Sunday, September 10, 2023

मैथिली लेखनक एकफेंड़ा गाछकें चारू दिस चतरब आवश्यक छैक

 

मैथिली लेखनक एकफेंड़ा गाछकें चारू दिस चतरब आवश्यक छैक

ऐतिहासिक युगमे जहिया अधिकतर लोक निरक्षर छल तहियो विभिन्न विधामे लेखन होइत छल. से नहि होइतैक तं संस्कृतहिमे गद्य, पद्य, महाकाव्यक अतिरिक्त आ ज्योतिष, चिकित्सा-विज्ञान (चरक आ सुश्रुत संहिता), कामसूत्र, योगसूत्र, नाट्यशास्त्र कोना लिखल जाइत.

मैथिलिओमे किछु गोटे लेखक विधामे विविधताक प्रयास अवश्य कयलनि. मुदा, अधिकतर लेखन कथा, कविता, नाटक मूलतः, उपन्यास, यात्रा-वृत्तांत अंशतः, आ आलोचना तथा आध्यात्म किछु-किछु, धरि सीमित रहि गेल. फल ई भेल जे एखन मैथिली लेखन चतरल बड़क गाछक विपरीत एकफेंड़ा  गाछ-जकाँ  सुरुंग भेल ऊपर मुँहे जा रहल अछि. तें आइ जं कोनो एहन व्यक्ति होथि जे मैथिलीए टा पढ़ैत होथि – ई कनेक असंभव अवश्य अछि- हुनका प्रौद्योगिकी, प्रशासन, आ चिकित्सा-विज्ञान तं दूर समसामयिक विषय, इतिहास, भूगोल, सामान्य विज्ञान, जलवायु धरिक कोनो प्रमाणिक लेखन मैथिली मे प्रायः नहि भेटतनि. एतय हम मैथिली लेखनमे विविधताक अभाव पर विचार करय चाहैत छी. यद्यपि एहि विषयपर करब बिढ़नीक छत्तामे हाथ देब थिक.

इन्टरनेटक एहि युगमे लिखब आ छपाएब कतेक सुलभ अछि, से कहबाक काज नहि. ऊपरसँ ChatGPT-सन ऑनलाइन कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence)क सहायतासँ जखन कथा-कविताक कोन कथा, न्यूज़ पेपर लेखसँ ल’ कए थीसिस आ पोथी धरि लिखल जा रहल अछि, तखनो मैथिली लेखनमे विविधताक अभाव ककरा नहि खटकटैक. अस्तु, संक्षेपमे एतय किछु संबंधित विन्दुकें रखैत छी, जाहिसँ  एहि विषयपर वाद-विवादकें बल भेटैक, समुचित समाधानक खोज हो, आ वांछित परिणाम आगाँ आबय.

मिथिलांचलमे मैथिली शिक्षाक माध्यम नहि थिक. ई लेखनमे विविधताक अभावक सबसँ बड़का कारण थिक. मैथिली शिक्षाक माध्यम नहि थिक तें एखनुक पीढ़ी जे केवल हिन्दी वा अंग्रेजीक माध्यमसँ पढ़ैत छथि ओ मैथिली पढ़बामे असमर्थ छथि. तें, इच्छा रहितो छात्र आ युवा लोकनि मैथिलीमे उपलब्ध साहित्य नहि पढ़ि पबैत छथि.

एक उदाहरणसँ हमर तर्क स्वतः स्पष्ट भए जायत. डाक्टर योगेन्द्र पाठक वियोगी सरल मैथिलीमे लोकोपयोगी, आ प्रमाणिक वैज्ञानिक लेख लिखबामे सुपरिचित छथि. हिनक लेख सब ‘विज्ञानक बतकही’ नामक पोथीक दू  खण्डमे प्रकाशित छनि. हमरा लग दुनू खण्ड उपहार स्वरुप आयल छल. हम गाम गेलहुँ तं हाई स्कूलक एक विद्यार्थीकें एहि पोथीक दुनू खण्ड दए आबि गेलहुँ. अगिला बेर जखन गाम गेलहुँ, तं पुछलियनि, ‘ बाऊ, पोथी कहन लागल ?’

