ आमुख लिखनिहार दुनू सामान रूपें
प्रसिद्ध रहथि. ई पोथी थिक ले. कर्नल. डाक्टर डाक्टर सच्चिदानन्द सिन्हाक ‘Some Eminent
Behar contemporaries’.[3] आमुख लिखनिहार
थिकाह ले. कर्नल डाक्टर अमरनाथ झा. मुदा, एहि आमुख में डाक्टर अमरनाथ झा स्वयं
शेक्सपियर कें उद्धृत कए [1 ] आमुखक उपादेयता पर प्रश्नचिह्न लगौने छथि.
किन्तु, नजरि
हिन्दी दिस घुमाबी. पण्डित राहुल संकृत्यायनक ‘वोल्गा से गंगा’क प्राक्कथन में हुनक प्रस्तुति एकदम भिन्न अछि. ओ
लिखैत छथि:
‘मानव आज
जहाँ है, वहां प्रारंभ में ही नहीं पहुँच गया था. इसके लिए उसे बड़े बड़े संघर्षों
से गुजरना पड़ा. मानव समाजकी प्रगति का सैद्धांतिक विवेचन मैंने अपने ग्रन्थ ‘ मानव
समाज’ में किया है. इसका एक सरल चित्रण भी
किया जा सकता है, और उससे प्रगतिके समझने में आसानी हो सकती है, इसी ख्याल ने मुझे
‘वोल्गा से गंगा’ लिखने के लिए मजबूर किया है.’
एतय एके
वाक्य में ओ पोथी लिखबाक मजबूरी ( वा उद्देश्य) कें व्यक्त कय दैत छथि. तहिना 1954
में प्रकाशित ‘मैला आँचल’ ( फणीश्वरनाथ रेणु )क भूमिका आ ‘वैशाली की नगरवधू’क ‘प्रवचन’
आचार्य चतुरसेनक अपने छनि. किन्तु, कर्त्तार सिंह दुग्गल केर उपन्यास ‘जल की प्यास
न जाए’ में लेखकीय नहिं छैक; पुनर्मुद्रित
संस्करण में प्राक्कथन प्रकाशकक छनि. दोसर दिस, प्रसिद्ध कवि निदा फ़ाज़लीक ‘आदमी की
तरफ’ में एकटा छोट वक्तव्य छैक. हुनक पोथी ‘सफ़र में धूप तो होगी’ क ओ संस्करण जे
कविक मृत्युक पछाति छपल अछि, ओहि में भूमिका लेखकक अतिरिक्त दोसर व्यक्तिक लिखल
छनि. एकर कारण बूझब कठिन नहिं.
प्रश्न उठैछ,
की लेखकसँ इतर व्यक्ति लिखल भूमिका वस्तुनिष्ठ भए सकैछ ? जं, हं, तं कि अपने पोथी
में लेखक कें अपन पोथीक नीर-क्षीर विवेचना
रुचतनि ? आ जं भूमिका में विवेचनाक स्थान पर केवल प्रशंसा होइक तं की पाठक केवल
भूमिका पढ़ि आँखि मूनि पोथी किनताह ? हमरा जनैत, पोथी पढ़बासँ पूर्व कतेक पाठक भूमिका पढ़इत छथि तकर सर्वेक्षण बहुतो
लेखक आ पाठकक आँखि खोलि सकैत अछि. ततबे नहिं, की संतुलित भूमिकाक स्थान पर केवल प्रशंसात्मक भूमिका लेखकक प्रतिष्ठा कें
आघात पहुँचबैत छनि ? जं नहिं तं उत्तम. अन्यथा, लेखक अपन पोथीक भूमिका अपने किएक
नहिं लिखैत छथि ? अपन पोथीक वस्तुनिष्ठ समीक्षाक किएक प्रतीक्षा नहिं करैत छथि ? ई
विचारणीय थिक.
1. Shakespeare
William in ‘As you Like It. ’"If it be true, that good wine needs no
bush, ’tis true, that a good play needs no epilogue."
2. Woolf
Virginia: Mrs. Dalloway (Introduction) 1922. It is difficult- perhaps
impossible- for a writer to say anything about his work. All he has to say has
been said fully and as well as he can in the body of the book itself. It he has
failed to make his meaning clear there it is scarcely likely that he will
succeed in some few pages of preface or postscript.
3. Amarnatha Jha. Foreword In: Sinha Sachchidananda. Some
Eminent Behar contemporaries,1944.Patna: Himalaya Press.
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