हुनकर उत्तर हमरा आश्चर्यजनक नहि लागल. कहलनि, ‘बाबा हमरा लोकनिकें ओ पोथी पढ़ल नहि भेल !’

विद्यार्थीक गप्प सुनि हमरा डाक्टर वियोगी जीक ‘ बिनु जड़िक गाछ’ स्मरण भए आयल. एहि लेखमे वियोगीजी  विस्तारसँ मैथिलीक पढ़ब आ प्रसारपर विस्तारसँ विचार कयने छथि.       

इन्टरनेटक एहि युगमे सूचनाक प्रसार बिजुलीक गतिसँ होइछ. तें, जे भाषा सबसँ पहिने सूचना उपलब्ध करबैछ, ओ बाजि मारि लैछ, बाँकी लटैत-बुडैत पिछड़ि जाइछ. तथापि, अपन भाषामे विषय वस्तु पढ़निहार नहि भेटताह से नहि. सब तं भोरे-भोरे सब किछु इंटरनेट पर नहि पढ़ैत छथि.

दोसर विषय: सोशल मीडिया साहित्यक सहयोगी आ गरदनिकट्ट प्रतियोगी दुनू थिक. बहुतो व्यक्ति जे पहिने खाली समयमे पोथी पढ़ैत छलाह, आइ-काल्हि Whatsapp (व्हाट्सएप्प) यूनिवर्सिटीक बाढ़िमे भरि दिन भासि कए अबैत कूड़ा- कचरा पढ़बामे समय बिता दैत छथि. हम अपन एक मित्र, जे भारतीय सेनाक सेवानिवृत्त अफसर थिकाह, कें कहलियनि, ‘अहाँकें  पढ़बा लेले हम अपन लिखल किछु पठाबी ?’

  हमर वाक्य पूरा हेबासँ पहिनहि हाथ जोड़ि लेलनि: ‘ नहि, नहि. हम अनेको व्हाट्सएप्प ग्रुपक सदस्य छी. दिन भरि एतेक अग्रसारित ‘सामग्री’ अबैत अछि, जे ओएह सब पढ़बामे दिन बीति जाइछ !’

हमर मुँहक गप्प मुँहे रहि गेल.

तेसर गप्प: मैथिली भाषाक सबसँ प्रतिष्ठित पुरस्कार,साहित्य अकादेमी पुरस्कार, मोटा-मोटी सर्जनात्मक साहित्य धरि सीमित अछि. अंग्रेजीमे आत्मकथा, इतिहास, आलेख-संचयन, जीवनीक अतिरिक्त साहित्यिक समालोचना पर सेहो साहित्य अकादेमी पुरस्कार देल गेलैक अछि. मुदा, मैथिलीमे प्रायः से अपवादे हएत. अस्तु, प्रतिष्ठा(?) आ पुरस्कारक लोभ बहुतो लेखककें लेखनक विधाक ओहि संकीर्ण बाट दिस ठेलि दैत छनि जेम्हर पुरस्कारक  प्रबल संभावना छैक.

तथापि, एहिमें कोनो दू मत नहि जे भाषा-साहित्यक लेखन लेखककेर रुचि, आ पाठकक आवश्यकता आ मांग पर निर्भर छैक. उदाहरणक हेतु, हेबनिमे मेडिकल कालेजमे पढ़ाईक हेतु हिन्दीओकें माध्यमक रूप मे स्वीकृति भेटलैए. फलतः,अनेक राज्य सरकार मेडिकल कालेजमे हिन्दीमे पढ़ाई आरम्भ करबाक निर्णय केलक-ए. फलतः, भले हिन्दी माध्यमसँ मेडिकल शिक्षा ओतेक लोकप्रिय नहि होउक, भले सरकारहुक सहायतासँ, हिन्दीमे चिकित्सा विज्ञानक पोथी तं अवश्य छपत. तें एतय सरकारी नीतिक भाषा लेखनक विविधता पर धनात्मक प्रभाव हेतैक.

एकर अतिरिक्त, लेखकलोकनि रुचिक अनुकूल विषयक चुनाव करैत छथि. ताहिमे विविधताक नितांत अभाव देखबामे अबैछ. मैथिलीमे जतबो दू चारि टा पत्रिका छपैछ, उलटा कए देखि लिऔक. विषय कथा, कविता, आलोचना, विद्यापति, आ बहुत- तं- बहुत जय श्री रामसँ आगू नहि बढ़ैछ. समाजमे नारि पर अत्याचार, वर्त्तमान समाजिक-राजनैतिक परिदृश्यक चुनौती, कामकाजी महिलाक समस्या, शहरमे संघर्षरत श्रमिकक समस्या मैथिली लेखककें किएक नहि उद्वेलित करैत छनि? सरकार मैथिलीक जड़िपर नित्य कुड़हरि बजारैछ. ककरो बोल किएक नहि, फुटैत छनि? दिन-दहाड़े  नागरिकक खयबाक-पीबाक स्वतंत्रता, आ धार्मिक आस्था पर आघात होइछ, किओ किएक नहि बजैछ? मैथिलीमे दोसर यात्री आ किरण किएक नहि भेलाह ? आत्म-मंथन करू.

मुदा, ई सब कात जाओ. साहित्यहुक भिन्न-भिन्न विधामे मौलिक लेखन नहिओ होउक, तथापि, भाषा-साहित्यकें समृद्ध करबाक अओरो बाट छैक. हम एकटा प्रश्न पुछैत छी: हमरा लोकनिक पीढ़ीक अधिकतर पाठक हिन्दी मैथिलीसँ बेसी बांग्ला साहित्य पढ़ने छी. मैथिली वा हिन्दीक सहायताक बिना बौद्ध, जैन साहित्य, आ शास्त्र-पुराण सेहो पढ़ैत छी. कोना ? केवल हिन्दी वा अंग्रेजीक माध्यमसँ. आइ चुआँगचुआन वा फाहियानक वृत्तांत जकर मूल चीनी आ कोरियन भाषामे अछि, हमरा लोकनि कोना पढ़ल ? केवल हिन्दी वा अंग्रेजीक माध्यमसँ कि ने. अर्थात् आन भाषाक जे ग्रन्थ उपयोगी बूझि पड़य, मैथिलीमे तकर धुर्झार अनुवाद हो.

मुदा, पढ़त के ? हमरा जनैत ई समस्या थिक आ नहिओ थिक.

जं समस्या थिक, तं ओकर समाधान ताकय पड़त. पचास आ साठिक दशकमे मैथिली प्रचारक अभियानी लोकनि, पैदल, साईकिलपर आ ट्रेनसँ दूर-दूर जाथि. विद्यापति पर्व मनाबथि, गोष्ठी करथि.  आजुक तुलनामे तहिया यातायातक सुविधा नगण्य रहैक. साधनक अभाव छलैक. आ साक्षरता अत्यंत थोड़ छलैक. अभियानीलोकनि नोकरिहा रहथि, गिरहस्थी करथि, गरीबी आ रोगसँ सेहो लड़थि. मुदा, हारि नहि मानथि. आइ जखन हमरा लोकनि सक्षम छी. आर्थिक स्थिति सुधरल अछि, भुखमरी आ रोग थोड़ भेलैए, यातायातक उत्कृष्ट सुविधा छैक, आ हमरा लोकनिकें साधनोक अभाव नहि अछि, तं साहित्यक प्रचार अवश्ये अनेक गुणा सुलभ छैक. तखन प्रयास किएक नहि हो.

साहित्यकें लोकप्रिय बनयबा लेल आ पोथी बेचबा लेल, अमेरिका आ यूरोप-सन समृद्ध समाज धरिमे लेखक लोकनि अनेक मंचसँ पाठकक समक्ष  अपन साहित्य पढ़ैत छथि, पोथीक दोकानमे बैसि ग्राहकसँ संबंध स्थापित करैत छथि आ  पोथीक प्रचार करैत छथि. एहिसँ जनतामे पढ़बाक हिस्सक पनुगैत छैक. अनेक वर्ष पूर्व  सुश्री ओपरा विनफ्रे-सन लोकप्रिय हॉलीवुड-स्टार पाठकक बीच पोथी पढ़बाक अपन मुहिमसँ ई साबित कयने छथि जे लेखक आ पाठकक बीच सोझ संपर्कसँ पाठकमे पढ़बाक रुचिकें पुनर्जीवित करब संभव छैक. तखन मैथिल लेखकलोकनि पाठकक विभिन्न वर्ग, वयस आ समाजमे अपन साहित्यकें ल’ कए किएक नहि जाथि ?

‘सगर राति दीप जरय’ , कवि गोष्ठी, साहित्यक एकल पाठ एही दिशाक अभियान थिक. किन्तु, लेखनकें बहुआयामी बनयबाक आवश्यकता छैक. मैथिलीमें जाहि विधाक साहित्यक अभाव छैक, अनुवादसँ ओहि खाधिकें भरबाक आवश्यकता छैक. लेखक आ पाठक बीच सोझ संपर्कक आधारकें पैघ करबाक आवश्यकता छैक, जाहिसँ मैथिली लेखनक एकफेंड़ा गाछ चारु दिशामे चतरय आ मैथिली लेखक लोकनि समाजमे ओही प्रतिष्ठा आ आर्थिक लाभक भागी होथि जेना समृद्ध भाषा साहित्यक लेखक आइ छथि.

हँ, एतय एकटा गप्प आओर. कृत्रिम बुद्धिक (AI) माध्यमसँ अनुवाद कतेक सुलभ भए गेल छैक से सर्वविदित अछि. Google Translate केर कैमरा खोलू, कैमराकें श्रोत पुस्तकक कोनो पृष्ठ पर फोकस करू, कोन भाषामे अनुवाद चाही से निर्देश दिऔक, आ अनुवाद सामने अछि. एखन एहि प्रकारक अनुवादमे किछु समस्या नहि छैक, से नहि. मुदा, अनुवाद निश्चय निरंतर सुलभ होइत जेतैक. तें, अनेक विधाक लेखक लोकनि, कमसँ कम प्रयोगहुक रूपें, एके संगे अपन पोथीक मैथिली अनुवादक डिजिटल कॉपी प्रकाशित करबाक हेतु प्रकाशककें प्रेरित कइए सकैत छथिन. ई प्रयोग मैथिलीक गाछकें चारू कात चतरबामे सहायक भए सकैछ. एतय उदाहरण स्वरुप एक अंग्रेजी पोथीक पन्नाकें Google Translate माध्यमसँ कयल मैथिली अनुवादक नमूना नीचा देल अछि. 

पोथीक पृष्ठ मूल अंग्रेजी मे

Google translate द्वारा मैथिली अनुवाद 

      

1 comment:

  1. डाक्टर मनोज कुमार चौधरी, ओहायो अमेरिकासँ लिखैत छथि:
    नमस्कार कीर्तिनाथ बाबू,

    अपनेक ब्लॉग बड़ सामयिक अछि। महत्वपूर्ण अछि। जाहि मुद्दा सबके उठेलहुँ से मैथिल समाजके लेल अति विचारणीय अछि। हम हिंदी- अंग्रेज़ी दूनूमे विज्ञान पढ़ने छी। मात्र हिंदीमे शिक्षण होइत त’ क्षति करैत, ताहि में एकहु मिशिया संदेह हमरा नहिं अछि।

    अपने जाहि रूपे इच्छा हो, जेना उचित बूझी हमर लेखन के उपयोग कए सकैत छी, प्रसार कए सकैत छी।

    अहि सब विषय पर आओर बहुत किछु विचार आ धारणा अछि। से समय समय पर प्रेषित करब।

    शुभेच्छु,

    मनोज

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अहाँक सम्मति चाही.Your valuable comments are welcome.

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